अनुवाद: पुष्पा अग्रवाल

रस्किन बॉण्ड बच्चों के प्रिय लेखक हैं, हालाँकि वयस्क लोग भी उनकी पुस्तकें पढ़ते हैं। वे अँग्रेज़ी में लिखते हैं, और लम्बे समय से मसूरी, उत्तराखण्ड में रह रहे हैं। उन्होंने बच्चों के लिए तीस से भी ज़्यादा पुस्तकें लिखी हैं। उनसे बातचीत कर रहे हैं अविनन्दन मुखर्जी

अविनन्दन मुखर्जी: वयस्कों के लिए कई उपन्यास लिखने के बावजूद आपको मीडिया द्वारा तथा सामान्यत: भी बच्चों के लेखक के रूप में जाना जाता है। इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?

रस्किन बॉण्ड: निश्चित रूप से मुझे बच्चों के लेखक के रूप में चित्रित किया जाना बुरा नहीं लगता। हालाँकि, 17-18 वर्ष की उम्र में जब मैंने लेखक बनने की शुरुआत की थी, तो मेरा पहला उपन्यास ‘द रूम ऑन द रूफ’ बच्चों की पुस्तक नहीं थी। यह किसी विशेष आयु वर्ग को लक्ष्य करके नहीं लिखी गई थी। यह सामान्य पाठकों के लिए थी और आज भी उन्हीं के लिए है, हालाँकि यह समय-समय पर स्कूलों में काम में ली जाती है। मेरी लिखी हुई शुरू की कुछ कहानियाँ भी बड़ों की पत्रिकाओं के लिए थीं। उनमें से कुछ बच्चों के लिए भी उपयुक्त थीं और इसलिए वे कभी कहानियों के उन संग्रहों में चली जाती थीं जो स्कूलों में इस्तेमाल किए जाते थे। इस तरह बच्चे तथा युवा लोग मेरे नाम के दीवाने हो गए। जब मैं लगभग चालीस का हुआ, यानी मेरे लेखक बनने की राह पर चलने के बीस वर्ष बाद, तो मैंने बच्चों को लक्ष्य करके, बच्चों के लिए ही कहानियाँ लिखना शुरू किया। और यह शुरू हुआ शायद एक छोटी-सी पुस्तक‘ऐंग्री रिवर’ से जिसे मैंने एक लघु उपन्यास के रूप में सामान्य पाठक के लिए लिखकर इंग्लैण्ड में एक प्रकाशक के पास भेजा था। उन्हें यह पाण्डुलिपि वयस्कों के उपन्यास के लिए छोटी लगी, और बच्चों के लिए भी, लेकिन उन्होंने सुझाव दिया कि यदि मैं इस कहानी को थोड़ा बदलकर फिर से लिखूँ तो वो इसे बच्चों के उपन्यास के रूप में प्रकाशित कर देंगे, और ऐसा ही हुआ भी। उसके बाद मैंने और बहुत कुछ लिखा जो विशेषत: बच्चों के लिए नहीं था, कहानियाँ, निबन्ध और अन्य पुस्तकें। इसलिए मैं सिर्फ बच्चों का लेखक बिलकुल भी नहीं हूँ, लेकिन मैं इस तरह का लेबल लगाए जाने का ज़रा भी बुरा नहीं मानता। वास्तव में, मैं सोचता हूँ कि शायद मेरी बच्चों की किताबें, मेरी अन्य किताबों से ज़्यादा सफल थीं, व्यवसायिक तौर पर।

अवि: हिमालय और पर्यावरण की आपके लेखन में एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है... क्या आपने कभी आजकल जिसे ‘पर्यावरणवाद’ कहा जाता है उसे प्रोत्साहन देने के लिए कोई सचेत प्रयास किया है?

रस्किन बॉण्ड: मेरा ख्याल है कि यह स्वाभाविक रूप से होता रहा। मैं 1964 में पहाड़ों में रहने आया था। उससे पहले मैं दिल्ली में था, और लन्दन में था। एक तरह से अब मैं प्रकृति के अधिक निकट आ गया था। प्रकृति ने हमेशा से ही किसी-न-किसी प्रकार की भूमिका अदा की थी, और जब मैं यहाँ पहाड़ों में ही रहने लगा, तब प्रकृति ने मेरे लेखन में और भी बड़ी भूमिका शुरू कर दी। प्रारम्भ में मैं पर्यावरण के प्रति जागरुक नहीं था, मैं जानता भी नहीं था कि उन दिनों इस शब्द का कोई अस्तित्व था। तब, बस इतना ही था कि जैसा मैं सोचता और अनुभव करता था उसका प्रभाव लेखन पर पड़ता था।

अवि: क्या आप सोचते हैं कि बच्चों का साहित्य ग्लोबल वॉर्मिंग और आतंकवाद जैसे विषयों को सम्बोधित करने में कोई भूमिका अदा कर सकता है? क्या आप यह भी सोचते हैं कि कुछ ऐसे विषय भी हैं जिनसे बाल साहित्यकारों को सोच-समझकर बचना चाहिए और जिन्हें बच्चों तक नहीं लाना चाहिए?

