लेखक:   डेनियल ग्रीनबर्ग    
अनुवाद: पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा                                                                                                                        [Hindi PDF, 202 kB]

हर साल जून के प्रारम्भ में जॉन स्कूल में अपने बच्चे के विषय में  बातचीत करने आता। जॉन कोमल स्वभाव का बुद्धिमान व्यक्ति था जो स्कूल में अध्ययनरत अपने बेटे डैन को समर्थन देता था। पर जॉन चिन्तित भी था। बस ज़रा-सा। इतना भर कि साल में एक बार स्कूल में आश्वासन के लिए आए।
उसकी बातचीत कुछ इस प्रकार चलती।

जॉन: “मैं स्कूल का दर्शन जानता हूँ, और उसे समझता हूँ। पर मुझे आपसे बात करनी है। मैं चिन्तित हूँ।”
मैं: “समस्या क्या है?” (बेशक, मैं जानता हूँ, हम दोनों ही जानते हैं। यह एक रिवाज़ भर है, क्योंकि हम हर साल वही बातें कहते हैं, पिछले पाँच सालों से लगातार।)
जॉन: “स्कूल। डैन दिन भर सिर्फ मछली पकड़ता है।”
मैं: “तो समस्या क्या है?”
जॉन: “पूरे दिन, हर दिन, पतझड़, सर्दियाँ, बसन्त। वह केवल मछली ही पकड़ता है।”
मैं उसे देखता हूँ और अगले वाक्य का इन्तज़ार करता हूँ। वह मेरा संकेत होगा।
जॉन: “मुझे चिन्ता है कि वह कुछ भी नहीं सीखेगा। वह पाएगा कि वह बड़ा हो चुका है और उसे एक भी चीज़ आती न होगी।”

इस बिन्दु पर मेरा एक छोटा-सा भाषण आता, जिसे वह सुनने आया था। “सब ठीक है,” मैं शुरुआत करता। “डैन ने बहुत कुछ सीखा है। अव्वल तो वह मच्छी पकड़ने का विशेषज्ञ हो गया है। वह मछलियों के बारे में -उनकी प्रजाति, उनके आवास, उनके आचरण, उनके जीवविज्ञान, उनकी पसन्दों और नापसन्दों के बारे में किसी भी दूसरे व्यक्ति से, जिसे मैं जानता हूँ, कम-से-कम उसकी उम्र के किसी दूसरे इन्सान से वह कहीं अधिक जानता है। हो सकता है वह एक महान मच्छीमार बने, हो सकता है आगे वह ‘सम्पूर्ण मच्छीमार’ किताब की रचना करे।”

जब मैं अपने उपदेश के इस बिन्दु पर पहुँचता, जॉन कुछ असहज हो जाता। वह नकचढ़ा नहीं था। पर उसके पुत्र की मच्छीमारी के प्रमुख विशेषज्ञ की छवि उसे अविश्वसनीय लगती थी। पर मैं विषय में गर्माता आगे बढ़ता था।
ज़्यादातर तो मैं यह कहता। “डैन ने दूसरी चीज़ें सीखी हैं। उसने किसी विषय को पकड़ना और फिर उसे न छोड़ना सीखा है। उसने, जिस सघनता से वह चाहे, अपनी वास्तविक रुचि का अनुपालन करने के लिए आज़ादी का मूल्य सीखा है और वह जहाँ भी ले जाए उसे स्वीकारना सीखा है। और उसने खुश रहना सीखा है।”

सच तो यह है कि डैन स्कूल का सबसे प्रसन्न बच्चा है। डैन हमेशा मुस्कुराता था और उसका दिल भी। हरेक छोटा और बड़ा, लड़का और लड़की, डैन को प्यार करते थे।
अब मेरी वार्ता समापन की ओर आती। “ये चीज़ें उससे कोई छीन नहीं सकता,” मैं कहता। “किसी दिन, किसी वर्ष, अगर मछली पकड़ने में उसकी रुचि जाती रहे तो वह ठीक वैसी ही चेष्टा किसी दूसरे विषय में करेगा। फिक्र न करें।”

