एस. बी. वेलणकर

जब भी ‘बल' की चर्चा होती है उसके प्रकारों और विशिष्टताओं तक ही सीमित रह जाती है। जबकि 'बल' की समग्र समझ बनाने के लिए ज़रूरी है ‘ऊर्जा' की चर्चा भी साथ करना; और देखना कि दोनों कैसे एक दूसरे को प्रभावित कर पाते हैं। एक ऐसा ही प्रयास।

एक पत्थर के गोल से छोटे टुकड़े को अपने हाथ में पकड़े। हुए किसी समतल सतह पर चलाइए या खिसकाइए। आप पत्थर को पकड़े हुए हैं और उस पर लगातार बल लगा रहे हैं - वस्तु चल रही है। लेकिन सवाल है कि वस्तु क्यों चल रही है। क्या देंगे इसका उत्तर आप? आगे पढ़ने से पहले जरा सोचिए?
अधिकतर का जवाब होता है कि बल लगा रहा हूं इसलिए चल रही है वस्तु। लेकिन कुछ लोग यह भी कहते हैं कि वस्तु चल रही है। क्योंकि इसमें ऊर्जा है। तो दोनों में से कौन-सा जवाब सही मानें? निर्णय से पहले चलिए फिर से एक और प्रयोग करते हैं - इस बार कंचे के माध्यम से?

यदि मेरे पास एक अंटी है और मैं इसे छोड़ दें, थोड़ा-सा धक्का देकर अगर छोड़ दें ... तो अब मैं इसे हाथ भी नहीं लगा रहा हूं लेकिन यह फिर भी चल रही है!
पत्थर वाले मामले में तो दिख रहा है कि बल लगाया जा रहा है। और यह पत्थर चल रहा है लेकिन जब मैं एक कंचे को जमीन पर ऐसे ही थोड़ा-सा बल लगाकर छोड़ता हूं तो यह जमीन पर यहां से वहां तक चला जाता है। यानी कंचे वाले मामले में तो यह साफ है कि मैं उस कंचे पर लगातार बल नहीं लगा रहा हूं, फिर भी वह चल रहा है।*


* देखिए संदर्भ के तीसरे अंक में प्रकाशित लेख 'बल नहीं है बल'।


वस्तु का चलना - बल या ऊर्जा
चलिए जरा रुकने के बारे में कुछ सोचे - वस्तु कुछ दूर जाकर रुक गई। क्यों हुआ ऐसा - स्वाभाविक जवाब होता है ‘घर्षण बल' के कारण। यह ‘घर्षण बल' शब्द काफी महत्वपूर्ण है। अब आप उस परिस्थिति की कल्पना कीजिए जब घर्षण बल शून्य हो। यानी । बिल्कुल भी घर्षण नहीं हो - और मैं वस्तु को चला हूं तो वह चलती ही रहेगी। सोचिए जरा... बल नहीं लगा रहा हूं फिर भी वह हमेशा के लिए चलती रहेगी। सही है न? अब सोचिए यह वस्तु बिना कोई बल लगाए भी क्यों चली जा रही है?

एक नाम है गतिज ऊर्जा, जिसके कारण वस्तु चल रही है। वैसे अगर ज्यादा गणित में नहीं उलझे तो भी एक सूत्र तो समझ ही सकते हैं:
गतिज ऊर्जा = 1/2 MV2
इस सूत्र से मालूम पड़ता है कि गतिज ऊर्जा, वस्तु के वेग पर निर्भर है और उसकी संहति पर भी। उसका वेग अगर ज्यादा है तो गतिज ऊर्जा अधिक रहेगी। अगर वह धीरे चल रही है तो उसकी गतिज ऊर्जा कम रहेगी। और ऐसे ही अगर संहति (द्रव्यमान) अधिक होगी तो गतिज ऊर्जा अधिक और कम हो तो गतिज ऊर्जा कम।

