जे.बी.एस. हाल्डेन
अनुवाद: भरत त्रिपाठी

श्री मान लीकी सनकी किस्म के जादूगर हैं। वे अपनी अजीबोगरीब हरकतों के लिए प्रसिद्ध हैं, जो लोगों को हँसाती हैं, उन्हें चकित करती हैं, पर उन्हें डरा भी सकती हैं। एक बार वे अपने घर में फैंसी ड्रैस दावत का आयोजन करते हैं, और तब शुरु होता है जादुई घटनाओं का एक सिलसिला........

हमारे विश्व-भ्रमण से लौटने के बाद मैंने श्रीमान लीकी को तीन महीनों तक नहीं देखा। उनके पास टेलीफोन तो है नहीं, इसलिए फोन पर भी बात न हो सकी। मैं दो बार उनसे मिलने गया। पहली बार मुझे उनके दरवाज़े पर एक तख्ती टंगी मिली जिस पर लिखा था:
“नोआह गोटूबेड
पैरों के नकली नाखून बनाने वाले। केवल थोक बिक्री के लिए।”
मुझे लगा कि यह सिर्फ मज़ाक था ताकि लोग दूर रहें, क्योंकि कोई व्यक्ति पैरों के लिए पाँच या दस नकली नाखून तो ले सकता है, अगर उसके असली नाखून भूमिगत रेल में लोगों द्वारा पैर रखे जाने से कुचला गए हों, पर कोई भी सौ सेट नकली नाखून नहीं लेना चाहेगा। इसके अलावा दरवाज़े पर एक सूचना लगी थी जिस में लिखा था, “बुधवार से सप्ताह भर के लिए बाहर हैं,” पर कोई लैटर बॉक्स नहीं था। जब मैं अगली बार गया तो जिस जगह दरवाज़ा होना चाहिए था वहाँ सिर्फ ईंट की दीवार थी। इसके बाद मैंने वहाँ जाना छोड़ दिया।
मार्च का अन्त था। एक शाम सोने से पहले मैंने अपने स्नान टब में बैठकर गर्म पानी चालू कर दिया था। पर उस वक्त मैं चकित रह गया जब नल में से एक गोल्डफिश मछली निकली, क्योंकि आदमी को सुखद लगने वाले गर्म पानी में आम गोल्डफिश मर जाती है। मैं तब और भी चकित हुआ जब मैंने देखा कि वह पनामा टोपी पहने हुए थी, क्योंकि मुझे समझ नहीं आया कि वह टोपी उसके सिर पर जमी कैसे हुई थी। लेकिन तब तो मैं अपने स्नान टब से लगभग कूद ही पड़ा जब उसने अपना सिर पानी के बाहर निकाला, अपनी टोपी उतारी, और बात करने लगी। उसने अपने दाहिने पंख के दो काँटों के बीच में टोपी को फंसाकर उसे उतारा था, और वह काफी धीमी-सी चिंचियाती आवाज़ में बोल रही थी।

“नमस्कार,” वह बोली। “मैं श्रीमान लीकी की तरफ से आयी हूँ, और मेरे पास आपके लिए एक सन्देश है। क्या आप शनिवार के एक सप्ताह बाद दोपहर लगभग चार बजे उनके साथ चाय पीने के लिए आ सकते हैं? वे एक दावत दे रहे हैं, और उसमें आप जब तक चाहें शामिल रह सकते हैं। यह फैंसी ड्रैस दावत होगी, पर पोशाक वे खुद उपलब्ध करवाएँगे। उन्हें उम्मीद है कि आप आ पाएँगे क्योंकि यह बहुत खास दावत होगी।”
“ज़रा एक मिनिट ठहरो,” मैंने कहा, “मैं अपनी जादू वाली डायरी ले आऊँ। पर क्या तुम आराम से हो? क्या तुम्हें इस गर्म पानी और उसमें घुले साबुन से तकलीफ नहीं हो रही? यदि तुम चाहो तो मैं इस बेसिन में थोड़ा ठण्डा पानी भर सकता हूँ।”
“धन्यवाद, पर इसकी ज़रूरत नहीं,” उसने उत्तर दिया, “मैं यहाँ बिलकुल आराम से हूँ, और मुझे गर्मी तथा साबुन की आदत है। देखिए, मैं कोई साधारण गोल्डफिश नहीं हूँ। मैं न्यूज़ीलैण्ड में गर्म पानी के सोते में रहती हूँ, जहाँ का पानी इस टब के पानी से कहीं अधिक गर्म होता है, और अक्सर उसमें साबुन भी घुला होता है, क्योंकि लोग उसमें साबुन की बट्टियाँ फेंकते हैं ताकि उसमें से भाप और गर्म पानी की धार निकले। इसलिए मैं बिलकुल ठीक हूँ।”

मैंने अपनी डायरी देखी और उससे कहा कि वह श्रीमान लीकी को बहुत-बहुत धन्यवाद देकर उन्हें बता दे कि मुझे आने में बेहद खुशी होगी। उसने मुझसे फिर से गर्म पानी चालू करने के लिए कहा, और जब मैंने ऐसा किया तो वह कूदकर वापस नल में ऐसे घुस गई जैसे कि किसी जलप्रपात में ऊपर की ओर जाती हुई साल्मन मछली हो, और गायब हो गई।
अगले हफ्ते के शनिवार को लगभग चार बजने में दो मिनिट पर मैं श्रीमान लीकी के फ्लैैट पर पहुँचा। सीढ़ियों पर मुझे काफी बेढंगे कपड़े पहने हुए एक लड़का मिला और हम साथ ही भीतर गए, क्योंकि इस बार वहाँ दरवाज़ा सही-सलामत मिला। श्रीमान लीकी ने हमारी अगवानी की; वे असली जादूगरों की सी पोशाक में थे। वे एक विशाल नुकीला टोप पहने थे जिस पर रहस्यमयी संकेत तथा पंचकोणी तारे बने हुए थे, और उन्होंने एक लम्बा लहराता हुआ लबादा ओढ़ा हुआ था। उन्होंने लड़के से मेरा परिचय कराते हुए बताया कि उसका नाम श्री जॉन रॉबिन्सन है। मुझे यह अच्छा लगा। मैं मानता हूँ कि किसी लड़के का परिचय कराते समय उसे जॉनी रॉबिन्सन या मास्टर रॉबिन्सन कहना निहायत अभद्र तरीका है। मुझे लगता है कि अगर लड़के समझदारी से पेश आएँ तो हमें उनके साथ विनम्रता से पेश आना चाहिए जैसे कि वे बड़े हो गए हों।

