डॉ. डी. बालसुब्रमण्यनअपने अधिकांश भोजन, वस्त्र और आश्रय (रोटी, कपड़ा और मकान) के लिए हम पेड़-पौधों पर निर्भर हैं। पेड़-पौधे स्वयं अपनी वृद्धि के लिए मिट्टी और उसके नीचे की धरती, पानी, हवा और धूप पर निर्भर हैं। इस तरह से सूरज की रोशनी पौधों की वृद्धि के लिए अनिवार्य कच्चा माल है। सूरज की रोशनी, पानी और हवा में उपस्थित कार्बन डाईऑक्साइड का उपयोग करके पौधे वह सब बनाते हैं जो उन्हें स्वयं की शारीरिक क्रियाओं के लिए चाहिए (और साथ ही हमारी ज़रूरत भी पूरी करते हैं)। इस क्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं और यह मुख्यत: पत्तियों (और उनके जैसे अन्य उपांगों) में सम्पन्न होती है। मनुष्य व कई अन्य जंतु इस बात के भरोसे हैं कि पेड़-पौधे किस मुस्तैदी से प्रकाश संश्लेषण करते हैं, बढ़ते हैं और संख्या वृद्धि करते हैं।
ज़ाहिर है, मानव आबादी के बढ़ने के साथ, हमें खाद्यान्न की बढ़ती ज़रूरतें पूरी करने के लिए अधिक फसलें उगानी पड़ेंगी। इस लिहाज़ से यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि हम इस बात का अध्ययन करें कि वनस्पतियों की उत्पादकता कैसे बढ़ाई जाए।
इलिनॉय विश्वविद्यालय के डॉ. स्टीफन पी. लॉन्ग और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के कृष्णा के. नियोगी के नेतृत्व में शोधकर्ताओं के एक अंतर्राष्ट्रीय समूह ने इस समस्या पर ध्यान केंद्रित किया है। उनके शोध पत्र का शीर्षक है “प्रकाश सुरक्षा से बहाली को बढ़ाकर प्रकाश संश्लेषण तथा फसल उत्पादकता में सुधार” और यह साइन्स शोध पत्रिका के 18 नवंबर 2016 के अंक में प्रकाशित हुआ है।
सूरज की रोशनी की ऊर्जा को पत्तियों में उपस्थित क्लोरोफिल नामक हरे रंग का रंजक पकड़ता है और इस ऊर्जा से रासायनिक क्रियाओं का संचालन किया जाता है। किंतु यह ऊर्जा पत्तियों को नुकसान भी पहुंचा सकती है (याद कीजिए समुद्र तटों पर धूप सेंकने वालों की त्वचा जल भी जाती है)। पौधे ऐसी प्रकाश-जनित क्षति से सुरक्षा के लिए ऊष्मा का उत्सर्जन करते हैं (याद कीजिए हम इसी सुरक्षा के लिए विशेष मरहम और काले चश्मों का उपयोग करते हैं)। किंतु इस अतिरिक्त सौर ऊर्जा के ‘शमन’ का काम तेज़ी से होना चाहिए। यदि इस ‘शिथिलीकरण’ में और चक्र को फिर से शु डिग्री करने में बहुत समय लगे (कई बार आधा घंटा या उससे भी ज़्यादा) तो इसे ‘वक्त की बरबादी’ ही कहा जाएगा। उपरोक्त समूह का मत है कि यदि हम बहाली की इस प्रक्रिया (जिसे गैर-प्रकाश-रासायनिक शमन यानी एनपीक्यू कहते हैं) को तेज़ कर सकें तो हम फसलों की उत्पादकता बढ़ा सकेंगे।
