लेखक :  दीपक धर
अनुवाद: मनीषा शर्मा

इस साल राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर मैंने मुम्बई में किशोर वय के छात्रों एवं छात्राओं के लिए एक व्याख्यान दिया था। इसमें मैंने बताया कि ठोस, द्रव और गैसों में क्या फर्क हैं। इसके अलावा इनसे कुछ भिन्न दानेदार पदार्थों (पाउडर) की भी चर्चा की। दानेदार पदार्थ कुछ मायनों में ठोस पदार्थों की तरह और कुछ मायनों में द्रव की तरह व्यवहार करते हैं। यहाँ उस ही वार्ता में कही गई बातों को संक्षेप में लिख रहा हूँ।
“यह सर्वविदित है कि द्रव्य तीन रूप में विद्यमान होते हैं - ठोस, द्रव और गैस।”

यह उद्धरण मैंने एन.सी.ई.आर.टी. कक्षा 11वीं की पुस्तक से लिया है। लेकिन किसी भी अन्य पाठ्यपुस्तक में ऐसा ही कथन मिल जाएगा। यह कथन काफी स्पष्ट और गैर-विवादास्पद लगता है, और अनेकों बार दोहराया जा चुका है। आज की चर्चा में मैं इसी जन-स्वीकृत बात के सच को पुन: परखना चाहता हूँ। इस प्रक्रिया में हम द्रव्य (matter) की विभिन्न अवस्थाओं के बारे में भी कुछ जानेंगे।
परन्तु ठोस पदार्थों या द्रव पदार्थों या गैसों के गुणधर्मों के बारे में और अधिक जानकारी देना मेरा मुख्य उद्देश्य नहीं है। दरअसल, मैं कहना चाहता हूँ कि आप लोग बिना सोचे-समझे ऐसे किसी भी कथन को स्वीकार न करें। अगर आप थोड़ा-सा भी सोचने की ज़हमत उठाएँगे तो समझ जाएँगे कि यह कथन पूरी तरह सही नहीं है। विद्यार्थियों को स्वयं भी विचार करना चाहिए और जो बताया या पढ़ाया जा रहा है वह सही है या नहीं, यह सोचना चाहिए। और यह भी कि अगर यह सही भी है, तो कितनी हद तक? आज मेरा असली मकसद यही है। और यह काम हम द्रव्य की अवस्थाओं की चर्चा के उदाहरण के ज़रिए करेंगे।

अवस्थाएँ तीन ही क्यों?
चलिए शुरुआत हम यह पूछकर करते हैं कि द्रव्य की अवस्थाएँ तीन ही क्यों हैं। यह कुछ-कुछ ऐसा ही प्रश्न है जैसे -- हमारे ब्रह्माण्ड के आयाम तीन ही क्यों हैं? या क्वार्क कणों के तीन समूह क्यों हैं? थोड़ी देर सोचने पर आप समझ जाएँगे कि इसका सही जवाब है कि जिस तरह अपनी सुविधा के लिए हम फाइलों को अलमारी की निर्धारित दराज़ों में रखते हैं, उसी तरह द्रव्य की अवस्थाएँ भी द्रव्यों के वर्गीकरण का एक तरीका है। द्रव्य बहुत सारे हैं, और हम उन्हें समूहों में बाँटने का ऐसा तरीका चुनते हैं जो सबसे अधिक सुविधाजनक हो। वर्गीकरण के कुछ अन्य तरीके भी हो सकते हैं -- पदार्थ के नाम के पहले वर्ण के अनुसार (जैसे शब्दकोष में), या उनके गुणधर्मों के आधार पर (जन्तुओं की विभिन्न प्रजातियों का प्राणि-वैज्ञानिक वर्गीकरण) या इन दोनों के बीच का कोई तरीका (जैसे पुस्तकालय में किताबें)। द्रव्यों का रंग, विद्युत चालकता या कार्बनिक-अकार्बनिक, या ऊष्मा के सुचालक हैं कि नहीं आदि के आधार पर भी वर्गीकरण किया जा सकता है। ये सभी तरीके उपयोगी हैं, और ज़रूरत के हिसाब से इनका इस्तेमाल किया जाता है।

