लेखक : अजय शर्मा
अनुवाद: सुशील जोशी

आज से करीब सोलह साल पहले की बात है। ब्रिटेन के कई कण भौतिक शास्त्री यह मांग कर रहे थे कि CERN यानी युरोपीय नाभिकीय अनुसन्धान संगठन को सरकारी सहायता जारी रहे। ये भौतिक शास्त्री हिग्स बोसॉन नामक एक बुनियादी या मूलभूत कण की खोज में लगे हुए थे। यह कण आज भी हमें चकमा दे रहा है और इसकी खोज आज भी जारी है। इसके बारे में और जानने के लिए ‘संदर्भ’ के इसी अंक में विक्रम व्यास का लेख पढ़ें।

खैर, अपनी कहानी पर लौटें। 1993 में CERN उन चन्द जगहों में से एक थी जहाँ इस कण को खोजने की उम्मीद की जा सकती थी। सरकार ने सोचा कि वैज्ञानिक लोग ऐसा अनुसन्धान करने के लिए बहुत सारा पैसा (करदाताओं का पैसा) मांगते हैं जो बहुत कम लोगों को वाकई समझ में आता है। तो ब्रिटिश सरकार में तत्कालीन विज्ञान मंत्री श्री वाल्डरग्रेव ने अपने हमवतन भौतिक शास्त्रियों के सामने एक चुनौती रखी। चुनौती यह थी कि वे एक आसान से सवाल का जवाब दें। सवाल था: “हिग्स बोसॉन क्या चीज़ है और हम इसे क्यों खोजना चाहते हैं?” शर्त यह थी कि जवाब ऐसा हो जिसे कोई भी आम व्यक्ति समझ सके और यह जवाब ए-4 साइज़ के एक पन्ने पर लिखा जाए। इस चुनौती का सफलतापूर्वक सामना करने का इनाम एक बोतल शेम्पेन रखा गया था। कई भौतिक शास्त्रियों ने इस चुनौती का जवाब दिया और उनमें से पाँच को विजेता घोषित किया गया। इस लेख में आगे चलकर मैं आपके साथ उनमें से एक जवाब साझा करूँगा। सिर्फ इसलिए नहीं कि यह बहुत दिलचस्प जवाब है और इसमें राजनैतिक उपमाओं का इस्तेमाल किया गया है बल्कि इसलिए भी कि हिग्स बोसॉन इस लेख की विषयवस्तु यानी भौतिकी के स्टैण्डर्ड मॉडल का एक महत्वपूर्ण पहलू है।

दरअसल, स्टैण्डर्ड मॉडल पर एक संक्षिप्त लेख लिखते हुए मुझे ऐसा महसूस हो रहा है जैसे मैं भी श्री वाल्डरग्रेव की चुनौती का जवाब दे रहा हूँ। इससे क्या फर्क पड़ता है कि मैं यह काम 16 साल देर से कर रहा हूँ। ज़ाहिर है, मैं ‘संदर्भ’ के सम्पादकों से शेम्पेन की बोतल की अपेक्षा नहीं कर रहा हूँ। मगर सच कहूँ तो मैं होशंगाबाद के सेठानी घाट के अग्रवाल पूड़ी भण्डार के गुलाब जामुन से इन्कार नहीं करूँगा। खैर, वह सब तो तब की बात है जब मैं उस चुनौती से निपट लूँ क्योंकि एक ऐसी चीज़ पर संक्षेप में लिखना आसान नहीं है जिसके बारे में दावा है कि वह लगभग हर चीज़ का सिद्धान्त है।

कण भौतिकी का बोलबाला
यदि मैं कहूँ कि कण भौतिकी का स्टैण्डर्ड मॉडल बीसवीं सदी के भौतिक अनुसन्धान की सबसे बड़ी उपलब्धि है, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। जब मैंने यह गिनती लगाई कि नोबल पुरस्कार की शुरुआत से (यानी 1901 से) इस सिद्धान्त के विकास में योगदान देने वाले कितने शोध कार्यों को यह पुरस्कार मिला है, तो मैं चकित रह गया - यह संख्या 74 है। अर्थात् शुरु से लेकर आज तक भौतिक शास्त्र के नोबल पुरस्कारों में से तकरीबन 69 प्रतिशत नोबल पुरस्कार इस क्षेत्र में अनुसन्धान को मिले हैं।1 कारण समझना आसान है: स्टैण्डर्ड मॉडल के विकास की दिशा में हो रहा अनुसन्धान दरअसल, पदार्थ और ऊर्जा को समझने पर केन्द्रित है। कम-से-कम भौतिक शास्त्र में तो इससे महत्वपूर्ण सवाल क्या हो सकता है कि मैं, आप, हम सब, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु और पूरा ब्रह्माण्ड काहे से बना है?
स्टैण्डर्ड मॉडल लगभग एक सदी के इस शोध का निचोड़ प्रस्तुत करता है और यह खोजबीन अभी जारी है। हम पदार्थ और ऊर्जा के बारे में जो कुछ भी जानते हैं, यह उसका विवरण पेश करता है और काफी हद तक व्याख्या भी। यह वास्तव में, भौतिक विश्व में लगभग हर चीज़ का सिद्धान्त है यानी हर चीज़ सिवाय गुरुत्वाकर्षण के।
आप पूछ सकते हैं कि यदि यह हर चीज़ का सिद्धान्त है तो क्या यह उस मेज़ का वर्णन कर सकता है जिस पर कागज़ रखकर मैं लिख रहा हूँ। मुकम्मल जवाब होगा - जी नहीं। वास्तव में, स्टैण्डर्ड मॉडल मुझे गुंजाइश देता है कि मैं मेज़ का विश्लेषण सबसे बुनियादी स्तर पर कर सकूँ ताकि मैं इस मेज़ को उसके निर्माण की घटक इकाइयों के रूप में समझ सकूँ और यह समझ सकूँ कि वे इकाइयाँ परस्पर किस तरह अन्तर्क्रिया करती हैं जिससे मेज़ के स्थूल गुणधर्म उभरते हैं।

