बाल विज्ान पत्रिका मार्च 2018 RNI क्र. 50309/85 डाक पंजीयन क्र. म.प्र./भोपाल/261/2018-20/प्रकाशन तिथि 28 फरवरी 2018 मूल्य ₹ 50 1 महेश कु एक दिन शाम क े वक्त हम लोग सरकारी नस्सरी में पौधे खरीिने गए थे। डूब्ते सूरज की द्तरछी दकरणें आम क े एक पेड़ पर पड़ रही थीं। पेड़ क े ्तने पर धूप में चमक ्ते बरबूटे (लाल चींटे) इधर से उधर िौड़ लगा रहे थे। आम क े पेड़ पर पाए जाने वाले बरबूटों से मैं बचपन से पदरदच्त हूँ — उनकी ्तीखी जलन वाली काट एक-िो बार भुग्त भी चुका हूँ। उतसुक्तावश मैं अपना हाथ उनक े पास लेकर जा्ता ्तो वे सजग होकर अपने एंदटना लहराकर आक्रमण की मुद्ा में थमकर खडे़ हो जा्ते। मेरी जानकारी है दक चींटे-चींदटयों की नज़र कमज़ोर हो्ती है दिर ये क ै से इ्तनी फु्तती दिखा रहे हैं?... शायि वे मेरे हाथ से हवा में होने वाले कम्पनों को अपने एंदटना से पकड़ ले्ते थे। बहरहाल वास्तदवक कारण कया है प्ता करना होगा। उनकी सजग्ता और चपल्ता मुझे हैरान कर रही थी। उनक े ्तेज़ी से िौड़ने क े कारण उनका िोटो उ्तारना बहु्त मुद्कल हो्ता है, जब काटने का डर हो ्तो और भी ज़यािा। दिर भी दहम्म्त करक े उसी िौरान मैंने अपने क ै मरे से कुछ िोटो दनकाले, उनमें से मेरी पसन्ि की एक िोटो प्रस्तु्त है। कहानी एक फोटो की...! चक मक 2 चन्िा (एकलवय क े नाम से बने) मनीऑड्सर/चेक से भेज सक्ते हैं। एकलवय भोपाल क े खा्ते में ऑनलाइन जमा करने क े दलए दववरण- बैंक का नाम व प्ता - सटेट बैंक ऑि इंदडया, महावीर नगर, भोपाल खा्ता नम्बर - 10107770248 IFSC कोड - SBIN0003867 कृपया खा्ते में रादश डालने क े बाि इसकी पूरी जानकारी [email protected] पर ज़रूर िें। सम्पािन सु्ाील ्ाुकल ्ादश सबलोक सम्पािकीय सहयोग सी एन सुब्रणयम् कदव्ता द्तवारी सदज्ता नायर भवानी ्ांकर सीमा दव्तरण झनक राम साहू सहयोग कमले्ा यािव ब्रजे्ा दसंह ई-10, ्ांकर नगर, बीडीए कॉलोनी, द्ावाजी नगर, भोपाल, म.प्र. 462 016, िोन: (0755) 4252927, 2550976, 2671017 ि ै कस: (0755) 2551108 email - [email protected], email - [email protected], www.chakmak.eklavya.in, www.eklavya.in दव्ोष सहयोग - इक्तारा बाल सादहतय क े न्द् दडज़ाइन कनक ्ादश दवज्ान सलाहकार सु्ाील जो ्ाी अंक 378 माच्स 2018 एक प्रद्त : 50.00 वादष्सक : 500.00 ्तीन साल : 1350.00 आजीवन : 6000.00 सभी डाक खच्स हम िेंगे एकलव्य इस बार कहानी एक फोटो की...!- मह े श क ु मार बसेड़िया 2 वकस पर यकीन करोगे? 3 र ं ग दे बसन्ी - नीना भट्ट 4 8 मार्च - अन्रा्चष्टीय मड़हला ड़दिस 8 झा ि ू की नीति कथा - राजेश जोशी 10 नारघर - वरियम्वद 11 एक खोए हुए िालाब में...- सी एन सुब्रण्यम् 16 पक्ा, नहीं लिोगे! - िननष्ा 20 िुम्ार े घर में कौन... - नेरर कंिवेशन फाउ ं ड े शन 22 दो नायब शशल्प - अशोक भौनमक 24 उस ड़दन - िीर े न्द्र 26 र े शम रानी - कमला बकाया 28 रुप्ी जगह को शरठ्ी - विनोद क ु मार शुक्ल 29 मेरा पन्ा 33 माथापच्ी 39 शसक्कों केरार रियोग 40 शररि पह े ली 43 आ गई फसल लािनी - रिभाि 44 एक दिन, एक पड़ोसी मुल्ला नसरूद्ीन के दिखे। मुल्लाजी को ि ेखकर बोले, “मुल्लाजी क्ला आपकला गधला कुि ेर केलए उधलार ले सकतला ह ू ँ?” मुल्लाजी उस पड़ोसी को अपनला गधला नहीं ि ेनला चलाहते थे। मुल्लाजी बोले, “अरे भला ई मलाफ करनला अभी कु ि ेर पहले उसे क क सी और को ि े दियला है।” इतने में कपछवलाड़े से ढेंचू ढेंचू ढेंचू...की ज़ोरों की आवलाज़ आने लगी। पड़ोसी बोलला, “लेक क न मुल्लाजी िीवलार के गधे की आवलाज़ ही तो है।” नलारलाज़ होकर मुल्लाजी बोले, “आप क क स पर यकीन करनला चलाहते हैं, अपने मुल्ला पर यला कफ र एक गधे पर?” चचत्र: शुभम लखेरा आवरण चचत्र: नीलेश गहलोत ककस पर यकीन करोगे? 3 4 र ं ग दे बसन्ी नीना भट्ट ये उन दिनों की बा्त है जब हम कॉलेज में थे। अपनी एक सहपाठी की रोमांदच्त खुसफुसाहट ने मेरा धयान अपनी खींचा, ्तुम्हें दिखाना बैग लो, साइदकल से चलेंगे।” कलास छोड़ने का रत्ी भर भी मौका दमल रहा हो ्तो सवाल नहीं पूछे जा्ते। और एक खूबसूर्त बसन््त की सुबह ्तो दबलकुल ही नहीं। कुछ ही पल में हम साइदकल पर सवार हो िरराटे से आट्स प्रैक्टिकल्स की कलास से िूर जा रहे थे। गरस्स हॉसटल क े अहा्ते में पहुँचकर खटर-पटर कर्ते हम जैसे ही साइदकल सटैंड में घुसे मेरी िोस्त ने अपना सर ऊपर उठा बाँहें पसारकर कहा, “ये रहे ्तुम्हारे वे सारे पेड़ दजनकी बा्त ्तुम उस दिन कर रही थी!” ज़मीन फूलों से पटी हुई थी। बसन््त को रचने वाले मशहूर जंगल की आग क े टेसुओं की रंगोली। हमारे चारों ओर क े सदरया से लेकर सि े ि रंग की हरेक छटा में पंखुदड़याँ व फूल दबखरे हुए थे। पीले रंग की छटाएँ, दजनका नाम हमें दकसी पेंटबॉकस में नहीं दमला था। न दसि ्स गैम्बोज, गेरुआ, हरका पीला, दहन्िुस्तानी पीला बदरक अनेक अनाम छटाएँ। सारे चटक रंग हॉसटल की पाँच सौ लड़दकयों की आवाजाही में दपसकर पाउडर बन गए थे। हमारा दव्वदवद्ालय दव्वादमत्र निी क े दकनारे पर है। यह निी शहर क े दबलकुल बीच से होकर गुज़र्ती है। इसक े दकनारे पेड़ों की घनी पाँ्ते हैं दजनमें दकसम- दकसम क े पेड़-पौधे व जीव-जन््तु मौजूि हैं। इसमें ्तमाम अन्य पेड़ों क े अलावा धीरे-धीरे बढ़ने वाले कुछ िुल्सभ िेशी पेड़ हैं। इनमें से एक है चौड़े पत्ों वाला क े सुड़ा। इसक े अनेक पलाश, ढाक, दक ं शुक...। क े सुड़ा हमारे शहर और राजय क े दिल क े दबलकुल करीब है। दसि ्स वड़ोिरा में ही नहीं बदरक िेश क े िूसरे कोने, पद्चम बंगाल क े शादन््तदनक े ्तन में भी पलाश की खास जगह है। वहाँ होली क े दलए इसक े फूल इकटठे करना एक महतवपूण्स परम्परा बन गया। हम को उसका बनाने जो बाम्बी दज्तना ऊँचा हो चला था। हवा में ठणड अभी बाकी थी। हमें लगा कयों न अपने हाथ इस जंगल की आग में सेंक दलए जाएँ। 5 पुराने दहतयकारों ्तरह भी फूलों क े दवदचत्र आकार की ्तुलना कभी ्तो्ते की चोंच से की, शेर े से, ्त ो िूज े ि से। लेदकन हाथ में उठाने पर इन फूलों की पंखुदड़याँ दक्तनी नाज़ुक लग रही थीं। उसक े पत्े व बीज छूने पर दकसी जानवर क े िर की ्तरह नरम लग रहे थे। और िदलयाँ भी दकसी बछड़े क े कान की ्तरह नरम। हमसे अलग, शाखों पर ऊपर बैठी दचदड़यों की नज़र दसि ्स फूलों े न्िर े (शहि) थी। ढाक क े इस सालाना पराग जलसे में दकसम-दकसम क े जीव आकदष्स्त हो्ते हैं। लेदकन इनमें मुझे ये ्तीन शै्तान नकलची सबसे जयािा भा्ते हैं, को्तवाल, महाल्त (ट्ी पाइ) और हरेवा (लीि बड्स)। हरेवा जब को्तवाल पक्ी जैसी आवाज़ दनकाल्ते हैं ्तो उसे सुनना दकसी पक्ी प्रेमी क े दलए बेहि दिलचसप हो्ता है। और ये आवाज़ दशकरा नाम क े दशकारी पक्ी की भी नकल हो्ती है। ये कलाबाज़ी िूसरे प्रद्तद्वदन्द्वयों और दशकादरयों को डराने क े दल ए हो्ती है। यानी एक ठग िूसरे ठग क े कर्तब अपना्ता है ्तादक ्तीसरे को उरलू बना सक े ! हालाँदक यह दवज्ान से सादब्त नहीं हो्ता है, मगर इस में दसद्ान््त है दक पराग क े नशे से ज़बान पर लगाम नहीं रह्ती और ये ्तीन बिमाश और भी ज़यािा च्तुर व उदिणड हो जा्ते हैं। लेदकन लग्ता दक यह िेखकर भी िेखा िे्ता वो दिखा्ता मानो दक याग मूर्त हो। जो े सदरया दनकल्ता है उसे भी ये वही छदव िेना पसन्ि कर्ता है। ये वो वसत्र है जो ज्ानी पुरुष व मदहलाएँ पहन्ते हैं। मानो वे खुि को िुदनयावी ्तौर-्तरीकों से, पैसा और नाम-यश की सांसादरक होड़ से अलग करना चाह्ते हों। थोड़े से, टेढ़ा-मेढ़ा-सा, क े दकनारों पर, सुिूर जंगल में खड़ा क े सुड़ा अपनी प्रज्ा का दिखावा नहीं कर्ता। इस ्तथय क े बावजूि दक इसकी लाख से बने आदधकादरक सील की अनुपदसथद्त में गोपनीय िस्तावेज़ों की प्रमादणक्ता सदन्िगध हो जाए। लाख लाल रंग का एक राल हो्ता है जो इस पेड़ पर पाले गए कीड़ों द्वारा बनाया जा्ता है। इसका उतपािन बड़े पैमाने पर दकया जा्ता है। इस पेड़ क े हरेक दहससे से कोई न कोई हब्सल िवा बन्ती है। दसि ्स इसक े फूलों व पदत्यों से ही नहीं बदरक इसकी गोंि से, छाल से, जड़ और बीज से भी। हम िोनों क े दलए ्तो यह पेड़ दक्ताबी ज्ान का सबसे अचछा था। सुलग्त े की ्तले दज्तना गुज़ार्ते, ट्स सकूल ्तना िूर गैर-ज़रूरी ्ती्त ्ता। दखर अवलोकन े दलए और आ्चय्सचदक्त होने क े दलए दक्तना कुछ था। दमसाल क े दलए पत्ों का आकार। ट्ाइिोलीएट, जैसा दक वनसपद्तशासत्र की भाषा में इसे कह्ते हैं। यानी हर टहनी में ्त ीन पदत्याँ हो्ती हैं, चौड़ी व गोलाकार, कुछ-कुछ दिल क े आकार कीं। आदिवासी इसे खाखरो कह्ते हैं, दजसका ्तातपय्स हो्ता है एक बड़ी रोटी दजसे खूब सेंका गया हो। 