जैसे कि अगर एक वस्तु भारी है। और एक हल्की और दोनों समान वेग से चल रही हैं। उनमें गति के कारण ऊर्जा है या यह भी कह सकते हैं कि उसमें ऊर्जा है इसलिए गति है। खैर मामला चाहे जिधर से भी देखें, समान वेग से चलने पर भी जिस वस्तु का द्रव्यमान अधिक रहेगा उसमें गतिज ऊर्जा अधिक। रहेगी। उदाहरण के लिए एक भारी गोला और एक छोटा गोला लुढ़कते हुए आ रहे हैं; भारी गोले के सामने अगर आप सोचेंगे कि इसको रोकें या नहीं तो वह आपको रौंदते हुए आगे निकलकर जा सकता है।
ऊर्जा एक तो संहति पर निर्भर करती है और दूसरा वेग पर निर्भर करती है।

फिर से एकदम शुरू वाली। स्थिति की बात करते हैं। मैं वस्तु को पकड़े हुए हैं और लगातार धकेल रहा हूं उसे। यहां हम ढलान की बात नहीं कर रहे हैं - हम यह कह रहे हैं कि समतल सतह पर वस्तु क्यों चलती है? तो यह सोचना गलत है कि वह उस पर बल लगाए जाने के कारण चल रही है। वास्तव में, जब मैं वस्तु को चला रहा हूं तो इसकी गतिज ऊर्जा के कारण यह चल रही है। क्योंकि उस पर लगने वाला कुल बल तो शून्य है। जाहिर है सवाल उठेगा कि शून्य कैसे है?

एक तरफ घर्षण बल है जो उस वस्तु को रोक रहा है। इसलिए मैं जो बल इधर से लगा रहा हूं तो उसके विपरीत एक घर्षण बल लग रहा है - और क्योंकि आमने सामने दो एक समान बल लग जाएं तो परिणामी बल शून्य हो जाता है। इसलिए मैं कहता हूं कि यहां बल शून्य है।
इसीलिए मेरा कहना है कि वस्तु जब चल रही है तो वह बल के कारण नहीं चल रही है, वस्तु चलती है क्योंकि उसमें गतिज ऊर्जा है।

ऊर्जा नियत है - इसलिए ..
आपने ऊर्जा संरक्षण के सिद्धांत के बारे में तो पढ़ा होगा - यानी कि ऊर्जा को न तो हम नष्ट कर सकते हैं न ही उत्पन्न कर सकते हैं।


* यहां पर उस स्थिति की बात कर रहे हैं जब विपरीत दिशा में लगने वाले बल ठीक बराबर हैं।


ऊर्जा हमेशा नियत रहती है। तो स्वाभाविक तौर पर एक सवाल उठ सकता है कि यदि आप ऊर्जा को नष्ट नहीं कर सकते हैं और एक वस्तु चल रही है तो उसकी ऊर्जा पर क्या असर पड़ेगा?
अगर उसकी ऊर्जा को बने रहना है तो उस वस्तु को चलते रहना। होगा क्योंकि यदि वह तेज गति से। चलेगी तो उसकी ऊर्जा बढ़ जाएगी। हर वक्त इस बात को याद रखना होगा कि ऊर्जा हमेशा नियत रहती है - न तो हम उसे नष्ट कर सकते हैं और न ही उत्पन्न कर सकते हैं। इसलिए यदि वस्तु चल रही है तो उसके पास कोई दूसरा मार्ग नहीं, कोई गुंजाइश नहीं है। वह जो चल रही थी उसको चलते ही रहना है क्योंकि यदि वह धीमी हो गई तो ऊर्जा कम हो जाएगी, तेज़ चली तो ऊर्जा बढ़ेगी और ऐसा कुछ हम कर नहीं सकते। वस्तु अपने आप अपनी ऊर्जा को न तो बढ़ा सकती है और न ही कम कर सकती है - इसलिए, उसे चलते ही रहना है। वास्तव में, यही न्यूटन का प्रथम नियम हैः
"जो वस्तु गति कर रही है वह अपनी गति को बनाए रखती है।''