आप देख ही सकते हैं कि इस तरह के वादों और इरादों वाला सिद्धान्त बहुत विशाल और पेचीदा होगा। इसके साथ पूरा न्याय करने के लिए तो अच्छी-खासी मोटी किताब लिखनी होगी और वह भी गणित की भाषा में, जो भौतिकी की पसन्दीदा भाषा है। चूँकि ‘संदर्भ’ जैसी पत्रिका में वह तो नहीं कर सकता, इसलिए मैंने कुछ छँटनी की है। सबसे पहले तो मैंने यह सोचा है कि यह सिद्धान्त जिन तमाम मुद्दों को सम्भालता है, उनमें से मैं उन दो मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करूँगा जो मुझे सबसे दिलकश लगते हैं। ये मुद्दे हैं: (क) पदार्थ किससे बना है? (ख) संहति क्या है?
दूसरी बात यह है कि इन सवालों का सही और अच्छा जवाब देने के लिए ढेर सारे ऊटपटांग समीकरणों और अमूर्त शब्दों की ज़रूरत होगी, जिनमें आप शायद ही उलझना चाहें। तो मैंने कोशिश की है कि इन सवालों की बात मैं सरल से सरल ढंग से करूँ। इस मामले में मैं आइंस्टाइन की इस सलाह पर चलूँगा कि “हर चीज़ को यथासम्भव सरल बनाया जाना चाहिए, मगर उससे ज़्यादा नहीं।” अलबत्ता, इस प्रयास में यह खतरा ज़रूर है कि मैं कहीं अति-सरलीकरण न कर दूँ।

पदार्थ किससे बना है?
आपने सुना ही होगा कि हम सब, यह धरती, और वास्तव में, ब्रह्माण्ड का सारा पदार्थ छोटे-छोटे कणों से मिलकर बना है, जिन्हें परमाणु कहते हैं। आपने शायद यह भी सुना होगा कि परमाणु स्वयं और भी छोटे-छोटे कणों से मिलकर बना है जो वास्तव में, पदार्थ के निर्माण की इकाइयाँ हैं। ये कण और छोटे कणों से मिलकर नहीं बने हैं और इसलिए इन्हें मूलभूत कण कहते हैं। जैसे-जैसे भौतिक शास्त्रियों ने पदार्थ की और गहराई से जाँच-पड़ताल की, सैद्धान्तिक स्तर पर भी और प्रयोगों के स्तर पर भी, वैसे-वैसे, समय के साथ इन कणों की समझ में इज़ाफा होता गया। मसलन, बीसवीं सदी की शुरुआत में यह माना जाता था कि परमाणु, और तदनुसार ब्रह्माण्ड की हर चीज़, मात्र दो प्रकार के मूलभूत कणों से बनी है - इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन। चन्द दशकों के अन्तराल के बाद 1930 में न्यूट्रिनो के अस्तित्व की भविष्यवाणी की गई और 1932 में न्यूट्रॉन और पॉज़िट्रॉन खोज लिए गए। इन हैरतअँगेज़ खोजों के बाद तो जैसे मूलभूत कणों की बाढ़-सी आ गई। कुछ समय तक तो भौतिक शास्त्री इन विचित्र कणों के बढ़ते जमावड़े का सिर-पैर समझने और यह निर्णय करने की कोशिश में भिड़े रहे कि आखिर इनमें से वास्तव में, मूलभूत कण कौन-से हैं। हालात यहाँ तक पहुँचे कि नोबेल पुरस्कार विजेता विलिस लैम्ब ने अपने नोबेल व्याख्यान में कहा, “मैंने सुना है कि पहले किसी नए मूलभूत कण की खोज को नोबेल पुरस्कार से नवाज़ा जाता था मगर अब इसके लिए 10,000 डॉलर का जुर्माना लगाया जाना चाहिए।” वे उस समय भौतिकी प्रयोगशालाओं में व्याप्त भावनाओं को ही व्यक्त कर रहे थे।

आगे चलकर पता चला कि उपरोक्त में से कई कण स्वयं अन्य छोटे-छोटे कणों से मिलकर बने हैं और उनका ‘मूलभूत’ रुतबा जाता रहा। स्टैण्डर्ड मॉडल ने शेष बचे मूलभूत कणों में कुछ व्यवस्था लाने में मदद की। तालिका 1 में 17 कणों के बारे में जानकारी दी गई है जिन्हें फिलहाल मूलभूत कण माना जाता है। जैसा कि तालिका से पता चलता है, इन 17 कणों को मोटे तौर पर दो समूहों में बाँटा जा सकता है - फर्मियॉन्स और बोसॉन्स। स्टैण्डर्ड मॉडल की बदौलत 12 फर्मियॉन्स को आगे तीन कुलों या पीढ़ियों में वर्गीकृत किया जा सकता है (देखें तालिका 1 और 2)।
तो क्या हम और ब्रह्माण्ड की अन्य चीज़ें इतनी तरह के मूलभूत कणों से मिलकर बनी हैं? हैरत की बात है कि इस सवाल का जवाब है, ‘नहीं’। स्टैण्डर्ड मॉडल की मदद से हम आज जानते हैं कि इस ब्रह्माण्ड का समस्त ज्ञात व प्रेक्षणीय पदार्थ (ज़ाहिर है, इसमें हम भी शामिल हैं) मात्र तीन तरह के मूलभूत कणों से मिलकर बना है - इलेक्ट्रॉन, ‘अप’ क्वार्क और ‘डाउन’ क्वार्क। ये कण ग्लुऑन्स और फोटॉन्स नामक कणों के ज़रिए आपस में अन्तर्क्रिया करते हैं। ज़रा सोचिए... अविश्वसनीय रूप से सुन्दर और पेचीदा ब्रह्माण्ड मात्र चन्द कणों से बना है।

क्या हुआ प्रोटॉन-न्यूट्रॉन का?
यहाँ ज़रा अपना स्कूली विज्ञान याद करें - वहाँ तो बताया गया था कि परमाणु प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन से बने हैं। तो प्रोटॉन और न्यूट्रॉन का क्या हुआ? बात यह है कि जब वैज्ञानिकों ने इन कणों की गहरी छानबीन की तो पता चला कि जिन कणों को पहले मूलभूत माना जाता था, उनमें से कई वास्तव में, मूलभूत नहीं हैं। देखा गया कि ये अन्य छोटे-छोटे कणों से मिलकर बने हैं। न्यूट्रॉन और प्रोटॉन का यही हश्र हुआ। मर्रे जेल-मान, जॉर्ज स्वाइग और स्टैण्डर्ड मॉडल की रचना में योगदान देने वाले अन्य वैज्ञानिकों के अनुसन्धान का परिणाम है कि आज हम जानते हैं कि प्रोटॉन्स दो ‘अप’ क्वार्क और एक ‘डाउन’ क्वार्क से मिलकर बने हैं जबकि न्यूट्रॉन एक ‘अप’ क्वार्क और दो ‘डाउन’ क्वार्क से। दूसरी ओर, इलेक्ट्रॉन अपनी मूलभूत कण की हैसियत बचा पाने में सफल रहा। दरअसल, अन्य समस्त मूलभूत कणों की तरह इलेक्ट्रॉन भी इतना छोटा होता है कि इसकी कोई साइज़ ही नहीं है - इसलिए इसे बिन्दु कण कहते हैं। मगर इसकी निश्चित संहति ज़रूर है। है ना अजीबोगरीब बात? एक ऐसा कण जिसमें संहति तो है मगर साइज़ नहीं। मैं समझ सकता हूँ कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं। मगर ज़रा रुकिए...यदि आप पढ़ना जारी रखेंगे तो पाएँगे कि इस अति-सूक्ष्म स्तर पर यथार्थ और भी अजीब है। देखिए चित्र-1 - एक परमाणु के अन्दर ताक-झाँक।

