सतीनाथ षडंगी

अनारको ने देखा है कि ज़िन्दगी में कभी-कभी जो होना होता है वह हो ही जाता है। अब जैसे दोपहर में अम्मी के सो जाने के बाद रसोई में छुपकर इमली का अचार खाना। वह तो अनारको हर रोज़ करती थी। लेकिन कभी अम्मी को पता ही नहीं चला। सोते समय अम्मी की नाक थोड़ी बजती थी। सो हर दोपहर, दो घण्टे करीब-करीब लगातार अन्दर के कमरे में अम्मी की नाक बजती और रसोई में अनारको अचार खाकर उंगलियां चाटती होती। कई बार किंकू को भी जाकर खिला आई थी। पर देखो तो, आज अनारको को पकड़ा जाना था मो पकड़ी गई।
हुआ ये कि सब्ज़ीवाली जो हमेशा सुबह आती थी आज दोपहर में आ गई। हमेशा सामने गेट पर आया करती थी, आज पीछे से आई। दरवाज़ा खटखटाया। उससे अम्मी तो जागी नहीं, पर मल्ली बिल्ली जो ठाकुर जी के भोग का दूध पी रही थी चौंक गई। मल्ली मुहल्ले की और सब बच्चों की विल्ली थी। वह बेखटक इस घर से उम घर घूमती रहती और मौका लगते ही कहीं दूध, कहीं मछली, कहीं कुछ चाट जाती थी। बच्चों को छोड़कर मल्ली के बारे में कोई कुछ भला नहीं कहता था। सो आज सब्ज़ीवाली के खट-खटाने से मल्ली चौंक गई और लपककर रसोई की खिड़की पर आ गई। खिड़की के उस तरफ कल्लू था। कल्लू गली का और सब बच्चों का कुत्ता था। हर दोपहर पान की दुकान के पीछे सोया रहता था। पर आज वह खिड़की के बाहर सुस्ता रहा था। मल्ली से उसकी कभी दोस्ती, कभी दुश्मनी होती थी। आज दुश्मनी थी। सो कल्लू भौंकने लगा। अम्मी फिर भी नहीं जागी। सोती रही।

इस सबके दौरान अनारको रसोई में इमली के अचार की तरफ बढ़ रही थी। दो दिन पहले अम्मी ने अचार का जार ऊपर उठाकर रख दिया था। शायद उनको शक हो गया था कुछ-कुछ। सो अनारको एक पैर नल के ऊपर और दूसरा ताक के किनारे रखते हुए खूब सम्हल-सम्हल कर हाथ अचार के जार की तरफ बढ़ा ही रही थी कि एक के बाद एक, इतना कुछ हो गया। कल्लू के भौंकने पर भी अम्मी नहीं जागीं। पर ऊपर से एक कौए ने, जो किसी के घर से हड्डी का टुकड़ा लेकर भाग रहा था, कल्लू के भौंकने से हड्डी गिरा दी। हड्डी आंगन में धोने के लिए रखे बर्तनों पर जा गिरी। हड्डी गिरी गिलास पें, गिलास जाकर कढ़ाई पर गिरा, कढ़ाई पतीलों पर और पतीले करछुलों को साथ लेते हुए थालियों पर गिरे और थालियां झनझना कर आंगन में बिखर गईं। अब अम्मी जाग गईं।
अनारको रसोईघर से निकल भी नहीं पाई थी कि पकड़ी गई। फिर अम्मी ने वो डांट लगाई कि पूछो मत। अनारको चुपचाप खड़ी सुनती रही।
और जो बात उसे सबसे बुरी लगी वह थी कि अम्मी ने उसे बार-बार चोर कहा। नींद टूटने का गुस्सा सारा अनारको पर उतार दिया, “और मैं कहूं कि जार भर के अचार बनाया था, आधा रह गया।'' अम्मी ने गुस्से में कहा, “अब पता चला कि तू चोरी करती है हर रोज़।'' अनारको कह भी क्या सकती थी सो चुप रही और जब अम्मी वापस सोने चली गई तो जाकर उदास हो अपने कमरे में बैठ गई।

