राजेन्द्र दुवे

बच्चों के पास भी जानकारी का एक भंडार होता है - खास तौर पर अपने आसपास की चीजों के बारे में। एक विवादास्पद विषय पर बिना अपना मत थोपे कक्षा में सामूहिक चर्चा से निष्कर्ष निकालने का एक शिक्षक का प्रयास।

कक्षा छठवीं में छात्रों के साथ पोषण के संदर्भ में र जंतुओं और उनके भोजन पर चर्चा चल रही थीटोलियों में बंटे विद्यार्थी बहस कर रहे थे। जब किसी जंतु के भोजन को लेकर सभी विद्यार्थी सहमत हो जाते तो जंतु का नाम एवं उसका भोजन एक तालिका में शामिल कर लिया जाता। अब तक तालिका में भैंस, बिल्ली, चूहा, 'कौआ, बकरी, मुर्गी, शेर का नाम एवं भोजन शामिल किया जा चुका था। इसी दौरान टोली क्र. 2 के एक छात्र ने जंतु का नाम सर्प एवं उसका भोजन कीड़े, मकोड़े, मेंढक, दूध, बताया। छात्रों के बीच चर्चा चली और सहमति के बाद इसे तालिका में शामिल कर लिया गया। मैंने भी इस चर्चा में शामिल होते हुए सांप की प्रकृति, उसके भोजन एवं सर्प जैसे अन्य जंतुओं के भोजन संबंधी जानकारी पर बच्चों से प्रश्न पूछे।

लगभग सभी विद्यार्थी ग्रामीण परिवेश के थे और सांप के बारे में उनकी जानकारी अच्छी थी। इसलिए सभी ने चर्चा में पूरी तरह भाग लिया। टोली क्र. 3 के एक छात्र ने बताया कि उसने सर्प को कीड़े-मकोड़े पकड़ते हुए देखा है तो इसी टोली के एक और विद्यार्थी ने सर्प को मेंढक निगलते हुए देखा था। दूसरी तरफ अनेक छात्रों ने सर्प को दूध पिलाते हुए देखा था।

बहस आगे बढ़ी - सभी छात्रों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि कीड़े-मकोड़े और मेंढक को सांप का भोजन माना लेकिन कुछ छात्रों का कहना था कि उनको ऐसी जानकारी है कि सांप दूध नहीं पीता है। इस तरह सांप के भोजन पर फिर से चर्चा शुरू हो गईटोली क्र. 4 के एक छात्र ने बताया कि नागपंचमी के दिन एक बार वह अपनी मौसी के घर गया था उसी दौरान उनके घर एक सपेरा आया। मौसी ने दूध से लगभग तीन चौथाई भरी कटोरी लाकर सपेरे को दे दी। सपेरे ने सर्प का मुंह पकड़कर कटोरी में डाल दिया। कुछ देर बाद जब उसने सांप का मुंह कटोरी से बाहर निकाला तो देखा कि कटोरी में आधा दूध ही बचा था। एक दूसरे विद्यार्थी ने बताया कि हर साल नागपंचमी के दिन हमारे घर में नागदेवता का चित्र दीवार पर बनाकर उसकी पूजा की जाती है। पूजन के बाद एक मिट्टी के दिए में दूध भरकर उसे सांप की बांबी के पास रख देते हैं। नागदेवता पूरा दूध पी जाते हैं और कुछ समय बाद दिया खाली मिलता है। इसी टोली के एक छात्र ने बताया कि उसने सपेरे को सांप के मुंह में एक नली फंसाकर दूध पिलाते हुए देखा है।

इन जानकारियों से यह बात तो प्रमाणिक तौर पर सिद्ध हो रही थी कि सांप को स्वाभाविक ढंग से दूध पीते हुए किसी ने भी नहीं देखा, जबकि सर्प को कीड़े-मकोड़े आदि खाते हुए अनेक छात्रों ने देखा थासाथ ही सांप जैसा कोई अन्य ऐसा जंतु नहीं देखा जो कि दूध पीता हो। सार्थक बहस के बाद इस बात को स्वीकार किया गया कि सांप का स्वाभाविक भोजन दूध नहीं है। इसी चर्चा के दौरान एक छात्र ने बताया कि सांप की जीभ बीच से कटी होती है इसलिए वह किसी भी प्रकार का तरल पदार्थ पी ही नहीं सकता। तरल पदार्थ पीने के मामले में जीभ की ही प्रमुख भूमिका होती है। इसके कटे होने पर सारा तरल बाहर निकल जाएगा।

बहस के अंत में एक टोली के छात्र ने सुझाव दिया कि क्यों न सवालीराम को चिट्ठी लिखकर इस विषय पर जानकारी प्राप्त की जाए। छात्रों ने सवालीराम को पत्र लिखा। कुछ दिनों बाद जब जवाब आया तो उन्हें बहुत खुशी हुई। सवालीराम ने भी उनके निष्कर्षों को सही बताया था एवं यह जानकारी दी थी कि सर्प कीड़े-मकोड़े का भोजन करता है। इसी के द्वारा वह अपनी पानी की आवश्यकता को भी पूरी कर लेता है इसलिए उसे पानी पीने की ज़रूरत नहीं होती


(राजेन्द्र दुबे, शासकीय माध्यमिक शालां, घाटली, ज़िला होशंगाबाद, म. प्र.)