मूलभूत कण समूह
अब एकाध बात उन मूलभूत कणों के बारे में भी कर लें जो, वैज्ञानिकों के मुताबिक, हमारे आस-पास नज़र आने वाले पदार्थ के घटक नहीं हैं। इनमें से हम बोसॉन्स को छोड़ देते हैं क्योंकि ये पदार्थ का निर्माण नहीं करते बल्कि पदार्थ के घटक फर्मियॉन्स के बीच अन्तर्क्रिया में मध्यस्थ के रूप में उपस्थित होते हैं। शेष फर्मियॉन्स - इलेक्ट्रॉन न्यूट्रिनो, म्यूऑन, म्यूऑन न्यूट्रिनो, टाओऑन, टाओऑन न्यूट्रिनो, चार्म, स्ट्रेंज, टॉप व बॉटम क्वार्क्स - की विशेषता यह है कि ये इस ब्रह्माण्ड के पदार्थ के निर्माण में कोई योगदान नहीं देते। वैसे इनके अस्तित्व की पुष्टि दुनिया भर की विज्ञान प्रयोग-शालाओं में अनगिनत मर्तबा हो चुकी है। ये कण पदार्थ के निर्माण में कोई योगदान नहीं दे पाते, इसका प्रमुख कारण यह है कि इनमें से न्यूट्रिनो को छोड़ बाकी सबकी आयु बहुत कम है। इसलिए ये इतनी तेज़ी से अन्य कणों में विघटित हो जाते हैं कि ऐसी कोई भूमिका निभाने में असमर्थ रहते हैं। जहाँ तक न्यूट्रिनो का मामला है, तो वे इतने हल्के होते हैं कि उनके अन्य किसी चीज़ में विघटित होने का सवाल ही नहीं उठता। मगर चूँकि वे सामान्य पदार्थ का निर्माण करने वाले अन्य कणों से बमुश्किल अन्तर्क्रिया करते हैं, इसलिए वे भी पदार्थ के निर्माण में कोई योगदान नहीं देते। आप सोच रहे होंगे कि जब ब्रह्माण्ड में सारी चीज़ें बनाने के लिए इनकी कोई ज़रूरत ही नहीं है, तो फिर ये होते ही क्यों हैं। आपको यह जानकर खुशी होगी कि ऐसा सोचने में आप अकेले नहीं हैं।
जैसा कि मैंने कहा, स्टैण्डर्ड मॉडल सारे फर्मियॉन्स को कणों के तीन समूहों में बाँटता है। यह प्रथम कण-समूह की व्याख्या भी कर पाता है (जिसमें इलेक्ट्रॉन, इलेक्ट्रॉन-न्यूट्रिनो, तथा ‘अप’ व ‘डाउन’ क्वार्क्स शामिल हैं)। मगर हम भलीभाँति यह नहीं समझ पाए हैं कि बाकी दो समूहों के कण होते ही क्यों हैं। चाहे कितने ही अल्पजीवी क्यों न हों।
स्टैण्डर्ड मॉडल एक महान सिद्धान्त है और पिछले कुछ दशकों में इसे कई बार काफी सटीकता से परखा जा चुका है। मुझे नहीं लगता कि कोई यह कह रहा है कि यह गलत है। फिर भी पदार्थ के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं जिनकी व्याख्या यह नहीं कर पाता है। इससे भौतिक शास्त्रियों को यह आभास मिलता है कि या तो स्टैण्डर्ड मॉडल अधूरा है या यह किसी ज़्यादा विस्तृत और सम्पूर्ण सिद्धान्त का एक हिस्सा है जो अनसुलझे सवालों का जवाब दे पाएगा, जैसे इतने सारे मूलभूत कणों का वजूद।
ठीक है, तो अपने पाँच स्थिर मूलभूत कणों - इलेक्ट्रॉन, अप क्वार्क, डाउन क्वार्क, ग्लुऑन और फोटॉन - पर लौटते हैं।2 ये कण इस ब्रह्माण्ड और उसमें पाई जाने वाली हर चीज़ का निर्माण करते हैं। आपको अपनी पाठ्य पुस्तक से याद होगा कि सारे परमाणुओं के केन्द्र में एक नाभिक होता है और एक या एक से ज़्यादा इलेक्ट्रॉन इसका चक्कर लगाते रहते हैं। नाभिक में प्रोटॉन और न्यूट्रॉन होते हैं। और जैसा कि मैंने पहले ज़िक्र किया था, प्रोटॉन्स और न्यूट्रॉन्स क्वार्क्स से बने होते हैं। अब आपको यह जानकर हैरत होगी कि हालाँकि भौतिक शास्त्रियों को पूरा यकीन है कि क्वार्क्स का अस्तित्व होता है और वे प्रोटॉन व न्यूट्रॉन का निर्माण करते हैं मगर आज तक किसी ने भी क्वार्क का अवलोकन नहीं किया है, उसे अलग नहीं किया है। जी हाँ, क्वार्क्स सचमुच अपने घर से मुहब्बत करते हैं और तनहाई से सख्त नफरत करते हैं। जैसा कि क्वार्क के सन्दर्भ में स्पष्ट होता है, समय के साथ वैज्ञानिक लिफाफा खोले बगैर खत का मजमून भाँपने में ही नहीं, पूरा खत पढ़ लेने में भी काफी माहिर हो गए हैं।

