गेब्रिएल गार्सिया मार्केज़

   कहानी

एक बहुत छोटे-से गाँव की सोचिए जहाँ एक बूढ़ी औरत रहती है, जिसके दो बच्चे हैं। पहला सत्रह साल का और दूसरी चौदह की। वह उन्हें नाश्ता परस रही है और उसके चेहरे पर किसी चिन्ता की लकीरें स्पष्ट हैं। बच्चे उससे पूछते हैं कि उसे क्या हुआ तो वह बोलती है, “मुझे नहीं पता, लेकिन मैं इस पूर्वाभास के साथ जागी रही हूँ कि इस गाँव के साथ कुछ बुरा होने वाला है।”

दोनों अपनी माँ पर हँस देते हैं। कहावत है कि जो कुछ भी होता है, बुज़ुर्गों को उनका पूर्वाभास हो जाता है। लड़का पूल खेलने चला जाता है, और अभी वह एक बेहद आसान गोले को जीतने ही वाला होता है कि दूसरा खिलाड़ी बोल पड़ता है, “मैं एक पेसो की शर्त लगाता हूँ कि तुम इसे नहीं जीत पाओगे।”
आसपास का हर कोई हँस देता है। लड़का भी हँसता है। वह गोला खेलता है और जीत नहीं पाता। शर्त का एक पेसो चुकाता है और सब उससे पूछते हैं, “क्या हुआ, कितना तो आसान था उसे जीतना।” वह बोलता है, “बेशक, पर मुझे एक बात की फिक्र थी जो आज सुबह मेरी माँ ने यह कहते हुए बताई कि इस गाँव के साथ कुछ बहुत बुरा होने वाला है।”

सब लोग उस पर हँस देते हैं और उसका पेसो जीतने वाला शख्स अपने घर लौट आता है, जहाँ वह अपनी माँ, पोती या फिर किसी रिश्तेदार के साथ होता है। अपने पेसो के साथ खुशी-खुशी कहता है, “मैंने यह पेसो दामासो से बेहद आसानी-से जीत लिया क्योंकि वह मूर्ख है।”
“और वह मूर्ख क्यों है?”
“भई! क्योंकि वह एक सबसे आसान-सा गोला अपनी माँ के एक पूर्वाभास की फिक्र में नहीं जीत पाया जिसके मुताबिक इस गाँव के साथ कुछ बहुत बुरा होने वाला है।”

आगे उसकी माँ बोलती है, “तुम बुज़ुर्गों के पूर्वाभास की खिल्ली मत उड़ाओ क्योंकि कभी-कभार वे सच भी हो जाते हैं।”
रिश्तेदार इसे सुनती है और गोश्त खरीदने चली जाती है। वह कसाई से बोलती है, “एक पाउंड गोश्त दे दो या ऐसा करो कि जब गोश्त काटा ही जा रहा है तो बेहतर है कि मुझे दो पाउंड ज़्यादा दे दो क्योंकि लोग यह कहते फिर रहे हैं कि गाँव के साथ कुछ बहुत बुरा होने वाला है।”

कसाई उसे गोश्त थमाता है और जब एक दूसरी महिला एक पाउंड गोश्त खरीदने पहुँचती है तो उससे बोलता है, “आप दो ले जाइए क्योंकि लोग यहाँ तक कहते फिर रहे हैं कि कुछ बहुत बुरा होने वाला है और उसके लिए तैयार हो रहे हैं और सामान खरीद रहे हैं।”
वह बूढ़ी महिला जवाब देती है, “मेरे कई सारे बच्चे हैं। सुनो, बेहतर है कि तुम मुझे चार पाउंड दे दो।”

वह चार पाउंड गोश्त लेकर चली जाती है और कहानी को लम्बा न खींचने के लिहाज़ से बता देना चाहूँगा कि कसाई का सारा गोश्त अगले आधे घण्टे में खत्म हो जाता है। वह एक दूसरा बैल काटता है, उसे भी पूरा-का-पूरा बेच देता है और अफवाह फैलती चली जाती है। एक वक्त ऐसा आ जाता है जब उस गाँव की समूची दुनिया कुछ होने का इन्तज़ार करने लगती है। लोगों की हरकतों को जैसे लकवा मार गया होता है कि अकस्मात दोपहर बाद के दो बजे, हमेशा की ही तरह गर्मी शुरू हो जाती है। कोई बोलता है, “किसी ने गौर किया कि कैसी गर्मी है आज?”