“ये भौतिक विज्ञानी श्री डॉब्स हैं,” आगे बढ़कर एक नाटे-मोटे आदमी से मुझे मिलाते हुए वे बोले। इस आदमी का चेहरा लाल था और सिर पर बिलकुल बाल नहीं थे जबकि ठोड़ी पर बहुत बाल थे। “कम-से-कम पहले तो ये भौतिक विज्ञानी थे, पर अब इनके पास कोई काम नहीं है। ये सीमा से अधिक सामान के साथ यात्रा करने के कारण प्रतिवर्ष रेलवे से 3000 पाउण्ड की कमाई करते थे।”
“क्षमा कीजिए, मैं समझा नहीं।”
“सीमा से अधिक सामान। आम लोगों को अपने ऐसे सामान के लिए पैसा चुकाना पड़ता है, पर रेलवे को इनके सामान को ले जाने का पैसा देना पड़ता था क्योंकि उसका वज़न शून्य से भी कम होता था, जैसे कि कोई गुब्बारा। श्री डॉब्स के पास कुछ खास बैग थे। वे स्टेशन पर इनको वज़न नापने की मशीन पर रखकर एक बटन दबाते जिससे भीतर एक छोटी चिंगारी जैसा कुछ निकलता और बैग में हाइड्रोजन भर जाती तथा वह किसी गुब्बारे की तरह ऊपर खिंचने लगता।”
“पर वह हवा में क्यों नहीं उड़ जाता था?”
“आह, यहीं पर तो श्री डॉब्स की चतुराई थी। चिंगारी जैसी चीज़ से निकलने वाली गैस एक विद्युतीय चुम्बक को सक्रिय कर देती थी जिससे वज़न की मशीन का तल ऊपर खिंच जाता था। सो, उसके शून्य से नीचे चले गए काँटे को वापस शून्य पर लाने के लिए उन लोगों को बाटों का एक पूरा ढेर मशीन पर रखना पड़ता था। देखिए, यदि आपके बैग का वज़न जितना वह होना चाहिए उससे सौ बाट ज़्यादा है तो आपको रेलवे कम्पनी को उसका पैसा देना पड़ेगा, पर यदि उसका वज़न शून्य से भी सौ बाट कम है, तो उलटा वे आपको पैसा देंगे। वृहत उत्तरी स्कॉटलैण्ड रेलवे, जो एबरडीन तक जाया करती थी, श्री डॉब्स को पैसा नहीं दे रही थी, इसलिए उन्होंने उसके खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया, और अन्त में लॉर्ड सभा ने पाया कि श्री डॉब्स सही थे, तथा रेलवे कम्पनी को उन्हें 4 पाउण्ड साढ़े 9 पेंस और वकीलों पर हुए खर्चे के लिए 95,000 पाउण्ड देने पड़े। वे सालों तक इस तरह पैसा कमाते रहे, जब तक कि उन्हें रोकने के लिए संसद का विशेष अधिनियम पारित नहीं कर दिया गया। इसलिए अब उनके पास कोई काम नहीं है, पर उन्होंने सिनेमा से पैसा बनाने का नया तरीका खोज लिया है। मुझे लगता है कि उन्हें जादूगर होना चाहिए था।”

“ये महादेवदूत राफेल हैं। जो चीज़ें हम करने जा रहे हैं यदि उन्हें देखकर मेरे मेहमानों में से कोई भयभीत हो गया तो उसके लिए ये यहाँ मौजूद हैं। महादेवदूत के यहाँ होने से लोगों को लगेगा कि सब ठीक है। मैंने उन्हें आने की तकलीफ नहीं दी होती, पर एक महादेवदूत एक ही समय में जितनी भी जगहों पर चाहे वहाँ हो सकता है, अत: मैं उनके काम या उनके खेल में दखल नहीं दे रहा हूँ। इसी वक्त वे बगदाद, टोपेका, स्पलिट, व्हिफलेट, सेमीपैलाटिन्स्क, सॉटेविल और मूज़ जॉ में विधवाओं और अनाथों की मदद कर रहे हैं। इसके अलावा वे इनऐक्सेसीबल द्वीप पर शैतानों की एक टीम के खिलाफ विकेट कीपिंग कर रहे हैं, और ब्राज़ील के किसी जंगल में ऑर्किड भी इकट्ठा कर रहे हैं।”

“मुझे आपसे मिलकर बहुत गर्व हो रहा है,” मैंने कहा। “ऐसी कोई बात नहीं,” राफेल ने जवाब दिया। “श्रीमान लीकी ज़्यादा ही विनम्र हो रहे हैं; उनकी दावतों में शामिल होने में हमेशा ही खुशी होती है। इसके अलावा मुझे यह भी अच्छा लगता है कि यहाँ मैं असली महादेवदूत की तरह आ पाता हूँ, और मुझे अपने परों को दावत की पोशाक वाले लम्बे कोट में समेट कर नहीं रखना पड़ता, जो एक मुसीबत है अगर आपके पर पंखों से बने हों, जैसे कि मेरे हैं, न कि चमड़े के हों, जैसे यहाँ अब्दुल मक्कार के हैं। अलबत्ता मैं अपने पर उसके साथ नहीं बदलूँगा।”
कई और मेहमान आ गए। वहाँ तीन अन्य लड़के थे, चार लड़कियाँ थीं, चीनी दिखने वाला पीले रंग का ऊनी चोगा पहने एक आदमी था जो छत में से आया था, एक जमादारिन थी, बड़े सलीके से कपड़े पहने एक महिला थी जो छुट्टी मना रही एक सिनेतारिका निकली, एक शैतान था जो फर्श में से निकल कर आया था, और एच.एम.एस. फ्यूरीयस से आया वर्दी पहने एक नाविक भी था। शैतान ने भूरे रंग का टोप और दोहरे ब्रैस्ट का कोट पहना था, जैसे कि वह सज-सँवर कर एस्कॉट जाता हुआ कोई भद्र पुरुष हो। पर मुझे दिख रहा था कि वह शैतान है क्योंकि उसके सिर पर सींग थे, जो उसके द्वारा टोप हटाए जाने के बाद दिखाई देने लगे। यदि शैतान अपने सींग छुपाना चाहे तो उन्हें हमेशा लम्बा टोप पहने रहना पड़ता है। उसकी पूँछ उसकी चौखानेदार पतलून में बने एक छेद में से निकली हुई थी। शैतान और महादेवदूत एक-दूसरे की ओर बहुत तने हुए से झुके, पर उन्होंने हाथ नहीं मिलाए, और शैतान की पूँछ का सिरा बिल्ली की पूँछ की तरह हिलता रहा। मुझे लगता है कि उसे महादेवदूत के साथ कुछ दुष्टता करने में मज़ा आता, पर श्रीमान लीकी के सामने विनम्रता दिखाने के लिए उसने ऐसा नहीं किया। मैंने ध्यान दिया कि लोगों के आते जाने के साथ ही कमरा धीरे-धीरे बड़ा होता गया। दो दीवारें दूर खिसकती गईं, और सुनहरे गमले में लगे हुए कुछ अजीब-से दिखने वाले एक पेड़ की शाखाओं के सिरों पर कुर्सियाँ उगने लगीं और पकने पर वे गिर गईं। इस कुर्सी वाले पेड़ के अलावा वहाँ एक चॉकलेट का पेड़ और एक टॉफी का पेड़ भी था, जो किसी भी पास जाने वाले की ओर मिठाइयों वाली डालियाँ बढ़ा देते थे।

