भारत डोगरा

निशस्त्रीकरण को अमन-शांति के लिए ही नहीं अपितु समग्र रूप से बेहतर विश्व बनाने के लिए भी ज़रूरी समझा गया है। किंतु हथियार निरंतर अधिक विध्वंसक रूप ले रहे हैं। महाविनाशक हथियार इतनी संख्या में मौजूद हैं कि मनुष्यों सहित अधिकांश जीवों का जीवन समाप्त कर सकते हैं।

इन महाविनाशक हथियारों को नियंत्रित करना सबसे बड़ी प्राथमिकता है, पर साथ में यह ध्यान में रखना ज़रूरी है कि अपेक्षाकृत छोटे व हल्के हथियारों से भी कोई कम क्षति नहीं होती। राष्ट्र संघ के पूर्व महानिदेशक कोफी अन्नान ने लिखा है “छोटे हथियारों से होने वाली मौतें बाकी सब तरह के हथियारों से होने वाली मौतों से ज़्यादा हैं। किसी एक वर्ष में इन छोटे हथियारों से मरने वालों की संख्या हिरोशिमा व नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों से मरने वाले लोगों से भी अधिक है। जीवन-क्षति के आधार पर ये छोटे हथियार ही महाविनाशक हैं।” छोटे हथियारों के व्यापार को नियंत्रित करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय समझौता हो चुका है। बारूदी सुरंगों व क्लस्टर बमों को प्रतिबंधित करने के प्रयास भी आगे बढ़े हैं। किंतु कई देशों के इन समझौतों से बाहर रहने या अन्य कारणों से इन प्रयासों को सीमित सफलता ही मिल सकी है।

दूसरी ओर परमाणु हथियारों को नियंत्रित करने के प्रयास पहले से और पीछे हट रहे हैं। अमेरिका और रूस के बीच पहले से मौजूद महत्वपूर्ण समझौतों का नवीनीकरण नहीं हो रहा है या उनके उल्लंघन की स्थितियां उत्पन्न हो रही हैं। अमेरिका ने एकतरफा निर्णय द्वारा छ: देशों के ईरान से हुए परमाणु हथियारों का प्रसार रोकने के समझौते को रद्द कर दिया है, जबकि इस समझौते के अन्तर्गत संतोषजनक प्रगति हो रही थी।

रोबोट या कृत्रिम बुद्धि आधारित हथियारों को विकसित करने पर रोक लगाने के लिए रोबोट विज्ञान व उद्योग के अनेक विशेषज्ञों ने एक अपील जारी है पर इसका अधिक असर नहीं हुआ है। ऐसे हथियार विकसित करने पर अमेरिका, रूस व चीन जैसी बड़ी ताकतों ने निवेश काफी बढ़ा दिया है।

रासायनिक व जैविक हथियारों पर प्रतिबंध तो बहुत पहले अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर लग चुका है, पर फिर भी चोरी-छिपे ऐसे हथियार तैयार रखने या यहां तक कि उनका वास्तविक उपयोग होने के आरोप समय-समय पर लगते रहे हैं।
अनेक देशों के बीच बढ़ते तनाव, आंतकवाद के प्रसार तथा विभिन्न स्तरों पर हिंसक प्रवृत्तियों के बढ़ने के कारण अधिक विनाशकारी हथियारों की अधिक व्यापक उपलब्धि ने विश्व में बहुत खतरनाक स्थितियां उत्पन्न कर दी हैं।

दूसरी ओर, हथियारों पर अधिक खर्च के कारण लोगों की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के संसाधन घट रहे हैं। उदाहरण के लिए, 1 टैंक की कीमत इतनी होती है कि उससे 40 लाख बच्चों के टीकाकरण का खर्च पूरा किया जा सकता है। मात्र 1 मिराज विमान की कीमत से 30 लाख बच्चों की एक वर्ष की प्राथमिक स्कूली शिक्षा की व्यवस्था की जा सकती है और एक आधुनिक पनडुब्बी व उससे जुड़े उपकरणों की कीमत से 6 करोड़ लोगों को एक वर्ष तक साफ पेयजल उपलब्ध कराया जा सकता है।

निशस्त्रीकरण के प्रयास सदा ही ज़रूरी रहे हैं पर आज इनकी ज़रूरत और भी बढ़ गई है। विभिन्न स्तरों पर निशस्त्रीकरण की मांग को पूरे विश्व में शक्तिशाली व व्यापक जन-अभियान का रूप देना चाहिए। (स्रोत फीचर्स)