सुशील जोशी

स्कूली किताबों में ऊर्ध्वपातन के बारे में चंद वाक्यों से ज़्यादा शायद ही कभी पढ़ने को मिलता है। सिर्फ कुछ ही पदार्थ इस गुण को क्यों दिखाते हैं? क्या सभी पदार्थों में यह गुण मौजूद होता है? और यदि होता है तो दि‍खता क्यों नहीं?

आमतौर पर हम जब ठोस चीज़ों को गरम करते हैं, तो हमारी उम्मीद होती है कि वे पहले पिघलेंगी, फिर वाष्पित होंगी। मगर क्या यह क्रम हर पदार्थ में देखा जाता है? लेकिन कुछ ऐसे पदार्थ भी होते हैं जो ठोस अवस्था। से सीधे वाष्प में परिवर्तित हो जाते हैं। मसलन नौसादर (यानी अमोनियम क्लोजराइड) और आयोडीन। नौसादर तो काफी आसानी से मिलने वाला पदार्थ है। इसे गर्म करके आप खुद देख सकते हैं कि यह भाप बनकर उड़ जाता है, मगर पिघलता नहीं। इस क्रिया को ऊर्ध्वपातन कहते हैं।

सवाल यह है कि क्या ऊर्ध्वपातन का यह गुण इन कुछ विशिष्ट पदार्थों में ही पाया जाता है या यह एक सामान्य  गुण है जो सभी पदार्थों में होता है? और यदि यह गुण सभी पदार्थों में होता है, तो हमें दिखता क्यों नहीं।

द्रवों के वाष्पन के विषय में तो आप थोड़ा बहुत जानते ही हैं। फिर भी यहां संक्षेप में इस क्रिया को दोहरा लेना अनु‍चित न होगा।

जब पानी या मिट्टी के तेल जैसे किसी द्रव को खुले में छोड़ देते हैं तो धीरे-धीरे वह वाष्पित होकर उड़ जाता है। मगर यदि यही प्रयोग एक बन्द निर्वात बर्तन में किया जाए, तो स्थिति थोड़ी अलग होगी। कुछ समय बाद पूरा बर्तन उस द्रव की वाष्प से भर जाता है। यदि अब इस बर्तन को थोड़ा गरम किया जाए, तो द्रव के थोड़े और अणु वाष्पित तो जाते हैं। मगर धीरे-धीरे फिर से एक संतुलन बन जाता है। अब उस बर्तन में वाष्प की मात्रा कुछ ज़्यादा होती है, तो उसका दाब भी ज़्यादा होता है। यानी तापमान बढ़ने के साथ वाष्प दाब बढ़ता जाता है। यहां दो बाते ध्यान में रखने की हैं। पहली बात तो यह है कि विभिन्न तापमानों पर वाष्पा दाब नापते समय शेष परिस्थितियां (जैसे द्रव की सतह का क्षेत्रफल) समान रहें। दूसरी बात यह है कि किस तापमान पर किसी द्रव का वाष्पन दाब कितना होगा यह उस द्रव की प्रकृति पर निर्भर करता है। यानी किसी भी तापमान पर विभिन्‍न द्रवों का वाष्प दाब अलग-अलग होता है।

ठोस का वाष्प‍ दाब
द्रवों की तरह प्रत्येक ठोस पदार्थ भी निरन्तर वाष्पित होता रहता है। यह बात अलग है कि वाष्प की मात्रा इतनी कम हो कि हम उसे नाप तक न सकें। बहरहाल यदि किसी ठोस पदार्थ को हम निर्वात बर्तन में रख दें तो उसके कुछ अणु वाष्पित हो जाते हैं। लिहाज़ा उस बर्तन में उस पदार्थ की कुछ मात्रा वाष्प   के रूप में भर जाती है। इसका अपना निश्चित वाष्प दाब होता है।

