प्रियदर्शिनी कर्वे एवं राजश्री राजगोपाल

आमतौर पर स्कूली किताबों में प्रकाश की और ध्वनि की गति का ज़िक्र निश्चित ही किया जाता है। साथ ही ध्वनि से भी तेज़ गति से उड़ने वाले सुपर-सोनिक जहाज़ों की बात भी हो जाती है। लेकिन प्रकाश से कुछ ही कम गति किसकी है? क्या कोई गति प्रकाश की गति से ज़्यादा भी हो सकती है? इस बात पर हम ज़्यादा सोच-विचार नहीं करते। खैर, यहां प्रकाश की गति के बारे में सोचने के लिए कुछ आयाम तो खुल ही रहे हैं।

हम सभी जानते हैं कि इस ब्रह्मांड में प्रकाश की गति सबसे तेज़ है। इसी तथ्य से यह सवाल भी उठता है कि प्रकाश के बाद कौन, यानी गति के मामले में प्रकाश के बाद दूसरी पायदान पर कौन खड़ा है?
इससे पहले कि चिंतन शुरु करें बेहतर यही रहेगा कि हम ‘प्रकाश सबसे तेज़ है’ इस कथन को पूर्णता में समझने की कोशिश करें। हालांकि यह काम थोड़ा वक्त खपाऊ हो सकता है, लेकिन इस यात्रा के दौरान यकीनी तौर पर कई दिलचस्प विचार व तथ्य सामने आएंगे।

‘प्रकाश’ अपने आप में बहुत ही विशेष है। एक तो यह ऊर्जा का मूलभूत रूप है और साथ ही सभी पदार्थों का उद्गम भी इसी से हुआ है। आइंस्टीन के सापेक्षता के विशेष सिद्धांत ने सबसे पहले सुझाया कि प्रकाश की गति एक स्थिरांक है। दूसरे शब्दों में कहें तो सापेक्षता के विशेष सिद्धांत के मुताबिक प्रकाश की गति सभी प्रेक्षकों के लिए एक समान यानी c = 3x108 m/s होगी।

आप पाएंगे कि प्रकाश की गति का मामला ब्रह्मांड में अन्य वस्तुओं की गति से काफी फर्क है। आप पूछेंगे, कैसे? शुरुआत आसपास के उदाहरण से करते हैं। जब आप कहते हैं कि कार 40 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से जा रही है तो इस कथन का अर्थ क्या निकलता है? इसका मतलब है कि सड़क किनारे खड़े व्यक्ति के सामने से वह कार 40 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से निकल गई। यानी इस कार की गति सड़क किनारे खड़े व्यक्ति के सापेक्ष 40 किलोमीटर प्रति घंटा है। परन्तु विपरीत दिशा में 20 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से जा रही कार को यह गति 40 किलोमीटर प्रति घंटा नहीं महसूस होती। चूंकि विपरीत दिशा में जा रही कार में बैठा व्यक्ति 20 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से गति कर रहा है, उसके लिए आपकी कार की गति 20+40=60 किलोमीटर/घंटा हो जाएगी। यानी कि उस कार में बैठे व्यक्ति के सापेक्ष आपकी कार की गति 60 किलोमीटर प्रति घंटा है।

संक्षेप में कहें तो कार की गति प्रेक्षक की गति के सापेक्ष होगी। (आपने खुद भी यात्रा करते समय कई बार महसूस किया होगा कि विपरीत दिशा से आ रहा वाहन काफी तेज़ी से गुज़र जाता है, जबकि आपकी दिशा में ही चलने वाला कोई वाहन जब आपको ओवरटेक कर रहा होता है तब वह धीमे-धीमे ऐसा करता प्रतीत होता है।) गति का यह अहसास अन्य सभी चलायमान वस्तुओं या प्राणियों पर भी लागू होता है, चाहे वह ट्रक हो या हवाई जहाज़, चींटी हो अथवा हाथी।

लेकिन जब आप प्रकाश की गति को नापने की कोशिश करें, आपको हर बार एक ही आंकड़ा मिलता है - 3x108 m/s चाहे प्रेक्षक की गति कुछ भी हो। प्रकाश की गति के इस विशेष ओहदे की बुनियादी मान्यता से शु डिग्री करके सापेक्षता के विशेष सिद्धांत ने कई नतीजे प्राप्त किए, भविष्यवाणियां कीं, जिनमें से ज़्यादातर की अब प्रयोगों से पुष्टि हो चुकी है।

