लेखक :   रे ब्रेडबरी
अनुवाद : मनोज कुलकर्णी:                                                                                                                              [Hindi PDF, 134 kB]

विज्ञान कथा
पिछले अंक में आपने ‘द इलस्ट्रेड मैन’ का प्राक्कथन पढ़ा था, जिसमें चित्रांकित आदमी की त्वचा पर बनते-बिगड़ते चित्रों के मार्फत एक के बाद एक कहानियां नमुदार होती जाती हैं। रॉकेट भी उन्हीं कहानियों में से एक है।


कई रातों में, अंधेरे आकाश में सरसराते रॉकेटों को सुनकर फियरेलो बोदोनी जाग जाता। यह सुनिश्चित करके कि उसकी पत्नी स्वप्ननिद्रा में है, वो दबे पांव अपने बिस्तर से उठ, रात की खुली हवा में, बाहर आ जाता। अब कुछ पल, वो नदी किनारे के अपने छोटे-से मकान में पसरी पड़ी, बासी-भोजन की गंध से दूर रह सकेगा। एक खामोश-पल, वो अपने मन को रॉकेटों के पीछे, अनन्त में उड़ने देगा।
अब, आज की रात के गहन-अंधकार में, वो अधनंगा खड़ा, हवा में गुनगुनाते रॉकेटों से निकलते आग के फव्वारे निहार रहा है। रॉकेट मंगल, शनि और शुक्र की ओर, अपनी लम्बी-बीहड़ यात्रा पर जा रहे हैं।
“वाह-वाह, बोदोनी,” उसने अपने आप से कहा।
शांत नदी किनारे, एक दूध की टंकी पर बैठा, एक बूढ़ा भी अर्धरात्रि के सन्नाटे में रॉकेटों को निहार रहा था।
“अरे, तुम हो ब्रामान्ते!”
“क्या तुम रोज़ रात बाहर निकलते हो बोदोनी?”
“महज हवा खाने।”

“ऐसा? मैं तो रॉकेटों को देखता हूं,” बूढ़े ब्रामान्ते ने कहा। “जब मैं बच्चा था, अस्सी बरस पहले, रॉकेटों का सिलसिला शु डिग्री हुआ था, और आज तक मैं किसी एक पर भी सवार नहीं हो पाया।”
“मैं किसी दिन, एक न एक रॉकेट पर ज़रूर सवारी करूंगा,” बोदोनी बोला।
“पगले,” ब्रामान्ते चीखा, “तुम कभी नहीं उड़ पाओगे। ये अमीर लोगों की दुनिया है।”
सफेदी से भरे अपने सिर को हिलाता वो याद करने लगा, “मैं जब युवा था, क्या-क्या नारे सुनाई देते थे - भविष्य की दुनिया! सभी के लिए विज्ञान, सुविधा और नई वस्तुएं! हां! अस्सी बरस। भविष्य अब वर्तमान हुआ! क्या हम रॉकेटों में उड़ पाए? नहीं! हम, अपने पूर्वजों की तरह झोपड़ों में ही रहते रहे।”
“शायद, मेरे बेटे......,” बोदोनी बोला।

“नहीं, उनके बच्चे तक नहीं जा पाएंगे!” बूढ़ा चिल्लाया। “सिर्फ अमीरों के पास ही सपने और रॉकेट हैंै!”
बोदोनी हिचकिचाया। “महाशय, मैंने तीन हज़ार डॉलर बचाए हैं। अपने धंधे के लिए, मशीन खरीदने को। ये बचत करने के लिए मुझे छ: साल लग गए। लेकिन पिछले एक माह से, हर रात मैं जाग रहा हूं। मैं रॉकेटों को सुनता हूं। सोचता हूं। आज रात मैंने तय कर लिया है। हम में से कोई एक मंगल पर जाएगा!” अंधेरे में उसकी आंखें चमक रही थीं।
“बेवकूफ,” ब्रामान्ते ने फटकारा। “कौन जाएगा? तुम कैसे तय करोगे? यदि तुम गए, तुम्हारी पत्नी तुमसे नफरत करने लगेगी, क्योंकि ब्रह्माण्ड की सैर करते हुए, तुम ईश्वर के करीब पहुंचकर आए होगे। बाद के वर्षों में, जब तुम उसे अपनी रोमांचक यात्रा के बारे में बताया करोगे, उसके मन को कड़वाहट नहीं कुतरेगी?”
“ना, नहीं!”

