कमलेश उप्रेती

एक श्रद्धांजलि
अक्टूबर माह की 16 तारीख को गुणाकर मुले का निधन हो गया। हिन्दुस्तान में गणित और विज्ञान का शायद ही कोई ऐसा गम्भीर अध्येता हो जिसने उनके लेख या किताबें न पढ़ी हों।
गुणाकर मुले का जन्म 3 जनवरी 1935 को महाराष्ट्र के अमरावती ज़िले के सिन्दी-बुजरूक गाँव में हुआ। मातृभाषा मराठी होकर भी उन्होंने हिन्दी और अँग्रेज़ी भाषाओं में सिद्धहस्त लेखन किया। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से गणित में एम.ए. किया और आजीविका के लिए प्रारम्भ से ही स्वतंत्र लेखन का कार्य चुना और आजीवन तमाम आर्थिक कष्ट झेलते हुए भी उसे सुचा डिग्री रखा। 35 के लगभग पुस्तकें और 3,000 से ऊपर लेख लिखकर उन्होंने विज्ञान साहित्य को समृद्ध किया।

सरसरी तौर पर गुणाकर मुले की हिन्दी में लिखित कुछ प्रसिद्ध पुस्तकें हैं - संसार के महान गणितज्ञ, भारतीय विज्ञान की कहानी, आकाश दर्शन, भारतीय अंकपद्धति की कहानी, भारतीय लिपियों की कहानी, आर्यभट (सभी राजकमल प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित), महापण्डित राहुल सांकृत्यायन (नेशनल बुक ट्रस्ट)। इसके अतिरिक्त भारत की मुख्यत: सभी स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में वे विज्ञान व वैज्ञानिकों से सम्बन्धित लेख लगातार लिखते रहे।

गुणाकर मुले के लेखन की विशेषता उसकी प्रामाणिकता है, इसका पता उनकी पुस्तकों और लेखों के साथ दिए गए सन्दर्भ ग्रन्थों और अन्य स्रोतों की संख्या से लगता है। महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् पर अपनी पुस्तक ‘संसार के महान गणितज्ञ’ में वे लिखते हैं - “श्रीनिवास रामानुजन् का सही नाम नकारान्त हलन्त है न कि मकारान्त।” इससे पहले अधिकांश पुस्तकों में रामानुजम पढ़ने को मिलता है। इससे प्रदर्शित होता है कि वे अपने लेखन को कितनी गम्भीरता से लेते थे।
हिन्दी पाठकों को शायद ही उनके लेखों से पहले आर्यभट, ब्रह्मगुप्त और भास्कराचार्य के बारे में इतनी प्रामाणिक जानकारी प्राप्त हुई हो। महिला गणितज्ञों हाइपेशिया, आन्याजी, सोफिया कोवालेव्स्काया के योगदान को आम हिन्दी पाठकों के सामने लाने में भी गुणाकर मुले का योगदान रहा।

गुणाकर मुले के बारे में उनके निकटस्थों द्वारा लिखे गए लेखों से ज्ञात होता है कि वे बहुत विनम्र और सरल स्वभाव के थे। किसी विषय में जानकारी न होने पर उसे स्वीकारने में उन्हें कोई हिचक नहीं होती थी। उनकी ज्ञान साधना को कई महान अध्येताओं की श्रेणी में रखा जा सकता है जिनमें दामोदर धर्मानन्द कौशाम्बी, भदन्त आनन्द कौसल्यायन और राहुल सांकृत्यायन जैसे व्यक्ति शामिल हैं। अपनी पुस्तक ‘महापण्डित राहुल सांकृत्यायन’ में वे लिखते हैं - “सन् 1945 की गर्मियों के एक दिन मैं अपने गाँव वर्धा पहुँचा तो पहले ही दिन मुझे एक साथ तीन विभूतियों के दर्शन हुए। मैं भदन्त आनन्द कौसल्यायन के सामने खड़ा था। उनकी बाँईं ओर की दीवार पर आचार्य धर्मानन्द कौशाम्बी के आत्मदर्शन का फोटोचित्र टंगा था तो दाँईं ओर महापण्डित राहुल सांकृत्यायन का।” आज इन सबके बीच गुणाकर मुले भी शामिल हैं।