रस्किन बॉण्ड: नहीं, ऐसा नहीं है। मैं सोचता हूँ कि ऐसी कहानियाँ लिखना बिलकुल ठीक है जो ग्लोबल वॉर्मिंग और पर्यावरण प्रदूषण जैसे विषयों पर प्रकाश डालें, लेकिन वे ज़्यादा नीरस और उपदेशात्मक न हो जाएँ। हमें बच्चों का ध्यान इनकी ओर आकर्षित करना है, अत: उन्हें ये पाठ या ऐसा ही कुछ नहीं लगना चाहिए। यह सब बहुत ही कुशलतापूर्वक किया जाना चाहिए। जहाँ तक बाल साहित्य में यह करो, यह न करो का प्रश्न है, मैं समझता हूँ कि बच्चे आजकल बहुत जल्दी विकसित हो जाते हैं, और वे बहुत तेज़ी से बाल साहित्य से बड़ों के साहित्य पर छलांग लगाने लगते हैं। जब मैं बच्चा था, मैंने भी ऐसा ही किया था, और यह बात हर उस व्यक्ति पर लागू होती है जो बहुत अधिक पढ़ता है।

अवि: और बहुत-से लोग उन्हें साथ-साथ ही पढ़ते हैं।

रस्किन बॉण्ड: यह सच है, और यह अच्छा है। मुझे लगता है कि जो कहानी आप लिख रहे हैं, यदि उसे कक्षा में प्रयोग किया जाना है या माता-पिता उसे पढ़कर बच्चों को सुनाएँगे, तब आपको यौन सम्बन्धी और अत्यधिक हिंसात्मक विषयों के विस्तार में नहीं जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त और ऐसा कुछ नहीं है जिसे आप बच्चों से दूर रखें, क्योंकि वे किसी-न-किसी प्रकार उस तक पहुँच ही जाएँगे।

अवि: आपके लेखन में एक ऐसी चीज़ है जो एक पाठक के रूप में मुझे हमेशा अच्छी लगती रही है, और वह है अलौकिक और फन्तासी का प्रयोग। मैंने यह इसलिए पूछा है क्योंकि शिक्षाशास्त्रियों में एक ऐसा समूह है जो यह मानता है कि बच्चों के समक्ष जो भी प्रस्तुत किया जाए उसमें कुछ भी विवेकहीन और असंगत नहीं होना चाहिए।

रस्किन बॉण्ड: हाँ, मैं समझ रहा हूँ आप क्या कह रहे हैं। मुझे स्वीकार करना चाहिए कि मैं भूत-प्रेतों की कहानियाँ केवल आनन्द के लिए लिखता हूँ। क्योंकि जब मैं छोटा था तब मुझे भूत-प्रेतों की कहानियाँ, एमा जेम्स के क्लासिक और इस तरह की अन्य कहानियाँ पढ़ना बहुत अच्छा लगता था। और अब भी लगता है। बच्चों को उनमें मज़ा आता है। बच्चे अक्सर अन्य चीज़ों को छोड़कर भूत-प्रेतों और अलौकिक कहानियों का संग्रह पसन्द करते हैं। मेरे विचार से उन्हें इनमें इसलिए मज़ा आता है क्योंकि यह एक प्रकार का सुरक्षित डर है, डरावनेपन की भावना, यह जानते हुए कि आपको व्यक्तिगत रूप से कोई खतरा नहीं है।

हाल ही में मैं 10-12 वर्ष की एक छोटी-सी लड़की से मिला। उसने कहा, “मैं आपकी भूतों-प्रेतों की कहानियाँ पसन्द करती हूँ, लेकिन क्या आप उन्हें और अधिक डरावनी नहीं बना सकते? वे पर्याप्त डरावनी नहीं हैं।” असल में वे काफी दोस्ताना किस्म की हैं। जब आप टी.वी. पर आने वाली डरावनी फिल्में देखते हैं तो उनके सामने मेरी कहानियाँ ज़रा भी डरावनी नहीं लगतीं। मैंने उस लड़की से कहा, “मैं कोशिश करूँगा।” इसलिए मुझे लगता है कि यदि स्कूलों में न भी पढ़ाया जाए, तब भी, मनोरंजन के लिए उन्हें बच्चों को देने में कोई हानि नहीं है।

अवि: क्या आप बच्चों के मानस को बनाने में फन्तासी की कोई भूमिका मानते हैं?

