लेखक :   जूलियन हैविल
अनुवाद - प्रमोद मैथिल 

यानी अभाज्य संख्याएँ पहचानने का एक तरीका

अभाज्य संख्याएँं यानी प्राइम नम्बर इतनी सरल हैं फिर भी इतनी रहस्यमयी। अभाज्य संख्याएँं वे हैं जो केवल अपने से और 1 से पूर्णत: विभाजित होती हैं। पूर्णांकों में उनकी जगह परमाणुओं की तरह है। क्योंकि कोई भी पूर्णांक संख्या किन्हीं विशेष अभाज्य संख्याओं (unique set of primes) के गुणनफल के रूप में लिखी जा सकती है। यूक्लिड के समय से हमें पता है कि अभाज्य संख्याएँ अनन्त हैं। और कोई भी संख्या ऐसी नहीं है जिसे सबसे बड़ी अभाज्य संख्या कहा जा सके। परन्तु कोई सामान्य तरीका नहीं है जिससे समस्त अभाज्य संख्याएँ मिल जाएँ।
अन्य संख्याओं के बीच उनका वितरण आज भी एक रहस्य है जिसकी वजह से कई अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रश्नों पर काम करने की प्रेरणा मिलती रहती है। जैसा कि अठारहवीं सदी के प्रख्यात गणितज्ञ लियोनार्ड ऑयलर ने कहा था, “गणितज्ञों ने आज तक अभाज्य संख्याओं में कोई क्रम खोजने के असफल प्रयास किए हैं और हमें प्रतीत होता है कि यह एक ऐसा रहस्य है जिसे मानव मस्तिष्क कभी नहीं भेद पाएगा।”
हालाँकि सब रास्ते बन्द नहीं हैं। हमारे पास ऐसे तरीके (एल्गोरिदम) हैं जिनसे हम किसी दी हुई संख्या तक की सारी अभाज्य संख्याओं का पता लगा सकते हैं। इस लेख में हम ऐसे ही एक-दो तरीकों को देखेंगे जिसमें बहुत सहजता से अत्यन्त सरल एवं नियमित ढांचे में से अभाज्य संख्याएँ उभरकर आती हैं मानो जादू से निकल रही हों।
ऐसा ही एक तरीका है जिसे ‘सुन्दरम की छलनी’ कहते हैं। भारत के एक अल्पज्ञात गणितज्ञ एस.पी. सुन्दरम ने 1930 में इसकी खोज की थी। सुन्दरम का तरीका कोई भौतिक छलनी नहीं है, परन्तु भाज्य संख्याओं को पहचानने का एक चतुर तरीका है, ताकि वे संख्याएँ ‘छन जाती हैं’ जो अभाज्य हैं।
सुन्दरम की छलनी, समान्तर श्रेणियों से बनी संख्याओं की एक व्यवस्था पर आधारित है। समान्तर श्रेणी का मतलब है संख्याओं की एक ऐसी  जिसमें क्रमिक (successive) संख्याओं के बीच एक निश्चित अन्तर होगा।
सुन्दरम की छलनी में शुरुआती समान्तर श्रेणी में हर अगली संख्या पिछली से 3 अधिक होगी। और इस श्रेणी की शुरुआत 4 से होगी।

4, 7, 10, 13, 16, 19, 22, 25 ...
अगली समान्तर श्रेणी 7 से शुरु करेंगे तथा प्रत्येक क्रमागत संख्या के बीच का अन्तर 5 होगा।

7, 12, 17, 22, 27, 32, 37, 42 ...
एक और समान्तर श्रेणी देखते हैं जिसकी पहली संख्या 10 तथा क्रमागत संख्याओं के बीच अन्तर 7 है।

10, 17, 24, 31, 38, 45, 52, 59 ...
आप इसमें एक पैटर्न उभरता देख सकते हैं कि हर क्रमागत समान्तर श्रेणी की पहली संख्या पिछली समान्तर श्रेणी से 3 ज़्यादा है। और बाद की क्रमिक संख्याओं में जो अन्तर है वह पिछली समान्तर श्रेणी की क्रमिक संख्याओं के बीच के अन्तर से 2 ज़्यादा है।
सभी समान्तर श्रेणियों को एक के नीचे एक जमाने पर हमें दो तरफा अनन्त जमावड़ा मिलता है।

4 7 10 13 16 19 22 25 .....
7 12 17 22 27 32 37 42 .....
10 17 24 31 38 45 52 59 .....
13 22 31 40 49 58 67 76 .....
16 27 38 49 60 71 82 93 .....