पर बैठने में भी चैन कहां? सो वह कोने में जाकर आइने के सामने खड़ी हो गई। पर वहां आइना तो था ही नहीं। पीछे की दीवार में मरम्मत हो रही थी सो आइने के पीछे की दीवार से। कुछ ईंटें निकाल दी थी मजदूरों ने। जहां आइना था अब वहां मुंह भर का छेद हो गया था। अनारको जब भी ज्यादा उदास होती तो इसी कोने पर आकर खड़ी हो जाती थी - आइने के सामने। मगर आज जब अनारको ने चेहरा उठाकर देखा तो उसे अपना चेहरा नहीं कोई दूसरा ही चेहरा दिखा। काला-सा चेहरा था। काला और चमकता हुआ। छोटे-छोटे बाल, लम्बीसी नाक। और आंखें ऐसी कि जैसे खूब अक्ल वाला हो। भौंहें पतलीपतली, दाढ़ी-मूंछ सफाचट।
चेहरे ने फुसफुसाकर पूछा, “तुम इतनी उदास क्यों हो?'' इस पर अनारको ने फुसफुसाकर कहा, “बताती हूं पर तुम हो कौन?'' चेहरे ने कहा, मैं चोर हूं।'' अनारको के चेहरे की उदासी थोड़ी कम हुई, उसने कहा, मैं भी चोर हूं।'' उस चेहरे ने कहा, “अरे वाह मज़ा आ गया, फिर मिलाओ हाथ।'' फिर छेद में से उसने अपना लम्बा हाथ बढ़ा दिया, काला-सा पतला हाथ। बाद में अनारको ने अपना हाथ सुंघा। फिर फुसफुसाकर पूछा, तुम्हारे हाथ से सरसों के तेल की बू क्यों आती है?" चोर ने छेद से पीछे हटते हुए कहा, “हाथ क्या मैंने सारे बदन पर सरसों का तेल लगाया हुआ है।'' अनारको ने छेद में से अब पूरे चोर को देखा। सिर्फ कच्छा पहना हुआ, पेट थोड़ा निकला हुआ, पतली-पतली टांगें। और सारा बदन तेल से चमकता हुआ। छेद के पास आकर चोर ने कहा, “इसी की वजह से लोग मुझे पकड़ भी लेते। हैं तो मैं फिसलकर निकल जाता हूं।'' अनारको ने सोचा आइडिया अच्छा है। पर उसने सोचा अम्मी उसे कच्छा पहनकर घूमने ही नहीं देंगी।

उसने चोर से कहा, "मैं रसोई घर से इमली का अचार ले रही थी कि अम्मी ने देख लिया। फिर वो डांट लगाई कि मत पूछो। कहा कि मैं चोर हूं।'' चोर ने दांत निकालकर हंसते हुए कहा, “अरे तुमने अपने घर से सामान उठाया तो तुम्हें चोर कहा और लोग मुझे चोर कहते हैं क्योंकि मैं दूसरों के घर से सामान उठाता हूं।” अनारको ने फुसफुसाकर डांटा, “हंसते हो, देखते नहीं मैं कितनी उदास हूं।'' चोर ने हंसना बंद कर दिया। फिर अनारको ने कहा, “कहने को सिर्फ यह घर मेरा है। मेरे कपड़े तक मेरे नहीं हैं। नाम के मेरे हैं पर कब कौन-सा फ्रॉक पहनना है वह अम्मी तय करती हैं। कपड़े कब गंदे और कब रानी मौसी की लड़की को देने लायक हो गए हैं ये भी अम्मी तय करती हैं। कमरा मेरा है पर अम्मी तय करती हैं। कि कहां क्या रखना है। और बिना मांगे, बिना पूछे कुछ खा लो, तो चोर कहा जाता है। चोर अंकल, मेरा तो कुछ भी नहीं है।''

चोर अंकल मुस्कुराए और बोले, “मेरे पास भी कुछ नहीं है, तभी तो मैं चोरी करता हूं। देखो, भगवान ने जब इंसान को सांस लेने के लिए हवा और पीने के लिए पानी दिया है तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि उन्होंने सबके लिए खाना नहीं भेजा होगा।' अनारको को लगा कि चोर अंकल की बातों में दम है। उसने सोचा जब भगवान सारे जानवरों, चिडियों. मछलियों यहां तक कि ज़मीन के नीचे रहने वाले कीड़ों तक के लिए खाना जुटाते हैं तो वे इंसानों के लिए भी खाना जरूर जुटाते होंगे। चोर अंकल ने पूछा, “फिर बताओ मेरे हिस्से का खाना कहां गया?
लोग कहते हैं नौकरी कर लो। पर मैं किसी की गुलामी क्यों करूं? सबसे बड़ी बात तो ये है कि मेरे हिस्से का खाना गया किधर? मुझे भूख लगे या इमली का अचार जैसा कुछ खाने का मन करे तो मैं खाऊं कहां से?''

