लेखक :  प्रमोद मैथिल
अनुवाद - के. बी. सिंह

विज्ञान शिक्षण

मिडिल स्कूल में विज्ञान पढ़ाने के लिए मैंने जो स्कूली किताबें अब तक देखी हैं उनमें ‘बाल वैज्ञानिक अभ्यास पुस्तिका’अनूठी है। इस पुस्तक का इस्तेमाल मैं अपने स्कूल की कक्षा-6 के लिए विज्ञान पढ़ाने की पाठ्यपुस्तक की तरह कर रहा हूं। यह लेख इसके एक अध्याय ‘अम्ल और क्षार की पहचान’ पढ़ाने के मेरे अनुभव पर केंद्रित है।
अध्याय का ढांचा कुछ इस प्रकार है। शुरुआत बच्चे के एक जीवंत अनुभव से होती है जिसमें वह देखता है कि कुछ चीज़ें रंग बदल सकती हैं, जिससे छात्र इन रंग बदलने वाले गुणों के प्रति जिज्ञासु हो जाते हैं। इस रंग बदलने की अवधारणा के बारे में पाठ विस्तृत एवं निर्देशित अध्ययन के सुझाव देता जाता है, जिसके कारण छात्रों की एक स्तर तक समझ बनती है और वे अम्ल व क्षार की पहचान कर पाने में सक्षम हो जाते हैं।

विज्ञान प्रक्रिया के हिस्से
जब मैं इस अध्याय के लिए तैयारी कर रहा था, उदाहरण के लिए सामग्री एकत्र करते हुए, मैंने अनुभव किया कि ये तैयारियां भी वैज्ञानिक प्रक्रिया का हिस्सा हैं और बच्चों से इन्हें भी पढ़ाई के एक हिस्से के रूप में ही करवाना चाहिए।
जब मैं पिछले अध्याय की समाप्ति पर था तो मैंने महसूस किया कि वैज्ञानिक प्रक्रिया के निम्न बिन्दु उस अध्याय में शामिल हो गए थे:

— सवाल पूछना - अध्ययन/प्रयोग के एक आधार के रूप में।
— अध्ययन/प्रयोगों की डिज़ाइन और योजना बनाना।
— चीज़ें एकत्र करना - जिनमें स्थानीय संसाधनों को खोजने की ज़रूरत हो।
— प्रयोग करने के लिए व्यवस्था बनाना।
— प्रयोग करना और उनके अवलोकन एकत्र करना।
— अवलोकनों को आंकड़ों के रूप में व्यवस्थित करना।
— आंकड़ों का विश्लेषण करना और एक परिणाम निकालना।
— परिणाम की जांच करना।

अगले दिन मैंने बच्चों के साथ अपने पूर्व नियोजित विचार के बारे में बातचीत की और किताब में दी गई कहानी के साथ अध्याय शुरू किया।

किस्सा दावत का
एक बार रमेश शादी की दावत पर गया। वहां खाना खाते हुए उसकी कमीज़ पर सब्ज़ी गिर गई। वह फौरन उसे साफ करने के लिए भागा पर जैसे ही उसने साबुन लगाया, दाग लाल हो गया। उसे दावत छोड़नी पड़ी। अगले दिन उसने अपनी मां से पूछा कि ऐसा क्यों हुआ? मां ने उसे बताया कि साबुन हल्दी के पीले रंग को लाल रंग में बदल देता है। रमेश ने सोचा कि क्या और भी ऐसी चीज़ें हैं जो हल्दी के रंग को बदल सकती हैं? यह पता लगाने के लिए उसने एक प्रयोग किया।

इस कहानी के बाद मैंने बच्चों से कहा कि हम ऐसे ही कुछ प्रयोग करेंगे और देखेंगे कि कितनी चीज़ें हल्दी का रंग बदल सकती हैं?

