अजय शर्मा

जमी झीलः वातावरण का तापमान जब भी 0° से. से भी नीचे पहुंच जाता है, पानी की ऊपरी परत बर्फ के रूप में जम जाती है। तापमान और गिरने यानी ठंड बढ़ने के साथ यह और मोटी होती जाती है। ऐसी ही जमी हुई एक झील पर स्केटिंग करते लोग।

चीज़ें गर्म होने पर फैलती हैं, ज़्यादा जगह घेरती हैं, आकार में बड़ी हो जाती हैं, इत्यादि; यह एक ऐसी अवधारणा है जिसे हमने बचपन से सुना, रटा और सही माना है। ठोस, तरल और गैसीय पदार्थों पर गर्मी का प्रभाव पड़ते समय यही बात समझ में आती है कि चीज़ें गर्म होने पर फैलती हैं ठंडी होने पर सुकड़ती हैं। हमारा रोज़मर्रा का अनुभव भी हमें इस संकल्पना को निर्विवाद सत्य के रूप में देखने को प्रेरित करता है।

इसलिए अगर आपको यह बताएं कि प्रकृति में एक पदार्थ ऐसा भी है जो गर्म होने पर सिकुड़ जाता है और ठंडा होने पर फैलता है तो शायद आपको लगे कि कहीं हम गप्प तो नहीं मार हरे? जी नहीं, हम संजीदा हैं। ऐसा पदार्थ वाकई मौजूद है और यही नहीं, हम सब इससे भलीभांति परिचित हैं, और यह हमारे जीवन के लिए सबसे ज़रूरी पदार्थों में से एक है। यह है पानी...! किसी भी साधार तरल पदार्थ को अगर आप गर्म करें तो वो फैलेगा। परंतु अगर आप बर्फीले पानी को गरम करें तो परिणाम कुछ उल्टा ही पाएंगे। वह सिकुडेगा। जी हां, 00 से. तापमान के पानी को अगर हम गर्म करना शुरू करें तो जब तक उसका तापमान बढ़कर 40 से. नहीं हो जाता, वह सिकुड़ेगा यानी उसका आयतन कम होता जाएगा और घनत्व ज़्यादा, है न कमाल की बात! और 40 से. के बाद? हां, इस तापमान ( 40 से.) के ऊपर पानी ज़रूर अन्य तरल पदार्थों की तरह, गर्म करने पर फैलने लगता है।

इस रोचक तथ्य को आइए इस ग्राफ द्वारा समझें। इसमें पानी की एक निश्चित मात्रा के आयतन पर तापमान की घट-बढ़ का असर दर्शाया गया है।

ग्राफ से साफ ज़ाहिर है कि पानी का घनत्व  40 से. पर अधिकतम होगा। यह निष्कर्ष सरल ज़रूर है, परंतु साधारण कदापि नहीं है। जीव जगत के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ हे पानी का यह साधारण-सा दिखने वाला गुण।

जाड़े में जैसे-जैसे ठंड बढ़ती जाएगी पानी भी ठंडा होता जाएगा। ज़ाहिर से कि सबसे पहले पानी की ऊपरी सह ही ठंडी होगी। अब अगर हम  40 से. से ऊपर के तापमान की बात करें तो साफ है कि - ठंडा पानी गरम पानी की अपेक्षा ज़्यादा भारी होगा। यानी कि ठंडे पानी की आपेक्षिक घनत्व गर्म पानी की तुलना में ज़्यादा होगा। अर्थात पानी की ऊपरी परत जो लगातार ठंडी होती जा रही है, निचली परतों से ज़्यादा भारी होगी; फलस्वरूप वह डूब कर सबसे नीचे पहुंच परत ले लेगी। तापमान के गिरते रहने से यह सिलसिला जारी रहेगा। तथा ऊपर के पानी के नीचे और नीचे के पानी के ऊपर आने का एक सिलसिला-सा बन जाएगा।

परंतु जैसी ही तापमान 40 से. पर पहुंचता है,स्थिति कुछ भिन्न हो जाती है।  40 से. पर पानी क्योंकि सबसे ज़्यादा भारी होता है, ऊपरी परत 40 से. पर पहुंचने पर नीचे तल पर बैठ जाती है। अब इस सबसे निचली परत, जो 40 से. तापमान पर है, को छोड़कर बाकी सारे पानी में परतों के नीचे-ऊपर होने का चक्र तब तक चलता रहता है जब तक कि सारे पानी का तापमान 40 से. नहीं हो जाता।