एक बार जब हमने यह तथ्य समझ लिया कि द्रव्य की विभिन्न अवस्थाएँ अलग-अलग विषयों की फाइलों के लिए निर्धारित अलमारी की विभिन्न दराज़ों की तरह हैं तो दराज़ों की संख्या का मामला पूरी तरह से सुविधा पर निर्भर है। किसी एक वर्ग को कभी भी छोटे वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, या कभी कई छोटे वर्गों को मिलाकर बड़ा वर्ग बनाया जा सकता है। अत: द्रव्य की विभिन्न अवस्थाओं की संख्या कोई गूढ़ प्रश्न नहीं है: हम इसे जो भी संख्या चाहें, वह बना सकते हैं।
कभी-कभी इस प्रकार की चर्चा सिर्फ शब्दों की चर्चा बनकर रह जाती है जैसे -- ठोस, द्रव और गैस की परिभाषा शब्दकोष के अनुसार क्या है? हम यहाँ शब्दों की चर्चा नहीं कर रहे हैं। हम शब्दों के पीछे छिपे विचारों की चर्चा कर रहे हैं। आप कह सकते हैं कि, “यह तो बोल-चाल की भाषा का शब्द है। इसका कोई सुनिश्चित अर्थ नहीं है।” पर विज्ञान में बहुत-से बोल-चाल के शब्दों को अपनाया गया है पर उनके अर्थ सीमित और सुनिश्चित कर दिए जाते हैं। बल, कार्य, दबाव जैसे शब्दों के साधारण भाषा में कई विभिन्न अर्थ हो सकते हैं। जैसे आप बलपूर्वक बोल सकते हैं, या राजनैतिक दबाव डाल सकते हैं। लेकिन विज्ञान में इन शब्दों के कई अर्थों में से, प्रयोग केवल एक अर्थ तक सीमित कर दिया गया है। जैसे बल को आप हमेशा न्यूटन में माप सकते हैं। अत: हम यह आशा कर सकते हैं कि ‘ठोस’ जैसे सामान्य भाषा के शब्द को भी विज्ञान में एक सुनिश्चित अर्थ दिया गया है।

मैं शुरु में ही स्पष्ट कर दूँ कि द्रव्य की ‘अवस्थाएँ (states)’ और द्रव्य की ‘प्रावस्थाएँ (phases)’ दोनों समानार्थी नहीं हैं। उदाहरण के लिए, आप एक चुम्बक लें। यदि आप उसे क्यूरी तापमान तक गर्म करें तो वह अचुम्बकीय हो जाएगा। यहाँ पर फेज़ परिवर्तन तो है - चुम्बकीय फेज़ से अचुम्बकीय फेज़ में, परन्तु पूरी प्रक्रिया के दौरान वह रहता ठोस ही है। इसलिए उसकी अवस्था में कोई परिवर्तन नहीं होता।
द्रव्य की ‘अवस्थाएँ’ द्रव्य की ‘प्रावस्थाओं’ की तुलना में मोटा वर्गीकरण है। यहाँ हम द्रव्य के विभिन्न ‘फेज़’ की चर्चा नहीं करेंगे और अपनी बात को सरल द्रव्यों तक ही सीमित रखेंगे। सलाद या कढ़ी जैसी चीज़ों का वर्गीकरण ज़रा ज़्यादा कठिन है। इन चीज़ों के सब भाग एक से नहीं होते। हम केवल सरल एवं समरूप (homogenous) द्रव्यों की ही चर्चा करेंगे।

पहले हम वर्गीकरण के तरीकों की चर्चा करेंगे, फिर मैं समझाऊँगा कि द्रवों और गैसों को द्रव्य की एक ही अवस्था क्यों माना जाना चाहिए। इसके बाद हम ठोस और तरल वस्तुओं के अन्तरों पर नज़र डालेंगे, और ठोस वस्तुओं की कुछ प्रस्तावित परिभाषाओं की आलोचना करेंगे। फिर मैं ऐसे द्रव्यों की चर्चा करूँगा जो ठोस और तरल दोनों तरह के पदार्थों से अलग हैं, और उन्हें द्रव्य की एक अलग अवस्था ही मानना चाहिए। समय की कमी की वजह से मैं ऐसे एक ही वर्ग की चर्चा करूँगा -- दानेदार पदार्थ (पाउडर), और उनके कुछ विलक्षण गुणधर्मों (unusual properties) का ज़िक्र करूँगा। और फिर अन्त में पूरी चर्चा का सार प्रस्तुत करूँगा।

अच्छा वर्गीकरण कैसे हो?
एक अच्छी वर्गीकरण योजना के लिए पहली ज़रूरत है कि वर्गों की कुल संख्या कम होनी चाहिए। यदि आपके पास पाँच सौ वर्ग हों तो ऐसा वर्गीकरण इतना उपयोगी नहीं होगा। ज़रूरत पड़ने पर प्रत्येक वर्ग को उप-वर्गों में बाँटा जा सकता है। जीव-जगत का वर्गीकरण हो या पुस्तकालय में किताबों का वर्गीकरण, ऐसे ही किया जाता है।
अच्छे वर्गीकरण की दूसरी ज़रूरत है वर्गों की स्पष्ट और संशयरहित परिभाषा। ताकि यदि आप मुझे कोई वस्तु दें तो मैं बता सकूँ कि वह किस वर्ग में है। कोई संशय या उलझन नहीं होनी चाहिए कि इसे किस वर्ग में रखा जाए। क्या द्रव्य ‘अ’, वर्ग ‘स’ में है या नहीं, इसका उत्तर साफ-साफ हाँ या ना में होना चाहिए।