एक दूसरी दुनिया
हालांकि गणनाओं के ज़रिए सापेक्षता का यह विशेष सिद्धांत कुछ ऐसे नतीजे भी पेश करता है, जिन्हें प्रयोगों के द्वारा तो सिद्ध नहीं किया जा सकता, लेकिन वे सिद्धांत से सुसंगत हैं। उदाहरण के लिए, यह सिद्धांत बताता है कि दो ‘भौतिक वास्तविकताएं’ (Physical Realities) संभव हैं - एक, जिसमें वस्तुएं प्रकाश की गति से कम पर गमन करती हैं; और दूसरी, जिसमें वस्तुएं प्रकाश की गति से अधिक पर गमन करती हैं। बारीकी से देखें तो आइंस्टाइन के विशेष सापेक्षता सिद्धांत का इस्तेमाल करते हुए गणितीय रूप से केवल यह साबित होता है कि प्रकाश की गति (3x108 m/s) एक बैरियर मात्र है।

आप कहेंगे कि यह कथन इस कथन से किस तरह फर्क है कि प्रकाश की गति सबसे तेज़ है। दरअसल, इसका अर्थ यह निकलता है कि ब्रह्मांड में या तो वस्तुएं प्रकाश से कम गति पर गमन करती हैं (जैसे हमारी दुनिया में), .... या वस्तुएं प्रकाश की गति से ज़्यादा गति से गमन करती हैं (चित्र देखिए)।

अगर किसी वस्तु की गति प्रकाश की गति से कम है, तो उसे कितना भी बढ़ाकर यानी त्वरित करके प्रकाश की गति से ज़्यादा नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार अगर किसी वस्तु की गति प्रकाश की गति से अधिक है, तो उसे घटाकर प्रकाश की गति से कम नहीं किया जा सकता। इसे आइंस्टीन के विशेष सापेक्षता के सिद्धांत के ज़रिए गणितीय रूप से सिद्ध भी किया जा सकता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रकाश की गति एक ऐसी अभेद्य ‘दीवार’ या बैरियर के समान है, जो ब्रह्मांड की समस्त वस्तुओं को दो भागों में बांट देती है, ऐसी दीवार जिसके पार नहीं जाया जा सकता। इस दीवार को हम ‘सी-वॉल’ कह सकते हैं। गणितीय गणनाओं से यह प्रतिपादित किया जा सकता है कि इस दीवार के दोनों ओर की वस्तुएं कभी भी आपस में नहीं मिल सकतीं, इन दो दुनियाओं में कभी भी मिलन नहीं हो सकता।

स्कूल स्तरीय भौतिकशास्त्र और रसायनशास्त्र की किताबें हमें बताती हैं कि हमारे आसपास मौजूद सभी पदार्थ या वस्तुएं परमाणुओं और अणुओं से बनी हुई हैं। हालांकि हम यह नहीं कह सकते कि पदार्थ का बिल्डिंग ब्लॉक परमाणु है, क्योंकि यह परमाणु भी तीन सब-एटॉमिक पार्टिकल्स से बना हुआ है। ये हैं - इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन। अब वैज्ञानिकों ने यह भी पता लगाया है कि इन तीन का भी अपना अंदरूनी ढांचा है और इनमें कई छोटे-छोटे पार्टिकल्स होते हैं। आज के दौर में किसी पदार्थ के निर्माण के मूलभूत घटक ‘क्वार्क’ और ‘लेप्टॉन’ कहलाते हैं। इलेक्ट्रॉन एक लेप्टॉन है और इस प्रकार यह एक बुनियादी घटक है। प्रोटॉन और न्यूट्रॉन ‘क्वार्क्स’ से बने होते हैं।

हम यहां जो बात कर रहे हैं वह हमारी दुनिया की है जहां प्रकाश की गति से ज़्यादा किसी अन्य वस्तु की गति नहीं है। लेकिन जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं, ‘सी-वाल’ के दूसरी तरफ एक अन्य दुनिया भी आबाद है। उस दुनिया के पदार्थ भी कुछ पार्टिकल्स से बने हुए हैं। हालांकि व्यवहार में इन पार्टिकल्स को अब तक देखा नहीं जा सका है, ये केवल सैद्धांतिक तौर पर ही अस्तित्व में हैं। ‘स्विफ्ट’ के लिए ग्रीक में जो शब्द है उसके आधार पर इन पार्टिकल्स का नामकरण ‘टेकिऑन’ किया गया है। इस प्रकार ये ‘टेकिऑन’ ही वह अद्भुत पदार्थ है जिसकी गति प्रकाश की गति से अधिक होती है।

