मुकेश मालवीय                                                                                                                                             [Hindi PDF, 91 kB]

प्राथमिक शिक्षण
प्राथमिक शालाओं में बच्चों को बेहतर ढंग से पढ़ा पाना अपने आप में काफी चुनौतीपूर्ण काम है। आधारभूत ढांचों की बात को कुछ देर के लिए एक तरफ रख भी दें तब भी पढ़ाते समय बच्चों की सक्रिय भागीदारी के लिए शिक्षकों को कुछ अतिरिक्त प्रयास करने पड़ते हैं। बच्चों को लगातार सक्रिय रखने के लिए कई बार शिक्षक तय नहीं कर पाता कि कौन-सी गतिविधि करवाना चाहिए। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ और अनायास ही मैंने एक गतिविधि का एक छोर थाम लिया, और फिर उसे काफी आगे तक बढ़ाया भी। खास बात यह है कि इस गतिविधि का छोर मुझे बच्चों ने ही पकड़वाया था।

कुछ दिन पहले मैं अपने स्कूल में कोई प्रशासनिक जानकारी (डाक) बना रहा था। कक्षा एक से पांच तक के बच्चे तीन कमरों में बैठे नियंत्रित हल्ला और पढ़ने का उपक्रम कर रहे थे। इस शोरगुल में मेरा ध्यान एक सस्वर लय पर गया। उस कमरे में कक्षा तीसरी और चौथी के बच्चे साथ बैठे थे और लगातार दो पंक्तियां दोहरा रहे थे -

घोटल मोटल खोपरा खाए।
गाड़ी पर बैठकर जतरा जाए।

पूरी कक्षा दो समूहों में बंटी थी। एक समूह जब बोलता, ‘घोटल मोटल खोपरा खाए’, तुरंत दूसरा समूह बोलता ‘गाड़ी पर बैठकर जतरा जाए।’ यह क्रम कुछ देर चलता रहा, फिर अचानक दूसरे समूह की पंक्ति में परिवर्तन हो गया। अब वे गाड़ी की जगह ‘गधे पर बैठकर जतरा जाए’ बोल रहे थे। मुझे लगा कि यह तो बड़ी मज़ेदार गतिविधि है। मैं अपना काम छोड़कर उस कक्षा में चला गया।

मुझे आता देखकर बच्चे चुप हो गए। मैंने उनसे कहा कि चलो फिर से शु डिग्री करते हैं, मैं तुम्हारी इन लाइनों को बोर्ड पर लिख देता हूं। चूंकि एक समूह ने गाड़ी को बदलकर गधा के साथ पंक्ति में बदलाव किया था इससे मुझे सूझा कि दूसरे समूह को भी अपनी पंक्ति में बदलाव का मौका मिलना चाहिए। तो मैंने इस समूह के बच्चों से कहा, ‘‘भई, तुम्हारी लाइन भी बदलनी चाहिए।’’ कुछ देर की चर्चा से यह सहमति हो गई कि खोपरा खाए कि जगह कुछ और जैसे गुड़ खाए बोला जा सकता है। तो अब ये पंक्तियां इस तरह हो गईं - घोटल मोटल ‘गुड़ खाए’, गधे पर बैठकर जतरा जाए। दो-चार बार इसे दोहराने के बाद हमने यह तय किया कि पहला समूह अब हर बार खाने वाली चीज़ का नाम बदलेगा और दूसरा समूह बैठकर जाने वाले साधन का नाम बदलेगा।

अब तो खेल में नया मोड़ आ गया। इस छोटी-सी चुनौती ने सभी बच्चों को बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने को उत्साहित कर दिया पर व्यवस्था गड़बड़ाने लगी। एक बार में एक ही समूह के बच्चे अलग-अलग खाने की चीज़ों के नाम एक साथ बोलते। इसे संभालने के लिए नया नियम बनाया गया। क्रमश: कोई एक छात्र खाने की चीज़ का नाम बदलकर पूरी लाइन बोलेगा फिर पूरा समूह उसे दोहराएगा। इसी तरह दूसरे समूह का एक छात्र अपनी लाइन बोलेगा और पूरा समूह उसे दोहराएगा। इसी तरह दूसरा, तीसरा छात्र नई चीज़ों के साथ अपनी लाइन बोलेगा। साथ ही सूची भी बनानी होगी ताकि चीज़ों के नामों का दोहराव न हो।

