वर्षा पूरे ज़ोर पर थी। शाला से गांव की ओर वाला नाला तेजी से बह रहा था और नगर का रास्ता नदी रोके बैठी थी। भारत का राष्ट्रनिर्माता अपने देश की दौलत को लेकर पीडब्ल्यूडी. द्वारा खतरनाक घोषित शाला भवन में सुरक्षित बैठा था।

वर्षा रुकने के इंतजार में इतना पढ़ना हो गया था कि अब न तो वे और पढ़ना चाहते थे और न वह पढ़ाना। पत्तरे र तेज़ वर्षा की आवाज़ के कारण ऊंचा रोल-बोलकर पहले ही गला बैठ गया था। (च्चों के गीत व चुटकुलों का स्टॉक भी माप्त घोषित हो गया था। बस, अब तो बारिश थमने का इंतज़ार ही चल रहा था। बिजली की चमक व ज़ोर की गड़गड़ाहट तड़तड़ाहट के साथ एक सामूहिक सिहरन दौड़ जाती थी। भवन हिल जाता था। शिक्षक को प्रथम बार ऐसा लग रहा था कि कहीं पी.डब्ल्यूडी. वाले ही सच न हो जाएं।

उफनते नाले को साहस से पार कर एक पालक शाला में आ धमका। आते ही उसने मुख-पिस्तौल से शब्द दागे-“मास्साब, कुछ अक्कल है या नहीं, इतनी बारिश में स्कुल लगाते हो? अपने स्कूल की हालत तो देखो। यदि गिर गया तो मेरे बच्चे का क्या होगा?"

मास्साब पहले ही भरे हुए थे, बोले "आपको अपने एक बच्चे की चिन्ता है। मैं तो पांच घर छोड़ आया हूं, यदि मुझे कुछ हो गया तो उनका क्या होगा?"

पालक ने आगे कुछ नहीं कहा। गीली बीड़ी को काफी प्रयास के बाद सुलगाकर वह न टपकने वाला स्थान देखकर बैठ गया और बीड़ी के कश खींचने लगा। बच्चे को उफनते नाले के पार ले जाना अभी उसके बस का नहीं था। बीड़ी के हर कश के साथ वह सरकार को गाली देने लगा। शिक्षक के लिए भी अब समय काटना कठिन होता जा रहा था।

बिजली की चमक के साथ ही शिक्षक के मस्तिष्क में एक विचार कौंधा। उसने चिल्लाकर कहा - "बच्चो आओ हम स्कूल-स्कूल खेलें। बच्चे विस्मित! पालक चकित! पालक बोला, "बैठने की जगह नहीं है? फिर खेल की मास्साब को क्या सूझी?"

मास्साब बोले, "इस खेल का यही सही माहौल है। इसे ही स्कूल कहते हैं।" मास्साब का जोश व जोरदार आवाज़ सुनकर बच्चे अगले आदेश की प्रतीक्षा करने लगे।

“गंगाराम, तु हेडमास्टर बैठ जा उस सूखी जगह परनानूराम तुएडीआयएस. पूछ इस गधे से कि छात्रवृद्धि के आंकड़े कम क्यों हैं?" मास्साब ने आदेश जारी किए।

पालक बीच में बोल पड़ा, “मास्साब, इनकी सोई (व्यवस्था) तो कर दो, फिर छात्रवृद्धि करजो।”

मास्टर तैश में बोला, "तुम चुप रहो जी, कुछ नहीं समझते। जब हमारे डीई.ओ. साहब से उनका बड़ा साब पूछेगा तो कौन जवाब देगा? यहां कमरों या भवनों की वृद्धि नहीं छात्रवृद्धि पूछी जाती है। चुपचाप बैठकर खेल देखो।”

"हां, पूरन तू बड़ा साब, पिला दोई के दाँट। कुछ नहीं करते हो? तुम्हारा मासिक पत्रक समय पर क्यों नहीं आता? स्कालरशिप की जानकारी नहीं भेजी? मवेशी गिनने का छोटा-सा काम तुमसे नहीं हुआ? निरोध के पैकेट का बंटवारा फर्जी किया? और पैकेट दुकान पर बेच दिए? शर्म नहीं आती?"

गोपीकिशन ने उत्साही मन से खेल में भाग लेने के आशय से पूछा, "मास्साब, मैं मास्टर बनी ने पढ़ऊं?" मास्साब बोले, "बैठ जा मूर्ख। स्कूल में पढ़ाई की बात करता है। इतना भी नहीं मालूम?"

पालक ने दूसरी बीड़ी सुलगाते हुए कहा, “जब खेल खिंल इ रिया हो तो नानक्यां ने पढ़वा भी दो।”

मास्साब पुनः चिल्लाए, “तुम चुप रहो जी। कुछ समझते नहीं। विधानसभा में प्रश्न उठ गया तो हमारे मंत्रीजी क्या जवाब देंगे? ज़रूरी बातों के प्रश्न उठते हैं, पढ़ाई के नहीं। आज तक की पढ़ाई देख रहे हो। कभी किसी ने पूछा कि आठवीं पास को अपना नाम ठीक से लिखना क्यों नहीं आता? ये तो पूछा कि मास्टर गांव में क्यों नहीं रहता? ये नहीं पूछा कि मास्टर को गांव में रहने की क्या व्यवस्था है। ये किसी ने पूछा कि सबकी औलाद सुधारने का ठेका लेने वाले मास्टर की औलाद क्यों बिगड़ रही है? ये तो पूछा कि छात्रवृद्धि अभियान का लक्ष्य पूरा क्यों नहीं हुआ? पर ये नहीं पूछा कि उन आने वालों को बैठाएंगे कीं। ये तो पूछा कि छात्रों को प्रवेश हेतु मना क्यों किया? पर यह नहीं पूछा कि उन्हें पढ़ाएंगे कौन?"

रतिराम के सिर पर चूने वाले पानी ने धार का रूप ग्रहण कर लिया था। वह और उसके पास खड़े साथी पुरे भीग गए थे। कमरे में कहीं सूखी जगह नहीं थी। उसने बरामदे के एक कोने की ओर इशारा करते हुए पूछा, “मास्साब, हम वहां चले जाएं? यहां भीगा है।” मास्साब खुश होकर बोले, "हाँ, हाँ, तुम उस कोने में जाकर अपना लिंक स्कूल खोल लो। अपने साथियों को भी ले जाओ।”

पालक ने सहजता से पूछा, “मास्साब, ये लिंक स्कूल कई होंवे?"

मास्साब ने उतनी ही सहजता से समझाया, “ये आफत भगाओ, मूरख बनाओ योजना है। जब तालाब में उफान अई जाय तो नाको खोली ने पानी निकाल दे ने जिनका खेत में पानी घुसे उनके कई दे कि हम सिंचाई के लिए नहर दे रहे हैं।”

बारिश थमने का नाम ही नहीं लेती थी। नाला उफान पर था। बिजली चमक रही थी।

जर्जर पाठशाला भवन गिरने की घड़ी का इंतज़ार कर रहा था। शाला भवन में पानी भरने लगा था पर स्कूल-स्कूल खेल जारी था। फिर नई पद्धति। फिर नई योजना। पुनः पुनः प्रयोग। हर असफलता को सफलता निरूपित करने की विलक्षण प्रतिभा के साथ। बस, खेल जारी है।


(यतीश कानूननो - शिक्षक के रूप में लंबे अनुभव के बाद अब ज़िला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान, देवास में कार्यरत)