6 चक मक यह बा्त ्तरि इशारा ्ता दक ्ताज़ी पदत्यों जोड़कर ें डली दरसाइदकल योगय पत्ल बनाए जा्ते हैं। चढ़्ती िोपहरी क े साथ इसकी लौ और भी ्तेज़ हो्ती गई। की वलन््त इसकी दड़यों चमक्ती और ऐसा लग रहा था मानो ऊपर दखले फूल गमती में लहक रहे हों। हमें थोड़ी दचन््ता हुई दक हमारा पेड़ जंगल में आग न लगा िे। खुली जगह और धूप से इस पेड़ को इ्तना लगाव है दक कह्ते हैं दक यह जंगलों में दकसी अनहोनी का प्र्त ीक हो्ता है। लेदकन जहाँ कुछ भी नहीं बच्ता, वहाँ टेसू न दसि ्स खड़ा रह्ता है बदरक जरि ही अपना एक छोटा-सा जंगल ही उगा ले्ता है। उस दिन हमारी नज़र दजधर जा्ती दसि ्स टेसू ही टेसू थे। एक लौ को बचा्ते हुए और उसे समूचे भूखणड को और आने वाली पीदढ़यों क े सुपुि्स कर्ते हुए। पदरपकव में अनन््त-सा म्बा लगा्ते डीलडौल में बेढंगे और छायािार कहलाने क े अदनचछुक। बदरक गमती चरम हो्ती ्तो मज़े अपने सारे पत्े झाड़ िे्ते हैं। यह िुख की बा्त है दक टेसू सामादजक दमसदिट है और इसे इसकी कोई परवाह भी नहीं है। हमारे शहरों को इसने त याग दिया है और ्तेज़ी से छोटे कसबों से भी िूर हो रहा है। कया इसकी वजह यह है दक ये ऐसा वृक् है जो ्तेज़ गद्त की बजाय रचनातमक्ता “म्ारा केिा ना र ं ग छ े , केरयो, म्ारी रुनारी ना र ं ग छ े , केरयो, म्ारा के सुिा ना र ं ग छ े , केरयो!” की, शान््त दचन््त न की और ज्ान को जज़ब करने की बा्त कर्ता है? अगर पलाश क े प्राचीन वृक् बा्तें कर सक्ते ्तो वे हमें पलासी (पलाश से दनकला नाम) क े युद् क े बारे में ब्ता्ते। ये रामलीला भी बेह्तर दिखा्ते कयोंदक रामायण और महाभार्त, इन िोनों महाकावयों में इसने भूदमका दनभाई है। ये पुरानी आदिवासी सभय्ताओं क े गी्त गा्ते। एक गुजरा्ती गरबे की पंदक्तयाँ, जो राधा और कृषण क े दमल ्ते-जुल्त े कपड़ों बखान ्ती उसकी पदत् दनद्च्त इस क े से है। इसदल ए कयोंदक कृषण (क े शव) और वह पेड़ दजसक े नीचे वे बाँसुरी बजा्ते थे, िोनों का नाम एक ही है। कोई भी दहन्िी दिरमी गी्त सुदनए और उसमें आपको अपने दपया क े रंग में रंगे होने क े सूदियाना रस की प्रद्तधवदनयाँ को दमलेंगी। सी े िशक सुपरदहट दिरम का ये गाना “मेरे रंग में रँगने वाली, परी हो या हो पदरयों की रानी…” ऐसा ही एक लोकदप्रय गी्त है। ऐसे में दिरमों में ‘पेड़ों क े इि्स-दगि्स नाचने’ का ि ै शन बहु्त हाल का नहीं जान पड़्ता, कयों? टेसू हमें रंग से सराबोर कर बसन््त ऋ्तु क े साथ अपने प्रेमालाप का साक्ी बना्ता है। वो हमें उस नृतय की भंदगमा में खींच ले्ता है दजसे कुछ लोग जीवन चक्र कह्ते हैं ्तो कुछ अन्य ‘गरबा’… अनुवाि व िोटोग्ाि: लोक े श माल्ती प्रकाश 7 बा्त सिी शुरुआ्त है। अमेदरका क े न्यू यॉक ्स शहर में हज़ारों प्रवासी (िूसरे िेशों आकर यहूिी, ्तालवी और अमेदरकी मदहलाएँ कपड़ा दसलाई (गाममेंट) कारखानों काम ्ती उन्हें मज़िूरी पर बुरे हाला्तों में काम करना पड़्ता था। ्तन ्त था, िूरों सुई, धागे, मशीन और दबजली का खच्स दलया जा्ता था और उन्हें हफ्ते क े सा्तों दिन 10 से 11 घणटे काम करना पड़्ता था। मज़िूर एक बार कारखाने में घुस जाएँ ्तो कमरों क े िरवाज़े बन्ि कर दिए जा्ते थे ्तादक वे दबना अनुमद्त बाहर दनकलें। बहाने (पाँच दमनट िेर से आना, कपड़े खराब करना आदि) 8 मार्च अन््तरराषट्ीय मदहला दिवस जम्सनी में प्रकादश्त 8 माच्स 1914 का इ््तेहार उनका वे्तन काट दलया जा्ता था। उन कारखानों में िो ्तरह क े मज़िूर थे -- एक जो ड्ेस का दडज़ाइन ्तैयार करक े िमरा बना्ते थे, जो दक ज़यािा्तर पुरुष िज़ती हो्ते थे। उनका वे्तन अदधक था। िूसरे, बहु्त कम मज़िूरी पर काम कर्तीं ट्ेनी मदहला कामगार, जो उन िममों क े अनुरूप कपड़े दसल्ती थीं। इन्हें मज़िूर का िज़रा भी नहीं दमला था। वे प्रवासी कामगार थीं जो अंग्ेज़ी ठीक से बोल नहीं पा्ती थीं। इस कारण यूदनयनें उनको संगदठ्त करने पर धयान नहीं िे्ती थीं। ज़यािा्तर कामगार 12 से 22 साल की थीं। बीस हज़ार का दवद्ोह 1909 े महीने मज़िूरों मादलकों े अलग-अलग में ्तनाव लगा जगह-जगह हड़्तालें होने लगीं। मादलक हड़्तादलयों को काम से दनकाल िे्ते और िूसरों काम रख्ते। दलस िश्सन वालों बेरहमी से पीट्ती या उन पर भारी जुमराना लगा्ती या जेल में डाल िे्ती। इस रवैये से मज़िूरों में गुससा ि ै ला और जगह-जगह आम सभाएँ हुईं। नवम्बर 1909 में एक दवशाल मीदटंग में ने्ता लोगों क े भाषण क े बाि एक मदहला कामगार उठकर बोलने लगीं। उन्होंने उन हाला्तों का बयान दकया दजनमें वे सब काम कर रही थीं और माँग की दक पूरे गाममेंट उद्ोग क े मज़िूरों को आम हड़्ताल करना चादहए। सब ने बड़े उतसाह क े साथ हामी भरी और कसम खाई दक अगले दिन से सभी हड़्ताल पर जाएँगे। लगभग 20 हज़ार मदहला मज़िूरों ने अगले िो दिन आम हड़्ताल की। खास बा्त यह थी दक उनक े साथ काम करने वाले उचच िज़ज़े क े पुरुष कामगार भी हड़्ताल पर गए। यह हड़्ताल कमोबेश 14 हफ्ते चली। पहली बार प्रवासी मज़िूर और वो भी मदहलाओं ने इ्तनी बड़ी हड़्ताल की थी। चचत्र : कै 8 चक मक उन दिनों िुदनया क े दकसी भी िेश में मदहलाओं को चुनाव में वोट िेने का अदधकार नहीं था। न ही वे संसि क े दलए चुनी जा सक्ती थीं। यूरोप और अमेदरका क े कई िेशों में मधयम वगतीय मदहलाओं ने वोट िेने क े अदधकार की माँग की और इसक े दलए आन्िोलन कर रही थीं। न्यू यॉक ्स की मदहलाएँ जो वोट क े अदधकार को लेकर आन्िोलन कर रही थीं, वे मदहला कामगारों क े समथ्सन में उ्तरीं और जेल भी गईं। अन््त मज़िूर िल – ्तन काम े हाला्त बेह्तर हुए और काम क े घणटे भी कम हुए और मादलक ी दबजली वयवसथा ि लगे। कई कारखानों में यूदनयन को मान्य्ता भी दमली। हड़्ताल को अन््त्तः िरवरी 1910 में वापस दलया गया। इस हड़्ताल को अमेदरकी मज़िूर इद्तहास में बीस हज़ार का दवद्ोह नाम से याि दकया जा्ता है। मदहला दिवस की शुरुआ्त – 1910 से 1975 इस हड़्ताल को हर साल याि करने क े दलए िरवरी क े आदखरी रदववार को मदहला मज़िूर दिवस क े रूप में का दनण्सय दलया 1910 े क े महीने में िूसरा अन््तरराषट्ीय समाजवािी मदहला सम्मेलन डेनमाक ्स िेश े में इस म्मेलन समाजवािी दहला िूर ्ता लारा ज़ेटदकन उनक े सादथयों की पैरवी पर दनण्सय हुआ दक हर साल अन््तरराषट्ीय मदहला कामगार दिवस मनाया जाएगा। इसे सारे िेशों में एक साथ एक योजना क े ्तह्त मनाने का दनण्सय हुआ। हर साल उस दिन यूरोप क े अदधकांश बड़े शहरों में लाखों मदहलाएँ प्रिश्सन करने लगीं और उनकी प्रमुख माँग थी वोट का अदधकार और समाजवाि। शुरू में यह अमेदरका क े ्तज़्स पर िरवरी क े आदखरी रदववार को मनाया जाने लगा। यह हर साल अलग-अलग ्तारीख पर पड़्त ा था दजस कारण 1914 से इसे 8 माच्स दनद्च्त दकया गया। 1914 से यूरोप क े सारे िेश दव्व युद् में शादमल हुए... हर िेश क े कामगारों, खासकर मदहलाओं को बहु्त कषट झेलना पड़ा। उनक े बचचे सेना में भ्तती होकर मर रहे थे। ज़रूर्त की चीज़ों की कीम्तें आसमान छूने लगीं... 1917 में 8 माच्स क े दिन रूस की राजधानी पेट्ोग्ाि में हज़ारों मदहलाओं ने युद् और राजा क े दखलाि प्रिश्सन दकया और रोटी की माँग की। िेख्ते-िेख्ते यह राजा क े दखलाि दवशाल दवद्ोह बन गया और सैदनक और मज़िूर रूस क े सभी शहरों में हड़्ताल करने लगे। िस दिन क े अन्िर राजा क े शासन का अन््त हो गया। इस ्तरह रूस की मदहलाओं ने 8 माच्स क े दिन महान रूसी क्रादन््त की शुरुआ्त जब टूबर को में िूरों का राज सथादप्त हुआ ्तो 8 माच्स को राषट्ीय तयौहार क े रूप में मनाने का दनण्सय दकया गया। ्तब से हर िेश क े समाजवािी 8 माच्स को मदहला दिवस क े रूप में मना्ते आ रहे थे। 1975 में यू एन ओ (संयुक्त राषट् संघ) ने 8 माच्स को अन््तरराषट्ीय मदहला दिवस क े रूप में मनाने का दनण्सय दकया। ्तब से हर साल पूरी िुदनया में 8 माच्स क े दिन को मदहला दिवस क े रूप में मनाया जा्ता है। 9 िॉम्स-4 (दनयम-8 िेदखए) मादसक चकमक बाल दवज्ान पदत्रका क े सवादमतव और अन्य ्तथयों क े सम्बन्ध में जानकारी प्रकाशन का सथान : भोपाल सम्पािक का नाम : सुशील शुकल प्रकाशन की अवदध : मादसक राषट्ीय्ता : भार्तीय प्रकाशक का नाम : अरदवन्ि सरिाना प्ता : एकलवय राषट्ीय्ता : भार्तीय ई-10 शंकर नगर, प्ता : एकलवय बी.डी.ए. कालोनी, ई-10 शंकर नगर, बी.डी.ए. कॉलोनी, दशवाजी नगर, भोपाल 462 016 दशवाजी नगर भोपाल 462 016 मुद्क का नाम : अरदवन्ि सरिाना उन वयदक्तयों क े नाम, : रैकस डी. रोज़ादरयो राषट्ीय्ता : भार्तीय राषट्ीय्ता और प्ते : भार्तीय प्ता : एकलवय दजनका इस पदत्रका : एकलवय ई-10 शंकर नगर, बी.डी.ए. कॉलोनी, पर सवादमतव है ई-10 शंकर नगर, बी.डी.