सत्यु
चित्र: विप्लव शशि

मान लो तुम गरमी की झक दुपहरिया में गली में निकले हो। पूरी गली में कोई भी इंसान नहीं, सारे दरवाजे बंद। घूरे के पास एक दो जवान कुत्ते हांफते हुए। धूप इतनी तेज कि लगे कहीं शीशे-सी चटक न जाए। गरमी भी लगे, पसीना भी आए और अच्छा भी लगे। एकदम अकेला अकेला-सा। तो मान लो ऐसी ही एक दुपहरिया में तुम चले जा रहे हो अकेले-अकेले। बीच में से निकल कर दूसरी गली में चले जाते हो। और फिर उस टूटे मकान के पास पहुंचते हो जिसके किनारे बंसी हलवाई पजामा उठाकर पेशाब करता है और उस टूटे मकान के अंदर तुम्हें दिखता है - एक जादूगर। लंबा काला चोगा पहने हुए, सिर पर लंबी काली टोपी, हाथ में छड़ी लिए मुस्कुराते हुए। बिल्कुल जादूगर जैसा जादूगर। गली की दुपहरिया में जब तुम बिल्कुल अकेले हो और अचानक ऐसा एक जादूगर तुम्हें दिख जाए, तो तुम क्या करोगे? तुम चौंक जाओगे, थोड़ा पीछे हट जाओगे, झटके से, फिर ठिठक कर रुक जाओगे और उस जादूगर को देखने लग जाओगे। सारी दुनिया से बेखबर।

तो आज के दिन अनारको भी यही कर रही थी। भरी दुपहरिया, अम्मी जैसे ही सोने चली गई, अनारको किताबों को पटककर घर से बाहर आ गई थी। जेब में थी आम की केरी। बस यही कुतरते कुतरते चली आ रही थी। फिर अचानक सामने से जादूगर। सो ठिठकी खड़ी देखती रही।

तभी जादूगर ने कहा, "मैं तुम्हारा यहां इन्तज़ार कर रहा था।'' अनारको को लगा, जादूगर किसी पिक्चर के हीरो जैसा बोल रहा था। कहीं ढिश्यूँ भी नहीं करने लगे, वह सोचने लगी। पर नहीं, ये तो पक्का जादूगर था। सो उसने छड़ी घुमाई और वहां एक सुंदर बगीचा बन गया। घास उग आई, उस पर चिड़िया फुदकने लगी, फूल लहरा रहे थे, और तो और पांच पांच फव्वारे चलने लगे। अनारको घास पर बैठने को हुई तो जादूगर ने कहा, "लो बातचीत का माहौल बन गया।'' फिर बही पिक्चर के हीरो जैसी बात! खैर तब तक जादूगर अपनी टोपी उतारकर उसमें से दरवाजे निकालने लगा था। देखते देखते उसने तीन बड़े-बड़े दरवाज़े निकाल लिए, छड़ी घुमाई और वहीं घास पर दरवाजे खड़े हो गये। अगल-बगल कुछ नहीं, बस तीन दरवाजे सारी घास पर सीधे खड़े। ये लो, ये भी कोई बात हुई, अनारको ने सोचा। जादूगर ने कहा, इनमें से किसी भी दरवाजे से तुम एक अलग दुनिया में पहुंच सकती हो।” अनारको ने सोचा, अम्मी तो सो रही हैं, अभी साथ खेलने को भी कोई नहीं है, फिर अपना क्या जाता है। सो उसने आगे बढ़ के एक दरवाजा खोला और उसके पार हो गई।