“हां! और तुम्हारे बच्चे? क्या, उनके जीवन इस स्मृति से नहीं भरे रहेंगे कि वे यहीं रह गए थे और उनके पिता मंगल के लिए उड़ लिए थे? अपने बच्चों के लिए कैसा बेतुका लक्ष्य बना दोगे तुम। जीवन भर वे रॉकेटों के बारे में सोचेंगे। वे जागते हुए लेटे रहेंगे। उसकी चाह में वे बीमार हो जाएंगे, जैसे कि तुम अभी बीमार हो। यदि न जा पाए तो वे मर जाना चाहेंगे। मैं तुम्हें चेता रहा हूं, ऐसा लक्ष्य तय मत करो। उन्हें गरीबी में संतुष्ट रहने दो। उनके हाथों को, उनकी नज़रों को ज़मीन पर, तुम्हारे कबाड़-खाने की तरफ मोड़ो, ऊंचे सितारों की तरफ नहीं।”
“लेकिन..”
“सोचो, यदि तुम्हारी पत्नी गई तो? यह जानकर कि वो देख पाई और तुम नहीं, तुम्हें कैसा लगेगा? वो पवित्र हो जाएगी। तुम उसे नदी में फेंक देने के बारे में सोचने लगोगे। नहीं बोदोनी, भंगार तोड़ने फोड़ने के लिए एक नई कटाई-मशीन खरीदो, जिसकी तुम्हें ज़रूरत है और अपने सपनों को उसमें डालकर नष्ट कर दो।”

आकाश को जला रहे रॉकेटों के प्रतिबिम्बों को नदी में डूबते देखता हुआ वो बूढ़ा नीचे उतर गया।
“शुभरात्रि,” बोदोनी ने कहा।
“आराम से सो जाओ,” वो बोला।
।।।
चमकीले टोस्टर से जब टोस्ट उछला, सहसा बोदोनी चिल्ला ही दिया। रात, जागते हुए बीती थी। अपनी मुटकी पत्नी के बगल में निराश बच्चों के बीच, शून्य में ताकता हुआ बोदोनी रात भर उलटता-पलटता रहा था। ब्रामान्ते सही था। बेहतर होगा कि पैसे का निवेश किया जाए। जब परिवार में से कोई एक ही रॉकेट की सवारी कर पाएगा और बाकि कुढ़ते रहेंगे तो ऐसी योजना बनाने का क्या अर्थ है?
“फियरेलो, अपना टोस्ट खाओ,” उसकी पत्नी मारिया बोली।
“मेरा गला सूख गया है,” बोदोनी ने कहा।
बच्चे तेज़ी से आए, तीनों बेटे एक खिलौना-रॉकेट को लेकर झगड़ रहे थे। दोनों लड़कियों के पास मंगल, शुक्र और वरुण ग्रह-वासियों जैसी दिखने वाली गुड़िया थीं। उनका रंग हरा था, तीन पीली-आंखें और बारह अंगुलियां थीं।
“मैंने शुक्र के रॉकेट को देखा!” पॉउलो चिल्लाया।
“वो यूं उड़ा झू झू %%....!” एंटेनेलो ने सिटी बजाई।
अपने कानों पर हाथ रखते हुए बोदोनी चीखा “बच्चो!”
वे घबराकर उसे देखने लगे। वो यदा-कदा ही उनपर चिल्लाता था।
“तुम सब सुनो....” उठते हुए वो बोला, “मेरे पास इतनी रकम है कि हम में से कोई एक मंगल जाने वाले रॉकेट पर सवारी कर सके।”
हर कोई खुशी से किलक उठा।

