सुशील जोशी  

लेख है पदार्थों के मिश्रण में से विभिन्‍न पदार्थों को अलग-अलग करने का। हां, पढ़ना शेरू करने से पहले साथ कुछ चीज़ें रखें- चॉक, सोख्‍ता कागज़, खाली रीफल ओर दो-तीन रंगों की स्‍याही। क्‍योंकि पढ़ने के साथ-साथ करने का मज़ा कुछ ओर ही होता है।

विभिन्‍न पदार्थों के मिश्रण में से प्रत्‍येक पदार्थ को अलग-अलग शुद्ध रूप में प्राप्‍त करना रसायनज्ञनों का एक प्रमुख काम रहा है। इस काम के लिए छानने, बीनने से लेकर रवे बनाने तथा आंशिक आसवन जैसी विधियां इस्‍तेमाल की जाती हैं। मगर क्रोमेटोग्राफी की बात ही कुछ और है। इसके बारे में तो यह कहना ठीक रहेगा कि शायद क्रोमेटोग्राफी की अनुपस्थिति में कार्बनिक रसायनशास्‍त्र का इतना तेज़ विकास संभव ही न होता।

तो देखें कि क्रोमेटोग्राफी नामक यह विधि‍ है क्‍या चीज़? दरअसल रसायनशास्‍त्र में पृथककरण (मिश्रण में से पदार्थों को अलग-अलग करना) के लिए उपयोग में लाई जाने वाली अधिकांश विधियां रोज़मर्रा की विधियों के ही परिष्‍कृत रूप हैं। मगर क्रोमेटोग्राफी उन विधियों में से है जो रोजा़ना के अनुभवों में से नहीं उभरी है। वैसे है ये विधि बहुत आसान। ओर वर्णन करने से बेहतर होगा कि आप स्‍वयं इसका आनन्‍द लें। दरअसल इस विधि को समझने का यह सर्वोत्‍तम तरीका भी है।

चॉक पे बना छल्‍ला ओर पानी
सामग्री: क्रोमेटोग्राफी करने के लिए आपको किसी विशेष उपकरण की ज़रूरत नहीं पेड़ेगी। बस, एक सफेद चॉक, एक सोख्‍ता कागज़, कुद रंग- बिरंगी स्‍याहियां, पानी ओर एक खाली डिब्‍बा।

कैसे करें : दो-तीन रंगों की सयाहियों की थोड़ी-थोड़ी मात्रा लेकर आपस में मिला दीजिए। ये हो गया हमारा मिश्रण।

अब एक चॉक लीजिए – ऐसा जो सीधा खड़ा रह सके। इस चांक के मोटे वाल सरिे से कदीब 1 से.मी. छोड़कर मिश्रण का एक छल्‍ल– सा बना दीजिए। छल्‍ला बनाने के लिए माचिस की तीली, आलपिन या रीफिल से काम चल जाएगा। छल्‍ले की मोटाई जितनी कम होगी उतना ही अच्‍छा रहेगा।

एक डिब्‍बे में थोड़ा –सा पानी डाल दें और छल्‍ले की तरफ से इस चॉक को उसमें खड़ा कर दें। पानी बस इतना हो कि छल्‍ला उसमें डूबने न पाए। वैसे डिब्‍बे की बजाए डिब्‍बे के ढक्‍कन से भी काम चल जाएगा।

आप देखेंगे कि पानी धीरे-धीरे चॉक पर चढ़ेगा। उसे चढ़ने दीजिए जब तक कि वह चॉक के ऊपरी सिरे पर न पहुंच जाए।

अब चॉक को निकालकर उसका अवलोकन कीजिए। क्‍या स्‍याहियां अलग-अलग नज़र आ रही हैं?

चित्र 1: स्याही के मिश्रण का एक छल्ला  चॉक पर बनाइए। इसे किसी डिब्बे के ढक्कन में, जिसमें पानी हो, खड़ा कर दीजिए ध्यान रहे कि छल्ला पानी में न डूबने पाए।

सोख्‍ता कागज़ से भी : इस प्रयोग को सोख्‍ता कागज़ से भी कर सकते हैं। तो देर किस बात की? कर ही डालिए।

सोख्‍ता कागज़ की एक पट्टी लीजिए- 10 से.मी. लम्‍बी ओर 2 से.मी. चौड़ी। इस पट्टी पर- किसी भी एक छोर से करीब दो सेंटी मीटर दोड़कर- मिश्रण की एक बारीक बूंद लगा दीजिए, जिससे किकागज़ की पट्टी पर एक छोटा-सा बिन्‍दु बन जाए। बूंद जितनी बारीक लगेगी, आगे का काम उतना ही बढि़या होगा।