ऊर्जा और बल
अब देखते हैं कि बल लगाने से ऊर्जा पर क्या असर पड़ता है। अगर बल उल्टी दिशा में लग रहा है तो वह गति करती हुई वस्तु को रोक । देता है। जैसे कि वस्तु को हमने यहां पर लुढ़काया। अब उस पर एक बल लग रहा है घर्षण बल, जिसने उसे रोक दिया है। जिस दिशा में वस्तु जा रही है यह बल उसके विपरीत लग रहा है।
अब अगर मैं वस्तु के जाने की दिशा में बल लगाऊं और घर्षण नहीं है तो क्या होगा? तो जरूर वह और तेज गति से चलने लगेगी। अब ऊर्जा कहां से आई? क्योंकि जैसा मैंने शुरू में कहा था कि ऊर्जा न तो नष्ट हो सकती है और न ही उत्पन्न हो सकती है, तो यह ऊर्जा आई कहां से? अगर गति में परिवर्तन है तो यकीनन गतिज ऊर्जा में परिवर्तन हुआ है।

इस सवाल के बारे में सोचते ही समझ में आ जाता है कि मैं इस वस्तु को अपने शरीर की ऊर्जा दे रहा हूं। मतलब आप बल लगाकर अपने शरीर की ऊर्जा को वस्तु की गतिज ऊर्जा में स्थानान्तरित कर रहे हैं - इस स्थिति में वस्तु का वेग बढ़ेगा। लेकिन वेग तो तब तक ही बढ़ेगा जब तक आप उस पर बल लगाते हो। अगर आप बल लगाना छोड़ दें, तो उस अंतिम समय पर जो भी ऊर्जा रहेगी वह वस्तु को आगे की गति में बनाए रखेगी।

तो इस प्रकार से वस्तु जब गति करती है तो आवश्यक शब्द बल नहीं है मगर ऊर्जा है, और यदि ऊर्जा है तो वस्तु अपनी गति में बनी रहेगी क्योंकि ऊर्जा को हम न तो उत्पन्न कर सकते हैं और न ही नष्ट कर सकते हैं।
इसका मतलब यह हुआ कि अगर हम किसी भी वस्तु की गति में किसी भी प्रकार का परिवर्तन करना चाहते हैं तो हमें उसकी । ऊर्जा का स्थानांतरण करना होगा। अगर ऐसा कुछ भी करना है तो बल की जरूरत पड़ेगी ही।

स्थिति के कारण ऊर्जा
अब एक दूसरा उदाहरण देखते हैं। अगर कोई लोहे का भारी गोला आपके बगल में रखा हो तो आप आराम से उसके बगल में बैठे रहेंगे। मगर इसी गोले को अगर कोई आपके सिर के ऊपर लटका आता है तो आप बार-बार उसकी तरफ देखते रहेंगे। क्योंकि जिस व्यक्ति ने उसे उस स्थान पर लाकर रखा है उसे ऐसा करने के लिए बल लगाना पड़ा है, कार्य करना पड़ा है। उसकी जो व्यय ऊर्जा है वह उस गोले में है। यदि वह गोला गिरा तो उसकी स्थिति विशेष के कारण उसमें जो ऊर्जा है (यानी कि उस व्यक्ति के गोले को ऊपर ले जाने में जो ऊर्जा खर्च हुई और गोले में संग्रहित हो गई) वह फिर गति की ऊर्जा में परिवर्तित हो जाएगी और उसका वेग बढ़ते-बढ़ते जब वह नीचे आएगा तो किसी का भी। बंटाधार कर देगा।

तो यह जो ऊर्जा है वह ऊर्जा का एक दूसरा महत्वपूर्ण रूप है; और यह स्थिति विशेष के कारण वस्तु में जो ऊर्जा होती है वह है। इसीलिए इसे स्थितिज ऊर्जा कहते हैं।

ऊर्जा परिवर्तन, पीछे लगा बल
चलिए एक और पहलू पर गौर करते हैं - जब आपने किसी चीज को ऊपर की ओर फेंका तो वह थोड़ा ऊपर जाकर एक बिन्दु पर रुक गई और फिर नीचे की ओर चल पड़ी। ऐसी स्थिति में उसकी गतिज ऊर्जा का क्या हुआ?
वह ऊपर की ओर जाकर रुकने वाले बिन्दु पर एक दूसरे रुप में संग्रहित हो गई - जिसे हमने अभी स्थितिज ऊर्जा कहा था। यानी यहां ऊर्जा का रूप बदल गया। लेकिन कैसे संभव हुआ यह?
अगर इस सवाल पर आप विचार करें। तो पाएंगे कि इसका कारण भी एक बल है। यह बल नहीं होता तो इसका यह रूप परिवर्तन नहीं होता। पृथ्वी अगर आकर्षित नहीं करती तो यह वस्तु अपनी गति को बनाए रखकर ऊपर