“तुम समझे?” उसने पूछा। “हममें से कोई एक। कौन?”
“मैं, मैं, मैं...!” बच्चे चिल्लाए।
“तुम।” मारिया बोली।
“तुम।” बोदोनी ने मारिया से कहा।
सब खामोश हो गए।
बच्चों ने पुनर्विचार की मुद्रा में कहा, “लोरेन्ज़ो चला जाए, वो सबसे बड़ा है।”
“मरियम्मा जाए, वो लड़की है।”
“ज़रा सोचो तुम क्या-क्या देखोगे,” बोदोनी की पत्नी उससे बोली। लेकिन उसकी आंखें पथरा गई थीं और आवाज़ भर्राकर कांप रही थी। “मछलियों जैसी उल्काएं। ब्रह्माण्ड। चांद। कोई ऐसा जाए, जो लौटकर हर बात को अच्छे से बयान कर सके। इस सबके लिए तुम्हारे पास सटीक शब्द हैं।”
“नासमझ तुम्हारे पास भी हैं,” उसने विरोध जताया। हर कोई थर्रा गया।
“सुनो,” नाखुश बोदोनी बोला। एक झाडू से अलग-अलग लम्बाई की सींकें तोड़ते हुए, उसने कहा, “सबसे छोटी सींक वाला जीतेगा।” अपनी मुट्ठी में सींकों को भोंच, उसने कहा, “चुनो।”
अत्यन्त गंभीरता के साथ सबने एक-एक सींक चुन ली।
“लम्बी सींक।”
“लम्बी सींक।”
“लम्बी सींक।”

बच्चों की बारी खत्म। कमरे में चुप्पी पसर गई।
सिर्फ दो सींकें बची थीं। बोदोनी को लगा उसके दिल में दर्द उठ रहा है।
“अब, मारिया,” वो फुसफुसाया।
मारिया ने आगे बढ़कर सींक उठाई।
“छोटी सींक,” उसने कहा।
“आह,” आधी खुशी और आधे गम के साथ लोरेंज़ो ने आह भरी। “मम्मी मंगल पर जाएगी।”
बोदोनी ने मुस्कराने की कोशिश करते हुए कहा, “बधाई।”
“रूको, फियरेलो...।”
“तुम अगले हफ्ते जा सकती हो,” वो बुदबुदाया।
अपने पर टिकी अपने बच्चों की उदास आंखों और उनकी उदासी भरी मुस्कुराहटों को उसने देखा। धीरे से वो सींक उसने अपने पति को लौटा दी।

“मैं मंगल पर नहीं जा सकती।”
“परन्तु क्यों नहीं?”
“मैं मां बनने वाली हूं।”
“क्या!”
वो, बोदोनी की तरफ नहीं देख रही थी। “इस परिस्थिति में मेरा यात्रा पर जाना ठीक न होगा।”
“क्या यह सच है?” बोदोनी ने उसकी कोहनी पकड़ ली।
“चलो, फिर से सींकें खींचो।”
“तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया?” बोदोनी के स्वर में संदेह था।
“मैं भूल गई थी।”
“मारिया, मारिया,” उसके चेहरे को थपथपाते हुए वो फुसफुसाया। “चलो फिर से तय करते हैं,” बच्चों की ओर पलटते हुए वो बोला।
इस बार छोटी सींक पॉउलो के हाथ लगी।
“मैं मंगल पर जाऊंगा!” वो जंगलियों-सा नाच रहा था। “धन्यवाद, पापा!”
अन्य बच्चों ने दूर खिसकते हुए कहा, “यह तो बहुत ही बढ़िया है पॉउलो।”
अपने माता-पिता, भाई-बहनों को ध्यान से देखते हुए, मुस्कुराना छोड़ अनिश्चित स्वर में उसने पूछा, “मैं जा सकता हूं न, कि नहीं?”
“हां।”
“और जब मैं लौट आऊंगा, तुम लोग तब भी मुझे पसंद करोगे?”
“ज़रूर।”