“ठीक है,” श्रीमान लीकी बोले, “मुझे लगता है कि अब हम सब यहाँ आ चुके हैं। अब हर व्यक्ति तय कर ले कि वह पार्टी में क्या बनना चाहता है। आप जो चाहें बन सकते हैं, बस उसका आकार सन्तुलित होना चाहिए। मेरा मतलब है कि कोई अगर माउण्ट एवरेस्ट बनना चाहता हो तो बेशक बने, बस उसे छ: फीट से ज़्यादा ऊँचा नहीं होना चाहिए, अन्यथा वह बाकी सब को आसानी से कुचल सकता है। और यदि कोई पिस्सू बनना चाहता है तो वह पिस्सू कम-से-कम एक भेड़ जितना बड़ा होना चाहिए, नहीं तो वह कुचला जा सकता है या खो सकता है, और वह दस फीट से ज़्यादा नहीं कूद पाएगा, अन्यथा उसे छत से टकराकर चोट लग सकती है।”
“श्रीमान, कृपया, क्या मैं हाथी बन सकता हूँ?” जॉन रॉबिन्सन ने पूछा। “यह तो आसान है,” श्रीमान लीकी बोले, और उन्होंने बस अपनी छड़ी घुमाकर उसे एक छोटे हाथी में बदल दिया जो टट्टू जितना बड़ा था, पर उसके पैर ज़रूर ज़्यादा मोटे थे। वह बड़े उत्साह से सभी से हाथ मिलाते हुए और अपनी सूण्ड से फल उठाते हुए कमरे में चारों ओर घूमने लगा। फिर उस फिल्म अभिनेत्री ने काफी बनावटी-सी हँसी के साथ कहा कि वह तितली बनना चाहेगी। वह गलत थी, क्योंकि आपको कोई अन्दाज़ा नहीं है कि एल्बाट्रॉस पक्षी जितनी बड़ी हो जाने पर एक तितली कितनी कुरूप लगती है। उसके पर निश्चित ही सुन्दर रंग के थे, लेकिन उनके ऊपर काफी भद्दे चकत्ते बने हुए थे। उसके सिर के दोनों तरफ विशाल घूरती हुई आँखें थीं, और उसकी थूथनी ऐसी लग रही थी जैसे ट्रेन के दो डिब्बों को जोड़ने वाली वह नली जिसके भीतर निर्वात होता है। और उसके छ: पतले तथा कड़े काले पैर थे जिनके छोरों पर हुक थे।
छोटी लड़कियों में से एक, जो चश्मा पहने हुए थी, ऐसी लगती थी जैसे वह अपनी पढ़ाई पर कुछ ज़्यादा ही मेहनत करती हो, और उसने विलियम शेक्सपियर बनना चाहा। तो वह बन गई और दोपहर के बाकी समय सिर्फ अतुकान्त छन्द ही बोलती रही, केवल एक-दो बार को छोड़कर जब उसने तुकान्त कविता कही। एक अन्य लड़की, जो काफी मोटी थी, एक विशाल कछुआ बन गई। श्री डॉब्स एक सामान्य विंश-फलक बना दिए गए, जो पूरी तरह त्रिकोणों से ढके एक स्फटिक जैसी चीज़ होती है। वे कुछ बेढंगे तरीके से लुढ़कने लगे। जमादारिन एक काफी छोटे-से सुनहरे मुकुट वाली राजकुमारी बन गई; उसने सफेद फर का रोएँदार चोगा भी पहना हुआ था जो उसे ज़रा-सी देर में ही बहुत गर्म लगने लगा।

अन्य लड़कों में से एक रोल्सरॉयस बन गया, पर ज़ाहिर है वह अपने सामान्य बड़े आकार की नहीं थी। चॉकलेट के पेड़ ने अपनी एक शाखा पर एक छोटा-सा पैट्रोल पम्प उगा लिया और गाड़ी की टंकी भर दी, फिर वह गाड़ी कमरे में तेज़ी से भागने लगी; पर उसके पास विशेष जादुई आघात-रोधक थे ताकि वह किसी को भी टक्कर न मारे। एक छोटी लड़की परी बन गई, कुछ भावुक किस्म की। वह तारों से भरी सफेद पोशाक पहने हुए थी, और उसके मधुमक्खी जैसे छोटे-छोटे पर भी थे। एक अन्य लड़का पंखों वाला टोप पहने, बड़ी-बड़ी सफेद मूँछों वाला मेजर जनरल बन गया। उसके सीने पर तमगों की कतारें थीं और उसने नखों वाले जूते पहने हुए थे जो कालीन में फँस गए और वह बोल पड़ा, “भगवान की कसम, श्रीमान।”
तिब्बती आदमी को याक बना दिया गया, क्योंकि उसने कहा था कि वह अपने देश की कुछ बहुत अच्छी याकों के बारे में जानता है। आखिरी छोटी लड़की को लड़का बना दिया गया। मुझे लगा कि उसे बहुत साधारण प्रकार का लड़का बनाया गया, पर वह इसी में काफी खुश प्रतीत हुई। नाविक एक सफेद रंग का बुल-टैरियर कुत्ता बना, पर इससे पहले उसे वादा करना पड़ा कि वह हममें से किसी को काटेगा नहीं।
मैं सोच नहीं पा रहा था कि मैं क्या बनूँ, क्योंकि मुझे लगा कि वहाँ पहले से ही काफी सारे लोग और जानवर थे, और मैं मशीन भी नहीं बनना चाहता था। अत: मैंने पुच्छल तारा बनने की इच्छा ज़ाहिर की। अलबत्ता मैं छोटा-सा ही पुच्छल तारा था, लगभग छ: फीट लम्बा, बल्कि मुझे लगता है कि मैं आज तक का सबसे छोटा पुच्छल तारा रहा होऊँगा, क्योंकि अधिकांश पुच्छल तारे धरती से बड़े होते हैं, और कुछ तो लाखों मील लम्बे होते हैं।