G ∝ m1m2/d2

की ओर अनन्त दूरी तक चली जाती।
ऊर्जा के रूप में जो भी परिवर्तन होता है वह बल के कारण ही होता है।
यह पृथ्वी का आकर्षण बल जिसे हम गुरुत्वाकर्षण बल के नाम से जानते हैं एक प्राकृतिक बल है। कोई भी दो पिन्ड आपस में एक दूसरे को आकर्षित करते हैं और यह जो बल है वह द्रव्यमान के गुणनफल के समान अनुपात और इनकी दूरी के वर्ग के व्युतक्रमानुपात में होता है।* दूरी को दुगुना कर दो तो यह एक बटे चार हो जाता है।

कहां गई ऊर्जा?
अब एक और पहलू की बात करते हैं - अगर मैंने एक वस्तु को धक्का देकर, बल लगाकर छोड़ दिया तो यह कुछ दूर तक चल कर रुके जाती है। ऐसा क्यों होता है? अगर इसमें ऊर्जा है और इसे अपनी गति को बनाए रखना है, तो इसे चलते रहना चाहिए, कहीं रुकना नहीं था। मगर शुरुआत में ही हमने देखा था। कि इस पर एक बाह्य बलं काम कर रहा है - घर्षण बल; और इसलिए वस्तु की जो ऊर्जा है वह घर्षण बल के विपरीत कार्य करते हुए व्यय हो रही है और यह वस्तु रुक जाती है। अब सवाल यह उठता है कि वस्तु तो रुकी पर इसकी गतिज ऊर्जा का क्या हुआ?

जब मैंने वस्तु को ऊपर फेंका था तब आपको बताया कि एक गुरुत्वाकर्षण बल है, इस बल के विपरीत जब वस्तु गई तब वस्तु में ही गतिज ऊर्जा स्थितिज ऊर्जा के रूप में संग्रहित हो गई। लेकिन समतल जमीन पर चल रही वस्तु जब रुक गई तो यहां ऊर्जा कहां गई? अब यहां पर किस रूप में परिवर्तन हुआ उसका?
यहां जो बल लगा वह अलग तरह का बल है - घर्षण का बल; क्या है यह घर्षण का बल? यह देखने के लिए कि ऊर्जा कहां गई हमें घर्षण बल को समझना पड़ेगा। आप जरा इस सतह को देखिए। अगर आपके पास कोई बारीक से बारीक चीज़ देखने वाला सूक्ष्मदर्शी है तो आप देख पाएंगे कि सतह जो है वह अणुओं और परमाणुओं से बनी हुई है। वह एकदम सपाट नहीं है।

एक वस्तु जब इसके ऊपर सरक या लुढ़क रही है तो इसे खुरदुरी सतह को धक्का देते हुए जाना पड़ेगा। यही घर्षण बल है। जब ऊपर वाली वस्तु गतिशील होगी, आगे बढेगी तो नीचे की सतह के जो परमाणु हैं वे गति करेंगे। इनकी गति की ऊर्जा कहां से आई?

गति की एक और ऊर्जा यानी...
अगर पदार्थ को सूक्ष्म रूप से देखेंगे तो पाएंगे कि पदार्थ अणु और परमाणु से बना हुआ है। और इसके परमाणु स्थिर नहीं हैं, ये सतत गतिशील हैं। फिर भी उनकी औसत गति शून्य है।
परन्तु यह गति की ऊर्जा हमें ऐसे नहीं दिखती। जैसे कि हम अगर एक कमरे के अंदर जल्दी-जल्दी इधर-उधर घूमते हैं और कोई बाहर देखने वाला है तो उसके लिए हमने अपनी जगह नहीं बदली है। कमरा अगर बंद है तो बाहर वाले को समझ में भी नहीं आएगा कि हम गति कर रहे हैं। ऐसी ही एक गति की ऊर्जा पदार्थ के अंदर होती है जिसमें औसतन गति शून्य है। इधर उधर जरूर हो रहे हैं मगर उनकी औसतन गति नहीं है। इसका मतलब यह नहीं कि वे गति नहीं कर रहे हैं। परन्तु साथ ही ऐसा भी नहीं है कि वे चलते हुए दिखें। ये । अणु और परमाणु सब गतिशील हैं। और उनकी एक औसत गति की ऊर्जा' होती है।

