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एक सवाल, अनेक जवाब

सवाल: जब लोग बिजली के झटके से मरते हैं, तो उनकी मौत का कारण विद्युत धारा होती है या वोल्टेज?

काइल स्कोट्जे
ब्रुकफील्ड विस्कांसिन, यू.एस.

जवाब: बिजली के झटके से होने वाली अधिकांश मौतों का कारण हृदय क्षेत्र यानी दिल के करीब से गुज़रने वाली धारा होती है। इसका प्रभाव प्रवाह की अवधि पर निर्भर करता है। इसका असर अलग-अलग लोगों पर अलग-अलग होता है। विद्युत धारा की आवृत्ति - करीब 50 या 60 हर्ट्ज़ - बहुत खतरनाक होती है, और ऐसी आवृत्ति की मात्र कुछ दसियों मिली एम्पियर की धारा भी हृदय के फिब्रिलेशन, उसके झटके खानेेका कारण बन सकती है। तब हृदय सामान्य से बहुत अधिक गति से धड़कता है और मस्तिष्क को रक्त पहुँचाने में असफल रहता है और कुछ ही मिनटों में मौत हो जाती है।

चूँकि शरीर में विद्युत प्रतिरोधक क्षमता होती है, इसलिए उसमें से बहने वाली विद्युत धारा वोल्टेज पर निर्भर करती है। वह त्वचा की नमी पर, तथा शरीर में धारा के प्रवेश और निकास बिन्दुओं की स्थितियों पर भी निर्भर करती है। इसलिए सभी परिस्थितियों के लिए सुरक्षित वोल्टेज तय कर पाना बहुत कठिन है। अभी इंटरनेशनल इलेक्ट्रोटैक्निकल कमेटी (आईईसी) के विद्युत झटके सम्बन्धी कार्यकारी समूह द्वारा ऐसा करने का प्रयास किया जा रहा है, पर बहुत सारे कारक होने के कारण आसान सिफारिशें तय कर पाना मुश्किल लगता है।
बिजली के झटके से होने वाली मौतें कुछ अन्य प्रक्रियाओं के कारण भी हो सकती हैं। इनमें से एक मांसपेशियों का संकुचन है। यदि छाती से विद्युत धारा गुज़रती है तो वह श्वसन क्रिया को अवरुद्ध कर सकती है और इससे दम घुट सकता है। सिर में विद्युत धारा जाने से मस्तिष्क का श्वसन केन्द्र प्रभावित हो सकता है, और इस तरह भी दम घुट सकता है। यहाँ भी वोल्टेज की बजाय विद्युत धारा ही प्रमुख कारक होता है।

बिजली का झटका खाने वाले अधिकांश लोग बच जाते हैं। ऐसा इसलिए नहीं होता कि वे विशेष-रूप से शक्तिशाली होते हैं, बल्कि इसका कारण आम तौर पर कोई ऐसी चीज़ या कारक होते हैं जिसके कारण विद्युत धारा कम हो जाती है जैसे कि पहने हुए कपड़े या जूते, या झटके की अवधि। एक भू-रिसाव परिपथ अवरोधक (earth-leakage circuit breaker) जिसे अवशिष्ट धारा उपकरण (residual current device) या भूमि-बाधा परिपथ अवरोधक (ground-fault circuit interrupter) भी कहा जाता है, और अक्सर एक अचूक उपाय की तरह प्रचारित किया जाता है - झटके की अवधि को कम करने में सहायक होता है, पर यह ऐसी रोकथाम नहीं कर सकता कि झटका लगे ही नहीं।
संक्षेप में, विद्युत धारा और उसकी समयावधि ही जानलेवा होती है।

एन.सी. फ्रिसवैल
इंटरनेशनल इल्क्ट्रोटैक्निकल कमेटी, वर्किंग ग्रुप ऑन इलेक्ट्रिक शॉक
हॉर्शम, वेस्ट ससेक्स, यू.के.