बूंद लगे इस कागज़ को अब डिब्‍बे में लटका दीजिए। लटकाना इस तरह हे कि पट्टी डिब्‍बे के पेंदे से थोड़ा ऊपररहे ओर डिब्‍बे की दीवारों को भी न छुए। वैसे सबसे बढि़या तरीका यह होगा कि डिब्‍बे के मुह पर एक बॉल पॉइन्‍ट पेन की रीफिल रखें, कागज़ को ऊपर से मोड़ें और रीफिल पर लटका दें।

लटकाने के बाद डिब्‍बे में इतना पानी डालें कि कागज़ का निचला छोर तो डूब जाए मगर मिश्रण की बूंद पानी से ऊपर रहे। बस, अब चलने दीजिए प्रयोग।

इन दो प्रयोगों में जिस विधि से स्‍याही का पृथक्‍करण हुआ, उसे ‘क्रोमेटोग्राफी’ कहते हैं। आगे हम और रोचक प्रयोग करेंगे। वैसे यह ज़यरी नहीं है कि आप सयाहियों का मिश्रण ही बनाएं। कई सयाहियां खुद ही कई रंगों का मिश्रण होती हैं। आप चाहें तो चेलपार्क कम्‍पनी की काली स्‍याही, कैमल की हरी स्‍याही या स्‍केच पेन की काली स्याही की क्रोमेटोग्राफी करके इस बात को प्रत्‍यक्ष रूप से अनुभव कर सकते हैं।

पत्तियों के हरे रंग से . . .

जैसा कि मैंने कहा, क्रोमेटोग्राफी न होती, तो कम-से-कम कार्बनिक रसायन इतनी तेज़ी से तरक्‍की नहीं करता। क्रोमेटोग्राफी अत्‍यंत उपयोगी विधि है। यह सिर्फ पृथक्‍करण में ही नहीं बल्कि पदार्थों की पहचान व उनकी शुद्धता की जांच में भी कारगर साबित होती है।

इस रोचक व कारगर विधि का आविष्‍कार इस सदी की शुरूआत में हुआ था। शयद 1923 सर 1927 की बात है। पक्‍का तो मालूम नहीं लेकिन शायद कोई सोवियत या स्‍वीडिश वैज्ञानिक था, जिसने सबसे पहले इसका उपोग पत्तियों के हरे रंग के विश्‍लेषण के लिए किया था। उस वैज्ञानिक ने कैल्शियम कार्बोनेट (जी हां, खडि़या) का चूरा एक कांच की नली में भर लिया ओर इस भरी नली के एक सिरे पर पत्तियों से प्राप्‍त हरे रंग को डाला। अब नली को खड़ा कर उसने कोई द्रव पदार्थ इसी सिरे (रंगवाले) से डालना शुरू किया। द्रव धीरे-धीरे कैल्शियम कार्बोनेट में से रिसता हुआ नली के दूसरे छोर पर पहुंच गया। स्‍पष्‍ट दिख रहा था कि हरा पदार्थ इकलौता नहीं था, बल्कि दो पदार्थों का मिश्रण था।

चित्र 3:ऐतिहासिक प्रयोगः एक कांच की नली में खड़िया के चूरे को भर दिया गया और ऊपर की ओर पत्तियों से प्राप्त हरे रंग को डाला। इसके बाद कोई दूसरा द्रव ऊपर से डाला। यह द्रव धीरे-धीरे रिसता हुआ नली के दूसरे छोर पर पहुंच गया। जो परिणाम मिला उसके मुताबिक हरा रंग अपने आप में इकलौता नहीं था बल्कि दो पदार्थों का मिश्रण था।

यही पदार्थ क्‍लोरोफिल-ए ओर क्‍लोरोफिल-बी कहलाए।

कैसी-कैसी क्रोमेटोग्राफी
आपने ध्‍यान दिया होगा कि हमने चॉक व कागज़ पर जो क्रोमेटोग्राफी की थी उसमे पानी(तरल पदार्थ) नीचे से ऊपर चढ़ रहा था। जबकि क्‍लोरोफिल वाले प्रयोग में तरल पदार्थ (यह तरल पदार्थ शायद पानी नहीं था) ऊपर से नीचे बहाया गया था। पहली, यानी चॉक वाली क्रोमेटोग्राफी को चढ़ती (Ascending) क्रोमेटोग्राफी कहते हैं जबकि दूसरी को उतरती (Descending) क्रोमेटोग्राफी कहते हैं। तो यह तो हो गया पहला वर्गीकरण।