ए. दशवाजी नगर भोपाल 462 016 कॉलोनी, दशवाजी नगर, भोपाल 462 016 मैं अरदवन्ि सरिाना यह घोषणा कर्ता हूँ दक मेरी अदधक्तम जानकारी एवं दव्वास क े अनुसार ऊपर दिए गए दववरण सतय हैं। (प्रकाशक क े हस्ताक्र) 24 िरवरी 2018 अरदवन्ि सरिाना झलाड़ ू की नीत त कथला झलाड़ ू बह ु त सुबह जलाग जलाती है और शुरू कर ि ेती है अपनला कलाम बुहलारते ह ु ए अपनी अटपटी भलाषला में वह लगलातलार बड़बड़लाती है कचरला बुहलारने की चीज़ है घबरलाने की नहीं क क अब भी बनला ई जला सकती हैं जगहें रहने के ला यक। - रलाजेश जोशी 10 पकौड़ियों में ववज्ापन वरियवद नाचघर की चौदहवीं वकस्त 11 सकूल से दनकलकर लाजवन््ती दरकशे में बैठने लगी ्तो चौंक गई। ऐसा कभी नहीं हुआ। पेड़ क े नीचे साइदकल दलए मोहदसन खड़ा था। “्तुम?” लाजवन््ती उसक े पास आई। मोहदसन कुछ नहीं बोला। उसने जेब से अखबार का एक टुकड़ा दनकालकर लाजवन््ती को दिया। लाजवन््ती ने पढ़ा। नाचघर क े बारे में ज़रूरी सूचना – दजसक े पास चाँिी की दडदबया और बालों की लट हो िौरन पािरी हेबर या लन्िन में माइकल कॉनज़ेगी से सम्पक ्स करें । नीचे एक ओर पािरी हेबर का प्ता, िोन नम्बर दिया था। िूसरी ओर लन्िन में माइकल का। “्तुम्हें कहाँ दमला?” “कल दड़याँ थीं। ्तभी लाजवन््ती िेखा। अखबार में दचकनाई लगी थी। “कया है यह?” कागज़ लौटा्ते हुए लाजवन््ती फुसफु- साई। “प्ता को ज़रूर ्तब ्त करेंगे। यह कहने आया था।” “ठीक लाजवन््ती दसर दहलाया। दसन साइदकल बैठकर गया। न््ती दरकशे पर बैठ गई। शाम को नाचघर में िोनों ने एक बार दिर दवज्ापन पढ़ा। “नाचघर दबक रहा है। यह ज़रूर उसी से जुड़ी कोई बा्त है,” मोहदसन बोला। “कया पुदलस हमें पकड़ेगी? इसीदलए अखबार में दिया है?” लाजवन््ती ने मोहदसन को िेखा। “कयों? हमने कया दकया है?” “चाँिी की दडदबया और लट चुराई है।” “पुदलस बचचों को नहीं पकड़्ती।” “पकड़्ती है। बचच ों क े जज हो्ते हैं। कोट्स हो्ती है...जेल हो्ती है। हम दडदबया को वापस रख िे्ते हैं।” “नहीं...यह कोई और बा्त है, वनरा लन्िन क े लोग यहाँ इ््तहार कयों िे्ते?” “दिर...? दकसे ब्ताएँ?” “एक काम कर्ते हैं,” मोहदसन बकसे से कूिा। “सीधे चच्स चल्ते हैं। पािरी हेबर को सब प्ता है। उन्हें पूरी बा्त ब्ता्ते हैं। दबलकुल शुरू से। यह भी दक हम यहाँ ्ते दपयानो बजा्ते चाँिी दडदबया, लट और ्तसवीर भी हमारे पास है। अगर हमने कोई गल्ती की है ्तो दडदबया वापस करक े मािी माँग लेंगे। चच्स ्तो अरलाह का घर है। वहाँ सबक े गुनाह माि कर दिए जा्ते हैं।” “हाँ...यही ठीक है,” लाजवन््ती भी बकसे से उ्तर गई। “पर क ै से चलें? घर में कया कहेंगे?” “एक ही रास्ता है,” कुछ िेर सोचने क े बाि मोहदसन बोला, “और वही करना पड़ेगा।” “कया?” लाजवन््ती ने मोहदसन को िेखा। “सकूल नहीं जा्ते हैं। चच्स चल्ते हैं।” “प्ता लगा ्तो?” “नाचघर का, दडदबया का, नाचने का, नाम बिलने का दकसी प्ता मोहदसन गया, िािर हेबर से दमलने क े बाि हम घर में भी सब ब्ता िेंगे।” “नाचघर दबक रहा है, यह भी?” “हाँ।” “ठीक है...्तो कल ही चल्ते हैं।” “मैं साइदकल से ्तुम्हारे सकूल आ जाऊँगा। वहाँ से हम दरकशे में चलेंगे।” “और साइदकल?” “नहीं...साइदकल नहीं कोई िोस्त िेगा।” 12 लाजवन््ती ने दसर दहलाया। सुबह दसन दकल सकूल गया। लगा ्तो म्मी पूछा, ्तो दिया िोस्त े जाएगा। लाजवन््ती क े सकूल पहुँचकर पेड़ क े नीचे खड़ा हो कुछ िेर लाजवन््ती दरकशा दरकशे में और बचचे भी थे। लाजवन््ती दरकशे से उ्तरी। उसने पेड़ क े नीचे िेखा। पीठ पर बस्ता बाँधे मोहदसन खड़ा था। लाजवन््ती की पीठ पर भी बस्ता था। जब बचचे सकूल े न्िर गए दरकशा गया, ्तब लाजवन््ती मोहदसन क े पास आई। “चलें?” “हाँ,” मोहदसन ने दसर दहलाया। उसने सामने जा्ते हुए एक दरकशे को रोका। चच्स का नाम ब्ताया। िोनों दरकशे पर बैठ गए। सदि्सयों की सुबह थी। कोहरे ने उनको अपने अन्िर छुपा दलया। पािरी हेबर सुबह की प्राथ्सना में चच्स नहीं गए थे। कुछ असवसथ थे। बगीचे क े फूलों को बहु्त हरका पानी िेकर लौटे थे। थक गए थे। खाँसी भी आ रही थी। लेटने जा ही रहे थे दक िरवाज़े पर िस्तक हुई। सुबह कोई नहीं आ्ता था। थोड़ा अचरज क े साथ खाँस्ते हुए उन्होंने िरवाज़ा खोला। सामने िो बचचे खड़े थे। पीठ पर सकूल क े बस्ते थे। बिन पर सकूल की ड्ेस थी। ठणड और कोहरे से उनक े चेहरे गीले और मुलायम हो रहे थे। हेबर ने कुछ िेर उन्हें िेखा। “कया है मेरे बचचों?” वह मुसकराए। “मेरा नाम मोहदसन है,” लड़का बोला। “मेरा लाजवन््ती,” लड़की बोली। “हमें आपसे काम है,” मोहदसन ने कहा। पािरी हेबर ने एक बार उन्हें ऊपर से नीचे िेखा। वे घबराए हुए थे। डरे भी। साि था सकूल से भागकर आए हैं। “अन्िर आ जाओ,” वे एक ओर हट गए। िोनों अन्िर आ गए। पािरी हेबर ने िरवाज़ा बन्ि कर दिया। वे िोनों खड़े थे। “ब्ताओ या ्त हेबर पास पूछा। लाजवन््ती मोहदसन िेखा। दसन जेब अखबार दचकनाई टुकड़ा दनकालकर िरी हेबर की ओर बढ़ाया। पािरी हेबर ने िूर से ही िेखा। नाचघर का दवज्ापन था। “हमारे पास दडदबया है,” लाजवन््ती धीरे-से बोली। “लट भी,” मोहदसन बोला। पािरी हेबर अवाक उन्हें िेख्ते रहे। कुछ िेर िेख्ते रहे। उनक े इस ्तरह िेखने से िोनों घबरा गए। “हम लौटा िेंगे,” लाजवन््ती बुिबुिाई। “्तसवीर मोहदसन िबुिाया। िोनों ्तक िरवाज़े े खड़े पािरी ने इशारा दकया। “बस्ते उ्तारकर कुसती पर बैठो...और दबलकुल भी म्त डरो।” िोनों कमरे क े और अन्िर आए। कुदस्सयों पर बैठ गए। बस्ते पीठ से उ्तारकर कालीन पर रख दिए। पािरी हेबर उनक े सामने बैठ गए। उनकी थकान, खाँसी सब गायब हो गया था। “्तो...्तुम लोगों क े पास चाँिी की दडदबया और लट है,” वे मुसकराए। िोनों ने दसर दहलाया। “और ्तुम िोनों आज सकूल न जाकर, यही ब्ताने मेरे पास आए हो?” “हाँ,” िोनों ने दिर दसर दहलाया। “कया ्तुम्हें प्ता है ्तुम्हारे पास कया चीज़ है?” “हाँ...,” मोहदसन बोला, “चाँिी की दडदबया और लट।” “नहीं,” पािरी हेबर अब दखलदखलाकर हँसे, “नहीं, ्तुम िोनों क े पास खुल जा दसमदसम है।” वे कुछ समझे नहीं। “्तुम लोगों ने यह बा्त दकसी और को ब्ताई है?” “नहीं,” लाजवन््ती बोली। 13 चचत्र: रिशान्त सोनी 14 “दकसी को भी नहीं?” “नहीं।” “ब्ताना भी म्त जब ्तक मैं न कहूँ।” उन्होंने दसर दहलाया। अब उनका डर िूर हो रहा था। कम से कम इ्तना डर ्तो िूर हो ही गया था दक पुदलस उन्हें पकड़ लेगी या उन्होंने चोरी की है। “्तुम्हें दडदबया कहाँ दमली?” हेबर ने पूछा। “नाचघर में।” “वहाँ कहाँ?” “दपयानो क े नीचे।” “्तुम लोग वहाँ क ै से पहुँचे?” “मैं रोशनिान से जा्ता था,” मोहदसन बोला। “मैं ऊपरवाले घर क े बन्ि िरवाज़े की सीदढ़यों से,” लाजवन््ती बोली। “्तुम वहाँ रह्ती हो?” “हाँ।” “वह ्तो वैद्जी का घर है।” “हाँ...वह मेरे िािाजी हैं।” “और ्तुम?” “मैं िरगाह क े सामने।” “नाचघर में कया कर्ते थे?” “नाच्ते थे। गा्ते थे।” “कया?” “नील नयन चन्िन ्तन...क े शों में क े सर वन।” पािरी की का जम उन्होंने चुपचाप िोनों को िेखा। “हमें प्ता है नाचघर दबकनेवाला है,” लाजवन््ती बोली। “क ै से?” “मैं वहाँ छुपी थी जब आप आए थे।” “अब यह कभी नहीं दबक े गा,” गुमसुम से पािरी हेबर बोले। “कयों?” “कयोंदक इसकी चाबी ्तुम्हारे पास है।” “हमारे कोई नहीं लाजवन््ती पािरी हेबर उठ गए। “आओ...मेरे हम दमलकर दप्ता आशतीवाि जो सन््तानों मिि ्तरह कर्ता है।” वे िोनों उठ गए। उन्होंने दिर बस्ते पीठ पर बाँध दलए। वे सब कमरे क े बाहर आए। पािरी हेबर बीच में थे। वे िोनों उनक े एक-एक ओर। हेबर का एक हाथ लाजव - न््ती क े कँधे पर था, िूसरा मोहदसन क े कँधे पर। थोड़ा चलकर वे चैपल क े अन्िर आए। चैपल खाली था। सुबह की प्राथ्सना खतम हो चुकी थी। अन्िर सन्ाटा था। गहरी शादन््त थी। वेिी क े पास पहुँचकर उन्होंने मूद्त्स क े आगे हाथ जोड़े। उन िोनों ने भी। “परम दप्ता...दजनका था, ्तुमने न्हें िे दिया। न्हें अपनी में वह िबु- िाए। मोहदसन और लाजवन््ती कुछ नहीं समझे। वे िोनों भी होंठों में बुिबुिाए। शायि लाजवन््ती ने गायत्री मंत्र, शायि मोहदसन ने कलमा। “अब चलो,” हेबर ने उनक े सर पर हाथ रखा। वे सब चैपल क े बाहर आए। दिर लॉन पार कर चच्स क े बाहर आए। बाहर दरकशा खड़ा था। वे दरकशे पर बैठ गए। वे अभी ्तक ठीक-ठीक नहीं समझे थे दक कया हुआ? उन्हें कया करना है? “हुआ दक ्तुम िोनों नाचघर े दलक हो। अब ्तुम्हें मुझे पािरी दखल-दखलाकर हँसे। “नाचघर ्तुम्हारा है बचचों।” मोहदसन और लाजवन््ती की आँखें िट गईं। मुँह खुला का खुला रह गया। दरकशा चलने क े बाि बहु्त िेर ्तक वे इसी ्तरह अवाक िटी आँखें, खुला मुँह दलए बैठे रहे। ढेर-सी हवा, कोहरा उनक े खुले मुँह में घुस गया। चक मक जारी... 