फटते कागज़ से निकलती आवाज़

कागज़ को गीला करके फाड़ने से पहले एक और बात पर गौर कर लें कि जब कागज़ को धीरे-धीरे फाड़ा जाता है और जब एकदम से एक झटके में, तो दोनों आवाजों में अंतर क्‍यों होता है। आप खुद करके देख कीजिए कि फर्क केवल आवाज़ धीमी या ज़ोर से आने का नहीं होता, गुणवत्‍ता बदल जाती है आवाज की। तेज़ी से फाड़ने पर आवाज तीखी हो जाती है।

दरअसल कागज़ सेल्‍युलोज़ के रेशो का बना होता है जो आपस में ज़ोर से चिपके रहते हैं। जब आप कागज़ फाड़ते हैं तो सेल्‍युलोज़ के ये रेशे एक-एक करके टूटते हैं जिसकी वजह से कागज मे कंपन होता है। इस कंपन के कारण आसपास की हवा मे ध्‍वनि तरंगे पैदा होती हैं और हमें कागज़ फाड़ने की आवाज़ सुनाई देती है।

जब आप धीरे-से कागज़ फाड़ते हैं तो रेशे एक-एक करके टूटते हैं, कम कंपन पैदा होते हैं।

इसका अर्थ यही हुआ न कि अगर एक ही लम्‍बाई के दो एक जैसे कागज़ के टुकड़ों को फाड़ा जाए तो दोनों बार एक जितने ही रेशे तोड़ने पड़ेंगे हमें। यानी कंपनों की कुल संख्‍या तो एक जितनी रहेगी परन्‍तु तेज़ी से कागज़ फाड़ने पर समय कम लगेगा। अब देखते हैं कि इसका ध्‍वनि की आवृति पर क्‍या असर पड़ेगा- आवृति यानी एक सेकंड के दौरान होने वाले कंपनों की संख्‍या। अब तक की चर्चा से स्‍वाभाविक है कि तेज़ी से कागज़ फाड़ने पर पैदा होने वाली आवाज़ की आवृति ज्‍़यादा होगी यानी कि तीखी ध्‍वनि पैदा होगी इस बार।

अब देखते हैं ‍कि कागज़ को गीला करने पर क्‍या होता है। दरअसल सेल्‍युलोज के रेशे एक तरह के आकर्षण बल से आपस में चिपके रहते हैं। एक किस्‍म का विद्यतीय आकर्षण बल होता है यह। कागज़ को गीला करने पर पानी के अणु इन देशों के बीच की जगह में घुस जाते हैं, जिस वजह से यह बल काफी कमजोर हो जाता है। इसलिए गीला कागज़ बिल्‍कुल हल्‍का-सा बल लगाने पर फट जाता है। इसी कारण उसमें उतने ज़ोरो से कंपन पैदा नहीं होते। अगरचे कंपन कमजोर होंगे तो स्‍वाभाविक ही है कि आवाज भी धीमी ही होगी।

इस बार मिले सभी जवाबों में से कुल तीन जवाब स‍ही के काफी करीब थे। इन्‍हें भेजने वाले हैं; रमेश उपाध्‍याय, पंचवटी, परसाई कॉलोनी, टिमरनी, जिला होशंगाबाद; ममता बड़ेरा, शिक्षक, सेठ आर. एन. रूईया बा.सी. हा. से. स्‍कूल रामगढ़ शेखावटी, राजस्‍थान और विवेक जायसवाल, सुवासरा जिला मंदसौर, म.प्र.