इन लाइनों को ध्यान से देखने पर मुझे सूझा कि घोटल-मोटल के नाम और जगह के नाम को भी बदला जा सकता है। तो अब बच्चों से कहा गया कि घोटल-मोटल की जगह अपना नाम एवं अपने दोस्त का नाम बोलना है, खाने वाली चीज़ में आपको जो पसंद है उसका नाम बोलना है। अब जतरा की बजाय किसी नई जगह जाना होगा। और जिस साधन से आप जाना चाहें उस साधन का नाम बोलना होगा। अब ये लाइनें कुछ इस तरह बोली जा रही थीं- ‘‘रमेश-महेश अचार खाए, साइकल पर बैठकर बाज़ार जाए।’’
उस दिन तो यह गतिविधि लगभग दो से ढाई घंटे तक चली। इस गतिविधि की लोकप्रियता शाला की अन्य कक्षाओं के बच्चों में भी फैलने लगी। इस लोकप्रियता ने हमारे स्कूल को दो नए पात्र दिए, घोटल और मोटल। इन पात्रों को लेकर हमारे स्कूल में बहुत सारी गतिविधियां बनाई गईं। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं।

विवरण या वर्णन सुनाना
इस गतिविधि में घोटल-मोटल को केन्द्रीय पात्र बनाकर दिए हुए वाक्यों को रोचक तरीके से आगे बढ़ाना था। जैसे -

— एक दिन घोटल-मोटल घूम रहे थे कि उन्होंने देखा, दो आदमियों में झगड़ा हो रहा है ...?
— एक बार घोटल-मोटल जंगल घूमने चले गए। घोटल एक पेड़ पर चढ़ गया। मोटल नीचे खड़ा था। तभी .....।
— एक दिन घोटल की शर्ट की जेब चूहे ने काट दी। मोटल ने पूछा तेरी जेब क्यों फटी है? घोटल ने कहा ....।

सवाल-जवाब और जवाब-सवाल
एक दिन घोटल और मोटल में शर्त लगी। घोटल ने मोटल से कहा कि तुम जो भी सवाल करोगे मैं उसका जवाब दूंगा।
ये सवाल-जवाब दो टोलियां बनाकर किए जा रहे थे। एक टोली का कोई छात्र/छात्रा सवाल पूछते, दूसरी टोली के कोई छात्र/छात्रा उसका जवाब देते।

परन्तु इसमें एक समस्या समझ में आ रही थी कि बच्चे ठीक तरह से सवाल नहीं सोच पा रहे थे। इसके लिए एक नई गतिविधि बनाई गई।
इस गतिविधि में एक टोली कोई एक शब्द बोलती, दूसरी टोली को उस शब्द का इस्तेमाल करके पूरा वाक्य बनाना होता - जैसे घोटल टोली ने शब्द बोला ‘कौन’, मोटल टोली - ‘‘कौन सबसे ऊंचा है?” इसी प्रकार अलग-अलग शब्द देकर वाक्य बनाए जाते।
एक दिन मोटल ने कहा, ‘‘प्रश्न के जवाब तो कोई भी दे सकता है, अब ऐसा करते हैं तुम कोई भी वाक्य बोलो मैं उसके लिए एक प्रश्न बना दूंगा।’’ घोटल ने कहा, ‘‘ठीक है। मंदिर में घंटी बज रही है।’’ मोटल - ‘‘घंटी कहां बज रही है?’’ घोटल ‘‘पानी गिरने वाला है।’’ मोटल - ‘‘पानी कब गिरने वाला है?’’ इस तरह यह गतिविधि दोनों टोलियों में अलग-अलग बच्चों के द्वारा संचालित की जाती रही।

अंतर-समानता और वर्गीकरण
इस गतिविधि में दोनों टोलियों से एक-एक छात्र-छात्रा सामने आते। अब इन्हें देखकर इन दोनों में कोई दो अंतर और दो समानता हर टोली को बतानी होती है। दोनों टोलियों से दो बच्चे सामने आए। उन्हें गौर से देखकर घोटल टोली ने अंतर गिनाए - घोटल छोटा है जबकि मोटल ऊंचा है। घोटल ने सफेद शर्ट पहनी है, मोटल ने गुलाबी।
घोटल टोली ने समानताएं बताईं - घोटल और मोटल दोनों चौथी में पढ़ते हैं। घोटल और मोटल दोनों के हाथ के नाखून बढ़े हुए हैं।
इस तरह यह गतिविधि अलग-अलग बच्चों द्वारा विभिन्न वस्तुओं व अलग-अलग प्राणियों को लेकर भी की गई।

