बाल विज्ान पत्रिका अप्रैल 2018 RNI क्र. 50309/85 डाक पंजीयन क्र. म.प्र./भोपाल/261/2018-20/प्रकाशन तिथि 28 मार्च 2018 मूल्य ₹ 50 ललल्ली घोड़ली नाचतली... खूब नाचतली ह रै ... अकसर पहलली िालली सुबह होने तक। 1 न्यू यॉर्क एर औरत – एर औरत रा बुत, एर हाथ में उठाए हुए चीथड़ेरा नाम है स्वतंत्रता रागज़ ऱे पऩ्े जिन् ें हम इततहास रा नाम द ़े त़े हैं, और दूसर ़े हाथ स़े दम घोंटती हुई एर बच्ी रा, िो हमारी धरती है – अरब क े कवि अदोविस की कविता 'न्यू्ाक ्क क े विए एक क़ब्र' का अंश सीवर्ा में सािों से चि रही िड़ाई िे विछिे साि बहुत ही भ्ािह रूि िे वि्ा| ्ह िड़ाई अभी तक जारी है| इसी ्ुद्ध क े विरोध में अििे घर क े टयूटे हुए मिबों से सीवर्ाई किाकार तममाम अज़म द्ारा बिा्ा हुआ सटेच्ु ऑफ विबटटी| स् ़े च्ु ऑफ लिबटटी मूर् ति कार: ्म्ाम अज़म 2 चनदा (एकिव् क े िाम से बिे) मिीऑर्कर/चेक से भेज सकते हैं। एकिव् भोिाि क े खाते में ऑििाइि जमा करिे क े विए वििरण- बैंक का िाम ि िता - सटेट बैंक ऑफ इंवर्ा, महािीर िगर, भोिाि खाता िमबर - 10107770248 IFSC कोर - SBIN0003867 कृि्ा खाते में रावश राििे क े बाद इसकी ियूरी जािकारी 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माथापच् ली 39 एक सूखे पेड़ की दुननया - दलीपालली शुक्ला 40 लचरि पह े ल ली 43 मच्छर और हाथली - सिवेश्वरदयाल सक्ेना 44 चित्र: शुभम लखेरा आवरण चित्र: प्रशान्त सोनी चींर्ली और हाथली स् ू र्र पर जा रह े थे। स् ू र्र का एक्क्ड ें र् हो गया। हाथली मर गया पर चींर्ली बच गई। क रै से ? कूूँवक, चींर्ली ने ह े लमेर् पहना था। 3 नािघर की आखखरी रकस्तरवदा! रप्रय󰇐वद चित्र: प्रशान्त सोनी 4 बाइस साि बीत चुक े हैं। िैद्यजी की मृत्ु हो गई है। सगीर बहुत रो्ा था। उसिे आवखर तक िैद्यजी की अथटी को कँधा वद्ा था। िैद्यजी की इचछा अिुसार वचता िर उिक े साथ रािण का दस वसर िािा मुकुट भी रखा ग्ा था। सगीर अब बयूढ़ा हो ग्ा है। उसक े घुटिों में दद्क रहता है इसविए विलिी घोड़ी क े साथ अब िाच िहीं िाता। एक वदि विलिी घोड़ी रोई तो सगीर िे उसे िाचघर में दे वद्ा। अब िह िाचघर क े हॉि की दीिार में टँगी रहती है। अकसर उसे बाँधकर मोहवसि बचचों को िाच वदखाता है। दरगाह िर चादर बेचिे क े साथ सगीर अब जिाज़े क े विए गैस बत्ी भी मुफत देता है। िाजिनती की माँ अब सोिखिाब गाँि में ही रहती हैं। िाजिनती क े विता िे मचचेनट िेिी की िौकरी छोड़ दी है। िह भी गाँि में रहते हैं। िहाँ अििे घर में रंग बिाते हैं। िाजिनती की माँ बचचों को वदि में िढ़ाती हैं। शाम को कहावि्ाँ सुिाती हैं। साि में एक बार िाजिनती और मोहवसि क े साथ रहिे आती हैं। साि में एक बार िो दोिों सोिखिाब उिक े िास जाते हैं। मोहवसि की अममी अििे िुरािे घर में रहती हैं। उनहोंिे िुरािा घर छोड़िे से इंकार कर वद्ा। अभी भी दरगाह िर चढ़ािे क े विए चादरें बिाती हैं। उि िर मन्नत ियूरी होिे की दुआ काढ़ती हैं। अभी भी अलिाह उिकी दुआएँ ज़रूर कुबयूि करता है। सगीर आज भी दुकाि िर उिकी बिाई चादरें बेचता है। उिकी आँखों से अब कम वदखता है इसविए चादरें अब कम बिाती हैं। मोहवसि रोज़ एक बार उिसे वमििे ज़रूर आता है। िादरी हेबर भी अब बयूढ़े हैं। चच्क से अिग रहते हैं। उिक े िास अििे िुरखों और अिध क े ििाबों क े बहुत-से वकससे िनदि ईसट वणर्ा ििी े िाचघर में अकसर बचचों को इिकी कहावि्ाँ सुिाते हैं। िाचघर का वहसाब-वकताब देखते हैं। सरकारी दफतरों में उसक े कामकाज को देखते हैं। कािा बचचा िे मुगगा मणरी और बफ ्क खािा खरीदकर मॉि बििा वि् ा है। उसकी विगाहें अब शहर की बची- -खुची िुरािी िर इिमें टोवर्ा वमि, िुरािा बस अडरा, िािर हाउस और मैकरॉबट्क असिताि है। का ि विगिि े उसकी यूख रफतार िों गए आसमाि े िह यूि... वचवड़्ा... हरे िेड़... ताज़ी हिा भी विगि रहा है। अब उसका िेट अन्न से िहीं इिसे भरता है। िुजयूमी की ज़ेबरे की खािें चोरी हो गई। तब से उसिे भविष् बतािा छोड़ वद्ा है। अब िीचे गलिे की दुकाि िर तराजयू से अिाज तौिता है। छुटटी क े वदि ठेिे िर अिाज रखकर सँकरी गवि्ों में आिाज़ िगाकर बेचता है। कभी-कभी कािा बचचा को गावि्ाँ देता है वजसिे दमिुखत में िाि वमच्क झौंककर उसकी आँतें हमेशा क े विए खराब कर दीं। तीतरिािे क े तीतर को जब से कुत्ा खा ग्ा उसिे तीतर िड़ािा छोड़ वद्ा है। अब िह ढीिे खटोिे िर बैठकर िुरािे वदिों की जुगािी करता है। अििे तीतरों की मोहबबत और िफादारी की ्ाद करक े रोता है। इि तीतरों की कब्र िर हर साि फूि चढ़ाता है| कविािी का मुकाबिा करिाता है। खुद जज बिता है। ईिाम में तीतरों की खुराक बोरों में देता है। शहर अब ‘िसीम जागो कमर को बाँधो, उठाओ वबसतर वक रात कम है’ की आिाज़ से िहीं जागता। एक वदि फाम्क हाउस में सयूि्किखा मरी वमिी। कािी वबलिी उसक े िास बैठी थी। सयूि्किखा को दफि करिा है ्ा जिािा ्ह कोई िहीं जािता था। उसकी वबलिी भी िहीं जािती थी। बहुत सोचिे क े बाद फाम्क हाउस क े िोगों िे िदी वकिारे उसे जिाकर उसकी अवसथ्ाँ दफि कर दीं। बाईस सािों में गंगा िदी में िािी बहुत कम हो ग्ा। अब िह िािा वदखती है। शहर की सारी गनदगी इसमें वगरती है। चमड़े की टेिवर्ों का ज़हरीिा क े वमकि िािा िािी इसमें वगरता है। जिाए गए मुददों की सारी गनदगी इसकी धार में जमा होती है। िदी में अब िािें िहीं चितीं। मलिाह िहीं गाते। कोई िदी से िहीं ियूछता तुमहारा घर कहाँ है? क्ा तुम कभी अििे घर िहीं िौटतीं? िाजिनती और मोहवसि िे शादी कर िी है। िाचघर की सीवढ़्ों से ऊिर जािेिािे िाजिनती क े घर में दोिों रहते हैं। उिकी एक प्ारी बचची है। उसका िाम उनहोंिे मेरिीि रखा है। िाचघर जब उिको वमिा, उिक े बड़े होिे तक िादरी हेबर िे उसकी देखभाि की। हीरों को बेचकर ियूरे िाचघर साफ-सफाई, मत िाई। उसका िुरािा िैभि िौट आ्ा िर अनदर उसकी बिािट में कुछ िहीं बदिा। अब िाजिनती और मोहवसि िाचघर 5 6 िक मक देखते उनहों िे वसफ ्क चों े विए िा्ा बचचों वकताबें बचचों े ््कक्रम हैं। चों गीत-कहावि्ाँ िाई हैं। वफलमें वदखाई हैं। बड़ी िाचघर े में फ ै सिे चे वमिकर िेते हैं। इसमें कोई बड़ा व्वकत िहीं है। बड़ों का कोई दखि िहीं है। िाजिनती और मोहवसि का भी िहीं। िे वसफ ्क िही हैं बचचे ् कर िेते उि िों िे शहर, हर कसबे में एक ऐसा िाचघर खोििा त् वक्ा है। िे इसे ियूरा करिे में िगे हैं। शहर तीि बों िे िाचघर खोि चुक े हैं। हर शाम िाचघर बचचों क े विए खुिा रहता है। िे िड़ते हैं, चीखते हैं, हँसते हैं, गिवत्ाँ करते हैं, ि े िंखों उड़ते क्ोंवक िाचघर उिका है। कभी-कभी वसि वि्ािो है। िाजिनती उसकी धुि िर िाचती है। िनही मेरिीि तावि्ाँ बजाकर हँसती है। ि -सी क े क े शों देखती है। िाचघर िैसा है। िािी घड़ी, बनद िाि इमिी वमि की ठणरी वचमिी, से िौटते िीिा आसमाि, वद्क्ों धयूि, ्तीमखािे े काईिािे बद... बरगद की जटाओं में फँसा चाँद, मज़ार िर बँधे मन्नत क े रोरे, चादरों िर कढ़ी प्राथ्किाएँ, िाओं दौड़ते यूखे ित्े, मसािों की गनध, आिाज़, फड़फड़ाहट, शंख धिवि, े िाचघर उसी तरह रह रहा है। िह भी बयूढ़ा हो ग्ा कभी-कभी क े े िेिि और सन्नाटे से घबराकर िाचघर खयूँटी िर टँगी विलिी घोड़ी को आिाज़ देकर जगाता है। विलिी घोड़ी खयूँटी से उतर आती िाचघर वि्ाँ है। विलिी घोड़ी िाचती... खयूब िाचती है... अकसर िहिी िािी सुबह होिे तक। खुदाहादफज़ नाचघर... िाजिनती और मोहवसि करीब दो साि िहिे चकमक क े िन्नों िर आए। तब से अब तक िे हमारे हमसफर बिकर िाचघर उिका वमििा, िहाँ िाचिा, उसकी वबक्री े में वचनता िा उिक े ज़वरए रेविि उस वि्ािोिादक े ार कहावि्ाँ... ऐसा िगता रहा वक ्े सब हमारे सामिे हमारे बीच घवटत हो रहा है। हम उिक े साथ मन्नत की चढ़ािे और माँगीं वक िाचघर वबक े िहीं और िह एक बदसयूरत बहुमंवज़िा इमारत ि बि जाए। हमें उिक े बीच वखिती मोहबबत से खुशी हुई और जब िाचघर वबकिे से बचा और िह शहर क े बचचों का अडरा बिा तब हमें बहुत तसलिी हुई। अब ्ह उिन्ास समापत हो रहा है तो भारी मि से हम इि दोिों को और िाचघर को भी अिविदा कह रहे हैं। उिन्ासकार वप्र्मिद िे िाजिनती, वसि िाचघर मािो वदि े अििे वचर-िवरवचतों शावमि िा वद्ा। अंक हम इनतज़ार करते रहे वक अब उिक े साथ क्ा होगा। हाँ, इसमें एक बड़ा हाथ वचत्रकार प्रशानत सोिी का भी रहा है। उनहोंिे ि क े िि इि िात्रों को रंग और रूि वद्ा, बवलक उस ियूरे माहौि को भी हमारे सामिे जीिनत बिा्ा, वजसमें िे िि-बढ़ रहे थे। हाँ, अिविदा कहते-कहते हमें इस बात की खुशी है वक िाचघर अब वकताब क े रूि में उििबध है – तक्षवशिा िे प्रकावशत वक्ा तक्षवशिा ििीठ े तहत ही वप्र्मिद िे इस उिन्ास को विखा था। नाचघर िेखकः वप्र्मिद, वचत्रकार: अतिु रा् मयूल्: रुिए 225/- प्रकाशक: जुगियू प्रकाशि, तक्षवशिा