प्रमोद मैथिल                                                                                                                                                     [Hindi PDF, 409 kB]

शुरू जब मैंने स्कूल में एक शिक्षक के रूप में काम करना प्रारंभ किया, तो मैंने पाया कि कुछ बच्चे गणित से जी चुराते थे। मेरे गणित के प्रति प्रेम को यह नागवार गुज़रा। मुझे लगा गणित में कितना कुछ रुचिकर है तो कुछ ऐसा करना चाहिए कि इनकी गणित में रुचि बढ़े। और आज जब मैं देखता हूं तो लगभग सारे बच्चे गणित को पसन्द करते हैं और गणित कइयों का पसंदीदा विषय बन गया है।
तो भई, न तो मैंने कोई जादू की छड़ी घुमाई और न ही कोई बहुत प्रभावशाली लेक्चर दिया। हां, पढ़ाने की विधि में थोड़ा परिवर्तन ज़रूर किया। यदि मैं शिक्षण-विधि के शब्दों में कहूं तो:
1. मैंने जानकारी और संचार के एक-तरफा प्रवाह को खत्म कर आदान-प्रदान व चर्चा को अपनाया।
2. मैंने कोशिश की कि बच्चे गणितीय अवधारणाओं को अपने परिवेश में खोजें एवं ज़्यादा व्यापकता से उन्हें समझें।
3. मैं मानता हूं कि बच्चे सहज व तार्किक ढंग से समझाई गई बातों को आसानी से पकड़ लेते हैं।

मेरी समझ से बहुत बड़े-बड़े शब्दों जैसे बाल केन्द्रित शिक्षण, शिक्षक मार्गदर्शक के रूप में, परिवेश से सीखना आदि-आदि का भी यही अर्थ है। यहां इस लेख में शिक्षा की सिर्फ बातें ही नहीं करना चाहता वरन् अपनी कक्षा का एक नमूना प्रस्तुत कर रहा हूं।
कक्षा 5 में वृत्त का परिचय है जिसमें प्रमुख चीज़ें केन्द्र, जीवा, त्रिज्या, व्यास आदि-आदि हैं। बजाय इसके कि उन्हें परिभाषाएं विस्तार से समझाई जाएं मैंने उनके साथ एक गतिविधि की।

मैं कक्षा में तार का एक टुकड़ा ले गया था। कक्षा में काफी चहलकदमी मची हुई थी। मैंने सबसे कहा कि मेरे पास तार का एक टुकड़ा है, जिसमें मैंने एक सिरे पर चॉक फंसा दिया है।
अब मैं बोर्ड पर बीच में एक बिन्दु बना रहा हूं जहां पर तार का दूसरा सिरा रखूंगा। इसे उंगली से दबाकर एक जगह रखना है। ऐसा करने पर तार का उंगली वाला सिरा फिक्स है तथा दूसरा चॉक वाला सिरा इसके चारों ओर आसानी से घूम सकता है।
अभी कक्षा में सारे बच्चे शान्त नहीं हुए थे पर धीरे-धीरे वे मेरी बात पर ध्यान देने लगे थे। इसके बाद मैंने चॉक वाले सिरे को एक तरफ पूरा खींचकर एक और बिन्दु बनाया। और फिर बच्चों से कहा कि जैसा बिन्दु मैंने बनाया वैसे हरेक बच्चा एक एक करके अपने हिस्से के दो-दो बिन्दु बनाता जाए।
यहां तक आते-आते काफी हद तक कक्षा में संवाद का माहौल बन चुका था, चहलकदमी एकदम बंद हो गई थी। ‘सर मैं’, ‘सर मैं’, ‘सर मैं’ के कारण थोड़ा बहुत शोर था। अन्यथा तो बच्चे अपने मौके का इन्तज़ार कर रहे थे।

किसी ने एकदम दूर दो बिन्दु सुझाए तो किसी ने एकदम पास-पास। पर कक्षा के सब बच्चों द्वारा बिन्दु बनाते-बनाते यह स्पष्ट वृत्त दिखने लगा था। अब मैंने पूछा कि यह क्या बना? एक साथ कई बच्चे बोले ‘वृत्त’। हालांकि मैंने सोचा था कि वे सीधे वृत्त न बोलकर कुछ और कहेंगे जैसे ‘एक मुख्य बिन्दु के चारों तरफ बराबर दूरियों पर कई बिन्दु’ पर शायद मुझे सवाल अलग तरीके से रखना चाहिए था।
पर खैर, अब मैंने उनके द्वारा बनाए बिन्दुओं में से दो आस-पास के बिन्दुओं ॠ-ए को चुना और पूछा, “क्या मैं इन दोनों बिन्दुओं के बीच एक और बिन्दु ग़्1 लगा सकता हूं?” सबने कहा, “हाँ।” मैंने फिर पूछा, “क्या मैं इस नए बिन्दु और पास के ही पुराने बिन्दु ॠ के बीच एक और बिन्दु ग़्2 लगा सकता हूं?” सबने फिर एक साथ कहा, “हाँ।”

