रवि दिवाकरन 

पानी से भरा बर्तन.. जलती मोमबत्ती... उस पर गिलास को उलटाकर रखा। मोमबत्ती बुझने के बाद जो पानी गिलास में ऊपर चढ़ा क्या वह हवा में ऑक्सीजन की मात्रा को दर्शाता है? संदर्भ के दसवें अंक में 'बुन्सन बर्नर के बीच छह इंच जगह' शीर्षक से छपे लेख में मिलिन्द वाटवे ने सवाल छोड़ा था कि एक मोमबत्ती से किए गए प्रयोग में जितना पानी चढ़ा, दो मोमबत्तियां लगाने पर उससे कहीं अधिक ऊंचाई तक पानी गिलास में ऊपर चढ़ा। इससे क्या निष्कर्ष निकालें... उससे आगे...।

रसायन शास्त्र का शिक्षक होने के कारण मैंने हवा में ऑक्सीजन की मात्रा निकालने के स्कूल की किताबों में दिए गए प्रयोग को लेकर लेखक (मिलिन्द वाटवे) के अवलोकनों को बहुत दिलचस्पी से पड़ा। इसके बाद मैंने इस प्रयोग को बहुत ध्यान से कुछ इस तरह दोहराया।

सब से पहले तो मेरा ध्यान इस तरफ गया कि आमतौर पर पानी पीने के गिलास शंकुवत होते हैं - नीचे से कम चौड़े और ऊपर की ओर इनकी चौड़ाई बढ़ती जाती है। इसलिए इनकी दीवार पर बराबर दूरी पर लगाए निशान, आयतन की बराबर मात्रा को नहीं दर्शाते। और दूसरा कि जब मिलिन्द वाटवे में लेख  इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेस , बैंगलोर सात बजनेस फरवरी 1996 अंक में प्रकाशित हुआ था। उपरोक्त लेख रेखोमेन्स के मई 1996 में से किया गया है। 

मोमबत्ती को गिलास में रखते हैं तो वह अपने आयतन के बराबर जगह घेर लेती है। इसलिए मैंने माना कि दूसरी मोमबत्ती रखे जाने से प्रभावी आयतन और कम हो जाएगा और इस वजह से भी पानी का स्तर ऊपर हो जाएगा।

इसी बीच सौभाग्य से कांच का एक ऐसा खूबसूरत गिलास मेरे हाथ लग गया जिसकी दीवारें ऊपर से नीचे तक एकदम सीधी थीं यानी कि चौड़ाई ऊपर से नीचे तक एक बराबर। अपने प्रयोग में मैंने इसी गिलास का इस्तेमाल किया। इसी तरह मोमबत्तियों के कारण आने वाले आयतन के अंतर को निरस्त करने के लिए मैंने कुछ इस तरह का तरीका अपनाया - गिलास की ऊंचाई की आधी ऊंचाई की तीन मोमबत्तियां लीं, इन्हें सीधा रखे गिलास के अंदर रखा और फिर गिलास को पानी से भर दिया। इसके बाद मोमबत्तियों को बाहर निकाल लिया। इस कारण गिलास के अंदर पानी का स्तर गिर गया। इस स्थिति में गिलास में पानी का आयतन, तीन मोमबत्तियों की उपस्थिति में प्रभावी आयतन के बराबर है। गिलास में पानी के इस स्तर को चिंहित कर लिया और कागज की एक पट्टी लगाकर इस ऊंचाई को 10 बराबर भागों में बांट लिया और इन पर 10%, 20% ... 100% के निशान लगा लिए। इस पैमाने का शून्य गिलास के खुले वाले सिरे पर रखा।

अब एक टब लेकर तीन मोमबत्तियों को उसके तले पर चिपका लिया। इन मोमबत्तियों को हमेशा चिपके रहने दिया ताकि मोमबत्तियों की संख्या कम या ज़्यादा किए जाने से आयतन में जो अंत आता है उससे बचा जा सके। इसके बाद टब में एक गिलास पानी डाला एक मोमबत्ती को जलाया और तीन को गिलास से ढंक दिया। जब मोमबर्त्त बुझी तो गिलास में पानी ऊपर चढ़ और कुछ मिनट बाद (जबकि उपकरण का तापमान भी सामान्य हुआ ) इसने 15% प्रभावी आयतन के बराबर जगा घेर ली। इस प्रयोग को कई बार दोहराया गया। हर बार टब का पानी बदल-बदल कर उतना ही ताजा पानी लिया गया ताकि कार्बन डाइऑक्साइड घुलने जैसे प्रभाव से बचा जा सके हर बार पानी ने 15 से 18% जगह को घेरा।