ये जो गति की ऊर्जा है क्या हम इसे किसी रूप में देख नहीं सकते? ऐसी बात नहीं है। यह जो औसत गति की ऊर्जा है यह हमें उस वस्तु के ताप के रूप में दिखाई देती है। यानी अगर उनकी गति बढ़ जाए, वहीं के वहीं तेज गति करने लगें, तो वस्तु का ताप बढ़ेगा। आप जब किसी भी वस्तु को गरम करते हो। तो उसके जो अणु परमाणु हैं वे और तेज़ गति करने लगते हैं। औसत रूप से वे वहीं के वहीं हैं लेकिन गति तेज हो गई है। गरम करने के बाद अगर आप अपना हाथ उस वस्तु पर रख दो तो उसके परमाणु इतनी तेज़ गति कर रहे हैं। कि वे आकर आपकी चमड़ी की। कोशिका से टकराएंगे और बंदूक की गोली की तरह उस कोशिका को खत्म कर देंगे। वहां छाला बन जाएगा और कोशिका मर जाएगी। तो यह गति की ऊर्जा हमें वस्तु के चलने के रूप में नहीं दिखाई देती। मगर उसके ताप के रूप में दिखाई देती है। वस्तु का ताप जितना अधिक, उसके अणुओं की गति की ऊर्जा उतनी अधिक होगी।

अब वापस आ जाते हैं अपने सवाल पर - यह जो वस्तु मैंने लुढ़काई तो यह चलते चलते रुक गई, इसकी गति की ऊर्जा व्यय हो गई है। मगर वह ऊर्जा कहां गई? वह ऊर्जा सतह के अणुओं में और वस्तु के खुद के अणुओं में ताप बढ़ाने में व्यय हो गई। यहां भी ऊर्जा खत्म नहीं हुई। इस ऊर्जा को हम स्थितिज ऊर्जा नहीं कहते, क्योंकि यहां ऊर्जा ताप के रूप में है। यानी ऐसे रूप में परिवर्तित हो। गई जिसे हम फिर से अपने उपयोग के लिए प्राप्त नहीं कर सकते। क्योंकि ये अणु गतिशील हो गए। और हम इन्हें खींचकर, अर्थात इनकी गति को कम कर पुनः अपनी वस्तु की गति में नहीं डाल सकते। हमारे पास ऐसा कोई साधन नहीं है जिससे हम इन अणुओं की गति को कम करके पुनः ऊर्जा प्राप्त कर सकें। ऐसा हो पाता तो क्या बात थी।

बल दो प्रकार के
ऐसे बल जिनके विपरीत कार्य करने में व्यय हुई ऊर्जा ऊष्मा के रूप में परिवर्तित हो जाती है, ऐसे घर्षण प्रकृति वाले बल को हम असंरक्षी बल कहते हैं।
पहला वाला गुरुत्वाकर्षण बल जिसे प्राकृतिक बल कहा था हमने, उसे हम संरक्षी बल कहते हैं। संरक्षी बल से हमारा तात्पर्य है कि ऊर्जा उसमें संरक्षित है। उसमें जो ऊर्जा व्यय हुई उसे वापस प्राप्त कर सकते हैं। वहीं घर्षण बल को असंरक्षी बल कहते हैं क्योंकि इसमें व्यय ऊर्जा को दुबारा प्राप्त करना संभव नहीं है।


एस. बी. वेलणकरः होल्कर साइंस कॉलेज, इंदौर में भौतिक शास्त्र पढ़ाते हैं।