किशोर पंवार    [Hindi PDF, 123 kB]

बरसात में या सर्दियों में जब हम स्वास्थ्य लाभ के लिए डॉक्टर के कहने पर सुबह-सुबह घूमने निकलते हैं तो ज़मीनी पौधों की पत्तियों पर पानी की बूँदें जमी दिखाई देती हैं। ऐसा या तो बारिश के बाद होता है या फिर ओस गिरने पर। कमल और अरबी के पत्तों पर पानी नहीं ठहरता। इन पर गिरी पानी की बूँदें चाँदी के मोती-सी चमकती हैं। मुझे लगता है कि ये पारे के मोती से ज़्यादा समानता रखती हैं। इन बूँदों को सीताफल की पत्तियों पर भी बड़े आराम से देखा जा सकता है क्योंकि कमल और अरबी तो आम नहीं हैं परन्तु सीताफल के छोटे-छोटे वृक्ष आसपास प्राकृतिक रूप से उगे नज़र आ ही जाते हैं। कोई नहीं उगाता फिर भी उग रहे हैं की तर्ज़ पर।

बारिश के तुरन्त बाद घास के फूलों और मकड़ियों के जालों पर लटकी पानी की बूँदें एक सुन्दर दृश्यावली प्रस्तुत करती हैं जिनके चित्र आम तौर पर पत्र-पत्रिकाओं में छपते ही रहते हैं। अच्छी बारिश के बाद प्रात:काल में 6-7 बजे तक कुछ पौधों की पत्तियों पर पानी की बूँदें वैसी बिखरी-बिखरी नहीं दिखतीं जैसी कमल और सीताफल के पत्तों पर दिखती हैं। इन पौधों की पत्तियों पर पानी की बूँदें बड़ी करीने से सजी नज़र आती हैं। सब लगभग एक आकार की, बराबर दूरी पर स्थित। ऐसा लगता है कि रात में किसी ने इन पत्तियों का जल-बूँदों से  ाृंगार किया हो। ऐसा ही एक सुन्दर दृश्य मैंने अपने घर की छत पर रखे गमलों में लगे गुलतेवड़ी (बालसम) और गुलाब की पत्तियों में देखा है। आपके लिए मैंने इस सुन्दर नज़ारे को कैमरे में कैद भी कर लिया है।

बालसम को बोलचाल में गुलतेवड़ी या गुलतिवड़ा कहते हैं। यह एक जंगली मौसमी पौधा है जो बरसात में हर कहीं उग जाता है। इसमें लाल, सफेद, गुलाबी, जामुनी - सभी रंगों के फूल खिलते हैं। इसकी हायब्रिड (संकर) किस्में भी बनाई गई हैं जिनमें बड़े आकार के फूल खिलते हैं जिन्हें बाग-बगीचों में लगाया जाता है। ये फूल बड़े नाज़ुक होते हैं। इन फूलों की पंखुड़ियों से मालवा-निमाड़ में संजाबाई के त्यौहार पर गोबर से बनी विभिन्न रचनाओं को लड़कियाँ सजाती हैं। वर्षाकाल में प्राकृतिक रूप से हर कहीं खिलने वाले इस फूल का यह एक सुन्दर उपयोग है।
इसके फलों को छूते ही वे फट पड़ते हैं और उनमें भरे काले बीज आसपास बिखर जाते हैं। फलों के इतने संवेदी होने के कारण ही इसका वानस्पतिक नाम इम्पेशन्स बालसमीना रखा गया है।

इसकी पत्तियाँ लम्बी लैंसियोलेट यानी दोहरे उत्तल लेंस की तरह होती हैं। इसके किनारे लकड़ी काटने वाली आरी के दाँतों जैसे होते हैं। पत्ती के आधार पर से एक मुख्य शिरा निकलती है जो आगे चलकर छोटी-छोटी शिराओं में बँट जाती है। ये अन्त में पत्तियों के किनारों पर पहुँचकर खाँचों के बिलकुल समीप उपस्थित जलरन्ध्रों के पास जाकर खत्म होती हैं। ये ज़ायलम (पानी ले जाने वाले ऊतक) के अन्तिम सिरे होते हैं। यही वह जगह है जहाँ से पानी की बूँदें निकलती हैं। इन्हीं स्थानों पर पानी मोतियों की माला के रूप में जमा होता है, जितने खाँचे उतने मोती। लगभग 16 से 20 तक।