की प्रकाशि छाि, िई वदलिी ISBN: 978-93- 84375-23- 2 7 दसिीं की िरीक्षाएँ....... ्े िो वदि होते हैं जब हम हर तरह की भाििाओं से गुज़र रहे होते हैं। हमें हर िो काम ्ाद आता है हमिे ियूरे ि िहीं वक्ा हर चीज़, हर गािा जो सुििा है ्ा वफर हर िो वफलम वजसे िा सब िरीक्षाओं े वदिों ्ाद हैं। ि वदिों हम कई तरह की मािवसक वसथवत्ों से ज़रते मगर अििा-अििा तरीका होता है। कुछ िोग ऐसे भी होते हैं वजिक े विए िरीक्षा कोई बड़ी बात िहीं होती। िर मेरे विए िरीक्षाएँ अचछी िहीं साि क े उस िकत जब मौसम इतिा अचछा होता है तब घर में बैठकर वदि-रात िढ़िा िड़ता है। जहाँ िसनत क े सुगवनधत मौसम से गवम्क्ों का आगाज़ होता है, िहीं रात- रात जागिा शुरू हो जाता है। कोई सुबह जलदी िढ़ता वकसी-वकसी े घर िरीक्षा क े वदि खास ियूजा-िाठ वक्ा जाता है। कुछ वदि िहिे ही दीिांशी से मेरी बात हुई थी जो दसिीं की िरीक्षा देकर विकिी थी। गवणत िेिर उसिे कहा, “जब तक आि मि िगाकर ्ा मि से िढ़ हों िको समझ रहता है। वसफ ्क तब तक आि िढ़ाई कर रहे हैं। तो दोसत ियूरा-ियूरा वदि िढ़ते रहते हैं िेवकि उिका मि िहीं होता है।” दीिांशी बताती है वक िह ज्‍़्ादा िहीं िढ़ती। कोवचंग सेंटर जाती है। वफर घर आकर दो घणटे और िढ़ती है। वफर सो है। िह ििे ि िर िरीक्षा का िहीं रािती। कहिा वक मि तभी िढ़िा वहए। िर अगर मि ही िा िगे तो? असिी सिाि तो ्ही है। िरीक्षा ि विकिकर छात्र- छात्राएँ अििे दोसतों क े चेहरे िढ़ रहे होते हैं। बहुत ही रर क े साथ एक-दयूसरे से ियूछते हैं वक िेिर क ै सा रहा। कुछ अििा असिी हाि सुिा देते हैं और कुछ कहावि्ाँ बिािे िगते हैं। कुछ िमबर वगिकर रखते हैं वक इतिे तो आ ही जाएँगे। मािो िरीक्षक िे खुद हों अििा िेिर जाँच रहे हों। दसिीं ियूरा ि अिग माहौि गुज़रता माच्क ्ा प्रैि र्जगा, बुखार, नींद, सपने और......... परीक्ा! दवंगरा 8 आकर इसका अनत होता है। साि भर वजससे भी वमिो हर ्ही िाि वक ‘कौि-सी क्षा में हो? अचछा, दसिीं में हो, तब तो अचछे-से िढ़ाई करिा। गवणत और विज्ाि क े विष् ध् ाि से िढ़िा।‘ िर ध्ाि िगाएँ क ै से? 12 िमबर क चे ट े िास िािी वलट्ों’ रहिे िािे वगरीश िीि कणठ िे बता्ा वक तीि महीिे िहिे कोवचंग सेंटर में जािा शुरू वक्ा। िर जो कोवचंग में िढ़ा्ा जाता था िो कोवचंग से बाहर आते ही िता िहीं कहाँ हो उससे ियूछा वक गवणत िेिर क ै सा रहा? तब उसिे खयूब आतमविश्िास से कहा वक सपिीमेंटरी आएगी। सिाि सब समझ आ रहे थे िर करिा िहीं आ रहा था। गवणत े िेिर े सरोवजिी िा्रयू सकूि े बाहर वकसी क े चेहरे िर िेिर अचछा होिे की मुसकाि थी तो वकसी क े चेहरे िर उदासी। िहीं कुछ ऐसे भी थे जो इस बात से बेहद खुश थे वक अब गवणत से िीछा छयूटा। उिमें से एक, तंवजिा का कहिा था वक उसिे गवणत क े विए खास तै्ारी की थी। िर िो उिको करिे का भयूि अकसर होता वक िेिर देखकर सब भयूि जाते हैं। तंवजिा कहती है वक गवणत मुझे कभी िहीं आती। कोई वकतिा ही वसखा दे। िहीं कुछ बचचे ऐसे होते हैं वजिक े विए रोज़ क े वदिों में िरीक्षा े वदिों कोई क ्क िही उिक े विए बस िरीक्षा क े िहिे का वदि िढ़ाई का वदि होता है। ्ह बात है 12 िमबर बाज़ार क े िास मवलट्ों में रहिे िािे दीिेनद्र की। उसका कहिा है वक ियूरे साि कक्षा में अचछे से अध्ािक िा बहुत घर िर िढ़ाई की जाए और वफर िरीक्षा क े एक वदि िहिे रटकर िढ़ वि्ा जाए तो उिक े बहुत अचछे िेिर हो जाते हैं। िरीक्षा ्यूविफाम्क ही ्ा है वदि। ्द अििे ििे े वदि होिे का इनतजार होता है। और कुछ गवणत जैसे विष् से छुटकारा िािे की खुशी मिा रहे होते हैं। सोते ्ा जागते ्े वदि हैं सििे देखिे क े । 9 िक मक दसिीं की िरीक्षाएँ कई िोगों क े विए अििे सििों को साकार करिे का िा्दाि होती हैं। वशिन्ा और वशिािी िरीक्षा देकर सकूि क े बाहर बैठी थीं। वशिन्ा क े घर में कोई कमािे िािा िहीं है, तो िह िैसा कमािे क े विए काम भी करती है और अभी दसिीं की िरीक्षा भी दे रही है। िढ़िा और काम करिा उसक े विए बहुत मुवश्कि हो जाता है, िर सििे देखिे में िह कोई कमी िहीं रखती। उि दोिों को कॉिेज जािे का बेसब्री से इनतज़ार है। तब िे ििे तों े घयूम-वफर हैं। तरफ िह िुविस में िौकरी करिे क े सििे देख रहीं हैं िहीं दयूसरी तरफ मॉरविंग करिे क े भी सििे बुि रही हैं। क ै िाश िगर की बसती में रहिे िािे वकरण और सवचि कामबिे िों ही िवरिार े इिक े ि िढ़ाई में इिकी मदद करते हैं। घर िर िढ़ाई करिे का सबका अििा-अििा कोिा है। इि सुनदर-से छोटे कोिों में, उस विष् की एक वकताब िड़ी होगी वजस की अगिी िरीक्षा है। दसिीं क े छात्रों क े विए एक चुिौती होती है िरीक्षा क े वदिों में बुखार चढ़ जािा। अगर बुखार आ ग्ा तब तो मािो आि गए काम से। मुझे अकसर बचिि में िरीक्षा का िाम िेते ही बुखार चढ़ जाता था। मैं शंकर िगर में रहिे िािी एकता से वमिी जो िरीक्षा देकर घर आई ही थी और अििी ििंग िर सो रही थी क्ोंवक बुखार से उसका सर फट रहा था। एकता को आधा बुखार तो वचनता की ही िजह से आ्ा था। बुखार सििों िर ा होता शा्द हम सििे देखिा कभी िहीं छोड़ सकते। िो िरीक्षा में बस बहुत तेज़ी-से देखे जाते हैं। जब िरीक्षा क े वदि खतम हो जाते हैं, हम आगे और िरीक्षाओं की तै्ावर्ाँ करते हैं वफर और, वफर और। वफर शा्द एक ऐसा वबनदु आता है जब िरीक्षा से छुटकारा वमिता है और हम बेवफक्र होकर िाचते हैं। शा्द ्े एक और सििा है। भोिाि में दसिीं क े िरीक्षा देिे िािे बचच ों से बातचीत क े आधार िर दिंगरा की वरिोट्क। फोटोग्ाफ : दवंगरा 10 विद्ोह री छप-छप जीि से सामिे तो िहाड़ी थी। िहाड़ी क े ऊिर एक मकाि बिा हुआ था और िाि झणरा िहरा रहा था। ्हीं तो मुझे िहुँचिा था। दयूर से देखिे िर िगता था वक सयूखे मौसम में भी झावड़्ों िर रंग-वबरंगे फूिों की बहार आई हुई थी। जीि तो मुझे उतारकर आगे बढ़ गई। िैसे उसमें इतिे िोग ठसा-ठस भरे हुए थे वक मेरे उतरिे से शा्द ही कोई फक ्क िड़ा होगा। मैंिे मि ही मि जीि और उस में बैठी सिावर्ों की सुरक्षा की दुआ की। मैंिे एक िहाड़ी िार की और दयूसरी िहाड़ी क े िीचे ऊिर िे सकूि देखा। यूरज रयूबिे ही िािा था और जब तक मैं ऊिर िहुँची शाम चुकी छोटे-छोटे चे अििा-अििा रोज़मरगा का काम वििटा रहे थे। िहाँ िहुँचकर समझ में आ्ा वक जो मैंिे सोचा था वक झावड़्ों िर फूि िगे हैं, िे फूि िहीं थे, बचचों की चवडर्ाँ सयूख रही थीं। मैं खुिकर हँस िड़ी। जब मैं बचचों क े करीब िहुँची तो समिेत सिर में मेरा सिागत हुआ - वज़नदाबाद बाई। मैं विमगाण शािा में थी। मैं ्हाँ महीिे बचचों िढ़ाई में मदद करिे िािी थी। जलदी ही मेरी बचचों से दोसती हो गई। िे मेरे गैर-वशक्षकिुमा तौर-तरीकों से काफी खुश थे। उनहें ्ह भी अचछा िगता था वक मैं उनहें सहज रहिे देती थी और उिक े अध्ािकों क े वखिाफ उिका िक्ष िेती थी। अध्ािक िोग भी मेरी वशक्षा को देखते हुए मेरा विहाज़ करते थे। मैं और बचचे दोसत तो बि ही गए थे। एक वदि दोिहर में कक्षा ियूरी होिे क े बाद हम फुरसत थे। िेड़ े िीचे अििे तचे क े बटि टाँक रही थी। “तुमहें तैरिा आता है?” मैंिे आँखें उठाकर सिाि ियूछिे िाि े की ओर देखा और कहा, “हाँ।” “तो हमारे साथ चिो, हम सब राबरी में तैरिे जा रहे हैं।” सथािी् अध्ािक िे उनहें रोकिे की कोवशश की मगर मेरी मदद से उनहोंिे उसकी बात काट दी और हम सब तािाब की ओर चि वदए। तािाब मािि-विवम्कत था। उनहोंिे एक जंगिी िािे क े एक तरफ बाँध बिाकर िािी को रोक वि्ा था। िािी भरिे क े विए ्ह तरीका इस इिाक े में काफी आम है। वरिवचि 11 तैरिा तो मुझे िगभग उतिा ही आता था वजतिा बचचों को आता था। तो मैं खुशी-खुशी बचचों क े साथ तािाब में उतर गई। थोड़ी देर तक हम सबिे िािी में खयूब छि-छि की। मैं जलदी ही थक गई और बाहर विकिकर िेड़ की छा्ा में सुसतािे िगी। िहाँ से मुझे बचचों की वकिकावर- ्ाँ सुिाई िड़ रही थीं जो तेज़ से तेज़ होती जा रही थीं और िािी छिछिािे की आिाज़ भी बढ़ती जा रही थी। मैं सोच रही थी वक क्ा मुझे उनहें रोकिा चावहए, तभी एक वकसाि बाँध क े िीछे से आ धमका। िह बचचों िर वचलिा रहा था और अििी िाठी िहराकर उनहें धमका रहा था। बचचे चुि हो गए। वकसाि उनहें िािी गनदा करिे क े विए राँट रहा था। ्ह िािी ढोरों क े िीिे क े विए और खेतों क े विए है। िे इसमें बनदरों की तरह उछि-कूद क्ों कर रहे हैं? बचचे थोड़े रोष से िािी से बाहर आ गए, मगर चुि रहे। अिबत्ा, दबी आिाज़ों में थोड़ी फुसफुसाहट हो रही थी। वकसाि उि सबक े बाहर विकििे तक रुका रहा, और वि्ाँ और ्ा वफर ििटकर अििे खेत की ओर चि वद्ा। बचचे उसे जाते देखते रहे। दबी आिाज़ में ‘्े राबरी कुवणंची? आमरी छे, आमरी छे!’ िारा उभरा मगर ज़्ादा चिा िहीं। मैं ियूरा घटिाक्रम िीछे से देख रही थी, और समझ िहीं िा रही थी वक क्ा कहयूँ। मैं ि्सक थी वजससे उममीद की जाती है वक िह वज़ममेदारी से काम करेगी और मैं थी वक िािी छिछिा रही थी। मैंिे चुिचाि अििे किड़े उठाए िहाँ वखसक िी। िती वक चे िीछे-िीछे आएँगे। बाद में जब किास में हमारी मुिाकात हुई तो सामिे गुससे से भरे वचड़वचड़े चेहरे थे। उनहोंिे चुिचाि गवणत क े सिाि वकए और मुझसे आँखें चुराते रहे। शाम को काफी फुसफुस चिती रही और अिग- अिग मीवटंगें भी होती रहीं। मैंिे देखा वक भयूरी, इंकार और इनदीि वसंह आिस में बात कर रहे हैं मगर जैसे ही मैं िास िहुँची िे िहाँ से हट गए। ज़ावहर था मैंिे उिका सममाि गँिा वद्ा था क्ोंवक राबरी िर मैं उिक े हक में खड़ी िहीं रही थी। मैंिे फ ै सिा वक्ा इस सबको अिदेखा-अिसुिा करूँगी और ऐसे जताऊँगी जैसे कुछ हुआ ही िहीं है। मगर ्े बचचे एक ऐसे संगठि क े बचचे थे जो अििे हकों क े विए िड़ता है। अगिे वदि सुबह मुझे समझ में आ्ा वक कुछ-ि-कुछ िक रहा है। सारे बचचे जाग गए थे और मेरे उठिे से िहिे ही अििे सुबह क े काम ियूरे करक े िहा रहे थे। मेरे ियूछिे से िहिे ही उनहोंिे मुझे बता वद्ा वक जब मैं उिक े अवधकारों की रक्षा िहीं कर िाई हयूँ, तो िे खुद अििे अवधकारों की रक्षा करेंगे। “क्ा?”, मैं बुदबुदाई और आश्च््क से दयूसरे वशक्षक की ओर देखा। मगर िह भी हकका-बकका था। “हम िोग चकका जाम करेंगे।” “सड़क िर?” “िहीं, राबरी क े रासते िर। हम वकसी जाििर को िहाँ िािी िहीं िीिे देंगे और ि ही वकसी को बाँध से िािी िेिे देंगे। ्वद हमें िहीं तैरिे देते तो हम वकसी को भी िािी का उि्ोग िहीं करिे देंगे।” “मगर संगठि िे िह राबरी वकसािों क े विए बिाई थी।” “हमिे भी तो श्रमदाि वक्ा था। हमिे बाँध बिािे क े विए ितथ र उठाकर िहुँचाए थे। हर बचचे िे चार ितथर उठाए और वकसाि ् रहे वक इसका उि्ोग िहीं कर सकते।” “मगर... मगर... ”, मैं बोिी, “वकसाि तुमहारे िािक हैं” मैंिे ्ह बात भयूरी की ओर देखते हुए कही थी। उसक े विता का बहुत सममाि था। “हाँ, मगर इसक े कारण हमें चीज़ों को ठीक करिे से कोई िहीं रोक सकता। िािक भी तो शोषक हो सकते हैं।” मैं िगभग से िड़ी। ्े िोग बड़ों ज़ुबाि बोि रहे थे। मगर तीस जोड़ी घयूरती विगाहों िे मेरी हँसी को रोक वद्ा। इसक े बाद बचचे राबरी की ओर कचची िर गए। बचचों िे िीचे जाकर िहाँ खड़े सारे जाििरों को हाँक वद्ा और खेतों की ओर जािे िािी सारी िहरों को ितथरों से बनद कर वद्ा। थोड़ी ही देर में भौंचकक े वकसाि राबरी िर िहुँचिे िगे और बचचों िे िारेबाज़ी शुरू कर दी - “्े राबरी कुवणंची? आमरी छे, आमरी छे!” कुछ वकसाि िे िगे, िों, ्ह क्ा रहा है?” 12 “अरे, इन हें देखो तो, इनहोंिे हमारी िहरें बरबाद कर दी हैं।” “क्ा खेि चि रहा है?” िहिे बड़े िोगों िगा वक ्ह मज़ाक है। जब उनहें समझ में आ ग्ा वक ्ह मज़ाक िहीं है, तब उिका ाि वक प्ार सखती से समझािे-बुझा िे से काम चि जाएगा। मगर धीरे-धीरे सबको समझ में आ ग्ा वक बचचे संजीदा हैं। “हमिे भी ्ह बाँध बिािे में मदद की है, आि हमें दयूर िहीं रख सकते।” “चिो और सकूि बहुत ग्ा”, बुज़ुग्क िे रुखेिि से कहा और एक बचचे को थोड़ा खींचा। सौदेबाज़ी देर तक चिी। अनतत: बचचों िे अििी बात मििा िी। उनहें तािाब में तैरिे की इज़ाज़त वमि गई, बशतचे वक िे िािी को बहुत ि छिछिाएँ और जाििरों को रराकर ि भगाएँ। िहाड़ी िर ऊिर खड़े-खड़े मैं उिकी बातचीत सुि रही थी और मुझे उिकी जीत का िता चि ग्ा था। िौटकर उनहोंिे मुझे घयूरा। मैं और दयूसरा वशक्षक मछिी िाए थे और दाित की तै्ारी कर रहे थे। मगर िे टस से मस िहीं हुए। “हम तुमहें ्ह कहिा चाहते हैं वक तुमहें हमारा साथ देिा चावहए। हमिे तुम िर भरोसा वक्ा मगर तुमिे दगा वक्ा।” मैंिे कहा, “मगर मैं बड़ों क े वखिाफ तुमहारा साथ िहीं दे सकती। िही िोग तो मुझे तिखा देते हैं।” “मगर तुम ्हाँ हमारे साथ रहती हो। तुमहारा फज़्क है सच का साथ देिा।” मैं जािती थी वक ्ह एक ऐसी दिीि थी वजसे मैं इंकार िहीं कर सकती थी। तो मैं चुि रही। “चिो, खािा खा िो। खािा ठणरा हो रहा है।” मैंिे कहा। बचचों िे मेरी ओर देखा। “हाँ, सॉरी।” बहुत कमज़ोर-सी बात थी मगर मुझे और कुछ सयूझा िहीं। थोड़ी फुसफुसाहट हुई। और वफर 30 िनहे िोग बैठ गए और खािे िर ध्ाि देिे िगे और मैंिे उि िर ध्ाि देिे का विण्क् वि्ा। आज उनहोंिे अििा अवधकार जीता था। चित्र: वृशाली जोशी िक मक 13 इि वदिों क े िेड़ िग िज़र आते हैं। कभी हरी-गुिाबी िवत््ों क े कारण तो कुछ हरे-िीिे बौरों क े कारण। आम क े िेड़ों िर िसनत अप्रैि में भी अििी मादक सुगनध विए इठिा रहा होता है। आम मंजरी वजसे मौर ्ा बौर कहते हैं िासति में आम क े फूिों का गुचछा होता है। ्े आधे फुट से एक फुट तक िमबे होते हैं और अकसर ियूरा िेड़ इिसे िदा होता है। शा्द इसी को देखकर वकसी िे कहा होगा देखो िसनत में आम बौरा ग्ा है। बौरािे का एक अथ्क होता है – िगिािा। महकते फूिों े िदसतों िदे क े िेड़ों को देखकर सचमुच िगता है वक िे बौरा गए हैं। बौरा गए ह ैं आम तुमिे शा्द ध् ाि वद्ा होगा वक आम क े बौर अिग-अिग रंग क े होते हैं िीिे, गुिाबी, ्हाँ तक वक चॉकिेटी भी होते हैं। वजतिी तरह की आम की वकसमें उतिी तरह की आम की मंजरी। आम क े फूिों का गुचछा रंगीि होिे क े साथ-साथ रस भरा और सुगनध िािा भी होता है। इस कारण इि िर तरह-तरह क े कीट-ितंग मँरराते रहते हैं। भंिरे, मधुमवकख्ाँ, भृंग (Beetle), वततवि्ाँ...। ्े सब फूिों का रसिाि करते हैं और इस बीच फूिों का िरागण भी करते हैं। तभी तो हमें खािे को रसीिे आम वमि िाते हैं। तुमहें ्ह जािकर अचरज होगा वक आम की हरेक मंजरी में िगभग 600 तक फूि होते हैं। फूि छोटे होते हैं िर होते बड़े सुनदर हैं। इिकी िँखुवड़्ों िर िारंगी धावर् ाँ बिी होती हैं। हरेक मंजरी में दो प्रकार क े फूि होते हैं, एक िर और दयूसरे िर-मादा एक साथ (्ा उभ्विंगी फूि)। फूिों में िाँच िुंक े सर होते हैं। इि में से एक ही में िराग बिता है। बाकी सब ठयूठ होते हैं। िँखुवड़्ों और अणराश् क े बीच एक मांसि वरसक होती है। वद्विंगी फूिों का अणराश् थोड़ा वतरछा होता है। आम क े बौर क े बारे में इतिा जाि िेिे क े बाद ्ह सिाि मि में आता है वक आम क े िेड़ िर फूि तो िाखों की संख्ा में वखिते हैं वफर फि कुछ हज़ार ्ा इससे कम क्ों? अििी प्रवसद्ध कविता, ऋतुसंहारम् में काविदास बार-बार बौराए आम का वज़क्र करते हैं। कहीं आम क े बौरों को िसनत का बाण कहते हैं तो कहीं बताते हैं वक िर को्ि इसका मादक रस िीकर मतिािा होकर को्वि्ा को िुकारता है। और कभी कहते हैं वक दयूर िरदेस की राह िर चििे िािा िवथक बौराए आम क े िेड़ को देखकर अििी वप्र्तमा को ्ाद करता है। एक बहुत ही खयूबसयूरत िंवकत में काविदास कहते हैं- ताम्रप्िाल स्तबकािनाम्रा श्ूतद् ु माः पुष्पितचारुशाखाः। क ु ि्वन्ति कामं पिनािधूताः पयु्वत्ुकं आम क े िेड़ िर रंगों की बहार है, वजसकी रावि्ों िर कांसे और िाि रंग क े ताज़े कोिि और फूि क े गुचछे फूट रहे हैं जब ्े रावि्ाँ मनद हिाओं में रोिती हैं तो ्ुिवत्ों का मि भी उतसाह से भर जाता है रकशोर पंवार िक मक फोटोग्ाफ : दवंगरा 14 विछिे ि ििरी हम भाई-बहिों िे त् वक्ा वक हम गमटी की छुवटट्ों में सक ैं वरिेवि्ा जाएँगे। एक ष्कण ्ह वक ्ह उत्री ध्ुि क े िास है और दयूसरा ्ह वक कम खच्क में भी ्हाँ घयूमा जा सकता है। सक ैं वरिेवि्ा तीि देशों का समयूह है – िािचे, रेिमाक ्क और सिीरेि। धरती क े एकदम उत्र में, ठीक उत्री ध्ुि क े िास हैं ्े देश। अगर तुम िकशे में ढयूँढो तो िाओगे वक ्यूरोि क े उत्र में भाियू ्ा शेर क े आकार का एक प्रा्द्ीि है। प्रा्द्ीि ्ािी िह ज़मीि वजसक े तीिों तरफ सागर हो। इस प्रा्द्ीि को सक ैं वरिेवि्ा कहते हैं। इसक े ठीक दवक्षण में एक और प्रा्द्ीि है वजसे रेिमाक ्क कहते हैं – ्े भी सक ैं वरिेवि्ा का वहससा है। हमारी ्ात्रा इसी देश से शुरू हुई। हम िनद्रह िोग थे वजिमें चार-छः बचचे भी थे। कुछ तो अििे आिको बचचा मािते भी िहीं थे, कॉिेज में जो िढ़ते थे। सक ैं वरिेवि्ा ्ात्रा को िेकर हमारी दो बड़ी वचनताएँ थीं, एक िहाँ की सदटी और दयूसरा िहाँ का खािा। हािाँ वक हम गमटी में जा रहे थे, वफर भी चेनिई की तुििा में िहाँ बहुत ठणरा होता है। जहाँ चेनिई का तािमाि 35 से 40 वरग्ी सेवलस्स रहता है िहीं िहाँ का तािमाि बस 15 से 20 वरग्ी। तो हर साईज़ क े गम्क किड़े खोज विकािे गए और सयूटक े सों में िैक वकए गए। हम में से ज्‍़्ादातर शाकाहारी थे और हमिे सुि रखा था वक िहाँ हमारे खािे िा्क कुछ भी िहीं वमिेगा। सो हमिे तीि-चार बकसों में थेफिा, खाखरा, अचार, चटिी, िमकीि और तुरनत तै्ार होिे िािे रसम और दाि भर विए। हमिे ट्ैिि मििी समिक ्क वक्ा दुवि्ा क े िोगों सक ैं वरिेवि्ा है। जब हम हिाईजहाज़ से कोिैिहैगि शहर में उतरे तो श्री वथ्ो हमसे वमिे। हमारी ियूरी ्ात्रा क े दौराि िे ही हमारे गाईर बिे रहे। वथ् ो हमें एक होटि में िे गए जहाँ मुझे िनद्रहिीं मंवज़ि िर कमरा वमिा। ऊिर वखड़की से देखिे िर ्ह एक सुनदर-सा शहर िगा, वजसमें कई ऊँची-ऊँची इमारतें हैं और बहुत से तािाब और हवर्ािी। एक ्ात्रा उत्री ध्ुि की ओर ... 