अनारको ने सोचा यही तो मेरी परेशानी है और चोर अंकल मुझसे ही सवाल पूछ रहे हैं। पर उसने कुछ कहा नहीं। चोर अंकल कहते जा रहे थे, “असल बात यह है कि मेरे हिस्से के खाने पर औरों का कब्ज़ा है। भगवान ने तो हिसाब से भेजा पर बीच में औरों ने माल उड़ा लिया।'' अनारको ने पूछा, “किसने उड़ाया तुम्हारा माल, अंकल?'' चोर ने कहा, “अब मैं कहांकहां पता लगाऊं, किस-किस का नाम गिनाऊं। मैं तो इतना जानता हूं कि जिसके पास भी ज़रूरत से ज्यादा माल है उसने मेरे हिस्से के माल पर कब्ज़ा कर रखा है। सो मैं मालदारों से माल उड़ाता हूं।'' अनारको ने पूछा, “तुम्हें डर नहीं लगता है, पुलिस से?'' चोर ने कहा, “डर तो लगता है। खूब पीटते हैं साले, पर माल में से हिस्सा दे दो तो छोड़ भी देते हैं।'
दूर कारखाने में पांच बजे का भौंपू बजा। चोर ने कहा, “अच्छा चलता हूं। आज रात टी. वी. पर पिक्चर आएगी, माल उड़ाने के लिए अच्छा मौका है। घर के सब लोग पिक्चर देखने में मशगूल होते हैं और रसोईघर से पतीला लेकर भागो तो किसी को पता भी नहीं चलता है।'' चोर अंकल ने छेद में से हाथ अन्दर डालकर अनारको के बाल सहलाए और फिर चलते बने।

अब अनारको के बालों से सरसों के तेल की बू आ रही थी। पर अनारको की उदासी कब की जा चुकी थी। बाहर निकली तो देखा कल्लू और मल्ली की दोस्ती हो गई है और दोनों धूल पर लेट-लेटकर झूठ-मूठ की लड़ाई लड़ रहे हैं। अनारको ने सीटी मारकर दोनों को बुलाया; फिर एक तरफ मल्ली एक तरफ कल्लू और बीच में अनारको, तीनों मैदान की तरफ निकल गए। मैदान में राम और रावण की लड़ाई चल रही थी। जब से टी.वी. पर रामायण आने लगा है, ले देकर एक ही खेल रह गया है। बाजार में प्लास्टिक के तीर धनुष और गदा भी बिकने लगे हैं और सब बच्चे उनसे मारपीट करते हैं। अनारको को इस खेल में कोई मज़ा नहीं आता था। अब ये कहां की बात हुई कि राम की साइड ही हमेशा जीतेगी। पिछली बार अनारको रावण की साइड में थी और राम के साइड वालों की ऐसी पिटाई की थी उसने कि सब ‘टाइम आउट', ‘टाइम आउट' चिल्लाने लगे थे। गोलू की सबसे ज्यादा ठुकाई हुई थी सो उसने ज़ोर लगाकर कहा कि राम के साइड वालों को पीटने पर पाप चढ़ता है।

सो अनारको खेल में से निकल गई थी। उसे पाप से डर नहीं लगता, बेवकूफी से चिढ़ होती थी। उधर से किंकू की नाक पर तीर लगा था; अच्छा हुआ कि आंख पर नहीं लगा; सो वह भी खेल से निकल गया था। आज भी अनारको खेलने नहीं गई थी। असल में उसका बातें करने का मन कर रहा था सो वह किंकु को ढूंढने निकली थी। आज उसने सचमुच के चोर को देखा था, देखा ही नहीं उससे बातें की थी और हाथ भी मिलाया था। अब इतना कुछ हो जाए तो किसी को बताए। बगैर भला कैसे रहा जा सकता है। पर अनारको को मालूम है कि चोर अंकल की बात सबको नहीं बता सकती सो वह पेट भर बात लिए किंकु की तलाश कर रही थी। अनारको से पहले कल्लू ने किंकु को ढूंढ लिया। किंकू मैदान के किनारे गड्ढे के अंदर था और हवलदार अंकल के बगीचे से चुराए अमरूद खा रहा था। जमीन सुंघते-सुंघते कल्लू किंकु के पास पहुंच गया और पूंछ हिलाते हुए उसका मुह चाटने लगा। फिर अनारको भी उसके पास पहुंच गई और किंकु को सारी कहानी सुनाई, इमली के अचार से लेकर चोर अंकल के जाने तक की।