अपनी कांपती हथेली पर रखी हुई झाडू की उस बेशकीमती सींक को पॉउलो देखता रहा और फिर उसने अपना सिर हिलाया। उस सींक को फेंककर बोला, “मैं भूल गया कि स्कूल शु डिग्री होने वाला है। मैं नहीं जा सकूंगा। फिर से बारी लो।”
लेकिन कोई भी तैयार नहीं था। सभी पर एक अजीब उदासी छाई हुई थी।
“हम में से कोई नहीं जाएगा,” लोरेन्ज़ो बोला।
“यही अच्छा होगा,” मारिया ने कहा।
“ब्रामान्ते सही था,” बोदोनी बोला।

भरपेट नाश्ता कर फियरेलो बोदोनी घर के पीछे, कबाड़-घर में काम कर रहा था। धातुओं को काटना, पिघलाना, उपयोगी सिल्लियों को ढालना। धूल खा रहे उसके औज़ार जंग खा गए थे। पिछले बीस वर्षों में, प्रतिद्वंद्विता ने उसे गरीबी की कगार पर ला पटका था। वो सुबह कतई सुहानी नहीं थी।
दोपहर, कबाड़-घर में तोड़ फोड़ करने वाली कटाई-मशीन पर काम कर रहे बोदोनी के पास एक व्यक्ति आकर बोला, “हे बोदोनी, मेरे पास तुम्हारे लिए कुछ धातु है।”
“कौन-सी, मैथ्यू?” उदासीन बोदोनी ने पूछा।
“एक रॉकेट-यान। क्या बात है? तुम्हें नहीं चाहिए?”
“हां, हां!” उसने उस व्यक्ति की बांह कसकर पकड़ ली और हक्का-बक्का सा ठिठक गया।
“दअसल,” मैथ्यू ने कहा, “ये एक ढांचा भर है। तुम जानते हो कि जब भी एक नया रॉकेट बनाने की योजना बनती है तो पहले एल्युमिनियम से उसका उसी साइज़ का नमूना बनाया जाता है। उसको गलाकर तुम कुछ लाभ कमा सकते हो। तुम्हें वो दो हज़ार में मिल सकेगा।”
“मेरे पास पैसे नहीं हैं,” बोदोनी ने उसकी बांह छोड़ दी।
“माफ करना, सोचा था तुम्हारी मदद करूं। पिछली बार जब हम बतिया रहे थे, तुमने कहा था कि कबाड़ के मामले में तुम अक्सर ठगे गए हो। सोचा, ये चुपचाप तुम तक सरका दूं। ठीक।”
“मुझे नए औज़ार लेने हैं। उसी लिए मैंने पैसे बचाए हैं।”
“मैं समझ सकता हूं।”
“यदि मैंने तुमसे रॉकेट खरीद भी लिया, तो उसे मैं गला नहीं पाऊंगा। मेरी एल्युमिनियम भट्टी पिछले हफ्ते ही टूट गई।”
“अरे।”
“खरीदने पर भी मैं रॉकेट का उपयोग नहीं कर सकूंगा।”
“मुझे पता है।”
बोदोनी ने मिचमिचाकर अपनी आंखें बंद कर लीं। फिर उन्हें खोल मैथ्यू को देखकर बोला, “लेकिन मैं तो मूर्ख हूं ही। मैं बैंैक से अपना पैसा निकाल कर तुम्हें दे दूंगा।”
“पर यदि तुम उसे गला नहीं पाए..।”
“मुझे वो रॉकेट चाहिए,” बोदोनी बोला।
“ठीक है, तुम कह ही रहे हो तो। आज रात?”
“आज रात, बढ़िया रहेगा। हां, आज रात एक रॉकेट-यान पाना मुझे अच्छा लगेगा।”

