खेत, बगीचे में घूमता हुआ गिरगिट तो सबने देखा होगा। यह फोटो भी गिरगिट का है, ऐसा लगता है न? दरअसल केमेलियन है यह, गिरगिट जैसा ही दिखने वाला। हिंदुस्तान के जंग
लों में यह अक्सर पाया जाता है

केमेलियन की एक खासियत है कि अपने आसपास के रंग के मुताबिक अपना रंग बदल लेता है - अपने आपको छुपाने के लिए। इसीलिए हिंदी में इसे बहुरूपिया कहा जाता है। इतनी अच्छी तरह से रंग बदलता है कि बहुत ही ध्यान से देखने पर ही पता चलता है कि यहां तो बहुरूपिया बैठा है।

दूसरी और भी मजेदार खासियत इस चित्र में दिखाई गई है। केमेलियन की जीभ एक सेकंड के पचीसवें भाग में शिकार करके मुंह में वापस आ जाती है। एक क्षण कीड़ा-पतंगा दिखाई देगा और दूसरे क्षण गुम। आपको और हमें पता भी नहीं चलेगा कि कहां गया, क्या हुआ उसका।

सबसे पहले तो शिकार की खोज में बिना हिले-डुले एक जगह बैठा रहता है। केमेलियन। उसकी आंखें भी अपने से अलग तरह की होती हैं जो स्वतंत्र रूप से घूम सकती हैं। इसलिए एक-साथ चारों तरफ देखता हुआ डटा रहता है अपनी जगह पर। जैसे ही शिकार दिखा कि उसकी तरफ धीरे-धीरे सरकने लगता है। उस समय दूरी का सटीक अंदाजा लगाने के लिए दोनों आंखों को एकदम शिकार पर केंद्रित कर देता है। और फिर जैसे ही उसे लगा कि शिकार पकड़ के दायरे में आ गया है तो - स...टा......क!