दरअसल हम इस क्रिया को रोज़ाना देखते, महसूस करते हैं। जैसे ‘फिनाइल’ की गोलियां हम कपड़ों की अलमारी में रखते हैं। वह धीरे-धीरे उड़ती रहती हें। इसी प्रकार से कई ठोस पदार्थों की गंध हमें आती है। यह गंध वास्तव में उनके वाष्पीकरण के कारण ही हम तक पहुंचती है।

गलनांक व क्वथनांक
हमने ऊपर देखा कि द्रव को गरम करने पर उसका वाष्प दाब बढ़ता जाता है। एक स्थिति ऐसी आती है जब वाष्प दाब वायुमण्डपल के दाब के बराबर हो जाता है। तब वह द्रव उबलने गता है। जिस तापमान पर किसी द्रव का वाष्प‍ दाब वायुमण्डलीय दाब के बराबर हो, उसे हम उस द्रव का सामान्य क्वथनांक कहते हैं।

ज़ाहिर है कि यदि बाहरी दाब कम कर दिया जाए तो द्रव कम तापमान पर उबलने लगेगा। पहाड़ी स्‍थानों पर यह स्थिति आ जाती है। इसके विपरीत यदि बाहरी दाब बढ़ा दिया जाए, तो द्रव ज़्यादा तापमान पर उबलेगा। यह स्थिति प्रेशर कुकर में आ जाती है।

किसी ठोस का सामान्य गलनांक उस तापमान को कहते हैं जिस पर वह पिघलता है। इस पर भी दाब का असर पड़ता है। इसलिए हम यह कहते हैं कि वायुमण्डंलीय दाब पर किसी ठोस के पिघलने के तापमान को उसका सामानय गलनांक कहते हैं। आमतौर पर दाब बढ़ने पर ठोस का गलनांक बढ़ जाता है। यानी दवब बढ़ने पर ठोस अपने सामान्यम गलनांक से ज़् यादा तापमान पर पिघलते हैं। बर्फ की बात अलग है। दाब बढ़ने पर उसका गलनांक कम हो जाता है।

ऊर्ध्वपातन
ठोस से वाष्पव बनने की बात हमने की। देखा जाए, तो यही ऊर्ध्वयपातन की क्रिया है। मगर इस संदर्भ में दो बातों का ध्यापन रखना ज़रूरी है।

पहली बात तो यह है कि आमतौर पर ठोस पदार्थों का वाष्पज दाब बहुत कम होता है। यानी किसी भी तापमान पर ठोस प्राय: बहुत कम वाष्पित होते हैं। दूसरी बात ज़्दयादा महत्वस की है। हम ऊपर देख चुके हैं कि वाष्पा दाब तापमान पर निर्भर करता है। ठोस को गर्म करेंगे तो वाष्पा दाब बढ़ेगा। मगर एक ऐसी स्थिति आएगी कि वह पिघल जाएगा।

ऊर्ध्व पातन के लिए ज़यरी है कि ठोस पदार्थ का गलनांक आने से पूर्व उसका वाष्पा दाब वायुमण्डमल के दाब के बराबर पहुंच जाए। ऐसी स्थिति में वह ‘उबलने’ लगता है। खूब सारी वाष्पण निकलती है और यह वाष्पर ठण्डीऐ होकर वापस ठोस के रूप में जमा हो जाती है। इस पूरी क्रिया को ‘ठोस का आसवन’ भी कह सकते हैं।

जिस तापमान पर किसी ठोस का वाष्पक दाब वायुमण्डपलीय दाब के बराबर हो जाए, उसे ऊर्ध्वसपातन तापमान या ऊर्ध्वसपातांक भी कहते हैं।

क्या सारे ठोस उबलेंगे
हमने लेख के शुरू में यह सवाल रखा था कि क्या। समस्त‍ ठोस पदार्थों में ऊर्ध्व पातन का गुण होगा? अब हम इस सवाल का जवाब देने की स्थिति में हैं।