तीसरी ज़रूरी बात है वर्गीकरण का आसान होना। यह तय करने के लिए कि कोई दी गई वस्तु किस वर्ग में है, बहुत मेहनत की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए। तय करने के लिए आपको कुछ परीक्षण तो करने पड़ेंगे, पर वांछित है कि इन परीक्षणों में ऐसे उपकरणों की आवश्यकता न हो जो महँगे हों या आसानी से उपलब्ध न हों।

चौथी ज़रूरत है -- स्वाभाविकता और उपयोगिता। वैसे मैं इन्हें अलग-अलग भी रख सकता था, लेकिन मैंने जान-बूझकर दोनों को साथ रखा है। यहाँ ‘स्वाभाविक’ का मतलब है कि वर्गीकरण को मनमाना या बनावटी नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिए, मैं कह सकता हूँ कि कोई वस्तु ठोस है यदि उसका घनत्व किन्हीं इकाइयों में ु2 से ज़्यादा है। यह तो एक मनमानी और बनावटी परिभाषा है (यही मूल्य क्यों चुना?)। ऐसी कृत्रिम और अस्वाभाविक परिभाषाएँ उपयोगी नहीं होतीं, क्योंकि फिर इस बात की काफी सम्भावना रहती है कि कोई और व्यक्ति उसी परिभाषा के लिए कोई दूसरा मूल्य चुन लेगा। तब ऐसा हो सकता है कि कोई वस्तु भारत में तो ठोस कहलाएगी पर चीन में नहीं। यदि आप मनमाने ढंग से परिभाषा बनाएँगे तो उसके उपयोगी होने की कोई सम्भावना नहीं रहती, क्योंकि वस्तु इस परिभाषित वैध सीमा के अन्दर हो या बाहर, उसके गुण एक से होते हैं।

ठोस, द्रव और गैसों के लक्षणों से मनुष्य बहुत पुराने ज़माने से परिचित है। यदि आप तेल खरीदने बाज़ार जा रहे हैं तो यह जानना उपयोगी है कि साथ में एक बोतल ले जानी चाहिए। ठोस और द्रवों के बीच में खास अन्तर यही है कि उनको उठाने, रखने, हिलाने-डुलाने का ढंग फर्क है। जैसे, क्या आप उस पदार्थ को सिर्फ हाथों से उठा सकते हैं या चम्मच का इस्तेमाल करना पड़ेगा? ठोस, द्रव और गैस के रूप में सुपरिचित वर्गीकरण, द्रव्य के इन्हीं यांत्रिक गुणधर्मों (mechanical properties) पर आधारित है।

द्रव और गैस
चित्र-1 किसी सामान्य पदार्थ, जैसे पानी, की विभिन्न अवस्थाओं को दर्शाता है। इसे फेज़ डायग्राम कहते हैं। चित्र में तापमान को ज्र् अक्ष पर और दबाव को ज्ञ् अक्ष पर अंकित किया गया है। किसी विशिष्ट तापमान और दबाव के लिए द्रव्य किसी विशेष अवस्था में रहता है और मोटेतौर पर उसे ठोस, द्रव और गैस नाम दिया जाता है। अत: यदि आप ठोस से शुरुआत करें और दबाव को स्थिर रखकर तापमान को धीरे-धीरे बढ़ाते जाएँ, तो ठोस पिघल कर द्रव बन जाता है, और उसके बाद उबलकर गैस में परिवर्तित हो जाता है। लेकिन प्रायोगिक तौर पर देखा गया है कि एक खास दबाव के ऊपर यदि आप द्रव को गर्म करते हैं तो कोई विशिष्ट क्वथनांक (boiling point) नहीं मिलता। द्रव बिना किसी आकस्मिक परिवर्तन के, धीरे-धीरे अधिक गरम होता चला जाता है। यानी एक ऐसा चरम बिन्दु (critical point) होता है जिसके ऊपर द्रव और गैस में कोई अन्तर नहीं किया जा सकता (देखिए चित्र-1)। यदि मैं ठोस-द्रव-गैस अवस्था वाले क्षेत्रों को क्रमश: नीले, हरे और लाल रंगों से दर्शाऊँ तो मुझे यह तय करने में कठिनाई होगी कि हरे और लाल क्षेत्र के बीच की सीमा रेखा कहाँ खींचूँ। हम जो भी विकल्प चुनेंगे वह मनमाना (arbitrary) होगा। दूसरे शब्दों में, द्रव और गैस, दरअसल, एक ही अवस्था है, और इकट्ठे रूप में उन्हें तरल अवस्था (fluid state) कहा जाता है। वास्तव में, यह कोई नई बात नहीं है और सब वैज्ञानिक जानते हैं, परन्तु स्कूल की पाठ्यपुस्तकें अभी तक यही सिखाती चली आ रही हैं कि द्रव्य की तीन अवस्थाएँ होती हैं।

