कैरन हैडॉक

भाषा सीखना क्या किसी विषय के सीखने से अलग नहीं रखा जाना चाहिए?
क्या पढ़ाई में कुछ ऐसा शामिल नहीं होना चाहिए जो बच्चों को स्वचिंतन की ओर प्रेरित कर सके?

सवालों के सही जवाब याद करना ही सिर्फ सीखना है? क्या बच्चों को यह सीखना जरूरी नहीं है कि सवाल के जवाब के बारे में सोचा कैसे जाए? भविष्य में वे अपने बारे में कैसे सोच पाएंगे?

हाल ही में मैं शिक्षकों के एक समूह को यह मनवाने का प्रयास कर रही थी कि कक्षा छह के इतिहास के पर्चे में कुछ ऐसे सवाल भी होने चाहिए जो उन्हें थोड़ा-सा आलोचनात्मक चिंतन की ओर प्रेरित कर सकें - दूसरे शब्दों में इसे रखें तो वे शिक्षकों द्वारा बोर्ड पर लिखे गए जवाबों को याद करने से अधिक कुछ कर सकें।

शिक्षकों का ज़ोर था कि बच्चों की अंग्रेज़ी उतनी अच्छी नहीं है कि वे खुद वाक्य बना सकें। उनका कहना था कि इस कारण से बच्चे ऐसे सवालों के जवाब नहीं दे पाएंगे जिनसे वे परिचित न हों। जिस स्कूल की मैं बात कर रही हूं वह एक अंग्रेजी माध्यम का स्कूल था जिसमें पढ़ने आने वाले बच्चे पंजाबी और हिंदी भाषी थे।

इतिहास अलग, भाषा अलग
मैंने शिक्षकों को समझाने की बहुतेरी कोशिश की - जब तक बच्चों को वाक्य बनाने के मौके नहीं दिए जाते वे कभी भी अंग्रेज़ी नहीं सीख पाएंगे। उन्हें ऐसे मौके दिए जाने चाहिए। जिसमें वे इतिहास के अलावा अंग्रेजी में भी अपनी काबिलियत दिखा सकें। किसी चीज़ को याद कर लेने से यह सिद्ध नहीं होता कि बच्चों में किसी चीज़ की समझ है, बल्कि बच्चों को यह सीखने की जरूरत है कि जानकारी का उपयोग अपनी राय बनाने या फिर किसी समस्या का रचनात्मक हल ढूंढने में कैसे किया जाता है। इस सिलसिले में मैंने कुछ सवाल तैयार किए जिनके बारे में मेरा ख्याल था कि वे आमतौर पर पूछे जाने वाले सवालों के बेहतर विकल्प होंगे। इनमें से पहले तीन सवाल थेः

1. क्या होता अगर इंसानों की भी कुछ जानवरों के समान घने बालों वाली खाल होती? इससे इतिहास कैसे बदल जाता?
2. पत्थर के युग को पत्थर का युग क्यों कहा जाता है?
3. आज भी आदिवासियों के कुछ ऐसे समूह हैं जो बिल्कुल अलग रहते हैं और बाहरी लोगों से किसी प्रकार का संपर्क नहीं रखते। वे खेती भी नहीं करते। तो वे कैसे जीते हैं? वे क्यों खेती नहीं करते इस बारे में तुम क्या सोचते हो?

जब शिक्षकों ने इन सवालों को देखा तो उन्होंने कहा कि उन्होंने इन सवालों के बारे में कभी भी बच्चों से चर्चा नहीं की है इसलिए वे इनका जवाब नहीं दे पाएंगे। लेकिन बच्चे पत्थर के युग के लोगों पर पाठ पढ़ चुके थे इसलिए मेरा विश्वास था कि पुरा-लोगों, आधुनिक समाज और इतिहास में बदलाव के बारे में उनकी जानकारी पर्याप्त होगी और वे इन सवालों का जवाब दे पाएंगे।

लेकिन मेरी शाब्दिक बहस कोई प्रभाव छोड़ पा रही हो ऐसा नहीं लग रहा था। तो थक कर मैंने कहा, “अच्छा तो यह बताओ कि आपकी राय में 6वीं क्लास में सबसे खराब विद्यार्थी कौन से हैं। मैं जाकर उनको खोजेंगी और देखेंगी कि वो जवाब दे पाते हैं। कि नहीं।'' और सबसे खराब बच्चों के नाम तो सब शिक्षकों की जुबान पर थे। उन्होंने मुझे दो नाम दिए, उनमें से एक अनुपस्थित था।

दूसरे बच्चे को मैंने कक्षा से बाहर बुलाया। ऐसा लगा कि वो घबराया हुआ था कि उसे कोई सजा मिलने वाली है, और वो यह सोचने की

कोशिश कर रहा था कि यह सज़ा किस खता की होगी।

तो मैंने उसे बताना शुरू किया कि कुछ दूसरे शिक्षकों का ख्याल है कि कक्षा छह के विद्यार्थी मेरे कुछ सवालों का जवाब नहीं दे पाएंगे लेकिन मेरा ख्याल इससे बिल्कुल उलट है और मैं इसे सिद्ध करना चाहती हूं। मैंने उस बच्चे से कहा कि मुझे पूरा विश्वास है कि तुम इन सवालों का जवाब दे सकते हो।

मैंने उसे पर्चा दिया जिस पर वे सवाल लिखे हुए थे और कहा कि सवालों को पढ़कर पीछे उनका जवाब लिख देना। वैसे अगर सच कहूं तो मुझे इस बच्चे पर उसका आधा विश्वास भी नहीं था जितना मैं दिखाने की कोशिश कर रही थी। मैं उस बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचना चाहती थी कि यदि बच्चा बिल्कुल ही अयोग्य सिद्ध होता है तो मैं शिक्षकों को कैसे अपना मुंह दिखाऊंगी।

थोड़ा झिझकने के बाद - लेकिन बिना किसी के सहयोग के - बच्चे ने जो जवाब लिखे वो यह थेः

1. यदि इंसानों की भी जानवरों के समान घने बालों वाली खाल होती तो दुनिया में कपड़े होते ही नहीं। लोग ग्रीनलैंड चले जाते जहां बर्फ ही बर्फ है। (If people have fur on their skin to day there will be no clothes in this world and they want to some places like Greenland where they have ice and ice).

2. उन्हें पत्थर का युग इसलिए कहा जाता है क्योंकि उस समय कपड़े नहीं थे और आज मिलने वाली बहुत-सी चीजें भी नहीं थीं। (These are called stone age because they have no clothes and many things which are today).

3. वे अलग-अलग इसलिए रह रहे हैं क्योंकि उन्हें भाषा के बारे में बिल्कुल भी नहीं मालूम है। वे बिना खेती किए इसलिए जिंदा हैं क्योंकि वे खाने के लिए जानवरों का शिकार करते हैं। (The are living seprately because they do not know about the languages. They live without farm ing they kill the animals to eat them).

जब मैंने इन जवाबों को पढ़ा तो चकित ही रह गई। कक्षा के सबसे खराब विद्यार्थी ने तीनों सवालों के जवाब दे दिए - जिन्हें लगभग 50 फीसदी सही माना जा सकता था। अगर मुझे नंबर देने को कहा जाता तो मैं तो इस बच्चे को 50 फीसदी से अधिक नंबर देती।

इसने तो कुछ ऐसी चीजों का जिक्र किया था जो कि मेरे दिमाग में भी नहीं आई थीं, और वे काफी रोचक और प्रेरक थीं। जैसे कि पहले सवाल के बारे में जो मैंने सोचा होता उसमें कपड़ा उद्योग की बात आती; शायद इस बारे में सोचा होता कि किस तरह फैशन समाज को प्रभावित करता है। लेकिन मैंने यह तो बिल्कुल ही नहीं सोचा होता कि घने बालों वाले लोग ग्रीनलैण्ड जैसे हिस्सों में बसने... की सोचते। मुझे यह भी काफी रोचक लगा कि बच्चे ने भाषा को एक कारक के रूप में देखा कि लोग कहां और कैसे रहेंगे। अगर आप मुझसे पूछे तो यह तो काफी विकसित सोच का स्तर माना जाएगा।

मैंने उसे बताया कि उसके जवाबों से मैं कितनी खुश हुई। उससे यह भी कहा कि मुझे मालूम था कि वो कर सकता है और उसने करके दिखा दिया। मैंने उससे पूछा कि क्या कभी किसी ने उसे इन सवालों के जवाब के बारे में बताया है। उसने कहा कि उसने तो बस अभी सोचा था। मैंने उससे पूछा कि क्या वो कक्षा के सबसे होशियार बच्चों में से एक है। उसने थोड़ा-सा शर्माते हुए जवाब दिया.. कि हां वो है। और इसके बाद वो कक्षा की ओर दौड़ पड़ा, पक्की बात है कि वो अपने बारे में पहले के मुकाबले काफी बेहतर महसूस कर रहा होगा।

यह सही था कि इस बच्चे ने व्याकरण और भाषा की दृष्टि से कई गलतियां की थीं, परन्तु अपनी बातें समझाने में उसे इनसे कोई दिक्कत नहीं आई थी। बल्कि लिखने में उसने जिस तरह भारतीय शैली का इस्तेमाल किया और ‘बर्फ और बर्फ' जैसे मुहावरों का प्रयोग किया, वो मुझे अच्छा लगा। बिल्कुल निश्चित है कि इतिहास के शिक्षक ने उसके जवाबों को लाल गोलों से भर दिया होता।

लेकिन वो लाल गोले क्या उसमें निराशा नहीं भर देते - और खासतौर से जब कि छात्र का हर पर्चा ऐसे लाले गोलों से भरा हो? यदि शिक्षिका का ध्येय है कि बच्चों को और बेहतर करने में मदद करे; और अगर ये लाल गोले मदद नहीं कर रहे, तो थोड़ी-सी हौसला अफजाई क्यों नहीं? क्यों बच्चे सिर्फ भाषा में दिक्कत की वजह से इतिहास, भूगोल, विज्ञान और गणित आदि में सज़ा पाएं?

दुर्भाग्यवश यह कहानी का अंत नहीं था। कक्षा के सबसे खराब बच्चे के जवाब जब और भी शिक्षकों ने देख लिए तो मैंने पूछा कि क्या वो अब ऐसे सवालों को परीक्षा के पर्चे में शामिल करने के बारे में सोचेंगे। उनका कहना था कि नहीं वे अभी भी नहीं मानते कि सभी बच्चे ऐसे सवालों का जवाब दे सकते हैं जिनके बारे में उन्हें पहले से नहीं पता हो। बहुत से कारण थे उनके पास - "शायद यह बच्चा कुछ हद तक सफल रहा हो पर औरों का क्या? शायद मैंने उस बच्चे की मदद की थीअगर याद करने के लिए सवाल और जवाब न दें तो पालक शिकायत करेंगे। और फिर उसके जवाब सही नहीं थे क्योंक उसे लिखना चाहिए था कि ...."

जिन शब्दों ने मुझे इतना उत्साहित किया था शायद उनका असर उन सब पर वैसा नहीं पड़ा। शायद बच्चों के काम को आंकने के हमारे पैमाने ही फर्क हैं।


कैरन हैडॉक: चंडीगढ़ के एक स्कूल में अध्यापनरता; चित्रकार; और बायोफिज़िक्स में शोधकार्य।