पुच्छल तारा होना बड़ा अटपटा लगता है। जब मैं पुच्छल तारा बना तो जो पहली चीज़ मैंने महसूस की वह यह थी कि भीतर एक प्रकार का गुंजन चल रहा था, जो उतने पूरे समय चलता रहा जब तक मैं पुच्छल तारा रहा। फिर मैं हवा में तैरने लगा, और मैंने पाया कि मैं एक लैम्प के चक्कर लगा रहा था। कभी-कभी मैं उसके काफी करीब पहुँच जाता, फिर बहुत दूर चला जाता, पर मैंने हमेशा अपना सिर लैम्प की ओर रखा। फिर कुछ समय बाद मैंने अपनी इच्छानुसार जिधर चाहे उधर उड़ना सीख लिया, और लगभग दस मिनिट बाद मैं तितली के साथ हवा में नाच रहा था, हालाँकि मुझे लगा कि वह महादेवदूत के साथ नाचना चाहती थी। आखिर महादेवदूत के पास आपको थामने के लिए हाथ होते हैं, जबकि पुच्छल तारे के पास नहीं होते। इसलिए मैं तितली के इर्द-गिर्द सिर्फ घूमता भर रहा, बजाय एक असली जोड़ीदार बनने के। मैंने परी के साथ भी कुछ नृत्य किए, पर उसे इधर-उधर फुदकना और पेड़ों की फुनगियों पर एक पैर से खड़े होना ज़्यादा पसन्द आ रहा था।
जैसे ही मैंने अपनी इच्छानुसार उड़ना सीख लिया, मैंने अपना समय यह देखने में बिताया कि दूसरे लोग क्या कर रहे थे, खासकर तब जब राफेल तितली के साथ नाच रहा था।

उस समय तक दो अन्य लड़कों को भी रूपान्तरित कर दिया गया था। एक को बहुत बढ़िया केंकड़ा बना दिया गया। टटोलने वाले पंजों को छोड़कर वह लगभग छ: फीट लम्बा था, और उसके पंजे देखकर मैंने इसका बड़ा आभार माना कि मैं हवा में था। पर उसने उन पंजों से किसी को नुकसान नहीं पहुँचाया। शेक्सपियर और राजकुमारी ने उसकी और कछुए की सवारी की। दूसरे लड़के ने कहा कि वह भूत बनना चाहता है। मुझे सुनाई दिया कि श्रीमान लीकी उसे समझाने की कोशिश कर रहे थे कि वह कुछ और बन जाए। “देखो,” वे बोले, “तुम शायद वैसे भी बहुत लम्बे समय तक के लिए भूत बनोगे, भले ही तुम चाहो या न चाहो, जबकि यदि आज तुम कुछ और नहीं बनना चाहोगे तो शायद तुम्हें फिर कभी गोर्गोंज़ोला पनीर, या वैक्यूम क्लीनर, या जॉर्ज रॉबी, या एक अपूर्णोक्ति, वह जो भी हो, बनने का मौका न मिले।” पर लड़के ने कहा कि वह भूत ही बनना चाहता है, अत: श्रीमान लीकी ने उससे कहा कि वे उसे भूत बना देंगे, पर उसे वादा करना होगा कि वह खिड़की के पास नहीं जाएगा, क्योंकि अगर सड़क से गुज़रते किसी भी व्यक्ति ने खिड़की में भूत देख लिया तो वह सोचेगा कि किसी की हत्या हो गई है, और पुलिस को बुलाएगा।

मैं उसे भूत बनते नहीं देख सका, क्योंकि उस वक्त मैं टॉफी के पेड़ की शाखाओं में काफी उलझ-सा गया था। पर जैसे ही वह भूत में तब्दील हुआ वहाँ काफी बवाल मच गया। शैतान ने उसे पकड़ना चाहा क्योंकि उसके अनुसार भूत बने लड़के ने अपना होमवर्क नहीं किया था, पर राफेल ने कहा कि इसका कोई मतलब नहीं क्योंकि वह हमेशा अपनी माँ से बहुत अच्छा बर्ताव करता था, और पिछले हफ्ते ही उसने एक अन्धे आदमी को सड़क पार करने में मदद की थी, और एक कुत्ते को बचाया था जो कोयले के गड्ढे में गिर गया था।
किसी तरह श्रीमान लीकी ने उन दोनों को मना लिया कि उस दोपहर उनकी अपने काम-काज से छुट्टी थी, और फिर भूत ने बहुत मज़ा किया। उसने बुल-टैरियर को डराने की कोशिश की जिससे बुल-टैरियर नाराज़ हो गया और उसके आर-पार कूद गया। फिर भूत ने विलियम शेक्सपियर को डराने की कोशिश की, जो बोले:
“तुम भी डेनमार्क के राजकुमार के पिता जैसे हो,
उस कवि को डरा रहे हो जिसने उसका किरदार निभाया था”
इसके बाद उसने रोल्सरॉयस चलाने की कोशिश की। हालाँकि वह कार के दरवाज़े में से अपना सिर और आधा शरीर अन्दर करने में सफल हो गया, पर उसमें बहुत कम जगह होने के कारण उसके पैरों के लिए वहाँ कोई स्थान नहीं था। मुझे लगता है कि यदि भूत का निचला आधा हिस्सा ही दिखाई दे तो वह बड़ा हास्यास्पद लगता है, और मैं बता दूँ कि आप की सोच के विपरीत ऐसा अक्सर होता है।
जब मैं न्यू कॉलेज, ऑॅक्सफोर्ड में स्नातक की पढ़ाई कर रहा था, तब वहाँ एक भूत हुआ करता था जो राजा चार्ल्स प्रथम के ज़माने से ही कॉलेज के दूसरे माले पर चहलकदमी करता रहता था। लगभग पचास साल पहले कॉलेज के कुछ हिस्से का पुनर्निमाण कराया गया, और पहले माले पर स्थित कमरों को काफी ऊँचा कर दिया गया। पर उस भूत ने उसी तल पर चलना जारी रखा जहाँ पुराने माले का फर्श हुआ करता था, और अब पहले माले के कमरों में रहने वाले लोग उसके जूतों को नई छत में से घुसते हुए देखा करते थे। और वे विशाल लम्बे जूते थे। एक व्यक्ति, जिसे मैं बहुत अच्छी तरह जानता था, ने बताया कि जूतों के तले साफ-साफ देखे जा सकते थे, और उनमें से एक को मरम्मत की ज़रूरत थी। बेशक मुझे नहीं मालूम कि भूतिया जूते कितनी जल्दी घिस जाते हैं, पर इसमें अचम्भित होने की बात भी नहीं है क्योंकि वह लगभग तीन सदियों से उन्हें पहनकर घूम रहा था, भले ही हाल के ज़माने में वह केवल एक भुतहा फर्श पर ही चल रहा था।

