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अगस्त - सितंबर 2018

शिक्षक की भूमिका सिर्फ इतनी नहीं है कि वह बच्चों के सामने पाठ्यपुस्तकों में दी गई जानकारी परोस दे। शिक्षक बच्चों की सीखने की प्रक्रिया में उनका सहभागी है जो स्कूली पाठ्यक्रम, बेमज़ा पाठ्यपुस्तकों और भयभीत करने वाली परीक्षाओं के परे जाकर उनके लिए इस पूरे अनुभव को दिलचस्प, रोमांचक और जीवंत बना सकता है। इस बार चर्चा ऐसे ही दो शिक्षकों की।

The Gentle Man Who Taught Infinity

गणित एक ऐसा विषय है जिससे बहुत-से बच्चे भयभीत रहते हैं और उनका मन इससे उचट जाता है। इस स्थिति के लिए काफी कुछ गणित को पढ़ाने का तरीका भी ज़िम्मेदार है जो विषय को नीरस बना देता है। पर क्या गणित सीखना बहुत मज़ेदार और सार्थक भी हो सकता है? स्कूल छोड़ने के सत्ताईस साल बाद एक विद्यार्थी अपने गणित के शिक्षक को याद करते हुए उनके बारे में लिखता है। यह वृत्तांत है एम वी चन्नाकेशव के बारे में जिन्होंने अपने विद्यार्थियों को सिर्फ अच्छे नंबर लाने के लिए नहीं पढ़ाया बल्कि उन्हें गणित की खूबसूरती को समझना और सराहना सिखाया। इतिहास और कहानी कहने के ढंग का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने गणित को इतना रोचक बना दिया कि इतने सालों बाद भी लेखक को उनके पढ़ाने की छोटी से छोटी बात भी याद है। यह पुस्तक उन लोगों के लिए है जो पहले विद्यार्थियों के रूप में गणित से जूझते रहे और अब माता-पिता के रूप में जूझ रहे हैं, उन शिक्षकों के लिए है जो चाहते हैं कि उनके विद्यार्थी गणित से प्रेम करें। इसके अलावा हर उस व्यक्ति के लिए है जो बच्चों की शिक्षा में दिलचस्पी रखता है। किताब के लेखक हैं शेषागिरी के एम राव।

मेरी ग्रामीण शाला की डायरी

ये अनुभव हैं एक ऐसी शिक्षिका के जिन्होंने एकल शिक्षक शाला में कक्षा 1 से 8 तक के तीस से भी ज़्यादा बच्चों के साथ काम करते हुए यह दिखाया कि सीमित साधनों के साथ भी स्कूल के अनुभव को कितना रोचक बनाया जा सकता है। जूलिया वेबर गॉर्डन ने दूरदराज के ग्रामीण इलाके में स्थित एक कमरे के स्कूल में अपनी कल्पनाशीलता और नवाचार से बच्चों के सीखने को समृद्ध और दिलचस्प बनाया। उन्होंने इस चीज़ को समझा कि बच्चे तभी सबसे अच्छे ढंग से सीखते हैं जब स्कूल समुदाय का हिस्सा हो, जब उनका सीखना बाहर के जीवन के अनुभवों को छूता हो। उन्होंने बच्चों के माँ-बाप को भी एहसास कराया कि स्कूल उनके जीवन का हिस्सा है न कि कोई ऐसी जगह जहाँ वे अपने बच्चों को कुछ घण्टों के लिए छोड़ देते हैं। उनका अनुभव यह दिखाता है कि पर्याप्त अवसर और स्वतंत्रता मिलने पर एक अकेला शिक्षक भी विद्यार्थियों के जीवन में बड़ी भूमिका निभा सकता है।

बाल मेला - मैंने करके सीखा

मैंने करके सीखा

रायसेन जि़ले के कीरतनगर और भोपाल जि़ले के चोर सागौनी व बरखेड़ा पठानी में बाल मेले आयोजित किए गए। पढ़ो लिखो मज़ा करो कार्यक्रम के अन्‍तर्गत समुदाय को रीडिंग से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। इस कार्यक्रम द्वारा आयोजित बाल मेलों में बच्चों ने क्राफ्ट, ऑरिगैमी, कविता-कहानी, रंगों के खेल जैसी बहुत-सी गतिविधियों में भाग लिया। इन बाल मेलों के कुछ नज़ारे आपके लिए

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