वैसे इसका ओर भी कई तरह से वर्गीकरण किया जा सकता है। लेकिन उससे पहले हम अब क्रोमेटोग्राफी का एक सामान्‍य विवरण प्रस्‍तुत कर सकते हैं।

दरअसल क्रोमेटोग्राफी के लिए ज़रूरी हैं – दो परस्पर अघुलनशील पदार्थों को दो अवसथाएं कहा जाता है। हमारा मिश्रण इन्‍हीं दो अवस्‍थाओं के बीच लटका या टंगा होता है।

ये दो अवस्‍थाएं कई किस्‍म की हो सकती हैं। जैसे कि हमने अपने प्रयोग में किया एक ठोस अवस्‍था (चॉक या सोख्‍ता कागज़) ली ओर एक तरल (पानी)। ठोस अवस्‍था स्थिर (अचल) थी और तरल गतिमान। इसी तरह हम एक ठोस व एक गैस अवस्था भी ले सकते हैं; दो परस्‍पर आुलनशील तरल पदार्थ भी लिए जा सकते है। यानी क्रोमेटोग्राफी कई किस्‍म की हो सकती है:

ठोस – द्रव
ठोस – गैस
द्रव – द्रव
द्रव – गैस

हम यहां सिर्फ ‘ठोस-द्रव क्रोमेटोग्राफी की ही बात करेंगे। हालांकि सिद्धांत रूप में सभी क्रोमेटोग्राफी समान हैं मगर तकनीक के स्‍तर पर इनकी जटिलता बढ़ती जाती है।

‘ठोस-द्रव क्रोमेटोग्राफी’ करना वैसे तो काफी आसान है, मगर पृथक्‍करण की गुणवत्‍ता बढ़ाना हो तो इसी क्रोमेटोग्राफी को काफी परिष्‍कृत व महंगे उपकरणों से भी करना पडता है।

ठोस-द्रव क्रोमेटोग्राफी में पचासों प्रकार की ठोस व द्रव अवस्‍थाएं ली जा सकती हैं। मसलन कैल्शियम कार्बोनेट और कागज़ (यानी सेलूलोज़ का उपयोग तो हमने ऊपर वाल प्रयोग में किया है ही। इनके अलावा एल्‍यूमीनियम ऑक्‍साइड (एलुमिना), सिलिकॉन ऑक्‍साइड (सिलिका-जी हां, रेत) आदि का उपयोग बहुतायत से किया जाता है।

इसी तरह तरल अवस्था के लिए पेट्रोल, क्‍लोरोफॉर्म, एल्‍कोहल, बेनज़ीन आदि न जाने कितने तरल पदार्थों का उपयोग किया जा सकता है। वैसे तरल अवस्‍था के चयन में ही ज्‍़यादा विविधता होती है।

जैसा कि मैंने ऊपर कहा था क्रोमेटोग्राफी का उपयोग पृथक्‍करण के अलावा पदार्थों की पहचान व शुद्धता की जांच के लिए भी किया जा सकता है। आइए इन तीनों उपयोगों को एक-एक करके देखते हैं।

रंगहीन या सफेद पदार्थ
लेकिन उससे पहले शायद एक बात समझ लेना ज़रूरी रहेगा। क्रोमेटोग्राफी का शाब्दिक अर्थ ‘रंग-चित्र’ होता है। परन्‍तु यह ज़रूरी नहीं है कि क्रोमेटोग्राफी से सिर्फ रंगीन पदार्थों का ही पृथक्‍करण किया जाए।

चूंकि षुरू में पत्तियों के हरे पदार्थ का विश्‍लेषण किया गया था इसलिए ‘क्रोमेटोग्राफी नाम इस विधि से चिपक गया है। सफेद व रंगहीन पदार्थों के विश्‍लेषण- पृथक्‍करण में भी यह यह विधि समान रूप से कारगर है। परन्‍तु आपके मन में यह सवाल ज़रूर उठेगा कि अगर चॉक या कागज़ पर पदार्थ अलग-अलग हो भी गए तो फिर हमें यह पता कैसे चलेगा कि अलग-अलग पदार्थ हैं कां-कहां। यह पता करने के कई तरीके हैं।

