सवाल: पानी के बिना जीवित क्यों नहीं रह सकते हैं?
     -शासकीय आश्रमशाला बिजुधावड़ी, धारणी, महाराष्ट्र

जवाब: हमारा शरीर 60-75 प्रतिशत तो पानी से बना है। जैसे ही शरीर में पानी की 1 प्रतिशत कमी होती है, आपको प्यास लगने लगती है। यदि पानी की क्षति 4-5 प्रतिशत हो जाए तो निर्जलन की स्थिति शुरू हो जाती है, प्यास बढ़ने लगती है और शारीरिक क्रियाओं पर नियंत्रण कमज़ोर पड़ने लगता है। और यदि पानी की क्षति 10 प्रतिशत हो जाए, तो समझो टाँय-टाँय फिस्स। तो सवाल उठता है कि क्यों बिन पानी सब सून...पानी में ऐसा क्या है या शरीर की ऐसी कौन-सी ज़रूरत पानी पूरी करता है कि हम उसके बिना जीवित नहीं रह सकते?

पानी की संरचना और महत्व
धरती पर जीवन पूरी तरह पानी पर आश्रित है। और हो सकता है कि ब्रह्माण्ड में कहीं भी जीवन के अस्तित्व के लिए पानी अपरिहार्य हो। इस कथन को समझने के लिए पहले पानी की आणविक संरचना की कुछ बुनियादी बातें समझ लेते हैं।
वैसे तो पानी का अणु मात्र तीन परमाणुओं (दो हाइड्रोजन और एक ऑक्सीजन) से बना है लेकिन इसकी अनोखी संरचना इसे असाधारण गुण प्रदान करती है। पानी एक अत्यन्त असममित अणु है। इसका O परमाणु दो H परमाणुओं से जुड़ा होता है। ये दोनों आबन्ध एक सरल रेखा में नहीं होते। और तो और, दोनों O-H  आबन्ध ध्रुवीकृत होते हैं (अर्थात् इनमें आवेशों का वितरण एक समान नहीं होता)। इस ध्रुवीयता की वजह से पानी के अणु के तीनों परमाणु हाइड्रोजन आबन्ध नामक विशेष किस्म के बन्धन बना सकते हैं। पानी की जीवनदायी प्रकृति इन्हीं गुणधर्मों पर टिकी है।

जब हाइड्रोजन का परमाणु ऑक्सीजन से बन्धन बनाता है तो इसके एक सिरे पर धनात्मक तथा दूसरे सिरे पर ऋणात्मक आवेश पैदा हो जाता है – O वाले सिरे पर ऋणात्मक और H वाले सिरे पर धनात्मक। आवेशों में इस अन्तर को ध्रुवीयता कहते हैं और यही इस बात का निर्धारण करता है कि पानी का अणु अन्य अणुओं के साथ कैसे अन्तर्क्रिया करेगा।
इसी ध्रुवीयता की वजह से पानी के अणु एक-दूसरे के साथ हाइड्रोजन बन्धन बनाते हैं। इन हाइड्रोजन बन्धनों के कारण पानी के अणुओं में एक-दूसरे से चिपकने की अत्यधिक क्षमता होती है। यह गुण पानी के ऊष्मीय गुणधर्मों में साफ झलकता है। जब पानी को गर्म किया जाता है तो अधिकांश ऊष्मीय ऊर्जा हाइड्रोजन बन्धनों को तोड़ने में खर्च हो जाती है। स्तनधारी पसीना छोड़ते हुए इसी गुणधर्म का फायदा उठाते हैं। पानी को वाष्पित करने के लिए ज़रूरी ऊर्जा का कुछ हिस्सा शरीर से सोखा जाता है जिसकी वजह से शरीर ठण्डा रहता है। यह शरीर के तापमान के नियमन का एक तरीका है।
पानी दबाव के संकीर्ण परास में ही तीनों अवस्थाओं में रह सकता है। यह गुण जीवन के फलने-फूलने के अवसर प्रदान करता है। लेकिन देखा जाए तो जीवन को सम्भव बनाने के लिए जिस नज़ाकत भरे रासायनिक माहौल की ज़रूरत होती है, वह तो सिर्फ तरल पानी ही उपलब्ध करा सकता है। तरल पानी एक सार्वभौमिक विलायक है और जैसा कि हमने ऊपर देखा, इसकी आणविक संरचना किसी भी अन्य तरल से अलग है।

