संजय कुमार तिवारी

पृथ्वी के लंबे इतिहास में कभी-कभी देखने को मिलता है कि पास-पास बहने वाली नदियों में से एक नदी का कुछ पानी। दूसरी नदी अपने प्रवाह में मिला लेती है। कब और कैसे होती हैं ऐसी घटनाएं, इसकी जांच-पड़ताल करता है यह लेख।

शुरुआत एक किस्से से करते हैं। वर्जिनिया प्रांत (अमरीका) की ब्लू रिज पहाड़ी में कुछ साल पहले एक के बाद एक तीन नदियों का अपहरण हो गया। लेकिन इस सनसनीखेज खबर को न तो अखबारों में महत्वपूर्ण स्थान मिला और न अपहरणकर्ता पर कोई कार्यवाही की गई! असलियत यह थी कि इन तीन नदियों का अपहरण एक अन्य नदी ने किया था। भूवैज्ञानिकों के अनुसार नदी द्वारा नदी का अपहरण एक सामान्य प्रक्रिया है, इसके लिए इस तरह परेशान होना ठीक नहीं है। हां, 'यह ज़रूर है कि अगर आसपास ऐसा नदी अपहरण हुआ हो तो वह भूवैज्ञानिकों को अध्ययन का बहुत अच्छा मौका देता है।

इतना पढ़ कर किसी को भी जिज्ञासा हो सकती है कि नदी का अपहरण आखिर मामला क्या है? नदी अपहरण की बात शुरू करने से पहले अन्य कुछ बातों की चर्चा करना लाज़मी होगा।

जल विभाजक
नदियों के बारे में कुछ मोटी-मोटी जानकारी तो हमें होती ही है। जैसे नदियों का उद्गम पर्वतीय क्षेत्रों (ऊंचे स्थानों) से किसी झील, झरने या हिमनद (ग्लेशियर) द्वारा होता है। ऊंचे स्थानों से पानी ढाल के अनुरूप नीचे की ओर बढ़ता है जिससे धीरे-धीरे उस स्थान पर नाली का निर्माण होता है। यह नाली बड़ी तथा गहरी होकर एक नाले में बदल जाती है। इस प्रकार बहुत-सी नालियों और नालों के मिलने से एक नदी अस्तित्व में आती है। अब यह नदी अपना सफर समुंदर तक तय करती है या फिर उसका सफर बीच में ही कहीं खत्म हो जाएगा, यह तो उसमें मौजूद पानी की मात्रा और ढलान पर निर्भर करता है।

लगभग सभी प्रमुख नदियां पानी की पूर्ति के लिए अपनी सहायक नदियों से मिलने वाले पानी पर निर्भर होती हैं। बारिश के दौरान गिरने वाले पानी का कुछ हिस्सा वाष्पीकृत हो जाता है, कुछ हिस्सा ज़मीन द्वारा सोख लिया जाता है; लेकिन काफी बड़ा हिस्सा ज़मीन पर बहता हुआ नालियों, नालों, छोटी नदियों के माध्यम से नदियों में जा मिलता है। किसी नदी में जहां जहां से पानी आ कर मिल रहा है। वह पूरा इलाका नदी के प्रवाह क्षेत्र के अंतर्गत माना जाता है। इस बात को इस उदाहरण से भी समझ सकते हैं कि जिस प्रकार एक पेड़ में कई शाखाएं तथा उन शाखाओं में बहुत से पत्ते होते हैं; उसी प्रकार एक नदी में अनेक सहायक नदियां आकर मिलती हैं तथा उन सहायक नदियों की भी

नदी का प्रवाह क्षेत्रः किसी प्रमुख नदी में जहां से पानी आ रहा है वह सभी इलाके उसके प्रवाह क्षेत्र के हिस्से माने जाते हैं। इसके आधार पर किसी नदी के प्रवाह क्षेत्र की सीमा का निर्धारण किया जा सकता है। आमतौर पर मुख्य प्रवाह क्षेत्र काफी लंबा-चौड़ा होता है। इसी तरह सहायक नदियों के प्रवाह क्षेत्र की सीमाएं निर्धारित की जा सकती हैं। इस चित्र में एक नदी का मुख्य प्रवाह क्षेत्र और सहायक नदियों के प्रवाह क्षेत्रों को दिखाया गया है। इस उदाहरण में प्रवाह क्षेत्र पत्ती के आकार जैसा है लेकिन यह ज़रूरी नहीं है कि हरेक नदी का प्रवाह क्षेत्र ऐसा ही आकार लिए हो।

