माधव केलकर

आमतौर पर पदार्थ की मज़बूती और कठोरता को एक ही गुण मान लिया जाता है लेकिन ऐसा है नहीं। कठोरता क्या है, पढ़िए इस लेख में।

एतिहासिक इमारतों, दीवारों, खम्बों पर लोगों द्वारा लिखे गए अपने नाम या किए गए प्यार के इज़हार को आपने कई बार देखा होगा। अक्सर किसी नुकीली चीज़ से लिखी गई ऐसी इबारतें हम सबके लिए ऐतिहासिक इमारतों को खराब करने, विदेशी पर्यटकों के आगे देश की नाक कटने की बात बनकर रह जाती हैं।
ये सभी चिन्ताएँ स्वाभाविक हैं। लेकिन मेरे लिए इन सब के साथ एक और मुद्दा भी महत्वपूर्ण है कि लिखने वाला व्यक्ति यह कैसे तय करता है कि किस पदार्थ से लिखने पर उसका नाम लम्बे समय तक बना रहेगा। दीवार पर ग्रेफाइट पेंसिल या कोयले से भी लिखा जा सकता है और चाबी या लोहे की कील से भी। मेरा ऐसा ख्याल है कि लिखने वाला इस बात से वाकिफ है कि दीवार की सतह पेंसिल या कोयले के मुकाबले सख्त है इसलिए इनसे दीवार पर लिखने का मतलब दीवार पर काले रंग से अस्थाई लिखाई करने जैसा है। लेकिन लोहे की कील, चाबी आदि वस्तुएँ दीवार की सतह से कठोर हैं इसलिए इनसे दीवार की सतह को खरोंचकर लिखा जा सकता है। ये थोड़ा ज़्यादा स्थाई होता है।

किसी सतह को खरोंच पाने या न खरोंच पाने के इस गुण की ओर इन्सान का ध्यान पहली बार ऐतिहासिक इमारतों के सन्दर्भ में गया हो ऐसा नहीं है। यह एक सामान्य अवलोकन है कि कुछ पदार्थों की सतह को आसानी से खरोंचा जा सकता है, कुछ को थोड़ी मुश्किल से और कुछ को खरोंच पाना लगभग असम्भव है। आप भी सोच में पड़ गए होंगे कि ऐसा कौन-सा पदार्थ है जिसे किसी अन्य पदार्थ से खरोंच पाना सम्भव नहीं है। यह जानने के लिए हमें पहले थोड़ा खनिजों के इतिहास को समझना पड़ेगा; क्योंकि खरोंच पाने या न खरोंच पाने के गुण की शुरुआत यहीं से हुई थी।

मोह का कठोरता पैमाना
लगभग 300 साल पहले खनिज पदार्थों के विविध गुणों का सिलसिलेवार अध्ययन शु डिग्री हुआ। खनिजों को उनके खास गुणों के आधार पर पहचानने की कवायद शु डिग्री हुई। यदि आप किसी खनिज के भौतिक-रासायनिक गुणों से वाकिफ हैं तो दुनिया के किसी भी हिस्से में उसे इन गुणों के आधार पर पहचान सकते हैं। उस समय खनिजों की पहचान का प्रमुख आधार उनके रासायनिक गुणधर्म थे। जर्मन भू-वैज्ञानिक फेडरिख मोह (1767-1839) ने ऑस्ट्रिया की खदानों में काम करते हुए यह महसूस किया कि खनिजों की पहचान उनके भौतिक गुणों के आधार पर भी सम्भव है। खनिज पदार्थों के भौतिक गुणों का अध्ययन करते हुए मोह ने पाया कि एक खनिज द्वारा दूसरे खनिज की सतह को खरोंच सकने की क्षमता भी एक गुण हो सकता है। मोह ने देखा कि कुछ खनिज दूसरे खनिज की सतह को खरोंच पाते हैं, तो कुछ खनिज दूसरे की सतह पर एक लकीर छोड़ जाते हैं (जैसे चॉक ब्लैकबोर्ड पर छोड़ता है)। मोह ने सतह को खरोंच सकने या सतह के खरोंच के प्रति प्रतिरोध के गुण को खनिजों की कठोरता या हार्डनेस कहा।