चलिए, अब यह समझने की कोशिश करते हैं कि पानी सार्वभौमिक विलायक कैसे है। कोशिका के अन्दर जलीय विलयन की थोड़ी-सी मात्रा होती है जिसमें घुलित पदार्थों का एक जटिल सम्मिश्रण होता है। एक विलायक के रूप में पानी कोशिका को ऑक्सीजन या पोषक तत्वों जैसे इन पदार्थों को अन्दर-बाहर करने तथा उपयोग करने में मदद करता है। रक्त में जल-आधारित विलयन अणुओं को उनके उपयुक्त स्थानों तक पहुँचाता है। वास्तव में, पानी किसी भी अन्य विलायक की अपेक्षा ज़्यादा पदार्थों को घोल सकता है।
लेकिन यह सिर्फ एक विलायक नहीं है। यह जैविक अणुओं की संरचनाओं का निर्धारण करता है और यह भी निर्धारित करता है कि वे किस तरह की अन्तर्क्रियाओं में भाग लेंगे। पानी वह तरल मैट्रिक्स है जिसके आसपास कोशिका का अविलेय वस्त्र बुना होता है। यह एक माध्यम भी है जिसके ज़रिए पदार्थ कोशिका के एक प्रकोष्ठ से दूसरे में प्रवाहित होते हैं। कई रासायनिक क्रियाओं में तो पानी एक अभिकारक भी होता है और कोशिकाओं की रक्षा भी करता है, जैसे अत्यधिक गर्मी या क्षतिकारक विकिरण से।

पानी कोशिका में इतना महत्वपूर्ण कारक है क्योंकि यह विभिन्न रासायनिक समूहों के साथ दुर्बल अन्तर्क्रियाएँ विकसित कर लेता है। यह विशाल अणुओं की संरचना के रख-रखाव तथा कार्य निष्पादन में प्रमुख भूमिका निभाता है और कोशिका झिल्ली जैसी जटिल रचनाओं की रक्षा करता है। पानी की वजह से ही कोशिका के अन्दर हर चीज़ आणविक स्तर पर सही आकार में बनी रहती है। चूँकि, अणु का आकार जैव-रासायनिक क्रियाओं में निर्णायक भूमिका निभाता है, इसलिए यह पानी की एक प्रमुख भूमिका है। उदाहरण के लिए, कोशिकाओं के कार्यकारी अणु प्रोटीन्स की उपयुक्त आकृति को बनाए रखने के लिए पानी ज़रूरी है। प्रोटीन अमीनो अम्ल नामक इकाइयों की लम्बी श्रृंखलाएँ होते हैं और इनके कामकाज के लिए ज़रूरी होता है कि ये सही ढंग से तह हो जाएँ।


अनिवार्य प्रक्रियाओं में पानी
कोशिका में महत्वपूर्ण घटकों के निर्माण और विघटन करने वाली कई रासायनिक अभिक्रियाओं में पानी सीधे-सीधे शामिल होता है। यह प्रकाश संश्लेषण तथा श्वसन की बुनियाद है। प्रकाश संश्लेषी कोशिकाएँ सूर्य के प्रकाश की ऊर्जा का उपयोग करके पानी के हाइड्रोजन व ऑक्सीजन को अलग-अलग कर देती हैं। हाइड्रोजन को (हवा से प्राप्त की गई) कार्बन डाईऑक्साइड के साथ जोड़कर ग्लूकोज़ का निर्माण होता है और ऑक्सीजन मुक्त होती है। सारी जीवित कोशिकाएँ ऐसे ईन्धनों का उपयोग करके हाइड्रोजन तथा कार्बन का ऑक्सीकरण करती हैं और इस प्रक्रिया (कोशिकीय श्वसन) में पानी व कार्बन डाईऑक्साइड का पुनर्निर्माण हो जाता है। अम्ल-क्षार उदासीनीकरण तथा एंज़ाइम्स के कार्य में भी पानी की प्रमुख भूमिका होती है।