फिर मैंने उनसे कहा कि सबसे पहले वे चीज़ें एकत्र करनी होंगी जिनकी तुम जांच करना चाहते हो। मैंने यह भी टिप्पणी की कि चीज़ें द्रव स्वरूप में होनी चाहिए और ज़रूरत होने पर वे घोल बना सकते हैं। हमने सोचा कि हमारे प्रयोगों के लिए 50 मिलीलीटर घोल काफी होगा, जो लगभग आधे कप के बराबर है। मैंने कहा कि उन्हें दस मिनट में सभी चीज़ें इकट्ठा करना होंगी। इसके बाद प्रयोगों के लिए हम कक्षा को पुन: व्यवस्थित करेंगे।

अपनी शुरुआती योजना में मैंने प्रत्येक चरण के लिए समय निर्धारित किया था पर व्यवहार में यह हिसाब बहुत कारगर नहीं रहा, क्योंकि उन्होंने सारी चीज़ें एकत्र करने में ही करीब 15-20 मिनट लगा दिए। पर डेडलाइन (समय-बद्धता) के इस विचार ने उनमें एक प्रकार का जोश जगा दिया। वे दौड़-भाग कर तेज़ी से काम कर रहे थे। कक्षा पहले से ही चार समूहों में बंटी थी क्योंकि अन्य अध्यायों में भी हमने समूहों में काम किया था। मैंने उनसे कहा कि हम उन्हीं समूहों में काम करते रहेंगे। पर ‘चीज़ें एकत्र करने के लिए’ मैंने प्रत्येक मेज़ (2-2 बच्चों) से चीज़ें लाने को कहा ताकि प्रत्येक को मौका मिल सके, अधिक स्थानीय संसाधनों की खोज हो सके और मुझे विभिन्न प्रकार की चीज़ें मिल सकें। मैंने उनसे वे चीज़ें सोचने को कहा जो 10 मिनट में लाई जा सकती हैं। इस प्रक्रिया में इन चीज़ों की सूची बनी:
— साबुन (पानी जोड़कर ‘साबुन पानी’)
— खड़िया पाउडर का घोल
— शैम्पू का घोल
— वॉटर-कलर
— चीनी का घोल
— नमक का घोल
— गंदला पानी
— हाइड्रोजन (पूछने पर पता चला कि वे चिकित्सा इकाई में उपलब्ध H2O2 यानी हाइड्रोजन पेरॉक्साइड की बात कर रहे थे)
— नींबू का रस
— चूने का पानी
— सल्फ्यूरिक अम्ल (उन्होंने इसे कला कक्ष में देखा था जहां इसका प्रयोग कुछ पेंटिंग्स में किया जाता है। मैंने सलाह दी कि वे इसे भौतिकी प्रयोगशाला से प्राप्त करें जहां वे इसे तनु रूप में पा सकते हैं)
— फूलों का रस
— आला ब्लीचिंग व्हाइटनर
— सर्फ-एक्सेल घुला पानी।

मैंने एक बार फिर उनको समय-बद्धता की याद दिलाई और उनसे कहा, ‘तुम्हारा समय शुरु होता है अब’।

सामग्री जुटाना और बांटना
फिर क्या हुआ? कक्षा में एक प्रकार से अफरा-तफरी फैल गई, पर यह अफरा-तफरी व्यवस्थित थी। कोई भोजन कक्ष की ओर भागा जा रहा था और दूसरा मेरे पास किसी बर्तन के लिए और तीसरा कुछ पूछने वापस आ रहा था। यदि मुझे लगता कि वे इन सवालों से अपने-आप निपट सकते हैं तो मैं अपने हाथ खड़े कर देता था। मज़ेदार बात यह थी कि उन्होंने कोई सवाल-जवाब नहीं किया, बस अपने काम पर तुरन्त लौट गए। 15-20 मिनट के भीतर कक्षा में सभी चीज़ें उपस्थित हो गई थीं। यहां तक कि अपने आसपास अनेक ज़रूरी चीज़ों की उपलब्धता के बारे में मेरा ज्ञान भी बढ़ा।

कुछ बच्चों ने अपना काम बहुत जल्दी पूरा कर लिया और फौरन वापस आ गए। मैंने पहले से ही उनके लिए कुछ और काम सोच रखा था। हमें अपने प्रयोगों के लिए कुछ अन्य उपकरणों की ज़रूरत थी। जब वे बाहर थे मैंने पहले से ही बोर्ड पर एक सूची बना दी थी। सूची इस प्रकार थी:

— 20 चौड़े मुंह वाली छोटी बोतल (परखनलियों की जगह वॉटर कलर की शीशियों का विकल्प सोचा था)। हम केवल 15 शीशियां ही ढूंढ पाए इसलिए उनके ढक्कनों का भी बर्तन की तरह उपयोग किया। आखिरकार मैंने प्रत्येक समूह को ढक्कन सहित 6-6 शीशियां दीं।
— इसी तरह हम केवल 6 ड्रॉपर जुगाड़ पाए, इसलिए हमने हल्दी कागज़ पर बूंद टपकाने के लिए पेंसिल उपयोग करने का फैसला किया। इस वजह से हमने पेंसिल भी एकत्र कीं और सभी टोलियों में समान रूप से बांट दीं।
— बहुत-से काम, खासकर पेंसिल, ड्रॉपर और बर्तन धोने के लिए पानी रखने हेतु बीकर और बाल्टियां।
— हल्दी कागज़, हालांकि मैंने कागज़ पहले से तैयार कर लिया था फिर भी उनसे इसे तैयार करने को कहा।

दूसरा काम कक्षा को पुन: व्यवस्थित करना था। हमारी कक्षा में इस तरह की मेज़ थीं कि यदि हम दो मेज़ जोड़ें तो एक षटभुज बन जाता है। इस प्रकार हमने 4 समूहों के लिए 4 षटभुज बनाए और एक लंबी मेज़ विभिन्न पदार्थ रखने के लिए केन्द्र में रख दी। हमने समस्त घोल बीच की मेज़ पर एक निश्चित क्रम में रखे और ड्रॉपर भी उनके साथ रख दिए। चीज़ें रखने के लिए बच्चों द्वारा लाए गए कप, मग, कटोरे और अन्य बर्तन वहां रखे थे। हमने एक बाल्टी पानी कमरे के बीच में और एक बाल्टी घोल वाली मेज़ के पास रखा। कुल मिलाकर ऐसा आभास मिल रहा था मानो कक्षा में सचमुच में प्रयोग हो रहे हैं, माहौल में बिलकुल भी बनावटीपन नहीं था।

स्कूल में हमारे पास एक बहुत अच्छी व्यवस्थित रसायन प्रयोगशाला है पर फिर भी मैंने जान-बूझकर इन प्रयोगों के लिए उसका इस्तेमाल नहीं किया। मूलत: प्रयोगशाला कक्षा का एक विस्तार है - खासतौर-से-व्यवस्थित एक इलाका, और इसे उसी तरह से देखा जाना चाहिए। शुरुआत में ही प्रयोगशाला का इस्तेमाल करने से बच्चों की यह कल्पना हो सकती है कि प्रयोग केवल उच्च तकनीक वाले उपकरणों के साथ प्रयोगशाला में ही किए जा सकते हैं। मैं इस धारणा का खंडन करना चाहता था और अपने बच्चों को यह समझाना चाहता था कि विज्ञान हमारे चारों ओर की चीज़ों के बारे में सीखना है। एक प्रयोगशाला कभी भी कक्षा का विकल्प नहीं बन सकती है।

टोलियों में प्रयोग
समूह में काम करना और प्रबंधन संबंधी दिक्कतों से निपटना, सीखने के अधिक अवसर भी देता है। ये प्रयोग अपने आप कक्षा में किसी डिमांस्ट्रेशन (प्रदर्शन) के मुकाबले सीखने की गुणवत्ता बढ़ा देते हैं और स्पष्टत: केवल विषय-वस्तु की व्याख्या करने से बेहतर हैं।
बच्चे जब अपना काम कर रहे थे, मैं उनकी छोटी-मोटी मदद करता रहा जैसे डिब्बों पर पर्चियां चिपकाना या उनसे कहना कि वे अपने सामूहिक प्रयोगों के लिए बढ़िया व्यवस्था सोचें, आदि। मैंने बोर्ड पर एक सारणी बनाई और हर एक से उसे अपनी कॉपी में उतार लेने को कहा। मैंने उन्हें बताया कि सबसे पहले हम इस सारणी की मदद से अपने अवलोकन व्यवस्थित करेंगे ताकि उनमें सहसंबंध ढूंढ़ पाएं और किसी नतीजे पर पहुंच सकें। कुछ देर के लिए मैं एक शिक्षक बन गया और आंकड़े व्यवस्थित करने के महत्व पर एक भाषण दे दिया। बोर्ड पर मैंने इसी तरह की सारणी बनाई और कुछ खाली स्तंभ छोड़ दिए।