मोह ने कई खनिजों की कठोरता का अध्ययन किया और सन् 1812 में उनकी तुलनात्मक कठोरता के आधार पर एक स्केल बनाया। इस स्केल में मोह ने 10 आसानी से उपलब्ध खनिजों को उनकी बढ़ती कठोरता के क्रम में जमाया। इस आधार पर खनिजों को 1, 2, 3... क्रमांक दिए गए। इस स्केल में सबसे मुलायम खनिज की कठोरता 1 मानी गई और सबसे कठोर खनिज की कठोरता 10 मानी गई। इस स्केल में यह बात निहित थी कि ज़्यादा कठोरता वाला खनिज उससे कम कठोरता वाले खनिजों की सतह को खरोंचेगा। उदाहरण के लिए 4 कठोरता वाला खनिज 1, 2 व 3 कठोरता वाले खनिज की सतह खरोंच पाएगा, लेकिन कठोरता 5 वाले खनिज की सतह पर अपनी लकीर (streak) ही छोड़ सकता है। यानी जैसा आप चॉक से ब्लैकबोर्ड पर लिखते हैं वैसा। इस पैमाने पर दसवें नम्बर पर मौजूद खनिज सभी खनिजों को खरोंच सकता है। शायद आप भी यह जानने के लिए उत्सुक होंगे कि मोह के स्केल के मुताबिक सबसे कठोर खनिज कौन-सा है? चलिए पहले हम मोह के स्केल पर 1 से 10 तक कौन-कौन से खनिज हैं, उनके नाम जान लेते हैं (देखिए तालिका)।
तो, जनाब, हीरा ही वह पदार्थ है जो सभी पदार्थों की सतह को खरोंच सकता है लेकिन कोई अन्य पदार्थ उसकी सतह को नहीं खरोंच सकता। वैसे सभी खनिज इस स्केल में पूर्णांक में ही हों, यह ज़रूरी नहीं है। यह भी मुमकिन है कि कोई खनिज 4 कठोरता वाले खनिज से तुलनात्मक रूप में कठोर है लेकिन 5 कठोरता वाले खनिज से कम कठोर है। तो उस खनिज की कठोरता 4 और 5 के बीच माननी पड़ेगी। इसलिए कुछ खनिज इस स्केल में 1.5, 2.5, 6.5 आदि पर भी हो सकते हैं। लेकिन मोह का स्केल इन दस खनिजों के नाम और इनके हार्डनेस नम्बर के रूप में ही प्रचलित रहा है।

कठोरता की मिनी किट
कठोरता का पैमाना तो बन गया लेकिन हर समय और हर जगह आप इन दस खनिजों को लेकर खोज यात्रा करेंगे यह सम्भव नहीं है। और यदि आप इन दस खनिजों को साथ लेकर भी चले तो बहुत सम्भव है कि जल्द ही काफी सारे खनिजों की सतह खरोंचों से भर जाए। हाँ, यह मुमकिन है कि आप कुछ अन्य समकक्ष वस्तुएँ साथ लेकर चलें जिन से कठोरता की परख हो सके। इन समकक्ष वस्तुओं को मिनी किट भी कह सकते हैं।
मोह जब खनिजों की कठोरता परख रहे थे तब उन्होंने कठोरता मापन के लिए कुछ सामान्य औज़ार (तुलनात्मक वस्तुएँ) भी सुझाए थे। मसलन नाखून, ताँबे का सिक्का, लोहे का चाकू, चीनी मिट्टी की खुरदुरी प्लेट, काँच की पट्टी आदि।