जहां पहुंची वहां उसके चारों तरफ ऊंचे ऊंचे मकान थे। पता नहीं कितने मंज़िलवाले। सारे मकान जैसे आसमान को चीरते हुए उसके ऊपर पहुंच गए हों। और आसमान चिंदी चिंदी हो गया हो। मकानों में सड़क किनारे दरवाजे ही दरवाजे थे जिनमें से लोग आ जा रहे थे। सब सफेद सूट पहने हुए, औरतें भी और मर्द भीहाथ में सफेद सूटकेस और सबके कानों में दो बड़े-बड़े सफेद बटन जैसे। कोई किसी से बात नहीं करता, बस अपने आप में मगन। जैसे दूर से आती कोई आवाज़ सुनने में आसपास से बेखबर हो। सब लोग सफेद सूट पहने काला चश्मा लगाए अलग-अलग गाड़ियों में घुसते हुए। सारी गाड़ियों की खिड़कियां काली-काली, यहां तक कि सामने के शीशे भी काले। अंदर झांकों तो अपना मुंह दिखे। अनारको वहां खड़े-खड़े काली खिड़कियों के अंदर काले चश्मों के पार आंखों का रंग बांचने की कोशिश कर ही रही थी कि इतने में जादूगर दिख गया, सफेद सूटवाले इंसानों के बीच काला चोगा और लंबी काली टोपी पहने हुए - सबसे अलग। जादूगर के कानों में कोई बटन नहीं लगा था और वह चश्मा भी नहीं पहने था। सो अनारको की जान में जान आई

"घबराना नहीं, ये भी अपने जैसे ही इंसान हैं' जादूगर ने अनारको के पास आकर कहा। अनारको ने कहा, ‘फिर यहां सबके कानों पर सफेद सफेद बटन क्यों लगे हैं, और कोई किसी से बोलता क्यों नहीं?" जादूगर उसके कानों के पास आकर फुसफुसाने लगा, “यहां कोई एक दूसरे से बात नहीं करता - सब सिर्फ यमत की आवाज़ सुनते हैं। इन बटनों के जरिए यमत कभी गाने सुनाता है, कभी चुटकुले, कभी कहानियां पढ़ता है और कभी लोरियां गाता है।'' अनारको ने पूछा, “और यह यमत कौन है?'' जादूगर ने और भी धीरे-धीरे फुसफुसाकर कहा, “यमत यहां का राजा है, पर वह ‘चंदामामा' की कहानियों वाला राजा नहीं। मजे की बात तो यह है कि यहां ज्यादातर लोगों को मालूम ही नहीं हैं कि यमत उनका राजा है।' अनारको को यह बात अजीब लगी, पर यहां तो सब कुछ अजीबो-गरीब था। अनारको ने पूछा, ‘‘पर यहां के लोग अपने कानों से बटन हटा क्यों नहीं लेते', और उसका मन करने लगा कि दौड़ के जाए और किसी के कानों से बटन निकालकर मुर्गे की नकल में उसके कान में चिल्लाए ‘कुटरूं कुं...।' जादूगर ने जवाब दिया, “लोग बटन इसलिए लगाए रखते हैं क्योंकि उन्हें अच्छा लगता है। और दूसरी बात..', जादूगर ने इतना कहा ही था कि अनारको ने देखा ऊपर से चील जैसा उड़ता हुआ हवाई जहाज़ सामने नुक्कड़ पर मंडराने लगा, जहां एक नौजवान लड़की अपने कान से बटन निकाल रही थी। उस छोटे से हवाई जहाज़ से लाल-सी एक रोशनी निकली और देखते-देखते लड़की जैसे जल कर गायब हो गई। यह सब अनारको के पलक झपकते हो गया और उसने देखा जहां वह लड़की खड़ी थी वहां सड़क पर जैसे उस लड़की की परछाई चिपक गई थी मानों बटने निकालने की कोशिश में लड़की का फोटो हो वहां। फिर अनारको ने अगले बगल आगे पीछे नज़र दौड़ाई - पूरी सड़क पर यहां-वहां ऐसी ही परछाइयां चिपकी हुई थीं। अलग-अलग लोगों की बटन निकालते - कहीं झुके, कहीं बैठे, कहीं खड़े लोग। अनारको का खून जैसे पानी हो गया। उसका जी बिल्कुल अंदर से कड़वा हो गया। बगल से जादूगर ने उसका हाथ पकड़ा, कहा, “घबराओ नहीं तुम इस दुनिया की नहीं हो, यमत तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।'' अनारको ने कुछ कहा नहीं बस सड़क देखते-देखते चलने लगी ताकि किसी परछाई पर पांव न पड़े।