एक दिन घोटल और मोटल में शर्त लगी कि इस कमरे में बैठे सभी बच्चों के कितने अधिक-से-अधिक समूह बनाए जा सकते हैं? इस पर घोटल ने अपनी सूची बनाई।
- छात्रों और छात्राओं का समूह।
- कक्षा चौथी एवं पांचवीं के बच्चों का समूह।
- ‘तीन अक्षर’ के नाम वाले बच्चों का समूह।
- ‘र’ अक्षर से प्रारम्भ होने वाले नाम के बच्चे।
इसके अलावा कपड़ों के रंग, वज़न, ऊंचाई के आधार पर अलग-अलग समूह बनाए गए।

तथ्यों से तालिका व विश्लेषण
इस गतिविधि में अलग-अलग तरह से जानकारियां इकट्ठा करने और रिकॉर्ड रखने पर ज़ोर दिया गया।
तालिका बनाकर अपने आसपास के किसी परिचित के बारे में जानकारियां जुटाना। जैसे नाम, घर के कुल सदस्यों की संख्या आदि। इसी तरह सब्ज़ी का नाम, उसका रंग, किस मौसम में मिलती है आदि।
विस्तृत तालिका बनाने के लिए कुछ और जानकारियां जोड़ सकते हैं। जैसे राज्य का नाम, राजधानी, प्रमुख फसलें, प्रमुख खनिज, प्रमुख नदियां इत्यादि।
अपने रोज़मर्रा के अवलोकनों के आधार पर इस किस्म की तालिका को पूरा किया जा सकता है।
किस समय क्या होता होगा -
जगह सुबह दोपहर शाम
मंदिर में
घर में
अस्पताल में
बस स्टेंड पर
होटल में
स्कूल में

जानकारियों का इस्तेमाल करने के लिए कुछ गतिविधियां तय की गईं। जैसे
1. तालिका के आधार पर प्रश्न बनाना जैसे ऊपर की तालिका देखकर बताओ सबसे अधिक सदस्य किसके घर में हैं। या मध्यप्रदेश की राजधानी क्या है या नर्मदा नदी किस राज्य में बहती है, आदि।
2. प्राप्त जानकारियों के आधार पर किसी वस्तु या प्रदेश का वर्णन कर पाना जैसे मध्यप्रदेश एक राज्य है जिसकी राजधानी भोपाल है। यहां पर मक्का, ज्वार, गेहूं की खेती होती है, यहां की प्रमुख नदियां नर्मदा, ताप्ती, देनवा हैं।

दिन बदलो, लेकिन काम वही
रोज़ाना की दिनचर्या के आधार पर बोर्ड पर कुछ वाक्य लिखे जा सकते हैं जैसे:

घोटल स्कूल जा रहा है।
मोटल खाना खाएगा।
घोटल ने कल फिल्म देखी थी।
मोटल हंस रहा था।

अब क्रमश: एक छात्र-छात्रा किसी टोली से आकर इन वाक्यों को दूसरी टोली के निर्देशानुसार पढ़ता है। ये निर्देश दिनों के नाम के हिसाब से होते, जैसे आज मंगलवार है तो दूसरी टोली सोमवार, मंगलवार या बुधवार बोलती है। छात्र को उस दिन के हिसाब से इन वाक्यों को बोलना होता। उदाहरण के लिए - घोटल स्कूल जा रहा है। दूसरी टोली द्वारा ‘सोमवार’ बोलने पर - ‘‘घोटल स्कूल गया था।’’ दूसरी टोली द्वारा ‘बुधवार’ बोलने पर - ‘‘घोटल स्कूल जाएगा।’’
इसी तरह एक अन्य गतिविधि में उपरोक्त वाक्यों की तरह ही कुछ वाक्य बोर्ड पर लिखे जाते हैं। दूसरी टोली मिस या मिस्टर कहती है। पहली टोली के बच्चे को इस हिसाब से वाक्य को बदलना होगा। जैसे मिस बोलने पर वाक्य होगा, ‘‘मिस घोटल स्कूल जा रही है।’’
और मिस्टर बोलने पर- ‘‘मिस्टर घोटल स्कूल जा रहा है।’’ इस गतिविधि में बाल पुस्तकालय या पाठ्य पुस्तक की किसी कहानी के पात्रों को बदलकर वाक्य में होने वाले बदलाव को भी देखा गया।

नई भाषा लिखना या समझना
घोटल टोली ने एक नया खेल सोचा। उसने मोटल टोली से कहा कि हम नई भाषा में एक वाक्य लिखेंगे, तुमको उस वाक्य को पढ़कर बताना है। घोटल टोली ने बोर्ड पर लिखा -
नामी लीता ओजाब।
इस भाषा को पहचानने का सूत्र है, मोटल - लटमो।
मोटल टोली ने कुछ देर में इसे पहचाना कि यह तो उल्टा लिखा हुआ है। इसे सही करके उन्होंने बताया - ‘मीना ताली बजाओ’ लिखा है। जब बच्चों को इस तरह के संकेत समझकर शब्द या वाक्य पढ़ना आ जाए तब बिना मात्राओं के वाक्य या मात्राओं के स्थान बदलकर संकेत दिए जा सकते हैं।