आप भी सोच रहे होंगे कि इन औज़ारों का इस्तेमाल किस तरह किया जाता होगा। फिलहाल, यह मानकर चलते हैं कि ये औज़ार भी कुछ खनिजों की सतह को खरोंचने की क्षमता रखते हैं और कुछ खनिज इन औज़ारों को खरोंच सकते हैं। आमतौर पर यह देखा गया है कि इन्सानी नाखूनों की कठोरता 2.5 तक होती है। यानी टेल्क, जिप्सम या इस जैसी कठोरता वाले खनिजों की सतह को तो इन्सानी नाखून भी खरोंच सकते हैं। लेकिन यदि कोई खनिज इससे ज़्यादा कठोर है तो नाखूनों के घिस जाने का खतरा है। अब आप ताँबे के सिक्के से उस खनिज की सतह को खरोंच कर देखिए, शायद काम बन जाए। ताँबे का सिक्का 3.5 कठोरता तक के खनिजों के लिए उपयोगी है। इससे ज़्यादा कठोर खनिज सिक्के को खरोंचेंगे। इसी तरह लोहे का चाकू या काँच की पट्टी 5.5 कठोरता तक के खनिजों के लिए काम में लाई जाती है। इसके बाद पोर्सलिन की खुरदुरी स्ट्रीक प्लेट (जैसी सामान्य सिरेमिक टाइल्स की एक सतह खुरदुरी होती है) काम आती है। स्ट्रीक प्लेट से 6.5 तक की कठोरता माप सकते हैं। क्वार्टज़ या इससे अधिक कठोरता वाले खनिज के लिए यह मिनी किट काम का नहीं है, आपको वास्तविक प्रयोगशाला की ही ज़रूरत पड़ेगी। तो इस तरह तुलना करते हुए खनिज की कठोरता कितनी है यह मालूम किया जाता है। मोह का सुझाया गया यह तरीका भूवैज्ञानिक आज भी उपयोग में लाते हैं।
चूँकि किसी भी खनिज को पहचानने के लिए अन्य भौतिक गुणों (मसलन - रूप, रंग, बनावट, आपेक्षिक घनत्व आदि) को भी देखा जाता है इसलिए सिर्फ कठोरता पर अटके रहने का कोई कारण नहीं है।

कठोरता का उपयोग कहाँ?
लेकिन कठोरता नामक इस गुण का इन्सानी ज़िन्दगी में क्या इस्तेमाल होता होगा? यदि घर से शु डिग्री करें तो खरोंचने की क्षमता का उपयोग चाकू में धार लगाने से शुरु होता है। मार्बल, ग्रेनाइट, कोटा, कड़प्पा स्टोन को घिसकर भवन निर्माण कार्यों के लिए उपयोग में लिया जाता है। इसके अलावा जेम स्टोन को आकार देने, पॉलिश करने और ज़मीन के भीतर पानी या खनिज तेल की तलाश के लिए ड्रिलिंग करने में उपयोग होता है। धरती की भीतरी संरचना को समझने के लिए किए जाने वाले गहरे बोर होल में कठोर पदार्थों की खुरेचनी (ड्रिलिंग बिट) बनाई जाती है। भारी मशीनरी उद्योग में तो ऐसे कल-पुर्ज़ों की ज़रूरत होती है जो उच्च ताप और दाब पर कम-से-कम घिसें। इसलिए ऐसी मिश्र धातुओं की खोज निरन्तर जारी रहती है जो यहाँ काम आ सकें। पिछले बीस वर्षों में नैनो टेक्नोलॉजी में भी कठोर पदार्थों की ज़रूरत महसूस की जाती रही है।

खनिज क्या है?

यूँ देखा जाए तो खनिज वह सबसे छोटी भूवैज्ञानिक इकाई है जिससे भूपर्पटी का निर्माण हुआ है। यदि परिभाषा के हिसाब से देखें तो खनिज प्रकृति में पाया जाने वाला वह अकार्बनिक ठोस पदार्थ है जिसका निश्चित रासायनिक संघटन हो।
यदि आपको थोड़ा-बहुत रसायन विज्ञान याद आ रहा हो तो लेटेराइट, बॉक्साइट, गेलेना, हेमाटाइट, मैगनेटाइट, कॉपर पायराइट, आयरन पायराइट जैसे कुछ नाम विविध सन्दर्भों में उपयोग किए होंगे। ये सभी खनिज पदार्थ हैं।

चट्टान (रॉक) खनिज से इस मामले में फर्क है कि अक्सर कोई भी चट्टान एक से ज़्यादा खनिजों से मिलकर बनी होती है। इसलिए इसकी कठोरता एक मिला-जुला रूप होती है। जैसे ग्रेनाइट को बतौर उदाहरण लें तो इसमें प्रमुख रूप से अभ्रक (कठोरता 2.5), क्वार्टज़ (कठोरता 7), फेल्सपार (कठोरता 6) पाए जाते हैं। इस चट्टान को लोहे की छेनी (कठोरता 5.5) से आसानी से खरोंचा जा सकता है। वहीं एक-दो ऐसे भी उदाहरण निकल आएँगे जहाँ पूरी चट्टान लगभग एक ही खनिज से बनी हो। जैसे चूना पत्थर का ज़्यादातर हिस्सा कैल्साइट से बना होता है।