1 साइकरि पथ और बैंगन रा सिाद वचत्रा विश्ििाथि ओसिो सटाकहोम िािचे रेिमाक ्क उत्री सागर कोिैिहैगि सिीरि फोटोग्ाफ : दवंगरा 15 थोड़ा आराम करिे क े बाद हम िे सोचा वक हम कुछ देर िैदि चिकर इस शहर क े िज़ारे देखें। वथ्ो िे हमें चेता्ा वक सड़कों िर ध्ाि से चििा और कभी भी साइवकि िथ िर मत चििा। जब हम कुछ देर िैदि चिे तो उिकी चेताििी का मतिब समझ आ्ा। कोिैिहैगि साइवकि िािों का शहर है। ्हाँ हर सड़क में एक अिग साइवकि िथ होता है वजसमें िोग बहुत तेज़ी-से साइवकि चिाते विकिते हैं। वजस तरह चौिवह्ा िाहिों क े विए वसगिि होते हैं िैसे ही ्हाँ साइवकि िथ िर भी वसगिि होते हैं। वथ्ो िे बता्ा वक इस शहर में वजतिे िोग हैं उतिी ही साइवकि भी हैं। शहर क े आधे से ज्‍़्ादा िोग साइवकि से ही काम िर ्ा िढ़िे जाते हैं। उस वदि हमें बीस िोग और वमिे जो इस टयूर में हमारे साथ होिे िािे थे। िमें ज्‍़्ादातर िोग क े और वफवििाईंस ऑसट्ेवि्ा क े । अगिे चौदह वदि हम सब साथ ्ात्रा करिे िािे थे। ्ात्रा एक सुविधासमिनि बस में होिी थी जो ज़मीि और िािी दोिों में हमारे साथ रही (जहाँ हमें समुद्र िार करिा होता ्ह बस भी िाि में हमारे साथ होती।) हम िोगों िे िीछे की सोिह सीट िे िीं। रात में टयूर क े आ्ोजकों िे हम सब क े विए विशेष भोज का आ्ोजि वक्ा। िेवकि उिको समझ िहीं आ्ा वक हमारे विए शाकाहारी भोजि क ै से बिाएँ। कचची सवबज़्ाँ, फि और अधिक े चािि से काम चिािा िड़ा। जब कमरे में िौटे तो हम सबिे घर से िाए िमकीि का सहारा वि्ा। दो वदि बाद आ्ोवजत ऐसे भोज में हम िर तरस खाकर कुछ शाकाहारी भोजि तै्ार वक्ा ग्ा। सयूि और मीठा तो अचछा था मगर मुख् आइटम बैंगि हमसे खा्ा ि ग्ा। बैंगि क े टुकड़े करक े उसक े बीच बहुत किातमकता क े साथ हरी ित्ी, टमाटर और प्ाज़ िरोसा ग्ा था। उनहें मकखि िगाकर हिक े से सेका ग्ा था। अधिक े बैंगि क ै से खाएँ हमे समझ ि आ्ा। हम बस उसे विहारते रहे। िक मक वचत्र 1 होटि से कोिैिहैगि शहर का िज़ारा वचत्र 2 कोिेहैगि क े सा्कि सिार वचत्र 3 बैंगि का सिाद! जारी... फोटोग्ाफ: चित्रा रव󰇕वनाथन 16 ्ह िी भाइ्ों जयूते े दो ब्रांरों की है। बहुत साि िहिे, आज से िगभग विंच्ाििे ि िहिे ्ह कहािी शुरू होती है। तब भ्ािक विश्ि ्ुद्ध खतम ही हुआ था और सब सैविक घर िौटे ही थे। जम्किी का एक सैविक एरोलफ रासिर भी घर िौटा और अििे विए खोजिे िगा। िे ििे घर क े एक छोटे कमरे में खेि क े जयूते बिािा शुरू वक्ा। एरोलफ का िवरिार िहिे से ही जयूते और चपिि बिािे का काम करता था| एरोलफ िगातार अििे जयूतों सुधार रहा वक िह खेि े ि वखिावड़्ों े विए आरामदा्क िें| इसमें िी सफिता वमिी वक उसिे वखिा वड़्ों क े विए जयूते बिािे िािी फ ै कट्ी राििे की सोची| जुिाई, 1924 में उसिे अििे भाई रुरोलफ क े साथ वमिकर रासिर ब्रदस्क शयू फ ै कट्ी की शुरुआत करी| एडोल्फ बनाम रुडोल्फ द ा र जयूतों की दो कमिवि्ाँ अँग्ेज़ी में प्रसतुवत – विंध्ा वकलिरु अँग्ेज़ी से अिुिाद – सवजता िा्र शुरुआती दौर में रासिर ब्रदस्क वसफ ्क टैविस क े वखिावड़्ों क े विए जयूते बिाते थे| वफर धीरे-धीरे उनहोंिे अििा कारोबार बढ़ाकर, अन् खेिों क े विए भी जयूते बिािा शुरू वक्ा| एरोलफ खुद एक वखिाड़ी था। ििे जयूतों की गुणित्ा बिाए िे क े विए िह हमेशा अििे वखिाड़ी ाहकों वमि कर िकी को था और उसी अिुसार जयूतों में बदिाि करता था| वखिाड़ी भी उिक े जयूतों को िसनद करिे िगे क्ोंवक िे हिक े ि आरामदा्क थे और उिकी बिािट सहज थी। 17 1936 े िवमिक स े विजेता वखिावड़्ों िे इनहीं क े जयूते िहिे थे| इि में जेससी ओिेंस शावमि जो िवमिक िदक िे िािे िहिे अफ्ीकी अमरीकि वखिाड़ी थे। खेि से िहिे एरोलफ िे उिसे वमिकर उनहें अििी कमििी क े जयूते िहिकर दौड़िे क े विए मिा वि्ा था। उस प्रवत्ोवगता ओिेंस िे सिण्क िदक जीतकर विश्ि वरकार्क बिा्ा था। उसक े बाद रासिर ब्रदस्क को कभी िीछे देखिे की ज़रूरत िहीं िड़ी| इसी दौराि जम्किी में िाज़ी िाटटी का दबदबा बढ़िे िगा| दोिों भाई उसमें शावमि तो हुए िर रुरोलफ की रुवच िाटटी में ज़्ादा रही| इस िजह से दोिों में काफी झगड़े होिे िगे| इस बीच दयूसरा विश्ि ्ुद्ध शुरू हो ग्ा ओर रासिर कम ििी अब सैविकों क े विए यूते िािे िगी। ्ुद्ध े त रुरोलफ अमरीका द्ारा बनदी बिा्ा ग्ा और अनत में जब िह घर िौटा तो चीज़ें बदि चुकी थीं| दोिों भाइ्ों क े वकसी को िेकर बड़ा हुआ| झगड़े का कारण तो वकसी को िहीं िता चिा िर झगड़े िवरणाम ्ह वक रासिर ब्रदस्क कमििी बनद हो गई और उसकी जगह दो िई कमिवि्ों की शुरुआत हुई| अिग होिे क े बाद एरोलफ िे अििी कमििी क े हर िहियू िर ाि िा ियू वक्ा| मििी का विज्ािि हो ्ा कमििी क े खचचे ्ा सबसे ज़रूरी कमििी का िोगो। एरोलफ िे इस बात का ियूरा ध्ाि रखा वक उसकी कमििी की हर एक चीज़ बाकी से अिग वकफा्ती अििे क े िाम तोड़कर कमििी का िाम रखा एरोलफ से ‘एरी’ और रासिर से ‘रास’| इस तरह ‘एरीरास’ कमििी की शुरुआत हुई| वकसी भी कमििी का एक महतिियूण्क वहससा उसका ‘िोगो’ (कमििी का वचनह) होता है| जैसे िाम क े साथ वकसी ्वकत चेहरा होता उसी एक कमििी की िहचाि उसका ‘िोगो’ होता है| ्ह बात एरोलफ भी बहुत अचछे से जािता था| इसीविए उसक े विए ज़रूरी था वक ‘िोगो’ ऐसा हो वजससे िोग उसकी कमििी को आसािी से िहचाि िें| उस सम् एक सिोटस्क कमििी थी ‘करहयू’| एरोलफ को उिका िोगो’ िा िसनद ्ा वक िे से िो कमििी खरीद िी और उिका ‘िोगो’ अििी कमििी क े िाम कर वि्ा| ्ह जािकर बड़ी हैरािी होती है वक ‘एरीरास’ क े मशहयूर तीि रणरे कभी वकसी कमििी े करते जो हो जलदी ही एरीरास कमििी तीि िकीरों क े िोगो से िहचािी जािे िगी। इसी ् क े यूसरे िर रोलफ अििी कमििी बिािे में व्सत था| उसिे भी अििे िाम का इसतेमाि करते हुए कमििी का िाम रुरा रखा| िेवकि बाज़ार िर इसका कुछ खास असर िहीं हुआ| ्ह देख रुरोलफ िे अििी कमििी का िाम बदिकर ‘प्यूमा’ रखा| ्ह िाम असि में रुरोलफ की कमििी क े विए कारगार सावबत हुआ| ‘प्यूमा’ शबद वकसी भी भाषा में आसािी से बोिा जा सकता था| एरीरास प्यूमा िों मिवि्ाँ जािे-मािे िाम बिती जा रही थीं| िर साथ ही साथ दोिों कमिवि्ों की आिसी होड़ भी ज़ोर िकड़ती जा रही थी| दोिों कमिवि्ों क े मज़दयूरों को एक-दयूसरे से वमिि े िर िाबनदी थी| ्हाँ तक वक उस शहर में रह रहे िोग जो प्यूमा क े जयूते िहिते िे एरीरास क े यूते िहिे ्वकत बात िहीं और िा ही रीरास िहिे व्वकत क े यूते िहिे हुए व्वकत से| आए वदि शहर में छोटे-छोटे झगड़े होिे िग गए| शहर क े िोग दो गुट में बँट चुक े थे एरीरास और प्यूमा| दोिों भाई एक-दयूसरे को हरािे की दौड़ में िहिे से कई गुिा मेहित करिे िगे| माक चे ट में ऐसे जयूते आिे िग गए जो िहिे कभी िहीं देखे गए| शा्द दोिों कमिवि्ों की सफिता का कारण उिक े बीच की ्ह कड़ी प्रवत्ोवगता रही है| प्यूमा िे कम विज्ािि क े बािजयूद माक चे ट में अििा अचछा दबदबा बिा वि्ा था| दोिों कमिवि्ाँ जलद ही ्ह बात समझ गईं वक सि्कश्रेषठ वखिावड़्ों को अििी मििी एमबेसरर िािा कमििी क े यूते िहिकर िका ि िा मििी े विए िॉटरी िे े होगा| श्ि वसद्ध वखिावड़्ों को अििे ब्रांर एमबेस रर बिािे की होड़ क े कई वकससे प्रचवित हैं। 1960 क े ओिवमिक खेि में मीटर ड़ सिण्क िदक वम्कि को 18 िक मक वमिा। इस दौड़ से िहिे िह एरीरास क े जयूते िहिता था। मगर ऐि मौक े िर प्यूमा िे उसे फाइिि दौड़ में अििे जयूते िहिकर दौड़िे क े विए राज़ी करक े िैसे भी दे वदए। हैरी जीता तो मगर िुरसकार िेते सम् उसिे प्यूमा क े जयूते ि िहिकर एरीरास क े जयूते िहिे तावक दोिों कमिवि्ों से िैसे िसयूि कर सक े । ितीजा क्ा रहा होगा तुम खुद कलििा कर सकते हो। 1968 े िवमिक िों प्यूमा बढ़त वमिी जब दो महाि अश्िेत वखिावड़् ों टामी वसमथ और जाि कािलोस िे े यूते िहिकर वत्ोवगता िहिा और यूसरा थाि प्रापत वक्ा। ्ही िहीं िों श्िेत वखिावड़्ों िे िवमिक रि िर और दवक्षण अफ्ीका में अश्िेतों क े विरुद्ध भेदभाि का विरोध वक्ा। इस कारण एक ओर उनहें खेि से बाहर कर वद्ा ग्ा मगर िे दुवि्ा भर क े समािता आनदोिि क े िा्क बि गए। इसका फा्दा प्यूमा को भी वमिा। 