बिजली के झटके से होने वाली क्षति विद्युत धारा के अनुरूप बदलती रहती है। पर, अतिचालकों को छोड़कर अन्य स्थितियों में, इस धारा को प्रवाहित करने के लिए वोल्टेज आवश्यक होता है, इसलिए विद्युतधारा और वोल्टेज में भेद करना थोड़ा बनावटी-सा लगता है। यदि मानव शरीर का प्रतिरोध स्थिर होता तो वोल्टेज भी इस मामले में समान रूप से जायज़ पैमाना होता। लेकिन प्रतिरोध अनेक कारणों से बदलता रहता है।

आकाशीय बिजली की चपेट में आने के मौके कम ही आते हैं लेकिन हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में बिजली के झटके खाने के मौके सहज ही मिलते हैं। मसलन, सामान्य घरेलू बिजली का काम करते हुए या लाइनमेन द्वारा हाई टेंशन लाइन के रखरखाव के दौरान। यदि ऐसे मौकों पर ज़रूरी सावधानी बरती जाए तो गम्भीर दुर्घटना की सम्भावना घट जाती है।

उदाहरण के लिए, सूखी त्वचा का विद्युत-प्रतिरोध 5,00,000 ओम्स होता है। पर गीली त्वचा इसे घटाकर 1000 ओम्स कर देती है - जो खारे पानी के प्रतिरोध का केवल दो गुना ही है। इसलिए शरीर का पानी से तर होना हमारे लिए अधिक खतरनाक होता है।
धारा का प्रवाह पथ बहुत महत्वपूर्ण होता है। यही कारण है कि बिजली का काम करते समय किसी विद्युतरोधी पदार्थ पर खड़ा होना और एक हाथ पीठ के पीछे रखकर काम करना विद्युत धारा के हृदय से गुज़रने की सम्भावना कम कर देता है। ऐसे में ज़मीन की ओर जाने वाली विद्युतधारा आपकी छाती से न गुज़र कर पैरों की ओर चली जाती है। यदि विद्युतधारा हृदय से गुज़रती है तो वह रुक सकता है और विद्युत ऊर्जा के ऊष्मा में बदलने के कारण हमें भयंकर दाह की पीड़ा भोगना पड़ सकती है।

दिष्ट धारा (क़्क्) की अपेक्षा प्रत्यावर्ती धारा (ॠक्) चार या पाँच गुना अधिक खतरनाक हो सकती है, क्योंकि यह ज़्यादा तीव्र मांसपेशी संकुचन को प्रेरित करती है। यह पसीना आने की प्रक्रिया को भी तेज़ करती है, जिससे त्वचा का प्रतिरोध कम हो जाता है और व्यक्ति के शरीर से गुज़रने वाली धारा बढ़ जाती है। सबसे नुकसानदेह श्रेणी 60 सायकिल्स प्रति सेकण्ड या यूँ कहें 60 हर्ट्ज़ की होती है।
थॉमस एडीसन ने इस तथ्य का तब लाभ उठाने की कोशिश की, जब 1886 में न्यूयॉर्क राज्य ने फाँसी के स्थान पर मृत्युदण्ड के किसी अधिक मानवीय स्वरूप को खोजने के लिए एक समिति का गठन किया। एडीसन ने तब हैराल्ड ब्राउन को विद्युत कुर्सी बनाने के लिए नियुक्त किया। एडीसन चाहता था कि कुर्सी उस प्रत्यावर्ती धारा यानी ए.सी. द्वारा संचालित हो, जिसे विद्युत के व्यवसायीकरण हेतु एडीसन के प्रतिद्वन्द्वियों द्वारा पसन्द किया जा रहा था। एडीसन को उम्मीद थी कि यदि इस कुर्सी का इस्तेमाल अपराधियों को मारने के लिए किया गया तो सम्भावित बिजली उपभोक्ता प्रत्यावर्ती धारा को नापसन्द करने लगेंगे और एडीसन द्वारा विकसित दिष्ट धारा यानी डी.सी. की व्यवस्था चुनेंगे। लेकिन अफसोस कि एडीसन की मार्केटिंग की यह रोचक तरकीब विफल हो गई क्योंकि प्रत्यावर्ती धारा सस्ती साबित हुई और इसे लम्बी दूरियों तक ले जाने के लिए इसका वोल्टेज बढ़ाया जा सकता था।

माइक फौलोज
विलैनहाल, वैस्ट मिडलैंड्स, यू.के.