मसलन कई पदार्थ ऐसे होत हैं जो सामन्‍य रोशनी में तो सफेद या रंगहीन होते हैं मगर पराबैंगनी प्रकाश (अल्‍ट्रावॉयलेट) में देखने पर रंगीन नज़र आते हैं।  यानी क्रोमेटोग्राफी करने के बाद क्रोमेटोग्राम को पराबैंगनी प्रकाश में रखकर देखा जा सकता है।

इसी तरह कार्बनिक पदार्थ, गन्‍धक के सांद्र अम्‍ल के साथ क्रिया करके काले-कत्‍थई पढ़ जाते हैं। यदि क्रोमेटोग्राम पर इस अम्‍ल का छिड़काव (स्‍प्रे) किया जाए और फिर उसे थोड़ा गर्म कर दिया जाए, तो पदार्थ जहां-जहां होंगे, वे काले धब्‍बे के रूप में दिखने लगेंगे। ज़ाहिर है कि इस प्रयोग में आपको मात्र यही पता चलेगा कि क्रोमेटोग्राम पर पदार्थ के कण कहां-कहां थे। लेकिन पदार्थ प्राप्‍त नहीं होंगे वे तो गन्‍धक के अम्‍ल के साथ क्रिया करके नष्‍ट हो चुके होंगे।

एक तरीका यह भी होता है कि क्रोमेटोग्राम को आयोडीन वाष्‍प से भरे डिब्‍बे में रख दिया जाए। आयोडीन उन जगहों पर ज्‍़यादा चिपकती है (अवशोषित होती है) जाहं कार्बनिक पदार्थ होते हैं। इसलिए ये धब्‍बे-पट्टियां नज़र आने लगते हैं। खुली हवा में रखने पर आयोडीन वापस उड़ जाती है।

पदार्थों की उपस्थिति देखने के और भी कई तरीके होते हैं। इनमें से कुछ तो बेहद परिष्‍कृत होते हैं।

अब हम यह समझने की कोशिश करते हैं कि विभिन्‍न उद्देश्‍यों के लिए क्रोमेओग्राफी कैसे की जाती है।

1.  पदार्थों को अलग-अलग करना: जब हम क्रोमेटोग्राफी से पृथक्‍करण की बात करते हैं तो इसका अर्थ यह होता है कि हम चाहते हैं कि मिश्रण से सारे पदार्थ (या कभी-कभी कोई एक चुनिंदा पदार्थ) हमें प्राप्‍त हो जाएं। इसका मतलब है कि हमारे पास मिश्रण काफी मात्रा में है। यहां काफी मात्रा शब्‍द का अर्थ स्‍पष्‍ट करना ज़रूरी है। क्रोमेटोग्राफी के संदर्भ में इसका अर्थ चंद मिलीग्राम तक हो सकता है। सामान्‍य क्रोमेटोग्राफी से आप 5-10 मि.ग्रा. मिश्रण तक का पृथक्‍करण कर सकते हैं। यदि उच्‍च दबाव क्रोमेओग्राफी कर रहे हैं तो यह मात्रा माइक्रोग्राम में भी हो सकती है।

पृथक्करण की दृष्टि से आमतौर पर हम स्‍तम्‍भ (यानी कॉलम) क्रोमेटोग्राफी का इस्‍तेमाल करते हैं। मिश्रण की मात्रा कम होने पर महीन सतह क्रोमेटोग्राफी भी की जाती है। स्‍तम्‍भ क्रोमेटोग्राफी के लिए ठोस अवस्‍था को कांच की एक नली में भर लिया जाता है। यानी ठोस अवस्‍थ  का एक स्‍तम्भ बन जाता है। इस स्‍तम्‍भ के ऊपरी सिरे पर मिरण घुलित अवस्‍था में डाल दिया जात है। अब तरल अवस्‍था को ऊपर से डालना शुरू करते हैं। धीरे-धीरे तरल अवस्‍था नीचे की ओर बढ़ती है और साथ में मिश्रण के विभिन्‍न पदार्थ अलग-अलग गति से बढ़ते हैं। जब तरल अवस्था नली के निचले छोर पर पहुंचे, यदि तब क्रोमेटोग्राफी रोक दी जाए तो स्थिति कुछ चित्र-4 जैसी होगी। इसमें से बेशक सारे पदार्थ अलग-अलग प्राप्‍त किए जा सकते है, मगर मुश्किल से। इसके लिए एक सरल विधि अपनाई जाती है।