सामने अनारको को एक मकान की ऊंची-ऊंची दीवारें दिख गई, कतारों में अंदर जाते बच्चे दिख गएऔर अनारको ने उस मकान को पहचानने में कोई गलती नहीं की। जादूगर ने कहा, “ये यहां का स्कूल है, अभी इनके खेल का पीरियड चल रहा है। तो तुम चाहो तो अंदर जाकर देख सकती हो।'' जादूगर और अनारको स्कूल के अहाते में आए तो अनारको ने सोचा अभी उछलकूद करते दौड़ते बच्चे दिखेंगे। पर यहां तो और ही नज़ारा था। छोटे-छोटे, फूल-पत्ती के भाई बमकू के बराबर पांच-पांच साल के बच्चे छोट-छोटे कमरों में अलग अलग बैठे टेलीविजन देख रहे थे। सबके अलग-अलग कमरे, सबके अलग अलग टेलीविज़न। जादूगर ने समझाया कि यहां पढ़ाने के लिए मास्टर लोग नहीं होते, सारी पढ़ाई टेलीविज़न से होती है। पर अभी तो खेल का पीरियड है'', अनारको ने कहा। जादूगर ने एक टेलीविज़न की ओर इशारा किया, “तभी तो सारे बच्चे टेलीविज़न पर खेल देख रहे हैं।'' तब तक अनारको टेलीविज़न देखने लगी थी। बहुत दूर किसी जगह पांच साल के बच्चों का कोई कॉम्पिटिशन हो रहा था। बच्चे समुंदर किनारे बालू के मकान बना रहे थे और सबमें होड़ लगी हुई थी कि कौन सबसे जल्दी, सबसे बढ़िया मकान बना ले। टेलीविज़न में दिख रहा था कि बच्चे बिल्कुल पसीने से लथपथ, हांफते हुए अपने-अपने बालू के मकान पर लगे हुए। इधर स्कूल के सारे बच्चे टेलीविज़न देखने में लगे थे। पर्दे पर अब सिर्फ एक बच्चे का चेहरा था, जो फर्स्ट आया था। बमकू से थोड़ा ही बड़ा होगा, उसका चेहरा पसीना पसीना हो रहा था। और उसकी आंखें थकी-थकी लग रही थीं। वह बता रहा था कि कैसे उसके मां-बाप ने उसे दो साल की उम्र से इस कॉम्पिटिशन के लिए तैयार किया था। वह बच्चा बताता ही जा रहा था कि आगे चलकर वह और भी बड़ा इनाम पाना चाहता है। इसके बाद खेल का पीरियड खत्म हो गया और पर्दे पर नैतिक शास्त्र की कक्षा शुरू हो गई। सफेद सूट, सफेद टाई पहने एक आदमी यह बता रहा था कि अच्छे बच्चे बनने के लिए क्या-क्या करना पड़ता है। आदमी बोल रहा था और बच्चे टेलीविज़न के पर्दे को वैसे ही देख रहे थे जैसे खेल की पीरियड में। अनारको को नैतिक शास्त्र का पीरियड कभी अच्छा नहीं लगा सो उसने जादूगर की उंगली पकड़ी और कहा चलो'। स्कूल के अहाते से बाहर निकलते निकलते अनारको ने कहा, "कैसा स्कूल है, क्यों खेल के पीरियड में बच्चे सिर्फ कॉम्पिटिशन ही देखते रहते हैं - खुद नहीं खेलते?'' जादूगर ने कहा, “खुद भी खेलते हैं - जब उनके खुद खेलने की बारी आती है तो वे टेलीविज़न पर बटन दबा-दबा कर पर्दे पर बालू के मकान के नक्शे बनाते हैं।'' अनारको का जी पहले से कड़वा था सो वह और कड़वा हो गया। उसने झुंझलाते हुए पूछा, “और यह यमत है कौन?'' जादूगर ने कहा, “तुम्हें यमत को देखना है, चलो वहीं चलते हैं।''

