यतेन्द्र द्विवेदी

मेरे विद्यालय (शा. प्रा. शाला. बन्दी, विकासखण्ड केसला) में एक पुस्तकालय है, जिसमें विभिन्न प्रकार एवं विभिन्न विषयों की पुस्तकें हैं। चूँकि बचपन से ही पुस्तकों के प्रति विशेष लगाव रहा है, तो मैं चाहता था कि मेरे विद्यार्थियों में भी पुस्तकों के प्रति विशेष लगाव उत्पन्न हो। पर यह इतना सरल न था क्योंकि छोटे बच्चों में शब्दों और पढ़ने की तुलना में चित्रों को देखने की ललक ज़्यादा रहती है। जब इस बात को समझा तो मैंने शब्द-रहित मूक किताबें जो सिर्फ चित्रों वाली होती हैं, पुस्तकालय में रख दीं। मैंने देखा कि बच्चे रंग-बिरंगे चित्रों को देखकर आकर्षित हुए और किताबों के प्रति उनका आकर्षण बढ़ा लेकिन मंज़िल अभी काफी दूर थी। ऐसा करते हुए कई महीने बीत गए। एक दिन कक्षा पाँचवीं का एक छात्र हिमांशु मेरे पास आया और पूछा, “सर, ये डिब्बे में क्या भरना है?”

दरअसल, वह बात कर रहा था चकमक नामक पत्रिका में प्रकाशित वर्ग पहेली की। यह वर्ग पहेली मिठाइयों के चित्रों पर आधारित थी।

हिमांशु का यह प्रश्न और जिज्ञासा मेरे लिए प्रसन्नता का विषय थे क्योंकि शायद मैं अपने कार्य में कहीं सफल हो रहा था। विभिन्न प्रकार की मिठाइयों और व्यंजनों के नाम तो शायद ही उस ग्रामीण एवं आदिवासी अंचल के लोग जानते हों। परन्तु फिर भी वे कुछ तो जानते ही होंगे, ऐसा सोचकर मैंने हिमांशु के साथ ही अन्य बच्चों को टेबल के पास बुलाया और उन्हीं की भाषा में समझाते हुए कहा, “बच्चों, इन डिब्बों को वर्ग पहेली कहते हैं, इनमें हमें मिठाइयों के नाम लिखने हैं जिनके चित्र यहाँ पर दिए हुए हैं। इन्हें दाएँ से बाएँ तथा ऊपर से नीचे के क्रम में भरेंगे।” इस प्रकार समझाकर मैं स्वयं भी उनके साथ वर्ग पहली भरने लगा। मैं चित्र दिखाकर पूछता जाता था, “यह क्या है?” उनके जवाब होते, “रसगुल्ला, गुलाब जामुन, पेड़ा, लड्डू, खीर।” मुझे यह सुनकर इतना तो पता चल ही गया कि ये लगभग सभी मिठाइयों और व्यंजनों के नाम जानते हैं, फिर मैंने एक चित्र पर उंगली रखकर पूछा कि यह क्या है। तब सिर्फ हिमांशु ने कहा, “सर, ये बर्गर है।” मेरे लिए यह कोई आश्चर्य की बात न थी कि बर्गर के बारे में हिमांशु कैसे जानता होगा। फिर भी मैंने पूछा, “क्या तुमने कभी बर्गर खाया है?” उसका जवाब था, “नहीं सर, खाया तो नहीं पर टी.वी. पर विज्ञापन में देखा है।” कुछ अन्य मिठाइयों के नाम जो शायद वे नहीं जानते थे जैसे मैसूर पाक, इमरती आदि, मैंने बच्चों को बताए। वर्ग पहेली पूर्ण हुई तो बच्चे भी आनन्दित हुए, कुछ के तो मुँह में पानी भी आ गया था।

इस पूरी प्रक्रिया में बच्चों ने वर्ग पहेली भरना सीखा, वे विभिन्न प्रकार के शब्द लिखना सीखे, उन्हें वर्तनी का ज्ञान भी हुआ। साथ ही, उनको नई-नई मिठाइयों के नाम भी पता चले। इस सम्पूर्ण क्रिया-कलाप में बच्चों का जुड़ाव रहा तथा आनन्ददायक वातावरण में बच्चों ने कुछ नया सीखा।


यतेन्द्र द्विवेदी: शासकीय प्राथमिक शाला बंदी, विकास खण्ड केसला, ज़िला होशंगाबाद में सन् 2009 से शिक्षक हैं। स्कूल में पढ़ाने के अलावा उनकी साहित्य व संगीत में गहरी रुचि है। यह लेख एकलव्य के जश्ने-तालीम कार्यक्रम के तहत डाइट पचमढ़ी के साथ फरवरी 2019 में आयोजित क्रियात्मक अनुसंधान एवं लेखन कार्यशाला के दौरान लिखा गया था।

चित्र: हीरा धुर्वे: भोपाल की गंगा नगर बस्ती में रहते हैं। चित्रकला में गहरी रुचि। साथ ही ‘अदर थिएटर’ रंगमंच समूह से जुड़े हुए हैं।