15 मधय प्रिेश क े होशंगाबाि और इटारसी शहरों क े बीच एक छोटा-सा गाँव है दनटाया। उस गाँव में कभी एक ्तालाब था जो अब लगभग खो गया है। ढूँढने पर पानी क े कुछ गडढे दिख जा्ते हैं। लेदकन ्तालाब वहीं था, हज़ारों साल से। यह ्तालाब जो दक अब नहीं है, हमें एक बहु्त दिलचसप कहानी सुना्ता है। यह कहानी है यहाँ की बादरश और पेड़-पौधों की। बारह हज़ार साल पहले की बा्त है। ्तब न दनटाया गाँव था न बस्ती। उस ज़माने में कड़ाक े की ठणड पड़्ती थी। सीधे दहमालय से ठणडी हवाएँ यहाँ पहुँच्ती थीं। अब दहमालय से हवाएँ आएँगी ्तो साथ बािल ्तो नहीं ला सक्ती हैं ना, वहाँ भला कोई समुद् थोड़े ही है। ्तो ठणडी हवा और सूखा मौसम। पानी बहु्त कम बरस्ता था। शुक्र है दक वहाँ एक बड़ा-सा गडढा था दजसमें बादरश का पानी भर जा्ता था। चारों ्तरि एकिम सपाट मैिानी इलाका था। लेदकन उस मैिान में पेड़ इकक े -िुकक े ही थे, वो भी बबूल क े । कुछ कँटीली झादड़याँ भी थीं। पूरे मैिान में ्तरह-्तरह की घास उगी थी। ्तालाब क े दकनारे एक सँकरी-सी िलिली पटटी थी दजस पर िलिली पौधे उग्ते थे। पानी में भी कुछ पौधे उग्ते थे। एक खोए हुए तालाब में बाकरश का इततहास सी एन सुब्रणयम् 1 खुिाई का दृ्य 2 दनटाया ्तालाब में दखले फूल 16 घास क े दलए दहरण आ्ते उनका दशकार करने क े दलए अन्य जानवर भी आ्ते थे, मनुषय भी। उन मनुषय दशकार कन्िमूल खोज्ते घूम्ते थे। पास ही की आिमगढ़ पहाड़ी पर उनक े डेरे ्ते ्तब छोटे-छोटे थरों लकड़ी हडडी में िँसाकर हदथयार बना्ते थे। कुछ घास ऐसी भी थी दजन पर मोटे बीज लग्ते थे, दजन्हें वे लोग इकटठा करक े भूँजकर खाना सीख गए थे। कुछ िो-्तीन हज़ार साल बाि की बा्त है, वे इन दवशेष घासों को उगने में मिि करने लगे। वहाँ जानवरों को चरने से रोका, िूसरे पौधों को उखाड़कर हटाया। दिर... आगे की कहानी सुनाने से पहले मैं ज़रा आपका िो खोजी लोगों से पदरचय ्तो करवा िूँ दजन्होंने इस ्तालाब से खोि दनकाली ये दिरोज़ और मोहन दसंह चौहान। ये िोनों वैज्ादनक हैं और लखनऊ क े बीरबल साहनी पुराजीवदवज्ान संसथान में काम कर्ते हैं। ये िोनों िेशभर क े पुराने ्तालाबों को खोज्ते हैं और उन्हें खोिकर पेंिे की दमटटी की पर्त ों की जाँच कर्ते हैं और उसकी मिि से प्ता कर्ते हैं दक इस ्तालाब क े दकनारे हज़ारों साल पहले क ै से पेड़-पौधे उग्ते थे। यह भी प्ता कर्ते हैं दक कब बादरश कम हुई थी और कब अदधक, कब ठणड अदधक पड़ी और कब गमती – यानी कमर और चौहान साहब जलवायु का इद्तहास भी खोि दनकाल्ते हैं। जब इन िोनों को प्ता चला दक दनटाया गाँव में एक प्राचीन ्तालाब क े अवशेष हैं ्तो उन्होंने वहाँ पहुँचकर पूरे क्ेत्र में उगने वाले पेड़-पौधों की खबर ली। दिर गाँववालों को समझाकर उस ्तालाब क े पेंिे में ्तीन मीटर का गडढा खोिा। खुिाई से अलग-अलग गहराई पर दनकली दमटटी क े नमूने को धया न से थैली में बन्ि करक े लखनऊ ले गए। वहाँ परीक्ण में प्ता चला दक यह सचमुच एक ्तालाब क े िे दमटटी और सबसे दहससा आज से लगभग बारह हज़ार साल पहले वहाँ जमा हुआ था। बादरश में जब आसपास का पानी बहकर आ्ता ्तो साथ में दमटटी भी बहाकर ला्ता और ्तालाब क े पेंिे में दबछा िे्त ा। इस दमटटी में जो टहदनयाँ, पदत्याँ आदि थीं वे ्तो सड़-गलकर ख्तम हो गईं मगर पेड़-पौधों की एक दनशानी आज भी बची है। यह है उनक े फूलों क े परागकण – पोलेन (pollen )। ये कण अतयदधक बारीक हो्ते हैं और आसानी से नषट नहीं हो्ते। दमटटी से परागकण अलग करना हर से ग्ाम दमटटी उसे दशयम हाइड्ॉकसाइड नामक रसायन क े घोल में उबाला जा्ता है। परागकण न्य िाथमों अलग जा्ते और साथ ही अन्य जैदवक पिाथ्स गलकर ख्तम हो जा्ते हैं। दिर इसे हाइड्ोफलोदरक अम्ल क े घोल में साि दकया जा्ता है। परागकण जीवा्म हो चुक े हो्ते हैं दजस कारण इनमें दसदलका नामक पिाथ्स जम जा्ता है। दसदलका से परागकण को अलग करने क े दल ए इस अम्ल का उपयोग दकया जा्ता है। सूक्मिशती से अवलोकन करने क े दलए इन कणों को एदसटोलाइदसस नामक प्रदक्रया से गुज़ारा जा्ता है ्तादक कण बड़े और पारिशती दिखें। दिर इन्हें दगलसदरन क े घोल में रखा जा्ता है। दवदभन् पौधों क े परागकणों को पहचानने और उनकी दगन्ती करने क े दलए दवशेष क ै मरे का उपयोग दकया जा्ता है। अब यह ब्ताया जा सक्ता है दक उस िौर में ्तालाब दकनारे दक्तने ्तरह क े पेड़-पौधे थे। कौन-से अदधक और कौन-से कम थे, आदि। ये जानकादरयाँ बहु्त महतव की हैं कयोंदक इनसे हम उस समय की जलवायु का अन्िाज़ा लगा सक्ते हैं। जैसे दक, अगर कहीं क े वल घास उगी हो और पेड़ों क े दनशान नहीं हों ्तो हम यह कह सक्ते हैं दक उस समय वषरा घास लायक ्तो थी मगर पेड़ लायक नहीं। जो पेड़ अदधक वषरा वाली जगहों पर हो्ते हैं वो कम वषरा वाली जगह या बहु्त ठणडी जगह पर नहीं हो्ते हैं। यानी पेड़-पौधे खास जलवायु में ही हो्ते हैं। अ्तः पेड़ों क े प्रकार से हम समझ सक्ते हैं दक उस जगह उस समय बादरश अदधक थी दक कम, ठणड और गमती क ै सी थी, आदि। अब िेख्ते हैं दक कमर और चौहान साहब ने दनटाया ्तालाब क े बारे में कया प्ता लगाया। सबसे दनचले पर स्तह लगभग से 240 सेमी नीचे) जो जैदवक अवशेष दमले वे आज से लगभग 12,700 से 7500 साल पुराने थे। उस समय की जलवायु आज से बहु्त िक ्स थी। उन दिनों यहाँ घास-फूस अदधक थी और पेड़ बहु्त कम। जो इकक े -िुकक े पेड़ थे वे ज़याि ा्तर बबूल क े थे। इसका म्तलब है दक उस िौर में वषरा बहु्त कम हो्ती थी और ठणड अदधक थी। ठणडे प्रिेशों में उगने वाले चीड़ और िेविार क े परागकण भी पाए गए। यानी यहाँ पास में ही ऐसे पेड़ उग रहे होंगे या दिर िूर दहमालय से चलने वाली हवाओं क े साथ वे 17 दनटाया आए। पानी में या दकनारे क े िलिलों में उगने वाले पौधों क े परागकणों क े अनुपा्त से अनुमान लगाया जा सका है दक ्तालाब का दवस्तार सामान्य था, न छोटा न बड़ा। इस िौर घास-फूस दधक ्ती और ड़ कम थे। ्तो शायि ्तालाब क े पास ऐसी भी घासें उग्ती होंगी दजनक े बीजों को खाया जा सक्ता था। कमर और चौहान साहब ने पाया दक आज से लगभग 9000 साल पहले खाने योगय घासों क े परागकणों की संखया में वृदद् दिख्ती है। इससे वे अनुमान लगा्ते हैं दक शायि इस समय वहाँ रहने वाले मनुषय खे्ती करने लगे हों। दिर.... मौसम बिलने लगा। बािल उमड़-घुमड़कर आने लगे। गमती ढ़ी ्तो िूर िदक्णी से ्तेज़ चलने लगीं। उन पर सवार होकर बािल आने लगे, बरसने लगे। यह बा्त है आज से 7150 साल पहले की। ्तालाब में लगभग 185 से 145 सेमी नीचे वाले स्तर में अदधक वषरा और गमती क े इलाकों में उगने वाले पेड़ों क े परागकण ज़यािा दमले हैं। इनमे बबूल क े अलावा महुआ, साज आदि सिाबहार पेड़ शादमल हैं। पानी वाले पौधों की मात्रा, खासकर दसंघाड़े की उपदसथद्त से लग्ता है दक ्तालाब का आकार कािी बड़ा हो गया था। िलिली पौधे भी खूब पनप रहे थे दजससे लग्ता है दक बड़े ्तालाब क े दकनारे पर कािी िलिली ज़मीन भी थी। साथ ही मनुषयों की गद्तदवदधयों में बढ़ोत्री क े भी प्रमाण दमले हैं। अनाज वाली घास क े परागकण ्तो लगा्तार बढ़ने लगे, मगर साथ ही ऐसे पौधों की उपदसथद्त भी बढ़ी दजन्हें जानवर नहीं ्ते यानी दक अदधक क े क े वल वे ही पौधे िल-फूल पाए दजन्हें जानवर नहीं खा्ते थे। अनाज का बढ़ना और चराई का बढ़ना िोनों मनुषय द्वारा खे्ती और पशुपालन करने की ओर इशारा कर्ते हैं। यानी में नया ड़ ्ता बड़ा-सा ्तालाब, आसपास िलिल और घने जंगल। गमती में महुआ क े इकटठा और ड पानी डुबकी लगाकर दसंघाड़े ्तोड़ने े दलए चों बड़ों टोदलयाँ लेकर ्ती यहाँ-वहाँ ्त पाल्तू दरयों े ड। िलिलों गैंडे जानवरों का दशकार भी। कुल दमलाकर आज से 7000 से 4650 साल पहले ्तक मौसम सुहाना था, वषरा पयराप्त और अदधक ड, अदधक मती। िमगढ़ चटटानों में हम गैंडे का दशकार, इन पाल्तू गाय, बकरी आदि क े दचत्र िेख सक्ते हैं। आज से 4500 साल पहले जलवायु कुछ बिलने लगी - 145 से 100 सेमी की गहराई वाली पर्तों में वषरा कम होने क े प्रमाण दमल्ते हैं। ्तालाब शायि कुछ छोटा होने लगा था और पास क े िलिल सूखने लगे थे। जंगल भी कुछ कम घना हुआ और पेड़ों क े बीच खुली जगह और उनमें घासों की मात्रा बढ़ने लगी। यह पदरदसथद्त आज से लगभग 2800 पहले ्तक बनी रही। उसक े बाि (यानी, 800 ईसा पूव्स) बादरश अदधक होने लगी। जंगल दिर से घना होने लगा और उसमें उगने वाले पेड़ों में दवदवध्ता बढ़ी। स्तह से 100 से 70 सेमी की वाली पर्त पहली सागौन े परागकण दमलने लग्ते हैं। जंगल क े घने हो्ते-हो्ते घासों की त्रा होने मगर य द्वारा ्ती दकसी प्रकार की कमी नहीं दिख्ती है। िरअसल आज से 2800 से 1150 साल पहले (यानी, 800 से 850 ईसा पूव्स) खे्त ी क े ि ै लने क े प्रमाण दमल्ते हैं। बादरश क े बढ़ने क े साथ और खे्ती क े दवस्तार क े कारण शायि दमटटी कटकर ्तालाब में जमा होने लगी और ्तालाब क े इि्स- दगि्स िलिल-सी बन्ती गई। िलिल में उगने वाले पौधों की मात्रा अदधक दिखने लग्ती है। 