फिर जादूगर और अनारको एक बड़े से मकान में पहुंचे। बहुत बड़ा गोल-सा मकान और उसके बीच में बड़ा-सा चबूतरा। मकान क्या वह तो महल समझो और उसकी हर एक मंजिल पर छोटे-छोटे कमरे बने थे जिनमें लोग कुर्सियों पर बैठे काम करते दिख रहे थे। अहाते में कोई नहीं था। और उसके बीचों-बीच कांच की दीवारों के बीच एक आदमी बैठा था। अनारको जादूगर के साथ उसके पास गई तो देखा वह आदमी नहीं बल्कि मशीन था। उसमें यहां वहां कलपुर्जे दिख रहे थे, छोटी-छोटी लाल हरी बत्तियां जल रही थीं और धीमे-धीमें अजीब-सी आवाजें आ रही थीं। जादूगर ने कहा, “यही यमत है।'' अनारको थोड़ी चौंक गई, यमत ऐसा पिद्दा-सा होगा उसे भान नहीं था। लेकिन यमत की ताकत का भान तो उसे हो ही गया था सो वह सहमते सहमते कांच की दीवार के पास पहुंच गई। यमत जिस कुर्सी पर बैठा था उसके नीचे चारों तरफ टेलीविज़न के पर्दे लगे थे। और उन पर किसी कविता की पंक्तियां एक के बाद एक आ रही थीं। अनारको ने कुछ देर ठहर कर उस कविता के कुछ हिस्से पढ़े। एक के बाद एक पंक्तियां आती गईं और अनारको पढ़ती गई।

यन्त्र ही यन्त्र है।
यन्त्र का तन्त्र है।
यन्त्र का मन्त्र है
यन्त्र ही मन्त्र है
यन्त्र ही तन्त्र है।
यन्त्र तन्त्र मन्त्र है
मन्त्र ही मन्त्र है।
मन्त्र का तन्त्र है।
मन्त्र का यन्त्र है
मन्त्र ही यन्त्र है
मन्त्र ही तन्त्र है।
मन्त्र तन्त्र यन्त्र है
तन्त्र ही तन्त्र है।
तन्त्र का यन्त्र है
तन्त्र का मन्त्र है
तन्त्र ही मन्त्र है।
तन्त्र ही यन्त्र है।
तन्त्र यन्त्र मन्त्र है

पहले तो अनारको को लगा कि वह, “अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो'' या "नीना की नानी की नाव चली'' जैसी कोई कविता थी पर जैसे-जैसे वह पढ़ने लगी उसे काफी कुछ समझ में आने लगा। फिर उसने कहा, “हुम्म तो ये बात है, और जादूगर की तरफ देखा। जादूगर समझ गया था कि अनारको समझ गई है। पूछने को कुछ था नहीं और इस महल के अंदर अनारको का बात करने का जी नहीं हो रहा था सो वह जादूगर के साथ चुपचाप महल के बाहर आ गई।

काफी दूर चुपचाप चलने के बाद वे बड़े रास्ते पर पहुंच गए। दोनों तरफ से गाड़ियां आ जा रही थीं। तेज़ी से भागती गाड़ियां, काले शीशों वाली। अनारको और जादूगर किनारे-किनारे चल रहे थे। रास्ते के किनारे एक बड़ा सा मकान था जिसमें सामने लाल पीली बत्तियों में बड़े-बड़े अक्षरों में होटल लिखा था। प्लास्टिक के चटकदार फूलों से सजा हुआ था होटल का दरवाज़ा और दरवाजे के ऊपर एक बड़ी-सी घड़ी थी। अनारको जहां खड़ी थी वहां से होटल का पिछवाड़ा भी दिखता था। उसने देखा वहां दो तीन औरतें पुलिस की वर्दी पहने बंदूक लिए गश्त कर रही थीं। अनारको ने आज तक औरत पुलिस नहीं देखी थी, वह भी बंदूक थामे। बगल से जादूगर ने कहा, "यहां के लोग कहते हैं कि यहां औरतों और मर्दो में पूरी बराबरी है। मर्द जो भारी काम करते हैं, औरतें भी वह सब करती हैं।'' अनारको ने सोचा, “ऐसी बराबरी से क्या मतलब, पुलिस बनके बंदूक लेके लोगों को डराना कोई अच्छा काम है क्या।'' होटल के पीछे के दरवाजे पर लंबी-सी लाइन लगी हुई थी। लाइन में लगे सारे लोग फटे कपड़े पहने हुए, उनके चेहरे मुरझाए हुए। मर्द भी और औरतें भी। और सब पर निगरानी रखती, गश्त करती औरत पुलिस। अनारको और जादूगर औरत पुलिस की नजर बचाकर पीछे के दरवाजे से होटल में घुस गए। अंदर एक बड़ा-सा कमरा था जसके बीचों-बीच एक , टेबल लगी थी। टेबल के किनारे कुर्सियों पर बैठे लोग थालियों में से खाना मुंह में डाल तो रहे थे, चबा भी रहे थे पर निगलते नहीं थे। बस खाना चबा चबाकर एक दूसरी थाली में उगलते जा रहे थे। जिस बात के लिए अम्मी अनारको को इतनी डांट लगाती है वही यहां सब लोग कर रहे थे। बस खाना चबाते जाते और उगलते जाते। जादूगर ने कहा, “ये लोग खा नहीं रहे, काम कर रहे हैं। इनका काम खाना चबाना है, बदले में उनको पैसे मिलते हैं।'' ये भी कोई काम हुआ?" अनारको ने पूछा। जादूगर ने बड़े गंभीर होकर कहा, “देखा नहीं बाहर इसी काम को करने के लिए कितनी लंबी लाइन लगी हुई है? पैसे के लिए सब कुछ करना पड़ता है।'' जादूगर फिर से फिल्म के हीरो जैसे बात करने लग गया था। खैर। अनारको ने देखा बीच बीच में होटल के कर्मचारी उस टेबल पर से उगले हुए खाने वाली प्लेट उठा-उठाकर सामने के कमरे में ले जा रहे थे। अनारको जादुगर का हाथ पकड़कर उनके पीछे-पीछे सामने के कमरे में चली गई।

