सवाल: क्या ताप का मापन सिर्फ कंडक्शन वाले थर्मामीटर से ही होता है?

जवाब: सवाल का मुख्तसर जवाब यह है कि चालन तापमापी के अलावा अन्य किस्म के तापमापी भी होते हैं।
तापमान नापने के लिए हम किसी उपकरण की मदद लेते हैं। पहली बात तो यह है कि हम आम तौर पर तापमान नापने के लिए जिस उपकरण यानी तापमापी का उपयोग करते हैं, उसे उस वस्तु के तापमान पर लाना होता है जिसका तापमान नापा जा रहा है। तापमान को बराबर करने के लिए प्रेक्षित वस्तु और तापमापी के बीच ऊष्मा का आदान-प्रदान या स्थानान्तरण ज़रूरी होता है। चालन ऊष्मा स्थानान्तरण की एक विधि है।

हम आम तौर पर जिस तापमापी से परिचित हैं वह बुखार नापने के काम आता है। वैसे उसकी मदद से हम कई वस्तुओं का तापमान नाप सकते हैं। इसमें ऊष्मा का स्थानान्तरण चालन प्रक्रिया के ज़रिए होता है। तापमापी के बल्ब को वस्तु (जैसे जीभ) के सम्पर्क में कुछ देर के लिए रखना होता है। चालन के लिए ज़रूरी है कि तापमापी वस्तु के सम्पर्क में रहे। इसमें पदार्थों के इस गुण का लाभ उठाया जाता है कि तापमान बढ़ने पर वस्तुएँ फैलती हैं। तापमापी के अन्दर (आम तौर पर) पारा भरा होता है। जब बल्ब (या घुण्डी) को वस्तु के सम्पर्क में रखा जाता है तो पहले घुण्डी के काँच की बाहरी सतह का तापमान बाहर की वस्तु के बराबर होता है, फिर धीरे-धीरे यह ऊष्मा अन्दर की ओर बहती है और पारे को गर्म करती है। ध्यान देने वाली बात है कि ऊष्मा का यह बहाव चालन विधि से होता है। पारा गर्म होकर फैलता है और नियमित रूप से फैलता है। यानी 1 डिग्री की वृद्धि पर जितना फैलेगा, उससे दुगना 2 डिग्री की वृद्धि होने पर फैलेगा। तापमापी की नली पर एक पैमाना बना होता है जो इस तरह अंकित किया जाता है कि नली में पारे की ऊँचाई को सीधे तापमान के रूप में पढ़ सकते हैं।

सवाल यह है कि क्या तापमापी उपकरण को वस्तु के बराबर तापमान पर लाने के लिए हम किसी अन्य विधि की मदद ले सकते हैं। जैसा कि आप जानते ही हैं, ऊष्मा स्थानान्तरण की अन्य दो विधियाँ हैं -- संवहन और विकिरण।
चालन विधि की विशेषता यह है कि इसमें ऊष्मा का स्थानान्तरण कणों की टक्कर के द्वारा होता है।

संवहन में पदार्थ स्वयं गति करता है। ऐसा सिर्फ तरल (यानी द्रव व गैस) में सम्भव है। गौरतलब बात है कि इस विधि में पदार्थ आपस में घुलते-मिलते हैं। ज़ाहिर है, संवहन हमारे काम की विधि नहीं है क्योंकि हम सिर्फ ऊष्मा का स्थानान्तरण चाहते हैं, पदार्थ का नहीं। बच जाती है विकिरण विधि।

विकिरण के ज़रिए ऊष्मा स्थानान्तरण होने के लिए दो वस्तुओं का सम्पर्क में आना ज़रूरी नहीं है। सूरज से हम तक गर्मी इसी विधि से पहुँचती है। यह स्थानान्तरण किरणों के माध्यम से होता है और इसलिए इसे विकिरण कहते हैं। यह विकिरण विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के रूप में फैलता है। कोई भी वस्तु तापमान के अनुसार तरंगों का उत्सर्जन करती है। इन विद्युत-चुम्बकीय तरंगों की तरंग लम्बाई तापमान पर निर्भर करती है।

इसके आधार पर कान के अन्दर का तापमान पता करने के लिए एक उपकरण बनाया गया है। इसका आविष्कार 1964 में डॉ. थियोडोर बेनज़िंगर ने किया था। इसकी मदद से दिमाग के केंद्रीय भाग में स्थित हायपो-थेलेमस के तापमान का पता किया जाता है। इस तापमान का महत्व यह है कि हायपोथेलेमस हमारे मस्तिष्क में तापमान नियंत्रण का केन्द्र है। डॉ. बेनज़िंगर जानते थे कि हायपोथेलेमस और कान के पर्दे की रक्त वाहिनियाँ एक ही हैं। अर्थात् इन दोनों का तापमान काफी एक-जैसा होना चाहिए। अब तापमापी को कान के पर्दे के करीब ले जाना खतरे से खाली नहीं है। तो डॉ. बेनज़िंगर ने सोचा कि क्यों न कान के पर्दे से निकलने वाले विकिरण की मदद से तापमान नापा जाए।

किसी वस्तु के तापमान का अन्दाज़ा लगाने के लिए विद्युत-चुम्बकीय तरंगों का वह हिस्सा उपयोगी होता है जिसे अवरक्त या इंफ्रारेड कहते हैं और इसकी तंरग लम्बाई 700 नैनोमीटर से लेकर 1 मि.मी. तक होती है। आपके आसपास की सारी वस्तुएँ अवरक्त तरंगें छोड़ रही हैं। कौन-सी वस्तु कितनी और किस तरंग लम्बाई की अवरक्त किरणें छोड़ेगी, यह उसके तापमान पर निर्भर है। अत: किसी वस्तु से निकलने वाले अवरक्त विकिरण का विश्लेषण करके उसका तापमान बताया जा सकता है।

इसमें प्रमुख समस्या यह आती है कि उपकरण जिस विकिरण को सोख रहा है, वह ज़रूरी नहीं कि मात्र उस वस्तु से आ रहा हो। इसलिए इसकी सटीकता कम हो जाती है।


रुद्राशीष चक्रवर्ती: एकलव्य, भोपाल के प्रकाशन समूह के साथ काम करने के बाद इन दिनों स्वतंत्र रूप से शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: सुशील जोशी: एकलव्य द्वारा संचालित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान शिक्षण व लेखन में गहरी रुचि।