पत्तियों पर उपस्थित जलरन्ध्रों को देखने के लिए मैं पत्तियों को तोड़कर प्रयोगशाला में ले आया। 6 अगस्त का दिन, तेज़ बारिश हो रही थी। बारिश में कॉलेज के बच्चों ने तो रेनी-डे मना लिया, सो मैं खुद ही इसे देखने लगा। सोचा दो-तीन घण्टे हैं अपने पास, कुछ ताँक-झाँक कर लें माइक्रोस्कोप में।

पत्ती को तोड़कर उसकी झिल्ली निकालने लगा तो नज़रें इसके फूल की सुन्दरता व विचित्र बनावट पर ठहर गईं। इसको अँग्रेज़ी में ‘पुलिसमैन्स हैल्मेट’ कहा जाता है। फूल बिलकुल तितली जैसा था, जो एक छोटे-से हरे डण्ठल के सहारे तने से लगा था। फूल में ताँक-झाँक करने पर मुझे कहीं पुंकेसर व स्त्री केसर नज़र नहीं आए। बस फूल के बीच से एक सिगरेट पीने के पाइप जैसी रचना दिखी जिसका सिरा कुछ सफेद रंग का था।
इसे तोड़ स्लाइड पर रखा तो सफेद पावडर जैसा कुछ पदार्थ झड़कर स्लाइड पर गिरा। माइक्रोस्कोप से देखा तो पता चला कि ये तो गुलतेवड़ी के परागकण हैं, ढेर सारे, विटामिन के केप्सूल जैसे। इनमें से कुछ के एक सिरे से पतली-पतली नलियाँ निकल रही थीं। गुच्छे में आपस में उलझी हुई नलियाँ ऐसे नज़र आ रही थीं जैसे हम घरों पर मूँग-मोठ को उगाते हैं और उनके अंकुर आपस में उलझे रहते हैं।
शक्कर के घोल के बिना उगाए परागकणों को उगे हुए देखना।, वह भी इतनी बड़ी संख्या में, एक नया अनुभव था। देखने तो चला था जलरन्ध्र और उलझ गया परागकणों में। यानी जाना था जापान, पहुँच गए चीन!
खैर यह तो पत्तियों के साथ परागकणों का बोनस था। पुन: मुद्दे पर लौटते हैं, पत्तियों पर पानी की बूँदों पर। ये क्या हैं और कहाँ से आती हैं और कैसे बनती हैं?

बिन्दुस्राव
पौधों में पानी की हानि दो प्रकार से होती है। एक तो जलवाष्प के रूप में जिसे वाष्पोत्सर्जन कहा जाता है। यह क्रिया पत्तियों की सतह पर उपस्थित हज़ारों-लाखों वायुरन्ध्रों (स्टोमेटा) द्वारा होती है। पौधों की जड़ों से सोखा गया पानी कुछ पौधों में वाष्प के रूप में उड़ने के साथ कभी-कभी जल की बूँदों के रूप में भी निकलता है। ऐसा लगभग 300 पौधों में देखा गया है। यह घटना द्रवस्राव (गटेशन) कहलाती है। यह अधिकतर शाकीय पौधों में देखी जाती है, जैसे कि केबेज, क्लोवर, स्ट्रॉबेरी, ट्रोपियोलम और टमाटर। परन्तु यहाँ जो उदाहरण दिए जा रहे हैं वे आसानी से आसपास पाए जाने वाले आम पौधों के हैं - गुलतेवड़ी और गुलाब (चित्र)। गुलाब की पत्तियों के किनारों पर भी छोटी-छोटी पानी की बूँदें जमी हुई हैं। यहाँ भी जगह वही है, दाँतों के किनारे। इन दोनों पौधों की पत्तियों के किनारों में यह समानता है, दोनों आरीनुमा हैं।