ऊपर चांद चमक रहा था। कबाड़-घर में रखा हुआ रॉकेट था बड़ा और चमकदार। उसमें चांद की सफेदी और तारों की नीलिमा थी। बोदोनी ने उसे सब ओर से देखा और उसे वह बहुत पंसद आया। उसका जी चाह रहा था कि वो रॉकेट को दुलारे, उसके करीब लेट जाए, उसे सहलाते हुए अपने मन की गुप्त-इच्छाएं उसे बताए।
“तुम मेरे हो,” रॉकेट की ओर ताकते हुए उसने कहा, “चाहे तुम कभी न उड़ोे या आग न उगल पाओ और यहां पड़े-पड़े, पचास बरस तक जंग खाते रहो, तो भी तुम मेरे हो।”
रॉकेट में दूरी और समय की महक थी। ये किसी ऐसी घड़ी को भीतर से देखने जैसा था, जिसे स्विस-नज़ाकत से बनाया गया हो।
“आज रात मैं यहां सो भी सकता हूं,” उत्तेजना में बोदोनी बड़बड़ाया।
वो चालक की सीट पर जा बैठा।
उसने एक लीवर को छुआ।
उसकी आंखें बंद थीं, मुंह बंद रखते हुए उसने हममम... की आवाज़ निकालना शु डिग्री किया। धीरे-धीरे वो आवाज़ बढ़ती गई, ऊंची होती गई, विचित्र बनती गई - उसे स्पंदित करते हुए, आगे को धकेलते हुए; और फिर गर्जना करते हुए, उसे व रॉकेट को एक भयावह चुप्पी में खींच ले गई। उसके हाथ विभिन्न यंत्रों को फुर्ती से संभालने की कोशिश करते हुए मानों उड़े जा रहे थे और उसकी बंद आंखें कांप रही थीं और आवाज़ लगातार बढ़ती जा रही थी, तेज़ होती जा रही थी, जब तक कि वह एक आग में तब्दील नहीं हो गई; एक ताकत, उसे धकेलती व उठाती - ऐसी शक्ति जो उसे दो टुकड़ों में तोड़ देने की कोशिश कर रही थी। वो सांस लेने की कोशिश कर रहा था परन्तु गूंज कम ही नहीं हो रही थी। आवाज़ बढ़ने के साथ-साथ उसकी आंखें भिंचती चली गईं। उसका दिल सरपट भागने लगा। “उड़ने के लिए तैयार,” वह चिल्लाया। बेसुध कर देने वाला धक्का! कान के पर्दे फाड़ देने वाली कड़कड़ाहट! “अब चांद,” वह चिल्लाया, आंखें भींचे हुए।
“वो क्षुद्रग्रह। मंगल, हे भगवान, मंगल, मंगल!”
वो थककर, हांफते हुए पीछे गिरा। कांपते हाथों से नियंत्रण छूट गया था और सिर विचित्र तरह से पीछे की ओर मुड़ गया था। वो देर तक यूं ही बैठा रहा, ज़ोर-ज़ोर से श्वास लेता-छोड़ता। अब उसका दिल शांत हो रहा था।
धीरे-धीरे उसने आंखें खोली।
कबाड़-घर अब भी वहीं था।

वो निश्चेष्ट बैठा रहा। एक क्षण उसने धातु के कबाड़ को देखा, उसकी आंखें उस पर से हट नहीं रही थीं। वो फिर उछला और लीवर में लात जमाता हुआ बोला, “उड़ो, तुम साले!”
रॉकेट-यान चुपचाप खड़ा था।
“अभी तुम्हें मज़ा चखाता हूं,” वो चीखा।
बाहर, रात की हवा में, लड़खड़ाते हुए उसने अपनी डरावनी तोड़-फोड़ वाली कटाई-मशीन की खूंखार मोटर को चालू किया और रॉकेट की तरफ बढ़ा। चांद की रोशनी में नहाए आकाश के नीचे उसने भारी वज़नों को रॉकेट के ठीक ऊपर लटका दिया। अपने कांपते हाथों को उसने उन वज़नों को गिराकर, उसे मसल देने, उस ढीठ और बेकार सपने, उस बेमानी वस्तु जिस पर उसने अपना पैसा खर्चा और जो चल नहीं सकती, जो उसका आदेश नहीं मानती, को चीर डालने के लिए तैयार किया। “मैं तुम्हें सबक सिखाऊंगा,” वो गरजा।
लेकिन उसके हाथ ठिठक गए।
चांदी-सा रॉकेट चंद्र-प्रकाश में लेटा हुआ था। रॉकेट के पीछे, कुछ ही फासले पर उसके घर की तेज़ और चमकदार, पीली रोशनी दिख रही थी। उसे, घर के रेडियो पर बज रहा दूर का कोई संगीत सुनाई दिया। कोई आधे घंटे तक वो रॉकेट और अपने घर की रोशनियों को देखते हुए सोचता रहा। उसकी आंखें कुछ बारीक हुईं और चमकने लगीं। वो, तोड़-फोड़-मशीन से नीचे कूदा और चल पड़ा। चलते हुए वो हंसने लगा और जब वो अपने घर के पिछले दरवाज़े पर पहुंचा, उसने एक गहरी सांस लेते हुए पुकारा, “मारिया, मारिया, तैयारी करो। हम मंगल ग्रह पर जा रहे हैं!”

