ईल मछली जहां प्रजनन के लिए समुद्र की ओर जाती है वहीं सामन मछली प्रजनन के लिए समुद्र से नदियों के भीतर आती है। हमने ईल मछलियों के प्रवास के बारे में देखा कि वे हर हाल में, बाधाओं को पार करते हुए सरगासो सागर तक का सफर पूरा करना चाहती हैं। आखिर यह सफर उनकी नस्ल को ज़िंदा रखने के लिहाज़ से अत्यन्त महत्वपूर्ण जो है।

लेकिन मार्ग की कई सारी बाधाएं मानव निर्मित भी होती हैं। दुनिया भर में नदियों पर बनाए गए विभिन्न तरह के बांध उनमें से एक हैं। इन हालात में ईल-सामन जैसी मछलियों के लिए अपने निर्धारित स्थानों तक पहुंचना असंभव हो जाता है और इन मछलियों की संख्या प्रभावित होने से स्थानीय इकोतंत्र पर असर पड़ता है। कई जगह पन-बिजली के लिए लगाए गए टर्बाइनों की वजह से वे मर-कट जाती हैं।

इस समस्या को समझते हुए अमरीका में सौ साल पहले ही कई बांधों या जलाशयों को इस तरह से डिज़ाइन किया जाने लगा था कि ईल-सामन जैसी मछलियां नदी में पहले की तरह आ-जा सकें। इन व्यवस्थाओं को मछलियों के लिए रास्ता, सीढ़ी यानी फिश-वे, फिश-लेडर आदि नाम दिए गए हैं।

इन व्यवस्थाओं को स्थानीय हालातों को देखते हुए विभिन्न तरीकों से बनाया जाता है। लेकिन आधारभूत बात यही है कि प्रवासी मछलियों के आने-जाने की कोई वैकल्पिक व्यवस्था हो जिसका वे इस्तेमाल कर सकें और उन्हें शारीरिक रूप से कम-से-कम नुकसान हो। इस के लिए लिफ्ट या एलिवेटर का तरीका कई बांधों पर अपनाया जाता है। जहां बांध काफी ऊंचे हों वहां बांध के दोनों ओर लिफ्ट या एलिवेटर बने होते हैं जो अपने संग्राहकों में काफी मछलियां इकट्ठी हो जाने पर उन्हें बांध की दूसरी ओर पहुंचा देते हैं। उदाहरण के लिए मैसाच्युसेट्स के होल्योक बांध में एलिवेटर पांच सौ मछलियों को एक बार में लगभग 50 फीट उठाकर बांध के पार ले जाता है। आंकड़े बताते हैं कि यह तरकीब कारगर रही है।

रैम्प फिश-वे या रपटों में अवरोध के पास एक हल्की ढलान वाला रास्ता बनाया जाता है जिसमें पत्थर-लकड़ी की ऐसी रचनाएं बनी होती हैं जिनसे प्राकृतिक बनावट का अहसास हो व पानी का बहाव भी धीमा हो जाए। इनके सहारे मछलियां नीचे से ऊपर या ऊपर से नीचे आ-जा सकती हैं।

ऐसा ही कुछ तरीका कोलंबिया नदी पर बनाए गए जॉन-डे बांध में अपनाया गया है जहां नदी और तालाब के जलस्तर में अंतर बहुत ज़्यादा है। इसलिए वहां ईल मछलियों के लिए एक सीढ़ीनुमा संरचना बनाई गई है। इस पर से लगातार पानी बहता रहता है। साथ ही नियमित अंतराल पर अवरोध बनाए गए हैं जो पानी को तेज़ी से बहने से रोकते हैं। इस सीढ़ी का उपयोग करते हुए ईल आसानी से आना-जाना कर पाती है।