उपरोक्‍त सिथति में क्रोमेटोग्राफी को रोका नहीं जाता। तरल को नली के निचले सिरे से बहने दिया जात है और उसे फलास्‍कों में एकत्रित किया जाता है। हमें यह तो पता नहीं है कि तरल पदार्थ के साथ कब, कौन-सा पदार्थ आ रहा है, इसलिए तरल पदार्थ की थोड़ी मात्रा (मान लीजिए 25-25 मि.ली.) अलग-अलग एकत्रित की जाती है। ऐसे प्रत्‍येक अंश को अलग-अलग ही रखा जाता है। बाद में इनका विश्‍लेषण करके देखते हैं कि किन-किनको  आपस में मिलाया जा सकता है।

2.  शुद्धता की जांच व पहचान : ये दोनों उपयोग दरअसल एक जैसे ही हैं। विशेषता यह है कि क्रोमेटोग्राफी के द्वारा ये काम पदार्थ की बहुत ही कम मात्रा के साथ किए जा सकते हैं। इसका सिद्धांत बहुत आसान है।

जब ठोस अवस्‍था पर तरल अवस्‍था आगे बढ़ती है तो प्रत्‍येक पदार्थ उसके साथ एक निश्चित गति से आगे बढ़ता है। अब इस बात को दो तरह से रखा जा सकता है।

पहला, कि यदि क्रोमेटोग्राफी को रोका न जाए, तो तरल का एक निश्चित आयतन बह जाने के बाद पहला पदार्थ ठोस अवस्‍था के अंतिम छोर पर पहुंचेगा। फिर यह तरल पदार्थ

शुद्धता की पहचान के लिए क्रोमेटोग्राफी: तरल मिश्रण के अलग-अलग पदार्थ ठोस पर अलग अलग स्‍थानों तक पहुंचेंगे। अगर परिस्थितियां एक-सी रखी जाएं और प्रयोग को कई बार दोहराया जाए तो एक निश्चित समय में विभिन्‍न पदार्थ हर बार समान दूरी तक पहुंचेंगे।

के साथ बहकर बाहर निकल जाएगा। इसके बाद तरल का कुछ ओर निश्चित आयतन बहने के बाद अगला पदार्थ बहेगा, वगैरह-वगैरह।

यदि इसी बात को दूसरी तरह से रों तो- यदि तरल के ठोस के अंतिम छोर तक पहुंचने तक या उससे पहले ही क्रोमेटोग्राफी का रोक दिया जाए, तो मिश्रण के सारे पदार्थ ठोस पर विभिन्‍न स्थानों तक पहुंच चुके होंगे।

यदि यह क्रोमेटोग्राफी बार-बार करें और हर बार परिस्‍थतियां एक-सी हों तो हर बार प्रत्‍येक पदार्थ एक निश्चित दूरी तक ही पहुंचता है। इस आधार पर पदार्थ की पहचान की जा सकती है।

परन्‍तु क्रोमेटोग्राफी की परिस्थितियां एक-सी रखना बहुत मुश्किल काम है। इसलिए किया यह जाता है कि जिन पदार्थों की आपस में तुलना करनी हो उनकी क्रोमेटोग्राफी एक साथ की जाती है। जैसे कि मान लीजिए आपने किसी वनस्‍पति में से एक पदार्थ प्राप्‍त किया है। आपका अनुमान है कि यह पदार्थ कोलेस्ट्राल का एक जाना-पहचाना नमूना लाएंगे और अपने पदार्थ व इस मानक कोलेस्‍ट्रॉल की कोमेटोग्राफी साथ-साथ कर उालेंगे। यदि दोनों एक ही दूरी तक पहुंचते हैं तो लगभग यकीन से कहा जा सकता हहै कि आपका पदार्थ कोलेस्‍ट्रॉल ही है। यदि दोनों अलग-अलग दूरी तक पहुंचते हैं, तो पक्‍के तौर पर कहा जा सकता है कि आपका पदार्थ कोलेस्‍ट्रॉल नहीं है।

इस प्रकार की तुलना सोख्‍ता कागज़ वाली क्रोमेटोग्राफी में आसानी से की जा सकती है। दोनो पदार्थों को उपयुक्‍त  घोल में घोलकर एक ही कागज़ पर पास-पास उनकी एक-एक बूंद लगाकर क्रोमेटोग्राफी कर लें। आपका काम हो गया।