मूलभूत कणों की अन्तर्क्रिया
मूलभूत कण, और दरअसल, इस ब्रह्माण्ड की सारी चीज़ें एक-दूसरे से चार मूलभूत तरीकों से परस्पर अन्तर्क्रिया करती हैं। यह अन्तर्क्रिया आकर्षण, विकर्षण, विघटन व विलोपन (annih- ilation) के रूप में होती है। ये मूलभूत अन्तर्क्रियाएँ हैं: गुरुत्वीय, विद्युत-चुम्बकीय, प्रबल और दुर्बल अन्तर्क्रियाएँ।4 इस विश्व की वस्तुओं या कणों के बीच आप जिस भी भौतिक अन्तर्क्रिया अथवा बल की बात करें, उसे उपरोक्त चार मूलभूत अन्तर्क्रियाओं में से किसी एक या एक से अधिक प्रकार की अन्तर्क्रिया का उदाहरण बताया जा सकता है। इन अन्तर्क्रियाओं पर विशिष्ट सापेक्षता के नियम भी लागू होते हैं और क्वांटम यांत्रिकी के नियम भी। स्टैण्डर्ड मॉडल भौतिकी के इन दो आधुनिक स्तम्भों का एकीकरण करके उपरोक्त चार में से तीन मूलभूत अन्तर्क्रियाओं - विद्युत-चुम्बकीय, प्रबल और दुर्बल - के लिए सापेक्षतापूर्ण क्वांटम क्षेत्र सिद्धान्त (relativistic quantum field theories) प्रस्तुत करता है।
जैसा कि मैंने बताया था, स्टैण्डर्ड मॉडल गुरुत्वीय अन्तर्क्रिया की व्याख्या नहीं करता। मगर शेष तीन अन्त-र्क्रियाओं के सन्दर्भ में यह उनके विवरण के साथ-साथ भविष्यवाणी के लिए भी यथेष्ट भाषा व ढाँचा प्रदान करता है। स्टैण्डर्ड मॉडल हर प्रकार के कण का विवरण स्थान-काल के हर बिन्दु पर एक गणितीय क्षेत्र के रूप में करता है। सवाल है कि क्षेत्र क्या है? चलिए कुछ ऐसे उदाहरणों की बात करते हैं जिनसे आप वाकिफ होंगे।

हम क्षेत्र को देख तो नहीं सकते मगर उन्हें महसूस ज़रूर कर सकते हैं, उनका अवलोकन कर सकते हैं और उनके प्रभाव को रिकॉर्ड कर सकते हैं। एक सरल उदाहरण गुरुत्व क्षेत्र का है। यही वह क्षेत्र है जो केले के छिलके पर पैर पड़ जाने पर आपको गिरा देता है। जब आपके सूखे बाल कंघी से चिपकते हैं, तो वास्तव में, यह विद्युतीय क्षेत्र का परिणाम होता है। इसी प्रकार से आपके परमाणुओं और किसी बन्द दरवाज़े के परमाणुओं के विद्युत-चुम्बकीय क्षेत्रों की वजह से उनके बीच लगने वाला विद्युत-चुम्बकीय विकर्षण बल ही आपको बन्द दरवाज़े में से गुज़रने नहीं देता और ऐसी ज़ुर्रत करने पर सिर पर गूमड़ा भी उभर आता है। क्षेत्र हमारे ब्रह्माण्ड की सबसे मूलभूत राशियाँ हैं। क्लासिकल भौतिकी में आप क्षेत्र को एक वास्तविक भौतिक राशि के रूप में समझ सकते हैं जो किसी इलाके के हर बिन्दु पर व्याप्त है और जो समय के साथ बदलता रह सकता है।

अलबत्ता, स्टैण्डर्ड मॉडल में क्षेत्र की धारणा अपेक्षाकृत अमूर्त हो जाती है। यहाँ, क्षेत्र एक गणितीय औज़ार बन जाता है जो निर्वात पर क्रिया करके मूलभूत कण का सृजन करता है। इस तरह से, क्षेत्र पदार्थ के मुकाबले ज़्यादा मूलभूत अवधारणा के रूप में सामने आता है। यह (क्षेत्र) पदार्थ को उत्पन्न करता है - इस अर्थ में कि स्टैण्डर्ड मॉडल में सामान्यत: यह माना जाता है कि मूलभूत कण क्षेत्र की नन्ही क्वांटमीकृत लहरें हैं या छोटी-छोटी कलकल हैं। इन लहरों में ऊर्जा और संवेग होता है और इन्हें प्रयोग-शालाओं में मूलभूत कणों के रूप में पहचाना जाता है। इस मायने में इलेक्ट्रॉन को इलेक्ट्रॉन क्षेत्र का क्वांटम, क्वार्क को क्वार्क क्षेत्र का क्वांटम, ग्लुऑन्स को एक विचित्र नाम वाले क्षेत्र - कलर क्षेत्र या हिन्दी में रंगीन क्षेत्र - का क्वांटम और फोटॉन्स को अपेक्षाकृत परिचित क्षेत्र - विद्युत-चुम्बकीय क्षेत्र - का क्वांटम माना जाता है।

मगर अभी बात पूरी नहीं हुई है। स्टैण्डर्ड मॉडल हमें यह भी बताता है कि ये क्षेत्र एक-दूसरे से अन्तर्क्रिया कैसे करते हैं। स्टैण्डर्ड मॉडल में माना जाता है कि वस्तुओं और कणों के बीच मूलभूत अन्तर्क्रियाएँ ऊर्जा व संवेग (अर्थात बल) को वहन करने वाले कणों के लेन-देन के ज़रिए होती हैं। जैसे विद्युत-चुम्बकीय अन्तर्क्रियाएँ फोटॉन के लेन-देन के ज़रिए, प्रबल अन्तर्क्रियाएँ ग्लुऑन्स के लेन-देन के ज़रिए, और दुर्बल अन्तर्क्रियाएँ W+ W और  Z बोसॉन्स के लेन-देन के ज़रिए सम्पन्न होती हैं।5

