मैरी हाल्टन

ऐसा  लगता  है  कि  यह  मात्र खुशफहमी नहीं है कि लम्बे सूखे मौसम के बाद बारिश की खुशबू इतनी प्यारी लगती है। इसमें कुछ रासायनिक मामला भी है। बारिश के बाद हमें स्वच्छ हवा और गीली मिट्टी की जो खुशनुमा गन्ध महसूस होती है, उसमें शायद बैक्टीरिया, पेड़-पौधों और यहाँ तक कि वज्रपात की भी भूमिका हो सकती है। माटी की इस सौंधी गन्ध को पेट्रीकॉर कहते हैं और वैज्ञानिक एवं अत्तार लम्बे समय से हाथ धोकर इसके आकर्षण के पीछे पड़े रहे हैं।

माटी की गन्ध को यह नाम सबसे पहले 1960 के दशक में दो ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने दिया था। जब सूखी धरती पर बारिश की बूँदें गिरती हैं तो जो गन्ध हमें लुभाती है, वह बैक्टीरिया पैदा करते हैं। जॉन इनेस सेंटर के आणविक जीव विज्ञान विभाग के मुखिया प्रोफेसर मार्क बटनर बताते हैं, “ये जीव मिट्टी में बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। तो जब आप कहते हैं कि हमें नम मिट्टी की गन्ध आ रही है  तो  वास्तव  में  आप  कतिपय बैक्टीरिया द्वारा बनाए गए एक अणु को सूंघ रहे होते हैं।” इस अणु का नाम  जियोस्मिन  है  और  इसे स्ट्रेप्टोमायसीस बैक्टीरिया बनाते हैं। अधिकांश स्वस्थ मिट्टियों में पाए जाने वाले इन बैक्टीरिया का उपयोग व्यापारिक स्तर पर एंटीबायोटिक बनाने में भी किया जाता है। जब बारिश की बूँदें ज़मीन पर गिरती हैं, तो वे जियोस्मिन को हवा में मुक्त करने का काम करती हैं, जिसकी वजह से बारिश के बाद हवा में इसकी मात्रा बढ़ जाती है। प्रोफेसर बटनर ने आगे बताया, “कई सारे जन्तु इसके प्रति संवेदी होते हैं मगर मनुष्य तो बहुत अधिक संवेदी होते हैं।”

इस गन्ध को पेट्रीकॉर नाम देने वाले शोधकर्ता इसाबेल बेयर और आर.जी. थॉमस ने देखा था कि 1960 के दशक में ही उत्तर प्रदेश (भारत) में इसे कैद करके ‘माटी का इत्र’ के नाम से बेचा जा रहा था। आजकल तो जियोस्मिन इत्र का एक आम घटक है। अत्तार मरीना बार्सेनिला ने बताया, “यह वाकई एक ज़बरदस्त चीज़ है और जब बारिश की बूँदें इससे टकराती हैं तो यह कॉन्क्रीट जैसी गन्ध देता है। इस गन्ध में कुछ बात है जो बहुत आदिम और अनगढ़ है। इसे आप चन्द अंश प्रति अरब अंश तक तनु कर दें तो भी मनुष्य इसे ताड़ लेते हैं।”

जियोस्मिन के साथ हमारा रिश्ता बहुत पुराना है - एक ओर तो इसकी गन्ध हमें आकर्षित करती है, वहीं कुछ लोगों को इसका स्वाद नापसन्द होता है। जियोस्मिन ही चुकन्दर को उसका मटियाला ज़ायका प्रदान करता है। हालाँकि, यह मनुष्यों के लिए विषैला नहीं है किन्तु इसकी थोड़ी-सी मात्रा भी उपस्थित हो तो लोगों को वह मिनरल वॉटर या वाइन पसन्द नहीं आती।  डेनमार्क  के  आलबर्ग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जेपे लुंड नीलसन का कहना है, “आम तौर पर इसकी जितनी मात्रा पाई जाती है, वह मनुष्य के लिए विषैली नहीं है किन्तु किसी कारणवश हम इसका सम्बन्ध किसी नकारात्मक चीज़ से जोड़ते हैं।”

पेट्रीकॉर: शब्द की उत्पत्ति
1964 में नेचर में प्रकाशित अपने शोध पत्र ‘नेचर ऑफ अर्जिलेशियस ओडर’ (मिट्टी की गन्ध की प्रकृति) में इसाबेल जॉय बेयर और रिचर्ड थॉमस ने सबसे पहले इस शब्द का उपयोग किया था। यह शब्द यूनानी पेट्रॉस (यानी पत्थर) और आइकॉर (यानी वह तरल जो देवताओं की शिराओं में प्रवाहित होता है) को जोड़कर बनाया गया है।

वनस्पति
प्रोफेसर नीलसन के मुताबिक, अनुसन्धान से यह भी पता चलता है कि जियोस्मिन टर्पीन से सम्बन्धित हो सकता है - टर्पीन पदार्थों का वह समूह है जो कई पौधों की गन्ध के स्रोत होते हैं। आम तौर पर टर्पीन्स का  निर्माण  चीड़  जैसे  कोनिफर्स (शंकुधारी वृक्ष) करते हैं। क्यू स्थित रॉयल बॉटेनिक गार्डन के शोध-प्रमुख प्रोफेसर फिलिप स्टीवेंसन के मुताबिक सम्भव है कि बारिश की बूँदें इस गन्ध को वातावरण में मुक्त करने का काम करती हैं। “आम तौर पर सुगन्धित पादप रसायनों का उत्पादन पत्ती के रोमों में होता है... और बारिश इन रोमों को क्षति पहुँचाकर इन रसायनों को बाहर निकाल देती हो।” हो सकता है कि बारिश का पानी सूखे हुए पादप पदार्थों को तोड़ डालता हो, जैसे आप सूखे पत्तों को चूर देते हैं। चूरा होने पर गन्ध तेज़ हो जाती है। बहुत सूखा मौसम पौधों की चयापचय क्रिया को धीमा कर देता है। जब बारिश होती है तो एक बार यह गति पकड़ता है और हो सकता है कि इसकी वजह से पौधे खुशनुमा गन्ध छोड़ते हों।

वज्रपात
ओज़ोन की स्वच्छ, तीक्ष्ण गन्ध पैदा करने में गरज वाले तूफानों की भी भूमिका हो सकती है। यह बिजली चमकने और वायुमण्डल में अन्य विद्युत डिस्चार्ज की वजह से पैदा होती है। मिसिसिपी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मैरीबेथ स्टोलज़नबर्ग का कहना है, “बिजली चमकने के अलावा, तूफान और बारिश भी हवा की गुणवत्ता में सुधार करते हैं। अधिकांश धूल, तैरते कण बारिश के साथ नीचे बैठ जाते हैं और हवा स्वच्छ हो जाती है।”


मैरी हाल्टन: पत्रकार, विज्ञान लेखक, कहानीकार। वर्तमान में बीबीसी न्यूज़, लन्दन में कार्यरत।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: सुशील जोशी: एकलव्य द्वारा संचालित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान शिक्षण व लेखन में गहरी रुचि।
यह लेख बीबीसी न्यूज़, 27 जुलाई 2018 से साभार।
पेट्रीकॉर से सम्बन्धित एक अन्य लेख पढ़िए संदर्भ अंक-89 के सवालीराम कॉलम में।