अनारको किंकु से बात करती हुई और किंकु उसकी बातों को सुनते हुए
इतना मशगूल हो गए कि कब शाम हो गई, सड़कों पर बत्तियां जल गईं, सारे बच्चे घर लौट गए, उन्हें पता ही नहीं चला। कल्लू और मल्ली दौड़ते-दौड़ते-खेलते थक चुके थे सो दोनों उनके पास बैठ गए थे। जैसे वो भी अनारको की बात सुन रहे हों। बीचबीच में किंकु कुछ सवाल पूछ बैठता। फिर दोनों उस पर बात करने लगते। अनारको की सारी कहानी खत्म भी नहीं हुई थी कि उधर नुक्कड़ की तरफ से खूब शोर होने लगा। लोग चिल्ला रहे थे, “पकड़ो-पकड़ो, चोर-चोर'', एक साथ ढेर सारे लोग दौड़ते जा रहे थे और चिल्ला रहे थे। एक साथ कुत्ते भौंकते जा रहे थे। अनारको का दिल धक-धक करने लगा। उसने कल्लू के कान में फुसफुसाकर कहा, “कल्लू भौंकना मत चुप रहना।'' कल्लू जैसे समझ गया, वह चुप रहा। तभी दौड़ते हुए पैरों की आवाज़ आई। चांदनी रात थी इसलिए दूर-दूर तक साफ दिखता था। अनारको ने देखा चोर अंकल दौड़ते हुए इधर ही आ रहे हैं।

अनारको ने ज़रा ज़ोर से फुसफुसाते हुए कहा, “चोर अंकल, चोर अंकल यहां आ जाओ, मैं हूं।'' चोर अंकल पास आए। उनके हाथ में कांसे की एक थाली थी और वह बुरी तरह हांफ रहे थे। अनारको ने कहा, “चोर अंकल, ये किंकु है, मेरा दोस्त। घबराओ नहीं, तुम यहां गड्ढे में छुप जाओ कोई तुम्हें ढूंढ नहीं पाएगा।'' इतने में उधर से कुछ लोग दौड़ते हुए आते दिखाई दिए। पलक झपकते चोर अंकल गड्ढे के अंदर चले गए। दौड़ते हुए लोगों में से बंसी हलवाई और सरदार अंकल उनकी तरफ आए। उन्होंने अनारको और किंकु को देखा तो चौंक गए। बंसी हलवाई ने कहा, “अरी मुनिया, तू यहां क्या कर रही है इतने अंधेरे में? तुझे मालूम नहीं एक चोर भागा है इसी तरफ।'' अनारको ने बिल्कुल भोली बनकर कहा, “नहीं अंकल, किंकु और मैं तो ट्यूशन पढ़कर लौट रहे हैं। और इधर तो कोई भी नहीं आया।'' तभी सरदार अंकल ने आवाज़ देकर कहा, “अरे इधर नहीं तालाब की तरफ भागा होगा।'' फिर दोनों दौड़ते हुए दूसरी ओर चले गए। लोगों की आवाजें दूर होती गईं। अनारको और किंकु ने एक साथ राहत की लम्बी सांस छोड़ी।

तब तक चोर अंकल गड्ढे से बाहर आ गए। बोले, ‘‘बाल-बाल बच गया। ये टी.वी. वाले भी मरे क्या-क्या करते हैं। पिक्चर के बदले प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम संदेश दिखा दिया। सो सबने टी. वी. बंद किया हुआ था। रसोईघर में ठीक से घुस भी नहीं पाया था कि हल्ला शुरू हो गया। फिर भी यह थाली तो मार ही ली।'' कहते हुए चोर अंकल ने कांसे की थाली जमीन पर सामने रख दी। फिर उन्होंने कच्छे की जेब में से इमली का अचार निकाला और कहा, “भागते-भागते ये इमली भी उठा लाया, लो खाओ।'' अनारको, किंकु और चोर अंकल ने इमली का अचार उंगली चाट-चाट कर खाया। मल्ली और कल्लू ने अपना हिस्सा खाया फिर सबकी अंगुलियां चाटीं।
फिर चोर अंकल ने एक तरफ अनारको का हाथ पकड़ा, दूसरी तरफ किंकू का। मल्ली अनारको के कंधे पर बैठी थी और अनारको व किंकु ने कल्लू की एक-एक टांग पकड़कर उसे दो टांगों पर खड़ा कर दिया था।
गोल घेरे में धीरे-धीरे सब लोग नाचने लगे। घेरे के बीच में कांसे की थाली पर चांद की परछाई से थाली चमक रही थी। और पांचों चोर चांदनी रात में जश्न मना रहे थे।


सतीनाथ षडंगी: भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए भोपाल में संभावना ट्रस्ट के जरिए चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध करवाते हैं। साथ ही लेखन में गहरी रुचि।
चित्रः विप्लव शशि। विप्लव बड़ौदा के एम. एस. विश्वविद्यालय से कला का अध्ययन कर रहे हैं।