अपने रोज़मर्रा के अनुभव के आधार पर यह समझना मुश्किल है कि कैसे दो कण किसी तीसरे कण (सदैव किसी अन्य किस्म के कण) के विनिमय के ज़रिए एक-दूसरे पर बल आरोपित कर सकते हैं। अलबत्ता, कम-से-कम विकर्षण के सन्दर्भ में एक रूपक की मदद से इस विचित्र कारोबार को समझने में मदद मिल सकती है। कल्पना कीजिए कि दो व्यक्ति स्केट्स पहने एक निहायत चिकने फर्श पर खड़े हैं। यदि इनमें से एक व्यक्ति एक फुटबॉल दूसरे की ओर फेंकता है और दूसरा व्यक्ति उसे पकड़ लेता है तो आप पाएँगे कि फुटबॉल के इस विनिमय के फलस्वरूप वे दोनों एक-दूसरे से दूर जाएँगे। जितनी ज़्यादा रफ्तार से गेंद को फेंका जाएगा, उतनी ही ज़्यादा ऊर्जा एक व्यक्ति से दूसरे को हस्तान्तरित होगी और वे उतनी ही तेज़ी से एक-दूसरे से दूर जाएँगे। अब यदि यह फुटबॉल अदृश्य हो जाए, या रात का समय हो जब आप गेंद को न देख सकें, तो आपको लगेगा कि कोई रहस्यमय बल इन दोनों को एक-दूसरे से दूर धकेल रहा है। मानता हूँ, यह बहुत अनगढ़ रूपक है, क्योंकि इसे परस्पर आकर्षण या अन्य विचित्र अन्तर्क्रियाओं पर लागू नहीं किया जा सकता। मगर यदि आप यह समझना चाहें कि दो वस्तुएँ या कण एक-दूसरे को छुए बगैर कैसे परस्पर प्रभाव डाल सकते हैं, तो कणों का लेन-देन ज़्यादा मददगार है बजाय दूरी-पर-क्रिया (action-at-a-distance) की उस धारणा के जिसे न्यूटनीय यांत्रिकी में माना जाता है।

अधिकांश लोगों को पदार्थ का उपरोक्त विवरण सचमुच बहुत अजीब और सहज बुद्धि के विपरीत लगेगा। यह कैसे हो सकता है कि क्वांटम क्षेत्र जो पूरी तरह से अमूर्त हैं और गणितीय हैं और किसी भी भौतिक व्याख्या के हत्थे नहीं चढ़ते, वे पदार्थ जैसी मूर्त चीज़ का सृजन करते हैं (और ‘प्रकाश से त्वरित गति’ जैसे किसी विरोधाभास में भी नहीं फँसते)? यह हमारी कल्पना और सहज बुद्धि को मुँह चिढ़ाता-सा लगता है, खास तौर से इसलिए कि हम पाठ्य पुस्तकों में इन कणों को छोटी-छोटी ईंटों या गेंदों के रूप में देखते बड़े हुए हैं। इन मूलभूत कणों के स्तर पर दुनिया सचमुच बहुत, बहुत विचित्र है और अपने रोज़मर्रा के अनुभवों के रूप में इसे समझना असम्भव है। इसके बावजूद भौतिक शास्त्री स्टैण्डर्ड मॉडल को मूलभूत कणों के स्तर पर यथार्थ का काफी अच्छा विवरण मानते हैं क्योंकि यह असाधारण सटीक परिणाम देता है। उदाहरण के लिए, एक इलेक्ट्रॉन के चुम्बकीय आघूर्ण का प्रायोगिक मान 1.00115965218073 ल् 0.0000000 0000028 माइक्रोडिराक है। इसकी तुलना स्टैण्डर्ड मॉडल द्वारा गणना के आधार पर निकाले गए सैद्धान्तिक मान (1.00115965218279ल् 0.000 00000000771 माइक्रोडिराक) से करें। अन्तर दशमलव के 12वें स्थान पर है। इतनी सटीकता से तो अर्जुन धरती पर बैठे-बैठे चांद पर तैरती मछली की आँख को बेध सकेगा।

द्रव्यमान क्या है?
द्रव्यमान को लेकर हम सबकी एक सहज समझ होती है। आप शायद कहें कि यह किसी वस्तु में पदार्थ की मात्रा है जो उसे भार व जड़त्व प्रदान करता है। हम सब मानते हैं कि द्रव्यमान पदार्थ का निहित (मूलभूत) गुणधर्म है, और क्या। आपको यह जानकर अचरज होगा कि द्रव्यमान आज भी भौतिक शास्त्र में अनुसन्धान का एक गम्भीर विषय है। द्रव्यमान क्या है, और कणों में द्रव्यमान क्यों होता है, इसे समझाने में स्टैण्डर्ड मॉडल का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है। अलबत्ता, मॉडल इस बात को आज भी नहीं समझा पाया है कि कणों में वही द्रव्यमान क्यों होता है, जो प्रायोगिक रूप से निकलता है।
तो, शुरुआत करते हैं हमारे ब्रह्माण्ड में किसी भी वस्तु के द्रव्यमान की व्याख्या से। उदाहरण के लिए मेरा अपना द्रव्यमान लेते हैं। मगर गहराई में गोता लगाने से पहले एक स्पष्टीकरण ज़रूरी है। जैसा कि आइंस्टाइन ने विशिष्ट सापेक्षता के अपने सिद्धान्त के ज़रिए दर्शाया था, हमारा द्रव्यमान कोई अपरिवर्ती राशि नहीं है; यह चाल यानी स्पीड के साथ बढ़ता है। दूसरे शब्दों में किसी गतिमान वस्तु की गतिज ऊर्जा भी उसके द्रव्यमान में जुड़ जाती है। यह ज़रूर है कि हम आम जीवन में ऐसा होते नहीं देखते क्योंकि रोज़मर्रा के जीवन में हम जिन चालों को देखते या अनुभव करते हैं उनके सन्दर्भ में द्रव्यमान में वृद्धि इतनी कम होती है कि उसे मापना तक सम्भव नहीं है। तो स्पष्टीकरण यह है कि इस खण्ड में मैं जिस द्रव्यमान की बात कर रहा हूँ वह वस्तु का निहित, विश्राम-द्रव्यमान है। दूसरे शब्दों में यह किसी वस्तु का द्रव्यमान है जब वह विश्राम की अवस्था में है।