संख्या पहचानना
इस गतिविधि में गुणों के आधार पर संख्या को पहचानना होता है।
घोटल टोली ने मोटल टोली से कहा - तुम एक संख्या सोचो, हम बता देंगे कि तुमने कौन-सी संख्या सोची है। तुम्हें केवल हमारे कुछ सवालों के जवाब ‘हां’ या ‘ना’ में देना है। मोटल टोली ने एक संख्या 25 तय की। अब घोटल टोली ने प्रश्न पूछना चालू किया -
घोटल टोली- क्या वह संख्या दो अंकों की है?
मोटल टोली - हां।
घोटल टोली - क्या 19 से 49 के बीच है? मोटल टोली - हां।
घोटल टोली - क्या उस संख्या में पांच का भाग जाता है?
मोटल टोली - हां।
घोटल टोली - क्या उस संख्या में तीन का भाग जाता है?
मोटल टोली - नहीं।
घोटल टोली - क्या संख्या 35 है? मोटल टोली - नहीं।
घोटल टोली - क्या वह संख्या 25 है? मोटल टोली - हां

अब घोटल टोली को संख्या तय करनी थी। और मोटल टोली प्रश्न पूछकर संख्या पता करेगी।
इस गतिविधि के दौरान देखा गया कि बच्चों को शुरू-शुरू में सवाल बनाने में दिक्कत आ रही थी। इसके अलावा संख्या के गुणधर्म पहचानना मसलन संख्या सम या असम है, किस संख्या से भाग दिया जा सकता है आदि के लिए शिक्षक को खुद किसी एक टोली का सदस्य बनकर बच्चों की मदद करनी चाहिए ताकि वे संख्याओं के गुण या नियम पहचान सकें।

उपरोक्त सभी गतिविधियां बच्चों के साथ कुछ समय गुज़ारने के बाद धीरे-धीरे विकसित हुई थीं। शुरू में इन्हें किसी विषय के साथ जोड़कर नहीं देखा था लेकिन बाद में विषय के पाठ्यक्रम एवं पाठ्य पुस्तकों से जोड़ने की कोशिश ज़रूर हुई।

प्राथमिक कक्षाओं के बच्चों के पास ऐसा बहुत सारा समय होता है जब वे शिक्षक के बिना अपनी कक्षा में बैठे रहते हैं। प्राय: इस समय में वे ऐसा काम करते हैं जो शैक्षणिक दृष्टि से बहुत लाभप्रद नहीं होता। कई दफा ऐसा भी होता है कि शिक्षक जो कुछ पढ़ा रहे होते हैं वह बच्चों के लिहाज़ से बहुत सार्थक नहीं बन पाता। बच्चों की कक्षा में पढ़ाए जा रहे पाठ में भागीदारी बहुत कम होती है।

पिछले कुछ वर्षों में मेरी शाला में उपरोक्त गतिविधियां विकसित हुईं, जिनमें बच्चों की भागीदारी कुछ ज़्यादा होती है। इन गतिविधियों को प्रारम्भ कर अगर शिक्षक कक्षा में न भी रहे तो भी ये स्वत:स्फूर्त इतनी ही तीव्रता और संजीदगी से चलती रहती हैं जितनी शिक्षक की उपस्थिति में।

ये गतिविधियां बच्चों के लिए चुनौती, प्रतिस्पर्धा, चिंतन और मज़ा पैदा करती हैं। साथ ही ये कक्षाओं के बंधन से भी मुक्त हैं। इन्हें एक साथ दो से अधिक कक्षाओं के बच्चों के साथ कराया जा सकता है, और हर प्रतिभागी को अपनी समझ और चिंतन को उभारने का चुनौतीपूर्ण मौका प्राप्त होता है। शायद ऐसी ही कुछ अपेक्षाएं तो शिक्षा से होती हैं।


मुकेश मालवीय: बैतूल ज़िले के शाहपुर ब्लॉक में स्थित शासकीय प्राथमिक शाला, पहावाड़ी, में पढ़ाते हैं। एकलव्य के प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम के साथ गहरा जुड़ाव रहा है।

चित्र: एकलव्य द्वारा विकसित, खुशी-खुशी अभ्यास पुस्तिका, कक्षा पहली से।