सुशील जोशी

क्या बताते हैं सूचक रंग बदलकर ?
अम्ल, क्षार की पहचान करते समय अक्सर सूचकों का इस्तेमाल होता है। लेकिन सूचकों का इस्तेमाल करते हुए शायद ही हम कभी यह सोचते हैं कि सूचक काम कैसे करते हैं, और क्या सब सूचक एक जैसे होते हैं?
अम्ल और क्षार की पहचान करने मे सूचकों का उपयोग तो हम सबने किया है, लिटमस, फिनॉफ्थेलीन, मिथाइल ऑरेंज... वगैरह कितने ही सूचक हम जानते भी हैं। इन सबकी विशेषता यह है कि ये अम्लीय माध्यम में किसी एक रंग के होते हैं तो क्षारीय माध्यम में किसी और रंग के।

क्यों बदलते हैं रंग  
सबसे पहला सवाल तो यही उठता है कि ये रंग बदलते क्यों हैं? इस सवाल का जवाब काफी आसान है। ये सूचक ऐसे पदार्थ हैं जो दो रूपों में रह सकते हैं। एक रूप से दसरे में इनका परिवर्तन काफी आसानी से होता है। और सबसे बड़ी बात यह है कि यह रूप परिवर्तन रसायन की भाषा में उत्क्रमणीय होता है; यानी रूप परिवर्तन पुनः बहाल किया जा सकता है। रूप परिवर्तन मूलतः इस बात पर निर्भर होता है कि माध्यम क्षारीय है या अम्लीय।

उदाहरण के लिए फिनॉफ्थेलीन को लें। यह पदार्थ स्वयं एक अम्ल है। इसका सूत्र इस तरह लिखा जा सकता है: Ph; मगर यह स्थिति अम्लीय घोल में होती है, और उस समय यह घोल रंगहीन होता है।

जब घोल क्षारीय होता है तो इसका आयनीकरण हो जाता है।
HPh  →  H+ + Ph
यह Ph ऋणायन गुलाबी होता है। इसलिए क्षारीय घोल में फिनॉफ्थेलीन गुलाबी हो जाता है। जबकि जैसे कि हमने पहले देखा, HPh रूप रंगहीन होता है।

समस्त सूचक स्वयं दुर्बल कार्बनिक अम्ल या कार्बनिक क्षार होते हैं। प्रत्येक मामले में आयनीकृत अवस्था और अन-आयनीकृत अवस्था का रंग अलग-अलग होता है। यही इनके रंग बदलने का राज़ है।

सूचक-सूचक एक समान?  
इस आसान सवाल के बाद एक मुश्किल सवाल पर आते हैं। सवाल यह है कि क्या सभी सूचक अम्ल को अम्ल और क्षार को क्षार बताते हैं। बात को स्पष्ट करना ज़रूरी है क्योंकि बात थोड़ी गोल-गोल लग रही होगी। बात को स्पष्ट करने के लिए जरूरी है। कि अम्ल और क्षार को परिभाषित कर दिया जाए।
वर्तमान मकसद से मैं अम्ल और क्षार की सबसे सरल परिभाषा से ही शुरू करता हूं। जो नीले लिटमस को लाल कर दे, वह अम्ल और जो लाल लिटमस को नीला कर दे, वह क्षार।

अब मान लीजिए पदार्थ ‘क’ ने लाल लिटमस को नीला कर दिया, तो यह हो गया क्षार। सवाल यह है कि यदि हम फिनॉफ्थेलीन सूचक का इस्तेमाल करें तो क्या वह भी इसे क्षार बताएगा? यानी क्या इस घोल में रंगहीन फिनॉफ्थेलीन डालने पर वह गुलाबी हो जाएगा? आपका क्या विचार है?
यानी मैं यह पूछ रहा हूं कि लिटमस जिस घोल को क्षारीय बताता है क्या उसे फिनॉफ्थेलीन भी क्षारीय बताएगा!