विद्युत ऊर्जा का पथ बदल कर उसे अवांछित जगह पर भेजने पर वह प्राण ले लेती है। ऊर्जा वोल्टेज, धारा और समय का गुणनफल होती है। कुछ ही वोल्ट की 100 माइक्रोएम्प्स जितनी कम विद्युतधारा भी यदि सीधे हृदय में भेज दी जाए, या कुछ सौ वोल्ट की 30 मिलीएम्प्स की धारा एक हाथ से दूसरे हाथ तक भेजी जाए तो ये घातक हो सकती है। दोनों ही मामलों में समस्या तब आती है जब बिजली का झटका हृदय की गतिविधि को अस्त-व्यस्त कर देता है और उसके निलयों (वैंट्रीकल्स) में कम्पन (फिब्रिलेशन) पैदा कर देता है। निश्चित ही, यदि वहाँ तत्काल एक डिफिब्रिलेटर सुलभ हो तो उससे हृदय को एक और झटका देना इस समस्या का हल है।

कई दफा आनन्द दायक बिजली के झटके शौकिया तौर पर भी लिए जा सकते हैं। चित्र ‘अ’ में वेन डी ग्राफ जनरेटर का रेखा चित्र दिखाया गया है। इसमें आवेश को एक बेल्ट की मदद से ऊपर बनी ग्लोब नुमा संरचना तक पहुँचाया जाता है। इस ग्लोब पर किसी व्यक्ति द्वारा हाथ रखने पर चट-चट की आवाज़ के साथ व्यक्ति को हल्के-हल्के झटके महसूस होने लगते हैं। कई दफा झटके महसूस करने वाले व्यक्ति के बाल भी खड़े हो जाते हैं (देखिए चित्र ‘ब’)। इस तरह के जनरेटर आजकल भारत के कई रीजनल साइंस सेंटर में देखे जा सकते हैं।

विद्युत ऊर्जा आपको अन्य तरीकों से भी मार सकती है। मौत की सज़ा देने वाली बिजली की कुर्सी साँस लेने में रुकावट उत्पन्न होने के फलस्वरूप दम घुटने की वजह से व्यक्ति को मारती प्रतीत होती है क्योंकि इससे साँस लेने वाली मांसपेशियाँ अनियंत्रित रूप से संकुचित हो जाती हैं। यह अपने शिकार को थोड़ा पका तो देती है, पर यकीनी तौर पर ऐसा नहीं लगता कि इसके कारण निलयों के फिब्रिलेशन या मस्तिष्क में बिजली जाने से चेतना का तेज़ी से लोप होने जैसी प्रतिक्रियाएँ पैदा होती हैं। अन्य परिस्थितियों में, बड़ी धाराओं (जो वैसे तो तत्काल मृत्यु लाए बगैर शरीर से गुज़र जाती हैं) के कारण भयंकर गहरे दाह पैदा हो सकते हैं। ये ज़रूर आपको और धीरे-धीरे मार डाल सकते हैं। अन्त में, उच्च वोल्टेज का आपके ऊपर प्रवाह (डिस्चार्ज) आपके कपड़ों में आग लगा सकता है, या यदि आप बिजली के खम्भे पर चढ़कर काम कर रहे हैं तो आप वहाँ से नीचे फिका सकते हैं, और इनमें से कोई भी प्रक्रिया घातक हो सकती है।
माइक ब्राउन
नट्सफोर्ड, चेशायर, यू.के.


अँग्रेज़ी से अनुवाद: सत्येन्द्र त्रिपाठी: विज्ञान, टेक्नोलॉजी और दर्शनशास्त्र की पढ़ाई की है। कुछ समय पत्रकारिता के बाद अब होशंगाबाद में अँग्रेज़ी भाषा पढ़ा रहे हैं।
यह लेख ‘न्यू साइंटिस्ट’ पत्रिका द्वारा सन् 2006 में प्रकाशित पुस्तक ‘वाय डोंट पेंग्विन्स फीट फ्रीज़’ से साभार। यह पुस्तक ‘न्यू साइंटिस्ट’ पत्रिका के ‘लास्ट वर्ड’ कॉलम में प्रकाशित विविध प्रश्नों के पाठकों द्वारा भेजे गए जवाबों का संपादित संग्रह है।
चित्र: विविध वेबसाइट से साभार।