खैर, जल्दी ही लोग श्रीमान लीकी की दावत के इस भूत के आदी हो गए, और मुझे कहना पड़ेगा कि हालाँकि उसके आर-पार दिखाई देना बेशक अनोखा था, पर वह इतना चौंकाने वाला नहीं था जितना कि शेर के आकार के केंकड़े को देखना।
इसके थोड़ी देर बाद श्रीमान लीकी बोले कि चाय का समय हो गया है, और वे उस व्यक्ति का रूप बदल देंगे जिसे लगता हो कि वह चाय नहीं पी सकेगा। श्रीमान डॉब्स और मैंने रूपान्तरित होने की माँग की, क्योंकि न तो विंश-फलक का मुँह होता है और न ही पुच्छल तारे का। भूत ने कहा कि वह खाने-पीने की कोशिश करेगा, पर श्रीमान लीकी ने मना कर दिया क्योंकि उनका मानना था कि चाय और चबाए हुए केक को उसके भीतर जाते देखना दूसरों को अच्छा नहीं लगेगा। केंकड़ा भी कोशिश करना चाहता था। उसने कहा कि उसे भरोसा है कि वह अपने पंजों से प्याले को पकड़ सकता है। श्रीमान लीकी बोले कि यह तो ठीक है, पर वह ऐसे मुँह के साथ चाय नहीं पी सकता जो ऊपर से नीचे खुलने की बजाय आजू-बाजू खुलता हो।

अत: श्री डॉब्स वापस आदमी बन गए, क्योंकि जो अगली चीज़ वे बनना चाहते थे उसका भी मुँह नहीं था। भूत, जो थोड़ा चिढ़ गया था, ने दमकल बनाए जाने की ख्वाहिश की, क्योंकि उसे लगा कि इस तरह वह बड़ी जल्दी चाय पी सकेगा। पर श्रीमान लीकी ने उसे इस प्रकार का दमकल बनाया जो पानी की फुहार छोड़ने की बजाय जलते तेल पर झाग फेंकता है, इसलिए उसने अन्तत: बाकी सब की तुलना में बहुत अधिक चाय नहीं पी।
मैं टूकन पक्षी बन गया। शुरू-शु डिग्री में अपनी चोंच को सन्तुलित करना ज़रा मुश्किल होता है, और दावत के अन्त तक भी मैंने पाया कि जब भी मैं अचानक सिर उठाता था तो मेरी पूँछ भी अपने आप तन जाती थी। पर मुझे उड़ना काफी आसान लगा। मैं उड़कर चॉकलेट के पेड़ पर पहुँच गया और मैंने केंकड़े को एक उड़ता हुआ जन्तु बनते देखा। श्रीमान लीकी ने हमें उन्हें इतने आसान काम देने के लिए धन्यवाद दिया। “देखिए, लोगों को जानवरों में बदलना लगभग प्राकृतिक काम ही है। हमारे पूर्वज कुछ लाख साल पहले ही जानवर हुआ करते थे, और मैं समझता हूँ कि हमारे वंशज भी जानवर ही होंगे, और वो भी काफी दुष्ट किस्म के, यदि मनुष्य जाति ने अपना आचरण नहीं सुधारा। लोगों को जानवरों में तब्दील कर देना सबसे पुराने और सबसे आसान जादुओं में से एक है।
“ठीक है, अब जबकि आप सब रूपान्तरित हो चुके हैं, आइए चलकर चाय पी लें।”

कमरे के दूसरे छोर वाली दीवार में अचानक विचित्र-सी तब्दीली आने लगी। उस पर फूलों की तस्वीरों वाला कागज़ चढ़ा हुआ था; वे फूल असली फूलों में बदल गए और फर्श पर बिखर गए। हम उनके ऊपर से उड़कर, उन पर चलकर, रेंगकर या फिर उन पर गाड़ियाँ चलाकर एक खूबसूरत मेज़ के पास पहुँचे और उसके इर्द-गिर्द बैठ गए। मेज़ पर और उसके आस-पास अजीब-अजीब दिखने वाली चीज़ें रखी हुई थीं। कुछ मेहमानों के लिए वहाँ कुर्सियाँ थीं। मेरे बैठने के लिए बढ़िया डाली थी जिस पर मेरे पंखों से मेल खाते रत्न लगे हुए थे। करीब एक गज़ चौड़े एक विशाल फूल पर तितली बैठी हुई थी, हाथी चार छोटे पीपों पर खड़ा था जैसा कि वे सर्कसों में करते हैं। कछुए को चाय पर आने में देरी हो गई होती अगर उसने रोल्स को न पकड़ा होता। उसे पिआनो-स्टूल की तरह की सपाट ऊपरी सतह वाली एक चीज़ पर रखकर मेज़ की ऊँचाई तक पहुँचाया गया।

सबके पास चाय का प्याला था, पर वहाँ कोई केतलियाँ नहीं थीं। तथापि, जब हमने अपने सामने बने बटन दबाए तो मेज़ पर बने छेदों में से चाय और दूध के फव्वारे फूट पड़े और हमारे प्याले उनसे भर गए। मैंने पाया कि मैं एक पैर से अपनी डाली को पकड़े रह सकता था और दूसरे से प्याला उठा सकता था, पर मेरी चोंच पीने के लिए बहुत ठीक नहीं थी, सो मैंने यह बेहतर समझा कि चोंच को पूरी तरह खोल दिया जाए और चाय-दूध के फव्वारे सीधे उसमें समा जाएँ, और फव्वारों ने ऐसा ही किया, बिना एक भी बून्द गिराए।