रस्किन बॉण्ड: हाँ, यह कल्पना को उत्तेजित करती है, और आजकल काफी लोकप्रिय है। मैं फन्तासी में इतना पारंगत नहीं हूँ, लेकिन एक प्रकार से अलौकिक का चित्रण करने में सक्षम हूँ। और जब मेरे पास लोगों की कमी हो जाती है तो मैं भूतों की कहानियों पर आ जाता हूँ। आप एक भूत को कभी भी बुला सकते हैं।

अवि: बच्चों की कहानियों के सुखद या दुखद अन्त के विषय में चर्चा करते हुए, एक दिन मेरे एक मित्र ने एक किस्सा सुनाया। उसने एक छोटी लड़की से पूछा कि उसे कैसी कहानियाँ अच्छी लगती हैं, सुखद अन्त वाली या दुखद अन्त वाली? लड़की ने उत्तर दिया, “मैं कैसे बता सकती हूँ? मुझे दुखद अन्त वाली एक भी कहानी पढ़ने को नहीं मिली!”

रस्किन बॉण्ड: शायद, हाँ। लेकिन अगर हम फिर से उन क्लासिक्स पर नज़र डालें, जिन्हें बच्चे पढ़ते हैं लेकिन जोे बच्चों के लिए नहीं लिखे गए थे, तो हम पाते हैं कि अगर उनका अन्त दुखद नहीं था तब भी उनमें दुख था या कुछ भागों में उदासी थी। जैसे, चार्ल्स डिकेन्स के उपन्यास ‘द ओल्ड क्यूरिऑसिटी शॉप’ में लिटिल नेल का मरना, और पाठकों द्वारा पसन्द किए जा रहे पात्रों का मर जाना। डिकेन्स के उपन्यासों में बच्चे अक्सर मर जाते हैं। ‘लिटिल वूमेन’ नामक उपन्यास में परिवार का कोई सदस्य या खास पात्र मर जाएगा - हालाँकि अन्त में शायद सब कुछ अच्छा ही होगा, लेकिन लेखक ने आपको रुलाया भी।

अवि: एंडरसन की अनेक परीकथाओं और ऑस्कर वाइल्ड की कहानियों में भी कई बार ऐसा हुआ।

रस्किन बॉण्ड: हाँ, आपके पास दुखद कहानियाँ भी हैं, और मैं नहीं सोचता कि बच्चों को दुखद अन्त वाली कहानियों से कोई एतराज़ है।

अवि: ‘एलिस इन वंडरलैंड’ में एलिस कहती है,““कहानी की किताब में क्या अच्छा है अगर उसमें चित्र नहीं हैं?” आप बच्चों के कथासाहित्य में चित्रों का क्या स्थान मानते हैं?

रस्किन बॉण्ड: पढ़ने की शुरुआत करने वाले छोटे बच्चों के लिए चित्र बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। अक्सर चित्रों की वजह से बच्चे किताबों को खोलकर उलटने-पलटने लगते हैं। और फिर हो सकता है बच्चे चित्र और लिखाई को जोड़कर देखना शुरू कर दें और तब कहानी पढ़ें। आप देखेंगे कि बहुत छोटे बच्चों की किताबों में बहुत अधिक चित्र होते हैं, सारा महत्व चित्रों का ही होता है। और जैसे-जैसे आप बड़े होते जाते हैं, चित्र कम होते जाते हैं। अगर मुझे बड़ों के लिए लिखते हुए भी कोई बहुत अच्छा चित्रकार मिलता है जो कुछ रेखा चित्र और स्कैच बना सके, मैं उसका स्वागत करूँगा। मुझे याद है कि जब ‘द रूम ऑन द रूफ’ प्रकाशित हुई, उसमें कोई चित्र नहीं था। लेकिन जब 1956-57 में यह पुस्तक ‘द इलस्ट्रेटिड वीकली ऑफ इण्डिया’ में धारावाहिक के रूप में प्रकाशित हुई तो उसमें उनके स्टाफ-कलाकार मारियो के बनाए बहुत-से चित्र थे, और वे बहुत अच्छे थे। मैं चाहता था कि वह पुस्तक जब फिर से छापी जाए तो उनमें से कुछ चित्रों को भी उसमें स्थान मिले... लेकिन चित्र अच्छे होने चाहिए। अगर चित्र अच्छे नहीं हैं तो आपकी किताब बरबाद हो सकती है। एक बार मेरी एक किताब के लिए चित्र एक ऐसे चित्रकार ने बनाए जिसने, मेरे ख्याल से, चित्रकारी सीखना तब शुरू ही किया होगा और ठीक मुख पृष्ठ पर एक लड़का था जिसके दो बाएँ पैर थे! एक अन्य किताब में मेरे पात्र सन् 1850 के थे, जिनको चित्रकार ने जीन्स और टी-शर्टों में दिखाया था।