1971 में एरोलफ िे अििी कमििी का का््कक्षेत्र बढ़ा्ा और िए िोगो क े साथ माक चे ट में अििे िए प्रोरकटस को िॉनच वक्ा| अब उसिे खेि क े दौराि िहिे जािे िािे किड़ों क े अिािा रोज़मरगा क े विबासों को बाज़ार में उतारा। उसका ि्ा िोगो था तीि फ ै िती हुई िवत््ाँ वजिक े िीचे तीि िकीरें वखंची हुई हैं| इस िोगो में जो तीि िवत््ाँ हैं िो असि में एरीरास क े विकवसत करते रहिे की चाहत को दशगाती हैं| ्ह िोगो एरीरास कमििी क े विए बहुत सफि सावबत हुआ - इस िोगो को हम आज भी देखते हैं| ्कीिि इस िहि क े चिते एरीरास िे विश्ि सिोटस्किे्र क े क्षेत्र में अििी एक अिग और मज़बयूत जगह बिा िी| मगर अभी िाि आिे बाकी थे| 1997 में एरीरास िे अििा िह िोगो िॉनच वक्ा वजससे आज हम सबसे ज़्ादा िवरवचत हैं| तीि वतरछी िकीरें जो इस तरह जमीं हैं जैसे िहाड़ का ढिाि हो। िोगो ्ह कहिा चाहता था वक ्े जयूते िगैरह आिको ऊँचाई की चोवट्ों तक िहुँचाएँगे। ्ह िोगो सिगावधक िोकवप्र् और यूर और भी इस ििी े उतिादों को इसी से िहचािते हैं। दोिों िवि्ों प्रवतसिधगा वि्ा में यूर थी मगर एक तरह से इसका फा्दा िहुँचा वखिावड़्ों को वजनहें िए-िए प्रकार क े जयूते वमिे और साथ-साथ विज्ािि क े िैसे भी। आवखरकार, िष्क 2009 में विश्ि शावनत वदिस क े वदि प्यूमा े िलोचच वधकारी िे रीरास दोसतािा फुटबॉि मैच क े विए आमंवत्रत वक्ा| इस मैच में प्यूमा की 7-5 से जीत हुई थी| इस खेि से दोिों कमिवि्ों द्ारा सािों से चि रही जंग िर विराम िग ग्ा| िेवकि खेि सामग्ी बाज़ार में इिकी प्रवत्ोवगता अब भी जारी है। (रव ं धया रकल्लरु ऋरि वैली स् ू ल में कक्ा गयारहवीं में पढ़्ी हैं।) 19 किास की िीरस खािी दीिारें अकसर बेचैि कर देती हैं। बिैकबोर्क भी इि दीिारों जैसा ही सिाट बेरंग िगता है जो चॉक की सफ े दी में हर वदि अििा अवसतति खो देता है। साइंस िैब, िाइब्रेरी, ड्ाइंग रूम और मैदाि की सीमा से बाहर भी कुछ वठकािे हैं जो हमारी बेचैवि्ों को बाँटिे का अडरा बिते हैं। गैिरी क े िास बड़े-बड़े गोि छेदों िािी दीिार मुझे बुिाती है। गवम्क्ों में इि छेदों से ठणरी हिा क े झोंक े अनदर आते हैं और सवद्क्ों में धयूि छिकर फश्क िर एक खयूबसयूरत वरज़ाइि में फ ै ि जाती है। हम वठठुरते हुए उस धयूि में गुट बिाकर बैठ जाते हैं। फश्क की धयूि को फूँक मारकर उड़ाते और एक घेरा बिा िेते। कभी-कभी ियूरो बीच में रखकर एक-दयूसरे से शत्क िगाते। आधी छुटटी का ियूरा सम् और कई बार तो खािी िीवर्र भी िहीं गुज़रता। िेिरों क े सम् वकताबें विए कुछ िहाँ बैठकर िढ़ती वदखाई देतीं तो कुछ बातें करती हुईं। जब कभी हाउस िािी िड़वक्ाँ िहाँ देती और अििी किासों में क ै द हो जाती हैं तब िह जगह सयूिी िज़र आती है। एक रोज़ हम सब िहीं बैठे थे, सोिह िचटी का खेि चि रहा था। खेिते-खेिते काफी देर हो गई थी। आधी छुटटी कब बनद हो गई िता ही िहीं चिा। हमारे िास बातों एक िोटिी वक िक मैरम िे दयूर खड़े होकर ज़ोर से सीटी बजाई। हम सब अििी जगह िर खड़े-खड़े वहि गए। िीछे मुड़कर देखा तो उिक े हाथ में एक मोटा रणरा था, िह हमारी तरफ ही बढ़ रही थीं वफर तो हमिे भी िो रफतार िकड़ी वक एक-दयूसरे को भी भयूि गए और धकका-मुककी करते हुए चित्र: ननखखल खत्री ब़ेताकबयों ऱे अड् ़े अिीशा 20 िक मक िहाँ से फरार हो विए। किास में जाकर हम खयूब हँसे। अब हम जब भी उस जगह बैठते तो बड़े ही होवश्ार रहते। िहाँ बैठिे क े विए टाइिों िािा एक बवढ़्ा सीढ़ीदार चबयूतरा और शहतयूत का बड़ा-सा िेड़ है। ्हाँ सभी अकसर घिी ठणरी ्ा िाशते िहुँचते िहिे ्हाँ मठरी की दुकाि हुआ करती थी। वग्ि क े उस िार हथेवि्ाँ तािे वचलिाते हुए हम सब कहतीं, ‘आंटी, मेरी चार मठरी, आंटी, िहिे मुझे छह दे दो, िहीं मेरी तीि, अरे भाई, सात इधर िकड़ा दो’ ढेरों चेहरे एक भीड़ में घुिे-वमिे वदखाई देते। ्ह जमघट तब तक बिा रहता जब तक वक दुकाि िर मठरी खतम ि हो जाती। अििी सहेवि्ों क े गुट में ्ा वकसी खास जोड़ीदार क े साथ सब चबयूतरे िर जातीं। छुटटी बनद होिे क े बाद भी कुछ िड़वक्ाँ किास में ि जाकर दीिार की आड़ में छुिकर िहीं बैठी रहतीं क्ोंवक िहाँ वकसी टीचर का आिा-जािा कम ही होता है इसविए एक बेखौफ वठकािे क े रूि में ्ह जगह ज़्ादातर सावथ्ों की िसनदीदा है। इस िसनद को िे वसफ ्क किास से बाहर की जगहों िर ही का्म िहीं रखते, किास क े भीतर भी कई ऐसे कोिे हैं जहाँ बातचीत की महवफि सजती है। इस महवफि में अन् किासों क े साथी भी आकर जुड़ जाते हैं। ्हाँ वखड़वक्ाँ वसफ ्क रोशिदाि िहीं बवलक एक खुिी दुवि्ा को ताक िे का ज़वर्ा बिती हैं। सुबह-सुबह किास में झगड़े का विष् ्ही होता है वक वखड़की क े साथ िािी रेसक िर कौि बैठेगा। वरवतका अकसर अििी सहेवि्ों से इसी विष् िर बहस करती िज़र आती है। रोज़ सुबह एक बैंच वखसकाकर िह वखड़की क े िास िगाती है और शाि से िहाँ बैठ जाती है। उस वखड़की से सकूि क े िीछे की गिी िज़र आती है। उस गिी से गुज़रते िोग, फ े री िािे इत्ावद को िह वदिभर देखती रहती है। िहाँ की आिाज़ों को ध्ाि से सुिती रहती है, मािो िह अििी ही गिी में बैठी है। िह खुद को बँधा हुआ महसयूस िहीं करती। िवरच् अिीशा, सोिह ि। ् चतर ्वमक ा विद्याि्, सैकटर 5, दवक्षणिुरी िई वदलिी-62, में बारहिीं कक्षा की छात्रा हैं। अिीशा को विखि े में मज़ा आता है। िह विछिे छह सािों से अंकुर की वि्वमत वर्ाज़कतगा हैं। . अध्ाविका- 1869 में क्ा हुआ था? छात्र- गांधी जी का जनम। अध्ाविका- 1873 में क्ा हुआ था? छात्र- गांधी जी 4 साि क े हो गए थे? चित्र: शुभम लखेरा 21 अदभुत ततै्ा ्े ्ाद रहे वक आमतौर िर अििे छत्ों से दयूर होिे िर ततै्ा रंक िहीं मारती हैं िेवकि अििे छत्ों क े आसिास होिे िर िो आक्रामक हो सकती हैं। तो, उिक े ्ा उिक े छत्ों क े बहुत िज़दीक मत जािा - ततै्ा का रंक दद्किाक हो सकता है और खतरिाक भी। ततैया रा पीछा ररना एक बार जब तुमहें ततै्ा वदख जाए तो थोड़ी देर क े विए उसका िीछा करो, उममीद है वक िह तुमहें अििे छत्े तक िे जाएगी। तुम वकसी वखड़की क े िीछे ्ा िेड़ की राि िर भी कागज़ ततै्ा क े छत्ों को देखिे की कोवशश कर सकते हो। कुमहार ततै्ा क े छत्ों को ढयूँढो। ्ह अकसर कुसटी क े िीचे ्ा उसक े िाए िर, िरदे क े िीछे ्ा वबजिी क े सॉक े ट क े अनदर वमटटी भरकर अििा छत्ा बिाती हैं। ततैया या मधुमक्ी मधुमवकख्ों क े शरीर िर बाि होते हैं जबवक ज़्ादातर ततै्ों क े शरीर िर बाि िहीं होते। अवधकांश ततै्ों की कमर ितिी होती है जबवक मधुमवकख्ों की कमर मोटी होती है। फील्ड डायरी एर ततैया ऩे करया.....! सस ि ह ि ेकग ज़ ि ा ि ेक ा ंा ि ों ि े ि ह व् ा बवलक एक छोटी ततै्ा िे वक्ा। कागज़ ततै्ा अििा छत्ा बिाि े क े विए िौधों क े तिों और िकड़ी क े रेशे चबाकर और उस में अििा िार वमिाकर कागज़-जैसी एक सामग्ी तै्ार करती हैं। ्ह कॉिोिी में रहती हैं और इिकी मुवख्ा एक रािी होती है। दयूसरी ओर कुमहार ततै्ा अििा छत्ा वमटटी से बिाती हैं और आमतौर िर अक े िे रहती हैं। हािाँवक ज्‍़्ादातर ततै्ा िरजीिी होती हैं - िे दयूसरे जीिों से अििा भोजि प्रापत करती हैं और अकसर उनहें मार भी देती हैं। इिमें से अवधकांश इतिी छोटी होती हैं वक हम उनहें देख भी िहीं सकते। 22 रुररर पता िगाओ एक बार जब तुमहें ततै्ा का छत्ा वमि जाए, तो अगिे दस वदिों रोज़ािा िाँच वमिट े विए ध्ाि देखो। इस दौराि तुमह ें छत्े में जो भी बदिाि िज़र आएँ उनहें अििी रा्री में विखते जाओ। ततैया रा डं र मारना रंक मारिे क े विए ततै्ा अििे िेट िर िाई जािे िािी एक िुकीिी सुई का इसतेमाि करती हैं और इसी क े जवरए अििा ज़हर (venom) अनदर रािती हैं। इस ज़हर में कई रसा्िों का वमश्रण होता है वजसकी िजह से दद्क होता है और कीड़े िंगु (paralyzed) हो जाते हैं। िासति में एक अक े िी मादा कुमहार ततै्ा अणरे देिे क े विए एक ‘घड़ेिुमा’ घोंसिा बिाती है और इसमें अििे जहर से िंगु वकए कीड़े को भी रखती है तावक जब िािगा विकिे तो उसक े खािे क े विए कुछ मौजयूद हो। िेचर काॅनज़िचेशि फाउंरेशि द्ारा विकवसत एंटीिा िंख विछिी टांग रंक आँख सीिा उदर बताओ कर तुमहें वकस तरह का छत्ा वमिा? िह वमटटी का बिा है ्ा कागज़-जैसी वकसी सामग्ी का? छत्ा तुमहें कहाँ वमिा - घर क े अनदर, बगीचे में, दीिार िर ्ा वफर वकसी िेड़ िर? छत्े में तुमिे वकतिे ततै्ों को आते-जाते देखा? तुमिे वजि ततै्ों को देखा उिक े वचत्र बिाओ और उिक े िैटि्क ि रंगों क े बारे में बताओ। इि ततै्ों की अनदाज़ि िमबाई क्ा होगी? चकमक क े िते िर हमें अििे अििोकि और ततै्ों क े वचत्र भेजिा... 