दमकल के लिए चाय चूसना काफी आसान रहा, और उसने बड़े सुन्दर बुलबुले छोड़ने शु डिग्री कर दिए, पर रोल्स रॉयस के लिए काम ज़्यादा मेहनत वाला था। वह अपनी चाय से नहीं चूकना चाहता था, और उसके लिए वह मेज़ के पास आया, पर किसी को यह समझ नहीं आया कि चाय उसकी पैट्रोल टंकी में डालनी है या रेडियेटर में, और श्रीमान लीकी भी उन्हें कुछ नहीं बता सके क्योंकि उन्होंने कहा कि वे मशीनरी के बारे में कुछ नहीं जानते थे। विलियम शेक्सपियर बोले:
“गिरगिट हवा पर और कीड़े धरती पर पलते हैं;
इस जादूई कार को भारतीय पत्ती पर फलना-फूलना चाहिए।”
और उन्होंने सुझाव दिया कि चाय पैट्रोल टंकी में ही डालनी चाहिए। पर श्री डॉब्स बोले कि उनका मानना था कि चाय सिलोन से आई है और वह कारब्यूरेटर को अवरुद्ध कर देगी, और हेमलेट ने जो भी कहा हो उसके बावजूद गिरगिट असल में तो मक्खियाँ खाते हैं। अत: उन लोगों ने कार के रेडियेटर का ढक्कन खोला और उसमें चाय उँडेल दी। जब बाद में उसे बात करने के लिए मुँह वापस मिला तो वह बोला कि चाय का स्वाद बहुत बढ़िया था।

चाय के अलावा हमने सभी प्रकार के बढ़िया केक और सैंडविच भी खाए। मैंने शुरुआत कैविआर के साथ की, जो आप जानते हैं कि स्टर्जियन मछली से प्राप्त होता है। यह इतना अच्छा होता है कि इंग्लैण्ड में जो कोई स्टर्जियन पकड़ता है उसे वह राजा को देनी पड़ती है। अत: स्टर्जियन को शाही मछली कहा जाता है, और उनके समूह को स्टर्जियनों का शाही मण्डल कहते हैं, कम-से-कम श्रीमान लीकी ने तो मुझे यही बताया। उन्होंने कहा कि वह कैविआर उस सुबह कैस्पीअन सागर में तैर रहा था और अब्दुल मक्कार ने उसे वहाँ रहने वाले एक जिन्न से प्राप्त किया था जो साम्यवादी था, और वह कैविआर को जादुई कालीन पर लाया था।

मैं आपको केक, आइसक्रीम और फलों के बारे में नहीं बताऊँगा, क्योंकि अगर मैं बताऊँ कि मुझे ये सब कितने बढ़िया लगे तो आपको लगेगा कि मैं पेटू हूँ। स्वभावत: टूकन पक्षियों को लगभग वही चीज़ें पसन्द होती हैं जो आदमियों को होती हैं -- चिड़ियाघर में रहने वाले टूकनों को चॉकलेट और अंगूर बहुत पसन्द हैं। बुल-टैरियर को कच्चे गोमांस का कतला और गूदे वाली बहुत बढ़िया हड्डी मिली। रोल्स को चाय के अलावा बहुत महँगे किस्म का थोड़ा पैट्रोल भी दिया गया जो सामान्यत: हवाई जहाज़ों में काम आता है। हाथी ने बाकी सब की तरह ही केक खाया। याक ने भी वही खाया, जिससे मुझे थोड़ी हैरानी हुई। कछुए को एक खास प्रकार का पौधा दिया गया जो कुछ-कुछ पत्ता गोभी की तरह था, और उसे बड़ी दूर से -- गैलापेगोस द्वीपों से -- लाया गया था, जहाँ इस तरह के कछुए रहते हैं। तितली ने करीब-करीब हाथी की सूण्ड जितनी मोटी अपनी थूथनी से शहद चूसा। और शैतान ने माचिस की छ: डिबियाँ एक बड़ा चम्मच पिसी हुई गोल मिर्च के साथ चबा डालीं और फिर उसे आधा पिण्ट धुआँ छोड़ते सलफ्यूरिक अम्ल के साथ गटक लिया।

चाय के बाद श्री डॉब्स ने सीज़ियम का परमाणु बनना चाहा, क्योंकि वह सबसे मोटे प्रकार का परमाणु होता है, हालाँकि वह होता तो इतना छोटा ही है कि दिखाई नहीं देता। पर यह परमाणु खासा बड़ा था, लगभग चार फीट विस्तार वाला। वह काफी गोल था, और उसके मध्य भाग के आस-पास बहुत-से छोटे-छोटे टुकड़े भनभना रहे थे। वे इतनी तेज़ी से भनभना रहे थे कि उनको कभी भी ठीक तरह से नहीं देखा जा सकता था। उनमें एक टुकड़ा ऐसा था जो कभी-कभी बाहर निकल आता था और वह एक या दो बार कमरे में इधर-से-उधर उछला। श्री डॉब्स ने कहा कि परमाणुओं के उत्तेजित हो जाने पर ऐसा होता है। परन्तु वह टुकड़ा हमेशा लौटकर उनके पास आ जाता था, और उसके वापस आने पर उनमें से चमक के साथ सुन्दर रोशनी निकलती थी। फिर हमने म्यूज़िकल चेयर खेलना शु डिग्री किया। याक, कछुआ, हाथी, कार और दमकल कुर्सियाँ थे, और श्रीमान लीकी ने केवल हवा में बैठकर ही पाँच और कुर्सियाँ बना दीं। ऐसा प्रतीत होता था कि वे किसी भी चीज़ पर नहीं बैठे हैं, और यह लगता था कि उन्हें बहुत बुरा झटका लगेगा, पर जब वे उठते थे तो उस जगह एक कुर्सी होती थी।

वे आखिरी कुर्सी पर बैठे रहे, और एक अदृश्य पिआनो पर एक धुन बजाते रहे। यह एक मज़ेदार खेल था, क्योंकि पाँच कुर्सियाँ खुद भी खेल रही थीं और इधर-से-उधर हो रही थीं। अधिकांश लोग जादुई कुर्सियों के आस-पास ही ठहरकर उन पर बैठने की कोशिश कर रहे थे, पर जैसे ही धुन बन्द हुई उनमें से एक कुर्सी गायब हो गई, और राजकुमारी तथा बुल-टैरियर, जो दोनों ही उस पर बैठने का इन्तज़ार कर रहे थे, याक की ओर तेज़ी से भागे। बुल-टैरियर याक पर कूदा, पर उसके दूसरी तरफ जा गिरा। खैर, फिर वह कार पर बैठ गया, और सीज़ियम परमाणु बने श्री डॉब्स को खेल से बाहर होना पड़ा। अगले दौर में श्री शेक्सपियर खड़े रह गए, और उससे अगले दौर में मेजर जनरल, जो काफी मोटे थे। इसके बाद वहाँ एक बड़ा बखेड़ा खड़ा हो गया क्योंकि वह छोटी लड़की, जिसे लड़का बना दिया गया था, बोली कि यह उचित नहीं था कि परी, तितली, टूकन पक्षी और महादेवदूत को उड़ने दिया जाए। अत: हम ज़मीन पर ही बने रहने को राज़ी हो गए, बशर्ते हमें कूदने के लिए अपने पंखों का इस्तेमाल करने दिया जाए। पर अगले दौर में मैं बाहर हो गया क्योंकि मेरी पूँछ परी की स्कर्ट में फंस गई, जो बहुत झालरदार थी। तो इस तरह खेल चलता रहा और आखिर में केवल शैतान, कुत्ता और लड़का बचे जो हाथी और दमकल कुर्सियों के लिए लड़ रहे थे।