इस कमरे में खूब सजावट थी, अलग-अलग टेबल लगे थे। कुर्सियां लगी थीं गद्देदार। सफेद सूट वाले लोग उन पर बैठे खाना खा रहे थे, बड़ी तेजी से। बस निगलते जा रहे थे। जादूगर ने फुसफुसाकर कहा, “ये लोग खाना खाने में ज्यादा समय नहीं लगाते - तभी तो पीछे के कमरे का चबाया और उगला हुआ खाना खाते हैं। चबाने की मेहनत नहीं करनी पड़ती और समय भी बचता है।'' जादूगर की बात सुनकर और उन सफेद सूटवालों को खाते देखकर अनारको का तो जी मितलाने लगा था। लग रहा था कि दोपहर का खाया सारा कुछ वह वहीं उलट देगी। फिर उसने सोचा कहीं वह उल्टी कर दे और होटल के कर्मचारी उसी को प्लेट में डालकर किसी सफेद सूट वाले को परोस दें तो? सो वह दौड़कर सामने के दरवाजे से मकान के बाहर हो गई। पीछे-पीछे जादूगर।

सड़क पर आकर अनारको का जी कुछ अच्छा तो हुआ फिर भी उसे कैसा कैसा लग रहा था। अनारको ने जादूगर से कहा, “चलो किसी जंगल में चलते हैं।'' फिर रुककर पूछा, “जंगल है भी यहां?' जादूगर ने कहा, “यहां सब कुछ है। यहां सबकी अपनी-अपनी जगह है और सब अपनी-अपनी जगह पर हैं। चलो यमत को पूछते हैं, यहां के जंगल किधर हैं। यमत सारी जानकारी रखता है। सारे सवालों का जवाब जानता है।''

अनारको और जादूगर वापस उस गोल महल के अंदर के चबूतरे पर पहुंचे। कांच की दीवार के एक तरफ जाली से ढंका हुआ एक छेद था। उसी में से सवाल पूछने थे। अनारको ने पूछा, “मैं यहां के जंगल देखना चाहती हूं, किधर है आपका जंगल?'' मशीन में से आवाज़ आई, “जंगल को जाने की गाड़ी स्टेशन से हर तेरह मिनट पर छूटती है। अगली गाड़ी तीन बजकर सैंतालीस मिनट पर छूटेगी।'' फिर थोड़ी रुककर आवाज़ आई, “सभी गाड़ियां समय से चल रही हैं, सभी गाड़ियां समय से चल रही हैं।''

जादूगर के साथ अनारको स्टेशन पहुंची। चलते-चलते अनारको थोड़ी थक गई थी, पर तीन बज के सैंतालीस मिनट बजने ही वाले थे। सो वह लपककर गाड़ी के अंदर बैठ गई। अनारको ने पीछे देखा तो जादूगर ट्रेन के बाहर ही रह गया था। और डब्बे के दरवाजे अपने आप बंद हो गए। अनारको घबरा गई, तब तक गाड़ी धीरे-धीरे बढ़ने लगी थी और अनारको को मालूम ही नहीं था कि दरवाज़ा कैसे खोले। पर जादूगर परेशान नहीं दिखा। वह हाथ हिला हिलाकर अनारको की तरफ देखकर मुस्करा रहा था। सो अब अनारको अकेले ही चली जंगल।