एक ओर जहाँ उन्होंने भारतीय ज्योतिष का विस्तृत अध्ययन करके आकाश दर्शन और नक्षत्रलोक जैसे ग्रन्थ लिखे वहीं आधुनिक विज्ञान की तहों में जाकर कम्प्यूटर पर हिन्दी की पहली प्रामाणिक पुस्तक ‘क्या है कम्यूटर’ लिखी। पुरातत्व, पुरा-लिपिशास्त्र व मुद्राशास्त्र जैसे कठिन विषयों को अपनी कलम से उन्होंने आम पाठकों के लिए सरल व सुग्राह्य बना दिया।

गुणाकर मुले एनसीईआरटी की पुस्तक निर्माण योजनाओं तथा हिन्दी पाठ्य पुस्तक सम्पादक मण्डल के सदस्य भी रहे। भारतीय अंकपद्धति की कहानी और नक्षत्रलोक पुस्तकें उत्तर प्रदेश हिन्दी समिति द्वारा पुरस्कृत की गईं। विज्ञान परिषद, इलाहाबाद ने 1986 में स्तरीय विज्ञान लेखन के क्षेत्र में की गई दीर्घकालीन बहुमूल्य सेवाओं के लिए उन्हें सम्मानित किया और संस्कृति संगम, दिल्ली द्वारा विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए 1988 में पुरस्कृत किया गया। 1989 में केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा का आत्माराम पुरस्कार इन्हें मिला। भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद, नई दिल्ली द्वारा प्रदत्त फैलोशिप के अन्तर्गत ‘भारतीय विज्ञान और टेक्नोलॉजी का इतिहास’ विषय पर शोधकार्य किया। उनके लेखन का प्रिय विषय गणितज्ञों और वैज्ञानिकों का जीवनी लेखन और गणित व विज्ञान का इतिहास लिखना था। इन विषयों को वे इतनी सरलता व रोचकता से प्रस्तुत करते थे कि व्यक्ति का व्यक्तित्व जीवित हो उठता था। बीस वर्षीय युवा गणितज्ञ इवारिस गाल्वा के बारे में अपने लेख की शुरुआत वे एक पत्र से करते हैं जिसे गाल्वा ने अपने भाई को द्वन्द्व युद्ध में अपनी मृत्यु से एक रात पहले लिखा था। अल्पायु में ही शोधकार्य के मात्र 60 हस्तलिखित पन्ने लिखकर ही गाल्वा आधुनिक उच्च बीजगणित का संस्थापक बन गया।
वैज्ञानिकों के जीवन परिचय देते हुए वे स्वयं एक वैज्ञानिक सोच के व्यक्ति थे। उनके द्वारा लिखी गईं प्रेरणाप्रद जीवनियों की तरह उनका जीवन भी प्रेरणाप्रद रहा है। हिन्दी साहित्य जगत की ओर से इस विलक्षण अध्येता और कर्मठ विज्ञान लेखक को श्रद्धांजलि


कमलेश उप्रेती: उत्तराखण्ड में शिक्षक हैं। पढ़ने-लिखने में रुचि।
गुणाकर मुले ने ‘संदर्भ’ के आग्रह पर आर्यभट के काम पर प्रकाश डालते हुए लेख लिखे थे जो ‘संदर्भ’ के अंक 22-23 और 24-25 में प्रकाशित हुए थे: ‘आर्यभट, महान गणितज्ञ’ (अंक 22-23, पृष्ठ 77); ‘आर्यभटीय, गणित एवं खगोल की विवादित किताब’ (अंक 24-25, पृष्ठ 53)।