3 सागौन 4 बबूल 5 घास 6 अनाज 18 इन हज़ार सालों में लोगों क े जीवन में बेहि बुदनयािी पदरव्त्सन लगे। िमगढ़ े दचत्र वहाँ उतखनन दमली ी े य गंगा से नम्सिा घाटी की ओर राजा-महाराजाओं क े घुड़सवार सैदनक राजा-महाराजा ि दथयों सवार होकर उनका यहाँ े समुिायों हुआ। राजाओं की हुकूम्त नम्सिा घाटी पर बनी और यहाँ क े लोग उन राजाओं को लगान और जंगली उतपािन पहुँचाने लगे। अब उन पर खे्ती बढ़ाने का िबाव बना। अब लौट्ते हैं ्तालाब पर। सबसे ऊपरी पर्त (स्तह से 30 सेमी गहराई वाली) क े अधययन से प्ता चल्ता है दक दपछले हज़ार-बारह सौ सालों में पहले से कुछ कम वषरा हो्ती रही है मगर आजकल क े दहसाब से सामान्य। ्तापमान भी पहले से कुछ अदधक गरम हुआ है। साथ ही खे्ती क े दलए घने जंगल कटे हैं और खुले मैिान खे्त बने हैं। जो पेड़ बने रहे, वे ज़यािा्तर महुआ और बबूल क े हैं। खे्ती क े चल्ते ्तालाब भी पुरा गया और उस पर खे्ती होने अब अंशमात्र हुआ लेदकन ज़मीन े जलस्तर होने े ्तालाब क े आसपास िलिल बना रहा। दपछले हज़ार साल का इद्तहास ्तो हम जान्ते ही हैं। पुराने आदिवासी समाज यहाँ खिेड़ गए उनकी पूण्स से खे्ती पर आधादर्त समाज यहाँ आकर बसे हैं और अपनी आजीदवका यहाँ की दमटटी से पा रहे हैं। 7 भीमबैठका गैंडे का दशकार 8 आिमगढ़ कूबड़ वाला बैल 10 उरडेन का शैल दचत्र – िसल की कटाई 11 आिमगढ़ बकरी चक मक 19 हमारा घर पहली मंदज़ल पर है और उसक े ऊपर खुली छ्त भी है। हम सब एक कमरे में ही रह्ते हैं, उसी घर में एक कोने में टेबल पर टीवी रखा है। उसक े सामने बैड रखा है, दजस पर बैठकर हम टीवी िेख्ते हैं। मेरी मम्मी ने एक कपड़ा बुना था, उसे उन्होंने टीवी क े ऊपर रख दिया। मम्मी रोज़ टीवी को कपड़े से साि कर्ती हैं। और उसे दबलकुल नया बनाकर रख्ती है। मेरे घर में जब मैं छोटी थी ्तभी से टीवी है, पर बुरी बा्त यह है दक वो ्तभी से खराब पड़ा था। पर जब मैं िस साल की हुई ्तो मम्मी ने टीवी ठीक करा दिया। टीवी ठीक हो जाने की खुशी ्तो थी पर टीवी की वजह से हम बहन-भाइयों रोज़ ड़ाई लगी। िीिी मस्ती चैनल पर गाने सुनना अचछा लग्ता है, ्तो वो कह्ती मैं गाने सुनूँगी ्तो भैया कह्ते मैं सीआईडी िेखूँगा और मुझे CN पर रॉल नम्बर 21 िेखना हो्ता था, ्तो मैं कह्ती मैं काटू्सन िेखूँगी, ऐसे ही हममें रोज़ लड़ाई हो्ती। एक दिन मम्मी को गुससा आ गया और उन्होंने कहा “अब से टीवी कोई नहीं िेखेगा। अब टीवी बन्ि रहेगा।।” उस दिन दकसी ने भी टीवी नहीं िेखा। मम्मी ने टीवी बन्ि करा दिया ्तो लगा घर में कोई नहीं है। अगर टीवी में गाने चल रहे हो्ते ्तो सभी मस्ती में आ जा्ते। अगर कोई सीरीयस प्रोग्ाम चल रहा हो्ता ्तो अगर कोई टीवी क े पास भी न हो्ता ्तो वो भी टीवी में कया चल रहा है, ये जानने की कोदशश कर्ता। उस दिन जब मम्मी ने टीवी बन्ि दकया ्तो िीिी ने गुससे में खाना भी नहीं खाया। कयूँदक टीवी िेखे बगैर उसका खाना पच्ता कहाँ था! दिर हमारी यह हाल्त िेखकर मम्मी को हम पर ्तरस आ गया। और मम्मी ने कहा, “अब से मैं टाइम बना रही हूँ। ्तदनषका सुबह सकूल जा्ती है ्तो सुबह टीवी दशवम िेखेगा दिन दशवम सकूल ्ता ्तो ्तदनषका टीवी िेखेगी। दशवानी दिन में पाल्सर जा्ती है, ्तो शाम को टीवी वो िेखेगी।।समझे! अब अगर दकसी ने लड़ाई की, ्तो मैं हमेशा क े दलए इस टीवी का बकसा बन्ि कर िूँगी। सब अपने ही टाइम पर टीवी िेखेंगे।” उस दिन से ्तो लड़ाई नहीं हुई पर संडे क े दिन मेरे सकूल की छुटटी हो्ती है और भैया की भी और िीिी क े पाल्सर की भी। संडे क े रोज़ दिर लड़ाई हो्ती। दिर मम्मी ने हमे डाँटा दक जैसे मैंने िेखने टाइम था क े भी वैसे ही िेखोगे। हमने कहा ठीक है मम्मी। उस दिन भी हममें लड़ाई नहीं हुई, पर उसक े अगले दिन दिर वही दचकदचक। टीवी - दक्तना िूर दक्तना पास पक्ा, नहीं लड़ोगे! तननष्ा 20 एक दिन मैं टीवी िेख रही थी ्तभी अचानक टीवी फूँक दिर म्मी भी ठीक कराया। िो-्तीन दिन बाि हमने मम्मी से कहा, “मम्मी टीवी ठीक करा लो।” ्तो मम्मी ने कहा, “नहीं अब मैं इसे ठीक नहीं कराऊँगी, ्तुम लोग दिर लड़ोगे।” हमने मम्मी से कहा, “मम्मी हम अब नहीं लड़ेंगे, पलीज़ टीवी ठीक करा लो।” ्तो मम्मी ने मुसकरा्ते हुए पूछा, “पकका नहीं लड़ोगे?” हमने कहा, “पकका पकका! हम नहीं लड़ेंगे!” दिर मम्मी ने टीवी ठीक करा दलया और हम मम्मी क े बनाए टाइम से टीवी िेखने लगे। और दिर हममें कभी लड़ाई नहीं हुई। पर जब भी िीिी या भैया टीवी िेख्ते ्तो लग्ता दक दरमोट छीनकर खुि टीवी िेख लूँ।। पर हम मम्मी क े कभी ड़ाई कर्ते। यूँदक मम्मी को प्ता चल्ता ्तो मम्मी दिर टीवी बन्ि करवा िे्ती। अब ्तो टीवी क े बगैर रहना नामुमदकन सा लग रहा था। कयूँदक जब भी टीवी खराब हो्ता ्तो लग्ता जैसे घर का कोई सिसय िूर हो गया हो... कयूँदक जैसा िुख घर क े सिसय से िूर होने का हो्ता है वैसा ही टीवी क े खराब होने पर भी हो्ता है। टीवी भी घर क े सिसय की ्तरह लग्ता है। एक दिन मैं टीवी िेख रही थी ्तभी उस पर एक अजीब-सा चैनल आ गया। मैं उसे िेखने लगी टीवी में जो लोग दिख रहे थे वो कुछ अजीब-सी भाषा में कुछ कह रहे थे। मुझे उनकी भाषा समझ ्तो नहीं आ रही थी, पर उसे िेखने में मुझे बहु्त मज़ा आ रहा था। ्तभी मम्मी छ्त से कपड़े उ्तारकर आई, ्तो मम्मी ने कहा, “यह कया िेख रही है? ्तुझे कुछ समझ भी आ रहा है?” ्तो मैंने कहा, “मम्मी मुझे इसकी भाषा ्तो समझ नहीं आ रही, पर िेखो ना दकत्ी हँसी आ रही है।” जब मम्मी ने िेखा ्तो मम्मी को भी हँसी आने लगी। इसक े पहले मम्मी कब टीवी िेख्ती है, दक्तना िेख्ती है, मैंने इस पर धयान ही नहीं दिया था। दिर मम्मी भी मेरे पास ही बैठ गई और मैं और मम्मी बहु्त िेर ्तक वो प्रोग्ाम िेख्ते रहे। मुझे मम्मी को टीवी िेखकर बहु्त खुशी हो रही थी। अब ्तक ्तो हमने सोचा ही नहीं था दक मम्मी का भी टीवी िेखने का मन कर्ता होगा। इ्तने में िीिी आई और मुझसे दरमोट छीना और दिरम लगाकर िेखने लगी। मैंने कहा, “मुझसे दरमोट कयूँ छीना और वो प्रोग्ाम कयूँ हटाया?” ्तो िीिी ने कहा, “्तुझे कुछ समझ भी आ रहा था उस प्रोग्ाम में?” मैंने कहा, “समझ नहीं आ रहा ्तो कया हुआ, लेदकन िेखो मुझे और मम्मी को दक्तनी हँसी आ रही है।” िीिी ने दचढ़्ते हुए कहा दक चुप बैठी रह और मुझे दिरम िेखने िे। मैंने भी कहा लो अब ्तुम्हीं टीवी िेखो, ये कहकर मैं अपनी सहेदलयों क े साथ नीचे खेलने चली गई। चक मक पदरचय 11 साल की ्तदनषका, राजकीय सववोिय कन्या दवद्ालय, ई बलॉक, नंि नगरी, दिरली-93, छठीं कलास की छात्रा हैं। पाँच सालों से अंकुर की दनयदम्त दरयाज़क्तरा है। इन्हें कहादनयाँ पढ़ना और दलखना पसंि हैं। चचत्र: नीलेश गहलोत 21 तुम्ारे घर में कौन-कौन रहता है? घर में मेरे साथ रहते हैं... ्तुम्हारे घर में ्तुम्हारे साथ कौन-कौन से जीव रह्ते हैं? दक्तने जीव उसी छ्त क े नीचे रह्ते हैं? यदि ्तुमने खुि को, अपने दरवार े िसयों पाल्तू को दगनने क े बाि दगन्ती बन्ि कर िी हो, ्तो एक बार दिर सोचना। फील्ड डायरी चलो प्त ा कर्त े हैं दक ्तुम्हारा घर जैव दवदवध्ता का क ै सा अडडा है। ्तो कयों न ्तुम्हारे घर की ्तलाशी हो जाए? हाथ में एक डायरी और एक पेंदसल ले लो और अपने घर व बगीचे का चककर लगाओ। यदि ्तुम दकसी बड़ी इमार्त क े फलैट में रह्ते हो ्तो अपने फलैट और इमार्त क े आसपास चककर लगाओ और इमार्त की साझा जगहों (जैसे सीदढ़यों और बगीचे) में भी ्ताक-झांक करो। िश्स, िीवारों, कोने-नुककड़ों की खाक छानो। जब भी कोई सजीव दिखे, अपनी डायरी में नोट करो और उसका थोड़ा दववरण भी दलखो। कया कोई ऐसी भी चीज़ दमली दजसे ्तुम नहीं पहचान पाए? यदि जीवों को पहचानने में मिि की ज़रूर्त हो ्तो हमें उसका थोड़ा दववरण, दचत्र या िोटो भेजो। अपने घर की जैव दवदवध्ता की ्तुलना अपने िोस्त क े घर से करो। कया उनमें कोई अन््तर है? ्तुम्हारे खयाल में इस अन््तर क े कया कारण हो सक्ते हैं? 