तभी अचानक दरवाज़ा खुला, और आग की लपटें छोड़ता हुआ तथा खुशी से कीकें मारता हुआ पौंपी ड्रैगन तेज़ी से अन्दर आया। वैसे तो वह बहुत छोटा ड्रैगन ही था, पर मैं नहीं चाहता था कि मेरे पंख जलें, अत: मैं हवा में उड़ गया। अधिकांश दूसरे लोग भी भाग गए। दो लोग बचे -- एक शैतान, जो मेरे ख्याल से इस तरह की चीज़ें देखने का आदी था, और दमकल, जिसने पौंपी के ऊपर बुलबुलों के एक विशाल पिण्ड का फुहारा छोड़ा। पौंपी ने बहुत ज़ोर से छींका, और कमरे में चारों ओर चिंगारियाँ फूट पड़ीं। उनमें से एक चिंगारी से परी की पोशाक में आग लग गई, पर इससे पहले कि परी को क्षति पहुँचती, दमकल ने आग बुझा दी। अब्दुल मक्कार ने पौंपी की ओर छलांग लगाई, पर वह तेज़ी से हाथी के पैरों के बीच में से निकल गया, और मुझे नहीं मालूम कि और क्या-क्या नहीं हुआ होता अगर श्रीमान लीकी ने खुद को चिमटे में न बदला होता तथा अपने आप को ज़मीन पर फेंकते हुए घिसटकर पौंपी को पूँछ से पकड़ा न होता। श्रीमान लीकी ने उस पर इतने अद्भुत ढंग से काबू पाया कि मैं यह सोचने पर मजबूर हो गया कि उन्हें रग्बी का खिलाड़ी होना चाहिए था।

जल्दी ही पौंपी ज़ंजीरों में बँधा हुआ था, और अपने आप पर बहुत शर्मिन्दा दिख रहा था। श्रीमान लीकी काफी खिन्न थे। चिमटे से वापस इन्सान बनते हुए वे अब्दुल मक्कार से बोले, “अरे ओ इफ्रीतों में निकृष्ट! क्या मैंने तुम्हें यह आदेश नहीं दिया था कि आग की लपटें छोड़ने वाला यह प्राणी किचिन बॉइलर के नीचे भट्टी में ही बन्द रहना चाहिए, ताकि वहाँ रहते हुए वह मेरे नहाने के लिए पानी गर्म कर सके?”
“ऐ जादूगरों के सम्राट! आपने ऐसा आदेश ही दिया था, और जैसा आपने कहा था वैसा ही किया गया था। मैं नहीं जानता कि किस क्रूर जादूगर ने इसे कैद से आज़ाद किया।”

परन्तु जल्दी ही उसे इसका राज़ पता चल गया, क्योंकि अगले ही पल एक नल सुधारने वाला कमरे में दाखिल हुआ। मैं समझ गया कि वह नल सुधारने वाला था क्योंकि वह एक विशाल पाने जैसी चीज़ लिए हुआ था। “अरे, आप लोग मुझे क्या समझ रहे हैं?” वह बोला। “मैं सेंट जॉर्ज नहीं हूँ। मैं पानी के पाइप सुधारने आया हूँ, न कि किन्हीं उत्पाती ड्रैगनों को मारने के लिए।” फिर अचानक उसकी नज़र दावत पर पड़ी और उसकी आँखें फटी रह गईं और मुँह खुला रह गया।
“बैठ जाओ,” श्रीमान लीकी बोले, “और हमारे साथ चाय पीयो। मैं जानता हूँ कि तुम सेंट जॉर्ज नहीं हो, और मुझे यकीन है कि तुम मेरे ड्रैगन को नहीं मारना चाहते हो। खैर, जो भी हो, सेंट सैटरनीनस, जो सीसे के विशेषज्ञ हैं, नल सुधारने वालों के संरक्षक हैं।” इस दौरान श्रीमान लीकी की छड़ी का रुख नल सुधारने वाले की ओर था, जिसने धीरे-धीरे आँखें फाड़कर देखना बन्द किया और खीसें निपोरने लगा। “धन्यवाद महाशय, मैं चाय पी चुका हूँ,” वह बोला।
“फिर भी, ऐ अब्दुल मक्कार, इसका पेशा ऐसा है जिसमें बहुत प्यास लगती है। और ऐसा लिखा गया है कि राजा सोलोमन, ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे, अपने मेहमानों के लिए सुराहियाँ रखते थे। अत: नलों के इस संरक्षक को शराब की सुराही लाकर दो।”

नल सुधारने वाले ने सुराही की शराब पी और वापस अपने काम पर चला गया। मैं मानता हूँ कि श्रीमान लीकी के तमाम जादुओं के बावजूद उसे दावत थोड़ी अजीब-सी लगी, और जाते हुए उसे कोई खास अफसोस नहीं था। कुछ लोग ऐसे ही होते हैं।

इसके बाद हमने छूनछुवाई और दूसरे कई खेल खेले, पर मैं आपको उनके बारे में नहीं बताऊँगा, क्योंकि मुझे लगता है कि आप अब तक बहुत कुछ सुन चुके हैं। जब शैतान ने मुझे पकड़ा तो मेरी पूँछ का एक पंख टूट गया, खेल के लिए कछुए की रफ्तार एक खास मंत्र द्वारा बढ़ाई गई। मैंने इससे पहले या इसके बाद कभी किसी कछुए को दौड़ते नहीं देखा। पर यह कछुआ दौड़ने में काफी अच्छा था, और वह मोड़ों पर ऐसे फिसलता था जैसे कोई मोटरदौड़ वाला चालक।

तब शैतान बोला कि उसे सचमुच में अब जाना पड़ेगा क्योंकि उसे एक स्कॉटिश पादरी को नृत्य पर जाने के लिए बहकाना था। वह बोला कि यह बेहद कठिन काम है, और उसे यह काम करने की कोई इच्छा नहीं थी, पर ज़ाहिर है कि उसे आदेश मानने थे। फिर कुछ दूसरे लोग बोले कि उन्हें भी जाना होगा।
“यह तो बड़े दुख की बात है,” श्रीमान लीकी बोले, “पर मुझे आशा है कि आपने मज़ा किया होगा। मैं समझता हूँ कि आप सभी वापस रूपान्तरित होना चाहते होंगे। टूकनों और कछुओं को लन्दन में पिंजड़ों में बन्द कर दिया जाता है, और दमकलों से काफी मेहनत करवाई जाती है। पर यदि आप चाहें तो मैं आपमें से किसी के भी नाम बदल सकता हूँ।”

