कोई क्रमबद्ध शिक्षा नहीं, बस सीखने और प्रकृति के नियमों को समझने की अगाध ललक। जिल्दसाज़ से दुनिया का एक महान
वैज्ञानिक - सचमुच फैराडे धुन का पक्का था।

ब्रिटेन के सर हम्फ्री डेवी अपने समय के महान रसायनज्ञ थे। वैज्ञानिक के रूप में उनकी प्रतिष्ठा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1807 में जब फ्रांस और ब्रिटेन के बीच घमासान युद्ध छिड़ा हुआ था तब डेवी को ‘इंस्टिट्यूट द फ्रांस' का ‘नेपोलियन पुरस्कार दिया गया था। डेवी से जीवन के अंतिम दिनों में जब पूछा गया कि उनकी महान खोजें क्या-क्या हैं तो उन्होंने उत्तर दिया -- “खदान में जलने वाला सुरक्षा लैंप, कुछ विद्युतीय व रासायनिक खोजें और माइकल फैराडे।'' कौन था यह फैराडे?

फैराडे का बचपन
एक बेहद गरीब परिवार में जन्मे माइकल फैराडे ने किसी स्कूल में शिक्षा नहीं ली। चर्च में रविवार को लगने वाली पाठशाला में ही उसने लिखना और पढ़ना सीखा। 14 वर्ष की छोटी-सी उम्र में उसने अखबार बांटना शुरू कर दिया और एक जिल्दसाज़ के यहां नौकरी कर ली। यहीं पर फैराडे को रसायन शास्त्र की पुस्तकें पढ़ने का मौका मिला और उसकी रुचि इस विषय में बढ़ती गई।

1812 में सर हम्फ्री डेवी ने लंदन के रॉयल इंस्टिट्यूशन में व्याख्यानों की एक श्रृंखला आयोजित की। फैराडे ने इन व्याख्यानों को सुना। वह इनसे इतना प्रभावित हुआ कि उसने विस्तार पूर्वक उन व्याख्यानों को लिखा और उन पर जिल्द चढ़ा कर डेवी को भेंट किए। साथ ही उनसे उनकी प्रयोगशाला में काम देने का अनुरोध किया। डेवी फैराडे के उत्साह से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने फैराडे का इंटरव्यू लिया। लेकिन उन्होंने तुरंत उसे कोई काम नहीं दिया।

कुछ ही समय के बाद डेवी प्रयोग शाला में घटी एक दुघर्टना के कारण आंशिक रूप से अंधे हो गए। इसके बाद उन्होंने फैराड़े को अपने नोट्स लेने के लिए रखा। थोड़े और दिनों बाद ही डेवी का अपने एक सहायक से झगड़ा हो गया। उन्होंने उसे निकाल दिया और उसकी जगह सहायक के पद पर फैराडे को रखा। यह साल था 1813.

इसी साल डेवी यूरोप की यात्रा पर निकले, फैराडे भी उनके साथ में था। इस दौरे में दुनिया के कुछ प्रमुख रसायनशास्त्रियों से उसकी मुलाकात हुई। साथ ही डेवी रोज़ाना उसे पढ़ातेयह दौरा 1815 में समाप्त हुआ। और शायद फैराडे के ज्ञान में इस दौरे ने काफी बढ़ोत्तरी की। फैराडे डेवी के साथ 182) तक रहा। इस दौरान फैराडे ने डेवी की सहायता तो की ही साथ ही खुद भी स्वतंत्र रूप से प्रयोग करने शुरू कर दिए थे।

कुछ स्वतंत्र शोध
फैराडे का सबसे पहला उल्लेखनीय काम था 1820 में कार्बन व क्लोरीन के यौगिकों का निर्माण C2Cl6 और C2Cl4। उन्होंने एथिलीन गैस में हाइड्रोजन को क्लोरीन द्वारा विस्थापित करके ऐसा किया। रसायन शास्त्र में यह पहली विस्थापन क्रिया थी। बाद में इन्हीं यौगिकों के द्वारा बर्ज़ीलियस के रासायनिक संयोग सिद्धांत को चुनौती दी गई।

इसी वर्ष फैराडे ने लौह मिश्र धातुओं पर प्रयोग शुरू किए जिसकी बुनियाद पर आगे चलकर धातुविज्ञान का ढांचा खड़ा हुआ। इसके अगले वर्ग ही फैराडे ने टेट्राक्लोरोएथिलीन का निर्माण किया। शीघ्र ही टेट्राक्लोरो-एथिलीन का एक घोलक के रूप विभिन्न उद्योगों में व्यापक रूप से इस्तेमाल होने लगा क्योंकि यह अज्वलनशील व विषरहित रसायन है।