22 हॉटस्ॉट शायि ्त ुमने कहीं सुना या पढ़ा हो दक जैव दवदवध्ता क े हॉटसपॉट हो्ते हैं। हॉटसपॉट उन क्ेत्रों को कह्ते हैं जहाँ अन्य जगहों क े मुकाबले जीवों की ज़यािा दकसमें पाई जा्ती हैं और साथ ही उन पर ख्तरा मँडरा रहा हो्ता है दक शायि वे खतम हो जाएँगे। आम ्तौर पर इनमें से जीव ड़े न््तु पौधे) और पाए ्ते। ख्तरा यह हो सक्ता है दक उन्हें अपने जीवनयापन क े दलए दमलने वाली जगह कम हो्ती जा रही हो। या हो सक्ता है दक वे दजस ्तरह क े जंगलों या घास क े मैिानों में रह्ते हैं, उनमें बिलाव आ रहा हो। या शायि वहाँ कोई बीमारी ि ै ल रही हो या उनका दशकार दकया जा रहा हो। िदक्ण भार्त का पद्चमी घाट जैव दवदवध्ता का एक हॉटसपॉट है। यदि दसि ्स पेड़-पौधों की बा्त करें, ्तो यहाँ 5000 अलग-अलग दकसम क े पेड़-पौधे पाए जा्ते हैं और 1500 दकसमें ्तो दसि ्स यहीं पाई जा्ती हैं। हमें चकमक क े प्ते पर दलखकर ब्ताओ दक कया ्तुम अपने घर की जैव दवदवध्ता को बिलना चाहोगे और कयों? ्तुम कौन-से जीवों को हटाना चाहोगे या जोड़ना चाहोगे। और ऐसा क ै से करोगे? अपने दवचार हमें भेजो! नेचर क ाॅन्ज़वज़ेशन िाउंडेशन द्वारा दवकदस्त 23 दपछले में बुद् कुछ नायाब मूद्त्सयों बा्त थी। दव्व द्त्सकला े द्तहास बुद् े अलावा भी अनेक मूद्त्सयाँ दमल्ती हैं, जहाँ लोगों की शरीर-रचना (anatomy ) को इस ढंग से ्तराशा गया है दक हम उनमें भूखों या अकाल पीदड़्तों को िेख पा्ते हैं। गरीबी और का म्बा द्तहास और दव्व मूद्त्सकला भी इसका साक्ी रहा है। दव्व इन तकृषट द्त्सयों कम चरा है, ि दलए दक राजाओं-महाराजाओं की न होकर अनाम, आम सत्री-पुरुषों की मूद्त्सयाँ हैं! आज हम कुछ ऐसी ही मूद्त्सयों को दबना दकसी सन्िभ्स क े 'िेखने' की कोदशश करेंगे। दो नायाब शशल्प अशोक भौनमक दचत्र 1 प्राचीन इदजपट (दमस्र), िीवारों पर उक े री मूद्त्सयों (relief ) क े दलए उ्तना ही दवदशषट है दज्तना अपने दपरादमडों क े दलए। िीवारों पर उक े री हुई ऐसी ही एक प्राचीन मूद्त्स में हम कुछ अकाल पीदड़्तों को िेख पा्ते हैं। यहॉं इन भूखे सत्री-पुरुषों की शरीर-रचना हमें आ्चय्सचदक्त कर्ती है कयोंदक यह अकाल से पीदड़्त लोगों का कोई यथाथ्स दचत्रण नहीं है। इन लोगों का दसर, शरीर क े अनुपा्त में कािी बड़ा है। उन सभी क े गि्सन क े नीचे का दहससा न क े वल चौड़ा ही है, कमर क े पास शरीर असवाभादवक सँकरा भी है। इसक े अलावा इनकी पसदलयाँ सीने पर न होकर कमर क े पास हैं। इन दवशेष्ताओं क े चल्ते इस मूद्त्स में हम प्राचीन इदजपट की कला की खास शैली को पहचान पा्ते हैं, जो आज से ्तीन हज़ार सालों से भी ज़यािा प्राचीन हो्ते हुए भी अपनी संरचना में 'आधुदनक' लग्ती है। इस मूद्त्स का एक और दिलचसप पक् है! इदजपट, दव्व की सबसे लम्बी निी – नील निी क े दकनारे बसे होने क े कारण, हज़ारों सालों से उपजाऊ ज़मीन और कृदष क े अपने उन््त ्तरीकों क े दलए जाना जा्ता रहा है, इसदलए यह मान लेना कदठन है दक यहॉं कभी अकाल भी पड़ा होगा। कई इद्तहासकारों का मानना है दक यह मूद्त्स, इदजपट की न होकर दकसी अन्य िेश क े अकाल का दचत्रण है। बहरहाल, दचत्रण दकसी िेश का कयों न हो, यह दचत्र अपनी सािगी और शरीर-रचना क े अदभनव प्रयोग क े दलए हमें आकदष्स्त कर्ता है, और हम इसे दकसी िेश, काल, सथान या दकसी घटना से जोड़े बगैर भी इसक े कला गुणों से पदरदच्त हो पा्ते हैं। 24 दचत्र 2 ऐसी ही एक टेराकोटा (दमटटी की पकाई गई) मूद्त्स अमरीका क े मेट्ोपोदलटन म्यूदज़यम में संरदक््त है। यह मूद्त्सपटल पाँचवीं सिी में क्मीर इलाक े में बनी थी। ऐसा लग्ता है दक गीली दमटटी पर सॉंचे को िबाकर इसे ्तैयार दकया गया है। यह मूद्त्सपटल ऊपर से नीचे, ्तीन दहससों में बँटी दिख्ती सबसे दहससे हम सत्री-पुरुषों क े जोड़ों को िेख पा्ते हैं जो न क े वल खुश दिख्ते हैं, अपने भरे-भरे चेहरों से कािी सवसथ भी लग्ते हैं। द्त्स े नीचे े दहससे कमल े फूलों से भरा एक सरोवर है, जहॉं उरलास में पंख िड़िड़ा्ते हुए कुछ हंस हैं। इन िोनों दहससों क े बीच क े अंश में हमें िो लोग दिख रहे हैं, दजनक े शरीर पर कोई कपड़ा नहीं है और शरीर-रचना से वे बेहि कमज़ोर दिख्ते हैं, साथ ही उनक े बालों की बनावट भी दभन् है। जालीिार क े बैठे खड़े?) लोगों क े शरीर का क े वल ऊपरी दहससा ही दिख रहा है जो पूरी मूद्त्स की संरचना में एक नया आयाम जोड़्ता है। यहाँ मूद्त्सकार ने क े वल शरीर क े ऊपरी दहससे े दरए लोगों दिखाया जबदक दचत्र में अन्य आकृद्तयों (हंस, कमल और िो कमज़ोर लोग) का पूरा दचत्रण दकया गया है। इसक े साथ-साथ इस मूद्त्सपटल में िो दवपरी्त भावों (हष्स और दवषाि) को एक िेख ्त े जो दन्चय दकसी बड़े मूद्त्सकार की सृजनशील्ता का प्रमाण है। इन िोनों मूद्त्सयों को अगर आप धयान से िेखेंगे ्तो दन्चय ही आप को और कई नई बा्तें दिखेंगी। एक मूद्त्स को समझने क े दलए, उसकी भवय्ता को अनुभव करने क े दलए बस उसे 'िेखना' ज़रूरी है। दचत्रकला को िेखने क े इस नज़दरए को अपने अन्िर हम खुि ही दवकदस्त कर सक्ते हैं। चक मक 25 उस ड़दन वीरेन्द्र दुबे गाँव क े बचचे ्तालाब में कूि-कूिकर नहा रहे थे। नावें ्तालाब क े बीच ्तैर रही थीं। उनमें बैठे लोग दसंघाड़े ्तोड़ रहे थे। अचानक ्तालाब का पानी बि ्स की ्तरह जम गया। नहा्ते चे क े -बकक े गए। ्तैरना पानी स्त ह िौड़ने उनक े िाँ्त दकटदकटा रहे थे। नावें जहाँ की ्तहाँ दठठककर रह गईं। उघारे-पुघारे बचचों ने िौड़कर गाँव में खबर िी। वहाँ द्तलदमला िेने वाली लू चल रही थी। खबर ि ै ल्ते ही हर कोई ्तालाब की ्तरि िौड़ पड़ा। ्तालाब को घेर दलया। ठणडी हवा क े हरक े झोंक े चलने लगे। शाम ्त क क े की ड़ हो गई। मेला लग गया। लू ठणडक में बिलने लगी। भीड़ की गमती से ्तालाब की बि ्स दपघलने लगी। सबेरे ्तक ्तालाब ठणडे पानी से लबालब भर गया। नहाने को में वालों े छूट गए। दसंघाड़े भरी क े दसंघाड़े ्तक लोगों क े बाँटे नहीं आए इ्तनी भीड़ थी। यह सब चमतकार क ै से हुआ? हर कोई बस यही एक चचरा कर रहा था। चचत्र: मयूख घोष चक मक 26 27 चक मक कहती कोको एक कहलानी एक लड़की है रेशम रलानी। गगटकपट-गगटकपट बलात बनलाती हलाथ दह ललाती, मुँह मटकलाती। आती है वह बलाल तबखेरे कं खूब मचलाती चीखला -चचल्ी लड़की है क क बलागड़ तबल्ी। रेशम रानी कमला बकाया चचत्र: अतनु रॉय 28 SÉÖ{{ÉÒ VÉMɽ EòÉä ÊSÉ]Âõ`öÒ ववनोद कु प्रकृद्त बड़ी आदवषकारक है। उसका एक बड़ा आदवषकार मनुषय है। प्रकृद्त ने दक्तने आदवषकार दकए इसकी दगन्ती नहीं। और मनुषय प्रकृद्त दक्तना ट दकया, इसकी भी दगन्ती नहीं। मौन सबक े मौन की ्तरह है। चाहे वह छोटू का मौन हो या लम्बे डगवाले लड़क े का। पशु-पक्ी का मौन मनुषय क े मौन की ्तरह मौन प्रकृद्त े नज़िीक चले आ्ते हैं। िेखू की दृदषट में धयान से िेखना रह्ता था। वह सूक्मिशती था। जो िूसरे िेख नहीं पा्ते थे, िेखू िेख ले्ता। िेखू, बोलू से बड़ा था। बोलू अपने अदधक बचपने क े साथ बड़ा हो रहा था। चुपपी जगह साल े भी बहु्त थे। साल का एक बड़ा पेड़ जो नाले क े दकनारे उसकी ्त-सी नाले े पार े दकनारे ्तक गई थीं। कुछ शाखाएँ नाले क े पार हैं, ऐसा भी ्ता जो चुपपी पार कर गई हैं उसमें भी पक्ी बैठे हो्ते। लेदकन, दचदड़यों े से प्ता नहीं चल्ता था दक कलरव में उस डाल पर बैठी दचदड़यों का भी दहससा है। प्रेमू ने इस बा्त का प्ता लगाने का बीड़ा उठाया। पेड़ पर चढ़कर वह चुपपी वाली जगह को ऊपर ही ऊपर पार कर, डाल पर बैठे बोलेगा। उसका कहा सुनेंगे ्तो प्ता चलेगा। प्रेमू िुबला-प्तला था। पेड़ पर चढ़ने की उसकी आि्त थी। पेड़ पर चढ़कर वह उस शाखा पर आ गया था दजसका छोर चुपपी जगह पार चुका दखसक्ते हुए गहरी खाई वाली निी क े ठीक ऊपर पहुँच गया। पेड़ क े सारे पक्ी उड़ गए। पक्ी उड़कर इस ्तर ि गए या उस ्तरि हुए, इस पर दकसी का धयान नहीं गया। सबका धयान क े वल प्रेमू की ्तरि था। िेखू का भी धयान प्रेमू की ्तरि था। प्रेमू ने एक प्तली 29 सूखी डाली ्तोड़ी और उसे ऊपर से छोड़ दिया। टुकड़ा खाई क े बीचोंबीच नीचे चला गया। प्रेमू आगे दखसक्ता ्तो प्तली ्ते क े डाल नीचे झुक जा्ती। और झुककर नाले क े ्तरि ज़यािा हो जा्ती। ्तब भी प्रेमू आगे दखसक्ता गया। एक हाथ आगे ि ै लाकर िेख्ता गया दक कया हाथ खाई क े पार हुआ या नहीं। वह सावधानी से बढ़ रहा था। उसने दिर एक सूखी टहनी ्तोड़ी उसे में दगराया। टुकड़ा खाई में गया। वह आगे दखसक्त ा गया। डाल और अदधक झुक्ती जा रही थी। वह थोड़ा-थोड़ा दखसक रहा था। सुबोध ने कहा, “प्रेमू कुछ बोलो।” ऐसा लग्ता ज़रूर दक वह बोल रहा है। पर वह बोल नहीं रहा था। उसका सारा धयान अपने को बचाने और अपने आगे दखसकाने था। डाल ज़यािा झुक गई। ्तब प्रेमू, भैरा की ्तरि कूि जाने को सोच रहा था। पर पेड़ की डाल पर लेटे जैसे दखसक्ते हुए उछाल क े दलए उसक े पास कोई सहारा नहीं था। यदि वह डाल से हाथ छोड़्ता ्तो सीधे नीचे दगर्ता। प्रेमू को डाल क े ्तड़कने की आवाज़ नहीं आ रही थी। दकसी को नहीं। पर प्रेमू को लगने लगा था दक उसकी यह डाल