अब, जैसी कि हमने पहले चर्चा की थी, हमारा ब्रह्माण्ड मात्र 6 मूलभूत कणों से मिलकर बना है - दो प्रकार के क्वार्क्स, इलेक्ट्रॉन्स, फोटॉन्स, ग्लुऑन्स, और हिग्स बोसॉन्स। इन 6 में से फोटॉन्स का द्रव्यमान में कोई योगदान नहीं होता क्योंकि इनका विश्राम-द्रव्यमान शून्य होता है और ये हमारे शरीर में बहुत अधिक ऊर्जा के साथ भटकते नहीं हैं। आगे हम हिग्स बोसॉन्स के बारे में ज़्यादा विस्तार में बात करेंगे मगर यहाँ इतना कहना काफी है कि ये मेरे शरीर के द्रव्यमान में सीधे-सीधे कोई योगदान नहीं करते क्योंकि ये किसी वस्तु के पदार्थ के घटक नहीं होते बल्कि पृष्ठभूमि में रहते हैं और मेरे शरीर को बनाने वाले कणों को कुछ विशेष गुणधर्म प्रदान करते हैं (जिनके बारे में मैं थोड़ी देर बाद बात करूँगा)। तो मेरे शरीर के द्रव्यमान में योगदान देने वाले कण मूलत: इलेक्ट्रॉन, दो तरह के क्वार्क्स (‘अप’ और ‘डाउन’) और ग्लुऑन्स हैं। क्वार्क्स और ग्लुऑन्स मेरे शरीर के प्रोटॉन और न्यूट्रॉन के अन्दर निवास करते हैं। चूँकि प्रोटॉन और न्यूट्रॉन की तुलना में इलेक्ट्रॉन बहुत हल्के होते हैं, इसलिए ये मेरे द्रव्यमान में मात्र 0.5 प्रतिशत का योगदान देते हैं। शेष द्रव्यमान (99.5 प्रतिशत) प्रोटॉन्स और न्यूट्रॉन्स के दम पर है।

हम जानते हैं कि प्रोटॉन्स और न्यूट्रॉन्स क्वार्क्स और ग्लुऑन्स से बने हैं। आप शायद सोच रहे होंगे कि जब ग्लुऑन्स का विश्राम-द्रव्यमान शून्य है, तो कुल द्रव्यमान में प्रोटॉन्स और न्यूट्रॉन्स के योगदान को जानने के लिए हमें इतना ही करना होगा कि शरीर में उपस्थित क्वार्क्स के द्रव्यमानों को जोड़ दें। गलत! एक प्रोटॉन या एक न्यूट्रॉन को बनाने वाले दो क्वार्क्स का कुल विश्राम-द्रव्यमान उस प्रोटॉन अथवा न्यूट्रॉन के द्रव्यमान का मात्र 1 प्रतिशत होता है। सवाल है कि शेष 99 प्रतिशत कहाँ से आया? जी हाँ, यह 99 प्रतिशत क्वार्क्स और गलुऑन्स की गतिज ऊर्जा से आता है जो न्यूट्रॉन्स व प्रोटॉन्स के अन्दर अविश्वसनीय गति से चक्कर लगाते रहते हैं। क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि हमारा लगभग पूरा द्रव्यमान गति जैसी द्रव्यमान-विहीन चीज़ से आता है और यह पदार्थ का एक निहित गुण है?

और अब आप शायद सोच रहे होंगे कि जब द्रव्यमान एक निहित गुणधर्म है तो कम-से-कम क्वार्क और इलेक्ट्रॉन जैसे मूलभूत कणों के मामले में तो यह उस चीज़ में निहित रूप से पाया जाता होगा जिससे ये बने हैं। एक बार फिर गलत! क्या, फिर गलत? जी हाँ, बात यह है कि स्टैण्डर्ड मॉडल के मुताबिक ये कण वाकई द्रव्यमान-विहीन हैं। मगर आप कहेंगे कि इनका कुछ विश्राम-द्रव्यमान तो होता ही है, जिसे प्रायोगिक रूप से जाँचा जा चुका है। जी हाँ, यह बात सही है। तो ऐसा कैसे हो सकता है कि सैद्धान्तिक रूप से जिस चीज़ का कोई द्रव्यमान नहीं होना चाहिए, मापन करने पर उसका एक निश्चित द्रव्यमान निकलता है (और हर बार नापने पर इसका मान बदलता नहीं)। तब क्या इस मामले में स्टैण्डर्ड मॉडल गलत है? नहीं, ऐसा नहीं है। और न ही यह स्थिति कोई ऐसा विरोधाभास पेश करती है, जिसे सुलझाया न जा सके। ध्यान दें कि इस सारी बातचीत में हमने हिग्स बोसॉन के बारे में कुछ नहीं कहा है। हिग्स बोसॉन दरअसल, इसी पहेली के समाधान के रूप में प्रकट होते हैं। अब के बाद इस लेख में आप पाएँगे कि यही कण मुख्य किरदार होगा।

स्टैण्डर्ड मॉडल तभी काम करता है जब हम इलेक्ट्रॉन व क्वार्क्स के विश्राम-द्रव्यमान को शून्य मानें। मॉडल के लिए खुशकिस्मती की बात है कि वह एक रास्ता सुझाता है जिसके ज़रिए ये कण द्रव्यमान हासिल कर सकते हैं - एक निहित गुणधर्म के रूप में नहीं बल्कि अपने परिवेश के एक प्रभाव के रूप में। स्टैण्डर्ड मॉडल के अनुसार, विद्युत-दुर्बल, प्रबल और गुरुत्वीय क्षेत्रों की स्पन्दन गतिविधि के साथ-साथ पूरा ब्रह्माण्ड एक और क्वांटम क्षेत्र से भरा है। इसे हिग्स क्षेत्र कहते हैं (कभी-कभी इसे हिग्स संघनन या हिग्स कंडेंसेट भी कहते हैं)। यह क्षेत्र तब भी उपस्थित होता है जब कोई कण आस-पास न हो। अर्थात् यह निर्वात में पाया जाता है। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भौतिक शास्त्री फ्रेन्क विलचेक इसकी तुलना अतीत के ईथर से करते हैं। आइंस्टाइन के आगमन और उनके द्वारा खण्डन किए जाने से पहले माना जाता था कि यह ईथर पूरे ब्रह्माण्ड में व्याप्त है।6 जिस तरह से फोटॉन्स विद्युत-चुम्बकीय क्षेत्र के क्वांटा हैं, उसी तरह से हिग्स बोसॉन्स पृष्ठभूमि में व्याप्त हिग्स क्षेत्र के क्वांटा हैं। ऐसा माना जाता है कि ये हिग्स बोसॉन्स इलेक्ट्रॉन और क्वार्क्स से अन्तर्क्रिया करते हैं और उन्हें कुछ द्रव्यमान प्रदान करते हैं। और इस तरह से द्रव्यमान एक निहित गुणधर्म के रूप में नहीं बल्कि हिग्स क्षेत्र के परिवेशगत असर के रूप में सामने आता है।