जल विभाजक: अमेरिका की ब्रेकॉन-बीकॉन पहाड़ी (दक्षिणी वेल्स ) में काफी मजेदार स्थिति है। यहां तीन-चार नदियों के प्रवाह क्षेत्र साफ -साफ देखे जा सकते हैं जिन्हें 1, 2, 3 और 4 से दर्शाया गया है। प्रवाह क्षेत्रों को अलग - अलग करने वाले तीन जलविभाजक भी दिख रहे हैं। नदियां 1, 2 और 3 शीर्ष अपरदन कर रही हैं जिससे नदी क्रमांक 4 के अस्तित्व को खतरा बन सकता है।

सहायक नदियां होती हैं। इन सभी का कार्य अपने आसपास के क्षेत्रों में हुई वर्षा के पानी को मुख्य नदी तक पहुंचाना होता है।

अक्सर पर्वतीय स्थानों में एक से ज्यादा नदियों का उद्गम होता है। ऐसी परिस्थिति में हरेक नदी का अपना निश्चित प्रवाह बेसिन (Drainage Basin) होता है और दो प्रवाह बेसिन की सीमा को बनाने वाला ऊंचा भाग जल विभाजक (Water Divide) होता है। ये जल विभाजक एक नदी के पानी को दूसरी नदी में जाने से रोकते हैं।

नदी अपहरण
अब यदि किसी दूसरी नदी के पानी को अपने प्रवाह क्षेत्र में लाना हो तो नदी को जल विभाजक को काटना होगा। यदि कोई नदी जल विभाजक को काट पाने में सफल हो जाए तो दूसरी नदी के प्रवाह क्षेत्र के पानी का अपहरण कर लेती है। इसे भूविज्ञान की भाषा में नदी अपहरण कहते हैं। जो नदी अपहरण करती है उसे हारिणी नदी (Pirate) और जिसका अपहरण किया है उसे हरिता नदी (Beheaded) कहा जाता हैऔर जिस बिन्दु पर

नदी अपहरण की अवस्थाएं: किसी भी नदी का अपहरण रातोरात नहीं होता; अपहरण एक धीमी प्रक्रिया है। यहां दिए उदाहरण में दो नदियां एक-दूसरे के लंबवत बह रही हैं। सुविधा के लिए इन्हे नदी 'अ' और नदी 'ब' नाम दे देते हैं। (चित्र-1)

नदी 'अ' में शीर्ष अपरदन की प्रक्रिया चल रही है; फलस्वरूप उसने जलविभाजक को काटना शुरू कर दिया है। एक लंबे समय तक यह क्रिया धीरे-धीरे चलती रहती है। अंततः नदी 'अ' जलविभाजक को पूरी तरह काट देती है (चित्र-2)।

जलविभाजक के कट जाने के बाद 'ब' नदी का जल अपने पुराने मार्ग से बहने की बजाए नदी 'अ' में आने लगता है। 'ब' नदी ने जहां से मार्ग बदलकर नदी 'अ' में बहना शुरू कर दिया, उस स्थान को अपहरण की कोहनी (Elbow Of Capture) कहते हैं। 'ब' नदी की पुरानी घाटी में एक पतली धारा अभी भी बह रही है लेकिन 'ब' नदी अपनी पुरानी रौनक खो चुकी है।

अपहरण होता है उसे अपहरण की कोहनी (Elbow Of Capture) कहते हैं। अब सवाल यह उठता है कि किन परिस्थितियों में अपहरण की घटना होती है और किस तरह नदी इस काम को अंजाम देती है।

सामान्य स्थितियों में नदी के उद्गम से लेकर समुन्दर में मिलने तक के सफर तो तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है - युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था। इसी तरह नदी के तीन प्रमुख कार्य होते हैं - अपरदन, परिवहन और निक्षेपण।

जब नदी अपने उद्गम से निकलती है तो तेज़ डाल के कारण पानी का बहाव अधिक होता है जिससे नदी अपने किनारे तथा तली को काटती हैं। यही ‘अपरदन' होता है। तोड़े हुए चट्टानों के टुकड़ों को नदी अपने पानी के साथ मिलाकर होती है यह 'परिवहन' है। जब नदी अपने साथ लिए मिट्टी, बालु एवं कंकड़-पत्थर को ढोने में असमर्थ हो जाती है तो उसे छोड़ने लगती है, जिसे 'निक्षेपण' कहते हैं। अपनी युवावस्था में नदी का प्रमुख कार्य है अपरदन या कटाव। प्रौढ़ावस्था में नदी कटाव का काम कम करती है, इस दौर में परिवहन और निक्षेपण उसके प्रमुख कार्य बन जाते हैं। वृद्धावस्था में नदी का प्रमुख काम निक्षेपण ही होता है।

ज्यादातर नदी अपहरण के किस्से नदी की युवावस्था में ही होते हैं। इस अवस्था में अपहरण का प्रमुख कारक है - नदी की कटाव क्षमता। नदी इस दौर में न सिर्फ अपनी घाटी को गहरा करने की कोशिश करती है अपितु अपने उद्गम की ओर भी कटाव की कोशिश करती है। उद्गम की ओर होने वाले कटाव को 'शीर्ष अपरदन' (Head-ward Erosion) कहते हैं।