कहीं से टूट रही है। वह दहम्म्त नहीं हारा था। हवा चलने लगी थी। ज़ोर की चलने लगी। सब सन् खाए हवा से प्रेमू को दहल्ता-डुल्ता िेख रहे थे। भैरा क े कन्धे पर िेखू चढ़ गया और प्रेमू क े नज़िीक जाकर उसक े हाथ को पकड़ लेना चाहा। हवा क े ्तेज़ चलने से प्रेमू झुकी डाल में और झूलने लगा। थोड़ा िेखू की ्तरि हो्ता, कभी पीछे नाले की ्तरि हो जा्ता। अचानक हवा का एक बड़ा झोंका आया और प्रेमू ने िेखू क े ि ै ले हाथ को आसानी से पकड़ दलया। ्तभी िेखू को लािे भैरा दगर पड़ा, प्रेमू सदह्त सभी धड़ाम से दगर पड़े। जब दगर पड़े ्तब खुशी से दचरलाए। प्रेमू जब ्तक डाल पर रहा डरकर वह बोल नहीं पाया या उसका बोलना सुना नहीं गया। और इसी बा्त को जानने वह चढ़ा था। बा्त जानी नहीं गई। प्रेमू ज़मीन पर कुछ िेर पड़ा रहा। दिर उठ गया। सब खुश थे दक कुछ बुरा नहीं हुआ। प्रेमू को बचाने क े दलए सब लोग कुछ न कुछ सोच रहे थे। यह भी सोचा गया दक जैसे पेड़ का पुल बनाया गया है वैसे वे लोग खाई क े िोनों ्तरि ज़मीन पर लेटे हाथ पकड़कर पुल बना सक्ते हैं या नहीं। सबसे पीछे वाले लड़क े लेटकर अपने पैर पेड़ से बँधवा ले्ते। पर रससी नहीं थी। लम्बे डगवाला लड़का हो्ता ्तो वह अक े ला कािी था। वह प्रेमू को कन्धे पर बैठाकर पेड़ की डाल पकड़ा िे्ता। िोनों दकनारे क े पेड़ पर रससी बाँधकर भी प्रेमू झूल्ते हुए नाले को पार कर बोल ्ता और नाले क े पार हो्ते ही अपने बोल को सुन या सुना सक्ता था। पर रससी नहीं थी। धैय्स भी नहीं था। वा्तावरण शान््त था। थोड़ी िेर बाि उन्हें हरकारे की घणटी आवाज़ हरकारा रहा िेखू िेखा हरकारा भी एक लड़का था। शायि अपने दप्ता क े बिले दचटठी बाँटने दनकला हो। उसक े दप्ता की ्तदबय्त खराब हो! हरकारा, कूना क े रोकने से रुक गया। वह धो्ती पहने था। नीले रंग की िीकी पड़ गई कमीज़ थी। कमर में एक घुँघरुओं वाला पटटा था। हाथ में डणडा था। डा था। दप्ता ही डा दसर नारंगी रंग क े अँगोछे को लपेटा था। वह अँगोछे में नर कोयल क े दचटटीिार पंख खोंसे हुए था। और खुँसा हुआ मािा कोयल का काला पंख भी था। लड़का हरकारे की वेशभूषा में अचछा लग रहा था। थक गया था। उसक े कन्धे पर बोरे का बना एक छोटा थैला टँगा था। रुका हुआ भी वह खड़े-खड़े उचक रहा था जैसे उसे जरिी है। “कया बा्त है, ठीक से रुक कयों नहीं जा्ते? सुस्ता लो,” कूना ने उसे उचक्ते िेख कहा। उचक्ते-उचक्ते उसने कहा, “मुझे जरिी है। दचटठी पहुँचानी है। ्तुमको बा्त करना है ्तो मेरे साथ िौड़्ते चलो। मुझे रोको म्त।” “हम यहीं खड़े-खड़े उचक्ते हुए थोड़ी िेर ्तुमसे बा्त करेंगे और ्तुम्हारा साथ िेंगे,” कूना बोली। सब उसे घेरकर उसी की ्तरह उचक रहे थे। इस साथ क े उचकने में घदणटयों की आवाज़ क े कारण उचकने का नृतय लग रहा था। लड़क े कहा, बाबूलाल की दचटठी पहुँचानी है। दप्ता ने कहा था खरगोश क े दबल में दचटठी डाल िेना। पर मैं उनसे दबल का प्ता पूछना भूल गया।” बोलू उचक्ते कहा, भी ्तुम्हें दकसी खरगोश का दबल दिखे उसी दबल में डाल िेना।” हरकारे ने कहा, “मुझे दबल ब्ता िो कहाँ है?” “चलो!” सब ने कहा। 30 हरकारे क े साथ सब िौड़्ते जा रहे थे। सुबोध कहा, िेखू, िेखो ्तो महराज की होटल खुली है कया?” िेखू चारों ्तरि िेखा। होटल नहीं दिखी। और वे उस जगह पहुँच गए थे जहाँ प्राय: बाबूलाल होटल खुलने पर दिख्ती है। पर िेखू ने खरगोश का एक दबल िेखा। सबने एक- िो, िो दबल िेखे। लड़का दबल क े बैठ उसने से दचदटठयों का बणडल दनकाला। बाबूलाल महराज की एक छोटी-सी हरे रंग की दचटठी थी। लड़क े ने दबल में उसे डाल दिया। सबने दबल में दचटठी डाल्ते उसे िेखा। जब हरकारा खड़ा हुआ ्तो दबल में दचटठी नहीं थी। हरकारे कहा, ्तो दचटठी दबल डाल िी।” कूना ने कहा, “हाँ, हम सबने िेखा।” सुबोध ने कहा, “मेरे घर की दचटठी हो ्तो मुझे यहीं िे िो।” हरकारे ने कहा, “होगी ्तो िे िूँगा।” बोलू ने कहा, “्तुम जाओ। हम भी जाएँगे।” हरकारे कहा, िेर रुकूँगा। दप्ताजी कहा दक जवाब जाएगा। उसको भी पहुँचाना।” कूना ने कहा, “उनका घर बहु्त िूर है। और प्ता नहीं कहाँ होंगे!” िेखू ने कहा, “लो जवाब आ गया।” दबल क े मुहाने एक पीले रंग की दचटठी थी। हरकारे ने उसे बणडल क े साथ रख दलया और वह िौड़्ते चला उसकी टी आवाज़ कुछ िेर आ्ती रही। बोलू कहा, मन एक दवचार रहा है दक कयों न हम लोग चुपपी जगह को दचटठी दलखें। और चुपपी जगह से कहें दक चुपपी ्तोड़ िे। जवाब की प्र्तीक्ा करें और जानें दक 31 चुपपी को या है। जवाब में चुपपी जगह से बोलने की आवाज़ सुनने में आ जाए।” “हाँ, यह हो सक्ता है,” भैरा ने कहा। “दचटठी दलखकर दकसको िोगे?” चन्िू ने पूछा। “दकसी पेड़ को िे िेंगे। यानी पेड़ क े नीचे रख िेंगे,” भैरा ने कहा। कूना ने भैरा से कहा, “्तुम जंगली भैंसे को दचटठी िे िेना।” इस पर सब ने गम्भीर्ता से दवचार दकया और दनण्सय दलया – 1. जगह को दचटठी दलखनी है जगह में जो हैं टठी उन सब की होनी है। 2. एक लम्बी-चौड़ी जगह को एक छोटी-सी दचटठी कया होगा उसका असर? 3. जगह भी कया पढ़्ती होगी? जगह में सकूल हो्ती है और सकूल में सब की जगह हो्ती है। 4. जगह क े बिले जो जवाब िे वह भी जगह का जवाब होगा उस जवाब को जगह की जगह का जवाब मानेंगे। 5. चुपपी जगह, कहना-सुनना अब ्तक ्तो बेकार हुआ मौदखक कुछ नहीं हुआ जो होगा होगा। 6. जगह को दचटठी दलखने जगह की दशला पर दलखेंगे टहनी पेंदसल से दलखा वह दशलालेख होगा। जगह ने दचटठी लेने से इन्कार दकया ्तो वापस नहीं लेंगे ला ज़मीन में धँसी रहेगी उसे चसपाँ रहने िेंगे। चक मक जारी... चचत्र: हबीब अली 32 मेरा पन्ा एक दिन मैं और मेरे पलापला, मम्ी और मेरी िीिी शलाम के बलाि आते वक्त हम ललाल गेट तक पह ु ँचे तो बह ु त ट् ैकफ क थला। तभी एक िम से पुललस ने सीटी बजलाकर िला ईं तरफ केलाहनों को रुकने को कहला। तभी एक कलार के स् ू टर खड़ला थला। तभी जैसे ही कलार वलाले ने ब्ेक मलारला तो स् ू टर वलाले अंकल स् ू टर पर से गगर गए। तभी वहाँ पर भीड़ लग गई। मेरे पलापला ने जैसे ही ि ेखला तो मेरे पलापला ने उन अंकल को उठलायला और उनके ू टर को भी उठलायला। जब पलापला ने गलाड़ी को उठलाकर रखला तो एक आिमी आकर उस गलाड़ी को ले जलाने लगला तभी मेरे पलापला उस आिमी के जलाकर उस गलाड़ी को ललाए। संतुकटि बलावस् कर, चौथी, केीय तवद्लालय ि ेवलास, मध्य प्रि ेश आँखों दे चचत्र: घनश्लाम, सलातवीं, केीय तवद्लालय, भुज, गुजरलात 33 उसका दोस्त बाघ था एक मेरला नलाथ थला उसकला िोस्त बलाघ थला बलाघ बह ु त थला अच्ला -अच्ला मन थला मेरला कच्ला -कच्ला लोगों ने ली बलात ठलान भगलाओ-भगलाओ इस बलाघ को लगतला है हमें इससे डर अगर नही भगलायला तो जलाएँगे मर इसललए बलाघ को छोड़नला पड़ला िोस्ती की डोर को तोड़नला पड़ला | रलाधेपलाल, मुस्लान संस्ला, भोपलाल, मध्य प्रि ेश मेरा पन्ा चचत्र: इनलामुललला, पाँचवीं, अजीम प्रेमजी तवद्लालय मलाटली, उत् तरलाखण्ड 34 चचत्र: सनेहला, धलारलावी आट ्ट रूम मुम्ब ई, महलारलाष्ट् एक मलालला थी और एक नीरज थला। िोनों एक- ि ू सरे केलाथ खूब लड़ ते थे। एक दिन मलालला को पोटली तमली। पोटली में बह ु त सलारी इमली थी। मलालला पोटली को घर ले गई। और नीरज केलाथ तमलकर इमली खलाने लगी। कफ र इमली की चटनी बनला ई और िोनों तमलकर इमली की चटनी खलाए। रलागगनी, मुस्लान संस्लान भोपलाल, मध्य प्रि ेश 35 चचत्र: इलशत, ग्लारह सलाल , तवद्लालय लशक्षांतर, गुडगाँव, हररयलाणला चचत्र: ि ेव, क क न्डरगलाड्ट न, इधला फलाउंडेशन मेरा पन्ा मेरा सबसे प्ारा खिलौना मुझे मेरा हािी बह ु ि पसन्द िा। जब भी मम्ी जािी िीं िो हािी ही ि िी िी। पिा नहीं िुम कहाँ गए। मेरे घर आने पर मुझे तमले ही नहीं। मैं अभी भी बह ु ि रोिी ह ू ँ जब मम्ी बाहर जािी हैं। -कीतिति बरेठा, आठवीं, सरोजजनी नायडू उ.मा.