अवि: इसलिए मुझे लगता है कि सबसे अच्छा यही होगा कि हम ऐसे चित्रकारों को चुनें जो वास्तव में, कथानक के साथ न्याय करें।

रस्किन बॉण्ड: हाँ, एकदम सही।

अवि: जब आप एक कहानी लिखते हैं, क्या आपके मन में पाठक वर्ग की कोई उम्र होती है? जब कोई पाठक एक कहानी अपने जीवन में भिन्न-भिन्न समयों पर पढ़ता है, तो उसके लिए उस कहानी के अर्थ भी भिन्न हो जाते हैं। क्या आपने अपनी कहानियों में जानबूझकर अनेक अर्थों की परतों को सम्मिलित करने का प्रयत्न किया है?

रस्किन बॉण्ड: नहीं। जब मैं लिखता हूँ तो एक विचार के साथ शुरू करता हूँ या किसी चीज़ के साथ जो मुझे अच्छी लगती है या जिसके विषय में मैं कुछ कहना चाहता हूँ। आम तौर पर पाठक ही यह निश्चित करते हैं कि कोई पुस्तक किसके लिए है। जब मैंने लिखना शुरू किया था तो मैं सोचता था कि मैं वयस्कों और युवा वयस्कों के लिए लिख रहा हूँ, लेकिन अक्सर बच्चों को भी मेरी पुस्तकें रुचिकर लगती थीं। साफ बात यह है कि मैं पुस्तकों को किसी खास आयु वर्ग के लिए उपयुक्त अंकित करने के विचार का समर्थन नहीं करता।

जहाँ तक अर्थों की परतों की बात है, मेरे विचार से लिखने की प्रक्रिया में अधिकतर लेखक ऐसा नहीं सोचते। शुरू-शुरू में कहानी अपने-आप ही आगे बढ़ती जाती है। ऐसा तो केवल वे लेखक ही करते हैं जो जान-बूझकर अपने लेखन को कठिन बनाना चाहते हैं, जिससे उन्हें गम्भीरतापूर्वक लिया जाए। वे लोग ही लिखते हुए इनके विषय में सोचते हैं। अर्थों की परतों में जाना ऐसी चीज़ है जिसे समालोचक ही करते हैं।

अवि: और साहित्य के विद्यार्थी भी शायद...

रस्किन बॉण्ड: हाँ। मेरा ख्याल है कि पढ़ना मुख्यत: आनन्द प्राप्ति के लिए होना चाहिए। और सब बातें बाद में आती हैं।

अवि: आपकी कहानियों को स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने के बारे में आपकी क्या प्रतिक्रिया है?

रस्किन बॉण्ड: आम तौर पर उन बच्चों से जो मेरे पास आते हैं और मुझसे कहते हैं कि मेरी कहानियाँ उन्होंने स्कूल में पढ़ी हैं, मैं माफी माँग लेता हूँ। और यह समझाने की कोशिश करता हूँ कि इससे मेरा कोई लेना-देना नहीं है! लेकिन आप जानते हैं कि यह कुल मिलाकर मेरे लिए अच्छा ही रहा है। बच्चे मेरे नाम से परिचित हो जाते हैं, और अक्सर मेरी किताबें खरीदते हैं!