23 विछिे अंक में हमिे तुमहें अििे घर क े सभी वििावस्ों क े बारे में हमें विख भेजिे को कहा था। ्हाँ िौड़ी गढ़िाि से अिुभि चमोिी और भोिाि से अरुणा द्ारा भेजे गए जिाब िढ़ो और अिुभि द्ारा खींचे फोटो देखो। तुमहारे जिाब का इनतज़ार रहेगा। मममी सो रहीं थीं और ्ह दोिहर की बात है। मैं कूिर क े आगे िािे ििंग िर िेटी हुई थी, िक एक वचवड़्ा घर में छत की सीवढ़्ों से आ गई। और बाहर आँगि िािे िंखे क े ऊिर जाकर बैठ गई और चीं-चीं करिे िगी। चीं-चीं की आिाज़ सुिकर जब मैं बाहर आई तो देखा, िो तो आँगि से ही आ रही है और वचवड़्ा िंखे िर ही बैठी है। ऐसे तो हमारे घर में बहुत सारे जीि रहते हैं। और कुछ तो हमें वदखते भी िहीं हैं। िर जो वकसी भी तरह वदख जाते हैं चिते-वफरते ्ा घयूमते ि से िहिे तो हैं चींवट्ाँ, वफर मवकख्ाँ जो कभी-कभार कहीं भी जाती और वफर छर। कभी वटडरे आते उछिते-कूदते वछिकवि्ाँ, वततवि्ाँ, आवद ि तो आते-जाते रहते हैं। िर वचवड़्ा हमारे घर में िहिी बार आई थी। मैं बहुत खुश हुई। मैं उसकी ियूरी खावतरदारी करिा चाहती थी। िर िो हमारे घर में फँस गई थी। जहाँ से आई थी िो जगह उसे िािस िहीं वमि रही थी। घयूमते- घयूमते िो हमारे घर क े काँच िर आ बैठी। और िहाँ िो अििे आि को काँच में देखकर चोंच मारे जा रही थी। मैं चाहती थी वक उसे िािस िह रासता वमि जाए जहाँ से िो आई थी। तो मैंिे उसे सीवढ़्ों की तरफ उड़ािे की कोवशश की िर िो उधर जा िहीं िा रही थी। बहुत कोवशश क े बाद मैं थककर बैठ गई और उसे हमारे घर में इधर-उधर घयूमते हुए देखती रही। वफर िो अििे आि सीवढ़्ों की तरफ उड़ती हुई बाहर विकि गई। अरुणा, तेरह िष्क, भोिाि, म. प्र. मेरे घर में मैं और मेरा छोटा भाई मृगाँक रहते हैं। मेरे दादा और मेरी दादी जी रहती हैं। मममी और िािा रहते हैं। हमारे घर में िाँच वबवलि्ाँ हैं। दो वबवलि्ाँ तो हमेशा रहती हैं। और तीि वबवलि्ाँ चिी भी जाती हैं। और चयूहे भी हैं और छछयूनदर भी हैं। छछयूनदर कभी-कभी आते हैं। कभी-कभी साँि भी विकिते हैं। िीछे िुश्तार है और घर क े खेत हैं जो खािी हैं। इसविए साँि आते हैं। हमारे घर में खयूब सारी गौरै्ा रहती हैं। घर टीि की छत का है। इसविए गौरै्ा अििा घर बिा िेती हैं। िर ्े जो वबवलि्ाँ हैं िा वचवड़्ाओं िर झिट िेती हैं। दीिारों िर कई बार मकवड़्ाँ वदख जाती हैं। कई बार िो जाि ा बिा िेती हैं। सटोररूम, बाथरूम में तो ्ह वमि ही जाती हैं। रसोई में कॉकरोच हैं। िर ्ह ऐसी जगह वछि जाते हैं वक दिा से भी िहीं मरते। ्हाँ िािी सुबह ही आता है और कई जगह चयूता है। िहाँ वमटटी में कई सारे क ें चुएँ वमि जाते हैं। कई बार ित थरों क े िीचे मेंढक भी वमिते हैं। ्े खयूब सोते हैं। आस-िास गुिाब क े िौधे हैं। चमिा की बेि है। कई और फूिों क े िौधे हैं। मधुमवकख्ों को मैं िहचािता हयूँ। िर कई सारे कीड़ों को मैं िहीं जािता। ्हाँ ठणराई है तो मवकख्ाँ और मचछर कम वदखाई देते हैं। कमबिकीड़ों को मैं देखता हयूँ। चींवट्ाँ तो हमारे ्हाँ कािी और िाि रंग की होती हैं। मोटे िेट िािी और िमबी टाँगों िािी चींवट्ाँ बहुत है। जंगिी कबयूतर और बुिबुि कम वदखती हैं। अिुभि चमोिी, दयूसरी, क े नद्री् विद्याि् िौड़ी गढ़िाि, उत्राखणर तुम्ार े घर में कौन-कौन रहता ह रै ? 24 अगर हम तुमहें एक मज़ेदार िहेिी दें तो क्ा तुम हि करिा चाहोगे? ♣ + ♣ = 10 तो ♣ = ? ्ह ऐसी एक संख्ा होगी वजसे दो बार जोड़िे से बि तो ्ह ा ही सकती है। अब इसे देखो- ♠ + ♥ = 10 इसमें दोिों का माि 1 से 9 तक कुछ भी हो सकता है। अगर ♠ = 1 है तो ♥ = 9 होगा। अगर हम ♠ = 3 मािें तो ♥ = ? क्ा होगा तुम ही बताओ। इसी तरह आगे की िहेवि्ों को हि करो और हमें बतािा वक मज़ा आ्ा वक िहीं। गलित है ♣ ♣       -----------         -----------   _ _ मज़़ेदार! ♣ ♣ ♣ ♣ ♣ इन पन नों में हम कोशिि करेंगे कक आपको ऐसी दें हल में ज़़ा आए। ये पन ने ख ़ास उन लोगों के शलए है जिन हें गजित से डर लगत़ा है। िीचे कुछ आकृ वत्ाँ दी गई हैं जो संख्ा 1, 2, 4 ि 6 क े बराबर हैं। क्ा तुम बता सकते हो वक कौि-सी आकृवत वकस संख्ा को दशगाती है तावक िीचे वदए गए दोिों सिाि सही हो जाएँ? 1. 2. 0 0 25 इस िहेिी अिग-अिग में ि करक े देखो वक ऐसा करते हुए तुम वकतिी दयूर तक जा सकते हो चरि 5: तो ्वद में िोग और हरेक व्वकत िहाँ मौजयूद हर दयूसरे व्वकत से ठीक एक बार हाथ वमिाए तो कुि वकतिी बार हाथ वमिाए जाएँगे? ्वद 7 िोग हों तो....... ? चरि 2: ्वद में ि िोग और व्वकत िहाँ मौजयूद हर दयूसरे व्वकत से ठीक एक बार हाथ वमिाए तो कुि वकतिी बार हाथ वमिाए जाएँगे? चरि 3: ्वद कमरे में चार िोग हों और हरेक व्वकत िहाँ मौजयूद दयूसरे ्वकत ठीक बार वमिाए तो कुि वकतिी बार हाथ वमिाए जाएँगे? चरि 4: ्वद में िाँच िोग और व्वकत िहाँ मौजयूद हर दयूसरे व्वकत से ठीक एक बार हाथ वमिाए तो कुि वकतिी बार हाथ वमिाए जाएँगे? और ्वद 8 िोग हों तो..... ? अििे सभी उत्रों को ध्ाि से देखो क्ा तुमहें कोई िैटि्क िज़र आता है? क्ा इस िैटि्क क े आधार िर तुम इस सिाि क े आगे क े चरणों क े जिाब खोज सकते हो? तुमहारी सहयूवि्त क े विए िेज 38 में इि िहेवि्ों क े जिाब भी वदए गए हैं। हाथ तमिाऩे री पह ़ेिी चरि 1: ्वद एक कमरे में दो िोग हों और हरेक व्वकत िहाँ मौजयूद हर दयूसरे व्वकत से ठीक एक बार हाथ वमिाए तो कुि वकतिी बार हाथ वमिाए जाएँगे? 3. 26 ्राशा ददन औ पत्थर का बीज रवनोद कु 27 िीछे दौड़ते हुए सब दयूर थे। सब िे जो देखा दयूर से देखा वक बोियू िे दोिोें हाथ उठाकर दोिों ितथरों को हिा में झोंक वि्ा है। स्ािे बाबा बोियू क े साथ झोंिड़ी क े अनदर जाते हुए भी वदखे। अििे िीछे रह जािे िर सबको वचढ़ हो रही थी। भैरा, जो सबसे िहिे होिा चाहता था, सबसे िीछे था। सबसे विछड़ा हुआ िही अक े िा। दौड़िे की बजाए भैरा धीरे-धीरे सुसताकर चििे िगा था। जब िह देर से उिक े िास िहुँचा तो एक िैर की एड़ी उठाए िँगड़ाते चििे िगा। वकसी क े ियूछिे क े िहिे ही उसिे बता्ा, काँटा िग ग्ा। इस बोिकर िह िीछे िे अििी शवम्कनदगी को बचा रहा था। िर, सब ्ह जाि रहे थे। और भैरा क े बचाि में उसक े साथ थे। िेवकि, कूिा शरारत िे चयूकी िहीं। शरारत छोटी थी। उसिे कहा कुछ िहीं। िह भैरा की तरफ देखकर हँसी थी। िर उसे अििी हँसी भैरा को क्ों वदखािी थी? भैरा उदास हो ग्ा। कूिा िे भैरा को उदास देखा तो उसे अचछा िहीं िगा। िह भैरा क े िास और क े िर े िि ििा रख वद्ा। सब झोंिड़ी क े अनदर थे। ्ह वकस तरह की झोंिड़ी थी, समझ में िहीं आ रहा था। इसे कहीं से भी बिा्ा िहीं ग्ा था। देखकर िगता था वक झोंिड़ी क े ऊिर बादिों का छपिर राि वद्ा ग्ा हो। असि में छत की जगह एक जमी हुई िारदवश्कता थी। िािी वगरता तो दर िािी िहीं ्ह िारदवश्कता, ितथर की िारदवश्कता भी हो सकती थी। हो सकता है छत िारदशटी ितथर की बिी हो। थोड़ी देर में िक्षी उड़ते वदखाई वदए। इस िारदशटी छत से दयूर की चीज़ िास वदखाई देती थी और बड़ी भी। हो सकता है वक छत आतशी शीशे की तरह ितथर की बिी हो! रात में चनद्रमा एकदम िास वदखता। उसक े अनदर की छा्ा वदखती। जैसे दयूरबीि से देख रहे हों। शवि क े िि् वदखाई देते। खुिे आसमाि में इतिा उजािा वदखता वक छोटे-छोटे अक्षर िढ़े जा सकते। छपिर में इतिे तारे वदखाई दे रहे थे जैसे िए तारे उतर आए हैं। सब िोग िीछे तरफ िीछे दरिाज़ा गुफा क े मुख की तरह था। और िीछे ितथरों, चटटािों का अमबार िगा हुआ था। जैसे वकसी िहाड़ की बदिी कर उसे ्हाँ िा वद्ा ग्ा है। उनहीं क े बीच बैठा हुआ व्वकत ितथर िग था। िह ितथर िर काम कर रहा था। उसक े बाि, भौं, मयूँछें सब तराशे हुए ितथर क े िग रहे थे। ्ा हो सकता है ितथरों क े तराश िे की धयूि उस िर िककी जम गई हो! काँिरिािे ्ािे उनहोंिे “आओ आओ। िज़िी ितथर वमिा? वकतिा छोटा है?” “आज क े वदि क े िि दो िज़िी ितथर वमिे।” स्ािे बाबा िे कहा। “वदखाओ?” “बोियू! मुटठी खोिकर वदखा दो।” ितथर हाथ में िेकर उनहोंिे देखा। “सम् िर वमि ग्ा। देर होती तो काम रुक जाता। तुमहारी सहा्ता क्ा इस बािक िे की है?” “हाँ भै्ा।” उसिे कहा। “बोियू! तुम अचछे िड़क े हो। मैं तो ितथर आदमी हयूँ। धयूि बिकर िषट हो जाऊँगा। मेरे हृद् की आिाज़, मेरे काम की छैिी-हथौड़ी से तराशिे की आिाज़ है।” िािी वगरिे िगा था। बादि िगता है फट ग्ा था। मयूसिाधार बावरश होिे िगी थी। वबजिी क े कड़किे की िाज़ रही जैसे िड़ी े िे वबजवि्ाँ वगर रही हों। “आओ देखें।” और िे विछिाड़े तरफ गए। िमबा-चौड़ा विछिाड़ा भी आसमाि से ढँका था। आसमाि से िािी वगर रहा था। िर िीचे एक बयूँद भी िहीं टिक रही थी। बाहर िािी की मोटी धार इधर-उधर वगर रही थी। बाहर बहुत-से ितथरों क े बीच झरिे फूट िड़े थे। िािी की क े कड़कती वबजवि्ाँ कड़कती वबजवि्ों क े साथ अचािक वगरता हुआ िािी वदखता वक वकत िी ज़ोर से िािी वगर रहा है। बोियू क े सावथ्ों िे काि बनद कर विए थे। िर बोियू िे िहीं। उसक े दोिों हाथों में ितथर थे। “उम्र मैं ियूरी िथरा ्ा यूँ। िर िता- वफरता बहुत काम करता हयूँ।” उनहोंिे कहा। 