वैसे इसी काम के लिए महीन सतह क्रोमेटो ग्राफी भी इस्‍तेमाल भी इस्‍तेमाल में लाई जाती है। महीन सतह क्रोमेटोग्राफी के लिए पहले ठोस अवस्‍थ की एक महीन सतह तैयार करनी होती है। कांच की एक प्‍लेट पर महीन सतह तैयार करके शेष काम कागज़ क्रोमेटोग्राफी की तरह ही किया जाता है। वैसे इस चर्चा से आप समझ गए होंगे कि स्‍तम्‍भ क्रोमेटोग्राफी से प्राप्‍त अंशों का विश्‍लेषण किस तरह किया जाता है।

तो अब आते हैं शुद्धता की जांच पर। कागज़ पर या महीन सतह पर क्रोमेटोग्राफी करें और क्रोमेटोग्राफी में पदार्थ एक ही धब्‍बे के रूप में दिखे तो लगभग पक्‍की बात है कि वह पदार्थ शुद्धहै। लगभग पक्‍की बात को और पक्‍की करने के लिए थोड़ा अधिक परिश्रम करना पड़ेगा। यदि तरल अवस्‍था में थोड़ा  परिवर्तन करने के बाद फिर से क्रोमेटोग्राफी करने पर भी  पदार्थ, क्रोमेटोग्राम में एक ही धब्‍बे के रूप में दिखता है तो यककी न मानिए वह पदार्थ शुद्ध है। और यह जांच वाकई मिलीग्राम के सौवें भाग के साथ भी की जा सकती है।

सही माएने में पहचान या शुद्धता के मकसद से क्रोमेटोग्राफी करते वक्‍त परिस्थितियां कुछ इस तरह एडजस्‍ट की जाती हैं कि हमारा परार्थ, तरल के आखिरी छोर से लगभग आधी दूरी तक पहुंचे।

अभी क्रोमेटोग्राफी के और कई रूप हैं जिनकी चर्चा हमने नहीं की है। मगर मोटे तौर पर यही बातें उनपर भी लागू होंगी। जानबूझ कर में इसके सैद्धांतिक पक्ष में नहीं गया हूं। और क्रोमेटोग्राफी की सरलता व कारगरता को देखते हुए आप सवयं सोच सकते हैं कि यह विधि कितनी उपयोगी होगी।

दो मज़ेदार प्रयोग
दो रोचक प्रयोगों के साथ हम इस लेख का समापन कर सकते हैं। पहला प्रयोग है उतरती क्रोमेटोग्राफी का। जैसा कागज़ क्रोमेटोग्राफी में किया था, ठीक वैसा ही करें। अंतर सिर्फ इतना होगा कि डिब्‍बे में पानी ऊपर तक भर लें और कागज़ के ऊपरी मुड़े हुए सिरे को पानी में डुबोते हुए कागज़ को डिब्‍बे से बाहर लटकने दें। मुड़े हुए सिरे से चढ़ता हुआ पानी ऊपर तक पहुंचेगा और फिर बाहर लटकते हुए कागज़ पर नीचे ‘उतरेगा’

ज़रा देखिए कि वो रंग जो चढ़ती कागज़ क्रोमेटोग्राफी में सबसे तेज़ी से आगे बढ़ा था(यानी सबसे ऊपर पहुंचा था), उतरती क्रोमेटोग्राफी में भी क्‍या वह सबसे तेज़ी से आगे बढ़कर सबसे नीचे पहुंचता है?

दूसरा प्रयोग: एक गोलाकार सोख्‍ता कागज़ लीजिए। इसके बीचों-बीच सफाई से एक छेद बना लीजिए। छेद से करीब आधा से.मी. जगह छोड़कर, स्‍केच पेन से एक घेरा बना दीजिए।

अब एक ओरा सोख्‍ता कागज़ लीजिए ओर उसको लपेटकर एक नली बना लीजिए। इस नली को ऊपर बनाए गए छेद में पिरो दीजिए। एक बीकर या डिब्‍बे में आधा पानी भर लीजिए। अब गोलाकार सोख्‍ता कागज़ को इस डिब्‍बे पर इस तरह रखिए कि नली पानी में डूबी रहे। बस इन्‍तजार कीजिए और देखिए क्‍या होता है।


सुशील जोशी: पर्यावरण एवं विज्ञान लेखन में सक्रिय, होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम से संबद्ध।