अभी तक हमने जो चर्चा की उसमें यह तो बताया कि हीरा सबसे कठोर है लेकिन कठोरता या खरोंचने की क्षमता के जो उपयोग बताए गए हैं उनमें से एकाध में ही हीरे का इस्तेमाल होता होगा। इसकी खास वजह है, एक तो हर ऐसे काम में हीरे जितनी कठोरता की ज़रूरत नहीं होती, इससे कम कठोर पदार्थ से ही काम चल जाता है। दूसरे, ऑक्सीजन की उपस्थित में 700 डिग्री तापमान पर हीरा धीरे-धीरे ग्रेफाइट में तब्दील होने लगता है। तीसरे, उच्च ताप पर हीरा लौह-धातुओं में घुलने लगता है। चूँकि हीरा एक बेशकीमती पदार्थ है इसलिए मामला चाहे मिश्र धातुओं का हो या बोरिंग-ड्रिलिंग का - अक्सर कोशिश यही रहती है कि हीरे की जगह अन्य कठोर पदार्थ उपयोग में लाए जाएँ। ऐसे पदार्थों में टंग्सटन कार्बाइड और सिलिकॉन कार्बाइड (मोइसानाइट) का नाम तुरन्त याद आता है, जिनकी कठोरता लगभग 9.5 है।

नए पैमाने की ज़रूरत
जब तक मामला खनिजों की कठोरता का था तो मोह का स्केल और कठोरता मालूम करने की विधि उपयोगी थी क्योंकि अभी भी स्थूल (आकार) पदार्थों की ही बात हो रही थी। लेकिन जैसे-जैसे आधुनिक धातु-कर्म (मेटलर्जी) की शुरुआत हुई, मानव निर्मित विविध तरह की मिश्र धातुओं व पाउडर मय कठोर पदार्थों का उपयोग बढ़ता गया। ऐसे में मोह के स्केल की जगह दूसरे पैमानों की ज़रूरत महसूस होने लगी क्योंकि मामला स्थूल से सूक्ष्म की ओर चल पड़ा था। दूसरी प्रमुख बात है कि कठोरता सिर्फ खरोंच तक सीमित न रहकर पदार्थ की इलास्टिसिटी और प्लास्टिसिटी जैसे गुणों के साथ जोड़कर देखी जाने लगी थी। 20वीं सदी के शु डिग्री में स्वीडन के जॉन ब्रिनेल ने एक नया पैमाना पेश किया। कुछ वर्षों के बाद विकर, रॉकवेल और क्नूप जैसे पदार्थ-वैज्ञानिकों ने भी अपने पैमाने और कठोरता ज्ञात करने के तरीके विकसित किए।
मोटे तौर पर इन पैमानों में गणना मूलक जाँच पर ज़ोर दिया गया। जैसे ब्रिनेल की विधि में कठोरता नापने के लिए नमूना पदार्थ पर निश्चित व्यास की टंग्सटन कार्बाइड की गेंद को रखा जाता है और स्टैण्डर्ड वज़न से उसे 5-10 सेकण्ड तक दबाकर रखते हैं। गेंद और वज़न हटाकर पदार्थ की सतह पर पड़ने वाले पोचे (डेंट) के निशान के क्षेत्रफल और स्टैण्डर्ड वज़न के अनुपात से कठोरता का मापन किया जाता है। विकर और क्नूप की विधि में भी नमूना पदार्थ पर डायमंड पिरामिड टिप से डेंट/गड्ढे बनाकर उनके आधार पर कठोरता पता की जाती है। कठोरता पता करने के तरीकों में और पैमानों में समय-समय पर सुधार होते रहे लेकिन हीरे से अधिक कठोर पदार्थ के बारे में जानकारी न होने की वजह से हरेक स्केल में हीरा कठोरता की सबसे ऊपरी पायदान पर बना रहा।

बीसवीं सदी में कठोरता के गुण को एक नए आयाम से समझा गया। यह आयाम था कि पदार्थ की सतह का किसी खरोंच के प्रति प्रतिरोध दर्शाने का गुण पदार्थ के एटॉमिक बन्धों से सम्बन्धित है। एटॉमिक बन्ध जितने मज़बूत होंगे उनका खरोंच के प्रति प्रतिरोध भी उतना ज़्यादा होगा। इस क्षेत्र में हुए कुछ अन्य अनुसंधानों ने बताया कि परमाणु बन्ध की लम्बाई का कम या ज़्यादा होना भी एक कारक हो सकता है। इन सब कारकों को ध्यान में रखते हुए हीरा सबसे कठोर क्यों है, इसे समझने की कोशिशें हुई हैं।