28 उनहोंिे कहा, “आिेिािे ितथर एक-एक कर छोटे होते जाएँगे और क्रमश: िज़िी भी।” बोियू िे “ितथरिािे हाथ े ितथरों कहाँ रखयूँ। मेरा हाथ दुखिे िगा।” “आओ! मैं जगह बताता हयूँ।” अनदर टािों े छोटे-छोटे िी क े आिे बिे हुए थे। ्े सिाभाविक आिे थे। बोियू की िहुँच में एक आिा था। जो बोियू क े िाए हुए ितथर क े बराबर भी था। ितथरिािे बाबा िे उसी आिे की तरफ इशारा वक्ा। ियू िे उठाकर ितथर आिे रख वद्ा। बहुत-से िे उिमें ितथर थे। बोियू िे जो ितथर रखा था िह उि सबसे भारी और छोटा था। आिा बस इतिा ही बड़ा था वक एक ही ितथर आता। सभी बचचे आश्च््कचवकत थे। उनहें िग रहा था वक िे खुिे में बैठे हैं। उिक े चारों तरफ िािी वगर रहा है और उि िर िहीं। ्द्यवि िे अनदर थे िर अििे को बाहर भी समझ रहे थे और उनहें िग रहा था वक िे आकाश क े अवधक समीि हैं। हो सकता है वक िहिे िहाड़ अनतवरक्ष तक ऊँचे हों। और िहाड़ िर चढ़कर अनतवरक्ष िहुँच जाते हों। ्ह भी हो सकता है वक िृथिी क े ऊिर जो भी थोड़ी-सी ऊँचाई हो िह अनतवरक्ष की ऊँचाई हो। अनतवरक्ष तक जािे क े विए वकतिे ऊँचे तक जािा होगा? उि सबक े मि में ितथर क े आदमी की इस बात – उिका हृद् धड़कता है जैसे छैिी-हथौड़ी की आिाज़ हो – िर बात करिे की चाह थी। िर सब चुि थे। िर बोियू को उिक े कहे िर विश्िास िहीं था। बोियू जब उिक े िास से विकि रहा था तो उिकी धोती बोियू को छुआ गई थी। चारों तरफ ितथर क े झरोखे थे और उि झरोखों से प्रकाश और हिा आ रही थी। धोती बोियू को ितथ र की तरह ठणरी िगी थी। कड़ािि ितथर था। सकता वक धोती में किफ वक्ा ग्ा हो! धोती सयूत की हो! और अवधक किफ हो। ्ह किफ ितथर का भी हो सकता था। धोती को बहुत अचछे से िहिा ग्ा था। धोती कमर में खुँसी हुई थी। तो क्ा ्ह ितथर की धोती िरतदार चटटाि की चादर की तरह क े किड़े से बिाई गई थी? उिका िहिािा शा्द ितथर से तराशा ग्ा था। इसी तरह का सियूका था। बोियू िे कूिा से कुछ कहा। तो कूिा िे ितथरिािे बाबा से ियूछा, “क्ा आि सचमुच ितथर क े हैं?” “हाँ।” हँसते हुए उनहोंिे कहा। जैसे मज़ाक कर रहे हों। संगमरमर तरह िक े े द हँसते ् चमक रहे थे। कूिा िे वफर ियूछा, “क्ा आिको मचछर काटते हैं?” िे मुसकराए। कहा, “हाँ, काटते हैं।” “मचछर आिका खयूि क ै से िी सकते हैं?” आश्च््क में कूिा िे कुछ ज़ोर-से ियूछा था। सभी चवकत थे। उनहोंिे कहा, “मुझे ितथर क े मचछर काटते हैं। मैं अब ितथर का जीि हयूँ। ितथर से मेरा जीिि चिता है। कुछ देर े विए ्हाँ िे कुछ िहीं ्हाँ िे िगोगी तो एक वदि देखोगी वक तुमहारे िैर की छोटी उँगिी ितथर की हो गई है।” कूिा िे वफर ियूछा, “क्ा आिक े िाखयूि बढ़ते हैं?” उनहोंिे कहा, “हाँ।” “क्ा आिक े बाि कटते हैं?” बोियू िे ियूछा। उनहोंिे कहा, “हाँ।” भैरा िे ियूछा, “क्ा आि िहाते हैं?” उनहोंिे कहा, “हाँ।” “क्ा आि किड़ा धोते हैं?” कूिा िे तिाक से ियूछा। उनहोंिे कहा, “हाँ।” बाि कटिाते हैं?” “हाँ” उनहोंिे कहा। “दाि-भात सबज़ी खाते हैं?” “हाँ। और ितथर क े साथ हरी सबज़ी भी खा सकता हयूँ।” “क्ा आि जीवित मिुष् हैं?” “हाँ, मैं जीवित मिुष् हयूँ।” उनहोंिे गमभीर होकर कहा, “मुझे िगता है एक वदि ितथर िहीं मैं हयूँ ितथर बीज 29 सुरवक्षत रहे। मैं ितथर का बीज ढयूँढ हयूँ। ितथर बो ितथर की खेती करूँगा। मैं धयूि से ितथर वसंचाई रूँगा। ितथर क े बीज से ितथर उगेंगे। हो सकता है वक ितथर को एक वदि िे े ्ोग् िा्ा सक े । मैं अभी ितथर क े गमिे में ितथर उगा रहा हयूँ।” बात करते-करते िे अँधेरे की तरफ तो अँधेरे े ऊिर छत एक विकिा वदखाई वजससे तारे उजािा िीचे जाता। िे िबयूझकर अँधेरे की ओर बढ़ रहे थे और देख थे वक का विकि रहा है। देखयू िहाँ िहुँच ग्ा जैसे िह िहुँचा ठीक उसक े ऊिर मंगि विकि आ्ा। ियू े सपतऋवष तारों की छा्ा थी। िह िहिे से वदख उजिे ुि तरफ जा था। भैरा िे िैर रखा था ठीक उसक े ऊिर शवि े िि् ररकर िीछे ग्ा। ्ह कूिा को वफर हँसी आई। “बहुत हो अब िोग क ै से जाएँगे?” कूिा िे कहा। “वचनता करो। दर सम् काम बीतता वदि-रात िता िहीं िता। देखो, उस तरफ भोर का तारा भी वदख रहा है। बाहर क े सम् से मैंिे अििे ितथर की घड़ी िहीं वमिाई। बाहर जाओगे तो माियूम होगा वक संध्ा क े शा्द छह बज रहे हों। अरे! तुमिे मेरे आँगि का तुिसीचौरा िहीं देखा। िािी तो कब का बनद हो ग्ा है। दीए का सम् भी हो ग्ा है,” ितथरिािे बाबा िे कहा। उिक े आँगि का जो बाहर था िहाँ बाहर का आकाश था। िहाँ क े िि एक तारा दीए की िौ की तरह जि रहा था। अँधेरा अभी िहीं था। सांध् उजािा था। चित्र: हबीब अली 30 संध्ा क े छह-साढ़े छह बजे थे। िे घर िौट रहे थे। िौटते सम् बोियू िे कहा, “कूिा, जब तुमिे उिसे ियूछा था वक आिक े िाखयूि बढ़ते हैं तो उनहोंिे ‘हाँ’ कहा था। तुमको ्ह भी ियूछिा था वक ितथर क े िाखयूि क ै से काटते हैं? मैंिे देखा था उिक े िाखयूि कटे हुए थे।” कूिा िे कहा, “बोियू, तुमिे भी ियूछा था वक आिक े बाि बढ़ते हैं तो उनहोंिे ‘हाँ’ कहा था। ्ह भी ियूछ िेते वक ितथर क े बाि क ै से कटते हैं? कौि काटता है?” भैरा िे “ियूछ िेते वक ि ैं ची कटते वक छैिी-हथौड़ी से।”” तराशा वदि- ितथर का तराशा वदि विकिता होगा तै्ार होिे क े विए िहािे ितथर क े साबुि से झाग भी होता होगा ितथर का तराशा िािी तराशा बहता होगा िहा-धोकर तराशे काम िर विकि जाते हैं िौटते-िौटते तराशा वदि रयूबता होगा। ितथर का बीज- आिस में टकरािे से ितथर टयूटते हैं ्ा कोई टककर दे। टयूटिे से िहिे एक बड़ी चटटाि एक छोटा ितथर होकर रह गई। ऐसे छोटे ितथर को ढयूँढिा है वजसक े मि का िज़ि एक बड़ी चटटाि है। उस बीज को इकटठा करिा है। ितथरिािे बाबा िे कहा। िक मक जारी... चकमक कविता कार्क िढ़ो और वफर चाहो तो अििे दोसत को इसी कार्क क े दयूसरी तरफ एक वचटठी विखकर भेज दो । कविता कार्क क े चार गुचछे। हर एक गुचछे में। बारह कविताएँ। एक की कीमत है वसफ ्क िचास रुिए। मँगािे क े विए तुम चकमक क े िते िर विख सकते हो। ्ा हमें फोि कर सकते हो। ्ा चाहो तो सीधे ऑििाइि मँगा िो - http://www.pitarakart.in 31 म़ेरा पन्ा इतिार री शुरुआत चित्र: अक्् िौधरी, नस्सरी, आरुरि संस्ा भोपाल, म. प्र. वो इतवार की सुबह थी। मैं देर से उठी थी। जैसे ही मैं वॉशरूम जाने के होस्‍टि की सहेलियाँ मुझे देखकर हा, हा, हा करके िगीं। मैं थोडा चौंकी। “कया शाम हो गई हैॽ” मैंने अक किा से पूछा जो मुझे हँस थी। तुम्ह ें ुश करने की कोई ज़रूरत नहीं है।” “ओह, तो अचछा होगा क क मैं थोडी देर और सो ..., बह ु त गई ू ँ।” कहकर मैं वाकपस ब बस्तर पर आ गई। जैसे ही मैं ब बस्तर पर िे‍टी मुझे एहसास ह ु आ क क अभी सुबह रही मुझे ु त काम हैं। इतना िस कर सकती। मैंने मन ही मन कहा। जैसे ही मैं बाहर गई मेरी सहेलियाँ किर मुझे देखकर िगीं। छ हँसते-हँसते मेरे पीछे आने िगीं। “तुम िोग ि गए कयाॽ”, चचलिा ई और जलदी से वॉशरूम में घुस गई। “ओह गॉड”, ज़ोरों चचलिा ई। “ िक्मी, किा हो सबॽ” हककी -बककी रह गई थी कयोंक क मेरा चेहरा कािी स्याही पुता और ु त डरावना िग रहा था। और मैं समझ गई थी क क यह क क सकी हरकत है। “मैं तुम िोगों को छोड ू ँ गी नहीं” ऐसा कहकर मैं उन्ह ें ढूँढने बनक ि पडी। मैं गुस्से से िाि - पीिी हो रही थी और आखखरकार वो दोनों मुझे कमरे में बमि ही गए। मुझे देखते ही वो हँसते-हँसते िो‍ट -पो‍ट हो गए। “तुम दोनों, तुम्हारी बदमाशी... ” सॉरी, सॉरी कहकर वो किर हँसने िगे। जैसे ही मैंने गुस्से का ना‍ट क करते ह ु ए उन्ह ें पी‍ट ना शुरू क या की भी में आ गईं। थोडी ही देर में सब के द द खाकर हँसने िगे। इतवार के दन की वो एक मज़ेदार शुरुआत थी। - आशु खा󰇐‍बलाई, गयारहवीं, बेसेंट अरुदलाई सीननयर सैकेडरी सकू ल िेन्नई, ्नमलनाड ु 32 सदा ि ु गाती मीठी-मीठी वाणी | कै सच-सच कहना चचदडया रानी | ताज़ा दाना, बनम्मि पानी, शुद्ध हवा और धूप सुहानी | यही राज़ मेरी खुलशयों का, बोिी हँसकर चचदडया रानी | खुिे जगत में जीना सीखो, ताज़ा हो सब दाना–पानी| इतना कहकर ि ु किर ि ु ्म हो गई चचदडया रानी। -रुद्र स्ानशया, छठवीं, अदानी पब्लिक सकू ल मुन्द्रा, कच्छ, गुजरा् लचदड़या रानली एक ि उस ि बह ु त जानवर रहते थे। एक द दन दह रन और बन्द र वहाँ बातें करने आए। एक कछु आया तो उसने उन दोनों को बातें करते देखा तो वह चचलिाया। उसकी आवाज़ सुनकर दह रन बन्द र चछ प और दोनों की जान बच गई। उस द दन के किर कभी बातें नहीं और सोचते-सोचते ही रह गए। -खुशी, दूसरी, अजीम प्रेमजी रवद्ालय टोंक, राजसथान चित्र: ररया, उडान लनन िं ग सेंटर, कांडबरी, पालमपुर, दहमािल प्रदेश -राहुल प्रजाप्, छठवीं, राजसथान 33 म़ेरा पन्ा 34 खेतों में हररयािी है खेतों से खुशहािी है खेतों में पयारे-पयारे अनाज उगते बह ु त सारे क क सान खेतों में मेहनत करते ह ि चिाकर बीज उगाते सुन्द र-सुन्द र पौधे द द खते बीज जब खेतों में उगते -दहमांशी ध्ुव, अजीम प्रेमजी रवद्ालय धम्री, छत्ीसगढ़ वचत्र: तेजस, अक्षर िनदसि सकूि िुणे, महाराषट् मेरा गाँव एक पाताि पर बसा ह ु आ है | मेरे गाँव में पह िे रोड नहीं थी। और पह िे के िोग झूिे से उतरते-चढ़ते