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सवालीराम: पिछले फुटबॉल वर्ल्ड कप में एक ऑक्टोपस (पॉल बाबा) मैच जीतने वाली टीम की सटीक भविष्यवाणी कैसे करता था?

जवाब: जब आपसे यह सवाल पूछा गया था कि पिछले फुटबॉल विश्वकप में जर्मनी के एक ऑक्टोपस - पॉल ने विजेता टीमों की इतनी सटीक भविष्यवाणी कैसे की थी, उन दिनों फुटबॉल की खुमारी चढ़ रही थी। जब आप इस जवाब को पढ़ रहे होंगे तो दुनिया एक नए विश्व चैम्पियन को देख रही होगी।

किसी भी खेल में विजेता टीम के बारे में राय बनाने का एक तरीका है टीमों के बारे में काफी सारी जानकारी इकट्ठी करना। कयास लगाते समय कई बातों का ध्यान रखा जाता है, मसलन - मैच दो बराबरी की टीमों के बीच है या ताकतवर और कमज़ोर टीम के बीच, दोनों टीमों का पिछला रिकॉर्ड, खेल की शैली, खिलाड़ियों का कॉम्बिनेशन, दोनों टीमों के कमज़ोर व मज़बूत पक्ष आदि। खेल विशेषज्ञ हों या सट्टा लगाने वाले, उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखकर विजेता टीम के बारे में अपनी राय बनाते हैं। इसे हम सोच-विचार कर, विभिन्न जानकारी का विश्लेषण कर राय बनाना कह सकते हैं।

विजेता टीम के बारे में राय बनाने का एक दूसरा तरीका हो सकता है - अपने दिल की आवाज़ को सुनना। दूसरे शब्दों में कहूँ तो किसी टोटके की मदद से अनुमान लगाना। अनुमान लगाने के विविध तरीके हो सकते हैं जैसे - दोनों टीमों के नाम लिखकर पर्ची डालना और किसी बच्चे से एक पर्ची उठवाना (पर्ची उठाने का काम कोई तोता भी कर सकता है), दोनों टीमों की कुण्डली बनाकर ग्रहों की स्थिति को आधार बनाकर, किन्हीं अंक ज्योतिषीय गणना के आधार पर, या ऊंट, गधा, कुत्ता, कछुआ, ऑक्टोपस आदि से विजेता का चुनाव करवाना।
कई संस्कृतियों में छोटे बच्चे, पक्षी और प्राणी में दैवत्व के करीब होने की मान्यता है। इसलिए माना जाता है कि ये दैववाणी के वाहक हैं।
2010 की विश्वकप फुटबॉल प्रतियोगिता से पहले ही ऑक्टोपस पॉल अपनी सटीक भविष्यवाणी की धाक जमा चुका था। 2008 के यूरोकप में पॉल ने जर्मनी के विविध देशों से होने वाले मैचों की विजेता टीम की काफी सटीक भविष्यवाणी की थी। इसलिए 2010 के विश्वकप के समय जर्मनी के पॉल ऑक्टोपस की भविष्यवाणी को काफी महत्व दिया गया।

ऑक्टोपस पॉल की भविष्यवाणी-दैववाणी को जानने का तरीका एकदम सामान्य था। पॉल को जिस एक्वेरियम में रखा जाता था उसमें उसके खाद्य पदार्थों से भरे दो डिब्बे रखे जाते थे जिन पर मैच खेलने वाले देशों के झण्डे बने होते थे। पॉल जिस डिब्बे के भोज्य पदार्थ को सबसे पहले चुनता था उसे विजेता मान लिया जाता था। 2008 में पॉल ने हर बार जर्मनी को ही चुना। तो वह 6 में से 4 बार सही निकला। इस कारण 2010 के विश्वकप में पॉल पर लोगों की नज़र तो थी लेकिन 4 मैच की सही भविष्यवाणी के बाद ही (जिसमें हर बार जर्मनी विजेता रही) वह विश्वभर प्रख्यात हुआ। इस बार तो सारे 8 मौकों पर पॉल द्वारा चुनी गई टीम ही विजेता रही थी। और इस बार भी पॉल ने जर्मनी को ही ज़्यादातर चुना। लेकिन कुछ एक फर्क थे - जिस एक मैच में जर्मनी हारी, उसमें भी पॉल ने विजेता को सही चुना। और फाइनल में, जिसमें जर्मनी खेल ही नहीं रही थी, वहाँ भी सही विजेता को ही चुना। अगर पॉल से दैववाणी नहीं हो रही थी, तो पॉल की सटीक भविष्यवाणियों को हम कैसे समझ सकते हैं?