जॉन उठता, गर्मजोशी से धन्यवाद देता और चला जाता। अगले साल तक के लिए। उसकी पत्नी डौन कभी भी उसके साथ नहीं आती। वह सडबरी वैली से खुश थी क्योंकि उसके पास ऐसा बच्चा था जो आनन्द बिखेरता था।
फिर एक साल जॉन हमारी बातचीत के लिए नहीं आया। डैन ने मछलियाँ पकड़ना बन्द कर दिया था।

पन्द्रह साल की आयु में वह कम्प्यूटरों के प्रेम में पड़ गया। सोलह साल की उम्र तक वह एक स्थानीय फर्म में सेवा-विशेषज्ञ के रूप में काम करने लगा। सत्रह के आस-पास उसने और उसके दो दोस्तों ने कम्प्यूटर बेचने और सेवा देने की अपनी सफल कम्पनी की स्थापना की। अठारह की आयु में उसने अपना स्कूली अध्ययन पूरा किया और कम्प्यूटर अध्ययन के लिए कॉलेज पढ़ाई के दौरान वह लगातार हनीवैल में एक पसन्दीदा विशेषज्ञ के रूप में काम करता रहा।
डैन ने इतने साल मछलियाँ पकड़ते-पकड़ते जो सीखा था, उसे वह कभी नहीं भूला।

कई लोगों ने मछली पकड़ने के विस्मय और सौन्दर्य पर पोथे लिखे हैं। हमने स्कूल में स्वयं इसे देखा है। बच्चों को ऐसा करना बेहद पसन्द है। यह तनाव दूर करता है और चुनौतियाँ पेश करता है। यह गतिविधि बाहर होती है - बरसात हो या सूरज चमक रहा हो। स्कूल के चक्की-ताल के किनारे खड़े आप सरसराते पेड़ों, धूसर ग्रेनाइट के भवनों और कल-कल बहती नहर के पास चक्की बाँध के नीचे खड़े होते हैं। अधिकतर बच्चे जो मछलियाँ पकड़ते हैं, इस सौन्दर्य को देखते हैं। सभी उसे महसूस करते हैं। मछली पकड़ना सामाजिक गतिविधि है। बच्चे दोस्तों के साथ मछली पकड़ते हैं, या अपने से बड़ों से सीखते हैं। हर साल हम पाँच-छह साल के बच्चों की नई पीढ़ी को इस गुर सीखने से जूझते देखते हैं।

मछली पकड़ना असामाजिक भी हो सकता है। आप चाहें तो अकेले भी हो सकते हैं। अक्सर कोई दिन भर के लिए बंसी और डोरियाँ लिए निकल पड़ता है। सिर्फ अकेले रहने, सोचने, ध्यान मग्न होने के लिए।

एक शान्त तरीके से मछली पकड़ना स्कूली जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। मैं अक्सर सोचता हूँ कि हम कितने सौभाग्यवान हैं कि हमें ऐसा परिसर मिला जिसमें ताल हो। डैन और जॉन का अनुभव मुझे स्कूल के प्रारम्भिक दिनों में हुआ। इसने मुझे स्कूल और उसका क्या अर्थ हो सकता है, के बारे में सोचने का अवसर दिया। सो, मैं इसे लेकर पूरी तरह सहज था जब मेरे सबसे छोटे बेटे ने पूरे दिन मछलियाँ पकड़ना शु डिग्री किया। यह स्मृति-विभ्रम (deja vu) ही था।
और मैं जानता था कि वह जानता है कि वह क्या कर रहा है।


डेनियल ग्रीनबर्ग: सडबरी वैली स्कूल के संस्थापक सदस्य। विद्यालय संगठन के मॉडल पर इनकी अनेक किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। कोलम्बिया विश्वविद्यालय में भौतिकशास्त्र के प्राध्यापक रहे हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा: लेखन एवं अनुवाद कार्य में मसरूफ हैं। एकलव्य के लिए कई शैक्षिक ग्रन्थों का हिन्दी में अनुवाद। जयपुर में निवास।
यह लेख, फ्री एट लास्ट, द सडबरी वैली स्कूल, से साभार।