सब कुछ बहुत अलौकिक-सा लगता है, नहीं? खुशकिस्मती से भौतिकी के अन्य क्षेत्रों से कुछ साम्य हैं जो इसे स्वीकार करने योग्य बनाते हैं। उदाहरण के लिए हम जानते हैं कि फोटॉन द्रव्यमान-विहीन होते हैं। इसीलिए ये प्रकाश की रफ्तार से चलते हैं। आखिरकार फोटॉन ही तो प्रकाश हैं। मगर भौतिक शास्त्रियों ने इन्हें धीमा करने के तरीके खोज निकाले हैं। यहाँ तक कि इन्हें पूरी तरह स्थिर करना भी सम्भव हो गया है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि अति-चालक कहे जाने वाले पदार्थों के अन्दर विद्युत-चुम्बकीय क्षेत्र को इस तरह व्यवस्थित किया जा सकता है कि जब फोटॉन इस क्षेत्र से अन्तर्क्रिया करें तो उनमें एक प्रभावी द्रव्यमान पैदा हो जाए, और वे धीमे हो जाएँ। इसे समझने के लिए एक और रूपक है जो इतना परिष्कृत और सटीक तो नहीं है मगर समझने में अपेक्षाकृत सरल है। इसके लिए हम मान लेते हैं कि हिग्स क्षेत्र एक चाशनी की तरह है जो पूरे ब्रह्माण्ड में व्याप्त है। यदि इलेक्ट्रॉन और क्वार्क्स इस पृष्ठभूमि से अन्तर्क्रिया न करते तो वे द्रव्यमान-विहीन ही बने रहते। उस स्थिति में वे ब्रह्माण्ड में प्रकाश की रफ्तार से घूमते रहते। मगर कई प्रयोगों के आधार पर हम जानते हैं कि ये कण प्रकाश की गति से नहीं चलते। तो यदि अलंकारिक रूप से कहें, तो हिग्स क्षेत्र की इस ब्रह्माण्डीय चाशनी की श्यानता उन्हें धीमा कर देती है और उन्हें इस तरह व्यवहार करने पर विवश करती है गोया उनमें कुछ प्रभावी विश्राम-द्रव्यमान है।

यह एक महत्वपूर्ण बिन्दु है और इसे दोहरा देना बेहतर होगा - स्टैण्डर्ड मॉडल में इन कणों का निहित द्रव्यमान तो शून्य है, इनका जो द्रव्यमान है वह प्रभावी द्रव्यमान है जो इन्हें हिग्स क्षेत्र के साथ अन्तर्क्रिया के फलस्वरूप मिलता है। तो इस तरह से हमें ‘द्रव्यमान के बगैर द्रव्यमान’ मिलता है। यह जुम्ला उछालते हुए भौतिक शास्त्री जॉन व्हीलर ने यह भड़काऊ तर्क दिया था कि शायद भौतिक शास्त्रियों को भौतिकी के सारे बुनियादी समीकरणों में से द्रव्यमान को हटा देना चाहिए क्योंकि यह पदार्थ का मूलभूत गुणधर्म नहीं है।
आइए अब देखते हैं कि श्री वाल्डरग्रेव की चुनौती (कहीं आप भूल तो नहीं गए) में पॉँच में से एक विजेता प्रोफेसर डेविड मिलर ने एक पन्ने पर हिग्स बोसॉन और उसके महत्व को कैसे समझाया था, और वह ऐसी भाषा में जिसे कोई राजनीतिज्ञ भी समझ सके। उनका जवाब यह था:

1. हिग्स क्रियाविधि
किसी राजनैतिक दल के कार्यकर्ताओं की एक कॉकटेल पार्टी की कल्पना कीजिए। कार्यकर्ता कमरे में एकसार ढंग से बिखरे हुए हैं, सभी अपने निकटतम पड़ोसी से बातचीत कर रहे हैं। भूतपूर्व प्रधान मंत्री का प्रवेश होता है और वे कमरे को पार करती हैं। उनके आस-पास के सारे कार्यकर्ता खिंचकर उनके इर्द-गिर्द जमा हो जाते हैं। जैसे-जैसे वे आगे बढ़ती हैं, वे उन लोगों को आकृष्ट करती हैं जो उनके करीब हैं जबकि जिन्हें वे पीछे छोड़ आई हैं वे अपनी एकसार दूरी पर लौट जाते हैं। अपने आस-पास लोगों के जमावड़े की बदौलत वे सामान्य से अधिक द्रव्यमान हासिल कर लेती हैं, अर्थात् कमरे में उसी चाल से चलने पर भी उनका संवेग ज़्यादा होता है। एक बार चल पड़ें तो उन्हें रोकना अपेक्षाकृत मुश्किल होता है, और एक बार रुक जाएँ, तो उन्हें फिर से चलायमान करना भी मुश्किल होता है क्योंकि जमावड़ा बनने की प्रक्रिया को फिर से शु डिग्री करना होता है। इसे तीन आयामों में देखें और साथ में सापेक्षता की पेचीदगियाँ हों, तो यही हिग्स क्रियाविधि है। कणों को द्रव्यमान प्रदान करने के लिए एक पृष्ठभूमि क्षेत्र का आविष्कार किया गया है। इसमें से जब भी कोई कण गुज़रता है, यह क्षेत्र स्थानीय रूप से विकृत हो जाता है। यह विकृति - अर्थात् कण के इर्द-गिर्द क्षेत्र का घनीभूत होना - कण के द्रव्यमान को जन्म देती है। यह विचार सीधे ठोस पदार्थों की भौतिकी से आता है। पूरी जगह में फैले एक क्षेत्र की बजाय ठोस में धनावेशित क्रिस्टल परमाणुओं का एक ताना-बाना (लैटिस) होता है। जब कोई इलेक्ट्रॉन इस ताने-बाने में से गुज़रता है तो परमाणु इससे आकर्षित हो जाते हैं, जिसकी वजह से इलेक्ट्रॉन का प्रभावी द्रव्यमान एक मुक्त इलेक्ट्रॉन के द्रव्यमान से 40 गुना ज़्यादा हो जाता है। निर्वात में प्रस्तावित हिग्स क्षेत्र एक तरह से एक काल्पनिक ताना-बाना है जो हमारे ब्रह्माण्ड में फैला हुआ है। हमें इसकी ज़रूरत इसलिए है क्योंकि इसके बगैर हम इस बात की व्याख्या नहीं कर सकते कि क्यों दुर्बल अन्तर्क्रियाओं के वाहक Z और W कण इतने भारी हैं जबकि विद्युत-चुम्बकीय बलों के वाहक फोटॉन द्रव्यमान-विहीन हैं।