“ओह।”
“हां!”
“मुझे भरोसा नहीं हो रहा!”
“तुम्हें होगा।”
हवादार बाड़े में, चमकीले रॉकेट के नीचे बैठे बच्चे अब भी उसे छू नहीं रहे थे। वे रोने लगे।
मारिया ने अपने पति की ओर देखा। “तुमने ये क्या कर डाला?” वो बोली। “हमारा पैसा इसमें खर्च दिया? ये कभी नहीं उड़ेगा।”
रॉकेट को देखते हुए वो बोला, “ये उड़ेगा।”
“रॉकेट की कीमत लाखों में होती है। क्या है तुम्हारे पास इतनी रकम?”
“ये उड़ेगा,” उसने शांत भाव से दोहराया। “अब तुम सब घर जाओ। मुझे कुछ फोन करने हैं। काम करना है। कल हम चलेंगे! किसी को बताना मत, समझे? यह एक रहस्य है।”
लड़खड़ाते हुए, बच्चे रॉकेट से दूर हट गए। उसे, घर की खिड़की में उनके नन्हें, सहमे हुए चेहरे दिखाई दिए।
मारिया वहीं खड़ी थी। “तुमने, हमें बर्बाद कर डाला,” उसने कहा। “हमारा पैसा इस.... इस चीज़ पर उड़ा डाला, जबकि उससे औज़ार खरीदे जाने थे।”
“तुम देखना,” वो बोला।
बिना कुछ कहे, वो पलटी और चली गई।
“भगवान, मेरी मदद करो।” वो बुदबुदाया और काम में जुट गया।
।।।
रात भर ट्रक आते रहे, सामान आता रहा। मुस्कुराते हुए बोदोनी ने अपने बैंक-खाते को नीचोड़ डाला था। एक वेल्डिंग मशीन और धातु की चादर लिए, वो रॉकेट में भिड़ गया। उसमें कुछ जोड़ा, कुछ हटाया। कुछ जादुई और गुप्त बदलाव किए। रॉकेट के खाली इंजन-कक्ष में उसने पुरानी नौ मोटरें लगा दीं। फिर उसने इस कक्ष के दरवाज़े को वेल्डिंग से पक्का बंद कर दिया ताकि कोई भी उसकी गुप्त मेहनत को न देख पाए।
पौ-फटने पर वो रसोई-घर में घुसा और बोला, “मारिया, मुझे नाश्ता दो।”
वो, उससे बात नहीं कर रही थी।

सूर्यास्त के समय उसने बच्चों को पुकारा, “हम तैयार हैं! चलो।” लेकिन घर में कोई हलचल नहीं हुई।
“मैंने उन्हें कोठरी में बंद कर दिया है,” मारिया ने बताया।
“क्या मतलब?” उसने पूछा।
“तुम उस रॉकेट में मारे जाओगे,” वो बोली। “महज़ दो हज़ार डॉलर में तुम किस तरह का रॉकेट खरीद सकते हो? एक बेकार-सा!”
“मारिया, मेरी बात सुनो।”
“वो फट जाएगा। तुम्हें रॉकेट चलाना भी तो नहीं आता।”
“तो भी, मैं इस रॉकेट को उड़ा सकता हूं, मैंने इसे तैयार किया है।”
“तुम पागल हो गए हो,” वो बोली।
“कोठरी की चाबी कहां है?”
“मेरे पास।”