अन्य ग्रहों पर पानी की उपस्थिति
तो, हमने देखा कि तरल रूप में पानी जीवन की प्रमुख शर्त है। पृथ्वी पर भरपूर मात्रा में तरल पानी मौजूद है – यह पृथ्वी की 71 प्रतिशत सतह पर फैला है। अध्ययनों से पता चला है कि सम्भवत: मंगल पर भी थोड़ी मात्रा में तरल पानी पाया जाता है। कई शोधकर्ता मानते हैं कि शनि के चन्द्रमाओं पर तरल अवस्था में पानी उपस्थित है – एन्सिलेडस पर कुछ कि.मी. मोटी परत के रूप में जबकि टाइटन पर भूमिगत रूप में, शायद अमोनिया के साथ मिश्रण के रूप में। बृहस्पति के चन्द्रमा युरोपा की सतह की संरचना को देखकर लगता है कि यहाँ ज़मीन के नीचे तरल पानी का समुद्र है। इसी प्रकार से, बृहस्पति के एक अन्य चन्द्रमा गैनीमीड पर भी उच्च दाब पर बर्फ और चट्टानों के बीच तरल पानी है।

टार्डिग्रेड्स: एक अपवाद
टार्डिग्रेड्स ऐसे जन्तु हैं जिन्हें इन्तहापसन्द कहते हैं। ये जीव ऐसे पर्यावरण में जी पाते हैं जहाँ अन्य जीव टें बोल देते हैं। मसलन, टार्डिग्रेड्स 30 साल तक बगैर पानी या भोजन के जीवित रह सकते हैं। ये परम शून्य जैसी ठण्ड और उबलते पानी जैसी गर्मी में ज़िन्दा रहते हैं। और तो और, ये समुद्र की अतल गहराइयों में पाए जाने वाले दबाव से छ: गुना अधिक दबाव तथा अन्तरिक्ष के निर्वात में जीवित रह सकते हैं। ये इन सबसे कैसे निपटते हैं, इसके लिए कहा जाता है कि ये ‘टुन्न अवस्था’ में चले जाते हैं – ये सूक्ष्मजीव सारा पानी अपने शरीर से बाहर फेंक देते हैं और अपने सिर व टाँगों को अन्दर समेटकर गेंद की शक्ल अख्तियार कर लेते हैं और अन्तत: सुप्त अवस्था में चले जाते हैं। जब हालात सुधरते हैं तो ये शरीर को फिर से खोल लेते हैं और रोज़मर्रा की तरह काम करने लगते हैं।
टार्डिग्रेड्स यह समझने में हमारी मदद कर सकते हैं कि पानी के बगैर कैसे जीवित रहें। अध्ययनों से पता चला है कि टार्डिग्रेड्स की दो प्रजातियाँ कोशिका में पानी की अनुपस्थिति में भी कोशिका की संरचना (डीएनए समेत) को संरक्षित रख सकती हैं। इन अध्ययनों का महत्व चिकित्सा तथा बायोटेक्नॉलॉजी में है। जैसे, आम तौर पर टीकों के परीक्षण और परिवहन के दौरान अत्यन्त कम तापमान की ज़रूरत होती है जिसके लिए तरल नाइट्रोजन का उपयोग करना पड़ता है। लेकिन टार्डिग्रेड्स के बारे में समझ के आधार पर टीकों को सुखाकर सामान्य तापमान पर भण्डारित किया जा सकेगा।


कोकिल चौधरी: संदर्भ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: सुशील जोशी: एकलव्य द्वारा संचालित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान शिक्षण व लेखन में गहरी रुचि।