आपको शायद लगे कि यह सवाल ही बेतुका है। जब घोल क्षारीय है, तो फिनॉफ्थेलीन हो या कोई भी सूचक हो, उसे क्षारीय ही बताएगा।
मगर बदकिस्मती (या खुशकिस्मती) से ऐसा नहीं है। कई मर्तबा ऐसा हो जाता है कि एक सूचक जिस घोल को अम्लीय बताता है, दूसरा सूचक उसे क्षारीय दर्शाता है।

पानी की क्षारीयता   
आइए, पानी का उदाहरण लेकर इस बात को समझने की कोशिश करें। साधारण पानी के परीक्षण में उसकी क्षारीयता का मापन किया जाता है। यह काम किसी भी मानक अम्ल के घोल से पानी के अनुमापन (टाइट्रेशन) के द्वारा किया जा सकता है। करते यह हैं कि जिस पानी का परीक्षण करना हो उसे नापकर एक फ्लास्क में ले लेते हैं। इसमें 2-3 बूंद फिनॉफ्थेलीन (रंगहीन) सूचक डाल देते हैं। यह गुलाबी हो जाता है। (पानी क्षारीय है)। अब ब्यूरेट से अम्ल डालते हैं, जब तक कि पानी रंगहीन न हो जाए। पानी के रंगहीन हो जाने तक जितना अम्ल डाला है उसके आधार पर पानी में उपस्थित क्षार की मात्रा की गणना कर लेते है।

फिनॉफ्थेलीन (गुलाबी) सूचक रंगहीन हो गया मतलब घोल उदासीन है (या थोड़ा अम्लीय होगा)। अब इस ‘उदासीन' घोल में मिथाइल ऑरेन्ज की दो-तीन बूंदें डालते हैं। उम्मीद के विपरीत मिथाइल ऑरेन्ज इसे क्षारीय दर्शाता है (यानी पीला रंग देता है)। अब एक बार फिर इसमें अम्ल डालकर टाइट्रेशन करते हैं और तब तक अम्ल डालते हैं जब तक इसका रंग नारंगी न हो जाए। और एक बार फिर इसकी क्षारीयता की गणना करते हैं। 
दरअसल पानी परीक्षण के संदर्भ में इन दो क्षारीयताओं को फिनॉफ्थेलीन क्षारीयता और कुल क्षारीयता (फिनॉफ्थेलीन + मिथाइल ऑरेन्ज) के नाम दिए गए हैं। तो यह क्या चक्कर है? जिस घोल को फिनॉफ्थेलीन ने उदासीन घोषित कर दिया, उसे मिथाइल ऑरेन्ज ने क्षारीय क्यों बताया?

आसपास बिखरे हैं सूचक

अपने आसपास चारों तरफ ढेरों सूचक बिखरे रहते हैं। अक्सर हमें अंदाज़ा ही नहीं होता कि खाने में इस्तेमाल होने वाली हल्दी, बेशरम या गुड़हल का फूल, सफाई के काम आने वाला डोमेक्स का घोल, कुछ स्याहियां, बहुत से अन्य फूल, और भी जाने कौन-कौन से सूचक बिखरे पड़े हैं चारों तरफ।
अपने इर्द-गिर्द बिखरे हुए विभिन्न सूचक पहचानना और देखना कि वे अम्ल और क्षार के साथ क्या-क्या रंग बदलते हैं, अपने आप में एक मजेदार गतिविधि हो सकती है। और अगर इस अभ्यास को और चुनौतीपूर्ण बनाना हो तो फिर आप ये भी पता लगाने की कोशिश कर सकते हैं कि इनमें से हर सूचक किस pH पर अपना रंग बदलता है। एक अच्छा-खासा प्रोजेक्ट बन सकता है यह प्रयास।

परिभाषा का विस्तार   
इसे समझने के लिए हमें अम्ल और क्षार की परिभाषा की अगली पायदान पर जाना होगा। यह परिभाषा आयनीकरण की अवधारणा से उभरती है। वे सारे पदार्थ जो पानी में घुलने पर हाइड्रोजन आयन उत्पन्न करते हैं, अम्ल हैं। पानी में घुलकर हाइड्रॉक्सिल आयन उत्पन्न करने वाले पदार्थ क्षार हैं। अर्थात् यदि HA अम्ल है तो पानी में यह निम्नानुसार आयनीकृत होगा:
HA   → H++ A-
और यदि BOH पदार्थ क्षार है। तो यह निम्नानुसार व्यवहार करेगा:
BOH → B+ + OH-
इसका मतलब यह नहीं है कि अम्ल के घोल में हाइड्रॉक्सिल आयन नहीं होते या क्षार के घोल में हाइड्रोजन आयन नहीं होते। एक नियम के तौर पर आप यह याद रख सकते हैं कि पानी चाहे शुद्ध हो या मिलावटी उसमें हाइड्रोजन आयन की सान्द्रता और हाइड्रॉक्सिल आयन की सान्द्रता का गुणनफल हमेशा निश्चित होता है:
[H-] x [OH-] = 10-11

