अरविन्द गुप्ते


चींटियों को कौन नहीं जानता? हमारे आसपास के सभी जन्तुओं में सबसे अधिक संख्या में पाए जाने वाले और सबसे अधिक परिचित जन्तु चींटियां ही हैं। चींटियों की लगभग 20,000 प्रजातियां संसार में पाई जाती हैं। बहुत अधिक ठंडे प्रदेशों को छोड़कर दुनिया के हर भाग में चींटियां आराम से रह लेती हैं। लगभग 10 से 15 करोड़ वर्षों से चींटियां पृथ्वी पर रह रही हैं। इस अवधि में जन्तुओं की कई प्रजातियां आईं और नष्ट हो गईं।
चींटियों की एक बड़ी विशेषता है उनकी सामाजिक संरचना। दीमक और मधुमक्खियों के समान ही चींटियों का एक समाज होता है और इसके नियमों का कड़ाई से पालन किया जाता है ताकि सामाजिक व्यवस्था पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहे।
आमतौर पर बरसात के दिनों में प्रजनन करने वाली नर और मादा चींटियां पैदा होती हैं। इनके पंख होते हैं और बांबी से निकलते ही ये उड़ने लगती हैं। एक मादा चींटी के साथ कई नर होते हैं जिनमें से एक या एक से अधिक नर मादा के साथ संभोग करके उसे अंडे देने के योग्य बना देता है। इस उड़ान को वैवाहिक उड़ान कहते हैं। इस उड़ान के बाद नर चींटियों का जीवन समाप्त हो जाता है और वे मर जाती हैं। मादा किसी बिल में या पत्थर के नीचे छुप जाती है और अंडे देने लगती है। चूंकि अब उसे उड़ने की आवश्यकता नहीं रह जाती, उसके पंख नष्ट हो जाते हैं।

जीवन चक्र और काम का बंटवारा
चींटियों के जीवन चक्र में चार अवस्थाएं होती हैं - अंडा, लार्वा, प्यूपा और वयस्क। शुरुआती अंडों में से निकलने वाली लार्वा चींटियों की देखभाल मादा चींटी करती है, किन्तु पर्याप्त संख्या में बच्चे पैदा होने और इनके बड़े होने पर ये सामाजिक व्यवस्था को सम्हाल लेते हैं। इन्हें मज़दूर चींटियां कहते हैं। ये सब चींटियां मादा होती हैं किन्तु ये बांझ होती हैं, यानी वे अंडे नहीं दे सकतीं। इनका जीवनकाल 4 से 7 वर्षों का होता है। अब मूल मादा चींटी केवल अंडे देने का काम करती है और बांबी में एक ही स्थान पर बैठी रहती है। इसे रानी चींटी भी कहते हैं। उसके शरीर की सफाई करना, उसे भोजन लाकर देना आदि काम मज़दूर चींटियां करती हैं। इसके अलावा मज़दूर चींटियों के मुख्य काम इस प्रकार होते हैं - बांबी के बाहर जाकर भोजन इकट्ठा करना और उसे लाकर बांबी में जमा करना, बढ़ती आबादी के हिसाब से बांबी को आवश्यकता अनुसार बड़ा करते जाना तथा बांबी की साफ-सफाई करना, अंडों व बच्चों की देखभाल करना व उन्हें भोजन देना आदि।

चींटियों के समाज में पाए जाने वाली इन तीन जातियों यानी रानी, नर और मज़दूर में हम केवल मज़दूर चींटियों को ही देख पाते हैं। रानी तो स्थाई रूप से बांबी में रहती है और केवल अंडे देने का काम करती है। वह 15 साल तक जीवित रह सकती है और अपने पूरे जीवनकाल में लगभग 70,000 अंडे देती है। नर का जीवनकाल बहुत ही कम होता है और वे वैवाहिक उड़ान के बाद दो हफ्ते के भीतर मर जाता है।