इस तरह मेरी वर्गीकरण की समस्या द्रव्य की तीन अवस्थाओं से घटकर अब दो अवस्थाओं तक सिमट कर रह गई है। कभी-कभी लोग कहते हैं कि प्लाज़्मा द्रव्य की चौथी अवस्था है। आप पूछेंगे कि प्लाज़्मा क्या है? यदि आप किसी गैस को गर्म करते जाते हैं, तो तापमान बढ़ने पर उसके अणुु आयनों में बदलते जाते हैं। जब द्रव्य बहुत अधिक मात्रा में आयनीकृत हो जाता है तो उसे ‘प्लाज़्मा’ कहा जाता है। प्लाज़्मा विद्युत क्षेत्रों से सरलता से प्रभावित होते हैं। यहाँ भी गैस व प्लाज़्मा के बीच कोई निश्चित सीमा-रेखा नहीं है। जैसे-जैसे तापमान बढ़ाते हैं, आयनीकरण बराबर बढ़ता जाता है। अत: गैस और प्लाज़्मा के बीच खींची कोई भी सीमारेखा मनमानी, कृत्रिम और अस्वभाविक होगी। इसीलिए, प्लाज़्मा और गैसीय अवस्थाएँ भिन्न नहीं हैं, वे एक ही अवस्था हैं।

ठोस व तरल अवस्थाओं में फर्क
आइए, अब सोचें कि ठोस और तरल अवस्थाओं में क्या अन्तर है।
परिभाषा-1 “ठोस पदार्थों का एक निश्चित आकार और एक निश्चित आयतन होता है, वहीं द्रवों का एक निश्चित आयतन तो होता है परन्तु कोई निश्चित आकार नहीं होता। जबकि गैसों का न तो निश्चित आकार होता है, न ही आयतन।”
यह परिभाषा मुझे अपने स्कूल के दिनों से याद है। शायद यह आपकी पाठ्यपुस्तक में भी होगी। परन्तु चलिए, हम इसके बारे में ज़रा सोचें। चित्र-2 में मैंने एक गेंद (मान लें कि रबर की बनी हुई, आधी लाल और आधी हरे रंग की) की दो तस्वीरें दिखाई हैं। जब आप गेंद को मेज़ पर रखते हैं, तो स्पष्ट रूप से वह थोड़ी-सी दब जाती है। और अगर आप उलट कर रख दें तो भी वह फिर से दब जाती है। यानी ऐसा करने पर उसका आकार बदल गया, क्योंकि अगर पहले लाल हिस्सा पिचका था तो बाद में हरा हिस्सा पिचक गया। हमारी परिभाषा के मद्देनज़र क्या गेंद ठोस है या नहीं? कहने का मतलब है कि सभी द्रव्यों में एक सीमित सम्पीड़िता (finite compressibility- दबने की क्षमता या दबने का गुण) होती है और बल के प्रभाव से उनका आकार थोड़ा-बहुत बदलता ही है।
चलिए अब एक दूसरी परिभाषा लेते हैं,

परिभाषा-2: “ठोस पदार्थों में परमाणु अपनी मध्य-स्थिति के आस-पास ही कम्पन करते हैं परन्तु तरल पदार्थों में वे समस्त उपलब्ध जगह में गति करते हैं (move about)।”
इस परिभाषा में एक व्यवहारिक समस्या है। यहाँ परमाणुओं की बात हो रही है, जिन्हें मैं नग्न आँखों से नहीं देख सकता। परन्तु अगर आप किसी ठोस में एक परमाणु को लें, एवं किसी प्रकार से उसे चिन्हित कर लें अौर इस परमाणु की गति का लगातार अवलोकन करते रहें -- तो कुछ समय बाद आप देखेंगे कि वास्तव में, वह परमाणु और बड़ी होती दूरियों के बीच डोलता रहता है। अत: सभी कण समय के साथ विसरित (डिफ्यूज़) होते हैं, और यह विसरण स्थिरांक निश्चित होता है। ऐसा माना जाता है कि चिन्हित किए गए कण के माध्य विस्थापन का वर्ग (ङ2) समय के साथ रैखिक रूप से बढ़ता है:
(ङ2) फ़् क़्द्य
यहाँ विसरण स्थिरांक क़् निश्चित है। ठोस पदार्थों में, एक परमाणु एक मिनट में लगभग 0.0001 मिलीमीटर की दूरी तय करता है। द्रवों में लगभग 1 मिलीमीटर और गैसों में एक मिनट में लगभग 100 मिलीमीटर की दूरी तय करता है। अत: यह कहना ठीक नहीं है कि ठोस पदार्थों के परमाणु समस्त उपलब्ध स्थान में गति नहीं करते। अगर आप पर्याप्त इन्तज़ार करें तो वे ज़रूर गति करते हैं।
अब हम एक अन्य परिभाषा अपना कर देखें:

परिभाषा-3: “ठोस पदार्थों में परमाणु एक व्यवस्थित आवर्ती विन्यास (ordered periodic arrangement) में होते हैं और यह विन्यास बहुत दूर तक रहता है (long-range order)। तरल पदार्थों में विन्यास केवल कम दूरी तक होता है (short-range order)।”
ठोस पदार्थों में आपको एक नियमित आवर्ती विन्यास की अपेक्षा रहती है, और द्रवों में आपको अनियमित विन्यास मिलता है। सबसे पहले तो, परमाणुओं में उष्मीय गति होती है। वे स्थिर स्थिति में नहीं होते, चारों ओर डोलते रहते हैं। यदि आप किसी भी समय तस्वीर लें तो आपको यह ऊपर दिखाया गया सुन्दर आवर्ती विन्यास नहीं मिलेगा। प्रत्येक परमाणु अपनी स्थिति से थोड़ा विस्थापित मिलेगा। तो फिर इसमें और अन्य में विभेद कैसे करें?
इनमें अन्तर करने की एक तकनीक है जिसमें इसकी एक्स-रे विवर्तन (X-ray diffraction) तस्वीर खींची जाती है। यदि आपको स्पष्ट तीखी चोटियाँ मिलती हैं तो वह सम्पूर्ण आवर्ती संरचना है, और यदि तीखी चोटियाँ नहीं हैं तो वह लम्बी श्रेणी की आवर्ती व्यवस्थित संरचना नहीं है।
हालाँकि यदि आप कहते हैं कि लम्बी श्रेणी वाली आवर्ती व्यवस्थित संरचनाएँ ठोस हैं, और अन्य नहीं हैं तो प्लास्टिक या कोई अक्रिस्टलीय पदार्थ जैसे खिड़की का काँच, ठोस की श्रेणी में नहीं आएँगे। इसलिए यह परिभाषा भी अच्छी परिभाषा नहीं है। एक अन्य परिभाषा है जिसके अनुसार:

परिभाषा-4: “ठोस पदार्थों का एक सीमित प्रतिबल मापांक (finite shear modulus) होता है। जबकि द्रवों का नहीं होता।”
हो सकता है कि उपरोक्त परिभाषा आपने न देखी हो, परन्तु यही परिभाषा है जिसे अधिकांश भौतिकशास्त्री सबसे अधिक पसन्द करते हैं। प्रतिबल मापांक क्या है? एक तार पर वज़न लटका कर उसे छत से टाँगें। यदि आप वज़न को घुमाव (ऐंठन) देकर छोड़ देते हैं तो वह दोलन करने लगता है और आपको एक ऐंठन पैण्डुलम मिल जाता है। यदि वहाँ कोई प्रत्यानयन बल (restoring force), जो ऐंठन को खोलने की कोशिश करता है, नहीं होता तो वह वज़न दोलन नहीं करता।

अब मान लीजिए कि आपके पास एक के भीतर एक ऐसे दो बेलनाकार पाइप हैं, और आप इनके बीच किसी द्रव को भरकर फिर भीतरी पाइप पर घुमाव देते हैं। इस स्थिति में कोई प्रत्यानयन बल काम नहीं करता। अत: द्रवों में अपरूपण (shear) के विरुद्ध कोई प्रत्यानयन बल नहीं होता, परन्तु ठोस पदार्थों में होता है। सामान्यत: ठोस पदार्थों और द्रवों के बीच यह भेद माना जाता है।
यद्यपि, इसमें भी एक समस्या है। होता क्या है कि यदि आप एक ठोस चीज़ लेते हैं, उस पर घुमाव देते हैं, यानी उसे ऐंठ देते हैं, और उसे लम्बे समय तक वैसे ही पकड़ कर रखते हैं, तो छड़ के द्वारा महसूस किया जाने वाला बल समय के साथ घट जाता है। इसे एक प्रकार का ठोस पदार्थों का मन्द विरूपण (creep) कहा जाता है। इस तनाव के प्रभाव में पदार्थ अपने-आप को पुनर्व्यवस्थित कर लेता है और अणु इस तनाव से मुक्तहोने के लिए गति करते हैं। इस प्रकार प्रतिबल मापांक कितना है या प्रत्यानयन बल कितना है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप उसे मापने से पहले कितने समय तक इन्तज़ार करते हैं। इसलिए यदि आप काफी लम्बा समय लेते हैं, तो हो सकता है कि उसे कोई बल महसूस न हो।