विद्युत के प्रयोग
1820 में डेनमार्क के हैंस क्रिश्चियन ऑरस्टेड नामक वैज्ञानिक ने एक महत्वपूर्ण खोज की कि किसी भी तार में विद्युत धारा का प्रवाह, उस तार के चारों ओर एक चुंबकीय क्षेत्र पैदा करता है। फ्रांस के वैज्ञानिक एंपीयर ने यह दिखाया कि यह चुंबकीय क्षेत्र वृत्ताकार होता है।

फैराडे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इस निष्कर्ष के महत्व को समझा। उनका विचार था कि यदि एक चुंबकीय ध्रुव को अलग किया जा सके तो वह विद्युत प्रवाहित होने वाले तार के चारों ओर एक वृत्ताकार पथ में समान गति से घूमेगा। अपनी प्रतिभा और प्रयोग शाला तकनीकों की विशिष्टता का उपयोग करते हुए फैराडे ने एक उपकरण का निर्माण किया जिससे उसके विचारों की पुष्टि होती थी। यह उपकरण पहली ऐसी विद्युत मोटर थी जिसके द्वारा विद्युत ऊर्जा यांत्रिक ऊर्जा में बदली गई। 

इस प्रयोग की सफलता के बाद फैराडे को विद्युत के स्वभाव के बारे में जिज्ञासा हुई। अपने समकालीन वैज्ञानिकों के मत के विपरीत, वे इस बात से संतुष्ट नहीं थे कि विद्युत, तार में उसी तरह बहती है जैसे पाइप में पानी। उनका विचार था कि विद्युत एक प्रकार का कंपन या बल है जो विद्युत ले जाने वाले माध्यम में पैदा हुए तनाव के कारण एक जगह से दूसरी जगह स्थानांतरित होती है। लेकिन एक प्रयोग ने फैराडे को बहुत

फैराडे का ट्रांसफार्मरः लोहे की चकती पर लपेटकर बनाई गई कुंडली (A) में से धारा प्रवाहित की जाती है। इस विद्युत धारा को क्रमशः बंद कर, प्रवाहित कर साथ लगी दूसरी कुंडली (B) में प्रेरित विद्युत धारा पैदा की जाती हो।

परेशान किया। उसका विचार था कि यदि ध्रुवीकृत प्रकाश की किरणें एक ऐसे घोल में से प्रवाहित की जाएं जिसमें विद्युत रासायनिक पृथक्करण हो रहा हो तो विद्युतधारा के बहाव के कारण होने वाली अंतराण्विक क्रियाओं का पता लगाया जा सकता है। अपने जीवन के अंत तक उन्होंने बार-बार इस धारणा की पुष्टि के लिए प्रयोग किए किंतु हर बार असफल रहे। 

1820 में फैराडे को लंदन की रॉयल सोयाइटी द्वारा एक शोध परियोजना दी गई। इसके अंतर्गत उन्हें दूरदर्शी में लगने वाले लैंसों की गुणवत्ता में सुधार करना था। इस काम में किए गए प्रयोगों द्वारा उन्होंने अत्यंत उच्च अपवर्तनांक वाले कांच का निर्माण किया। कुछ वर्ष बाद फैराडे ने बेंजीन को खोज निकाला - लेकिन इसका नाम बेंजीन एक जर्मन रसायनज्ञ फॉन हॉफमैन ने रखा, जिसने इसे कोलतारे में पाया था।

1830 में फैराडे ने भौतिकी में बलों की रेखाओं की धारणा प्रस्तुत की। 1831 में उन्होंने अपने प्रयोगात्मक परीक्षणों द्वारा चुंबकीय क्षेत्र में बदलाव के कारण, विद्युत क्षेत्र में होने वाले बदलाव का उससे एक गुणात्मक संबंध स्थापित किया। फैराडे ने प्रतिपादित किया कि चुंबकीय क्षेत्र कई प्रेरण रेखाओं से बना होता है। जब प्रेरण रेखाओं का झुंड किसी निश्चित क्षेत्र को काटता है तो इसे


चुंबकीय-विद्युतीय प्रेरण को दर्शाने के लिए फैराडे ने इस उपकरण का उपयोग कियाः इसमें तार की एक कुंडली में एक चुंबक अंदर बाहर होता है - इस कुंडली से एक गैल्वेनोमीटर जुड़ा हुआ है; चुंबक की इस गति से कुंडली में विद्युत धारा पैदा होती है।