“मुझे दे दो,” उसने हाथ आगे बढ़ाया।
चाबी देते हुए वो बोली, “तुम उन्हें मार डालोगे।”
“नहीं, नहीं।”
“हां, मुझे लगता है, तुम मार डालोगे।”
“तुम साथ नहीं आओगी?” वो उसके सामने खड़ा था।
“मैं यहीं ठीक हूं,” वो बोली।
“जब तुम्हारी समझ में आएगा, तब देखना,” वो बोला और मुस्कुराया। उसने कोठरी का ताला खोला, “आओ बच्चो, अपने पापा के साथ।”
“टा-टा मम्मी!”
रसोई घर की खिड़की में खड़ी वो, खामोश-निगाहों से उन्हें देख रही थी।
रॉकेट के दरवाज़े पर पहुंच पिता ने कहा, “बच्चो, हम एक हफ्ते के लिए जाएंगे। फिर तुम्हें स्कूल और मुझे अपने धंधे पर लौटना है।” बारी-बारी बच्चों के हाथ पकड़ वो बोला, “सुनो, ये रॉकेट बहुत पुराना है और सिर्फ एक बार ही उड़ पाएगा, उसके बाद ये कभी नहीं उड़ेगा। ये तुम्हारे जीवन की एकमात्र उड़ान होगी। अपनी आंखें खुली रखना।”
“हां, पापा।”
“सुनो, अपने कान साफ कर लो। रॉकेट की गंध पहचानो। महसूस करो और याद रखो, ताकि तुम जब लौट कर आओ तो ता-उम्र उसके बारे में बात कर सको।”
“हां, पापा।”
एक ठहरी हुई घड़ी की तरह, रॉकेट-यान खामोश था। उनके पीछे, फुत्कारता सा हवाई ताला बंद हुआ। उसने, उन सभी को बौनी-ममियों सा, रबर के झूलों से बांध दिया। “तैयार हो?” उसने पूछा।
“हां, तैयार हैं,” सब ने कहा।
“उड़ो!” उसने दस स्विचों को दबाया। रॉकेट ने घरघराकर छलांग लगाई। अपने-अपने झूलों में ठहाका लगाते हुए बच्चे नाचने लगे।
“ये देखो चांद आया!”

सपनों का चांद करीब से गुज़रा। उल्काएं आतिशबाज़ी कर रही थीं। समय, सर्पिल-गैस की मानी बहता हुआ दूर जा रहा था। बच्चे चिल्ला रहे थे। घण्टों बाद, झूलों से मुक्त किए जाने पर उन्होंने झांका, “वो पृथ्वी है! वो रहा मंगल!”
घंटे बीत रहे थे, रॉकेट आग की गुलाबी-पंखुड़ियां बिखेर रहा था। बच्चों की आंखें नींद से भारी हो रही थीं, आखिर अपने-अपने झूलों में वो इस तरह लटक गए जैसे धुत्त कीड़े अपने खोल में सो रहे हों।
अकेला बोदोनी बड़बड़ाया, “बहुत बढ़िया।”
वो घबराया-सा, दबे पांव नियंत्रण-कक्ष से बाहर निकला, हवाबंद दरवाज़े के करीब कुछ देर तक रुका रहा।
उसने एक बटन दबाया। दरवाज़ा खुल गया। वो बाहर की ओर कूदा। अनन्त में? उल्काओं और गैसों के ज्वार में? अनंत आयामों में?
“नहीं,” बोदोनी मुस्कुराया।
थरथराते रॉकेट के आस-पास उसका कबाड़-खाना पसरा पड़ा था।
ताला-जड़ा कबाड़-घर का जंग-खाता दरवाज़ा था, जैसा का तैसा। नदी किनारे चुपचाप खड़ा छोटा-सा मकान था, रसोई-घर की रोशन खिड़की थी और उसी समुद्र की तरफ जाती हुई नदी थी। कबाड़-खाने के बीचों-बीच, थरथराता-घुरघुराता रॉकेट एक सपना बुन रहा था। हिलता हुआ, गुर्राता हुआ जाले में उलझी मक्खियों की तरह, झूलों में जकड़े हुए बच्चों को उछालता हुआ।
मारिया रसोई-घर की खिड़की में खड़ी थी।
उसने मुस्कुराते हुए हाथ हिलाकर मारिया का अभिवादन किया।
वो देख नहीं पाया कि मारिया ने हाथ हिलाया या नहीं। शायद हौले से हिलाया हो, शायद हल्के से मुस्कुराई हो।
सूरज चढ़ने लगा था।
बोदोनी झट से रॉकेट के भीतर घुस गया। वहां खामोशी थी। सभी बच्चे अब तक सो रहे थे। उसने चैन की सांस ली। खुद को एक झूले में बांध उसने अपनी आंखें मीच लीं। अपने आप से उसने प्रार्थना की कि अगले छ: दिनों तक यह भ्रम टूटना नहीं चाहिए। सारा ब्रह्माण्ड आए और जाए, लाल रंग का मंगल और उसके चांद हमारे यान के रास्ते में आएं, रंगीन-फिल्म में कोई खराबी न आए। तीनों आयाम बने रहें। इस बेहतरीन भुलावे को बनाने वाले, छिपे हुए आइनों और पर्दों में कोई गड़बड़ी न हो। बिना समस्या के ये समय गुज़र जाए।
वो उठा।