“नाम में क्या रखा है?” शेक्सपियर ने कहा। “किसी और नाम से भी गुलाब की खुशबू उतनी ही प्यारी होगी।” “अरे नहीं, ऐसा नहीं होगा,” श्रीमान लीकी बोले। “यदि उसे लघु स्टिंकवर्ट या फिश-एण्ड-चिप्स फूल कहा जाता तब ऐसा नहीं होता। आप जितना सोचते हैं, नाम उससे ज़्यादा महत्व रखते हैं। मैं फिप्स नाम के एक आदमी को जानता था जो उत्तरी लन्दन में कहीं लोहे का सामान बेचता था। वह अपनी दुकान से काफी खुश था और उसे रात के खाने के बाद दुकान के साथ लगे निजी कक्ष में जूते उतारकर पेशेंस खेलना अच्छा लगता था। पर उसकी पत्नी उसे ऐसा नहीं करने देती थी। वह कहती थी कि उसे कमरे से बाहर जाकर जूते उतारना चाहिए, और यह भी कि पेशेंस एक मूर्खतापूर्ण खेल है, जो वह वाकई है, पर उतना नहीं जितने कि कई अन्य खेल। इसलिए वह बोला, ‘चलो, हम तलाक ले लें।’ पर उसकी पत्नी इसके लिए भी राज़ी नहीं थी।

“अत: श्री फिप्स ने एक तरकीब सोची। पहले तो उसने लन्दन में किसी भी अन्य व्यक्ति से ज़्यादा खरगोश पकड़ने का तार और जम्बूरे वाली हथौड़ियाँ बेचकर बहुत धन कमाया। इसके बाद उसने अगली में एक घर खरीदा, जो एपिंग से कैम्ब्रिज जाने वाले मार्ग में पड़ने वाली एक बढ़िया जगह है। फिर उसने अस्पतालों, गिरजाघरों, स्कूलों, उदारवादियों और कल्याण कार्यकर्ताओं आदि को इतना ज़्यादा धन दिया कि सरकार ने उसे लॉर्ड बनाने का निर्णय किया। अत: जब उन्होंने उससे पूछा कि वह क्या कहलाना पसन्द करेगा तो उसने कहा -- लॉर्ड अगली यानी बदसूरत। इस पर राजा को बेतहाशा हँसी आई, परन्तु श्री फिप्स की बात मान ली गई।

“इस तरह श्री फिप्स की पत्नी लेडी अगली कहलाने लगी, पर उसे यह कहलाना ज़रा भी पसन्द नहीं था। अत: उसने श्री फिप्स से तलाक ले लिया और लवली यानी खूबसूरत नामक व्यक्ति से शादी कर ली, और मैं मानता हूँ कि इसके बाद वह हमेशा खुश रही। तब लॉर्ड अगली ने अपना बाकी पैसा दान कर दिया, और सिर्फ अपनी दुकान बचाए रखी। और वे रोज़ शाम को जूते उतारकर पेशेंस खेलते हैं। पर यदि वे लॉर्ड गोल्डर्स ग्रीन या लॉर्ड मोरटन-इन-द-मार्श या ऐसे ही कुछ और बनते तो परिणाम यह नहीं होता।”

सिर्फ दो लोगों ने श्रीमान लीकी से नाम बदलने को कहा। विक्टोरिया नाम की लड़की आइरिन बन गई, जिसका मतलब होता है शान्ति, और ऑॅग्स्टस नाम का लड़का टॉम हो गया।
फिर हम सभी एक पंक्ति में खड़े हो गए, और श्रीमान लीकी ने अब्दुल मक्कार से हमारी तस्वीर खिंचवाई, पर वह बहुत अच्छी नहीं है क्योंकि तितली ने बीच में अपने पंख हिला दिए थे, और लड़के ने पौंपी को देखकर हँसना शु डिग्री कर दिया था क्योंकि पौंपी पम्प से पैट्रोल पीने की कोशिश कर रहा था, और इस कोशिश में पम्प में आग लग गई थी।

जब तस्वीर ली गई तब हम सभी ने अपनी आँखें बन्द कर लीं या अपने लैम्प बुझा दिए, सिवाय परमाणु के जिसे ज़ेनोन जैसा दिखने के लिए कहा गया, इसका जो भी मतलब हो। मुझे नहीं पता कि जब हमारी आँखें बन्द थीं तो श्रीमान लीकी ने क्या किया, पर जब हमने आँखें खोलीं तो हम सामान्य लोग बन चुके थे। हममें से कुछ लोग जादुई कालीन पर सवार होकर घर गए, कुछ भूमिगत रेल से गए, और कुछ बस से। मैं पैदल वापस आया और जब घर पहुँचा तो पाया कि मेरे लिए एक उपहार रखा हुआ था -- उसमें थी पुच्छल तारों के विषय में एक सुन्दर किताब, और एक अन्य किताब जो पक्षियों के बारे में थी, जिसमें चार अलग-अलग प्रकार के टूकनों के रंगीन चित्र थे। मैं इन्हीं में से एक प्रकार का टूकन बना था।उसके बाद से मैंने श्रीमान लीकी को नहीं देखा है। कभी उनसे मुलाकात हुई तो आपको ज़रूर बताऊँगा। पर मेरा ख्याल है कि पिछले हफ्ते मुझे राफेल दिखाई दिए थे। उन्होंने साधारण मज़दूरों जैसे कपड़े पहने हुए थे, और वे सड़क पर गिर पड़ी एक बूढ़ी स्त्री की मदद कर रहे थे जिसको टखने में मोच आ गई थी। इसलिए शायद मैं श्रीमान लीकी को भी फिर से देख पाऊँगा।


जे.बी.एस. हाल्डेन: (1892-1964) प्रसिद्ध अनुवांशिकी विज्ञानी। जैव-विकास (evolution) के सिद्धान्त को स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान। विख्यात विज्ञान लेखक।

अँग्रेज़ी से अनुवाद: भरत त्रिपाठी: पत्रकारिता में पी.जी. डिप्लोमा। स्वतंत्र लेखन और द्विभाषिक अनुवाद करते हैं। होशंगाबाद में निवास।
सभी चित्र: सौम्या मेनन: नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिज़ाइन, अहमदाबाद से पढ़ाई कर रही हैं। फिलहाल एकलव्य, भोपाल में अपने डिप्लोमा प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं।