किसी मरीज़ के जीन्स में परिवर्तन करके इलाज की बातें अब प्रयोगशालाओं से निकलकर अस्पतालों में पहुंचने लगी हैं। ऐसे दो जीन-उपचारों को युरोप में मंज़ूरी मिल चुकी है और एक को यूएस में जल्दी ही मिल जाएगी। इसके साथ ही कई सामाजिक, आर्थिक सवाल उठ खड़े हुए हैं क्योंकि इन उपचारों की लागत बहुत अधिक है। मसलन, इस तरह के एक जीन-उपचार की लागत प्रति मरीज़ 10 लाख डॉलर है। बात सिर्फ जीन-उपचार तक सीमित नहीं है। कई नई दवाइयां भी बहुत महंगी हैं। जैसे, कैंसर की एक नई दवा, जो प्रतिरक्षा तंत्र की शक्ति को बढ़ाती है, की लागत 40,000 डॉलर प्रति माह है।
आम तौर पर विकसित देशों में इलाज का खर्च बीमा कंपनियां उठाती हैं। और वे ना-नुकर करने लगी हैं। बायोटेक्नॉलॉजी इनोवेशन ऑर्गेनाइज़ेशन (बायो) की बैठक में अपने व्याख्यान में एम.आई.टी. के अर्थशास्त्री मार्क टØशाइम ने कहा, “विज्ञान में हो रही प्रगति सामाजिक वहनीयता के नए सवाल खड़े कर रही है।”

जीन-उपचार के क्षेत्र में शीघ्र ही हीमोफीलिया-बी, सिकल सेल एनीमिया और तंत्रिका क्षति रोग ओएलडी के लिए उपचारों को स्वीकृति मिलने की संभावना है। इसके अलावा, फिलाडेल्फिया की कंपनी स्पार्क थेराप्यूटिक्स द्वारा विकसित किया जा रहा अंधत्व का उपचार भी जल्दी ही उपलब्ध होगा।
जीन-उपचारों की एक खासियत यह है कि इन तकलीफों के लिए पहले कोई उपचार नहीं था। इसलिए इनकी कीमतों की तुलना किसी अन्य दवा या उपचार से नहीं की जा सकती। ऐसी स्थिति में दवा कंपनी पर इनकी लागत या कीमत को कम करने का कोई दबाव नहीं होता।
वैसे ऊंची कीमतों के कारण इन उपचारों का उपयोग बहुत कम हुआ है। जैसे, युरोप में 2012 में स्वीकृत ग्लायबेरा की कीमत प्रति मरीज़ 10 लाख डॉलर है और आज तक मात्र एक मरीज़ ने इसका लाभ उठाया है। एक तो कीमत ज़्यादा, ऊपर से सफलता की कोई गारंटी न होने के कारण भी इन उपचारों का उपयोग नहीं हो रहा है।

इसी संदर्भ में बीमा कंपनियों की भूमिका उभरती है। आजकल बीमा कंपनियां किसी उपचार के लिए भुगतान को उसकी सफलता से जोड़कर देखती हैं। यानी बीमा कंपनी और दवा कंपनी के बीच अनुबंध होता है कि बीमा राशि का भुगतान उपचार की सफलता के आधार पर किया जाएगा। मसलन, हाल ही में हार्वर्ड पिलग्रिम हेल्थ केयर नामक बीमा कंपनी ने घोषणा की है कि वह एमजेन द्वारा विकसित रेपाटा उपचार को तभी कवर करेगी जब मरीज़ कोलेस्ट्रॉल का एक न्यूनतम स्तर हासिल कर ले। एक अध्ययन में पाया गया कि 2013 में इस तरह के ‘प्रदर्शन आधारित भुगतान’ के अनुबंध कम से कम 14 देशों में हुए हैं, जिनमें विकसित देशों के अलावा चीन और ब्राज़ील भी हैं।

इस संदर्भ में सरकारों की भूमिका भी चर्चा में है। जैसे यूएस के अर्कान्सास राज्य में तीन लोगों ने मुकदमा दायर किया था कि उन्हें सिस्टिक फाइब्रोसिस के इलाज (लागत 3 लाख डॉलर) से इसलिए वंचित किया गया क्योंकि उनके पास पैसा नहीं था। सरकार को इस मुकदमे में हस्तक्षेप करना पड़ा था। इसी प्रकार से जापान सरकार को हिपेटाइटिस सी के एक नए उपचार की लागत में 50 प्रतिशत कटौती करने के आदेश पारित करना पड़े थे।
तो क्या विज्ञान के ये नए-नए आविष्कार और खोजें समाज के लिए अवहनीय और अप्रासंगिक रहेंगी। यह सवाल वैज्ञानिकों, अर्थ शास्त्रियों, राजनीतिज्ञों के अलावा आम लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण है। (स्रोत फीचर्स)