चींटियों की विभिन्न प्रजातियों के आकार, रंग-रूप, भोजन और व्यवहार में बहुत अधिक भिन्नता पाई जाती है। आपने स्वयं देखा होगा कि काली चींटियों की तुलना में लाल रंग की चींटियां काफी आक्रामक होती हैं और तुरन्त काट लेती हैं। इनका विष (फॉर्मिक एसिड) भी अधिक जलन पैदा करता है। काले और लाल रंग के अलावा चींटियां भूरी और पीली भी होती हैं। एक प्रजाति की चींटियों की लम्बाई एक इंच यानी दो सेन्टीमीटर से अधिक होती है, वहीं कुछ अन्य प्रजातियों की चींटियां मुश्किल से एक इंच के पच्चीसवें भाग के बराबर यानी एक मिलीमीटर लम्बी होती हैं।

हमारे देश में आमतौर पर तीन-चार प्रजातियों की चींटियां घरों में पाई जाती हैं। इनमें सबसे बड़ी प्रजाति वह होती है जिसे हम चींटा या मकोड़ा कहते हैं। कई लोग यह समझ बैठते हैं कि छोटी तो चींटी यानी मादा होती है, और बड़ा चींटा यानी नर होता है। किन्तु जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं, बांबी के बाहर दिखाई देने वाली सभी चींटियां केवल बांझ मादाएं ही होती हैं। दरअसल, छोटी चींटी व बड़ा मकोड़ा, दोनों चीटियों की अलग-अलग प्रजातियां हैं।

संपर्क बनाए रखना
चींटियों का आपस में सम्पर्क दो तरीकों से होता है। इनके शरीर से एक प्रकार का हारमोन निकलता है जिसे फेरोमोन कहते हैं। एक दूसरे के फेरोमोन को सूंघकर चींटियां सम्पर्क बनाए रखती हैं। आपने देखा होगा कि चींटियों की कतार के रास्ते को गीले कपड़े से पोंछ दिया जाए तो पीछे से आने वाली चींटियां भ्रमित हो जाती हैं। इसका कारण यह है कि आगे जाने वाली चींटियों की गंध समाप्त हो जाती है। चींटियों का आपस में सम्पर्क बनाए रखने का दूसरा तरीका एक-दूसरे के स्पर्शक यानी एन्टिना को छूना होता है।
चींटियों की अलग-अलग प्रजातियां शाकाहारी, मांसाहारी या सर्वाहारी होती हैं। कुछ चींटियों का व्यवहार बड़ा ही रोचक होता है। कुछ प्रजातियों की चींटियां एक विशेष प्रकार की फफूंद को भोजन के रूप में लेती हैं और वे इस फफूंद की बाकायदा खेती करती हैं। इसके लिए पौधों की पत्तियों को चबाकर उनकी लुगदी बनाई जाती है, और फिर इस लुगदी पर फफूंद के बीज बोए जाते हैं। कुछ प्रजातियों की चींटियां एक प्रकार के कीटों के शरीर से निकलने वाले रस को पीती हैं और वे इन कीटों को पकड़ कर अपनी बांबी में इस प्रकार पालती हैं जैसे मनुष्य गाय-भैंसों को पालता है। पेड़ों पर रहने वाली लाल रंग की बड़ी चींटियां (जिन्हें बरबूटा भी कहते हैं) पत्तियों को आपस में सीलकर घोंसला बनाती हैं। पत्तियों को सिलने के लिए उपयोग में लाया जाने वाला धागा भी बड़ा मज़ेदार होता है। यह इन चींटियों के लार्वा के शरीर से निकलने वाला रेशम होता है। मज़दूर चींटियां इन लार्वा के शरीर को ही सुई के समान इस्तेमाल करके पत्तियों को जोड़ कर घोंसला बनाती हैं।

अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के जंगलों में पाई जाने वाली आर्मी (सेना) चींटियां लाखों की संख्या में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाती हैं और रास्ते में पड़ने वाले सभी जीवधारियों को चट करती जाती हैं। कुछ प्रजातियों की चींटियां दूसरी प्रजातियों की चींटियों की बांबियों पर हमला करके उनके लार्वा को उठा लाती हैं और फिर इनसे गुलामों के समान काम करवाती हैं।


अरविंद गुप्ते: एकलव्य के शैक्षणिक कार्यक्रमों से लंबा जुड़ाव, इंदौर में निवास।