फिर मैंने पूछा, “तो ऐसे मैं इन दो बिन्दुओं ॠ, ए के बीच कितने बिन्दु लगा सकता हूं?”
तीन चार शब्द सुनने को मिले, “कई सारे, अनन्त, अनगिनत।”
मैंने कहा, “बहुत अच्छा, तो ये है आपका वृत्त यानि किसी बिन्दु से बराबर दूरी पर चारों तरफ अनन्त बिन्दु। जो लगभग लाइन जैसे ही दिखेगें।” मैं इस क्षण के सुखद अनुभव को ज़रूर व्यक्त करना चाहूंगा कि इस चर्चा के तुरन्त बाद बच्चों की आंखों में चमक थी मानो कि उन्हें कुछ मिल गया हो। कक्षा में एकदम शान्ति थी। मुझे नहीं पता कि यह वृत्त को अलग तरह से समझने की वजह से थी या अनन्त की चर्चा की वजह से? पर मैंने इस सुखद क्षण को जिया और आगे बढ़ गया।
बच्चे भी यह सब अपनी कॉपी में बना रहे थे। तार की जगह मैंने समान लम्बाई की कोई अन्य चीज़ जैसे धागा या पेन का ढक्कन लेने को कहा था।

मैंने बच्चों से कहा कि ज़रा अपने शब्दों में वृत्त को व्यक्त करो, जो तुम्हें इस गतिविधि से लगा वह भी। अब मैंने पूछा कि इस आकृति को बनाने में कौन कौन-सी चीज़ खास महत्व की थी।
किसी ने कहा ‘बीच का बिन्दु’ तो मैंने उसे क् से दर्शा दिया। किसी ने कहा ‘तार की लम्बाई’ तो मैंने इसे ङ से दर्शा दिया। किसी ने कहा कि क् के अलावा अन्य सारे बिन्दु भी महत्वपूर्ण हैं। मैंने कहा, “अब रुक कर इन्हें नाम दे देते हैं, क् के अलावा के सारे बिन्दुओं से बनी रेखा को इस वृत्त की ‘परिधि’ कहेंगे।”

“बिन्दु क् को वृत्त का केन्द्र कहेंगे। दूरी ङ को वृत्त की त्रिज्या कहेंगे।” फिर मैंने अपनी तरफ से कहा, “वृत्त की परिधि पर तो अनन्त बिन्दु हैं तो मैं किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच भी रेखा बना सकता हूं, इसे कहूंगा ख्र्, तो ऐसी कितनी रेखाएं खींची जा सकती हैं?” बच्चों ने कुछ क्षण समय लिया और कहा, “अनन्त।” “इन्हें भी नाम दे देते हैं। इन्हें ‘जीवा’ कहेंगे।” फिर पूछा कि सबसे बड़ी जीवा कौन-सी होगी। कुछ बच्चे बोले ‘व्यास’। कुछ बोले जो सबसे दूर के बिन्दुओं से मिलेगी और कुछ बोले जो केन्द्र से होकर जाए। मैंने कहा - इसका नाम रखा गया है, ‘व्यास’। इसे मैंने क़् से दर्शाया है।

इस चर्चा के साथ-साथ मैं बोर्ड पर ये सब परिभाषाएं, जो कक्षा में उभर रही थीं, लिखता जा रहा था; परन्तु बच्चों से अनुरोध किया था कि वे बाद में लिखें।
अब मैंने बच्चों से कहा कि वे लिख सकते हैं। इतनी देर में मैंने बोर्ड पर एक तरफ 5 कॉलम बनाए और कहा कि वे भी अपनी कॉपी में बनाएं। अपने चारों तरफ देखें और खोजें ऐसे वृत्त जिनमें केन्द्र, त्रिज्या आदि दिख रहे हों। एक बच्चे ने कहा, “सर मेरी घड़ी, इसमें परिधि स्पष्ट है तथा केन्द्र भी।”
इतने में एक ने कहा, “सर, वह स्टूल जिसमें व्यास बना हुआ है।”

इन दो उदाहरणों के आते आते कक्षा का माहौल ही बदल चुका था, सब इधर-उधर सबसे जुदा वृत्त खोज रहे थे।
कुछ बच्चे पांच उदाहरण की न्यूनतम सीमा को काफी पीछे छोड़ चुके थे। अब यह मुश्किल वाला क्षण था क्योंकि भोजनावकाश की घंटी बच चुकी थी पर कोई जाने का नाम ही नहीं ले रहा था। मैंने थोड़ा ज़ोर देकर सबको खाने के लिए भेजा लेकिन मुझे अच्छा नहीं लग रहा था कि मैं उनमें पैदा हुए जोश को खत्म करने को कह रहा था। काश, मैं इसे सहेज कर अगली कक्षा के लिए रख पाता।
बच्चे भोजनावकाश पर जाते-जाते जहां कहीं वृत्त दिखता मुझे ज़रूर दिखाते। मुझे लग रहा था कि ‘जीवा’ ढूंढना काफी कठिन होगा पर मेरा सोचना गलत था।
अंत में कुछ उदाहरण बताना चाहता हूं जो बच्चों ने ढूंढे थे।


प्रमोद मैथिल: एकलव्य में 6 वर्ष काम करने के बाद अब पुणे के पास स्थित कृष्णमूर्ति फाउण्डेशन के सहयाद्रि स्कूल में कक्षा 4, 5, 6 के विद्यार्थियों को गणित व विज्ञान पढ़ा रहे हैं।
चित्रांकन: विवेक वर्मा: शौकिया चित्रकार, भोपाल में रहते हैं।