इस जमावट में कई व्यवस्थाएँ दिखती हैं - पहली पंक्ति और पहला स्तम्भ एक समान हैं, हर पंक्ति एक समान्तर श्रेणी है, और दो पंक्तिओं के आँकड़ों के अन्तर से हमें जो संख्याएँ मिलती हैं वो भी एक समान्तर श्रेणी है।

अभी तक हमने सुन्दरम द्वारा बताई गई संख्याओं की जमावट को समझने की कोशिश की। अब देखते हैं कि अभाज्य संख्याओं को छानने में यह जमावट हमारी किस तरह से मदद करती है। 

इस जमावट में से किसी एक संख्या को चुन लीजिए। इस संख्या को दो गुना कीजिए और फिर 1 जोड़ लीजिए। अब बताइए कि जो संख्या आपको मिली क्या वह अभाज्य संख्या है? जमावट में से कोई और संख्या चुनकर उसके साथ भी यही सब करके बताइए कि क्या वह संख्या अभाज्य है? इस प्रक्रिया को बार-बार दोहराने पर पता चलता है कि इस जमावट में से कोई भी संख्या चुनें, जवाब सदैव ‘नहीं’ आता है।
परन्तु उन संख्याओं के बारे में क्या जो इस जमावट में नहीं हैं, उदाहरण के लिए 5, 6, 8 आदि?
कुछ प्रयास करने के बाद आप जान गए होंगे कि अगर संख्या ग़् इस जमावड़े में नहीं है तो 2N+1 एक अभाज्य संख्या होगी। और यदि संख्या ग़् इस जमावड़े में है तो 2N+1 अभाज्य संख्या नहीं होगी।

यानी अब तक के प्रयासों को जोड़कर हम इस प्रकार का एक कथन बना सकते हैं:
2N+1 एक अभाज्य संख्या तभी, और सिर्फ तभी, होगी यदि संख्या ग़् इस जमावड़े में न हो।

यदि उपरोक्त कथन सभी संख्याओं ग़् के लिए सही है तब यह अभाज्य संख्याओं की को खोजने का एक तरीका हमें प्रदान करता है। अभाज्य संख्याओं की जग ज़ाहिर बेतरतीबियों के बावजूद यह सब एक अत्यन्त क्रमबद्ध गणितीय ढाँचे के ज़रिए सम्भव हो पा रहा है जो सबसे सरल गणितीय रचनाओं यानी समान्तर श्रेणियों से बना है। है ना चौकाने वाली बात।

अभाज्य संख्याओं का उपयोग कहाँ होता है 

सायबर युग में किसी के गोपनीय डाटा तक पहुँचने के प्रयास को हतोत्साहित करने में, अभाज्य संख्याएँ और बड़ी कम्पोज़िट संख्याओं के गुणनखण्ड निकालने की विधियाँ अहम भूमिका निभाती हैं। इसी तरह, वाहनों व अन्य मशीनों में गियर में भी अभाज्य संख्याएँ कारगर साबित होती हैं। यह पाया गया है कि ऐसे गियर जिनके दाँतों की संख्या प्राइम नम्बर हो या अन्य ऐसी कोई संख्या जिसका कॉमन फेक्टर सिर्फ 1 हो ऐसे गियर आवाज़ कम करते हैं और उनमें टूट-फूट भी कम होती है।

परन्तु क्या हम निश्चित तौर पर कह सकते हैं कि यह कथन समस्त धनात्मक पूर्णांक ग़् के लिए सही है? बिलकुल कह सकते हैं क्योंकि इसे सामान्यता के लिए विधिवत सिद्ध कर पाना सम्भव है। परन्तु सीधा-सीधा हल यहाँ लिख देने की बजाय हम उसे खोजने का मौका आपको दे रहे हैं?

इसमें बहुत ज़्यादा गणितीय दक्षता की ज़रूरत नहीं है। आपको महज़ गुणा, भाग के अलावा हल्का-फुल्का बीजगणित आना चाहिए। अगर आप कहीं फँस जाएँ तो इसी अंक में पृष्ठ 91-92 पर दिए गए तीन चरण मददगार साबित होंगे।

सारांश
अगर आपने तीनों चरण समझ लिए हैं या इसे सिद्ध करने का अपना कोई तरीका खोज निकाला है तो आपने सिद्ध कर दिया है कि ग़् इस जमावट में तभी और सिर्फ तभी पाया जाता है अगर 2N+1 अभाज्य नहीं है। इससे सिद्ध होता है कि सुन्दरम की छलनी कारगर है: ख़् वीं अभाज्य संख्या ढूँढ़ने के लिए आपको केवल (K+1) वीं वो संख्या पता करनी है जो इस जमावट में नहीं है, उसे दोगुना करना है, और उसमें 1 जोड़ना है। [(K+1) वीं संख्या इसलिए क्यांेकि इस जमावट से हमें पहली अभाज्य संख्या यानी 2 नहीं प्राप्त होती।]


जूलियन हैविल: विन्चिस्टर कॉलेज, इंग्लैण्ड में कई साल गणित पढ़ाने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति ली। फिलहाल, सेवानिवृत जीवन का आनन्द ले रहे हैं और ‘द इर्रेशनल’ शीर्षक से किताब लिख रहे हैं। यह लेख निम्न स्रोत से साभार लिया गया है।

http://plus.maths.org/issue50/features/havil/index.html
अँग्रेज़ी से अनुवाद - प्रमोद मैथिल - एकलव्य के भोपाल केन्द्र में कार्यरत। गणित एवं विज्ञान शिक्षण में रुचि।