किशोर पंवार  [Hindi PDF, 339 kB]

एक पौधा दस प्रयोग लेखों में अंक 60 एवं 61 में हम रियो बायकलर (Rhoeo bicolor) से जीव विज्ञान के दस प्रयोग कर चुके हैं जो पत्तियों में रंग, स्टोमेटा, क्लोरोप्लास्ट, पत्ती की रचना, कोशिका में लवणों के रवे (रेफाइड्स), पत्तियों पर जलरन्ध्रों की पहचान, जीव द्रव्य कुंचन (प्लाज़मो-लाइसिस), जीव-द्रव्य गति एवं परागकण की रचना और उनके विकास से सम्बन्धित थे। दूसरे लेख के अन्त में मैंने आपसे कहा था कि रियो के साथ ये प्रयोग अभी खत्म नहीं हुए हैं। और आपसे यह भी कहा था कि रियो के पौधों को अपने घर, स्कूल व कॉलेज की क्यारियों या गमले में उगा लीजिए। मुझे पूरी उम्मीद है कि आप यह कर चुके होंगे। तो फिर तैयार हो जाइए इसके साथ कुछ और प्रयोगों का आनन्द उठाने के लिए।

लेकिन पहले रियो की कुछ बातें हो जाएँ। मैक्सिको से आया रियो भारत में सजावटी पौधा है। एक फुट ऊँचा रियो बागीचों में अक्सर देखा जा सकता है। उसका छोटे कद का मोटा तना पत्तियों के नीचे छिपा रहता है। तने में पर्व एवं पर्वसन्धी दिखाई देती हैं। ज़मीन से लगे तने से गोल घेरे में अपस्थानिक जड़ें निकलती हैं जिनकी आन्तरिक रचना एक बीजपत्री जड़ के समान होती है। पत्तियाँ बिना डण्ठल सीधे तने से लगी हुई होती हैं। पत्ती का आधार तने को लगभग आधा घेरे हुए शीथ प्रकार का होता है। और पत्तियाँ स्पाइरल क्रम में होती हैं। पत्तों में समानान्तर शिरा विन्यास पाया जाता है जो 25-30 से.मी. लम्बे और 3-4 से.मी. चौड़े होते हैं। पत्तियाँ मांसल और बीच में लगभग 1 मी.मी. मोटी होती हैं। आकार लैंसियोलेट है। इनका रंग ऊपर से गहरा हरा और नीचे से जामुनी होता है।

रियो का प्रजनन लैंगिक और अलैंगिक तरीकों से होता है। ज़मीन पर उगने वाले पौधे ज़्यादातर जड़ के फैलने से होते हैं। अक्सर आपको रियो के पौधे 20-25 फीट की ऊँचाई तक दीवारों की दरारों में भी दिख जाएँगे - ये पौधे हवा द्वारा पहुँचाए गए बीजों से उगे होते हैं।
तो अब चलते हैं प्रयोगों की ओर।

प्रयोग-11: फूलों की रचना

दो बीजपत्री फूलों की रचना का अध्ययन करने के लिए हमारे आस-पास बहुत-से फूल मिलते हैं। उनमें से कई की रचना का अध्ययन आपने शायद किया होगा जैसे बेशर्म, धतूरा, जासौन (गुड़हल), गुलमोहर आदि परन्तु एक बीजपत्री फूलों का अध्ययन करने हेतु अक्सर प्याज़ के फूलों या फिर गेहूँ का ज़िक्र आता है। मैं अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि स्नातक स्तर की कक्षाओं में एक बीजपत्री फूलों का अध्ययन लगभग उपेक्षित ही रहता है। कहाँ से लाएँ प्याज़ के फूल या गेहूँ की बालियाँ। फिर गेहूँ के फूल वैसे नहीं हैं जैसे सामान्य एक बीजपत्री पौधे के होते हैं। तो लीजिए समाधान हाज़िर है -- रियो के फूल।