उद्गम की ओर अपरदन करने से जल विभाजक पीछे की ओर खिसकता जाता है। खिसकते-खिसकते एक ऐसी स्थिति आती है कि एक नदी का उद्गम दूसरी नदी की घाटी से मिल जाता है और दूसरी नदी का अपहरण हो जाता है।

नदी का उद्गम की ओर अपरदन करना प्रत्येक स्थान पर तथा हर समय संभव नहीं है; वरन् कुछ ऐसी विशेष परिस्थितियां बनती हैं तभी शीर्ष अपरदन और उसकी वजह से नदी का अपहरण संभव हो पाता है।

नदी के शीर्ष की तुलना एक चम्मच से की जा सकती है। तेज़ ढाल वाली घाटी में नदी किनारों की अपेक्षा शीर्ष का कटाव तेज़ी से करती है। तेज़ बारिश या तेज़ बहाव के कारण भी इसी बिन्दु पर कटाव की सबसे ज्यादा संभावना होती हैं।

शीर्ष की ओर चट्टानें कमज़ोर और अपारगम्य हों (जैसे शेल, क्ले आदि) तो शीर्ष अपरदन के लिए

शेनानडो का अपहरण अभियानः ये चित्र ब्लू रिज, वर्जिनिया के हैं, जहां पोटोमेक नदी ब्लू रिज़ को काटती हुई बहती है। कई सहायनदियां भी इस इलाके में पोटोमेक में आकर मिलती है। इन सहायक नदियों की फेहरिस्त में एक नाम शेनानडो का भी है।

  1. पहले शेनानाडो एक छोटी नदी हुआ करती थी, जो अपेक्षाकृत जल्दी कट जाने वाली चट्टानों के समांतर बहती थी। पोटोमेक की अन्य सहायक नदियों के रास्ते में कमजोर और कठोर दोनों किस्म की चट्टानें मौजूद थीं।
  2. इन परिस्थितियों में शेनानडो ने पहले अपनी घाटी को गहरा किया और फिर शीर्ष की ओर कमजोर चट्टानों को काटने का क्रम जारी रखा। ऐसा करते हुए सबसे पहले बीबरडम की घाटी को अपनी चपेट में लिया।
  3. उसके बाद गेप रन, गूज़ क्रीक का भी वही इत्र हुआ।
  4. इस चित्र में वर्तमान स्थिति को दिखाया गया है जिसमें शेनानडो तो फल-फूल रही है लेकिन बीबरडम, गैप रन बस छोटी-छोटी जलधाराएं बन कर रह गई है।

सूखी नदी घाटी का क्या किया जाए?

वर्जिनिया में जब नदियों का अपहरण हो ही गया तो 'इस सुखी नदी घाटी का क्या इस्तेमाल किया जाए?' यह सवाल वहां की सरकार के सामने आया। इसका भी एक जन उपयोगी हल खोज लिया गया - आज अमरीका के चार लेन वाले चार हाई-वे यहां से गुज़र रहे हैं।

परिस्थितियां और भी माकूल होती हैं।

यदि नदी के शीर्ष की ओर झरना वगैरह आ जाए तो शीर्ष अपरदन की संभावनाएं बढ़ जाती हैं क्योंकि झरना अपने आसपास की पारगम्य (Permeable) चट्टानों को काटता है जिससे कुछ अंतराल के बाद ये चट्टानें भरभरा कर गिर जाती हैं।

शीर्ष अपरदन की गति चट्टानों की प्रकृति और नदी घाटी की ढाल पर निर्भर करती है। शीर्ष की ओर एक ही तरह की नरम चट्टानें हो और नदी घाटी का ढाल तेज़ हो तो शीर्ष अपरदन तेज़ी से होता है। लेकिन शीर्ष की ओर नरम-कठोर दोनों तरह की चट्टानें हों तो कटाव की गति असमान होगी।

कई बार यह भी देखने में आता है कि किसी जल विभाजक के दोनों ओर के ढाल समान स्वभाव के नहीं होते। यदि एक ढाल दूसरे की अपेक्षा अधिक तीव्र है तथा वहां की चट्टानें नर्म हैं तो निश्चित ही पहली नदी की अपेक्षा इस नदी का तल नीचा होगा। ऐसी स्थिति में जल विभाजक के कटने के बाद पहली नदी का जल दूसरी नदी में (जिस नदी का तल नीचा है) बहने लग सकता है।

यदि दूसरी नदी की घाटी चौड़ी तथा गहरी हो एवं वर्षा अधिक हो तो ये कारक भी पहली नदी के अपहरण में सहायक होते हैं।