तथ्यों का बिलकुल सहारा न लेते हुए भी यदि प्रोबेबिलिटी के सिद्धान्त के हिसाब से देखें और फुटबॉल के खेल में मैच ड्रॉ (बेनतीजा) की सम्भावना को छोड़ दिया जाए तो जीतने वाली टीम का चांस 1/2 होता है। तो पॉल (या उसके ट्रेनर) के द्वारा किसी चुनी हुई टीम के जीतने की सम्भावना यही है। पॉल के चयन के सही होने की सम्भावना भी यही 1/2 है। तो पॉल के लगातार (8 बार) सही होने की सम्भावना क्या है? 1/2 x 1/2 x 1/2 x 1/2 x 1/2 x 1/2 x 1/2 x 1/2, यानी कि 1/256. इसका मतलब है कि संयोग से पॉल की सटीक भविष्यवाणी की सम्भावना दुर्लभ ज़रूर थी परन्तु बहुत ज़्यादा असम्भव भी नहीं। लेकिन दुर्लभ घटनाएँ भी कभी-न-कभी तो घटती ही हैं। और आम तौर पर हमें शायद सिर्फ उन भविष्यवाणियों का पता चलता है जो दुर्लभ व सफल होती हैं - हज़ारों, लाखों गलत भविष्यवाणियाँ तो चर्चा में आती ही नहीं हैं।

और अगर पॉल के मामले में संयोग या सिर्फ चांस की बात नहीं मानते हैं, तो क्या वैकल्पिक सम्भावनाएँ हो सकती हैं? वैज्ञानिकों का एक समूह जो प्राणियों के व्यवहार का अध्ययन करता है, उनके मुताबिक कई जीवों को पर्याप्त रूप से ट्रेनिंग दी जा सकती है। आखिर सर्कस में जीव किस्म-किस्म के करतब करते हैं। ऑक्टोपस भी काफी इंटेलिजेन्ट माने जाते हैं और ऐसे जीवों में शुमार हैं जिन्हें कुछ हद तक ट्रेन किया जा सके। तो हो सकता है कि पॉल ऑक्टोपस को भी ट्रेन करके मैच विजेता टीम को चुना जा रहा था। फिर तो पॉल के ट्रेनर (या उनके सम्पर्क में कोई व्यक्ति टीमों के तथ्यों को लेकर विश्लेषण करते हुए अनुमान लगा रहे थे और) शायद पॉल को किसी गुप्त तरीके से इशारा कर रहे थे।

यह भी हो सकता है कि पॉल को जर्मनी का झण्डा पसन्द आ गया हो। इस बात की सम्भावना कई लोगों को लगी क्योंकि पॉल ने ज़्यादातर जर्मनी के झण्डे को ही चुना। तो हो सकता है कि पॉल को जर्मनी के झण्डे को चुनने की ट्रेनिंग दी गई थी। वास्तव में, ऑक्टोपस कलर ब्लाइंड होते हैं इसलिए किसी झण्डे का रंग-बिरंगा होना खास मायने नहीं रखता। लेकिन वे गहरे और फीके रंगों में फर्क कर सकते हैं और आकार का भी उनको अन्दाज़ा रहता है। जर्मनी का झण्डा काली, लाल और पीली क्षैतिज धारियों का बना है। मुमकिन है कि पॉल इस पैटर्न को पहचानने लगा। ट्रेनिंग न भी होती तो भी पॉल का इन धारियों को पसन्द करना कुछ अद्भुत बात न होती, यदि आम तौर पर ऑक्टोपस को क्षैतिज धारियाँ स्वाभाविक पसन्द होतीं।

यह तो हुआ तर्क पॉल द्वारा जर्मनी चुनने के लिए। लेकिन पॉल ने 2010 में जो एक बार जर्मनी के मैच में दूसरी टीम को सही विजेता चुना, और जो एक बार विजेता टीम को जर्मनी के न खेलते हुए भी सही चुना था, इसके बारे में हम क्या कह सकते हैं? क्या पॉल ने गलती से सही विजेता को चुना? जर्मनी के अलावा विजेता टीमों के देश के झण्डों को देखा जाए तो उन सब पर गहरी-गाढ़ी क्षैतिज धारियाँ थीं, लेकिन काली और फिर गाढ़ी धारियाँ किसी पर भी नहीं थीं।

एक और बात की सम्भावना है। ऐसा भी हो सकता है कि चांस हो या ट्रेनिंग, पॉल शायद भविष्यवाणी करते समय गलत था। लेकिन, उसके चयन की खबर अगर टीम के खिलाड़ियों तक पहुँच रही होती तो सम्भव है कि उससे प्रभावित होकर मैच में उन्होंने ऐसे खेला कि परिणाम वही हुआ जो पॉल ने बतलाया था। घटनाओं से पहले दिए गए सुझाव या अन्य बातों का नतीजों पर असर, यह कोई नई बात नहीं है - शोध से पता चलता है कि कुछ परिस्थितियों में तो ऐसा होता है। शायद जर्मनी की टीम के खिलाड़ियों को पॉल की भविष्यवाणियों पर इतना विश्वास था कि जब पॉल ने उनकी हार की भविष्यवाणी की, वो इतने चिन्तित हो गए कि तनाव के कारण वे हारे। ऐसी भविष्यवाणियों को ‘सेल्फ फुल फिल्लिंग प्रोफैसीस’ कहते हैं।

पॉल की इतनी सटीकता खेल प्रेमियों, सट्टा व्यवसायियों और वैज्ञानिकों, सबके लिए हैरत और कौतूहल का विषय बन गई थी।
पॉल ऑक्टोपस अक्टूबर, 2010 में ही चल बसा। उसकी मौत के साथ आगे पॉल के साथ इस बात की जाँच करने की सम्भावना भी खत्म हो गई कि आखिर इस किस्से में इन सबमें से कौन-से कारण ज़्यादा महत्वपूर्ण थे।


इस जवाब को माधव केलकर और विनता विश्वनाथन ने तैयार किया है।

माधव केलकर: ‘संदर्भ’ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।
विनता विश्वनाथन: ‘संदर्भ’ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।


 

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