रियो में सफेद रंग के फूल रोज़ खिलते हैं - यह सालभर फूलता है। किसी एक फूल को तोड़ लें और फिर इनमें पंखुड़ियों, अंखुड़ियों की संख्या, उनका रंग आदि देखें। याद रहे जब पंखुड़ियाँ और अंखुड़ियाँ, दोनों एक रंग की और एक समान हों तो उन्हें परिदल कहते हैं। पुंकेसर देखे? कितने हैं? पराग-कोष का रंग, आकार, पुंकेसर के तन्तु से पराग-कोष का जुड़ाव, अण्डाशय की आड़ी काट की रचना एवं अण्डाशय में उपस्थित बीजाण्ड आदि की व्यवस्था आदि को ध्यान से हेंडलेंस या डिसेक्टिंग माइक्रोस्कोप से देखें। उनके चित्र बनाएँ और पिछले पेज पर दिए गए प्याज़ के फूल के पुष्प-चित्र से उसकी तुलना करें।

एक बीजपत्री ट्रायमेरस (त्रितयी) फूलों का अध्ययन करने के लिए यह एक अच्छा पौधा है।

प्रयोग-12: तने की रचना
रियो ही क्यों? रियो का तना काटने में भी आसान है जबकि मक्के की काट निकालना कठिन होता है क्योंकि वह काफी कड़क होता है। और ताज़े मक्के का तना आसानी से मिलता भी नहीं है। प्रयोगशाला में अक्सर संरक्षित तने ही प्रयोग हेतु उपलब्ध होते हैं। एक सामान्य तने की आन्तरिक रचना देखने के लिए इसकी एक पतली काट काटनी होगी। उसकी पानी या ग्लिसरीन में एक अस्थाई स्लाइड बनाकर माइक्रोस्कोप में देखें। एक बीजपत्री तने में मुख्य रूप से संवहन बण्डल बिखरे हुए पाए जाते हैं जबकि दो बीजपत्री तने में वे एक गोले में जमे दिखाई देते हैं। एक बीजपत्री तने के संवहन बण्डल में ज़ाइलम और फ्लोएम दिखते हैं परन्तु इनमें केंबियम नहीं पाया जाता। अत: उन्हें बन्द प्रकार के संवहन बण्डल कहते हैं। यह एक बीजपत्री तने की विशेषता है। यहाँ दिए गए मक्के के एक बीजपत्री तने की काट से आपके द्वारा तैयार की गई रियो के तने की काट का मिलान करें और देखें दोनों में क्या समानताएँ एवं असमानताएँ हैं।

प्रयोग-13: स्टार्च के कण
रियो के तने की काट देखने के कई फायदे हैं। एक बीजपत्री तने की रचना समझने के साथ आप इसमें स्टार्च के कण और अन्य क्रिस्टल्स यानी रवे भी देख सकते हैं।
इसके लिए तने की एक पतली काट को आयोडीन घोल से रंगें। माइक्रोस्कोप में पिथ वाली पेरनकायमा कोशिकाओं में ढेर सारे हल्के नीले रंग के स्टार्च ग्रेन दिखाई देंगे (चित्र)। इनकी तुलना आलू में पाए जाने वालेस्टार्च-कणों से करें। उन कोशिकाओं का चित्र भी बनाएँ जिनमें स्टार्च ग्रेन भरे हैं। यानी आलू नहीं तो क्या हुआ, रियो तो हर समय उपलब्ध है।

प्रयोग-14: प्लांट डायमंड

वैसे तो आपने बहुत सारे हीरे देखे होंगे, परन्तु आज आपको कुछ प्लांट डायमंड दिखाते हैं। आवश्यक सामग्री फिर वही -- रियो के तने की काट। पिथ की कोशिकाओं पर फोकस करें। कहीं-कहीं आपको रेफाइड्स व स्टार्च कणों के साथ टेट्राहेड्रल रोह्मबाइडल आकार के कुछ कण दिखाई दिए? बस इन्हीं को माइक्रोस्कोप के लो एवं हाई पॉवर में देखिए। माइक्रोस्कोप के नीचे लगे स्क्रीन (लाइट फिल्टर) से ज़रा लाइट कम-ज़्यादा करिए। आपको हल्के जामुनी रंग के बहुकोणीय चमकते त्रिआयामी (three dimensional) हीरे दिखेंगे।
यही हैं प्लांट डायमंड। इनका चित्र बनाइए। दरअसल ये क्रिस्टल केल्शियम ऑक्ज़ेलेट के हैं। उन्हें सेल इंक्लुज़न (inclusion)) कहते हैं (चित्र)।

प्रयोग-15: जड़ की रचना

एक बीज-पत्री पौधों की जड़ की आन्तरिक रचना का अध्ययन करने के लिए भी रियो एक उपयुक्त पौधा है। ज्वार, मक्का, गेहूँ की जड़ें बहुत पतली होती हैं। और उनकी पतली आड़ी काट निकालना मुश्किल होता है। रियो की जड़ काफी मोटी और मुलायम होती है। इसकी पतली आड़ी काट बड़ी आसानी से बिना पिथ की सहायता से काटी जा सकती है। रियो की जड़ की एक पतली आड़ी काट की पानी में स्लाइड बनाकर सेफ्रेनिन नामक रंजक के ज़रिए उसकी आन्तरिक रचना माइक्रोस्कोप के लो एवं हाई पावर में देखें। कम आवर्धन में भी इसे देख सकते हैं। ऐसे में पूरी जड़ दिखाई देती है।

यहाँ सबसे बाहर की पर्त एक कोशिका मोटी एपिब्लेमा (epiblema) है जिस पर बहुत सारे एक-कोशीय मूल रोम (root hair)) लगे हैं। एक-कोशीय मूल रोम जड़ों की विशिष्टता है। जबकि तने में ये बहुकोशीय होते हैं। बाह्य त्वचा के नीचे पतली कोशिकाओं का बना कॉर्टेक्स है। केन्द्र में देखने पर एंडोडर्मिस से घिरी रचना स्टील कहलाती है (चित्र)। इसमें बहुत-से संवहन पूल (vascular bundle) दिखाई देते हैं। इनकी संख्या प्राय: आठ से अधिक होती है।

काट के केन्द्र में बड़ा-सा पिथ दिखाई देता है जो बड़ी-बड़ी पतली भित्ती वाली पेरनकाइमा कोशिकाओं का बना है। जड़ों के संवहन पूल अरीय (radial)) प्रकार के होते हैं अर्थात् इनमें ज़ाइलम एवं फ्लोएम अलग-अलग त्रिज्याओं पर पाए जाते हैं। ज़ाइलम कोशिकाओं में छोटे सेल यानी प्रोटो-ज़ाइलम परिधि की ओर तथा बड़े मेटा-ज़ाइलम केन्द्र अर्थात् पिथ की ओर होते हैं (चित्र)। ऐसे ज़ाइलम ऊतक को एक्ज़ार्च (exarch) कहते हैं। यह गुण भी जड़ों का विशेष है क्योंकि तने के वेस्क्युलर बण्डल एन्डार्च (endarch)) होते हैं।
आपके द्वारा तैयार की गई काट में इन ऊतकों और पर्तों को यहाँ छपे चित्रों की सहायता से पहचानिए।

रियो के साथ किए गए इन प्रायोगिक कार्य में आपने एक बीजपत्री पौधे के फूल की बनावट तथा जड़ एवं तने की आन्तरिक रचना की विशेषताएँ जानी हैं। अब तक किए गए प्रयोगों से हम पौधों, विशेषकर एक बीजपत्री की आकारिकी (morphology) एवं आन्तरिक रचना (anatomy) को समझ सकते हैं। पौधों की कार्यप्रणाली अर्थात् कार्यिकी (physiology) को समझने के लिए कुछ और प्रयोग फिर कभी। यानी फिल्म अभी खत्म नहीं हुई है। मेरे दोस्तो, आगे-आगे देखिए होता है क्या!


किशोर पंवार: होल्कर साइंस कॉलेज, इन्दौर में बीज तकनीकी विभाग के विभागाध्यक्ष और वनस्पतिशास्त्र के प्राध्यापक हैं। विज्ञान लेखन में गहरी रुचि।