प्रतिबल मापांक की परिभाषा बहुत ही धीमी गति से परिवर्तित होने वाले बलों पर आधारित है। ऐसा प्रतीत होता है कि यदि आप वाकई काफी लम्बे समय तक इन्तज़ार करें, तो प्रतिबल मापांक हमेशा शून्य हो!
मैं ठोस पदार्थों और द्रवों के बीच के अन्तर पता करने के लिए अन्य सम्भावित परिभाषाएँ ढूँढ़ रहा था। एक ऐसी परिभाषा है जो स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में प्राय: उपयोग नहीं होती, परन्तु उसका हमारे शास्त्रों में पदार्थों में विभेद करने के लक्षण के तौर पर उल्लेख है (नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि....)।
परिभाषा-5: “ठोस पदार्थों को चाकू से काटा जा सकता है, द्रवों को नहीं।”

यह परिभाषा भी ठीक ही लगती है। किसी सख्त, ठोस पदार्थ को काटना मुश्किल होता है, परन्तु अन्तत: आप उसे काट सकते हैं। लेकिन किसी द्रव, जैसे कि पानी, को चाकू से काटने की कोशिश करना व्यर्थ है। यह परिभाषा भी हमारे लिए बहुत उपयोगी नहीं दिखती क्योंकि ठोस पदार्थों में कोल्ड वेल्डिंग सम्भव है। दो ठोस चीज़ों को लें, उन्हें काटें और एक-दूसरे के ऊपर रखें, उन्हें थोड़ा-सा कम्पित करें तो वे फिर से एक हो जाएँगी। इसे कोल्ड वेल्डिंग कहते हैं। किसी द्रव को जब चाकू से काटते हैं तो दो अलग हुए भाग चाकू की काटने वाली किनारी के पीछे फिर से मिल जाते हैं। काटने के बाद फिर से अपने-आप जुड़ जाने की यह प्रक्रिया ठोस पदार्थों और द्रवों, दोनों में एक-सी ही है।
ऐसा लग रहा है कि हम उलझते जा रहे हैं। याद रहे कि हमने शु डिग्री में ही कहा था कि अच्छे वर्गीकरण का एक अहम पहलू है कि परिभाषा एकदम स्पष्ट हो। यह अपेक्षा करना तो उचित प्रतीत होता है, पर अब इसे हासिल करना हमें कठिन लग रहा है।
असल में, ‘ठोस जैसा’ और ‘तरल जैसा’ व्यवहार समय और लम्बाई के पैमानों का मामला है। पानी या पारे की एक छोटी-सी बून्द अपने स्वरूप में परिवर्तन का प्रतिरोध करती है तथा काफी ठोस जैसी होती है। एक ‘तन्य (ductile)’ धातु भी यदि समय के काफी लम्बे पैमानों में देखी जाए तो बहती है। ऊपर हवाई जहाज़ से झील पर गिरने से भी उतनी ही बुरी तरह से हड्डियाँ टूटेंगी जैसे कठोर ज़मीन पर गिरकर टूटतीं। एक अकेली ईंट स्पष्टत: एक ठोस वस्तु है, पर ईंटों से भरे हुए ट्रक को उड़ेला जा सकता है और वह तरल जैसे गुणधर्मों को अपना लेता है। 