गाड़ी जहां रुकी वहां रंगीन बत्तियों से बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था ‘जंगल। गाड़ी से और भी लोग उतरे और प्लेटफार्म पर भीड़ हो गई। सारे वैसे ही लोग जैसे अनारको ने पहले देखे थे, सबके कानों पर बटन, पर सफेद सूट के बदले उन्होंने सफेद कुर्ता पाजामा पहना हुआ था। उनकी आंखों पर चश्मा भी नहीं था। प्लेटफार्म से निकलकर सब लोग बसों में चढ़ रहे थे। अनारको को बसों के हॉर्न की आवाज़ बड़ी भली लगती - पों-पों, चैं-चैं, भोपुं-भोपं की आवाज़ों से उसे मज़ा आता था। पर यहां कोई पों-पों नहीं था, ज़रा भी शोर नहीं और कोई धकमपेल भी नहीं, सब लोग लाइन में लगे हुए। सारी बसें लाइन में लगीं - एक के पीछे एक निकलती हुई। अनारको एक बस में खिड़की के पास बैठ गई पर बस इतनी तेज चल रही थी कि बाहर का कुछ भी दिख नहीं रहा था। अनारको बोर हो गई। उसने बस के अंदर देखा। सारे लोग सो रहे थे। सो अनारको और भी बोर हो गई।

बस जहां रुकी वहां उतरते ही यमत के जैसा ही एक आदमी-मशीन था। फर्क सिर्फ इतना था कि इसका कद और भी छोटा था और चारों ओर कांच की दीवारें हरे रंग की थीं। उसके नीचे के टेलीविज़न पर वैसी ही कविताओं की पंक्तियां एक-के-बाद एक पर्दे पर आ रही थीं।

जंगल ही जंगल है।
जंगल से दंगल है।
दंगल ही दंगल है।
दंगल में मंगल है।
जंगल से मंगल है।
मंगल ही मंगल है।
मंगल, मंगल, मंगल है।

वैसी ही कविता जैसी अनारको ने पहले पढ़ी थी। अनारको को एक जैसे कविताएं पढ़ना अच्छा नहीं लगता सो वह पढ़ना छोड़ आगे बढ़ गई। आगे जो देखा तो अनारको बिल्कुल चौंक गयी। बड़े ही अजीब पेड़ थे यहां। यहां के पेड़ थोडे-थोड़े तो पेड़ जैसे लगते थे पर उनमें टहनियों की जगह थे कुर्सी, टेबल, अलमारी वगैरह! कहीं पर टहनियों की जगह थी नाव, कहीं दरवाजे की चौखट और उन पर थीं पत्तियां। खूब चमकीली हरी-हरी। अनारको अब तक एकदम चकरा गई थी। उसने सोचा अगर ये पेड़ हैं तो इनमें कुर्सी, टेबल, नाव कैसे उग आए हैं, और अगर ये कुर्सी टेबल की दुकान है तो फिर पत्तियां कैसे उगी हैं? थोड़ा आगे बढ़ी तो चारों तरफ वैसे ही वाले पेड़। अनारको को लगा वह कुर्सी टेबलों के बाजार में आ गई है जैसा चटपटगंज में हर इतवार को लगता है। उसने सोचा जादूगर होता तो उस से इस सबका मतलब पूछ लेती। उसका मन जादूगर के लिए उदास भी होने लगा था। खैर, उसने सोचा यमत के पास सारे सवालों का जवाब होता है। चलो उसी से पूछते हैं।

