फोटो डायोड एक खास तरह का डायोड है। डायोड एक इलेक्ट्रॉनिक पुर्जा है जो विद्युत धारा को एक ही दिशा में बहने देता है। डायोड के संकेत में तिकोना तीर विद्युत धारा की दिशा दिखाता है। इस बात पर गौर करने के लिए चित्र में दिया परिपथ देखिए। इसमें डायोड और सेल के ध्रुव इस तरह लगे हैं कि बल्ब जलने लगेगा। अब यदि इस डायोड को उल्टा करके परिपथ में लगा दें तो विद्युत धारा नहीं बहेगी और बल्ब नहीं जलेगा। असल में ऐसा नहीं है कि उल्टा लगाने पर बिल्कुल नहीं बहेगी। ऐसा करने पर भी धारा बहती ज़रूर है, परन्तु बहुत ही कम।

अब यदि डायोड के अंदर की बनावट को खोलकर कांच के खोल में रखा जाए और डायोड को उल्टा लगा दिया जाए तो बहने वाली विद्युत धारा उस पर पड़ने वाली रोशनी पर निर्भर करती है। (लॉगेरिधमिक अनुपात में)। इस तरह एक डायोड के अंदर की बनावट को कांच बंद करके उस से रोशनी की मात्रा नापी जा सकती है। ऐसे डायोड को फोटो डायोड कहते हैं।

और एक नज़र इधर भी . . . . .
जहां पूर्ण सूर्य ग्रहण दिखाई देने वाला था वहां तो अनेकों वैज्ञानिक व बहुत से अन्य लोग साजो-सामान के साथ पहुंच रहे थे। नीमका थाना, भरतपुर, भिंड, फतेहपुर सीकरी, इलाहाबाद और डायमंड हार्बर से आए दिन अखबारों के ज़रिए खबरें मिल रही थीं कि क्या-क्या तैयारियां चल रही हैं। लेकिन बहुत से लोगों में ग्रहण को लेकर खौफ था और कई लोगों ने ग्रहण के समय घर से बाहर न निकलने का फैसला किया था। ऐसी ही मिली-जुली स्थिति होशंगाबाद और बैतूल जैसी जगहों में भी थी।

काफी दिन पहले से स्कूलों में बच्चों से सम्पर्क साध कर तरह-तरह की बातचीत, गप-शप करने पर इलाके में भी कई लड़के-लड़कियों ने ग्रहण को देखने और उस दौरान विभिन्न स्थितियों को नोट करने में रुचि दिखाई थी। उनके साथ प्रयोग करते हुए ग्रहण देखने के विभिन्न तरीकों पर भी चर्चाएं हुर्इं कि किस तरह सूर्य का बिम्ब बनाकर दीवार पर लगाए कागज पर उसे ट्रेस किया जा सकता है, किताब में बनवाए गए पिन होल कैमरे का इस्तेमाल ग्रहण देखने के लिए कैसा किया जा सकता है ...।

ग्रहण के दिन पलिया पिपरिया (ज़िला होशंगाबाद) और शाहपुरा (जिला बैतूल) के छात्रों ने अपने शिक्षकों की मौजूदगी में सूर्य ग्रहण की अलग-अलग स्थितियां ट्रेस की और उनका समय भी नोट किया। जैसा कि चित्रों ने स्पष्ट है कि सूर्य के लगातार हिलते बिम्ब को सफाई के साथ खींचने में ये बाल-वैज्ञानिक पर्याप्त कौशन नहीं दिखा पाए। लेकिन यहां चित्रों की सफाई से भी महत्वपूर्ण बात थी कि बच्चों ने सूर्य ग्रहण को एक सामान्य प्राकृतिक घटना के रूप में देखते हुए विभिन्न तरह के फिल्टर बनाकर उनके ज़रिए, पिन होल कैमरे में से, दीवार पर बिम्ब बनाकर ... और भी पता नहीं कितनी तरह देखा।

- माधव केलकर