अर्थात H- की सान्द्रता बढ़ने पर OH- की सान्द्रता उसी अनुपात में कम होती जाएगी ताकि दोनों का गुणनफल 10-11 ही रहे। इसलिए किसी घोल की अम्लीयता व क्षारीयता दोनों को हम H- आयन की सान्द्रता के रूप में व्यक्त कर सकते हैं। इसके लिए एक आसान पैमाना बनाया गया है। इसे pH पैमाना कहते हैं। यह घोल में H+ आयन की सांद्रता दर्शाता है।
pH   7 से कम        घोल अम्लीय
pH   ठीक 7           घोल उदासीन 
pH   7 से ज़्यादा     घोल क्षारीय
pH 7 मे कम घोल अम्लीय pH ठीक 7 घोल उदासीन pH 7 से ज़्यादा घोल क्षारीय pH पैमाने को समझने में जिनकी दिलचस्पी हो, वे इस लेख के अंत में दिया गया बॉक्स जरूर पढ़ें।

किसी भी अम्ल या क्षार को पानी में घोलें तो उस घोल की pH अम्ल या क्षार की प्रकृति पर निर्भर करती है। हां, उस पर अम्ल या क्षार की मात्रा का थोड़ा-बहुत असर जरूर पड़ता है और तापमान का भी असर पड़ता है। मगर मूलतः यह उस अम्ल या क्षार की प्रकृति से ही तय होता है। कि उसकी pH कितनी होगी।
7 से जितनी कम pH होगी, वह अम्ल उतना ही प्रबल होगा। इसके विपरीत pH, 7 से जितनी ज्यादा होगी, वह क्षार उतना ही प्रबल होगा।

सूचकः फिर एक बार   
अम्ल और क्षार की इस नई परिभाषा के तहत अब हमारा सवाल यह हो जाता है कि क्या सारे सूचक pH 7 से कम वाले घोलों को अम्लीय और pH 7 से ज्यादा वाले घोलों को क्षारीय बताते हैं। दूसरे शब्दों में, सवाल यह है कि क्या सभी सूचक pH 7 पर रंग बदलते हैं।

बदकिस्मती (या खुशकिस्मती) से ऐसा नहीं है। यहां प्रस्तुत चार्ट से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि अलगअलग सूचक अलग-अलग pH पर रंग बदलते हैं। मसलन, फिनॉफ्थेलीन pH, 8 से ज्यादा हो तो गुलाबी या लाल होता है, pH 8 से कम हो तो रंगहीन हो जाता है। यानी pH 8 से कम वाले घोल को यह अम्लीय/उदासीन बताता है। ऐसे घोल (जिनका pH 8 से 7 के बीच है) मिथाइल ऑरेंज से जांचने पर क्षारीय नज़र आएंगे। इसके विपरीत कई घोल ऐसे भी होंगे (pH, 1 मे 7 के बीच) जिन्हें अम्लीय होते हार भी मिथाइल ऑरेंज उन्हें क्षारीय उदासीन बताएगा क्योंकि मिथाइल ऑरेंज pH 4 पर रंग बदलता है।

आखिर ये सारे सूचक pH 7 पर ही रंग क्यों नहीं बदलते? आइए कारण समझने की कोशिश करें।
मैंने पहले ही कहा था कि ये सब सूचक स्वयं दुर्बल अम्ल या दुर्बल क्षार हैं। इनका रंग इस बात पर निर्भर है कि घोल में ये आयनीकृत अवस्था में हैं या अन-आयनीकृत अवस्था में।