हमारी दुनिया में दूसरी पायदान
इस प्रकार अब तक हम इस निष्कर्ष पर तो पहुंच ही चुके हैं कि यह बात वैज्ञानिक रूप से पूरी तरह सच नहीं है कि प्रकाश की गति ही सबसे तेज़ है। यह बात ज़रूर सही है कि हमारी दुनिया में प्रकाश की गति सर्वाधिक है - अन्य किसी भी पदार्थ की गति प्रकाश की गति को मात नहीं दे सकती, लेकिन यह सिद्धांत पूरे ब्रह्मांड पर लागू नहीं होता। इसके अलावा एक बात और है। हमारी दुनिया के किसी भी पदार्थ की गति को शून्य से ‘सी’ (प्रकाश की गति) के बीच तक बढ़ाया जा सकता है, कम-से-कम सैद्धांतिक तौर पर तो ऐसा किया ही जा सकता है। जो पदार्थ जितना भारी होगा, उसकी गति को बढ़ाने के लिए उतनी ही अधिक ऊर्जा की ज़रूरत होगी। इसलिए निश्चित तौर पर प्रकाश के बाद उसी की गति सबसे तेज़ होगी, जो दुनिया का सबसे हल्का कण होगा। आजकल पार्टिकल एक्सेलरेटर यानी कणों को त्वरित करने वाले यंत्रों के सहारे वैज्ञानिक बेहद हल्के कण बना सकते हैं, जैसे ‘क्वार्क’ व ‘लेप्टॉन’। और इनकी गति को प्रकाश की गति के काफी करीब तक ले जा सकते हैं। लेकिन इन कणों की गति को प्रकाश की गति तक बढ़ाना संभव नहीं है क्योंकि इन कणों का कुछ-न-कुछ निश्चित द्रव्यमान तो होगा ही। चूंकि नए कण लगातार बनाए और ईजाद किए जा रहे हैं, इसलिए आज की स्थिति में प्रयोगशाला में बनाए गए कणों में से ‘रनर-अप’ (द्वितीय पायदान) के नाम की घोषणा करना थोड़ी जल्दबाज़ी होगी।

हालांकि अगर हम हमारे आसपास के प्राकृतिक वातावरण पर नज़र दौड़ाएं तो इस ‘अवार्ड’ के लिए एक नाम सबसे मज़बूत दावेदार के रूप में उभरता है - वह है कॉस्मिक किरणें। ये कॉस्मिक किरणें वास्तव में विभिन्न प्रकार के सब-एटॉमिक पार्टिकल्स के समूह हैं। बाहरी अंतरिक्ष से ये पार्टिकल्स अलग-अलग लेकिन काफी उच्च गति से पृथ्वी तक आते हैं। इस घटना को ‘कॉस्मिक फुहारा’ (कॉस्मिक शॉवर) कहा जा सकता है।

ये पार्टिकल्स बाहरी अंतरिक्ष में मौजूद किन्हीं प्राकृतिक घटनाओं से उच्च ऊर्जा से लबरेज़ होकर अत्यधिक गति हासिल कर लेते हैं। इन कॉस्मिक किरणों के कुछ कण तो इतने तेज़ होते हैं कि वे प्रकाश की गति को लगभग छू ही लेते हैं। इन कणों की इतनी तेज़ गति के पीछे कौन-से कारण हैं यह अब तक राज़ ही बना हुआ है।

कॉस्मिक किरणों का व्यापक पैमाने पर अध्ययन किया जाता रहा है। इसकी वजह भी एकदम साफ है - कॉस्मिक किरणें हमारे सौर-मंडल से बाहर की दुनिया के पदार्थ के नमूने या सेम्पल हैं। संभवत: भविष्य में वैज्ञानिक अपनी प्रयोगशालाओं में इसी प्रकार की गति वाले (या इससे भी तेज़ गति वाले) कणों का विकास कर सकते हैं, लेकिन फिलहाल तो हम बिना किसी भय के ‘प्रकाश के बाद कौन?’ सवाल का जवाब दे सकते हैं। और हमारा जवाब है - कॉस्मिक किरणें।


प्रियदर्शिनी कर्वे: पुणे के श्रीमती काशीबाई नवले कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में पढ़ाती हैं तथा शैक्षणिक संदर्भ (मराठी) के संपादन समूह की सदस्य हैं।
राजश्री राजगोपाल: इलेक्ट्रॉनिक्स एवं टेलिकम्यूनिकेशन में बी. ई. किया है। पुणे में निवास एवं संदर्भ (हिन्दी) के संपादन में मदद करती हैं।
अंग्रेज़ी से अनुवाद: जयजीत: शौकिया अनुवाद करते हैं। भोपाल में निवास।