कुछ सावधानियां और अवलोकन
प्रयोग की शुरुआत करते हुए मैंने उनसे कहा कि सबसे पहले घोल लें, फिर हल्दी कागज़ के छोटे-छोटे टुकड़े काट लें और बीकर में पानी लेकर मेज़ पर रख लें। उन्हें पीले हल्दी कागज़ पर हर घोल की एक बूंद डाल कर यह जांच करनी थी कि क्या यह लाल हो जाता है या नहीं और इसे उस सारणी में दर्ज करना था जिसे उन्होंने बोर्ड से उतारा था। फिर मैंने उनसे इन प्रयोगों को करते समय कुछ सावधानियां बरतने को कहा मसलन:
1. सुनिश्चित करो कि प्रयोग के पहले और बाद में ड्रॉपर और पेंसिल को अच्छी तरह धो लिया है, अन्यथा तुम्हें गलत परिणाम मिल सकते हैं।
2. प्रयोग करते समय रसायनों का प्रयोग सावधानी से करने की ज़रूरत है। ध्यान रहे कि रसायन शरीर पर न गिर जाए। रसायनों को सूंघें नहीं, वे नुकसान पहुंचा सकते हैं।
3. मापन भी रसायन शास्त्र के प्रयोग का महत्वपूर्ण भाग है। पर यहां हम मापी गई मात्राओं का उपयोग नहीं कर रहे हैं, क्योंकि इसकी इन प्रयोगों के लिए ज़रूरत नहीं है। प्रत्येक पट्टी की जांच के लिए तुमसे एक या दो बूंद द्रव इस्तेमाल करने की आशा है।
मैंने उनको ये सावधानियां रसायन शास्त्र में किसी भी प्रयोग में पालन की जाने वाली सावधानियों की तरह बताईं। हो सकता है यह कारण हो कि उनमें से अधिकांश ने इन सावधानियों को गंभीरता से लिया। प्रयोग में काफी समय लगा। मैं कक्षा में घूमता रहा और उनको अगलेे प्रयोग व अवलोकन के निर्देश देता रहा। पीले हल्दी कागज़ के अवलोकन समाप्त करने के बाद वे लाल हल्दी कागज़ के साथ प्रयोग करने लगे।
लाल हल्दी कागज़ तैयार करने का तरीका काफी आसान है। उन्होंने पीले हल्दी कागज़ को सर्फ-एक्सेल के पानी में डुबोया और उसे लाल हल्दी कागज़ में बदला।

इन सबको समाप्त करने के बाद उन्होंने पूरे प्रयोग को गुड़हल (Hibiscus) कागज़ के साथ दोहराया। चूंकि मैं जानता था कि दो रंग के गुड़हल कागज़ हो सकते हैं, गहरा हरा और गुलाबी, उसी तरह जैसे हमारे पास दो हल्दी कागज़ थे - लाल और पीला। मैं किसी अम्ल का प्रयोग कर हरे गुड़हल कागज़ को गुलाबी में बदलने की विधि जानता था पर यहां मैंने एक नया तरीका सीखा। यदि गुड़हल को कागज़ पर हल्के से रगड़ो तो इसका रंग गुलाबी हो जाएगा और यदि कस कर रगड़ो तो हरा रंग मिलेगा। मैंने इसे स्वतंत्र रूप से जांचा और दुबारा यही पाया। मैं नहीं जानता ‘क्यों?’ और इस सवाल की जांच भविष्य के लिए छोड़ रखी है।

कक्षा में काफी कुप्रबंधन और अव्यवस्था थी पर इस सबके बावजूद, प्रयोग जारी रहे। ऐसी कक्षा में इसके अलावा कोई रास्ता नहीं था, क्योंकि हर बच्चा प्रयोग के लिए कोई-न-कोई काम करने में लगा था। अपने प्रयोग को सफल बनाने के लिए प्रत्येक विद्यार्थी अपनी क्षमता का सर्वोत्तम उपयोग करने की कोशिश कर रहा था; और इससे भी अधिक प्रत्येक विद्यार्थी को इसमें मज़ा आ रहा था।

कुछ नया .... कुछ मज़ेदार
अब इस कक्षा के बारे में कुछ शिक्षाशास्त्रीय अवधारणाओं के संदर्भ में बात करूंगा। यह बाल केन्द्रित कक्षा का एक उदाहरण है। शिक्षक यहां पर केवल एक फैसिलिटेटर (सुविधाप्रदाता) था। इसी विधि को ‘करके सीखना’ कहते हैं। पर मेरा सर्वाधिक आनन्द यह था कि हर बच्चा वैज्ञानिक प्रक्रिया से रूबरू हो रहा था।

इस दौरान हमें कुछ कठिनाइयां भी हुईं क्योंकि आमतौर से स्कूल इस प्रकार की कक्षा का अभ्यस्त नहीं होता है। ऐसे प्रयोगों में काफी खुलापन भी होता है - बच्चे कई रसायन आपस में मिलाकर देखना चाहते हैं और ऐसा हमारी कक्षा में हुआ भी। हमने सभी छात्रों को शामिल कर इस विषय पर एक गहन बातचीत की। इसके फलस्वरूप हम इसे उस स्तर तक कम कर सके ताकि हम प्रयोगों को जारी रख सकें। मुझे उनमें से किसी में जोश की कमी नहीं दिखाई दी।

इन तमाम कठिनाइयों के बावजूद बच्चों द्वारा कई नई पहल की गईं। उनमें से कुछ खास का ज़िक्र कर रहा हूं:
— शुरुआत में मैंने प्रत्येक समूह से एक सदस्य को विभिन्न घोल लाने के लिए बुलाया, पर इससे अफरातफरी मच गई। उनके जोश के कारण मेज़ पर हमेशा भीड़ लगी रहती। इसलिए हमने एक ऐसी व्यवस्था बनाने का फैसला किया जिसमें सभी समूह अपने बर्तन बीच की मेज़ पर रखेंगे और मैं उन सभी को भर कर बांट दूंगा। यह व्यवस्था कारगर रही। मैं भी सब सावधानियों का पालन कर रहा था जैसे हर बार घोल लेने के पहले और बाद में ड्रॉपर धोना।
— मैंने देखा कि एक समूह ने अपनी ज़िम्मेदारियां बांट ली थीं। एक अन्य समूह में प्रत्येक सदस्य को एक के बाद एक प्रयोग करने का अवसर दिया जा रहा था। किसी एक समूह में मुख्यत: 2-3 बच्चे सारे प्रयोग कर रहे थे और बाकी केवल देखकर प्रयोगों का मज़ा ले रहे थे।
— प्रत्येक समूह एक क्रम में अवलोकन कर रहा था जैसा पहले तय किया गया था। समूहों ने क्रम बनाए रखने के अनेक तरीके सोचे थे। एक समूह में मैंने देखा कि उन्होंने विभिन्न पदार्थों के नाम मेज़ पर लिख रखे थे और शीशियों को उनके संबंधित नाम के पास रखते थे। दूसरे समूह में द्रवों को क्रम के अनुसार लाइन में रखा गया था और एक के बाद एक उनकी जांच की जा रही थी। एक समूह ऐसा था जो उलझ गया था और सही परिणाम प्राप्त करने के लिए उन्हें कुछ घोल पुन: लेने पड़े।
— ज़्यादातर समूहों ने अपनी मेज़ की सफाई पर भी तवज्जो दी थी। एक समूह ने अखबार लेकर उसे अपनी मेज़ पर फैलाया था जबकि दूसरे ने अपनी मेज़ पर कपड़े का एक टुकड़ा बिछा रखा था।

सब अवलोकन पूरे करने में काफी समय लगा परन्तु अभी और भी बहुत कुछ करना था। मैंने उनके अवलोकन सारणी में एकत्र करने शु डिग्री किए। सारणी मैंने पहले से ही बोर्ड पर बना रखी थी। यह स्पष्ट था कि किसी-किसी समूह के अवलोकन दूसरे समूह से अलग होंगे, इन मामलों में उस खास समूह से फिर जांच करने को कहा गया। यदि किसी घोल के बारे में समान संख्या में समूहों के अवलोकन एक-दूसरे से अलग हों तो सभी समूहों को फिर से प्रयोग करने को कहा गया। मैंने सभी अवलोकन बोर्ड पर सारणी में लिखे। मैंने विभिन्न रंगों की चॉक का प्रयोग किया ताकि सारणी में पैटर्न तलाश करना आसान हो।

सभी अवलोकन एकत्र करने के बाद मैंने उनसे पूछा कि वे इस सारणी को देखकर क्या-क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं। पहला व्यवधान आला ब्लीच व्हाइटनर और वॉटर कलर के कारण आया। बच्चों ने बताया कि वॉटर कलर सभी पट्टियों को रंगीन और आला ब्लीच (धोने या सफाई में प्रयोग होने वाला) सभी पट्टियों को रंगहीन कर सकता है।

मुझे बच्चों से कहना पड़ा कि ये दो अवलोकन हमें किसी वैध परिणाम तक पहुंचने में मदद नहीं कर रहे हैं इसलिए हम इन्हें फिलहाल छोड़ देंगे और दूसरे परिणामों की चर्चा करेंगे। उन्होंने कई अवलोकन पहचानकर इन्हें व्यक्त किया, जैसे - साबुन पीले हल्दी कागज़ को लाल और गुलाबी गुड़हल कागज़ को हरे में बदल सकता है आदि।

बच्चे सारणी से इस तरह के बहुत-से पैटर्न पहचान रहे थे फिर भी मैं उनसे और अधिक की मांग कर रहा था। तब एक बच्चे ने कहा, ‘‘सर, पीले हल्दी कागज़ और गुलाबी गुड़हल कागज़ के स्तंभ समान हैं और इसी तरह लाल हल्दी कागज़ एवं हरे गुड़हल कागज़ के कॉलम समान हैं।’’ उसके इस अवलोकन से बात आगे बढ़ पाई। मैंने उसकी तारीफ की और इसे दूसरों को भी समझाया, पर मैं और अधिक इंतज़ार नहीं कर सका और उनसे सीधे इन परिणामों के आधार पर पदार्थों को श्रेणीबद्ध करने को कहा। चूंकि वे काफी लंबे समय से सारणी पर गौर कर रहे थे, उन्होंने इसे जल्दी ही पकड़ लिया। तब मैंने चर्चा में सहायता की और परिणामों को सारणी में लिखा।

क. पदार्थ जिन्होंने पीले हल्दी कागज़ को लाल और गुलाबी गुड़हल कागज़ को हरे में बदला।
ख. पदार्थ जिन्होंने लाल हल्दी कागज़ को पीले और हरे गुड़हल कागज़ को गुलाबी में बदला।
ग. पदार्थ जिन्होंने बिल्कुल कोई रंग नहीं बदला।
अब हम बिल्कुल स्पष्ट कह सकते थे कि जो पदार्थ श्रेणी क में हैं वे समान प्रकृति के हैं, इसी तरह श्रेणी ख के पदार्थ भी समान प्रकृति के हैं और यही श्रेणी ग के साथ भी है। इसी प्रकार, हम अपने आसपास की सभी चीज़ों को इन तीन श्रेणियों में बांट सकते हैं। इन श्रेणियों के नाम हैं और हम भी इनको नए नाम दे सकते हैं, पर हम परंपरागत नामों के साथ चलेंगे।

क. इस समूह को क्षारीय प्रकृति की चीज़ें कहा जाता है।
ख. इस समूह को अम्लीय प्रकृति की चीज़ें कहा जाता है।
ग. इस समूह को उदासीन प्रकृति की चीज़ें कहा जाता है।

और हमने जांच के लिए गुड़हल कागज़ या हल्दी कागज़ जैसे जिन माध्यमों का प्रयोग किया वे ‘सूचक’ कहे जाते हैं। इनकी जांच करने के लिए फिर हमने मानक सूचकों का प्रयोग किया। सर्वाधिक सामान्य रूप से उपलब्ध होने वाला एक सूचक लिटमस कागज़ है। ये दो रंगों नीले और लाल में होता है।
अध्याय का यह हिस्सा हमने थोड़ा जल्दी से निपटाया क्योंकि हमारे पास समय की कमी थी। अब यह उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी। आखिरकार हमने अन्तिम सारणी उनकी पुष्टिकारक जांच के साथ समाप्त की।


प्रमोद मैथिल: एकलव्य के विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम में 6 साल काम करने के बाद पुणे के पास कृष्णमूर्ति फांउडेशन ऑफ इंडिया के सहयाद्री स्कूल में कक्षा छठवीं के विद्यार्थियों को विज्ञान एवं गणित पढ़ा रहे हैं।
सभी फोटो - प्रमोद मैथिल।
इंग्लिश से अनुवाद - के. बी. सिंह। अनुवाद, लेखन एवं संपादन के क्षेत्र में कार्यरत। लखनऊ में निवास।