2. हिग्स बोसॉन
अब ज़रा कल्पना कीजिए कि एकसार ढंग से बिखरे राजनैतिक कार्यकर्ताओं से भरे कमरे में एक अफवाह फैलती है। दरवाज़े के नज़दीक के लोग इसे पहले सुनते हैं और विस्तार में जानने के लिए इकट्ठा हो जाते हैं। फिर वे अपने निकट के पड़ोसियों की ओर घूमते हैं, जो खबर जानने को उत्सुक हैं। झुण्डों की एक लहर कमरे में से गुज़रती है। हो सकता है कि यह लहर सारे कोनों में फैले, या यह एक सघन कतार बना ले जिसमें कार्यकर्ता से कार्यकर्ता तक होकर यह कमरे के दूसरी ओर बैठे किसी गणमान्य व्यक्ति तक पहुँचे। चूँकि सूचना लोगों के झुण्डों द्वारा आगे ले जाई जाती है, और हमने देखा था कि झुण्ड-निर्माण से ही प्रधान मंत्री को अतिरिक्त द्रव्यमान मिला था, इसलिए अफवाह-वाहक झुण्ड में भी द्रव्यमान होता है।
हिग्स बोसॉन की भविष्यवाणी हिग्स क्षेत्र में इसी तरह के झुण्ड-निर्माण के रूप में की गई है। हमारे लिए इस क्षेत्र के वजूद पर विश्वास करना और यह मानना कि अन्य कणों को द्रव्यमान प्रदान करने की यह क्रियाविधि सच है तब ज़्यादा आसान होगा जब हम स्वयं हिग्स कण को देख लें। इस सन्दर्भ में भी ठोस अवस्था भौतिकी में कुछ रूपक हैं। क्रिस्टल लैटीस में झुण्डों की लहर पैदा होने के लिए ज़रूरी नहीं है कि उसमें से कोई इलेक्ट्रॉन गुज़रे और परमाणुओं को आकृष्ट करे। ये लहरें इस तरह व्यवहार कर सकती हैं मानो ये कण हों। इन्हें फोटॉन्स कहते हैं और ये भी बोसॉन्स ही हैं। हिग्स बोसॉन के अस्तित्व के बगैर भी यह सम्भव है कि एक हिग्स क्रियाविधि अस्तित्व में हो और पूरे ब्रह्माण्ड में हिग्स क्षेत्र व्याप्त हो। अगली पीढ़ी के कोलाइडर्स इस गुत्थी को सुलझाएँगे।

ऐसे रहस्यमय विषय को समझाने का कितना सृजनात्मक ढंग है, नहीं? यह वास्तव में ज़रूरी है कि राजनीतिज्ञों और अन्य नागरिकों को भौतिक शास्त्रियों व अन्य वैज्ञानिकों द्वारा की जा रही खोजबीन का महत्व समझाया जाए क्योंकि समय के साथ इस तरह की खोजबीन महंगी से महंगी होती गई है। एक अनुमान के मुताबिक लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर, जहाँ इस तरह की खोजबीन चल रही है, पर अब तक छह अरब डॉलर का खर्च हो चुका है।
मैं यकीन से कह सकता हूँ कि हममें से कई लोग ज़्यादा प्राथमिकता के ऐसे क्षेत्र गिना सकेंगे जहाँ इस रकम का बेहतर उपयोग किया जा सकता है। वैसे यह ध्यान में रखना मददगार होगा कि पिछली दो सदियों में अधिकांश महान खोजें कौतूहलवश किए गए अनुसन्धान से उभरी हैं, ठीक हिग्स बोसॉन की तरह। आखिर, ट्रांज़िस्टर्स का आविष्कार इसलिए तो नहीं हुआ था कि कोई कंप्यूटर्स और टेलीविज़न विकसित करना चाहता था। ट्रांज़िस्टर्स ठोस के क्वांटम सिद्धान्त में से उभरे थे।

हिग्स बोसॉन, स्टैण्डर्ड मॉडल के लिए निर्णायक महत्व रखते हैं मगर इनकी खोज अभी तक नहीं हुई है। उम्मीद की जा रही है कि निकट भविष्य में यू.एस.ए. में टेवेट्रॉन एक्सलरेटर (त्वरित्र) और युरोप में लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर इन अति-विचित्र कणों को उजागर कर देंगे। इनकी खोज से पदार्थ और द्रव्यमान को लेकर हमारी समझ ज़्यादा ठोस धरातल पर तो स्थित हो ही जाएगी, साथ ही इससे स्टैण्डर्ड मॉडल को व्यापक सैद्धान्तिक ढाँचे में विस्तार देना सम्भव होगा। इससे ऐसी कई गुत्थियों को सुलझाने में मदद मिल सकती है, जो अभी तक स्टैण्डर्ड मॉडल के हत्थे नहीं चढ़ी हैं। ऐसी गुत्थियों में डार्क मैटर (अदृश्य पदार्थ), इलेक्ट्रॉन व क्वार्क के द्रव्यमान के मान, और मूलभूत कणों का प्रेक्षित समूहीकरण वगैरह शामिल हैं। इन रहस्यों का खुलासा करके एक दिन हम हर चीज़ का एक सिद्धान्त विकसित करने के नज़दीक पहुँच पाएँगे। कई सारी अनपेक्षित व अपेक्षित खोजें व आविष्कार तो साथ में होंगे ही। आपका क्या ख्याल है, पैसा वसूल?


अजय शर्मा। - भौतिक शास्त्र व वन प्रबन्धन की पढ़ाई के बाद छह साल तक होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम से जुड़े रहे। पिछले आठ साल से अमरीका में विज्ञान शिक्षण पर शोधकार्य कर रहे हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: सुशील जोशी: एकलव्य द्वारा संचालित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान शिक्षण व लेखन में रुचि।
आभार: डॉ. अभिषेक धर, डॉ. सौमेन दत्ता, डॉ. ऊर्जित याज्ञिक और डॉ. सुशील जोशी के महत्वपूर्ण इनपुट्स की बदौलत इस आलेख की गुणवत्ता व गहनता को बेहतर करने में मदद मिली है। मैं इन सबका आभारी हूँ