लेकिन इस गाँव में तो हमेशा से गर्मी पड़ती रही है। इतनी गर्मी जिसमें गाँव के ढोलकिए बाजों को टार से छापकर रखते थे और उन्हें छाँव में बजाते थे क्योंकि धूप में बजाने पर वे टपककर बरबाद हो जाते।
“जो भी हो,” कोई बोलता है, “इस घड़ी इतनी गर्मी पहले कभी नहीं हुई थी।”
“लेकिन दोपहर बाद के दो बजे ऐसा ही वक्त है जब गर्मी सबसे अधिक हो।”
“हाँ, लेकिन इतनी गर्मी भी नहीं जितनी कि अभी है।”

वीरान-से गाँव में शान्त खुले चौपाल में अचानक एक छोटी चिड़िया उतरती है और आवाज़ उठती है, “चौपाल में एक चिड़िया है।”
और भय से काँपता समूचा गाँव चिड़िया को देखने आ जाता है।
“लेकिन सज्जनों, चिड़ियों का उतरना तो हमेशा से ही होता रहा है।”
“हाँ, लेकिन इस वक्त पर कभी नहीं।”

गाँववासियों के बीच एक ऐसे तनाव का क्षण आ जाता है कि हर कोई वहाँ से चले जाने को बेसब्र हो उठता है, लेकिन ऐसा करने का साहस नहीं जुटा पाता।

“मुझमें है इतनी हिम्मत,” कोई चिल्लाता है, “मैं तो निकलता हूँ।”
अपने असबाब, बच्चों और जानवरों को गाड़ी में समेटता है और उस गली के बीच से गुज़रने लगता है जहाँ से लोग यह सब देख रहे होते हैं। इस बीच लोग कहने लगते हैं, “अगर यह इतनी हिम्मत दिखा सकता है तो फिर हम लोग भी चल निकलते हैं।”

और लोग सच में धीरे-धीरे गाँव को खाली करने लगते हैं। अपने साथ सामान, जानवर सब कुछ ले जाते हुए।
जा रहे आखिरी लोगों में से एक बोलता है, “ऐसा न हो कि इस अभिशाप का असर हमारे घर में रह-सह गई चीज़ों पर आ पड़े” और आग लगा देता है। फिर दूसरे भी अपने-अपने घरों में आग लगा देते हैं।
एक भयंकर अफरा-तफरी के साथ लोग भागते हैं, जैसे कि किसी युद्ध के लिए प्रस्थान हो रहा हो। उन सबके बीच से हौले-से पूर्वाभास कर लेने वाली वह महिला भी गुज़रती है।
“मैंने बताया था कि कुछ बहुत बुरा होने जा रहा है और लोगों ने कहा था कि मैं पागल हूँ।”


गेब्रिएल गार्सिया मार्केज़: कोलम्बियन लेखक जिनका विभिन्न विधाओं जैसे कहानी, उपन्यास, संस्मरण आदि में लेखन बेहद सशक्त एवं लोकप्रिय है। इन्हें 1982 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: श्रीकांत दुबे: हिन्दी कवि और कहानीकार। गजानन माधव मुक्तिबोध युवा कविता सम्मान प्राप्त।
सभी चित्र: शिवात्मिका लाला: एकलव्य, भोपाल के डिज़ाइन समूह से सम्बद्ध हैं।