चुंबकीय फ्लक्स कहते हैं। 

चुंबकीय फ्लक्स में बदलाव का बुनियादी प्रभाव होता है विद्युत क्षेत्र का उत्पन्न होना। कुछ वर्षों बाद एक ब्रिटिश भौतिक-शास्त्री मैक्सवेल ने इस धारणा को गणितीय सूत्र दिया। इसे फैराडे का ‘प्रेरण का नियम' कहते हैं।

1833 में फैराडे ने अपने प्रयोगों द्वारा विद्युत अपघटन के नियम स्थापित किए जिन्हें फैराडे के ‘विद्युत अपघटन नियम' कहते हैं। ये दो नियम इस प्रकार हैं।
1. किसी भी विद्युत धारा द्वारा अपघटित होने वाले रासायनिक परिवर्तन की मात्रा इलेक्ट्रोड व इलक्ट्रोलाइट सीमा पर लगने वाली विद्युत की मात्रा का समानुपाती होती है।
2. विभिन्न पदार्थों में समान विद्युत धारा से पैदा होने वाले रसायन की मात्रा, उनके समतुल्य भारों के समानुपाती होती है।

इसी वर्ष फैराडे ने मैग्नीशियम के विद्युत अपघटन द्वारा सर्वप्रथम मैग्नीशियम प्राप्त किया। 1866 में एक जर्मन कंपनी फॉर्वेन इंडस्ट्री ने फैराडे द्वारा विकसित विधि का उपयोग करते हुए मैग्नीशियम का व्यावसायिक उत्पादन शुरू किया।

दरअसल फैराडे के विद्युत अपघटन के नियमों के पीछे एक किस्सा छुपा हुआ है। 1830 में, उस समय के वैज्ञानिकों में यह बहस छिड़ी हुई थी कि विद्युत-चुंबक द्वारा या बैटरी द्वारा प्राप्त बिजली अलग-अलग है या एक? फैराडे ने अपने प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया कि सभी प्रकार की विद्युत के गुण व प्रभाव एक से हैं अतः सभी प्रकार से पैदा होने वाली विद्युत एक ही है। इन्हीं प्रयोगों के दौरान विद्युत अपघटन नियमों का पता चला।

लेकिन एक क्षेत्र ऐसा था जहां फैराडे पूर्णतः असफल रहे। फैराडे ने अगस्त 1831 में अपने कुछ प्रयोगों के आधार पर बिजली ले जाने वाले तार में कणों की ‘इलेक्ट्रोटॉनिक' अवस्था की अवधारणा प्रस्तुत की। यद्यपि उन्हें प्रयोगों द्वारा इस अवस्था के होने का कोई प्रमाण नहीं मिला फिर भी इस दिशा में वे लगातार प्रयोग करते रहे।

लेकिन लगातार शोध में उलझे रहने के कारण उनका स्वास्थ्य पूरी तरह बिगड़ गया था। अंततः 1834 में बीमारी के कारण उन्होंने सक्रिय प्रयोग बंद कर दिए और 1845 तक कोई विशेष काम नहीं किया। 1845 में उन्होंने पुनः अपने प्रयोग शुरू किए। इसी वर्ष उन्होंने एक महत्वपूर्ण खोज की, जिसे अब फैराडे प्रभाव कहा जाता है। उन्होंने अपने प्रयोगों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि जब ध्रुवीकृत प्रकाश की किरणें चुंबकीय क्षेत्र से गुजरती हैं और यदि प्रकाश पथ तथा चुंबकीय क्षेत्र समानांतर हों, तो धुवण तल घूम जाता है।

फैराडे ने विद्युत रसायन तत्वया गमिति के नियमों की स्थापना भी की। उन्होंने बताया कि विद्युत का एक कूलम्ब (विद्युत आवेश की मात्रा) किसी पदार्थ की निश्चित मात्रा से ही क्रिया


फैराडे का डायनमोः इसमें हाथ की सहायता से तांबे की एक चकती को एक शक्तिशाली चुंबक के ध्रुवों के बीच घुमाया जाता है। इस प्रक्रिया से इसमें विद्युत की लगातार धारा पैदा होती है।

