माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचना हमेशा से एक बड़ी उपलब्धि माना जाता है। इसके शिखर पर पहुंचने का रास्ता जितना रहस्यों से भरा है उतना ही बाधाओं से भी भरा है। गिरती हुई बर्फ, उबड़ खाबड़ रास्ते, कड़ाके की ठंड और अजीबो-गरीब ऊंचाइयां इस सफर को और चुनौतीपूर्ण बनाती हैं। अभी तक जहां लगभग 5,000 लोग सफलतापूर्वक पहाड़ की चोटी पर पहुंच चुके हैं, वहीं ऐसा अनुमान है कि 300 लोग रास्ते में ही मारे गए हैं।
पर्वतारोहियों के अनुसार अगर उनका कोई साथी ऐसे सफ़र के दौरान मर जाता है तो वे उसको पहाड़ों पर ही छोड़ देते हैं। तेज़ ठंड और बर्फबारी के चलते शव बर्फ में ढंक जाते हैं और वहीं दफन रहते हैं। लेकिन वर्तमान जलवायु परिवर्तन से शवों के आस-पास की बर्फ पिघलने से शव उजागर होने लगे हैं।
पिछले वर्ष शोधकर्ताओं के एक समूह ने एवरेस्ट की बर्फ को औसत से अधिक गर्म पाया। इसके अलावा चार साल से चल रहे एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि बर्फ पिघलने से पर्वत पर तालाबों के क्षेत्र में विस्तार भी हो रहा है। यह विस्तार न केवल हिमनदों के पिघलने से हुआ है बल्कि नेपाल में खम्बु हिमनद की गतिविधि के कारण भी हुआ है।
अधिकांश शव पहाड़ के सबसे खतरनाक क्षेत्रों में से एक, खम्बु में जमे हुए जल प्रपात वाले इलाके में पाए गए। वहां बर्फ के बड़े-बड़े खंड अचानक से ढह जाते हैं और हिमनद प्रति दिन कई फीट नीचे खिसक जाते हैं। 2014 में, इस क्षेत्र में गिरती हुई बर्फ के नीचे कुचल जाने से 16 पर्वतारोहियों की मौत हो गई थी।
पहाड़ से शवों को निकालना काफी खतरनाक काम होने के साथ कानूनी अड़चनों से भरा हुआ है। नेपाल के कानून के तहत वहां किसी भी तरह का काम करने के लिए सरकारी एजेंसियों को शामिल करना आवश्यक होता है। एक बात यह भी है कि ऐसे पर्वतारोही शायद चाहते होंगे कि यदि एवरेस्ट के रास्ते में जान चली जाए तो उनके शव को वहीं रहने दिया जाए। (स्रोत फीचर्स)