अनारको बस अड्डे पर यमत के पास पहुंची औद छेद में से पूछा, “यहां के पेड़ ऐसे क्यों हैं ?'' अंदर से मशीनी आवाज़ आई, “साफ साफ पूछो - कैसे पेड़?'' अनारको ने कहा, “यहां के पेड़ों में टहनियों की जगह कुर्सी टेबल क्यों हैं।'' यमत की। आवाज़ आई, “पहले पेड़ों से लकड़ियां काटनी पड़ती थीं। फिर उनको काटो, छीलो, सीधी पट्टियां निकालो, रंदा चलाओ, फिर कुर्सी-टेबल बनाओ। बहूत मेहनत जाती थी उसमे और समय भी ज्यादा लगता था। सो हमने पेड़ों में ऐसी दवा डाली कि सीधे कुर्सी-टेबल उग आएं। सारी मेहनत से छुट्टी। और - समय भी बचता है।' अनारको ने तपाक से पूछा, “समय बचाकर क्या होता है? खाली समय में लोग करते क्या हैं?'' फिर यमत की आवाज़ आई, खाली समय में लोग जंगल घूमने आते हैं।'' अनारको को गुस्सा आ रहा था यमत के जवाब सुनकर। फिर भी उसने सोचा चलो और सवाल पूछते हैंपूछा, “यहां जंगल में फूल क्यों नहीं दिखते? हमारे चौठेयां के जंगल में तो बहुत फूल होते हैं। और चिड़ियां क्यों नहीं हैं, एक भी?'' तभी उसको लगा उसके आसपास चमेली की महक मंडरा रही है। टेलीविजन के पर्दे पर चमेली के फूल दिख रहे थे। फिर महक हरसिंगार की हो गई और पर्दे पर हरसिंगार के फूल दिखने लगे - सफेद चटक। फिर एक-के-बाद एक फूल दिखने लगे, उनकी अलग-अलग महक आने लगी। मशीन में से आवाज़ आई, और फूल देखना हैं?'' अनारको ने झट कहा, नहीं, बस बस।'' टेलीविज़न के पर्दे पर अब चिड़ियां दिखने लगी, आवाजें आने लगीं। कभी कौवे का कांव कांव, कभी मोर की लंबी तीखी आवाज़। अनारको अब वहां बिल्कुल नहीं रहना चाहती थी। इतना गुस्सा आ रहा था कि पूछो मत। फिर भी उसने जाते जाते पूछा, “और यहां कोई फल भी तो हैं नहीं, बेरियां. फालसे, आम वगैरह?'' यमत ने कहा, “फलों की खेती देखने के लिए बारह नंबर की बस पकड़ो।''

बारह नंबर की बस से अनारको जहां पहुंची वहां खेत नहीं थे, कारखाने थे। किसी पर लिखा था जामुन, किसी पर अमरूद और किसी पर आमअनारको आम वाले कारखाने के अंदर चली गई। अंदर जैसा नज़ारा अनारको ने कभी नहीं देखा था। चारों तरफ पटरियां बिछी थीं, पटरियों पर गमलों की शक्ल में गाड़ियां चल रही थीं धीरे-धीरे। एक तरफ एक मशीन से गमलों में गुठली बोई जा रही थी। फिर गुठली के साथ गमले आगे बढ़ जाते, उन पर पानी का फव्वारा छूटता। बढ़ते बढ़ते आम का पौधा उग आता, फिर पेड़ बन जाते। सब गमलों पर, और पटरियों पर लुढ़कते हुए। एक तरफ कुछ लोग एक जगह बैठ कर पेड़ों से आम तोड़ तोड़ कर इकट्ठा कर रहे थे। बिल्कुल पीले पीले आम, सब एक जैसे। अनारको को आम बहुत पसंद था पर यहां आमों का ढेर देखकर भी उसे जरा भी लालच नहीं आया। आई तो एक लंबी-सी सांस। उसका गुस्सा भी बढ़ रहा था।

सो वह वापस प्लेटफार्म पर जाकर गाड़ी में बैठ उस जंगल से लौट चली। गाड़ी में बैठे-बैठे ही उसने मन ही मन कुछ ठान लिया। गाड़ी से उतरी तो चल दी उसी गोल महल की ओर जहां यमत था। महल के दरवाजे से चबूतरे पर चहलकदमी करता हुआ जादूगर दिख गया। अनारको पास गई तो जादूगर ने कहा, “मैंने सोचा, तुम्हारा यहीं इंतज़ार किया जाए। मुझे मालूम था तुम यमत के पास आओगी।'' अनारको का मन हुआ कि वह जादूगर से पूछे, “तुम कैसे समझे कि मैं यहां आऊंगी।'' पर उसने पूछा नहीं। क्योंकि उसे तो यमत से सवाल पूछने थे। सो वह यमत के पास गई और छेद के पास मुंह ले जाकर पूछा।