पाउडर: एक भिन्न अवस्था
पाउडर दानेदार पदार्थ है, जैसे रेत, गेहूँ और आटा। मैं अब यह कहना चाहूँगा कि वे ठोस और तरल से अलग पदार्थ की एक और अवस्था है। सर्वप्रथम, हम दो प्रकार के पाउडरों में भेद कर सकते हैं: सूखे और गीले पाउडर। आगे की चर्चा में मैं खुद को पहले प्रकार तक ही सीमित रखूँगा।
सबसे पहले, पाउडरों को एक बर्तन से दूसरे बर्तन में डाला जा सकता है और वे बर्तन का आकार ले लेते हैं। इस अर्थ में देखें तो वे तरल पदार्थों जैसे हैं (देखिए चित्र)। लेकिन, यदि हम एक समतल मेज़ पर, उससे ऊपर किसी बिन्दु पर से कोई पाउडर उड़ेलें, तो वह शंकु के आकार की एक ढेरी बना लेता है, जिसकी ढलान वाली सतह क्षैतिज तल के साथ एक निश्चित कोण बनाती है। यह कोण उस पदार्थ का विशिष्ट लक्षण होता है, और उसे विश्राम का कोण (angle of repose) कहते हैं। यदि पाउडर तरल पदार्थ होते तो यह कोण शून्य होता।
सामान्य तौर पर, पाउडरों का बहाव तरल पदार्थों से बहुत अलग होता है। जहाँ तरल अवस्था को अच्छी तरह से समझा जा चुका है, और उसे द्रवगतिकी (hydrodynamics) के नियमों का नाम दिया गया है, वहीं पाउडरों के लिए, अभी द्रवस्थैतिकी (hydrostatics) के मुकाबले में हमारी समझ काफी सीमित है। उदाहरण के लिए, मान लीजिए एक लम्बे बेलनाकार पात्र को ण् ऊँचाई तक रेत या पानी से भरा गया है। तरल पदार्थों के मामले में पात्र के तल पर दबाव स्तम्भ की ऊँचाई के साथ रैखिक रूप से बढ़ता है। रेत के मामले में, प्रारम्भ में दबाव बढ़ता है लेकिन एक सीमा तक ऊँचाई बढ़ने पर भी, उसमें दबाव के एक सीमित सन्तृप्ति मूल्य (finite saturation value) पर थम जाने की प्रवृत्ति होती है (चित्र-5)।

पाउडरों का एक दूसरा रोचक व्यवहार ‘ब्राज़ील-नट प्रभाव’ कहलाता है। इसका सम्बन्ध इस तथ्य से है कि दानेदार मिश्रण को हिलाने पर बड़े और भारी कण ऊपर की ओर आ जाते हैं। इसका नाम इस जानी-पहचानी घटना से आया है कि यदि नट (सूखे मेवे की गिरी, जैसे काजू) से भरे डिब्बे को हिलाएँ तो बड़े दाने ऊपर आ जाते हैं। मुझे बताया गया है कि ऐसा ही रेत से भरे डिब्बे को हिलाने पर उसमें रखे बड़े तोप के गोलों के साथ भी देखा जा सकता है। द्रवों में, भारी तोप के गोलों के डूब जाने की अपेक्षा की जाएगी, न कि उनके तैरने की। ज़ाहिर है कि आर्किमीडिज़ का सुप्रसिद्ध नियम पाउडरों के लिए लागू नहीं होता।
मिश्रणों को हिलाने पर बड़े कणों के साथ में आ जाने की इस घटना के महत्वपूर्ण परिणाम होते हैं। पाउडरों के कई उपयोगों में यह ज़रूरी होता है कि वे अच्छे से मिश्रित किए गए हों, उदाहरण के लिए, दवा की गोलियाँ बनाने में। लेकिन कुछ परिस्थितियों में आकार के आधार पर कण अलग हो जाते हैं और अच्छे से मिलाए गए दानेदार मिश्रण को एक घूमते हुए ड्रम में डालकर घुमाया जाए तो वे कण अलग-अलग हो जाते हैं।

द्रव्य की अन्य अवस्थाएँ
द्रव्य के ऐसे कई अन्य प्रकार भी हैं जिनका गुण ठोस और तरल पदार्थों से काफी भिन्न होता है, अत: उन्हें पदार्थ की एक अलग अवस्था के रूप में वर्गीकृत करना तर्कसंगत प्रतीत होता है। इनमें से प्रत्येक के विस्तृत वर्णन में काफी समय लगेगा। मैं यहाँ उनकी केवल संक्षेप में चर्चा करूँगा। आप इनके बारे में किताबों और इंटरनेट से और ज़्यादा जान सकते हैं।