सरलता के लिए हम कह सकते हैं कि प्रत्येक सूचक का आयनीकरण एक विशिष्ट pH पर ही होता है। लिहाजा इसी pH पर जाकर वह सूचक रंग बदलेगा।

सूचक  रंग मे बदलाव  बदलाव का अंतराल(pH)
अम्लीय   बदलाव के वक़्त क्षारीय 
मिथाइल वायोलेट
मिथाइल येलो
ब्रोमो फिनोल ब्लू
मिथाइल ऑरेंज
मिथाइल रेड
लिटमस
ब्रोमो थाइमोल ब्लू
फिनोल रेड
फिनोफ़्थेलिन
थाइमोलफ्थेलीन
एलिजारीन येलो 
पीला
लाल
पीला
लाल
लाल
लाल
पीला
पीला
रंगहीन
रंगहीन 
पीला
जलीय
ऑरेंज
हरा
ऑरेंज
बफ्फ
गुलाबी
हरा
ऑरेंज
गुलाबी
पेल ब्लू
ऑरेंज
नीला
पीला
नीला
पीला
पीला
नीला
नीला
लाल
लाल
नीला
लाल
0.0-1.6
2.6-4.0
3.0-4.6
3.2-4.4
4.8-5.0
5.5-8.0
6.0-7.6
6.6-8.0
8.2-10.6
9.4-10.6
10.0-12.0

pH पैमाना   

शुद्ध पानी का भी अल्प मात्रा में आयनीकरण होता है। इससे अत्यन्त अल्प मात्रा में H+ व OH- आयन बनते हैं। जाहिर है कि शद्ध पानी में इनकी मात्रा बराबर-बराबर होगी। नियम यह है कि पानी (चाहे शुद्ध हो या मिलावटी) में H+ व OH- आयनों की सांद्रता का गुणनफल स्थिर रहता है।
[H+] x [OH-] = 10-11
सांद्रताएं ग्राम-आयन प्रति लीटर के रूप में व्यक्त की जाती हैं। उक्त समीकरण का अर्थ हुआ कि शुद्ध पानी में
[H+] = [OH-] =10-7 ग्राम-आयन प्रति लीटर।
अब पानी में हम जब अम्ल या क्षार डालते हैं तो वे क्रमशः H+ आयन या OH- आयन पैदा करते हैं।

मान लीजिए हमने अम्ल डाला है, तो पानी में H+ आयन की सांद्रता बढ़ेगी। यदि [H+] और [OH-] का गुणनफल स्थिर रहना है तो उसी अनुपात में OH- की सांद्रता घटेगी।
यदि क्षार डालेंगे तो उसमें OH- की सांद्रता बढ़ेगी। तब गुणनफल को स्थिर रखने के लिए H+ आयन की सांद्रता घटने लगेगी। लिहाजा यदि हमें किसी घोल में H+ आयन की सांद्रता मालूम है, तो हम उपरोक्त समीकरण के द्वारा OH- आयन की सांद्रता ज्ञात कर सकते हैं। अतः किसी घोल की अम्लीयता और क्षारीयता दोनों को ही H+आयन मांद्रता के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।

10-7 के रूप में व्यक्त करने की मुश्किलों को देखते हुए सन् 1909 में सोरेन्सन ने एक सरल पैमाना विकसित किया था। इसे pH पैमाना कहते हैं। उन्होंने बताया कि H+ सान्द्रता का लॉगेरिदम निकालकर उसे ऋणात्मक चिन्ह से प्रकट किया जाए; और इसे pH कहें:

pH = -- Log ( H+)
जैसे अगर (H+)  = (10-7)  तो  pH  = - Log (10-7)
= - (-7)
= 7
या (H+) = 10-1    तो   pH  = - Log (10-4)
= - (- 4)
= 4
या (H+) = 10-11  तो  pH  = - log (10-14)
= - (- 14)
= 14

इसके अनुसार
pH = 7    तो, घोल उदासीन
pH > 7    तो, घोल क्षारीय
ph < 7    तो, घोल अम्लीय


सुशील जोशी: एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम एवं स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। साथ ही स्वतंत्र विज्ञान लेखन एवं अनुवाद करते हैं।