करता है जैसे कि किसी भी पदार्थ का एक ग्राम 96,487 कूलम्ब से ही क्रिया करता है।

अपने वैज्ञानिक काम की शुरुआत से ही उनको विश्वास था कि प्रकृति के सभी बल एक ही सर्वव्यापी बल के विभिन्न रूप हैं और इसलिए एक बल को दूसरे बल में बदलना संभव है। उन्होंने इस संबंध में अपने विचार भी व्यक्त किए। फैराडे, रॉयल इंस्टिट्यूशन के साथ मिलकर विज्ञान को लोकप्रिय बनाने का काम भी किया करते थे।

एक बार ऐसी ही एक सभा में श्रोता की हैसियत से फैराडे ने भाग लिया। लेकिन वहां हुआ यह कि जिसे भाषण देना था वह भीड़ देखकर भाग गया। तब फैराडे को भाषण देने को कहा गया।

यहां भाषण देते हुए फैराडे ने कहा कि विद्युत व चुंबकीय बलों की रेखाएं, जो अणुओं से जुड़ी होती हैं वे प्रकाश तरंगों को प्रसारित करने में एक माध्यम की तरह काम करती हैं। इन्हीं विचारों के आधार पर कई वर्षों बाद मैक्सवेल ने विद्युतचुंबकीय क्षेत्र सिद्धांत प्रस्तुत किया।

समचुंबकत्व या विषम चुंबकत्व
फैराडे का अंतिम योगदान था विषम चुंबकत्व और समचुंबकत्व की खोज। उसने यह पाया कि चुंबकीय क्षेत्र में रखने पर अलग-अलग पदार्थों पर अलग-अलग असर होता है। कुछ पदार्थ, जैसे लोहा निकल, कोबाल्ट आदि की रवेदार संरचनाएं चुंबकीय बल रेखाओं के समानांतर हो जाती हैं और ये पदार्थ सघन चुंबकीय क्षेत्र की ओर आकर्षित होते हैं। इन्हें नाम दिया गया समचुबकत्व या पैरामैग्नेटिक पदार्थ। दूसरी प्रकार के पदार्थों की रवेदार संरचनाएं चुंबकीय क्षेत्र के समकोण घूम जाती हैं और ये पदार्थ विरल चुंबकीय क्षेत्र की ओर आकर्षित हो जाते हैं। ऐसे पदार्थों को विषम चुंबकत्व या डायमैग्नेटिक पदार्थ का नाम दिया गया।

1850 तक फैराडे ने आकाश ( स्पेस ) व बलों के संबंध में अपनी स्पष्ट विचारधारा बना ली थी। उसके अनुसार आकाश एक ऐसा माध्यम था जो विद्युत व चुंबकीय बलों की सहायता करने में समर्थ था और विश्व की ऊर्जा उसके आसपास के आकाश में निहित है। इस प्रकार क्षेत्र सिद्धांत ( फील्ड थ्योरी ) का जन्म हुआ। मैक्सवेल ने स्वीकार किया कि उसके गणितीय सिद्धांत फैराडे के विचारों से आए हैं।

1855 तक आते-आते फैराडे का दिमाग कमजोर होने लगा। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण बल को विद्युत बल में बदलने की कोशिश की पर असफल रहे और अंततः उन्होंने सक्रिय शोध बंद कर दी। 25 अगस्त 1867 को उनकी मृत्यु हुई।

फैराडे के काम से ऐसा प्रतीत हुआ था मानो उन्होंने न्यूटनी भौतिकी की जड़ों पर सीधे प्रहार किया हो। पर मैक्सवेल ने जब फैराडे के काम की गणितीय व्याख्या की तो यह स्पष्ट हो गया कि न्यूटन और फैराडे के सिद्धांतों में पूरी एकरूपता है। फैराडे ने अपनी पीढ़ी के कई वैज्ञानिकों को प्रभावित किया। उसमें सबसे प्रमुख थे मैक्सवेल। एक जर्मन वैज्ञानिक हेमहॉल्ट्ज़ भी फैराडे से अत्यधिक प्रभावित थे। 1881 में लंदन में फैराडे की स्मृति में दिए गए एक भाषण में हेमहॉल्ट्ज ने कहा कि यदि वैज्ञानिक रासायनिक अणुओं का अस्तित्व मानते हैं (जो कि उस समय लगभग सभी वैज्ञानिक मानते थे) तो विद्युत के स्वभाव को समझने के लिए फैराडे के रासायनिक अपघटन नियमों को मानना आवश्यक हो जाता है। और यदि कहा जाए कि अमेरिका वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडीसन को तो प्रेरणा ही माइकल फैराडे थे तो गलत नहीं होगा।


यह जीवनी स्रोत के अगस्त 1989 के अंक से ली गई है।