उदाहरण के लिए, विभिन्न प्रकार के काँच, जैसे खिड़की का काँच, ठोस जैसे दिखते हैं परन्तु उनकी परमाणु संरचना द्रवों के जैसी होती है और वे बहते हुए भी प्रतीत होते हैं, यद्यपि यह प्रक्रिया बहुत धीमी होती है। उन्हें बहुत ही श्यान (viscous) द्रवों की तरह माना जा सकता है, पर शायद वे पदार्थ की एक भिन्न अवस्था के रूप में बेहतर समझे जा सकते हैं। द्रव क्रिस्टल (liquid crystal), जो आपके मोबाइल फोन की स्क्रीन पर जानकारी दर्शाने के लिए उपयोग होता है, तरल पदार्थों के समान बहते हैं, परन्तु वे आंशिक रूप से क्रिस्टलीय परमाणु व्यवस्था दर्शाते हैं, और इसलिए उन्हें ठोस और तरल पदार्थों के बीच की कोई अवस्था माना जा सकता है। ये परमाणु स्तर पर तो ‘ठोस-जैसे’ होते हैं परन्तु बृहद मात्रा में इनका व्यवहार ‘तरल-जैसा’ होता है, जबकि काँच में इसके विपरीत होता है। कम तापमान पर हीलियम, जब वह परम-तरल पदार्थ (superfluid) बन जाता है, या बोस-आइंस्टाइन के संघनन तत्व (condensates) द्रव्य की कम परिचित अवस्थाएँ हैं। ये रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में सामने नहीं आते, परन्तु उनमें बहने के बड़े असाधारण गुण-धर्म होते हैं, और निश्चित ही उन्हें पदार्थ की भिन्न अवस्थाएँ माना जा सकता है। हाल ही में, ‘परम-ठोस (supersolids)’ नामक अवस्था के प्रायोगिक प्रमाण के कुछ संकेत मिले हैं, जिनमें आवर्ती परमाणविक विन्यास होता है, लेकिन वे परम-तरल पदार्थों जैसे बहते हैं। फिर कुछ अन्य पदार्थ भी हैं, जैसे तरह-तरह के कोलाइड, जैल, इमल्शन, फोम, आदि। इन्हें भी पदार्थ की अलग अवस्थाएँ माना जा सकता है, पर हम आपत्ति कर सकते हैं कि वे वास्तव में, समरूप (homogeneous) नहीं होते। पृथ्वी से दूर, न्यूट्रॉन तारों में पदार्थ न्यूट्रॉन के रूप में होता है, और निश्चित रूप से यह पदार्थ की एक और नई अवस्था है। खगोल भौतिकशास्त्री इन दिनों ‘अँधेरे पदार्थ (dark matter)’ की भी बात करते हैं। यदि उसका अस्तित्व सिद्ध होता है, वो पदार्थ की अन्य ज्ञात अवस्थाओं से बहुत ही अलग होगा।

संक्षेप में कहें तो इस पूरी चर्चा में मैंने एक मुख्य बात पर ज़ोर देने की कोशिश की है कि आप जो भी पढ़ें उसके बारे में स्वयं भी विचार करने के महत्व को समझें। दूसरा यह है कि हमें अपनी पाठ्यपुस्तकों में संशोधन करना चाहिए। कभी-कभी बहुत बड़े परिवर्तनों की ज़रूरत नहीं होती, और निश्चित ही कुछ पाठ्यपुस्तकें चीज़ों को ठीक ढंग से कहती हैं। उदाहरण के लिए, पी मैथ्यू (कैंब्रिज विश्वविद्यालय प्रेस) द्वारा लिखी गई पाठ्यपुस्तक ‘एडवांस्ड कैमेस्ट्री’ के अनुसार; ‘लगभग सभी पदार्थ स्पष्ट रूप से तीन श्रेणियों - ठोस, द्रव और गैस - में से किसी एक में आते हैं...’।
मेरे विचार से पदार्थ की विभिन्न अवस्थाओं की बहुत स्पष्ट और सटीक परिभाषा देना कठिन है। यह लम्बाई और समय के पैमानों का प्रश्न है। तेज़ वेग वाले आघातों के लिए पानी की सतह ठोस जैसी सख्त होती है तथा तन्य धातुएँ बहती हैं (उन्हें खींच कर तार बनाया जा सकता है)। विभिन्न प्रकार के पाउडर, पदार्थ की ऐसी अवस्थाओं के उदाहरण हैं जो ठोस और तरल दोनों से भिन्न हैं।
अन्त में विद्यार्थियों को जिज्ञासु होना चाहिए, ऐसा बहुत कुछ है, यहाँ तक कि रोज़मर्रा के जीवन की वस्तुएँ भी, जिसको हम ठीक से नहीं समझते। कुछ भी बेहतर ढंग से समझना बहुत रोमांचक लगता है। आज हमारे राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर यह ध्यान रखना अच्छा है।


दीपक धर: सैद्धान्तिक भौतिकी विभाग, टाटा इंस्टीट्यूट ऑॅफ फण्डामेंटल रिसर्च, मुम्बई में शोधरत।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: मनीषा शर्मा: शिक्षा और व्यवसाय से चिकित्सक हैं। विज्ञान और शिक्षा में गहरी रुचि। अनुवाद करने में रुचि। दिल्ली में निवास।