तवद्ालय, भोपाल, मध्य प्रदेश 36 एक दिन की बात है मैं गुलड़ीय गई थ़ी। वहाँ मेरी बड़ी माँ के़ी। तो अम़्ी बोलीं बेटा मि रसे जा तो मैं मि रसे गई। और मुझसे कोई भ़ी नहीं बोला। तभ़ी मैं फिर एक दिन मि रसे नहीं जाना चाह रह़ी थ़ी। तो अम़्ी बोलीं जा तो मैं रो-रोकर गई। तभ़ी मैं वहाँ पढ़ने लग़ी और हजरत बोले सब पाऩी प़ीने जाओ तो सब पाऩी प़ीने गए। तो मैं पाऩी प़ी रह़ी थ़ी तो एक लडकी बोल़ी ऐ लडकी इस टंकी से पाऩी मत प़ी। और मैं हजरत के तुम और फक धर से पाऩी प़ी लो। फिर मैं मि रसे में चल़ी गई और पढ़ने लग़ी। और बच्े भ़ी पढ़ रहे थे। तभ़ी अचानक एक चमगािड आ गया और सारे बच्े डरने लगे तो मैंने सोचा फक एक दिन अम़्ी कह रह़ी थीं फक अगर चमगािड आ जाता है तो बच्चों को बैठा ि ेते हैं। और मैंने वह़ी कहा फक सारे बच्चों बैठ जाओ। पर कोई नहीं बैठा। फिर चमगािड बच्चों केसर पर बैठ रहा था। मैंने चचल्ाकर कहा फक ि ेखो मैं बैठी ह ू ँ तो कोई चमगािड मेरे पास नहीं आ रहा है। तो सारे बच्े बैठ गए। फिर चमगािड भाग गया और सारे बच्े बोले तुम् ें हम गलत समझे। तुमने हमारी जान बचाई। थैंक यू। फिर मि रसे के ु त अच् ी हो। और फिर सब अपने घर चले गए। मैंने घर जाकर अम़्ी को सारी बात बताई और अम़्ी को भ़ी खुश़ी ह ु ई। मेरी बड़ी मम़्ी ने कहा बेट़ी तुम ऐसे ह़ी अपऩी सहे सलयचों की जान बचाना। फिर हम सब अपने घर वाफपस आ गए। -सम्ो ब़ी, पाँचवीं, राजकीय प्ाथम मक मवद्ालय, ससतारगंज- 2, उत्तराखण्ड चचत्र: रे लजनला, क क न्डरगलाड्ट न, इधला फलाउंडेशन मि रसे की िोस़्ी 37 चचत्र–आय्टन प्रधलान, तीसरी, तेजू पुस्तकलालय, अरुणलाचल प्रि ेश मेरा पन्ा हािी और चींटी एक हािी िा। वह कहीं जा रहा िा। रास्े में उसे एक चींटी तमली। उसने पूछा, “हािी भाई कहाँ जा रहे हो?” हािी घमण्ी िा। वह चींटी से बोला, “ िुम अपने काम से काम रिो मैं कहीं भी जाऊँिी भाई मैं भी िुम्ारे साि चलूँगी। अगर आपको कोई परेशानी ह ु ई िो मैं आपकेगी।” हािी बोला, “ िू मेरे क्ा काम आएगी? अपनी चचन्ा कर।” चींटी ने ज़्ादा जज़द की िो हािी उसे साि ले गया। रास्े में बह ु ि िेज़ िूफान आया। चींटी और हािी एक गुफा में घुस गए। िूफान से बह ु ि से पत्थर पहाडी से गगरने लगे। पत्थर गगरने से गुफा का मुँह बन्द हो गया। हािी ने पत्थर हटाने की कोजशश की लेक क न उससे पत्थर नहीं हटे। चींटी ने कहा, “ िुम परेशान मि हो। मैं कु िी ह ू ँ।” चींटी पत्थरों के ु ि से हाथियों को ले आई। सब हाथियों ने तमलकर पत्थर हटा द दए। िब से दोनों दोस् बन गए। -ई�वरनाि, रा. उ. प्रा. तवद्ालय टाडावाडा, सोलंक क यान, राजसमन्द, राजस्ान चचत्र: सोनू मलालवीय, चौथी, एस बी आश्रम, उज्ैन, मध्य प्रि ेश 38 मेरा पन्ा (बादल) 1. ऐनी के ड़डब्ों में कु तीन ड़डब्ों में बराबर-बराबर बटन हैं। एक ड़डब्े में उतने ही बटन हैं जितने वक इन 3 ड़डब्ों में नमलाकर और खरी ड़डब्े पहले ड़डब्ों में से एक के ड़डब्े में वकतने बटन हैं? 2. रेहान केिे हैं जिनमें से वह सबसे तेज़ दौिने वाले 3 घोिों को चुनना चाहता है। उसकेवल 5 ट् ै क हैं यानी वक एक बार में वह केिों की दौि करा सकता है। उसकेिों की वास्तववक गवत नापने का कोई साधन नहीं है। सबसे तेज़ दौिने वाले 3 घोिों का चुनाव करने के नलए उसे कम से कम वकतनी दौि ें करानी होंगी? 3. सारा केखिकी है जिसकी ऊँचाई व चौिाई 1 मीटर है। उससे बहुत रोशनी आती है। वह चाहती है वक खखिकी के आधे हहस्े को इस तरह बन्द वकया िाए वक नई खखिकी भी चौकोर ही हो और उसकी लम्ाई व चौिाई 1 मीटर हो। क्ा तुम उसकी कु मदद कर सकते हो? 4. िब कोई व्यचति अपने दाएँ हाथ में पानी से भरी एक बालटी उठाता है तो वह बाईं ओर थोिा-सा झुक िाता है। भला क्ोंे? 5. फटाफट बताओ वक - िब कोई कार आगे की ओर चलती है तो उसके पहहए घिी की हदशा में घूमते हैं या घिी की ववपरीत हदशा में? वबन पंखों केिता है वबन आँखों के दिए बॉकस 1 4 ्तक क े भरना। लग है पर अंक ही भरने हैं। अंक भर्ते समय हमें यह धयान है दक से ्तक क े अंक एक ही पंदक्त और स्तम्भ में िोहराएं न जाएँ। साथ ही साथ, बॉकस में ्तुमको चार डबबे दिख रहे होंगे। यान दक डबबों भी 1 से 4 ्तक क े अंक िुबारा न आएँ। कदठन नहीं है करक े ्तो िेखो, जवाब अंक ्तुमको दमल जाएगा। सुडोकू सुडोकू सुडोकू का िवाब 4 2 3 4 1 2 3 2 3 4 1 3 2 1 4 1 4 3 2 1 इस बार की माथापच्ी पह े शलयकों को हल कै ें ? जाने पेज 41 पर 39 नसक्ों के चार रियोग िोस्तो, ्तुम इन सरल प्रयोगों को करक े िेखो और हमें दलख भेजो दक कया हुआ और ्तुम्हारे अनुसार ऐसा कयों हुआ। ्तुम्हारे उत्रों पर हमारे दवज्ान सलाहकार अपनी राय िेंगे। 2. कका गायब सामग्ी: एक दसकका, पानी से भरा हुआ एक दगलास इसे ्तुम अपने िोस्तों क े साथ भी आज़मा सक्ते हो। एक दसकक े को अपनी हथेली पर रखो। अब दसकक े क े ऊपर पानी से लगभग भरा हुआ एक काँच का दगलास रखो। अपने िोस्तों को दगलास क े ऊपर से िेखने को कहो। उन्हें पानी क े अन्िर दसकका दिखाई िेगा। अब दसकक े को गायब करने क े दलए अपने िूसरे हाथ से दगलास को ढँक लो। और अपने िोस्तों से पूछो दक कया उन्हें दसकका अब भी दिखाई िे रहा है? 1. ने दसकक े ? सामग्ी: पानी से भरा हुआ एक दगलास और दसकक े पानी से पूरी ्तरह भरा हुआ एक दगलास लो। यदि ्तुम इसमें 1 रुपए का एक दसकका डालो ्तो कया दगलास से पानी बाहर दनकलेगा? करक े िेखो। (दसकक े को धयान से डालना ्तादक पानी बाहर न छलक े ।) कया दगलास में और भी दसकक े डाले जा सक्ते हैं (पानी छलक े दबना)? अनुमान लगाओ दक ्तुम पानी में ऐसे दक्तने दसकक े डाल सक्ते हो? यही प्रयोग साबुन क े पानी क े साथ भी करक े िेखो। 3. पैसे को िुगुना करना सामग्ी: एक दसकका, पानी से भरा हुआ एक साि दगलास और एक पलेट पानी से आधे भरे हुए एक साि काँच क े दगलास में एक दसकका डालो। दगलास क े ऊपर एक साि पलेट रखो ्तादक और कोई चीज़ दगलास क े अन्िर या बाहर ना जा पाए। अपने एक हाथ में दगलास को रखो और िूसरे हाथ से पलेट को अचछी ्तरह िबाओ। अब दगलास और पलेेट को एक साथ उलट लो। दसकका अभी भी दगलास में ही रहेगा लेदकन अब पलेट को छू्ते हुए रहेगा। अब दगलास क े नीचे की ओर साइड से िेखो। कया हुआ? यह िूसरा दसकका कहाँ से आया? अचरज में पड़ गए ना! 40 4. कागज़ का पुल सामग्ी: िो दक्ताबें, कागज़ की पटटी और दसकक े िो दक्त ाबें लो। उनक े ऊपर कागज़ की पटटी को इस ्तरह रखो जैसे दक वह िो दक्ताबों क े बीच का पुल हो। अनुमान लगाओ दक यह पुल 1 रुपए क े दक्तने दसककों का भार उठा पाएगा? करक े िेखो। कया हुआ? पुल एक भी दसकक े का भार नहीं उठा पाया? अब कागज़ को दचत्र में दिखाए ्तरीक े से मोड़ो। अब यह नया पुल दक्तने दसककों का भार उठा पाएगा? चचत्र : शुभम लखेरा इस की ी े शलयकों हल कै ें ? 1. मान ले्ते हैं दक पहले दडबबे में दज्तने बटन हैं वे x हैं। इस ्तरह हमारे पास ्तीन दडबबे हैं यानी उनमें कुल बटनों की संखया 3 x हुई। चौथे दडबबे में इन ्तीनों क े बराबर बटन हैं यानी 3x हैं। पाँचवें दडबबे पहले दडबबे े बटन यानी 1/2 x हैं। पाँचों दडबबों मौजूि को ड़ें ्तो 3x + 3 x + 1/2 x हुआ। यानी 6.5 x हैं। कुल बटनों की संखया हमें ब्ताई गई है जो दक 39 है। यानी 6.5 x = 39 है। यानी x को 6.5 से गुणा करने पर 39 बनेगा। ्तो अगर हम 39 को 6.5 से भाग िेंगे ्तो एक x क े बराबर होगा। यानी x = 39/6.5 = 6 हुआ। अब वापस दडबबों में जमाकर िेखें ्तो पहले ्तीन दडबबों में 6-6 बटन, चौथे दडबबे में 3x 6 यानी 18 बटन और पाँचवें में 6 का आधा यानी 3 बटन हैं। इन्हें जोड़ें ्तो 6 + 6 + 6 + 18 + 3 = 39 हैं। 2. घोड़ा िौड़ सबसे पहले पाँच-पाँच घोड़ों को िौड़ाएँगे दजससे िौड़ हमें ्तेज़ घोड़े दमल इनमें कौन ्तेज़ है यह जानने क े दलए इन पाँचों को एक बार िौड़ाएँगे और दवजे्ता को अलग कर लेंगे। 25 में यह ्तेज़ ड़ा इस िौड़ में िूसरे व ्तीसरे नम्बर में आए घोड़ों को अलग कर लेंगे। मगर हो सक्ता है दक सबसे ्तेज़ िौड़ने वाले घोड़े की टीम क े िूसरे और ्तीसरे नम्बर क े घोड़े इन िोनों घोड़ों से ्तेज़ हों। दलए हें इन िो ड़ों े िौड़ाएँगे। इन चार घोड़ों में से जो पहले और िूसरे होंगे उन्हें हम 25 घोड़ों में से िूसरे और ्तीसरे नम्बर क े ्तेज़ घोड़े मान सक्ते हैं। इस ्तरह से हम सा्त िौड़ों में ्तीन सबसे ्तेज़ घोड़ों को पहचान सक्ते हैं। 3. दखड़की इस ्तरह आधी दखड़की बन्ि करेंगे। 41 ववज्ापन D82783 11.01.2018 42 43 RNI क्र. 50309/85 डाक पंजीयन क्र. म.प्र./भोपाल/261/2018-20 रिकाशक एवं मुद्रक अरववन्द सरदाना द्ारा स्ामी रैक्स डी रोज़ाड़रयो केनलए एकलव्य, ई-10, शंकर नगर, 61/2 बस स्ॉप केरि. से रिकानशत एवं आर. केनसक्ुवरिन्ट रिा. नल. प्ॉट नम्र 15-बी, गोववन्दपुरा इंडस्ट्ट्यल एड़रया, गोववन्दपुरा, भोपाल - 462021 (फोन: 0755 - 2687589) से मुहद्रत। सम्ादक: सुशील शुक्ल आ गई िसल लावनी आ गई िसल लावनी कड़ी धूप से ्तेज़ हवा से हरी िसल में लाली ना काटो ्तो झड़ जाएँगी पकी-पकी सब डाली आ गई िसल लावनी आ गई िसल लावनी िसल काटने चली खे्त ले ले हाथों में हँदसया रूपी-धूपी मजिूदरन गा्ती जा्ती है रदसया आ गई िसल लावनी आ गई िसल लावनी ब्तरस ले ले काट रही है खे्त मालदकन रससो चार पाँ्त ले सबसे आगे है मजिूदरन जससो आ गई िसल लावनी आ गई िसल लावनी कटे पड़े में पड़ी हुई कुछ गेहूँ की लम्बी नदड़याँ दसला बीनने आईं लड़दकयाँ नभ से उ्तरी दचदड़याँ आ गई िसल लावनी आ गई िसल लावनी आ गई फसल लािनी रिभात चचत्र: कै 44