“जाड़े की सुबह हरसिंगार के फूल चुनने का मज़ा कैसा होता है?'', मशीन में से कोई आवाज़ नहीं आई। बस घिरं घिर्र की आवाज़ आती रही, इधर उधर कुछ लाल हरी बत्तियां जलने बुझने लगीं।

अनारको ने दूसरा सवाल पूछा, “ये बताओ अकेले में नदी किनारे बैठने में कैसा मज़ा आता है और वह भी तब जब सूरज पहाड़ों के पीछे ढल रहा हो?''

मशीन में से घिर्र की आवाज़ तेज़ हो गई। कई और लाल हरी बत्तियां चटपटाने लगीं। अनारको पूछती गई, एक के बाद एक सवाल, “चांदनी रात को बाहर मैदान में सबके साथ छ खेलने में कैसा मज़ा आता है?"

“बारिश की झमझम में चड्डी पहने कीचड़ में छपक-छपक करने में कैसा मज़ा आता है?"

“जब अचानक किसी मन्त्री के मर जाने पर स्कूल में दूसरी घण्टी के बाद छुट्टी हो जाती है तो हो-हो करके चिल्लाते हुए भागने में कैसा मज़ा आता है?"

अनारको पूछती जा रही थी, खड़ी खड़ी, छेद से मुंह लगाए। जादूगर वहीं चबूतरे पर बैठा हुआ था, उसके पीछे। हर सवाल के बाद मशीन की घिर घिर्र की आवाज़ बढ़ती जाती और थोड़ी देर के बाद तो घर्राने की आवाज़ ज़ोर से आने लगी। घरोने की आवाज़, पहियों के रुकने, पुर्जी के टूटने की आवाज़ के साथ बढ़ती गई। लाल हरी बत्तियां भी जब ज़ोर-ज़ोर से दपदपाने लगी थीं। टेलीविजन के पर्दे पर आड़ी तिरछी लकीरें आने लगी थीं और लकीरें टूटती जा रही थीं, टूटती जा रही थीं।

अनार को ने आखिरी सवाल दागा।

"तुमने कल रात कौन-सा सपना देखा है?'' उसने पूछा। बस घड़घड़ाते हुए यमत की मूर्ति टूटकर बिखर गई, सारे कलपुर्जा बिखर गए और सारी बत्तियां दपदपाकर बुझ गईं।

उधर चारों तरफ भूचाल जैसा होने लगा था - बड़े-बड़े महल भरभराकर गिर रहे थे, दीवारें टूट रही थीं, कांच के बड़े-बड़े टुकड़े झनझनाकर बिखर रहे थे, इधर उधर आग लगी थी, लपटें उठ रही थीं। लेकिन कहीं भी रोने चिल्लाने की आवाजें नहीं थीं। बल्कि हंसी ठहाकों

की आवाजें गूंजने लगी थीं, एक साथ हज़ारों पैरों के थिरकने की आवाज़, एक साथ हज़ारों खुशियां शोर मचा रही थीं, उधर पीछे बैठा जादूगर ताली बजाने लगा था। पीछे से खैनी ठोंकते हुए बंसी ह ल व ।  इ' चिल्लाया, “अरे अन्नों तू यहां दुपहरिया में खड़े खड़े क्या कर रही है?'', बं सी हलवाई एक हाथ में खैनी लिए दूसरे हाथ से हथेली पर थपथपा रहा था। अनारको का ध्यान टूटा, उसका मन हुआ कि बंसी हलवाई से पूछे, “और तुम यहां खड़े-खड़े क्या कर रहे हो?'', पर उसने जाने दिया।


मन्युः पूरा नाम मतीनाथ षडंगी। भोपाल गैस त्रासदी तथा अन्य जन आंदोलनों से जुड़े हुए हैं। लेखन में गहरी रुचि।
विप्लव शशि: बड़ौदा, गुजरात की एम. एस. यूनिवर्सिटी में फाइन आर्ट्स के स्नातक कोर्स के प्रथम वर्ष के छात्र।