यही था न वो चित्र। अगर हम चित्र को नहीं काटते तो शायद आपको बूझने में दिक्कत नहीं आती - लेकिन हम नहीं काटते तो लोगों को  कल्पना के घोड़े दौड़ाने का यह सुनहरा मौका भी तो नहीं मिलता। एक जवाब देखिए:

चालाक भेड़िया है, देखो न उसकी आंखों में कितना लालच है। कुछ-कुछ कहानियों में पढ़ी, धूर्त लोमड़ी की कहानी-सी बात।

कुछ जवाब साधारण थे जैसे कि ये चूहा है। तो एक चिट्ठी में लिखा था कि यह नील गाय है और उसका देशी नाम एक खोज लिया गया कि राजस्थानी में इसे रोज़ कहते हैं।

बात शायद यह भी थी कि चमगादड़ आमतौर पर रात को दिखते हैं - और वो भी अधिकतर उड़ते हुए। इसलिए हम उन्हें नज़दीक से नहीं देख पाते।

अब हम कहें कि चमगादड़ कीड़े मकोड़ों को आंखों से नहीं मुंह से देखता है तो अज़ीब-सा लगेगा न। दरअसल चमगादड़ शिकार के लिए रात में बाहर निकलता है। रात में उसे ठीक से दिखाई ही नहीं देता - तो वो कैसे पकड़ता होगा शिकार को। चमगादड़ अपने मुंह से बहुत तेज़ गति की ध्वनि तरंगें निकालता उड़ता चलता है। रास्ते में उड़ रहे किसी कीड़े मकोड़े से टकराकर जैसे ही तरंगें उसके एंटिना जैसे तने कानों तक पहुंचती हैं, उसे पता चल जाता है और ये झपट्टा मारा और वो आया-शिकार कब्ज़े में।

ओ हो.........अमरूद......सीताफल........शायद तोता कुतर गया है। यही अनुमान लगाते हैं न हम पेड़ पर कोई खाया हुआ, कुतरा हुआ फल दिखता है या मिलता है। आप कहेंगे कि चमगादड़ पर बात करते हुए ये अमरूद....पर कहां आ गए। लेकिन हम सही लाइन पर हैं। हम कहें कि हो सकता है कि ये फल चमगादड़ ने खाया है तो कैसा लगेगा! दूसरे चित्र को तो देखिए - हमारे देश और एशिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला चमगादड़ फलों का बेहद शौकीन होता है। इसकी नाम बहुत तेज़ होती है। रात में हवा के साथ बहती फल की खुशबू को खट से पहचान जाता है और ये खाया फल और फिर उड़ चला। और हम अंदाज़ा लगाते हैं कि तोता...............। हां, चलते-चलते एक बात और। यह तो मालूम ही है न कि चमगादड़ स्तनपाई प्राणी है। मादा एक साल में दो से तीन बच्चों को जन्म देती है। उन्हें पालने की ज़िम्मेदारी उठाता है पूरा झुंड। तो है न मज़ेदार जानकारी।