दो में और .. तीन में और भी
यही प्रयोग अब दो मोमबत्तियों को एक साथ जला कर दोहराया गया। इस बार पानी ने ऊपर चढ़कर 30 प्रतिशत प्रभावी आयतन के बराबर जगह घेरी। इसी तरह प्रयोग तीनों मोमबत्तियों को साथ जलाकर दोहराया। यह पाया गया कि इस बार पानी का तल, प्रभावी आयतन के लगभग 45% के निशान तक पहुंच गया। इससे लगता है कि गिलास के अंदर हवा के आयतन में आयी कमी, इस बात पर निर्भर करती है कि एक बार में कितनी मोमबत्तियां जलाई जा रही हैं, (जैसे कि यह प्रति मोमबत्ती लगभग 15 प्रतिशत) न कि ऑक्सीजन की मात्रा पर।

इस प्रक्रिया की एक संभावित व्याख्या यह हो सकती है कि मोमबत्ती को गिलास से ढकने में हमेशा कुछ सेकण्ड लग जाते हैं, इसी समय के बीच अंदर की हवा को गर्म होकर फैलने और नीचे से बाहर निकलने का मौका मिल जाता है। जब मोमबत्ती को ढक रहे गिलास का मुंह पानी के स्तर से बंद हो जाता है और मोमबत्ती बुझ जाती है तो अंदर की हवा ठंडी हो कर, सिकुड़ जाती है। इस तरह गिलास के अंदर पानी का चढ़ना बाहर निकाल गई हवा को दर्शाता है।  

जब ज़्यादा मोमबत्तियां जलाई जाती है तो उसी अनुपात में गर्मी भी बढ़ जाती है और गिलास में से बाहर निकलने वाली हवा की मात्रा का अनुपात भी। इत्तफाक से प्रत्येक मोमबत्ती से 15 से 18 % हवा फैल कर बाहर निकलती है जो कि हवा में ऑक्सीजन की मात्रा के काफी नजदीक है। इसलिए केवल एक मोमबत्ती से प्रयोग करने पर यह मान लिया गया कि ऑक्सीजन के इस्तेमाल हो जाने के कारण पानी ऊपर चढ़ा। असल में। अगर ऑक्सीजन के इस्तेमाल होने के कारण पानी ऊपर चढ़ रहा होता, तो प्रयोग के दौरान, उस समय भी गिलास के अंदर पानी का स्तर धीरे-धीरे बढ़ता जाना चाहिए था जब मोमबत्ती जल रही होती है। पर देखा गया है कि मोमबत्ती के जलते रहने के दौरान

बहुत थोड़ा पानी ही ऊपर चढ़ता है और जैसे ही मोमबत्ती बुझती है, पानी तेज़ी से ऊपर चढ़ता है।

इसके अलावा मोमबत्ती (जो हाइड्रोकार्बन की बनी होती है) - जब जलती है तो यह क्रिया होती है।

C + O2+ CO2

जिसमें ऑक्सीजन के प्रत्येक अणु से कार्बन डाइऑक्साइड का एक अणु बनता है जिससे आयतन में कोई बदलाव नहीं होता (इस प्रक्रिया में बने पानी के आयतन को नगण्य मान सकते हैं, क्योंकि वह द्रव अवस्था में होता है)।

जब लकड़ी के कोयले (चारकोल ) को पारे के ऊपर उल्टा करके रखे गए जार में जलाया जाता है तो भी ठीक ऐसा ही होता है। जब पानी इस्तेमाल किया जाता है तो वह कार्बन डाईऑक्साईड का कुछ हिस्सा अवशोषित कर लेता है, क्योंकि हवा के मुकाबले पानी में कार्बन डाईऑक्साईड की घुलनशीलता ज़्यादा होती है।

यह भी पाया और रिकॉर्ड किया गया है कि जब एक बंद जार में जलता हुआ लकड़ी का एक टुकड़ा बुझता है तो बाकी बची हवा में केवल 2.5% कार्बन डाईऑक्साइड होती है। और उसमें 17.5% ऑक्सीजन फिर भी बची रहती है! ।

अगर देखें तो ऐसा लगता है कि इतने सालों से विद्यार्थियों को जो प्रयोग करवाया जाता रहा है वह हवा में ऑक्सीजन की मात्रा बिल्कुल नहीं दर्शाता!


रवि दिवाकरनः सेंट अलबर्ट्स कॉलेज, एरनाकुलम, केरल के रसायनशास्त्र विभाग में पढ़ाते हैं।
मूल लेख अंग्रेज़ी में। अनुवाद: शशि सक्सेना।  
शशि सक्सेनाः दिल्ली के दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज में रसायन शास्त्र पढ़ाती हैं।