अवि: पुस्तक जगत में ब्लॉक-बस्टर्स के बारे में आपकी राय क्या है जिन्होंने अपने लेखकों को तत्काल करोड़पति बना दिया? जैसे हैरी पॉटर ने किया।

रस्किन बॉण्ड: मुझे इससे कोई परेशानी नहीं है। अगर समग्र रूप से देखें तो मैं समझता हूँ कि इसने बहुत अच्छा ही किया है। हैरी पॉटर जैसी चीज़ ने टीवी और कम्प्यूटर गेम्स में अधिक रुचि लेने वाले बच्चों को वापस पुस्तकों के पास ला दिया है। एक दिन मैंने पुस्तकों की एक स्थानीय दुकान पर एक बच्चे को देखा जो हैरी पॉटर की एक पुस्तक चाहता था! वह मुश्किल से तीन वर्ष का होगा और निश्चित है कि पढ़ना नहीं जानता था। उसके माता-पिता भी उसे यही समझाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वह ज़िद पर अड़ा था। अन्त में बेचारे माता-पिता को वह किताब खरीदनी ही पड़ी। हैरी पॉटर जैसी पुस्तकों ने निश्चित रूप से बहुत-से बच्चों की पढ़ने की आदत में परिवर्तन ला दिया है।

अवि: अब हैरी पॉटर  ाृंखला समाप्त हो गई है और मेरा ख्याल है कि ये बच्चे आगे भी इसी प्रकार की पुस्तकें पढ़ना चाहेंगे।

स्किन बॉण्ड: हाँ, एक तरह से अवश्य ही। आजकल बहुत-से लोग यह अफसोस करते हैं कि बच्चे नहीं पढ़ते और टीवी, कम्प्यूटर गेम्स आदि विघ्न डालने वाली चीज़ें हैं।

अवि: इन्टरनेट...

रस्किन बॉण्ड: हाँ, इन्टरनेट भी। मैं नहीं सोचता कि उस समय भी जब मैं स्कूल में था वास्तव में, बहुत सारे लोग पढ़ने के शौकीन थे। अक्सर हम दो या तीन लोग ही होते थे जिन्हें पढ़ने में आनन्द आता था, हालाँकि उस समय इतने आकर्षण भी नहीं थे। सिर्फ एक रेडियो होता था। वह भी आज की तरह स्पष्ट और विकसित नहीं था। फिर भी हमारे समय में बच्चों की पूरी की पूरी आबादी किताबें पढ़ती हो ऐसा नहीं था!

अवि: उभरते हुए लेखकों के लिए आपकी क्या सलाह है?

रस्किन बॉण्ड: मैं बहुत-से बच्चों से मिलता रहता हूँ जो कहते हैं कि वे ‘बड़ा लेखक’ बनना चाहते हैं। मैं उनसे कहता हूँ कि जो चीज़ें वे अपने आस-पास देखते हैं उनसे ही लिखना शुरू करें और इस बात की फिक्र नहीं करें कि उनका लेखन ‘बहुत अच्छा’ हो। मैंने स्वयं कभी भी महान लेखक बनने के लिए लिखना शुरू नहीं किया था और निश्चित ही मैं हूँ भी नहीं। मैंने इसलिए लिखना शुरू किया था क्योंकि मैं बेट्स, मॉम, बैरी आदि लेखकों का अनुसरण करना चाहता था, वे मुझे उत्साहित करते थे। मैं कहानियाँ सुनाना चाहता था, और अभी भी लिखने के विषय में उत्तेजित रहता हूँ। लिखने के लिए आपको एक शुरुआत करने और उसी से जुड़े रहने की आवश्यकता है। कभी-कभी यह बहुत मुश्किल हो सकता है, और इसके लिए बहुत धैर्य रखने की भी ज़रूरत होती है। दूसरा, अगर आपकी योजना लेखक बनने की है, तब आपको प्रकाशित होने के लिए अपना पैसा कभी खर्च नहीं करना चाहिए। यह मेरे जीवन का एक सिद्धान्त रहा है, और मैं हमेशा इसी पर चला हूँ। जब भी मैंने कोई किताब लिखी, मैंने उसके बदले में कुछ चाहा है। यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो आपके पास ऐसी किताबों का ढेर मात्र रह जाएगा जिन्हें कोई पढ़ना नहीं चाहेगा और आप उन्हें अपने मित्रों व जान-पहचान वालों पर थोपने की कोशिश करते रहेंगे।


अविनन्दन मुखर्जी: हैदराबाद विश्वविद्यालय से अँग्रेज़ी में स्नातकोत्तर। कैम्ब्रिज युनिवर्सिटी प्रेस ओर स्पार्क इण्डिया के साथ कुछ समय तक काम करने के पश्चात् वर्तमान में सर रतन टाटा ट्रस्ट एवं एकलव्य के सामूहिक प्रयासों द्वारा भोपाल में संचालित सेंटर फॉर चिल्ड्रन्स लिट्रेचर से सम्बद्ध।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: पुष्पा अग्रवाल: शौकिया अनुवादक। जयपुर में रहती हैं।