हीरे से ज़्यादा कठोर कौन है?
मोह ने सबसे कठोर पदार्थ के रूप में हीरे को चिन्हित किया था। तब से लगभग दो सौ साल तक हीरा दुनिया के सबसे कठोर पदार्थ का ताज पहने हुए था, लेकिन पिछले बीस वर्षों में हीरे से कठोर पदार्थ खोजने और बनाने की कोशिशें हुई हैं। अनेक उद्योगों में लगातार ऐसे पदार्थ की ज़रूरत महसूस हो रही थी जो कठोर हो, विद्युत का सुचालक भी हो, साथ ही, उच्च ताप व दाब पर काम कर सके।
इस दौर में यह तीसरा-चौथा मौका होगा जब हीरे से कठोर पदार्थ की खोज का दावा किया गया है। सबसे नया दावा सन् 2009 में शंघाई की जिओ तांग यूनिवर्सिटी की ओर से आया है। शोधकर्ताओं का मानना है कि धरती पर पाए जाने वाले दो पदार्थ वुर्टज़ाइट बोरॉन नाइट्राइड और लोन्सडालेआइट की कठोरता हीरे से ज़्यादा है।

वुर्टज़ाइट बोरॉन नाइट्राइड और लोन्सडालेआइट, ये दोनों पदार्थ धरती पर बेहद कम मात्रा में पाए जाते हैं। लोन्सडालेआइट वहाँ पाया जाता है जहाँ ग्रेफाइट युक्त उल्का पिण्ड धरती से टकराएँ हों। इस टक्कर में उच्च ताप एवं दबाव में ग्रेफाइट षटकोणीय डायमंड में तब्दील हो जाता है। साधारणत: हीरे में परमाणु, क्युबिक (घनाकार) ढाँचा बनाते हैं, लेकिन हैक्सागोनल डायमंड में कार्बन के परमाणु ग्रेफाइट की षटकोणीय परमाणु संरचना को बरकरार रखते हैं। लोन्सडालेआइट यानी हैक्सागोनल डायमंड की कठोरता के बारे में बताया जा रहा है कि यह हीरे से 58 प्रतिशत ज़्यादा कठोर है।

रत्न पत्थर इतने चिकने क्यों?

यदि आपने गौर किया हो तो अँगुठियों में जड़े गए नीलम (कोरंडम), पुखराज (टोपाज़), एमेथीस्ट (क्वार्टज़), डायमंड आदि की सतह कई साल तक खरोंच विहीन बनी रहती है। शायद वजह भी आप समझ गए होंगे - ज़्यादातर रत्न पत्थरों की कठोरता 7 से ज़्यादा होती है इसलिए हमारे आस-पास के सामान्य पदार्थ इन्हें खरोंच नहीं पाते। शायद आप यह भी सोच रहे होंगे कि यदि हीरा सबसे कठोर है तो हीरे को किस पदार्थ से तराशते होंगे? जवाब के लिए एक कहावत याद रखिए - लोहा लोहे को काटता है। फिलहाल, इतना ही काफी होगा।

वुर्टज़ाइट बोरॉन नाइट्राइड ज्वालामुखी उद्गारों में उच्च ताप और दाब की परिस्थितयों में बनता है। इसकी संरचना भी हीरे की तरह ही है, फर्क सिर्फ यह है कि यह बोरॉन और नाइट्रोजन के परमाणुओं से मिलकर बना है। इसकी कठोरता के बारे में कयास है कि यह हीरे से 18 प्रतिशत ज़्यादा कठोर है।
अल्प मात्रा में पाए जाने वाले इन पदार्थों की कठोरता की जाँच भी एक चुनौती है। लेकिन यह भी सम्भव है कि इन पदार्थों को प्रयोगशाला में पर्याप्त मात्रा में बनाकर इनके गुणों की जाँच की जाए। ऐसा माना जा रहा है कि वुर्टज़ाइट बोरॉन नाइट्राइड ऑक्सीजन की मौजूदगी में, उच्च तापमान पर भी काम कर सकता है। इस लिहाज़ से यह हमारे लिए अत्यन्त उपयोगी हो सकता है।
देखते हैं, इस बार दावा कितना पुख्ता है और क्या वाकई हीरे से कठोर पदार्थ खोज लिया गया है?


माधव केलकर: ‘संदर्भ’ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।