पौधों में एनपीक्यू स्तर को इस तरह बदलने का नियंत्रण तीन प्रोटीन की क्रिया द्वारा किया जाता है। एक प्रोटीन, जिसका संक्षिप्त नाम ज़ेडईपी है, एनपीक्यू दर को बढ़ाता है। वीडीई नामक एक दूसरा प्रोटीन ज़ेडईपी की क्रिया को संतुलित रखने का काम करता है जबकि तीसरा प्रोटीन (नाम पीएसबीएस) एनपीक्यू स्तर को समायोजित करता है। यदि हम इन तीन प्रोटीन्स के स्तरों के साथ उठापटक कर सकें, तो प्रकाश संश्लेषण की कार्यकुशलता को बढ़ाकर फसल की उपज भी बढ़ा सकते हैं।
इसी उद्देश्य से उक्त समूह ने तंबाकू के पौधे में वीडीई, पीएसबीएस तथा ज़ेडईपी के जीन्स प्रविष्ट कराए और एक जेनेटिक रूप से परिवर्तित पौधा प्राप्त किया। यह दरअसल मात्र सिद्धांत को दर्शाने वाला प्रयोग था। तंबाकू को ही क्यों चुना गया? जब यह सवाल विज्ञान लेखक हैना मार्टिन लॉरेंज़ ने पूछा तो डॉ. लॉन्ग का जवाब था: “क्योंकि इसे (तंबाकू के पौधे को जेनेटिक रूप से) परिवर्तित करना आसान है और यह एक फसल है, इसलिए यह पत्तियों की परतें पैदा करता है, जैसी कि हम चाहते हैं। (इसके अलावा) चूंकि प्रक्रिया चावल, सोयाबीन, गेहूं और मटर के समान है, इसलिए हम काफी यकीन से कह सकते हैं कि यह खाद्यान्न फसलों में भी काम करेगी। अलबत्ता, अगला कदम इसी प्रकार के परिवर्तन उन फसलों में करने का है, जिन्हें परिवर्तित करना कहीं ज़्यादा मुश्किल है।”
तीनों जीन्स (वीडीई, पीएसबीएस और ज़ेडईपी) से युक्त पौधों को वीपीज़ेड पौधे कहा गया और उनके प्रदर्शन की तुलना सामान्य, अपरिवर्तित तंबाकू के पौधों से की गई (जिन्हें वैज्ञानिक ‘जंगली किस्म’ कहते हैं)। वीपीज़ेड पौधों में एनपीक्यू का शिथिलीकरण अधिक तेज़ी से हुआ और उनमें बहाली होकर वापिस प्रकाश संश्लेषण जल्दी शु डिग्री हो गया। अगले प्रयोग में शोधकर्ताओं ने पौधों पर पड़ने वाले प्रकाश में उतार-चढ़ाव किए ताकि उजाले और अंधेरे (यानी दिन और रात) की परिस्थितियां निर्मित कर सके। इस बार भी वीपीज़ेड और जंगली किस्मों की तुलना की गई। इस प्रयोग में भी कम प्रकाश में वीपीज़ेड पौधों का प्रदर्शन जंगली किस्म से बेहतर रहा।
और फिर खेतों में फसल के रूप में उत्पादकता की जांच करने के लिए उन्होंने दोनों तरह के तंबाकू के पौधों को विश्वविद्यालय के खेतों में बोया। अपरिवर्तित पौधों की बनिस्बत वीपीज़ेड पौधों में पत्तियों की सतह का क्षेत्रफल ज़्यादा था (यानी ज़्यादा प्रकाश संश्लेषण), पत्तियों, तने और जड़ों का वज़न ज़्यादा था और प्रति पौधा शुष्क भार भी 15-20 प्रतिशत अधिक था।
शोधकर्ताओं के अनुसार ये परिणाम इस अवधारणा का सबूत पेश करते हैं कि खाद्यान्न फसलों की उत्पादकता बढ़ाना संभव है। यह सही है कि ये पौधे जेनेटिक रूप से परिवर्तित किए गए हैं। मगर ध्यान रखने की बात यह है कि ये जीन्स वनस्पतियों से ही लिए गए हैं, ये वनस्पति जगत के लिए विदेशी नहीं हैं। अर्थात इनके उपयोग को लेकर जीएम-विरोधी लोगों को बहुत ज़्यादा आपत्ति नहीं होनी चाहिए। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - September 2017
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