पुस्तक का नामः "सांप और हम" 
लेखकः ज़य और रोम व्हिटेकर
अनुवादः हनुमानसिंह पंवार
प्रकाशक: नेशनल बुक ट्रस्ट, ए-5, ग्रीन पार्क, नई दिल्ली-110016
पृष्ठः 64, कीमत 5
.00 रुपए, प्रथम संस्करण, 1987.

बातचीत में कहीं सांप का प्रसंग आ जाए तो फिर किस्से-कहानियों का अंत नहीं होता। आमतौर पर समाज में सांपों को लेकर अनेक धारणाएं व्याप्त हैं, पर उनमें से अधिकांश बिना सिर-पैर की होती हैं, मसलन सांप दूध पीते हैं, उड़ने वाले सांप होते हैं, सांप बदला लेते हैं, दो-मुंहा सांप के चाट लेने से कुष्ठ रोग हो जाता है, सभी सांप विषैले होते हैं आदि, आदि।

ऐसी धारणाओं का भंडाफोड़ करने तथा सांपों के बारे में वैज्ञानिक जानकारी को सरलीकृत करके जय और रोम व्हिटेकर ने यह पुस्तक लिखी है। रोम व्हिटेकर उस व्यक्ति का नाम है जिसने सांपों पर खूब अध्ययन किया है। रोम और उसके साथियों ने दक्षिण भारत में तमिलनाडु की इरूला जनजाति के बीच कोई दस साल तक काम किया। इरूला जनजाति सांपों को पकड़कर, उनकी चमड़ी निकालकर बेचा करती थी। पर यह काम वे औरों के इशारों पर करते थे। उस इलाके में चमड़ी की तस्करी करने वाला संगठित गिरोह था जो इरूला लोगों को तो केवल मज़दूरी ही देता था।

रोम व्हिटेकर ने इरूला जनजाति के साथ काम करके सापों को पकड़ने की उनकी जादुप्रतिभा का इस्तेमाल एक बिल्कुल ही फर्क दिशा में करवाया। अब भी वे सांप पकड़ते तो थे पर उनको मारते नहीं बल्कि विष दुहकर फिर से जंगल में छोड़ देते। यह विष दवाईयों आदि के उत्पादन के लिए बहुमूल्य है।

रोम के इरूला जनजाति के साथ काम करने का मकसद न सिर्फ सांपों की हत्या को रोकना है, बल्कि उनकी सांपों को पकड़ने और पहचानने की दक्षता को एक रचनात्मक अन्जाम देना भी है। साथ ही रोम ने मद्रास में एक स्नेक-पार्क भी बनाया जहां दूर-दूर से लोग-बाग सांपों को देखने आते हैं, उनके बारे में जानने आते हैं।

प्रस्तुत पुस्तक में लेखकों द्वारा सांपों पर किए गए काम के दौरान प्राप्त अनुभवों की भी झलक मिलती है। कव्हर समेत 64 पेज की इस पुस्तक में सांपों के व्यवहार, रहन-सहन, आकार-प्रकार, भोजन, इनके बारे में फैले अंधविश्वास, उनका आर्थिक महत्व तथा सांपों की खाल की तस्करी से जुड़े मुद्दों पर रोशनी डाली गई है। पुस्तक की शुरुआत में ही कहा गया है कि सांप प्रकृति का एक लुभावना जीव है। इनके विविध रंग, चाल-ढाल और रहस्यपूर्ण आदतें इन्हें अन्य जीवों से एकदम अलग कर देती हैं।

मनुष्यों में सांपों को ले कर जो अंधविश्वास व्याप्त हैं। उनको लेखकद्वय ने हास्यास्पद बताया है। रोम कहते हैं कि मद्रास स्थित सांपों के पार्क में आने वाले बहुत से लोग सांपों को पिलाने के लिए दूध लाते हैं जिसे लेकर मैं अपने कर्मचारियों को कॉफी बनाने के लिए दे देता हूं। उन्होंने आगे इस धारणा का खंडन कुछ इस तरह किया कि दूध सांप को प्राकृतिक भोजन नहीं है। और सांप के दांत इतने तेज़ होते हैं कि वह गाय या भैंस के थनों से दूध पीने की कोशिश करे तो वो सहन नहीं कर सकती।