थे। बुज़ुग्म िोगों केारी, द ु ि्मभ ु रहा थी जडी-बूक‍ट यों का समावेश भी अधधक से अधधक था। परन्ु आजक ि के दनों में यह सब बविुप्तक होता जा रहा है। हाँ, आज हमारे देश यानी गाँव पर रोड बन गई है। -सुमरलाल भार्ी, ग्ारहवीं, ्ानमया आश्रमशाला 35 चित्र: केि्स, गरवारे बाल भवन पुणे, महाराष्ट्र म़ेरा पन्ा इन्द्रधनुष है सात रंग का बैंगनी, आसमानी, नीिा, हरा और पीिा, नारंगी, िाि च‍ट कीिा देखने में आधा गोिा जैसे आधा चाँद हमारा उस पर चढ़कर किसिें हरदम ऊपर-नीचे, नीचे-ऊपर आधा-आधा जोडकर बनाएँ पूरा गोिा कमर में पहनकर नचाएँ जैसे गोि -गोि ह ू िा -सेंट फांनसस सकू ल लखनऊ केा 2, वग्स ‘स’ केिों द्ारा रचि् इन्द्रधनुष 36 एक समय ऐसा था जब मैं प्रा इवे‍ट स्कू में पढ़ती थी। वहाँ पर बह ु त कप‍टाई होती थी। अगर कोई बचचा िे‍ट आता तो हाथ ऊपर करवाए जाते थे। कभी-कभी तो दो डणडे दाएँ हाथ पर और दो बाएँ हाथ पर पड ते थे। मैं हमेशा सोचती थी क क काश कोई ऐसा स्कू हो जहाँ ब बिकु ि कप‍टाई ना हो। किर मेरे घर एक िडकी आती थी। उसने मुझे उमंग स्कू के कहने मैंने मेरी ने उमंग स्कू दाखखिा िे लिया। जब मैं पह िे द दन उमंग स्कू आई तो हैरान रह गई कयोंक क ‍टीचर और बचचे गिे बमि रहे थे और हाथ बमिाकर गुड माबन िंग कर रहे थे। एक द दन मुझसे कुिती हो गई तो मुझे िगा क क अब तो मैं गई। अब मेरी ज़रूरी कप‍टाई होगी। िेक क न सर ने मुझे बुिाया और बातचीत करके डरना बन्द कर द दया। एक और बात है क क जब मैं आई तो उमंग में सब बचचे एक साथ खाते-पीते और खेिते थे। पर मैं और मेरी बहन सबसे अिग खाते थे कयोंक क वहाँ पर नीची जाबत केचे खाते थे। इस तरह से हम सबसे अिग रहते थे। कु दनों तक ऐसा चिता रहा। किर हमारी ‍टीचर ने समझाया क क हमारे स्कू में सब बराबर हैं। हमें ऐसे नहीं करना चादह ए। ‍टीचर ने भी साथ में खाना शुरू क क या। किर हममें थोडा -थोडा बदिाव आने िगा। और हम सब के रहने िगे। अब हम ब बना डरे अपनी बात कह सकते हैं। बात करने में खझझकते भी नहीं है। काश सभी स्कू ऐसे ही हो जाते। -मानसी, आसनां समूह, उमंग सकू ल हरयाणा काश ऐसा हो स्कू वचत्र: साध्ा, दस िष्क, ियूणगा िवििंग सेंटर बैंगिौर, किगाटका 37 1 . ♥ =3 2.  = 6,  = 2,  = 1 और  = 4 ३ . हाथ वमिािे की िहेिी का हि: कमरे में मौजयूद हरेक व्वकत खुद को छोड़कर बाकी सभी से हाथ वमिाएगा। ्ािी वक कमरे में वजतिे भी व्वकत होंगे हाथ वमि ािे िािों की संख्ा उससे एक कम होगी। इस वहसाब से जब कमरे में क े िि 2 व्वकत हों तो 2 × 1 = 2 होगा, िेवकि एक बार में दो व्ंवकत हाथ वमिाएँगे इसविए कुि हाथ वमिािे की संख्ा होगी (2 × 1) / 2 = 1, इसी प्रकार जब कमरे में तीि व्वकत हों तो (3 × 2) / 2 = 3, जब चार व ्वकत हों तो (4 × 3) / 2 = 6 जब ि ाँच व ्वकत हों तो (5 × 4) / 2 = 10, जब छह व्वकत हों तो (6 × 5) / 2 = 15, जब सात व्वकत हों तो (7 × 6) / 2 = 21 और इसी प्रकार आगे भी.... अब इि सभी जिाबों को एक साथ रखिे िर हम देख िाएँगे वक 1, 3, 6, 10, 15, 21..... इिक े बीच क े अनतर िर ध्ाि दो – ्े हैं 2, 3, 4, 5, 6, ्ािी िे का त्र िािे े विए िाि व्वकत्ों की वजतिी संख्ा दी गई है उससे एक अवधक संख्ा को विछिे चरण क े उत्र में जोड़ दो। ििाब: गलित है मज़़ेदार 38 पूरी नीिे मकान नकशा दया है जजसमें कमरे दीवारों मौजूद ज़ों को ददखाया गया है। ्ु󰇐ह ें मकान केदर या बाहर के रकसी दरवाज़े शुरुआ् दरवाज़े से होकर एक बार गुज़रना है। कै ऐसी कौन-सी िीज़ है जजसे हम आधा खा लें ्ो भी वह पूरी ही रह्ी है? फटाफट ब्ाओ रक जब हम िल्े हैं ्ो हमारा बायाँ हाथ, बायाँ पैर बढ़ाने पर आगे की ओर दहल्ा है या दायाँ पैर बढ़ाने पर? वदए हुए बॉकस में 1 से 6 तक क े अंक भरिा। आसाि िग रहा है ि? िर ्े अंक ऐसे ही िहीं भरिे हैं। अंक भरते सम् हमें ्ह ध्ाि रखिा है वक 1 से 6 तक क े अंक एक ही िंवकत और सतमभ दोहराएं ि साथ साथ, बॉकस में तुमको छह रबबे वदख रहे होंगे। ध्ाि रहे वक उि रबबों में भी 1 से 6 तक क े अंक दुबारा ि आएँ। कवठि िहीं है करक े तो देखो, जिाब अगिे अंक में तुमको वमि जाएगा। सुडोकू सुडोकू सुडोकू का जवाब 6 2 3 2 4 1 3 3 1 2 4 4 2 3 1 1 3 4 2 5 यदद जैसे कागज़ों एक सीधा एक गोल-गोल करकेिाईं से फें ्ो कौन-सा पहले ज़मीन पर पहुँिेगा? सफे्ी काले छोले हाथों बोएँ, मुँह से बोले (रक्अ खेनल रप पीकॉ) 5 6 1 5 3 6 4 आगे-आगे मौजी भैया, पीछे-पीछे पूँछ आगे बढ़्े मौजी भैया, घट्ी जा्ी पूँछ (गाधा-ईसु ) चित्र: ददलीप चि ं िालकर 39 एर सयूख़े प़ेड री दुतनया दीपाली शुक्ला मेरे घर क े िीछे एक िहाड़ी है। उसमें वकसम-वकसम क े िेड़ हैं। सब हरे-भरे हैं बस एक शीशम क े िेड़ को छोड़कर। इस िेड़ से मुिाकात का वसिवसिा दो बरस िहिे शुरू हुआ। तब ्ह एक हवर्ि शीशम था। बस एक राि कुछ सयूखािि विए वसर उठाए आसमाि को छयूती थी। बरसात क े मौसम में मेरा ध्ाि तब शीशम िर ग्ा जब गौरे्ा, बुिबुि, सातभाई वचवऱ्ाओं क े झुणर इसकी सबसे ऊँची शाख िर अििे भीगे िंखों को सुखािे बैठे थे और उिकी िंखों की फड़फड़ाहट से बावरश हो रही थी। उसक े बाद मैं रोज़ ही कुछ सम् इस िेड़ को ताकते हुए वबतािे िगी। सयूखिे का वसिवसिा धीरे-धीरे िंवछ्ों क े किरि क े बीच बढ़ रहा था। िर हर सुबह तरह-तरह की वचवड़्ाएँ शीशम िर फुदकतीं, उछितीं, झगड़तीं, सुसतातीं। आज ्ह सयूख ग्ा है, भयूरे खुरदरे तिे और उसक े चारों तरफ िटकी सयूखी िताओं क े अिशेषों को विए खड़ा है। इसक े िड़ोसी बेर और सेमि िर मौसम क े साथ िवरनदों की बसाहट करिट िेती है िर शीशम की सयूखी रावि्ाँ हर मौसम में एक सी रहती हैं। कि का ही वकस सा है सात भाई वचवऱ्ाओं का एक ियूरा का ियूरा कुिबा रािों िर मोवत्ों की तरह खुद ही सज ग्ा था। ठणर क े कारण वकतिी ही एक साथ सटकर िींद का मज़ा िे रही थीं। कुछ सुबह क े आिे क े साथ अििी चोंच को िैिा कर रही थीं खुरदरे तिे से रगड़कर। उिक े इद्क-वगद्क बुिबुि उड़ाि भर रही थी। गौरै्ा भी उिको आ-आकर देख रही थीं। 40 थोड़े वदि िहिे ि तिाश मोरवि्ां और उिक े िनहे एक कतार में शीशम क े िेड़ क े आसिास से गुज़र रहे थे। मोरवि्ों को आकवष्कत करिे क े विए मोर आिाज़ कर रहे थे। िर इधर मोरवि्ों को तो जैसे कुछ सुिाई ही िहीं दे रहा था। बचचों क े साथ िरम िवत््ों को िे मशगयूि आकवष्कत िे किा्द में एक मोर िे आवखरकार शीशम की एक शाख का सहारा वि्ा। काफी देर िह राि िर बैठा आिाज़ देता रहा, देता रहा। वफर हिा में वफसिकर बेर क े झुरमुट में खो ग्ा। शीशम े िकक े -िकक े सतों शावमि को्ि। इिकी दोसती काफी िुरािी है। जब िेड़ िवत््ों से िदा-फदा था तब भी और आज जब िह यूखा खत तब को्ि वत्ाती वदखती हैं इससे। सुबह-सुबह ढेर सारी को्ि िेड़ िर आ बैठती हैं। जो एक-द यूसरे से बात िहीं करतीं िो मुँह फ े रकर बैठती हैं। शीशम की रािों िर बार-बार िंखों को फड़फड़ाकर हिा करती हैं। चोंच को रगड़ती हैं। कई बार मादा को्ि शीशम िर घणटों बैठती है। वकत िी बातें कहती सुिती है शीशम से, वकसे िता! हमेशा िहीं िर कभी-कभार वशकरा भी शीशम िर आराम फरमाता वदखता है। उस वदि चारों ओर बस मौि होता है। बाकी िवरनदे आसिास िहीं होते। तब हिा का बहाि भी बेहद सहमा होता है। वशकरा िेड़ क े रंग को ्यूँ ििेटता है वक दोिों को अिग करिा आसाि िहीं। जब शीशम हवर्ि था तब ितरंगी भी अकसर शीशम से हवरवतमा िेिे आती थी। दोिहर की तेज धयूि में िवत््ों क े बीच ितरंगी की चमक का क्ा कहिा! बीच-बीच में ितरंगी शीशम को अििी उड़ाि भी वदखाती। िर अब ितरंगी इस दरखत िर िहीं आती। शीशम क े िड़ोसी ििाश की िवत््ों से झांकती है इि वदिों। एक और दोसत है वजसे वकसी से बात करिे की फुस्कत ही िहीं वमिती वसिा् शीशम क े । िह ऊिर से िीचे, िीचे से ऊिर, एक शाख से दयूसरी िर ड़ती है को ििी ियूँछ से गुदगुदी करती। कुिकुिी धयूि का आिंद िेिे क े विए िह तिे िर आँखें मयूँदें रहती है। वकसी-वकसी वदि तो बस वगिहवर्ों का एक क े िीछे एक दौड़िे का वसिवसिा थमता ही िहीं। तब शीशम को एक ि्ा रंग वमिता है। फोटोग्ाफ: दीपाली शुक्ला िक मक 41 रवज्ापन D-83134 14/03/2018 42 D-83134 14/03/2018 43 RNI क्र. 50309/85 डाक पंजीयन क्र. म.प्र./भोपाल/261/2018-20 चित्र: नीलेश गहलो् सयूँड उठारर हाथी बैठा पक्ा गाना गाऩे, मच्छर एर घुस गया रान में, िगा रान खुििाऩे। फट-फट फट-फट तबि़े िैसा हाथी रान बिाता, बड़ेि स़े भीतर बैठा मच्छर गाना गाता! मच्छर और हाथी सिचेश्िरद्ाि सकसेिा प्रकाशक एवं मुद्रक अररवन्द सरदाना द्ारा स्ामी रैक्स डी रोज़ाररयो केनलए एकलव्य, ई-10, शंकर नगर, 61/2 बस स्ॉप के से प्रकानश् एवं आर. केनसक्ुरप्रन्ट प्रा. नल. प्ॉट नम्बर 15-बी, गोरवन्दपुरा इंडस्सरियल एररया, गोरवन्दपुरा, भोपाल - 462021 (फोन: 0755 - 2687589) से मुदद्र्। सम्ादक: सुशील शुक्ल 44