पारुल सोनी

आकार में छोटे, कोमल शरीर वाले और रसीले होने के कारण मेंढक बड़ी संख्या में शिकार होते हैं, पर ध्यान देने वाली बात यह है कि इसके बावजूद ये बड़ी तादाद में जीवित बचे रहते हैं। इसकी एक वजह तो यह है कि कई मेंढक कुछ इस तरह की हरी और भूरी रंगत लिए होते हैं कि पत्तियों और सरकण्डों के वातावरण में वे खुद को आसानी से छिपाए रख पाते हैं और उन्हें तब तक पहचाना नहीं जा सकता जब तक वे स्वयं हरकत न करें। इसलिए उष्ण-कटिबन्धीय इलाकों के बहुत-से मेंढकों का इस कदर रंग-बिरंगा होना तब तक विचित्र-सा ही लगता रहा है जब तक हमने यह नहीं खोज लिया कि ये ज़हरीले भी हैं। वास्तव में, मेंढक के ये रंग इस बात की सूचना होते हैं कि वे अत्यधिक ज़हरीले हैं, ताकि शिकारी जन्तु उन्हें तुरन्त पहचान लें और उन पर हमला करने से डरें।

चित्र में दिखाए गए डेनड्रोबेट्स वंश के ये मेंढक उष्णकटिबन्धीय अमेरिका में पाए जाने वाले ज्ञात 68 ज़हरीले मेंढकों की प्रजातियों में से एक हैं। ये मेंढक दिन में सक्रिय रहने वाले और प्राकृतिक रूप से आकर्षक होते हैं। इन मेंढकों की त्वचा में पाई जाने वाली कुछ ग्रन्थियों में ज़हर होता है जिसे वे दुश्मन के सम्पर्क में आते ही उसके खून में छोड़ देते हैं। खून के ज़रिए यह ज़हर दुश्मन की पेशी-तंत्रिका को बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर देता है।

चूँकि इनमें से ज़्यादातर मेंढक घने वर्षा वनों में पाए जाते हैं इसलिए इनके बारे में बहुत कम खोजबीन हो पाई है। मध्य और दक्षिण अमेरिका की विभिन्न जनजातियाँ इन मेंढकों के बारे में काफी मालुमात रखती हैं। वे इन जीवों के घातक ज़हर से भली-भाँति परिचित होते हैं और खुद को सुरक्षित रखते हुए इनकी त्वचा में पाए जाने वाले ज़हर को निकालने में सक्षम होते हैं।

ये लोग इस ज़हर का इस्तेमाल अपने अस्त्र-शस्त्र को ज़हरीला बनाने के लिए भी करते हैं। एक मेंढक से निकला हुआ ज़हर 30 से 50 हथियारों को ज़हरीला बनाने के लिए पर्याप्त होता है। इस प्रकार के ज़हर से बुझा हुआ तीर कुछ ही मिनटों में हिरण को निष्क्रिय कर सकता है।


संकलन: पारुल सोनी: ‘संदर्भ’ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।
‘लाइफ - साउथ अमेरिका’ पुस्तक में दी गई जानकारी पर आधारित।