सांपों को लेकर अंधविश्वासों की सूची बनाएं तो यह काफी लंबी हो सकती है और पुस्तक में सभी का उल्लेख करना भी मुमकिन नहीं। बल्कि सांपों के बारे में वैज्ञानिक जानकारी उपलब्ध करा देना ही इन अंधविश्वासों को तोड़ना है। पुस्तक में विषैले और विषहीन सांपों के बारे में विस्तार से लिखा है। भारत में यों तो 50 के लगभग सांपों की विषैली प्रजातियां हैं। पर इन में से 4 प्रमुख ऐसे सांप हैं। जिनसे सावधान रहने की ज़रूरत है - नाग, करैत, दुबोईया और अफाई। इसके अलावा बहुत से ऐसे विषैले सांप हैं जिनके संपर्क में आम लोग नहीं आते - समुद्री सांप, पिट वाईपर, नागराज, मुंगिया सांप के बारे में भी उल्लेख मिलता है।

पुस्तक में विषैले सांपों के विष का असर और . उनके काटे के इलाज की चर्चा भी की गई है। पुस्तक से जानकारी मिलती है कि विषैला सांप काट ले तो कीमती समय को मंत्रों, जड़ी-बूटियों से इलाज में बरबाद नहीं करना चाहिए। एक व्यक्ति कैसे “नाग के काट लेने पर शिथिल पड़ जाता है और खुद अपनी ज़रा भी मदद नहीं कर पाता परंतु उसको विषरोधी सीरप देने के आधे घंटे में ही वह उठकर चाय पीने लग गया" जैसे अनुभवों का समावेश किया गया है। सांप के काटे की दवाई कैसे बनाई जाती है इस बात का भी उल्लेख पुस्तक में मिलता है

सभी सांप विषैले नहीं होते। अनेक विषहीन सांपों का दिलचस्प विवरण इस पुस्तक में मिलता है। विषहीन सांपों में से अधिकांश तो ऐसे हैं कि जिनके साथ बच्चा भी खेल सकता है, उनको पालतू बनाया जा सकता है। और इस विश्वास को पुख्ता करते हैं इस पुस्तक में दिए चित्र जिनमें बच्चों के हाथों में पकड़े सांप दिखाए गए हैं।

सांपों के भोजन के साथ-साथ इनके आर्थिक महत्व तथा इनके द्वारा प्रकृति में संतुलन बनाए रखने जैसे तथ्यों को भी उभारा है। सांपों का प्रिय भोजन चूहे हैं। और चूहे हमारे देश में पैदा होने वाली कुल उपज का लगभग आधा हिस्सा चट कर जाते हैं। पुस्तक बताती है कि कुछ अन्य प्राणी भी हैं जो चूहे खाते हैं। पर सांप ही एक ऐसा प्राणी है जो चूहों का ठीक उनके बिलों तक पीछा करके पकड़कर खा जाता है। लेखकों ने इस ओर भी संकेत किया है कि चूहों को मारने की आधुनिकतम तकनीकें तो फेल हो चुकी हैं। आजकल चूहे दवाईयों को भी पचा जाते हैं। ऐसे में सांप इन चूहों को खाकर उनकी संख्या पर काबू रखते हैं।

सांप के शत्रु भी हैं। पर सबसे बड़ा शत्रु तो मानव है जो एक तो इनकी चमड़ी के लिए मारता है, दूसरा हानिकारक रसायनों को छिड़ककर, जंगलों की कटाई करके इनको खत्म कर रहा है। सांप इस धरती की जीवन श्रृंखला की एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं और इस कड़ी की हानि पृथ्वी के पूरे जीवन के लिए हानिकारक हो सकती है।

पूरी पुस्तक को पढ़ने पर सांपों के बारे में काफी वैज्ञानिक जानकारी का अंदाज़ा होता है। साथ ही सांपों के बारे में हम जो गलत अहसास पाले रहते हैं वो भी दूर होते हैं। पुस्तक में दिए गए लगभग सभी चित्रों की छपाई साफ है। पर कहीं-कहीं कठिन शब्दों का इस्तेमाल करने से विषयवस्तु की रोचकता कम हुई है और इस वजह से पढ़ने का फ्लो टूटता है।

के.आर. शर्मा
(विज्ञान शिक्षण व लेखन में सक्रिय छायांकन में रुचि।)