रॉकेट, लाल-मंगल के नज़दीक आ चुका था।
“पापा!” मुक्त होने के लिए बच्चे छटपटाए।
बोदोनी ने मंगल को निहारा, लाल था। कहीं कोई गड़बड़ नहीं, वो अत्यन्त खुश था।

सातवें दिन, सूर्यास्त के वक्त, रॉकेट ने कंपकंपाना बंद कर दिया।
“हम घर आ गए,” बोदोनी बोला।
रॉकेट के खुले दरवाज़े से निकल, वे कबाड़-खाने से बाहर आए। उनका खून झनझना रहा था, चेहरे चमक रहे थे।
“मैंने तुम लोगों के लिए गोश्त और अण्डे बनाए हैं,” रसोई घर के दरवाज़े पर खड़ी मारिया बोली।
“मम्मी, मम्मी तुम्हें आना चाहिए था, मंगल देखने के लिए और उल्काएं और सब कुछ!”
“हां,” वो बोली
सोने के समय बच्चे बोदोनी के पास आए और बोले, “हम आपको धन्यवाद देना चाहते हैं, पापा।”
“ये तो कुछ नहीं था।”
“हम इसे हमेशा याद रखेंगे, पापा! कभी नहीं भूलेंगे।”

देर रात, बोदोनी ने आंखें खोलीं। उसे लगा कि करीब लेटी हुई उसकी पत्नी उसे एकटक देख रही है। लम्बे समय तक वो बेहरकत लेटी रही फिर अचानक उसने बोदोनी के गालों और माथे को चूम लिया। “ये क्या है?” वो झल्लाया।
“तुम संसार के सबसे अच्छे पिता हो,” वो फुसफुसाई।
“क्यों?”
“अब मैं देख पा रही हूं और समझ गई हूं,” वो बोली।
उसका हाथ थामे हुए वो फिर लेट गई और आंखें बंद करते हुए उसने पूछा, “क्या यह यात्रा बहुत सुन्दर थी?”
“हां,” वो बोला।
“शायद, शायद किसी रात तुम मुझे एक छोटी-सी यात्रा पर ले चलोगे, क्यों?” उसने कहा।
“शायद, बहुत छोटी यात्रा पर,” बोदोनी बोला
“धन्यवाद, शुभरात्रि,” वो बोली।
“शुभरात्रि,” फियरेलो बोदोनी ने कहा।


रे ब्रेडबरी: बीसवीं सदी के प्रख्यात विज्ञान गल्प लेखकों में से एक प्रमुख नाम।
यह कहानी 1952 में हाइनमैन द्वारा प्रकाशित उनके संकलन, द इलस्ट्रेड मैन, से ली गई है।
अनुवाद : मनोज कुलकर्णी: वरिष्ठ चित्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता। भोपाल में रहते हैं व बैंक में काम करते हैं।
चित्रांकन: उदय खरे: शौकिया चित्रकार, भोपाल में रहते हैं।