यह तो सही है कि समस्त  ठोस पदार्थ कम या ज़् यादा वाष्पित होते रहते हैं। मगर उनका वाष्पत दाब बहुत कम होता है। तापमान के साथ वाष्पा दाब बढ़ता है मगर इतना नहीं बढ़ पाता कि वायुमण्ड लीय दाब के बराबर हो जाए, उससे पहले ही वे पिघल जाते हैं। यानी सब ठोस पदार्थों में सामान्यब वायुमण्डरलीय दाब पर ऊर्ध्व्पातन नहीं होता।

मगर यदि दबाव कम कर दिया जाए तो? जी हां, यदि बाहरी दबाव का कम कर दिया जाए तो प्रत्ये क ठोस पदार्थ के लिए ऐसा कोई तापमान अवश्या होगा जहां उसका ऊर्ध्वमपातन हो जाएगा। मसलन बर्फ को यदि बहुत कम दबाव पर रख जाए तो उसका उर्ध्वहपातन संभव है।

कुल मिलाकर हमें देखना यह होगा कि किसी तापमान पर किसी ठोस का वाष्पत दाब कितना है। यदि बाहरी दबाव को उतना ही कर दिया जाए, तो ऊर्ध्वठपातन हो जाएगा।

ऊर्ध्वदपातित ठोस पिघलेंगे क्या,
इन ठोस पदार्थों में गलनांक आने से पूर्व ही वाष्पर दाब वायुमण्डालीय दाब के बराबर हो जाता है। अत: पिघलने से पहले ही ये उबलने लगेंगे। यानी सामान्या  वायुमण्डबलय दाब पर ये ठोस नहीं पिघलेंगे। इनको पिघलाने के लिए हमें विशेष जतन करना होगा। दबाव को इतना बढ़ाना होगा कि गलनांक से पूर्व इनका वाष्पल  दाब उस बढ़े हुए दबाव के बराबर न होने पाए।

सवाल यह उठता है कि क्यों  कुछ ठोस पदार्थों का वाष्पे दाब बढ़कर वायुमण्डंलीय दाब के बराबर हो जाता है जबकि अन्यि अधि‍कांश ठोस पदार्थों के साथ यह स्थिति नहीं आती। मैं इस मामले में मात्र यही कहना चाहूंगा कि कम-से-कम मैा नहीं जानता कि ऐसा क्यों है? संभवत: स्थिति यह है कि पदार्थों की अवस्था परिवर्तन के बारे में हमारी समझ ही काफी सीमित है।

उबालने/घिलाने की गुप्‍त उष्‍माएं
हम यह तो जानते ही है कि पदार्थों के पिघलने व उबलने की क्रिया में ऊष्‍मा  लगती है। जब कोई पदार्थ पिघलता है या उबलता है तो होता यह है कि वह गर्मी सोखता जाता है मगर उसका तापमान नहीं बदलता। यह सोखी गई गर्मी उसकी अवस्‍था परिवर्तन में खप जाती है। इसे गुप्‍त ऊष्‍मा कहते हैं। पिघलने की गुप्‍त  ऊष्‍मा अलग होती है और उबलने की गुप्‍त ऊष्‍मा अलग होती है।

ऊर्ध्‍वपातन की क्रिया में भी गुप्‍त ऊष्‍मा सोखी जाती है। किसी भी पदार्थ की उर्ध्‍वपातन की गुप्‍त ऊष्‍मा उसके पिघलने व उबलने की गुप्‍त ऊष्‍माओं के योग के बराबर होती हैं।

अब स्थिति यह है कि सभी ठोस पदार्थों का वाष्‍पन हर तापमान पर होता है। तापमान बढ़ाने पर वाष्‍पन बढ़ता है। कुछ ठोस पदार्थ ऐसे होत हैं जिनका वाष्‍पदाब इतना बढ़ जाता है कि वह वायुमण्‍डलीय दाब के बराबर हो जाता है और वे ‘उबलने’ लगते हैं, इसे ऊर्ध्‍वपातन कहते हैं ऐसे पदार्थों के पृथ्‍क्‍करण व शोधन में यह विधि ठीक उसी तरह उपयोगी है, जैसे कि आसवन।


सुशील जोशी: पर्यावरण एवं विज्ञान लेखन में सक्रिय। होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम से संबद्ध।