झील के सारे पानी का तापमान 40 से. होने पर यह सिलसिला थम जाता है, चाहे मौसम और ठंडा क्यों न हो जाए। क्यों? यह इसीलिए कि अगर तापमान 40 से. और नीचे गिरता है तो पानी की सबसे ऊपरी परत निचले पानी से ज़्यादा ठंडी होने के बावजूद नीचे नहीं जाती। कारण स्पष्ट है - 40 से. कम तापमान का पानी 40 से. वाले पानी की अपेक्षा हल्का होता है। यानी कि 30, 20, 10, और 00 के पानी का आपेक्षिक घनत्व 40 से. के पानी की अपेक्षा कम होता है, जितना ज़्यादा ठंडा उतना ज़्यादा हल्का। इसलिए अब ऊपर की परतें ऊपर ही तैरती रहेंगी। वातावरण का तापमान 00 से. या उससे नीचे पहुंचने पानी की ऊपरी परत 00 से. पर पहुंचकर बर्फ के रूपमें जम जाएगी और ऊपर ही तैरती रहेगी। यानी पानी ऊपर से ज़मना शुरू होगा, न कि नीचे से। अब जैसे-जैसे ठंड बढ़ेगी, यह बर्फ की परत और भी मोटी होती जाएगी। परंतु चाहे कितनी भी मोटी क्यों न हो जाए, डूबेगी नहीं क्योंकि वह नीचे की सभी परतों से हल्की ही होगी। और यही नहीं, बर्फ की परत ऊष्मा की कुचालक होने के कारण, अपने नीचे मौजूद पानी को ठंडा होने से बचाती है। नीचे दिया गया चित्र इस स्थिति को अच्छी तरह उजागर करता है।

किसी झील का पूरा पानी जब तक 40 से. नहीं पहुंच जाता, उसका कोई भी हिस्सा 40 से. से ज़्यादा ठंडा नहीं हो सकता। इसलिए बहुत गहरी झीलों और सागरों पर आमतौर पर बर्फ नहीं जमती, चाहे कितनी भी ठंड  क्यों न हो जाए। यह इसलिए कि शीत ऋतु कभी इतनी लंबी नहीं होती कि उनका सारा पानी 40 से. तक ठंडा हो सके। अब ज़रा सोचें कि - अगर पानी उतना ही साधारण होता जितना हम इसे मानते आए हैं, यानी यह विचित्र गुण न दर्शाता, तो क्या होता?

अगर सारा पानी जम जाता तो: उत्तरी कनाडा की एक जमी झील की ऊपरी परत काटकर मछली पकड़ता वहां का बाशिंदा।

40 से. पर पानी का आपेक्षिक घनत्व सबसे ज़्यादा होता है और जब तक पूरे पानी का तापमान 40 से. नहीं हो जाता, आमतौर पर पानी का तापमान और नीचे नहीं गिर सकता। इसलिए बर्फ बनने की प्रक्रिया शुरू नहीं होती। 00 से. पर जमने वाली बर्फ 40 से. तापमान के पानी से हल्की होती है।

ठंडे प्रदेशों में वातावरण का तापमान गिरता है तो पानी की ऊपरी परत इसके संपर्क में आती है और जम जाती है। चूंकि यह हल्की होती है। बर्फ ऊष्मा की कुचालक होती है इसलिए यह नीचे के पानी के लिए कवर का काम करती है और उसका तापमान और नीचे गिरने से बचाती है। इस तरह बर्फ की परत के नीचे मौजूद पानी में भी जीवन चलता रहता है, अपनी गति से।

अगर ऐसा न होता?
ठंडे इलाकों में शीत ऋतु के आते ही, झीलों (और ध्रुवीय सागरों) में ऊपरी सतह पर जमने वाली बर्फ, तैरने की बजाए डूब कर तल पर जमा हो जाती और धीरे-धीरे वहां इकठ्ठी होती रहती। कुछ समय बाद ये जलाशय पूरे के पूरे ही बर्फ से जम जाते। बस ऊपरी सतह पर थोड़ा-सा पानी रहता, सूरज की गर्मी से बर्फ पिघलने के कारण। इतने बड़े बदलाव से हम भले ही प्रभावित न हों, पर उन जलाशयों में रहने वाली मछलियों (और अन्य जीवों) की जीवन लीला ज़रूर समाप्त हो जाती। मछलियों को खुश होना चाहिए कि ऐसा नहीं है!


अजय शर्मा - एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम से संबद्धा