हिन्दुस्तान में भी नदी अपहरण के ढेर सारे उदाहरण मिलते हैं। भारत के हिमालय क्षेत्र में ‘कोसी' नदी ने अरूणा नदी का अपहरण कर लिया है। इसी तरह बानस की सहायक नदी ने सोन नदी की सहायक नदी कुशमहर का अपहरण कर लिया है।

अपहरण और भी तरह के
अभी तक नदी अपहरण की जो चर्चा की गई है उनका संबंध नदी की युवावस्था से है जहां नदी शीर्ष अपरदन से अपहरण का कार्य सम्पन्न करती है। प्रौढ़ावस्था में क्षैतिज अपरदन एवं नदी विसर्प (Meander) के कारण भी अपहरण होता है।

प्रौढ़ावस्था में नदी अपनी घाटी की तली को तो काटती ही है साथ ही-साथ अपने किनारों को भी काटती है। इस तरह के अपरदन निरंतर होते रहने से कभी-कभी दो नदियों की घाटियां एक दूसरे में मिल जाती हैं। इसके फलस्वरूप प्रमुख नदी जो बलवती और अधिक क्रियाशील होती है वह दूसरी नदी का अपहरण कर लेती है।

तीसरी अवस्था (वृद्धावस्था) में जब नदी समतल भूमि से होकर प्रवाहित होती है तो वह अक्सर घुमावदार रास्ता बनाकर बहती है। इस घुमावदार रास्ते को मिएंडर (Meander) कहते हैं। कभी-कभी दो नदियों के घुमावदार रास्ते इतने पास आ जाते हैं कि मिएंडर आपस में मिल जाते हैं। ऐसी परिस्थिति में जिस नदी का प्रवाह तेज़ होता है वह दूसरी नदी का अपहरण कर लेती है। बाढ़ के समय भी नदियों के मोड़ों के

विसर्प का बनना और टूटनाः मैदानी इलाकों से बहते हुए नदी का वेग कम हो जाने से वह रेत, गाद वगैरह को वहीं पटकती जाती है। इस निक्षेपण के कारण नदी थोड़ी लहराती हुई बहने लगती है। इस घुमावदार रास्ते को मिएंडर या विसर्प कहते हैं। यहां ऐसी ही एक नदी के लहरदार रास्ते को दिखाया गया है। कई बार पानी के अचानक तीव्र प्रवाह के कारण या बरसाती दिनों की बाढ़ के कारण नदी अपने घुमावदार रास्ते को छोड़कर सीधा रास्ता अपना लेती है। नदी के सीधा रास्ता अपना लेने के कारण 'यू' आकार का एक लूप कटकर अलग हो जाता है इसे ऑक्स-बो-लेक कहते हैं। चित्र में इस तरह से बनी काले रंग की झील दिखाई दे रही है।

सेवती नदी का अपहरण: रीवा के पठार से गंगा-यमुना के मैदान की ओर बहने वाली सेवती नदी आगे चलकर बेलन नदी में मिल जाती है। वर्तमान स्थिति में इन दोनों नदियों का संगम पुराने संगम से 6 किलोमीटर ऊपर है। हुआ कुछ यूं कि बेलन नदी का घुमावदार रास्ता सेवती नदी के इतने पास आ गया कि पुराने संगम से काफी पहले ही नया संगम स्थल बन गया। और-तो-और बेलन नदी ने अपनी घाटी को छोड़कर सेवती नदी की घाटी में बहना शुरू कर दिया और बेलन नदी की पुरानी घाटी अब सूखी पड़ी है। अब इसे नदी अपहरण कहें या नदी की ज़ोर-ज़बरदस्ती?

मिलने से दोनों नदियों के बाढ़ के मैदान आपस में मिल जाते हैं तथा बड़ी नदी छोटी नदी का अपहरण कर लेती है। उत्तरी अमेरिका के डिट्रॉयट शहर के कुछ मील पश्चिम ह्यूरन नदी ने अपने मिएंडर के द्वारा ओकरन नदी के मार्ग का अपहरण कर लिया है।

उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद जिले में देवघाट के पास बेलन नदी के मिएंडर ने सेवती नदी के निचले मार्ग का अपहरण करके सेवती नदी की घाटी में बहना शुरू कर दिया है। इस कारण बेलन, सेवती नदी का संगम अब पुराने संगम से 6 किलोमीटर ऊपर हो गया।

तो, यह है किस्सा नदी-अपहरण का। आमतौर पर इस तरह की घटनाएं जनसाधारण का ध्यान अपनी ओर खींच भी नहीं पाती लेकिन भूवैज्ञानिकों के लिए ये ज़रूर अध्ययन के मौके बन जाते हैं।


संजय कुमार तिवारी: एकलव्य के सामाजिक अध्ययन कार्यक्रम से जुड़े हैं। भूगोल विषय का अध्ययन किया है।