कब होता है बिन्दुस्राव?
जब पौधों की जड़ों द्वारा पानी सोखने की दर पत्तियों द्वारा किए जाने वाले वाष्पोत्सर्जन की दर से अधिक हो। ऐसे में जड़ों के कॉर्टेक्स में पानी भरा होने के कारण ज़ायलम पर पड़ने वाला जड़दाब (root pressure) धनात्मक हो जाता है। इन्हीं परिस्थितियों में शाकीय पौधों की पत्तियों के किनारे अतिरिक्त पानी जल बूँदों के रूप में जलरन्ध्रों से बाहर निकलता है। यही बिन्दुस्राव है। पादप वैज्ञानिक ओ.एफ.करटिस का मानना है कि पत्तियों से अतिरिक्त पानी निकलना एक तरह का सेफ्टीवॉल्व है जो पौधों की कोशिकाओं में आशूनता (turgidity) को नियंत्रित रखता है। अन्यथा बढ़े हुए जल दाब से पत्तियों की कोशिकाओं को हानि पहुँच सकती है। कोशिकाओं में ज़्यादा पानी भरने से वे फट भी सकती हैं। अत: ये पत्तियाँ प्रेशर कुकर हैं और इनके किनारों पर बने जलरन्ध्र सेफ्टी वॉल्व।
जो पौधे बिन्दुस्राव दर्शाते हैं यदि शक्कर या पोटेशियम नाइट्रेट का तनु घोल उनकी पत्तियों में दिया जाए तो यह क्रिया रुक जाती है क्योंकि पानी की सान्द्रता बढ़ने के कारण जड़ें पानी का अवशोषण कम कर देती हैं।

जड़दाब क्या है?
वह दाब जिसकी वजह से जड़ों की कॉर्टेक्स कोशिकाओं कि इलास्टिक भित्तियों द्वारा पानी को निचोड़कर ज़ायलम वेसल (पानी ले जाने वाली बारीक-बारीक नलियाँ) में भेजा जाता है, जड़दाब कहलाता है। इसकी अधिकतम मात्रा 2 वायुमण्डलीय दाब तक हो सकती है। यह दबाव पानी को किसी केपीलरी में 20.7 मीटर की ऊँचाई तक चढ़ा सकता है। अत: पानी एवं इसमें घुले पदार्थों का तने में ऊपर चढ़ना रसारोहण (ascent of sap) कहलाता है। ऐसा जड़ में उत्पन्न धनात्मक जड़दाब के कारण होता है।

जड़दाब का प्रदर्शन किसी पौधे के उस हिस्से को काटकर, जहाँ से तना शु डिग्री होता है वहाँ मेनोमीटर लगाकर किया जा सकता है। किसी पर्याप्त सिंचित गमले में लगे पौधे के साथ यह प्रयोग किया जा सकता है। जड़ों में उत्पन्न धनात्मक जड़दाब के कारण मेनोमीटर में पारे का तल ऊपर चढ़ जाता है। इससे सिद्ध होता है कि जड़दाब कितना महत्वपूर्ण है।

बिन्दुस्राव एक तरह से जड़दाब का प्राकृतिक प्रदर्शन है, जहाँ पौधों को बिना काटे प्राकृतिक अवस्था में इसे देखा जा सकता है। तो इस वर्षाकाल में या फिर ठण्ड में सुबह-सुबह जल्दी उठकर पौधों को देखना और देसी पौधों की एक ऐसी सूची बनाना जिसके उदाहरण हमारे जाने पहचाने पौधे हों। अगर जल्दी उठकर न देख पाएँ तो रात को 11-12 बजे भी यह कोशिश की जा सकती है। वैसे किताबों में तो सुबह-सुबह ही यह घटना होने का ज़िक्र है। ट्रोपियोलम या केबेज नहीं, गुलतेवड़ी और गुलाब जैसे कई और नाम आपको खोजना हैं। यही है इस बार आपका होमवर्क, नहीं-नहीं फिल्ड वर्क।


किशोर पंवार: होल्कर साइंस कॉलेज, इन्दौर में बीज तकनीकी विभाग के विभागाध्यक्ष और वनस्पतिशास्त्र के प्राध्यापक हैं।
सभी फोटो: किशोर पंवार।